"""""""" वैश्विक जलवायु परिवर्तन """"""""
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सोचते है सोच हमारी ,
एक मात्र बड़ी खुबसूरत है ,
इसी सोच में सतर्कता छुटी ,
विचित्र फल के ज़रुरत है ।
स्विचिंग सिस्टम हों कार्य प्रणाली ,
श्रम विशेष परहेज हों ,
बना बनाया प्राप्त हो सबकुछ ,
फोल्डिंग आटो अब सेज हों ।
गैस चुल्हा मिक्सर आया ,
स्विचिंग सिस्टम शौचालय ,
माजा मेंगो और मेंगो फ्रुटी ,
अफ सिजनली घर आलय ।
प्रातः नित्य क्रियाओं से पूर्व ,
हों रहा फ्रेस मोर्निंग स्प्रे ,
सर्ट भी खूब गमगमाता ,
सर बालों के होते ग्रे ।
व्यक्तिगत अब रुम चाहिए ,
हरेक हाथ स्मार्टफोन ,
शेखर सर गोल्ड सान हमारी ,
बाल कटाई हेंडसम ज़ोन ।
पेड़ पौधे बनें है वामन ,
छत गमले उगाएं ,
हों गए फिर अल्पसंख्यक ,
उनके जगह अब फ्लैट रंगाय ।
खाली जगह पांव मिट्टी लगती ,
बनें रंगिला फर्स ,
मिट्टी अब खेतों तक सिमटी ,
सड़क गलियां आकर्ष ।
बाइक से चलकर मार्केट होती ,
पैदल विवशता और मजबूरी ,
कुछ नहीं तो साइकल चाहिए ,
हों चाहे कम से कम दुरी ।
घर घर प्रायः दो दो बाइक ,
हों गए आज ज़रुरी ,
थ्री टायर आर एस सी भर गए ,
डिमांड पूरी हो सब ए सी ।
घर दुकान शोपिंग मॉल ,
ए सी के बहे ब्यावर ,
अभ्यस्त हुए घराने बहुत ,
बढ़ा अतिक्रमण का भार ।
इन्हीं सभी कारणों के कारण ,
हम सब भी है गुनाहगार ,
वैश्विक जलवायु परिवर्तन का ,
जोरदार हों रहा प्रसार ।
निवारण कि है जितनी युक्तियां ,
उनमें शाकाहार सब परिवार ,
हवन यज्ञ हों सप्ताहिक ,
विधिवत करने को तैयार ।
आर्य मनोज, पश्चिम बंगाल ०६.११.२०२२.