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संभोग से समाधि की ओर (आठवाँ प्रवचन) (भाग 2)

20 अप्रैल 2022

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जब एक स्त्री और पुरुष परिपूर्ण प्रेम और आनंद में मिलते हैं, तो वह मिलन एक स्प्रिचुअल एक्ट हो जाता है, एक आध्यात्मिक कृत्य हो जाता है। फिर उसका सेक्स से कोई संबंध नहीं है। वह मिलन फिर कामुक नहीं है, वह मिलन शारीरिक नहीं है। वह मिलन इतना अनूठा है, वह उतना ही महत्वपूर्ण है, जितनी किसी योगी की समाधि। उतना ही महत्वपूर्ण है वह मिलन, जब दो आत्माएं परिपूर्ण प्रेम से संयुक्त होती हैं। और उतना ही पवित्र है वह कृत्य, क्योंकि परमात्मा उसी कृत्य से जीवन को जन्म देता है और जीवन को गति देता है।

लेकिन तथाकथित धार्मिक लोगों ने, तथाकथित झूठे समाज ने, तथाकथित झूठे परिवार ने अब तक यही समझाने की कोशिश की है कि सेक्स, काम, यौन अपवित्र है, घृणित है।

हद्द पागलपन की बातें हैं! अगर यौन घृणित है और अपवित्र है, तो सारा जीवन अपवित्र हो गया और घृणित हो गया। अगर सेक्स पाप है, तो सारा जीवन पाप हो गया, पूरा जीवन कंडेम्ड हो गया। और अगर जीवन ही पूरा कंडेम्ड हो जाएगा, तो कैसे प्रसन्न लोग उपलब्ध होंगे? कैसे प्रेम करने वाले लोग उपलब्ध होंगे? कैसे सच्चे लोग उपलब्ध होंगे? जब जीवन ही पूरा का पूरा पाप है, तो सारी रात अंधेरी हो गई। अब इसमें प्रकाश की किरण कहां से लानी पड़ेगी?

तो मैं आपको कहना चाहता हूं, एक नये मनुष्यता के जन्म के लिए सेक्स की पवित्रता, सेक्स की धार्मिकता स्वीकार करनी अत्यंत आवश्यक है; क्योंकि जीवन उससे जन्मता है, परमात्मा उसी कृत्य से जीवन को जन्माता है। और परमात्मा ने जिसको जीवन की शुरुआत बनाया है, वह पाप नहीं हो सकता!

लेकिन आदमी ने उसे पाप कर दिया है। जो चीज प्रेम से रहित है वह पाप हो जाती है; जो चीज प्रेम से शून्य है वह पाप हो जाती है। आदमी की जिंदगी में प्रेम नहीं रहा, इसलिए सिर्फ सेक्सुअलिटी रह गई, सिर्फ यौन रह गया। वह यौन पाप हो गया है। वह यौन का पाप नहीं है, वह हमारे प्रेम के अभाव का पाप है। और उस पाप से सारा जीवन शुरू होता है। फिर ये बच्चे पैदा होते हैं, फिर ये बच्चे जन्मते हैं।

और स्मरण रहे, जो पत्नी अपने पति को प्रेम की है, उसके लिए पति परमात्मा हो जाता है। शास्त्रों के समझाने से नहीं होती यह बात। जो पति अपनी पत्नी को प्रेम किया है, उसके लिए पत्नी भी परमात्मा हो जाती है। क्योंकि प्रेम किसी को भी परमात्मा बना देता है। जिसकी तरफ मेरी आंखें प्रेम से उठती हैं, वही परमात्मा हो जाता है। परमात्मा का कोई और अर्थ नहीं है।

प्रेम की आंख सारे जगत में धीरे-धीरे परमात्मा को देखने लगती है।

लेकिन जो एक में ही नहीं देख पाता वह सारे जगत में देखने की बातें करता हो, तो वे बातें झूठी हैं, उन बातों का कोई आधार और अर्थ नहीं है।

रामानुज एक गांव में गए थे। और उस गांव में एक युवक उनके पास आया और कहने लगा, मुझे परमात्मा को पाना है।

रामानुज ने उसे नीचे से ऊपर तक देखा और कहा, तूने कभी प्रेम किया है?

वह युवक कहने लगा, प्रेम! ऐसी सांसारिक बातों से मैं हमेशा दूर रहा हूं। मैंने कभी कोई प्रेम नहीं किया। मुझे तो परमात्मा को पाना है।

रामानुज ने कहा, थोड़ा सोच कर देख! कभी किसी को प्रेम किया हो। किसी को भी!

उसने कहा, आप क्यों प्रेम की बातें कर रहे हैं? मैंने कभी किसी को प्रेम नहीं किया। मुझे तो परमात्मा को पाने का रास्ता बताइए।

