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गीत ----- मत कर यहाँ सिंगार ,

4 दिसम्बर 2017

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मत कर यहाँ सिंगार ,

द्वार पर खड़ा हुआ पतझार ,

चार दिन की है सिर्फ बहार ||

दुनियां में हर फूल झूमता खिल कर मुरझाने को ,

दुनियां में हर सांस जागती , थक कर सो जाने को |

जीवन में बचपन का भोलापन यौवन की मस्ती ---

आते हैं दो चार कदम , हंस खेल बिछड़ जाने को |

हर बहार पतझर के दामन से उलझी होती है |

इसीलिये दो दिन रहता है , बगिया का सिंगार ||


दो पल को संध्या के हाथों में महदी रचती है ,

चार पहर रजनी की चूनर तारों से सजती है |

आँखों में आंसूं आने से पहले अधर विहंसते ,

और विरह से पूर्व मिलन की शहनाई बजती है |

सूरज की उजली किरणों से रात जनम लेती है |

और दिये की बांहों में पलता रहता अंधियार ||


सूरज का हर सुबह जन्म , हर शाम मरण होता है ,

अपना यौवन लुट जाने पर चाँद बहुत रोता है |

धानी चुनरी ओढ़ धरा दो पल को दुल्हन बनती ---

और रूप का अंत जरा के दरवाजे होता है ||

दुनियां की हर मांग सुहागिन बन कर ही लुटती है |

फूलों की सेजों पर सोये रहते हैं अंगार ||

आलोक सिन्हा

आलोक सिन्हा

मनोज जी बहुत बहुत धन्यवाद

19 सितम्बर 2021

आलोक सिन्हा

आलोक सिन्हा

बहुत बहुत धन्यवाद मनोज जी

19 सितम्बर 2021

मीना

मीना

बहुत ,बहुत सुंदर रचना !!

19 सितम्बर 2021

आलोक सिन्हा

आलोक सिन्हा

19 सितम्बर 2021

बहुत बहुत धन्यवाद मीना जी

रेणु

रेणु

आदरणीय आलोक जी -- मर्मस्पर्शी गीत है | प्रतीकात्मक ढंग से जीवन दर्शन खूब लिखा आपने | आजकल आपकी क्यों नई रचनाएँ नहीं आ रही | नए साल से कहीं पहले से ही आपका पेज खाली है लिखिए न कुछ | सादर नमन और आभार --- |

13 फरवरी 2018

आलोक सिन्हा

आलोक सिन्हा

19 सितम्बर 2021

बहुत बहुत धन्यवाद रेणु जी

मनोज कुमार खँसली-" अन्वेष"

मनोज कुमार खँसली-" अन्वेष"

अति सुन्दर रचना गुरु जी |

13 फरवरी 2018

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मुक्तक

14 सितम्बर 2015
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वक्त की चाल चल ही जाती है ,गम की सूरत बदल ही जाती है ,सख्त से सख्त चोट खाकर भी-ज़िन्दगी फिर सँभल ही जाती है **************************जिस तरह कोई निर्धन लाचार जीर्ण वस्त्र तार तार सीता है ठीक वैसे ही दुःख अभावों में आदमी आस लेके जीता है

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मुक्तक

24 सितम्बर 2015
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भाग्य में अपने क्या बस काली रात है नयन ने पायी आँसू की सौगात है बस ऊँचे भवनों तक आता उजियारा गाँव में अपने उगता अजब प्रभात है

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मुक्तक

8 दिसम्बर 2015
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आंसुओं के घर शमा रात भर नहीं जलती आँधियोँ हों तो कली डाल पर नहीं खिलती धन से हर चीज़ पाने की सोचने वालो मन की शान्ति किसी दुकान पर नहीं मिलती

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मुक्तक

20 दिसम्बर 2015
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भाग्य में अपने क्या बस काली रात है नयन ने पायी आँसू की सौगात है बस ऊँचे भवनों तक आता उजियारा गाँव में अपने उगता अजब प्रभात है

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मुक्तक

11 मई 2016
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अंधेरों के दुःख दर्द सूरज से कहते हो तुम नाव कैसे डूबी लहरों से पूछते हो तुम छल से जिस मगर ने सब खाई चुरा के मछली सत कथन की उससे क्या उम्मीद करते हो तुम 

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डा .कुंवर बेचेन की कुछ पंक्तियाँ व् शेर

9 सितम्बर 2016
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जितनी दूर अधर से खुशियां , जितनी दूर सपन से अँखियाँ , जितने बिछुए दूर कुआंरे पाँव से- उतनी दूर प

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एक कथन

11 सितम्बर 2016
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अच्छे सम्बन्ध इस बात पर निर्भर नहीं करते कि हम एक दूसरे को कितना समझतेहैं | बल्कि इस बात पर निर्भर करते हैं किहम एक दूसरे के प्रति मन में उत्पन्न होंने वाली गलत फहमियों को कितना नकारते हैं| --- --- --- --- --- ---

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स्केच - तीन मित्र तीन बात के एक मित्र का विवरण

15 सितम्बर 2016
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स्केच - तीन मित्र तीन बात के एक मित्र का विवरण(१) मेरे एक मित्र हैं - डाक्टर पारिजात जो यहींराजकीय चिकित्सालय में सर्जन हैं | उनकी पत्नी डा.पल्लवी इंगलिश में एम . ए. व् पीएच् डी हैं | लेकिन मेरे ये मित्र भी अपने दाम्पत्य जीवन से संतुष्ट नहीं हैं |उनकी शिक

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गीत ----- मत कर यहाँ सिंगार ,

4 दिसम्बर 2017
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याद न तब भूली जाएगी

22 सितम्बर 2021
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<p>गीत</p> <p> याद न तब भूली

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गीत

17 अप्रैल 2022
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 गीत   आओ आज वहां चलते हैं |   जहां प्यार की गंगा बहती ,   सब हंस कर मिलते जुलते हैं |   आओ आज वहां चलते हैं |  छोटे छोटे घर झौंपड़ियाँ ,   छोटे छोटे स्वप्न सजीले |  बस कैसे भी हो मैं कर दूं , 

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गीत

30 जनवरी 2023
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गीत कोई तो सच सच बतलाये , राम  राज  में पग धरने को , कितना अभी और चलना है | दोनों पांवों में छाले हैं , होटों पर जकड़े ताले हैं | दूर दूर तक कहीं जरा भी , नहीं  दीखते उजियाले हैं | चारों ओर घिर

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देश का गीत

5 फरवरी 2023
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   आज नया सूरज उग आया जागा हर इन्सान ,  धीरे धीरे खोल रहा है  पलके हिदुस्तान |   अपनी धरती अपना अम्बर , अपने चाँद सितारे ,   मुस्कायें तो फूल बरसते , रोयें तो अंगारे,   इसी लिए आँखों में आंसू , म

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