“धर्म” से “कर्म” इसलिए महत्वपूर्ण है, क्यों की – “धर्म” करके भगवान से मांगना पडता है, जबकि “कर्म” करने से भगवान को खुद ही देना पडता है ॥
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केबल अपनी ख़ुशी नही देखनी चाहिए