रामानुज की आंखों में आंसू आ गए और उन्होंने कहा, मेरे बेटे, तू किसी और के पास जा, मैं तुझे परमात्मा का रास्ता न बता सकूंगा। क्योंकि जिसने कभी एक को भी प्रेम नहीं किया, उसके जीवन में परमात्मा की कोई शुरुआत ही नहीं हो सकती। क्योंकि प्रेम के ही क्षण में पहली दफा कोई व्यक्ति परमात्मा हो जाता है; वह पहली झलक है प्रभु की। फिर उसी झलक को आदमी बढ़ाता है, बढ़ाता है, बढ़ाता है। एक दिन वह झलक पूरी हो जाती है, सारा जगत उसी रूप में रूपांतरित हो जाता है। लेकिन जिसने पानी की बूंद नहीं देखी, वह कहता है, मुझे सागर चाहिए! वह कहता है, पानी की बूंद से मुझको कोई मतलब नहीं। पानी की बूंद का मैं क्या करूंगा? मुझे तो सागर चाहिए! उससे हम कहेंगे कि तूने पानी की बूंद भी नहीं देखी, पानी की बूंद भी नहीं पा सका और सागर पाने चल पड़ा है, तो तू पागल है। क्योंकि सागर क्या है? पानी की अनंत बूंदों का जोड़ है। परमात्मा क्या है? प्रेम की अनंत बूंदों का जोड़ है। तो प्रेम की एक बूंद अगर निंदित है तो हो गया पूरा परमात्मा निंदित। फिर हमारे झूठे परमात्मा खड़े होंगे, मूर्तियां खड़ी होंगी, पूजा-पाठ होगा, सब बकवास होगी; लेकिन हमारे प्राणों का कोई अंतर्संबंध उससे नहीं हो सकता है।

और यह भी ध्यान में रख लेना जरूरी है कि जब कोई स्त्री अपने पति को प्रेम करती है, अपने प्रेमी को प्रेम करती है, और प्रेम के कारण उससे बंधती है, समाज के कारण नहीं; उनका विवाह, उनका सहवास प्रेम से निकलता है, तो ही वह मां बन पाती है ठीक अर्थों में।

बच्चे पैदा कर लेने से कोई मां नहीं बनता। मां बनने का अर्थ बच्चे पैदा करना नहीं है। बच्चे पैदा कर लेने से कोई मां नहीं बन जाता। मां तो कोई तभी बनती है स्त्री और पिता तभी कोई पुरुष बनता है, जब उन्होंने एक-दूसरे को प्रेम किया हो। जब पत्नी अपने पति को प्रेम करती है, अपने प्रेमी को, तो बच्चे उसे अपने पति का पुनर्जन्म मालूम पड़ते हैं। वे रि-बर्थ हैं उसके प्रेमी की, वे फिर वही शक्लें हैं, फिर वही रूप है, फिर वही निर्दोष आंखें हैं; जो उसके पति में छिपा था, वह फिर प्रकट हुआ है। उसने अगर अपने पति को प्रेम किया है तो ही वह अपने बच्चों को प्रेम करती है।

बच्चों को किया गया प्रेम, पति को किए गए प्रेम की प्रतिध्वनि है। नहीं तो कोई बच्चों को प्रेम नहीं कर सकता। मां बच्चों को प्रेम नहीं कर सकती, जब तक उसने अपने पति को न चाहा हो पूरे प्राणों से। क्योंकि वे बच्चे उसके पति की प्रतिकृतियां हैं, वे उसकी प्रतिध्वनियां हैं, वे उसकी ईकोज हैं। यह पति ही फिर वापस लौट आया है, फिर वापस लौट आया है। यह नया जन्म है उसके पति का। यह पति फिर पवित्र और नया होकर वापस लौट आया है। लेकिन पति के प्रति अगर प्रेम ही नहीं है तो ये बच्चों के प्रति प्रेम कैसे होगा? ये बच्चे उपेक्षित होंगे।

बाप भी तभी कोई बनता है, जब वह अपनी पत्नी को इतना प्रेम करता है कि पत्नी में उसे परमात्मा दिखाई पड़ने लगता है। तब बच्चे फिर उसकी पत्नी का ही लौटता हुआ रूप हैं। पत्नी को जब उसने पहली दफे देखा था, तब वह जैसी निर्दोष थी, तब जैसी शांत थी, तब जैसी सुंदर थी, तब जैसी उसकी आंखें झील की तरह थीं, इन बच्चों में फिर वे आंखें वापस लौट आई हैं। इन बच्चों में फिर वही चेहरा वापस लौट आया है। ये बच्चे फिर उसी छवि को नया करके आ गए हैं। जैसे पिछले बसंत में फूल खिले थे, पिछले बसंत में पत्ते आए थे पौधों पर। फिर साल बीत गया। पुराने पत्ते गिर गए हैं। फिर नई कोंपलें निकल आई हैं। फिर नये पत्तों से वृक्ष भर गए हैं। फिर लौट आया बसंत। फिर सब नया हो गया है। लेकिन जिसने पिछले बसंत को ही प्रेम नहीं किया था, वह इस बसंत को कैसे प्रेम कर सकेगा?

जीवन निरंतर लौट रहा है। निरंतर जीवन का पुनर्जन्म चल रहा है। रोज नया होता चला जाता है, पुराने पत्ते गिर जाते हैं, नये आ जाते हैं। जीवन की यह सतत सृजनात्मकता, यह क्रिएटिविटी ही तो परमात्मा है, यही तो प्रभु है। जो इसको पहचानेगा, वही तो उसे पहचानेगा।

लेकिन न मां बच्चों को प्रेम कर पाती है, न पिता बच्चों को प्रेम कर पाता है। और जब मां और बाप बच्चों को प्रेम नहीं कर पाते, तो बच्चे जन्म से ही पागल होने के रास्ते पर संलग्न हो जाते हैं। उनको दूध मिलता है, कपड़े मिलते हैं, मकान मिलते हैं, लेकिन प्रेम नहीं मिलता। और प्रेम के बिना उनको परमात्मा नहीं मिल सकता, और सब मिल सकता है।

