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प्राथर्ना मत कर, मत कर, मत कर

1 अगस्त 2022

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प्राथर्ना मत कर, मत कर, मत कर!


युद्धक्षेत्र में दिखला भुजबल,

रहकर अविजित, अविचल प्रतिपल,

मनुज-पराजय के स्‍मारक हैं मठ, मस्जिद, गिरजाघर!

प्राथर्ना मत कर, मत कर, मत कर!


मिला नहीं जो स्‍वेद बहाकर,

निज लोहू से भीग-नहाकर,

वर्जित उसको, जिसे ध्‍यान है जग में कहलाए नर!

प्राथर्ना मत कर, मत कर, मत कर!


झुकी हुई अभिमानी गर्दन,

बँधे हाथ, नत-निष्‍प्रभ लोचन

यह मनुष्‍य का चित्र नहीं है, पशु का है, रे कायर!

प्राथर्ना मत कर, मत कर, मत कर!

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रचनाएँ
एकांत संगीत
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हरिवंश राय बच्चन का जन्म 27 नवंबर सन् 1907 को प्रयाग के कटरा मोहल्ले में हुआ था। हरिवंश राय बच्चन के पिता का नाम प्रतापनारायण था। माता का नाम सुरसती था। इनसे ही हरिवंशराय को उर्दू व हिंदी की शिक्षा मिली थी। हरिवंश राय बच्चन ने सन् 1938 में एम.ए. और सन् 1954 में केंब्रिज विश्वविद्यालय से पीएच.डी की उपाधि प्राप्त की। हरिवंश राय बच्चन की प्रमुख काव्य रचनाएँ हैं - मधुशाला, मधुबाला, मधुकलश, निशा निमंत्रण, एकांत संगीत, आकुल-अंतर, मिलनयामिनी, सतरंगिणी, आरती और अंगारे, नए पुराने झरोखे तथा टूटी-फूटी कडि़याँ।
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एकांत संगीत

1 अगस्त 2022
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0

तट पर है तरुवर एकाकी, नौका है, सागर में, अंतरिक्ष में खग एकाकी, तारा है, अंबर में, भू पर वन, वारिधि पर बेड़े, नभ में उडु खग मेला, नर नारी से भरे जगत में कवि का हृदय अकेला!

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अब मत मेरा निर्माण करो

1 अगस्त 2022
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अब मत मेरा निर्माण करो! तुमने न बना मुझको पाया, युग-युग बीते, मैं न घबराया; भूलो मेरी विह्वलता को, निज लज्जा का तो ध्यान करो! अब मत मेरा निर्माण करो! इस चक्की पर खाते चक्कर मेरा तन-मन-जीवन ज

3

मेरे उर पर पत्थर धर दो

1 अगस्त 2022
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मेरे उर पर पत्थर धर दो! जीवन की नौका का प्रिय धन लुटा हुआ मणि-मुक्ता-कंचन तो न मिलेगा, किसी वस्तु से इन खाली जगहों को भर दो! मेरे उर पर पत्थर धर दो! मंद पवन के मंद झकोरे, लघु-लघु लहरों के हल

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मूल्य दे सुख के क्षणों का

1 अगस्त 2022
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मूल्य दे सुख के क्षणों का! एक पल स्वच्छंद होकर तू चला जल, थल, गगन पर, हाय! आवाहन वही था विश्व के चिर बंधनों का! मूल्य दे सुख के क्षणों का! पा निशा की स्वप्न छाया एक तूने गीत गाया, हाय! तूने र

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कोई गाता, मैं सो जाता

1 अगस्त 2022
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कोई गाता, मैं सो जाता! संसृति के विस्तृत सागर पर सपनों की नौका के अंदर सुख-दुख की लहरों पर उठ-गिर बहता जाता मैं सो जाता! कोई गाता मैं सो जाता! आँखों में भरकर प्यार अमर, आशीष हथेली में भरकर को

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मेरा तन भूखा, मन भूखा

1 अगस्त 2022
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मेरा तन भूखा, मन भूखा! इच्छा, सब सत्यों का दर्शन, सपने भी छोड़ गये लोचन! मेरे अपलक युग नयनों में मेरा चंचल यौवन भूखा! मेरा तन भूखा, मन भूखा! इच्छा, सब जग का आलिंगन, रूठा मुझसे जग का कण-कण!

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व्यर्थ गया क्या जीवन मेरा?

1 अगस्त 2022
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व्यर्थ गया क्या जीवन मेरा? प्यासी आँखें, भूखी बाँहें, अंग-अंग की अगणित चाहें; और काल के गाल समाता जाता है प्रति क्षण तन मेरा! व्यर्थ गया क्या जीवन मेरा? आशाओं का बाग लगा है, कलि-कुसुमों का भ

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खिड़की से झाँक रहे तारे

1 अगस्त 2022
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खिड़की से झाँक रहे तारे! जलता है कोई दीप नहीं, कोई भी आज समीप नहीं, लेटा हूँ कमरे के अंदर बिस्तर पर अपना मन मारे! खिड़की से झाँक रहे तारे! सुख का ताना, दुख का बाना, सुधियों ने है बुनना ठाना,

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नभ में दूर-दूर तारे भी

1 अगस्त 2022
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नभ में दूर-दूर तारे भी! देते साथ-साथ दिखलाई, विश्व समझता स्नेह-सगाई; एकाकी पन का अनुभव, पर, करते हैं ये बेचारे भी! नभ में दूर-दूर तारे भी उर-ज्वाला को ज्योति बनाते, निशि-पंथी को राह बताते,

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मैं क्यों अपनी बात सुनाऊँ?

