श्रीलाल शुक्ल जी का राग दरबारी एक ऐसा उपन्यास है जो गांव की कथा के माध्यम से आधुनिक भारतीय जीवन की मूल्यहीनता अनावृत करता है। उनका सबसे लोकप्रिय उपन्यास राग दरबारी 1968 में छपा। राग दरबारी का पन्द्रह भारतीय भाषाओं के अलावा अंग्रेजी में भी अनुवाद प्रकाशित हुआ। राग दरबारी’ श्रीलाल शुक्ल का आखिरी उपन्यास था। फिर भी राग दरबारी व्यंग्य-कथा नहीं है। इसका समबन्ध एक नगर से कुछ दूर बसे हुए गांव की ज़िन्दगी ने वर्षो की प्रगति और विकास के नारों के बावजूद निहित स्वार्थो और अनेक अवांक्षनीय तत्वों के सामने ज़िन्दगी के दस्तावेज़ हैं। १९६८ में राग दरबारी प्रकाशन एक महत्वपूर्ण साहित्यिक घटना थी। १९७० में इसे साहित्य अकादमी पुरस्कृत किया गया और १९८६ में एक दूरदर्शन-धारावाहिक के रूप में इसे लाखो दर्शको की सराहना प्राप्त हुई।
6 फ़ॉलोअर्स
3 किताबें