अभी रूस का एक वैज्ञानिक बंदरों के ऊपर कुछ प्रयोग करता था। उसने कुछ नकली बंदरियां बनाईं, झूठी मदर्स बनाईं–नकली, बिजली के यंत्र, हाथ-पैर उनके बिजली के, तारों का उनका ढांचा। जो बंदर पैदा हुए, उनको नकली माताओं के पास…तो वे नकली माताओं से चिपक गए। वे पहले दिन के बच्चे, उनको कुछ पता नहीं कि कौन असली है, कौन नकली है। वे नकली मां के पास ले गए उनको पैदा होते से ही। वे जाकर उसकी छाती से चिपक गए। नकली दूध है, वह दूध उनके मुंह में जा रहा है। वे पी लेते हैं दूध, वे चिपके रहते हैं। वह बंदरिया नकली है, वह हिलती रहती है। बच्चे समझते हैं कि मां हिल-हिल कर उनको झुला रही है। ऐसे बीस बंदर के बच्चों को नकली मां के पास पाला गया। उनको अच्छा दूध दिया गया। मां ने उनको पूरी तरह हिलाया-डुलाया। मां कूदती है, फांदती है, सब करती है। वे बच्चे स्वस्थ दिखाई पड़ते थे। फिर वे बड़े भी हो गए। लेकिन वे सब बंदर पागल निकले। वे सब पागल हो गए, वे सब एबनार्मल साबित हुए! उनको दूध मिला, उनका शरीर ठीक हो गया, सब ठीक था; लेकिन उनका विक्षिप्त व्यवहार हो गया!

वैज्ञानिक बड़े हैरान हुए कि इनको क्या हुआ? इनको सब तो मिला, फिर ये विक्षिप्त कैसे हो गए?

एक चीज जो वैज्ञानिक की लेबोरेटरी में नहीं पकड़ी जा सकती, वह उनको नहीं मिली–प्रेम उनको नहीं मिला।

और जो उन बीस बंदरों की हालत हुई, वह साढ़े तीन करोड़ मनुष्यों की हो रही है। झूठी मां मिलती है, झूठा बाप मिलता है। नकली मां हिलाती रहती है, नकली बाप हिलाता रहता है। और ये बच्चे विक्षिप्त हो जाते हैं। फिर इनको हम कहते हैं कि ये शांत नहीं होते, ये अशांत होते चले जा रहे हैं। ये छुरेबाजी करते हैं, ये लड़कियों पर एसिड फेंकते हैं, ये कालेज में आग लगाते हैं, ये बस पर पत्थर फेंकते हैं, ये मास्टर को मारते हैं।

मारेंगे! मारे बिना इनका कोई रास्ता नहीं। अभी थोड़ा-थोड़ा मारते हैं, कल और ज्यादा मारेंगे। और तुम्हारे कोई शिक्षक, और तुम्हारे कोई नेता, और तुम्हारे कोई धर्मगुरु इनको नहीं समझा सकेंगे। क्योंकि यह सवाल समझाने का नहीं है, यह आत्मा रुग्ण पैदा हो रही है। यह रुग्ण आत्मा केऑस पैदा करेगी, यह चीजों को तोड़ेगी, फोड़ेगी, मिटाएगी। तीन हजार साल से जो चलती थी बात, वह अब क्लाइमेक्स पर पहुंच रही है।

सौ डिग्री तक हम पानी को गरम करते हैं, पानी भाप बन कर उड़ जाता है। निन्यानबे डिग्री तक नहीं उड़ता। निन्यानबे डिग्री तक पानी बना रहता है, फिर सौ डिग्री पर भाप बनने लगता है। सौ डिग्री पर पहुंच गया है आदमियत का पागलपन। अब वह भाप बन कर उड़ना शुरू हो रहा है। मत चिल्लाइए, मत परेशान होइए। बनने दीजिए भाप! और आप उपदेश देते रहिए और आपके साधु-संत समझाते रहें अच्छी-अच्छी बातें और गीता की टीकाएं करते रहें और कुरान पर प्रवचन करते रहें। करते रहो प्रवचन और टीकाएं गीता पर, और दोहराते रहो पुराने शब्दों को। यह भाप बननी बंद नहीं होगी। यह भाप बननी तब बंद होगी, जब जीवन की पूरी प्रक्रिया को हम समझेंगे कि कहीं कोई भूल हो रही है, कहीं कोई बुनियादी भूल हो रही है। और वह कोई आज की भूल नहीं है। चार हजार, पांच हजार साल की भूल है; क्लाइमेक्स पर पहुंच गई है, इसलिए मुश्किल खड़ी हुई जा रही है आज।

ये प्रेम से रिक्त बच्चे जन्मते हैं और प्रेम से रिक्त हवा में पाले जाते हैं। फिर यही नाटक ये दोहराएंगे–दे विल प्ले मम्मी एंड डैडी। वे फिर बड़े हो जाएंगे, फिर वे यही नाटक दोहराएंगे। वे भी विवाह में बांधे जाएंगे; क्योंकि समाज प्रेम को आज्ञा नहीं देता। न मां पसंद करती है कि उसकी लड़की किसी को प्रेम करे। न बाप पसंद करता है कि उसका बेटा किसी को प्रेम करे। न समाज पसंद करता है कि कोई किसी को प्रेम करे। प्रेम तो होना ही नहीं चाहिए। प्रेम तो पाप है। प्रेम तो होना ही नहीं चाहिए। वह तो बिलकुल ही बात योग्य नहीं है। विवाह होना चाहिए। फिर प्रेम नहीं होगा; फिर विवाह होगा। फिर वही पहिया पूरा का पूरा घूम जाएगा।