1 अगस्त 2022
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मैं क्यों अपनी बात सुनाऊँ? जगती के सागर में गहरे जो उठ-गिरतीं अगणित लहरें, उनमें एक लहर लघु मैं भी, क्यों निज चंचलता दिखलाऊँ? मैं क्यों अपनी बात सुनाऊँ? जगती के तरुवर में प्रति पल जो लगते-गि

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मैं क्यों अपनी बात सुनाऊँ?

1 अगस्त 2022
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मैं क्यों अपनी बात सुनाऊँ? जगती के सागर में गहरे जो उठ-गिरतीं अगणित लहरें, उनमें एक लहर लघु मैं भी, क्यों निज चंचलता दिखलाऊँ? मैं क्यों अपनी बात सुनाऊँ? जगती के तरुवर में प्रति पल जो लगते-गि

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छाया पास चली आती है

1 अगस्त 2022
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छाया पास चली आती है! जड़ बिस्तर पर पड़ा हुआ हूँ, तम-समाधि में गड़ा हुआ हूँ; तन चेतनता-हीन हुआ है, साँस महज चलती जाती है! छाया पास चली आती है! तन सफ़ेद है, पट सफ़ेद है, अंग-अंग में भरा भेद है

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मध्य निशा में पंछी बोला

1 अगस्त 2022
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मध्य निशा में पंछी बोला! ध्वनित धरातल और गगन है, राग नहीं है, यह क्रंदन है, टूटे प्यारी नींद किसी की, इसने कंठ करुण निज खोला! मध्य निशा में पंछी बोला! निश्चित गाने का अवसर है, सीमित रोने को

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जा कहाँ रहा है विहग भाग?

1 अगस्त 2022
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जा कहाँ रहा है विहग भाग? कोमल नीड़ों का सुख न मिला, स्नेहालु दृगों का रुख न मिला, मुँह-भर बोले, वह मुख न मिला, क्या इसीलिये, वन से विराग? जा कहाँ रहा है विहग भाग? यह सीमाओं से हीन गगन, यह शर

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जा रही है यह लहर भी

1 अगस्त 2022
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जा रही है यह लहर भी! चार दिन उर से लगाया, साथ में रोई, रुलाया, पर बदलती जा रही है आज तो इसकी नजर भी! जा रही है यह लहर भी! हाय! वह लहरी न आती, जो सुधा का घूँट लाती, जो न आकर लौटती फिर, कर मु

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प्रेयसि, याद है वह गीत?

1 अगस्त 2022
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प्रेयसि, याद है वह गीत? गोद में तुझको लेटाकर, कंठ में उन्मत्त स्वर भर, गा जिसे मैंने लिया था स्वर्ग का सुख जीत! प्रेयसि, याद है वह गीत? है न जाने तू कहाँ पर, कंठ सूखा, क्षीणतर स्वर, सुन जिस

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कोई नहीं, कोई नहीं

1 अगस्त 2022
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कोई नहीं, कोई नहीं! यह भूमि है हाला-भरी, मधुपात्र-मधुबाला-भरी, ऐसा बुझा जो पा सके मेरे हृदय की प्‍यास को कोई नहीं, कोई नहीं! सुनता, समझता है गगन, वन के विहंगों के वचन, ऐसा समझ जो पा सके म

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कोई नहीं, कोई नहीं

1 अगस्त 2022
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कोई नहीं, कोई नहीं! यह भूमि है हाला-भरी, मधुपात्र-मधुबाला-भरी, ऐसा बुझा जो पा सके मेरे हृदय की प्‍यास को- कोई नहीं, कोई नहीं! सुनता, समझता है गगन, वन के विहंगों के वचन, ऐसा समझ जो पा सके मे

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किसलिये अंतर भयंकर?

1 अगस्त 2022
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किसलिये अंतर भयंकर? चाहता मैं गान मन का, राग बन जाता गगन का, किंतु मेरा स्वर मुझी में लीन हो मिटता निरंतर! किसलिये अंतर भयंकर? चाहता वह गीत गाना, सुन जिसे हो खुश जमाना, किंतु मेरे गीत मुझको

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अब तो दुख के दिवस हमारे

1 अगस्त 2022
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अब तो दुख दें दिवस हमारे! मेरा भार स्वयं ले करके, मेरी नाव स्वयं खे करके, दूर मुझे रखते जो श्रम से, वे तो दूर सिधारे! अब तो दुख दें दिवस हमारे! रह न गये जो हाथ बटाते, साथ खेवाकर पार लगाते,

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मैंने गाकर दुख अपनाए

1 अगस्त 2022
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मैंने गाकर दुख अपनाए! कभी न मेरे मन को भाया, जब दुख मेरे ऊपर आया, मेरा दुख अपने ऊपर ले कोई मुझे बचाए! मैंने गाकर दुख अपनाए! कभी न मेरे मन को भाया, जब-जब मुझको गया रुलाया, कोई मेरी अश्रु धार

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चढ़ न पाया सीढ़ियों पर

1 अगस्त 2022
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चढ़ न पाया सीढ़ियों पर! प्रात आया, भक्त आए, पुष्प-जल की भेंट लाए, देव-मंदिर पहुँच पाए, औ’ उन्हें देखा किया मैं लोचनों में नीर भर-भर! चढ़ न पाया सीढ़ियों पर! साँझ आई, भक्त लौटे, भक्ति से अनु

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क्या दंड़ के मैं योग्य था?