आप कहेंगे कि जहां प्रेम होता है, वहां भी कोई बहुत अच्छी हालत तो नहीं मालूम होती।

नहीं मालूम होगी! क्योंकि प्रेम, जिस भांति आप देते हैं मौका, प्रेम एक चोरी की तरह होता है, प्रेम एक सीक्रेसी की तरह होता है, प्रेम एक अपराध की तरह होता है। प्रेम करने वाले डरते हुए प्रेम करते हैं, घबराए हुए प्रेम करते हैं, चोर की तरह प्रेम करते हैं, अपराधी की तरह प्रेम करते हैं। और सारा समाज उनके विरोध में है, सारे समाज की आंख उन पर लगी हुई है। सारे समाज के विद्रोह में वे प्रेम करते हैं। यह प्रेम भी स्वस्थ नहीं है। प्रेम के लिए स्वस्थ हवा नहीं है। इसके परिणाम भी अच्छे नहीं हो सकते।

प्रेम के लिए समाज को हवा पैदा करनी चाहिए, मौका पैदा करना चाहिए, अवसर पैदा करना चाहिए। प्रेम की शिक्षा दी जानी चाहिए, प्रेम की दीक्षा दी जानी चाहिए। प्रेम की तरफ बच्चों को विकसित किया जाना चाहिए। क्योंकि वही उनके जीवन का आधार बनेगा, वही उनके पूरे जीवन का केंद्र बनेगा, उसी केंद्र से उनका जीवन विकसित होगा। उसकी कोई बात नहीं, उससे हम दूर खड़े रहते हैं, आंख बंद किए खड़े रहते हैं। न मां बच्चों से प्रेम की बात करती है, न बाप। न कोई उन्हें सिखाता है कि प्रेम जीवन का आधार है। न उन्हें कोई निर्भय बनाता है कि तुम प्रेम के जगत में निर्भय होना। न कोई उनसे कहता है कि जब तक तुम्हारा किसी से प्रेम न हो, तब तक तुम विवाह मत करना। क्योंकि वह विवाह गलत होगा, झूठा होगा, पाप होगा। वह सारी कुरूपता की जड़ होगा और सारी मनुष्यता को पागल करने का कारण होगा।

तो एक बात आपसे कहना चाहता हूं: अगर मनुष्य-जाति को परमात्मा के निकट लाना है तो पहला काम–परमात्मा की बात मत करिए, मनुष्य-जाति को प्रेम के निकट ले आइए।

जरूर जोखिम के काम हैं। न मालूम कितने खतरे हो सकते हैं। समाज की बनी-बनाई व्यवस्था में न मालूम कितने परिवर्तन करने पड़ सकते हैं। लेकिन मत करिए परिवर्तन, तो यह समाज अपने ही हाथ मौत के किनारे पहुंच गया है, यह मर जाएगा। यह बच नहीं सकता। प्रेम से रिक्त लोग ही युद्धों को पैदा करते हैं। प्रेम से रिक्त लोग ही अपराधी बनते हैं। प्रेम से रिक्तता ही क्रिमिनलिटी की जड़ है और सारी दुनिया में अपराधी फैलते चले जाते हैं।

जैसा मैंने आपसे कहा, जैसे मैंने यह कहा कि अगर किसी दिन जनन-विज्ञान पूरा विकसित होगा, तो हम शायद पता लगा पाएं कि कृष्ण का जन्म किन स्थितियों में हुआ। किस हार्मनी में कृष्ण के मां-बाप ने, किस प्रेम के क्षण में कंसेप्शन लिया इस बच्चे को। किस प्रेम के क्षण में यह बच्चा अवतरित हुआ। तो शायद हमें दूसरी तरफ यह भी पता चल जाए कि हिटलर किस अप्रेम के क्षण में पैदा हुआ होगा। मुसोलिनी किस क्षण में पैदा हुआ होगा। तैमूरलंग, चंगीज खां किस अवसर पर पैदा हुए होंगे।

हो सकता है यह पता चले कि चंगीज खां दो संघर्ष, घृणा और क्रोध से भरे मां-बाप से पैदा हुआ हो। जिंदगी भर फिर वह क्रोध से भरा हुआ है। वह जो ओरिजिनल मोमेंटम है क्रोध का, वह उसको जिंदगी भर दौड़ाए चला जा रहा है। चंगीज खां जिस गांव में गया, लाखों लोगों को कटवा दिया।

तैमूरलंग जिस राजधानी में गया, दस-दस हजार बच्चों की गर्दनें कटवा देता, भालों में छिदवा देता। जुलूस निकलता तो दस हजार बच्चों की गर्दनें लटकी हुई हैं भालों के ऊपर, पीछे तैमूरलंग जा रहा है। लोग पूछते, यह तुम क्या करते हो? तो तैमूरलंग कहता, ताकि लोग याद रखें कि तैमूर कभी इस नगरी में आया था। इस पागल को याद रखवाने की और कोई बात समझ नहीं पड़ती थी!

हिटलर ने जर्मनी में साठ लाख यहूदियों की हत्या की! पांच सौ यहूदी रोज मारता रहा, रोज मारता रहा! स्टैलिन ने रूस में साठ लाख लोगों की हत्या की!