1 अगस्त 2022
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क्या दंड़ के मैं योग्य था! चलता रहूँ यह चाह दी, पर एक ही तो राह दी, किस भाँति होती दूसरी इस देह-यात्रा की कथा! क्या दंड़ के मैं योग्य था! तेरी रजा पर मैं चला, तब क्या बुरा, तब क्या भला, फिर

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मैं जीवन में कुछ कर न सका

1 अगस्त 2022
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मैं जीवन में कुछ न कर सका! जग में अँधियारा छाया था, मैं ज्‍वाला लेकर आया था मैंने जलकर दी आयु बिता, पर जगती का तम हर न सका! मैं जीवन में कुछ न कर सका! अपनी ही आग बुझा लेता, तो जी को धैर्य बँ

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कुछ भी नहीं, कुछ भी नहीं

1 अगस्त 2022
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कुछ भी नहीं, कुछ भी नहीं! उर में छलकता प्यार था, दृग में भरा उपहार था, तुम क्यों ड़रे, था चाहता मैं तो प्रणय-प्रतिकार मे- कुछ भी नहीं, कुछ भी नहीं! मुझको गये तुम छोड़कर, सब स्वप्न मेरा तोड़क

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जैसा गाना था गा न सका

1 अगस्त 2022
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जैसा गाना था, गा न सका! गाना था वह गायन अनुपम, क्रंदन दुनिया का जाता थम, अपने विक्षुब्ध हृदय को भी मैं अब तक शांत बना न सका! जैसा गाना था, गा न सका! जग की आहों को उर में भर कर देना था, मुझको

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गिनती के गीत सुना पाया

1 अगस्त 2022
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गिनती के गीत सुना पाया! जब जग यौवन से लहराया, दृग पर जल का पर्दा छाया, फिर मैंने कंठ रुँधा पाया, जग की सुषमा का क्षण बीता मैं कर मल-मलकर पछताया! गिनती के गीत सुना पाया! संघर्ष छिड़ा अब जीवन

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गिनती के गीत सुना पाया

1 अगस्त 2022
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गिनती के गीत सुना पाया! जब जग यौवन से लहराया, दृग पर जल का पर्दा छाया, फिर मैंने कंठ रुँधा पाया, जग की सुषमा का क्षण बीता मैं कर मल-मलकर पछताया! गिनती के गीत सुना पाया! संघर्ष छिड़ा अब जीवन

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किसके लिए? किसके लिए?

1 अगस्त 2022
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किसके लिए? किसके लिए? जीवन मुझे जो ताप दे, जग जो मुझे अभिशाप दे, जो काल भी संताप दे, उसको सदा सहता रहूँ, किसके लिए? किसके लिए? चाहे सुने कोई नहीं, हो प्रतिध्‍वनित न कभी कहीं, पर नित्‍य अप

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बीता इकतीस बरस जीवन

1 अगस्त 2022
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बीता इकतीस बरस जीवन! वे सब साथी ही हैं मेरे, जिनको गृह-गृहिणी-शिशु घेरे, जिनके उर में है शान्ति बसी, जिनका मुख है सुख का दर्पण! बीता इकतीस बरस जीवन! कब उनका भाग्य सिहाता हूँ, उनके सुख में सु

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मेरी सीमाएँ बतला दो

1 अगस्त 2022
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मेरी सीमाएँ बतला दो! यह अनंत नीला नभमंड़ल, देता मूक निमंत्रण प्रतिपल, मेरे चिर चंचल पंखों को इनकी परिमित परिधि बता दो! मेरी सीमाएँ बतला दो! कल्पवृक्ष पर नीड़ बनाकर गाना मधुमय फल खा-खाकर! स्

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किस ओर मैं? किस ओर मैं?

1 अगस्त 2022
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ओर मैं? किस ओर मैं? है एक ओर असित निशा, है एक ओर अरुण दिशा, पर आज स्‍वप्‍नों में फँसा, यह भी नहीं मैं जानता ओर मैं? किस ओर मैं? है एक ओर अगम्‍य जल, है एक ओर सुरम्‍य थल, पर आज लहरों से ग्रसा

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जन्म दिन फिर आ रहा है

1 अगस्त 2022
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जन्म दिन फिर आ रहा है! हूँ नहीं वह काल भूला, जब खुशी के साथ फूला सोचता था जन्मदिन उपहार नूतन ला रहा है! जन्म दिन फिर आ रहा है! वर्षदिन फिर शोक लाया, सोच दृग में नीर छाया, बढ़ रहा हूँ-भ्रम म

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क्या साल पिछला दे गया?

1 अगस्त 2022
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क्या साल पिछला दे गया? कुछ देर मैं पथ पर ठहर, अपने दृगों को फेरकर, लेखा लगा लूँ काल का जब साल आने को नया! क्या साल पिछला दे गया? चिंता, जलन, पीड़ा वही, जो नित्य जीवन में रहीं, नव रूप में मै

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सोचा, हुआ परिणाम क्‍या

1 अगस्त 2022
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सोचा, हुआ परिणाम क्‍या? जब सुप्‍त बड़वानल जगा, जब खौलने सागर लगा, उमड़ीं तरंगे ऊर्ध्‍वगा, लें तारकों को भी डुबा, तुमने कहा-हो शीत, जम! सोचा, हुआ परिणाम क्‍या? जब उठ पड़ा मारुत मचल हो अग्निम

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फिर वर्ष नूतन आ गया

1 अगस्त 2022
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फिर वर्ष नूतन आ गया! सूने तमोमय पंथ पर, अभ्यस्त मैं अब तक विचर, नव वर्ष में मैं खोज करने को चलूँ क्यों पथ नया। फिर वर्ष नूतन आ गया! निश्चित अँधेरा तो हुआ, सुख कम नहीं मुझको हुआ, दुविधा मिटी

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यह अनुचित माँग तुम्हारी है

1 अगस्त 2022
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यह अनुचित माँग तुम्हारी है! रोएँ-रोएँ तन छिद्रित कर कहते हो, जीवन में रस भर! हँस लो असफलता पर मेरी, पर यह मेरी लाचारी है। यह अनुचित माँग तुम्हारी है! कोना-कोना दुख से उर भर, कहते हो, खोल सुख

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क्या ध्येय निहित मुझमें तेरा?

1 अगस्त 2022
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क्या ध्येय निहित मुझमें तेरा? जन-रव में घुल मिल जाने से, जन की वाणी में गाने से संकोच किया क्यों करता है यह क्षीण, करुणतम स्वर मेरा? क्या ध्येय निहित मुझमें तेरा? जग-धारा में बह जाने से, अपना

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मैं क्या कर सकने में समर्थ?

1 अगस्त 2022
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मैं क्या कर सकने में समर्थ? मैं आधि-ग्रस्त, मैं व्याधि ग्रस्त, मैं काल-त्रस्त, मैं कर्म-त्रस्त, मैं अर्थ ध्येय में रख चलता, मुझसे हो जाता है अनर्थ! मैं क्या कर सकने में समर्थ? मुझसे विधि, विध

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पूछता, पाता न उत्‍तर

1 अगस्त 2022
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पूछता, पाता न उत्‍तर! जब चला जाता उजाला, लौटती जब विहग-माला "प्रात को मेरा विहग जो उड़ गया था, लौट आया?-" पूछता, पाता न उत्‍तर! जब गगन में रात आती, दीप मालाएँ जलाती, "अस्‍त जो मेरा सितारा थ

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तब रोक न पाया मैं आँसू

1 अगस्त 2022
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तब रोक न पाया मैं आँसू! जिसके पीछे पागल होकर मैं दौड़ा अपने जीवन-भर, जब मृगजल में परि‍वर्तित हो मुझपर मेरा अरमान हँसा! तब रोक न पाया मैं आँसू! जिसमें अपने प्राणों को भर कर देना चाहा अजर-अमर,

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गंध आती है सुमन की

1 अगस्त 2022
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गंध आती है सुमन की! किस कुसुम का श्वास छूटा? किस कली का भाग्य फूटा? लुट गयी सहसा खुशी इस कालिमा में किस चमन की? गंध आती है सुमन की! आज कवि का हृदय टूटा, आज कवि का कंठ फूटा, विश्व समझेगा हुई

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है हार नहीं यह जीवन में

1 अगस्त 2022
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है हार नहीं यह जीवन में! जिस जगह प्रबल हो तुम इतने, हारे सब हैं मानव जितने, उस जगह पराजित होने में है ग्लानि नहीं मेरे मन में! है हार नहीं यह जीवन में! मदिरा-मज्जित कर मन-काया, जो चाहा तुमने

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मत मेरा संसार मुझे दो

1 अगस्त 2022
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मत मेरा संसार मुझे दो! जग की हँसी, घृणा, निर्ममता सह लेने की तो दो क्षमता, शांति भरी मुस्कानों वाला यदि न सुखद परिवार मुझे दो! मत मेरा संसार मुझे दो! ज्योति न को ऐसी तम घन में, राह दिखा, दे

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मैंने मान ली तब हार

1 अगस्त 2022
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मैंने मान ली तब हार! पूर्ण कर विश्वास जिसपर, हाथ मैं जिसका पकड़कर, था चला, जब शत्रु बन बैठा हृदय का गीत, मैंने मान ली तब हार! विश्व ने बातें चतुर कर, चित्त जब उसका लिया हर, मैं रिझा जिसको न

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देंखतीं आकाश आँखें

1 अगस्त 2022
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देखतीं आकाश आँखें! श्वेत अक्षर पृष्ठ काला, तारकों की वर्णमाला, पढ़ रहीं हैं एक जीवन का जटिल इतिहास आँखें! देखतीं आकाश आँखें! सत्य यों होगी कहानी, बात यह समझी न जानी, खो रही हैं आज अपने आप प

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तेरा यह करुण अवसान

1 अगस्त 2022
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तेरा यह करुण अवसान! जब तपस्या-काल बीता, पाप हारा, पूण्य जीता, विजयिनी, सहसा हुई तू, हाय, अंतर्धान! तेरा यह करुण अवसान! जब तुझे पहचान पाया, देवता को जान पाया, खींच तुझको ले गया तब काल का आह्

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बुलबुल जा रही है आज

1 अगस्त 2022
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बुलबुल जा रही है आज! प्राण सौरभ से भिदा है, कंटकों से तन छिदा है, याद भोगे सुख-दुखों की आ रही है आज! बुलबुल जा रही है आज! प्यार मेरा फूल को भी, प्यार मेरा शूल को भी, फूल से मैं खुश, नहीं मै

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जब करूँ मैं काम

1 अगस्त 2022
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जब करूँ मैं काम, प्रेरणा मुझको नियम हो, जिस घड़ी तक बल न कम हो, मैं उसे करता रहूँ यदि काम हो अभिराम! जब करूँ मैं काम! जब करूँ मैं गान, हो प्रवाहित राग उर से, हो तरंगित सुर मधुर से, गति रहे ज