जरूर इनके जन्म के साथ कोई गड़बड़ हो गई। जरूर ये जन्म के साथ ही पागल पैदा हुए। न्यूरोसिस इनके जन्म के साथ इनके खून में आई और फिर वह इनको फैलाती चली गई। और पागलों में बड़ी ताकत होती है! और पागल कब्जा कर लेते हैं, और पागल दौड़ कर हावी हो जाते हैं–धन पर, पद पर, यश पर, और सारी दुनिया को विकृत करते हैं। पागल ताकतवर होता है।

यह जो पागलों ने दुनिया बनाई है, यह दुनिया तीसरे महायुद्ध के करीब आ गई है। सारी दुनिया मरेगी। पहले महायुद्ध में साढ़े तीन करोड़ लोगों की हत्या की गई, दूसरे महायुद्ध में साढ़े सात करोड़ लोगों की हत्या की गई, अब तीसरे में कितनी की जाएगी?

मैंने सुना है, आइंस्टीन जब मर कर भगवान के घर पहुंच गया तो भगवान ने आइंस्टीन से पूछा कि मैं बहुत घबराया हुआ हूं, तीसरे महायुद्ध के संबंध में कुछ बताओ? क्या होगा? आइंस्टीन ने कहा, तीसरे के बाबत कहना मुश्किल है, मैं चौथे के संबंध में कुछ जरूर बता सकता हूं। भगवान ने कहा, तीसरे के बाबत नहीं बता सकते तो चौथे के बाबत कैसे बताओगे? आइंस्टीन ने कहा, एक बात बता सकता हूं चौथे के बाबत, कि चौथा महायुद्ध कभी नहीं होगा; क्योंकि तीसरे में सब आदमी समाप्त हो जाएंगे। चौथे के होने की कोई संभावना नहीं है। और तीसरे के बाबत कुछ भी कहना मुश्किल है। साढ़े तीन अरब पागल आदमी क्या करेंगे तीसरे महायुद्ध में, कुछ नहीं कहा जा सकता कि क्या स्थिति होगी!

प्रेम से वियुक्त मनुष्य एकमात्र दुर्घटना है। तो मैं अंत में यह बात निवेदन करना चाहता हूं। मेरी बातें बड़ी अजीब लगी होंगी; क्योंकि ऋषि-मुनि इस तरह की बातें करते ही नहीं। मेरी बात बहुत अजीब लगी होगी। क्योंकि आपने सोचा होगा कि मैं भजन-कीर्तन का कोई नुस्खा बताऊंगा। आपने सोचा होगा कि मैं कोई माला फेरने की तरकीब बताऊंगा। आपने सोचा होगा कि मैं कोई आपको ताबीज दे दूंगा, जिसको बांध कर आप परमात्मा से मिल जाएं। ऐसी कोई बात मैं आपको नहीं बता सकता हूं। ऐसे बताने वाले सब बेईमान, धोखेबाज हैं। समाज को उन्हीं ने बर्बाद किया है।

समाज की जिंदगी को समझने के लिए उसके मनुष्य के पूरे विज्ञान को समझना जरूरी है। परिवार को, दंपति को, समाज को, उसकी पूरी व्यवस्था को समझना जरूरी है कि कहां क्या गड़बड़ हो रहा है। वह गड़बड़ के बाबत एक ही बात मैंने आपसे कही, जान कर मैंने कही, क्योंकि यह स्त्रियों की सभा थी; जान कर मैंने यह कही, क्योंकि स्त्रियां परिवार का, समाज का केंद्र हैं। उनके हाथ में बड़ी ताकत है। उनके हाथ में पूरी जिंदगी है। वे पत्नियां भी हैं, वे मां भी हैं, वे बहन भी हैं। एक बहुत बड़े घेरे पर उनके प्रेम का प्रभाव पड़ेगा। अगर सारी दुनिया की स्त्रियां यह तय कर लें कि हम पृथ्वी को एक प्रेम का घर बनाएंगे, झूठे विवाह का नहीं–हां, प्रेम से विवाह निकले, वह सच्चा विवाह होगा–हम सारी दुनिया को प्रेम का एक घर बनाएंगे। कितनी ही कठिनाई होगी, मुश्किलें होंगी, अव्यवस्था होगी, उसको सम्हालने का हम कोई उपाय खोजेंगे, विचार करेंगे। लेकिन दुनिया से हम, यह अप्रेम का जो जाल है, इसको तोड़ देंगे और प्रेम की एक दुनिया बनाएंगे, तो शायद पूरी मनुष्य-जाति बच सकती है और स्वस्थ हो सकती है।

और मैं आपको यह कहता हूं कि अगर सारे जगत में प्रेम के केंद्र पर परिवार बन जाए, तो सुपरमैन की जो कल्पना हजारों वर्षों से रही है आदमी को, महामानव की–वह नीत्शे कल्पना करता है और अरविंद कल्पना करते हैं–वह कल्पना पूरी हो सकती है। लेकिन न तो अरविंद की प्रार्थनाओं से और न नीत्शे के द्वारा पैदा किए गए फासिज्म से। वह सपना पूरा हो सकता है, अगर पृथ्वी पर हम प्रेम की प्रतिष्ठा को वापस लौटा लाएं, अगर प्रेम जीवन में वापस लौट आए, सम्मानित हो जाए, आदर से भर जाए। अगर प्रेम एक आध्यात्मिक मूल्य ले ले, तो नये मनुष्य का निर्माण हो सकता है–नई संतति का, नई पीढ़ियों का, नये आदमी का। और वह आदमी, वह बच्चा, वह भ्रूण, जिसका पहला अणु प्रेम से जन्मेगा, विश्वास किया जा सकता है, आश्वासन किया जा सकता है कि उसकी अंतिम श्वास परमात्मा में निकलेगी। प्रेम है प्रारंभ। परमात्मा है अंत। वह अंतिम सीढ़ी है।