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मिट्टी दीन कितनी, हाय

1 अगस्त 2022
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मिट्टी दीन कितनी, हाय! हृदय की ज्‍वाला जलाती, अश्रु की धारा बहाती, और उर-उच्‍छ्वास में यह काँपती निरुपाय! मिट्टी दीन कितनी, हाय! शून्‍यता एकांत मन की, शून्‍यता जैसे गगन की, थाह पाती है न इस

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घुल रहा मन चाँदनी में

1 अगस्त 2022
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घुल रहा मन चाँदनी में! पूर्णमासी की निशा है, ज्योति-मज्जित हर दिशा है, खो रहे हैं आज निज अस्तित्व उडुगण चाँदनी में! घुल रहा मन चाँदनी में! हूँ कभी मैं गीत गाता, हूँ कभी आँसू बहाता, पर नहीं

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व्याकुल आज तन-मन-प्राण

1 अगस्त 2022
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व्याकुल आज तन-मन-प्राण! तन बदन का स्पर्श भूला, पुलक भूला, हर्ष भूला, आज अधरों से अपरिचित हो गई मुस्कान! व्याकुल आज तन-मन-प्राण! मन नहीं मिलता किसी से, मन नहीं खिलता किसी से, आज उर-उल्लास का

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मैं भूला भूला सा जग में

1 अगस्त 2022
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मैं भूला-भूला-सा जग में! अगणित पंथी हैं इस पथ पर, है किंतु न परिचित एक नजर, अचरज है मैं एकाकी हूँ जग के इस भीड़ भरे मग में। मैं भूला-भूला-सा जग में! अब भी पथ के कंकड़-पत्थर, कुश, कंटक, तरुवर

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खोजता है द्वार बन्दी

1 अगस्त 2022
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खोजता है द्वार बन्दी! भूल इसको जग चुका है, भूल इसको मग चुका है, पर तुला है तोड़ने पर तीलियाँ-दीवार बन्दी! खोजता है द्वार बन्दी! सीखचे ये क्या हिलेंगे, हाथ के छाले छिलेंगे, मानने को पर नहीं

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मैं पाषाणों का अधिकारी

1 अगस्त 2022
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मैं पाषाणों का अधिकारी! है अग्नि तपित मेरा चुंबन, है वज्र-विनिंदक भुज-बंधन, मेरी गोदी में कुम्हलाईं कितनी वल्लरियाँ सुकुमारी! मैं पाषाणों का अधिकारी! दो बूँदों से छिछला सागर, दो फूलों से हल्

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तू देख नहीं यह क्यों पाया?

1 अगस्त 2022
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तू देख नहीं यह क्यों पाया? तारावलियाँ सो जाने पर, देखा करतीं तुझको निशि भर, किस बाला ने देखा अपने बालम को इतने लोचन से? तू देख नहीं यह क्यों पाया? तुझको कलिकाएँ मुसकाकर, आमंत्रित करती हैं दि

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दुर्दशा मिट्टी की होती

1 अगस्त 2022
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दुर्दशा मिट्टी की होती! कर आशा, विचार, स्वप्नों से, भावों से श्रृंगार, देख निमिष भर लेता कोई सब श्रृंगार उतार! आज पाया जो, कल खोती! मिट्टी ले चलती है सिर पर, सोने का संसार, मंजिल पर होता है

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क्षतशीश मगर नतशीश नहीं

1 अगस्त 2022
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क्षतशीश मगर नतशीश नहीं! बनकर अदृश्‍य मेरा दुश्‍मन, करता है मुझपर वार सघन, लड़ लेने की मेरी हवसें मेरे उर के ही बीच रहीं! क्षतशीश मगर नतशीश नहीं! मिट्टी है अश्रु बहाती है, मेरी सत्‍ता तो गाती

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यातना जीवन की भारी

1 अगस्त 2022
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यातना जीवन की भारी! चेतनता पहनाई जाती जड़ता का परिधान, देव और पशु में छिड़ जाता है संघर्ष महान! हार की दोनों की बारी! तन मन की आकांक्षाओं का दुर्बलता है नाम, एक असंयम-संयम दोनों का अंतिम पर

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दुनिया अब क्या मुझे छलेगी

1 अगस्त 2022
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दुनिया अब क्या मुझे छलेगी! बदली जीवन की प्रत्याशा, बदली सुख-दुख की परिभाषा, जग के प्रलोभनों की मुझसे अब क्या दाल गलेगी! दुनिया अब क्या मुझे छलेगी! लड़ना होगा जग-जीवन से, लड़ना होगा अपने मन स

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त्राहि, त्राहि कर उठाता जीवन

1 अगस्त 2022
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त्राहि, त्राहि कर उठाता जीवन! जब रजनी के सूने क्षण में, तन-मन के एकाकीपन में कवि अपनी विह्वल वाणी से अपना व्‍याकुल मन बहलाता, त्राहि, त्राहि कर उठाता जीवन! जब उर की पीड़ा से रोकर, फिर कुछ सो

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चाँदनी में साथ छाया

1 अगस्त 2022
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चाँदनी में साथ छाया! मौन में डूबी निशा है, मौन-डूबी हर दिशा है, रात भर में एक ही पत्ता किसी तरु ने गिराया! चाँदनी में साथ छाया! एक बार विहंग बोला, एक बार समीर ड़ोला, एक बार किसी पखेरू ने पर

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सशंकित नयनों से मत देख

1 अगस्त 2022
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सशंकित नयनों से मत देख! खाली मेरा कमरा पाकर, सूखे तिनके पत्ते लाकर, तूने अपना नीड़ बनाया कौन किया अपराध? सशंकित नयनों से मत देख! सोचा था जब घर आऊँगा, कमरे को सूना पाऊँगा, देख तुझे उमड़ा पड़

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ओ गगन के जगमगाते दीप

1 अगस्त 2022
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ओ गगन के जगमगाते दीप! दीन जीवन के दुलारे खो गये जो स्वप्न सारे, ला सकोगे क्या उन्हें फिर खोज हृदय समीप? ओ गगन के जगमगाते दीप! यदि न मेरे स्वप्न पाते, क्यों नहीं तुम खोज लाते वह घड़ी चिर शान

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ओ अँधेरी से अँधेरी रात

1 अगस्त 2022
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ओ अँधेरी से अँधेरी रात! आज गम इतना हृदय में, आज तम इतना हृदय में, छिप गया है चाँद-तारों का चमकता गात! ओ अँधेरी से अँधेरी रात! दिख गया जग रूप सच्चा ज्योति में यह बहुत अच्छा, हो गया कुछ देर क

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मेरा भी विचित्र स्वभाव

1 अगस्त 2022
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मेरा भी विचित्र स्वभाव! लक्ष्य से अनजान मैं हूँ, लस्त मन-तन-प्राण मैं हूँ, व्यस्त चलने में मगर हर वक्त मेरे पाँव! मेरा भी विचित्र स्वभाव! कुछ नहीं मेरा रहेगा, जो सदा सबसे कहेगा, वह चलेगा ला

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डूबता अवसाद में मन

1 अगस्त 2022
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डूबता अवसाद में मन! यह तिमिर से पीन सागर, तल-तटों से हीन सागर, किंतु हैं इनमें न धाराएँ, न लहरें औ’, न कम्पन! डूबता अवसाद में मन! मैं तरंगों से लड़ा हूँ, और तगड़ा ही पड़ा हूँ, पर नियति ने आ

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उर में अग्नि के शर मार

1 अगस्त 2022
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उर में अग्नि के शर मार! जब कि मैं मधु स्वप्नमय था, सब दिशाओं से अभय था, तब किया तुमने अचानक यह कठोर प्रहार, उर में अग्नि के शर मार! सिंह-सा मृग को गिराकर, शक्ति सारे अंग की हर, सोख क्षण भर

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जुए के नीचे गर्दन ड़ाल

1 अगस्त 2022
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जुए के नीचे गर्दन ड़ाल! देख सामने बोझी गाड़ी, देख सामने पंथ पहाड़ी, चाह रहा है दूर भागना, होता है बेहाल? जुए के नीचे गर्दन ड़ाल! तेरे पूर्वज भी घबराए, घबराए, पर क्या बच पाए, इसमें फँसना ही

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दुखी मन से कुछ भी न कहो

1 अगस्त 2022
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दुखी-मन से कुछ भी न कहो! व्यर्थ उसे है ज्ञान सिखाना, व्यर्थ उसे दर्शन समझाना, उसके दुख से दुखी नहीं हो तो बस दूर रहो! दुखी-मन से कुछ भी न कहो! उसके नयनों का जल खारा, है गंगा की निर्मल धारा,

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आज घन मन भर बरस लो

1 अगस्त 2022
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आज घन मन भर बरस लो! भाव से भरपूर कितने, भूमि से तुम दूर कितने, आँसुओं की धार से ही धरणि के प्रिय पग परस लो, आज घन मन भर बरस लो! ले तुम्हारी भेंट निर्मल, आज अचला हरित-अंचल; हर्ष क्या इस पर न

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स्वर्ग के अवसान का अवसान

1 अगस्त 2022
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स्वर्ग के अवसान का अवसान! एक पल था स्वर्ग सुन्दर, दूसरे पल स्वर्ग खँड़हर, तीसरे पल थे थकिर कर स्वर्ग की रज छान! स्वर्ग के अवसान का अवसान! ध्यान था मणि-रत्न ढेरी से तुलेगी राख मेरी, पर जगत म

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यह व्यंग नहीं देखा जाता

1 अगस्त 2022
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यह व्यंग नहीं देखा जाता! निःसीम समय की पलकों पर, पल और पहर में क्या अंतर; बुद्बुद की क्षण-भंगुरता पर मिटने वाला बादल हँसता! यह व्यंग नहीं देखा जाता! दोनों अपनी सत्ता में सम, किसमें क्या ज्या

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तुम्‍हारा लौह चक्र आया

1 अगस्त 2022
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तुम्‍हारा लौह चक्र आया! कुचल चला अचला के वन घन, बसे नगर सब निपट निठुर बन, चूर हुई चट्टान, क्षार पर्वत की दृढ़ काया! तुम्‍हारा लौह चक्र आया! अगणित ग्रह-नक्षत्र गगन के टूट पिसे, मरु-सिसका-कण क

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हर जगह जीवन विकल है

1 अगस्त 2022
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हर जगह जीवन विकल है! तृषित मरुथल की कहानी, हो चुकी जग में पुरानी, किंतु वारिधि के हृदय की प्यास उतनी ही अटल है! हर जगह जीवन विकल है! रो रहा विरही अकेला, देख तन का मिलन मेला, पर जगत में दो ह

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जीवन का विष बोल उठा है

1 अगस्त 2022
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जीवन का विष बोल उठा है! मूँद जिसे रक्खा मधुघट से, मधुबाला के श्यामल पट से, आज विकल, विह्वल सपनों के अंचल को वह खोल उठा है! जीवन का विष बोल उठा है! बाहर का श्रृंगार हटाकर रत्नाभूषण, रंजित अंब