जो प्रेम को ही नहीं पाता है, वह परमात्मा को तो पा ही नहीं सकता। यह इंपासिबिलिटी है, यह असंभावना है। लेकिन जो प्रेम में दीक्षित हो जाता है और प्रेम में विकसित होता है और प्रेम की श्वासों में पलता है और प्रेम के फूल जिसकी श्वास-श्वास बन जाते हैं और प्रेम जिसका अणु-अणु बन जाता है और जो प्रेम में बढ़ता जाता है, बढ़ता जाता है, एक दिन वह पाता है कि प्रेम की जिस गंगा में चला था, वह गंगा अब किनारे छोड़ रही है और सागर बन रही है। एक दिन वह पाता है कि गंगा के किनारे मिटते जाते हैं और अनंत सागर आ गया सामने। छोटी सी गंगा की धार थी गंगोत्री में–बड़ी छोटी सी प्रेम की धार होती है शुरू में–फिर वह बढ़ती है, फिर वह बड़ी होती है, फिर वह पहाड़ों और मैदानों को पार करती है, फिर एक वक्त आता है कि किनारे छूटने लगते हैं। जिस दिन प्रेम के किनारे छूट जाते हैं, उसी दिन प्रेम परमात्मा बन जाता है। जब तक प्रेम के किनारे होते हैं, तब तक वह परमात्मा नहीं होता। गंगा नदी होती है, जब तक कि वह इस जमीन के किनारों से बंधी होती है। फिर किनारे छूटते हैं और सागर से मिल जाती है। फिर वह परमात्मा से मिल जाती है। प्रेम की सरिता और परमात्मा का सागर है।

लेकिन हम प्रेम की सरिता ही नहीं हैं, हम प्रेम की नदियां ही नहीं हैं। और हम बैठे हैं हाथ-पैर जोड़े और प्रार्थना कर रहे हैं कि हमको भगवान चाहिए। जो सरिता नहीं है, वह सागर को कैसे पाएगा?

सारी मनुष्य-जाति के लिए एक पूरा आंदोलन चाहिए। पूरी मनुष्य-जाति के आमूल परिवर्तन की जरूरत है। पूरा परिवार बदलने की जरूरत है। बहुत कुरूप है हमारा परिवार। वह बहुत सुंदर हो सकता है, लेकिन प्रेम के केंद्र पर। पूरे समाज को बदलने की जरूरत है। और तब एक धार्मिक मनुष्यता जरूर पैदा हो सकती है। प्रेम प्रथम, परमात्मा अंतिम।

और क्यों प्रेम परमात्मा पर पहुंच जाता है? क्योंकि प्रेम है बीज और परमात्मा है वृक्ष। प्रेम का बीज ही फिर फूटता है और वृक्ष बन जाता है।

सारी दुनिया की स्त्रियों से मेरा कहने का यह मन होता है–और खासकर स्त्रियों से–क्योंकि पुरुष के लिए प्रेम और बहुत सी जीवन की दिशाओं में एक दिशा है। स्त्री के लिए प्रेम अकेली दिशा है। पुरुष के लिए प्रेम और बहुत से जीवन आयामों में एक आयाम है, एक डायमेंशन है। उसके और डायमेंशन भी हैं व्यक्तित्व के। लेकिन स्त्री का एक ही डायमेंशन है, एक ही दिशा है–वह प्रेम है। स्त्री पूरी प्रेम है। पुरुष प्रेम भी है, और दूसरी चीजें भी है।

तो अगर स्त्री का प्रेम विकसित हो और वह समझे प्रेम की कीमिया, प्रेम की केमिस्ट्री, और बच्चों को दीक्षा दे प्रेम की शिक्षा में और प्रेम के आकाश में उठने के लिए उनके पंखों को मजबूत करे…। अभी तो हम काट देते हैं पंख–जमीन पर सरको विवाह की, प्रेम के आकाश में मत उड़ना!

जरूर आकाश में उड़ना जोखिम का होता है, जमीन पर चलना जोखिम का नहीं होता। लेकिन जो जोखिम नहीं उठाते हैं, वे जमीन पर रेंगने वाले कीड़े हो जाते हैं। और जो जोखिम उठाते हैं, वे दूर अनंत आकाश में उड़ने वाले बाज पक्षी सिद्ध होते हैं। आदमी रेंगता हुआ कीड़ा हो गया है। कोई भी जोखिम मत उठाना, कोई रिस्क नहीं, कोई डेंजर नहीं, कोई खतरा मत उठाना। अपने घर का दरवाजा बंद करो और जमीन पर सरको। आकाश में मत उड़ना।

प्रेम की जोखिम सिखाएं, प्रेम का खतरा सिखाएं, प्रेम का अभय सिखाएं और प्रेम के आकाश में उड़ने के लिए उनके पंखों को मजबूत करें छोटे बच्चों के। और चारों तरफ जहां भी प्रेम पर हमला होता हो, उसके खिलाफ खड़े हो जाएं। प्रेम को मजबूत करें, ताकत दें।