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जीवन भूल का इतिहास

1 अगस्त 2022
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जीवन भूल का इतिहास! ठीक ही पथ को समझकर, मैं रहा चलता उमर भर, किंतु पग-पग पर बिछा था भूल का छल पाश! जीवन भूल का इतिहास! काटतीं भूलें प्रतिक्षण, कह उन्हें हल्का करूँ मन,- कर गया पर शीघ्रता मे

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नभ में वेदना की लहर

1 अगस्त 2022
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नभ में वेदना की लहर! मर भले जाएँ दुखी जन, अमर उनका आर्त क्रंदन; क्यों गगन विक्षुब्ध, विह्वल, विकल आठों पहर? नभ में वेदना की लहर! वेदना से ज्वलित उड़गण, गीतमय, गतिमय समीरण, उठ, बरस, मिटते सज

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छोड़ मैं आया वहाँ मुस्कान

1 अगस्त 2022
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छोड़ मैं आया वहाँ मुस्कान! स्वार्थ का जिसमें न था कण, ध्येय था जिसका समर्पण, जिस जगह ऐसे प्रणय का था हुआ अपमान! छोड़ मैं आया वहाँ मुस्कान! भाग्य दुर्जम और दुर्गम हो कठोर, कराल, निर्मम, जिस

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जीवन शाप या वरदान

1 अगस्त 2022
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जीवन शाप या वरदान? सुप्‍त को तुमने जगाया, मौन को मुखरित बनाया, करुन क्रंदन को बताया क्‍यों मधुरतम गान? जीवन शाप या वरदान? सजग फिर से सुप्‍त होगा, गीत फिर से गुप्‍त होगा, मध्‍य में अवसाद का

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जीवन में शेष विषाद रहा

1 अगस्त 2022
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जीवन में शेष विषाद रहा! कुछ टूटे सपनों की बस्‍ती, मिटने वाली यह भी हस्‍ती, अवसाद बसा जिस खँडहर में, क्‍या उसमें ही उन्‍माद रहा! जीवन में शेष विषाद रहा! यह खँडहर ही था रंगमहल, जिसमें थी मादक

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अग्नि देश से आता हूँ मैं

1 अगस्त 2022
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अग्नि देश से आता हूँ मैं! झुलस गया तन, झुलस गया मन, झुलस गया कवि-कोमल जीवन, किंतु अग्नि-वीणा पर अपने दग्‍ध कंठ से गाता हूँ मैं! अग्नि देश से आता हूँ मैं! स्‍वर्ण शुद्ध कर लाया जग में, उसे लु

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सुनकर होगा अचरज भारी

1 अगस्त 2022
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सुनकर होगा अचरज भारी! दूब नहीं जमती पत्थर पर, देख चुकी इसको दुनिया भर, कठिन सत्य पर लगा रहा हूँ सपनों की फुलवारी! सुनकर होगा अचरज भारी! गूँज मिटेगा क्षण भर कण में, गायन मेरा, निश्चय मन में,

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जीवन खोजता आधार

1 अगस्त 2022
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जीवन खोजता आधार! हाय, भीतर खोखला है, बस मुलम्मे की कला है, इसी कुंदन के ड़ले का नाम जग में प्यार! जीवन खोजता आधार! बूँद आँसू की गलाती, आह छोटी-सी उड़ाती, नींद-वंचित नेत्र को क्या स्वप्न का

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हा, मुझे जीना न आया

1 अगस्त 2022
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हा, मुझे जीना न आया! नेत्र जलमय, रक्त-रंजित, मुख विकृत, अधरोष्ठ कंपित हो उठे तब गरल पीकर भी गरल पीना न आया! हा, मुझे जीना न आया! वेदना से नेह जोड़ा, विश्व में पीटा ढिंढोरा, प्यार तो उसने कि

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अब क्या होगा मेरा सुधार

1 अगस्त 2022
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अब क्या होगा मेरा सुधार! तू ही करता मुझसे बिगाड़, तो मैं न मानता कभी हार, मैं काट चुका अपने ही पग अपने ही हाथों ले कुठार! अब क्या होगा मेरा सुधार! संभव है तब मैं था पागल, था पागल, पर था क्या

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मैं न सुख से मर सकूँगा

1 अगस्त 2022
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मैं न सुख से मर सकूँगा! चाहता जो काम करना, दूर है मुझसे सँवरना, टूटते दम से विफल आहें महज मैं भर सकूँगा! मैं न सुख से मर सकूँगा! गलतियाँ-अपराध, माना, भूल जाएगा जमाना, किंतु अपने आपको कैसे क

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आगे हिम्मत करके आओ

1 अगस्त 2022
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आगे हिम्मत करके आओ! मधुबाला का राग नहीं अब, अंगूरों का बाग नहीं अब, अब लोहे के चने मिलेंगे दाँतों को अजमाओ! आगे हिम्मत करके आओ! दीपक हैं नभ के अंगारे, चलो इन्हीं के साथ सहारे, राह? नहीं है

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मुँह क्यों आज तम की ओर

1 अगस्त 2022
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मुँह क्यों आज तम की ओर? कालिमा से पूर्ण पथ पर चल रहा हूँ मैं निरंतर, चाहता हूँ देखना मैं इस तिमिर का छोर! मुँह क्यों आज तम की ओर! ज्योति की निधियाँ अपरिमित कर चुका संसार संचित, पर छिपाए है

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विष का स्‍वाद बताना होगा

1 अगस्त 2022
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विष का स्‍वाद बताना होगा! ढाली थी मदिरा की प्‍याली, चूसी थी अधरों की लाली, कालकूट आने वाला अब, देख नहीं घबराना होगा! विष का स्‍वाद बताना होगा! आँखों से यदि अश्रु छनेगा, कटुतर यह कटु पेय बनेग

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कोई बिरला विष खाता है

1 अगस्त 2022
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कोई बिरला विष खाता है! मधु पीने वाले बहुतेरे, और सुधा के भक्त घनेरे, गज भर की छातीवाला ही विष को अपनाता है! कोई बिरला विष खाता है! पी लेना तो है ही दुष्कर, पा जाना उसका दुष्करतर, बडा भाग्य

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मेरा जोर नहीं चलता है

1 अगस्त 2022
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मेरा जोर नहीं चलता है! स्वप्नों की देखी निष्ठुरता, स्वप्नों की देखी भंगुरता, फिर भी बार-बार आ करके स्वप्न मुझे निशिदिन छलता है! मेरा जोर नहीं चलता है! सूनेपन के सुंदरपन को, कैसे दृढ़ करवा दू

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मैंने शान्ति नहीं जानी है

1 अगस्त 2022
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मैंने शान्ति नहीं जानी है! त्रुटि कुछ है मेरे अंदर भी, त्रुटि कुछ है मेरे बाहर भी, दोनों को त्रुटि हीन बनाने की मैंने मन में ठानी है! मैंने शान्ति नहीं जानी है! आयु बिता दी यत्नों में लग, उस

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अब खँड़हर भी टूट रहा है

1 अगस्त 2022
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अब खँड़हर भी टूट रहा है! गायन से गुंजित दीवारें, दिखलाती हैं दीर्घ दरारें, जिनसे करुण, कर्णकटु, कर्कश, भयकारी स्वर फूट रहा है! अब खँड़हर भी टूट रहा है! बीते युग की कौन निशानी, शेष रही थी आज

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प्राथर्ना मत कर, मत कर, मत कर

1 अगस्त 2022
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प्राथर्ना मत कर, मत कर, मत कर! युद्धक्षेत्र में दिखला भुजबल, रहकर अविजित, अविचल प्रतिपल, मनुज-पराजय के स्‍मारक हैं मठ, मस्जिद, गिरजाघर! प्राथर्ना मत कर, मत कर, मत कर! मिला नहीं जो स्‍वेद बहाक

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कुछ भी आज नहीं मैं लूँगा

1 अगस्त 2022
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कुछ भी आज नहीं मैं लूँगा! जिन चीजों की चाह मुझे थी, जिनकी कुछ परवाह मुझे थी, दीं न समय से तूने, असमय क्या ले उन्हें करूँगा! कुछ भी आज नहीं मैं लूँगा! मैंने बाँहों का बल जाना, मैंने अपना हक प

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मुझे न सपनों से बहलाओ

1 अगस्त 2022
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मुझे न सपनों से बहलाओ! धोखा आदि-अंत है जिनका, क्या विश्वास करूँ मैं इनका; सत्य हुआ मुखरित जीवन में, मत सपनों का गीत सुनाओ! मुझे न सपनों से बहलाओ! जग का सत्य स्वप्न हो जाता, सपनों से पहले खो

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मुझको प्यार न करो ड़रो

1 अगस्त 2022
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मुझको प्यार न करो, ड़रो! जो मैं था अब रहा कहाँ हूँ, प्रेत बना निज घूम रहा हूँ, बाहर से ही देख न आँखों पर विश्वास करो! मुझको प्यार न करो, ड़रो! मुर्दे साथ चुके सो मेरे, देकर जड़ बाहों के फेरे

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तुम गये झकझोर

1 अगस्त 2022
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तुम गये झकझोर! कर उठे तरु-पत्र मरमर, कर उठा कांतार हरहर, हिल उठा गिरि, गिरि शिलाएँ कर उठीं रव घोर! तुम गये झकझोर! डगमगाई भूमि पथ पर, फट गई छाती दरककर, शब्द कर्कश छा गया इस छोर से उस छोर! त

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ओ अपरिपूर्णता की पुकार

1 अगस्त 2022
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ओ अपरिपूर्णता की पुकार! शत-शत गीतों में हो मुखरित, कर लक्ष-लक्ष उर में वितरित, कुछ हल्का तुम कर देती हो मेरे जीवन का व्यथा-भार! ओ अपरिपूर्णता की पुकार! जग ने क्या मेरी कथा सुनी, जग ने क्या म

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सुखमय न हुआ यदि सूनापन

1 अगस्त 2022
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सुखमय न हुआ यदि सूनापन! मैं समझूँगा सब व्यर्थ हुआ लंबी-काली रातों में जग तारे गिनना, आहें भरना, करना चुपके-चुपके रोदन, सुखमय न हुआ यदि सूनापन! मैं समझूँगा सब व्यर्थ हुआ भीगी-ठंढी रातों में ज

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अकेला मानव आज खड़ा है

1 अगस्त 2022
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अकेला मानव आज खड़ा है! दूर हटा स्वर्गों की माया, स्वर्गाधिप के कर की छाया, सूने नभ, कठोर पृथ्वी का ले आधार अड़ा है! अकेला मानव आज खड़ा है! धर्मों-संस्थाओं के बन्धन तोड़ बना है वह विमुक्त-मन,

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कितना अकेला आज मैं

1 अगस्त 2022
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कितना अकेला आज मैं! संघर्ष में टूटा हुआ, दुर्भाग्य से लूटा हुआ, परिवार से छूटा हुआ, कितना अकेला आज मैं! कितना अकेला आज मैं! भटका हुआ संसार में, अकुशल जगत व्यवहार में, असफल सभी व्यापार में,

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