प्रेम के जितने दुश्मन खड़े हैं दुनिया में–नीतिशास्त्री खड़े हुए हैं। थोथे हैं वे नीतिशास्त्री, क्योंकि प्रेम के विरोध में जो हो वह क्या नीतिशास्त्री होगा? साधु-संन्यासी खड़े हैं। क्योंकि वे कहते हैं, यह सब पाप है, यह सब बंधन है। इसको छोड़ो, परमात्मा की तरफ चलो।

जो आदमी कहता है कि प्रेम को छोड़ कर परमात्मा की तरफ चलो, वह परमात्मा का शत्रु है, क्योंकि प्रेम के अतिरिक्त परमात्मा तक जाने का कोई रास्ता ही नहीं है।

बड़े-बूढ़े खड़े हैं, उनका अनुभव कहता है कि प्रेम खतरा है।

अनुभवी लोगों से जरा सावधान रहना, क्योंकि जिंदगी में कभी कोई नया रास्ता वे नहीं बनने देते हैं। वे कहते हैं, पुराने रास्ते का हमें अनुभव है, हम पुराने रास्ते पर चले हैं, उसी पर सबको चलना चाहिए।

लेकिन जिंदगी को रोज नया रास्ता चाहिए। जिंदगी कोई रेल की पटरियों पर दौड़ती हुई रेलगाड़ी नहीं है कि पटरियों पर, बंधी पटरियों पर दौड़ती रहे। और दौड़ेगी तो एक मशीन हो जाएगी। जिंदगी तो एक सरिता है, जो रोज नया रास्ता बना लेती है–पहाड़ों में, मैदानों में, जंगलों में। अनूठे रास्तों से निकलती है, अनजान जगत में प्रवेश करती है और सागर तक पहुंच जाती है।

तो नारियों के सामने एक ही काम है। वह काम यह नहीं है कि अनाथ बच्चों को पढ़ा रहे हैं बैठ कर। तुम्हारे बच्चे भी सब अनाथ हैं। नाम के लिए वे बच्चे हैं तुम्हारे। न उनकी मां है, न उनका बाप है।

समाजसेवक स्त्रियां सोचती हैं कि अनाथ बच्चों का अनाथालय खोल दिया, बहुत बड़ा काम कर दिया। उनको पता नहीं कि तुम्हारे बच्चे भी अनाथ हैं। तुम दूसरों के अनाथ बच्चों को शिक्षा देने जा रही हो, तुम पागल हो। तुम्हारे बच्चे खुद अनाथ हैं, आरफंस हैं, कोई नहीं है उनका–न तुम हो, न तुम्हारे पति हैं। न उनकी मां है, न उनका बाप है, कोई भी नहीं है उनका। क्योंकि वह प्रेम ही नहीं है जो उनको सनाथ बनाता।

सोचते हैं हम कि आदिवासी बच्चों को जाकर शिक्षा दे रहे हैं।

तुम आदिवासी बच्चों को शिक्षा दो, तुम्हारे बच्चे धीरे-धीरे आदिवासी हुए चले जा रहे हैं। बीटल हैं, बीटनिक हैं; फलां हैं, ढिकां हैं; ये फिर से आदमी के आदिवासी होने की शक्लें हैं।

तुम सोचती होओ, स्त्रियां सोचती हों कि जाएं और सेवा करें, और फलां करें, ढिकां करें।

जिस समाज में प्रेम नहीं है, उस समाज में सेवा कैसे हो सकती है? सेवा तो प्रेम की सुगंध है।

इसलिए मैं तो एक ही बात आज कहना चाहता हूं। और इस संबंध में बहुत से प्रश्न आपके मन में जरूर उठे होंगे, उठने चाहिए, तो अगर आपने चाहा तो मैं दुबारा आपके सारे प्रश्नों के उत्तर देना चाहूंगा। आज तो सिर्फ एक धक्का आपको दे देना चाहता हूं, कि आपके भीतर चिंतन शुरू हो जाए।

हो सकता है मेरी बातें आपको बुरी लगें। लगें तो बहुत अच्छा है। हो सकता है मेरी बातों से आपको चोट लगे, तिलमिलाहट पैदा हो। भगवान करे जितनी ज्यादा हो जाए, उतना अच्छा है, क्योंकि कुछ सोच-विचार पैदा होगा। हो सकता है मेरी सब बातें गलत हों, इसलिए मेरी बात मान लेने की कोई भी जरूरत नहीं है। लेकिन मैंने जो कहा है, उस पर आप सोचना। मैं फिर दोहरा देता हूं दो-चार सूत्रों में मैंने क्या कहा और अपनी बात पूरी किए देता हूं।

आज तक का मनुष्य का समाज प्रेम के केंद्र पर निर्मित नहीं है, इसीलिए विक्षिप्तता है, इसीलिए पागलपन है, इसीलिए युद्ध हैं, इसीलिए आत्महत्याएं हैं, इसीलिए अपराध हैं। प्रेम की जगह आदमी ने एक झूठा सब्स्टीटयूट विवाह का ईजाद कर लिया है। विवाह के कारण वेश्याएं हैं, गुंडे हैं। विवाह के कारण शराब है; विवाह के कारण बेहोशियां हैं; विवाह के कारण भागे हुए संन्यासी हैं; विवाह के कारण मंदिरों में भजन करने वाले झूठे लोग हैं। और जब तक विवाह है, तब तक यह रहेगा।

मैं यह नहीं कह रहा हूं कि विवाह मिट जाए, मैं यह कह रहा हूं कि विवाह प्रेम से निकले। विवाह से प्रेम नहीं निकलता है। प्रेम से विवाह निकले तो शुभ है। और विवाह से प्रेम को निकालने की कोशिश की जाए तो यह प्रेम झूठा होगा, क्योंकि जबरदस्ती कभी भी कोई प्रेम नहीं निकाला जा सकता है। प्रेम या तो निकलता है या नहीं निकलता, जबरदस्ती नहीं निकाला जा सकता है।

तीसरी बात मैंने यह कही कि जो मां-बाप प्रेम से भरे हुए नहीं हैं, उनके बच्चे जन्म से ही विकृत, परवर्टेड, एबनार्मल, रुग्ण और बीमार पैदा होंगे। मैंने यह कहा कि जो मां-बाप, जो पति-पत्नी, जो प्रेमी युगल प्रेम के संभोग में लीन नहीं होते हैं, वे केवल उन बच्चों को पैदा करेंगे जो शरीरवादी होंगे, भौतिकवादी होंगे; जिनके जीवन की आंख पदार्थ के ऊपर कभी नहीं उठेगी, जो परमात्मा को देखने के लिए अंधे पैदा होंगे। आध्यात्मिक रूप से अंधे बच्चे हम पैदा कर रहे हैं।

मैंने आपसे यह कहा चौथी बात कि मां-बाप अगर एक-दूसरे को प्रेम करते हैं, तो ही वे बच्चों के मां बनेंगे, बाप बनेंगे; क्योंकि बच्चे उनकी ही प्रतिध्वनियां हैं। वे आया हुआ नया बसंत हैं। वे फिर से जीवन के दरख्त पर लगी हुई कोंपलें हैं। लेकिन जिसने पुराने बसंत को प्रेम नहीं किया, वह नये बसंत को कैसे प्रेम करेगा?

और मैंने अंतिम बात आपसे यह कही कि प्रेम शुरुआत है और परमात्मा अंतिम विकास है। प्रेम में जीवन शुरू हो तो परमात्मा पर पूर्ण होता है। प्रेम बीज बने तो परमात्मा अंतिम वृक्ष की छाया बनता है। प्रेम गंगोत्री हो तो परमात्मा का सागर उपलब्ध होता है।

इसलिए जिसके मन की भी कामना हो कि परमात्मा तक जाए, वह अपने जीवन को प्रेम के गीत से भर ले। और जिसकी भी आकांक्षा हो कि पूरी मनुष्यता परमात्मा के जीवन से भर जाए, वह सारी मनुष्यता को प्रेम की तरफ ले जाने के मार्ग पर जितनी बाधाएं हों, उनको तोड़े, मिटाए और प्रेम को उन्मुक्त आकाश दे, ताकि एक दिन एक नये मनुष्य का जन्म हो सके।

पुराना मनुष्य रुग्ण था, कुरूप था, अशुभ था। पुराने मनुष्य ने अपनी स्युसाइड का इंतजाम कर लिया है। वह विश्वघात कर रहा है। सारे जगत में एक साथ आत्मघात कर लेगा। यूनिवर्सल स्युसाइड का इंतजाम कर लिया है। अगर इसे बचाना है, तो प्रेम की वर्षा और प्रेम की भूमि और प्रेम के आकाश को निर्मित कर लेना जरूरी है।

ये थोड़ी सी बातें मैंने कहीं। मेरी बातों को इतने प्रेम और शांति से सुना, उससे मैं बहुत-बहुत आनंदित हूं। अगर मेरी बात से किसी के मन को जरा भी चोट और ठेस पहुंची हो, तो वह मुझे क्षमा कर दे। उसे चोट और ठेस पहुंचाने की मेरी कोई इच्छा नहीं। लेकिन मेरे हृदय में बड़ी पीड़ा जरूर है, क्योंकि आदमी के साथ जो हुआ है वह बहुत पीड़ादायी है। और मेरी पीड़ा के कारण ही मुझे लगता है कि यह सब कुछ तोड़ दिया जाए एकबारगी, तो शायद सब कुछ नया हो, जीवन ठीक दिशा में गतिमान हो सके।

अंत में सबको फिर से धन्यवाद देता हूं मेरी बातें सुनने के लिए। और मेरी बातें सोचेंगे, इसका आग्रह करता हूं।

और सबसे अंत में सबके भीतर बैठे परमात्मा को प्रणाम करता हूं, मेरे प्रणाम स्वीकार करें।

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रचनाएँ
संभोग से समाधि की ओर- ओशो
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'संभोग से समाधि की ओर' ओशो की सबसे चर्चित और विवादित किताब है, जिसमें ओशो ने काम ऊर्जा का विश्लेषण कर उसे अध्यात्म की यात्रा में सहयोगी बताया है। साथ ही यह किताब काम और उससे संबंधित सभी मान्यताओं और धारणाओं को एक सकारात्मक दृष्टिकोण देती है। ओशो कहते हैं।''जो उस मूलस्रोत को देख लेता है...., यह बुद्ध का वचन बड़ा अद्भुत है : 'वह अमानुषी रति को उपलब्ध हो जाता है। ' वह ऐसे संभोग को उपलब्ध हो जाता है, जो मनुष्यता के पार है। जिसको मैने 'संभोग से समाधि की ओर' कहा है, उसको ही बुद्ध अमानुषी रति कहते हैं। एक तो रति है मनुष्य की-सी और पुरुष की।
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संभोग से समाधि की ओर (पहला प्रवचन)

23 अक्टूबर 2021
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परमात्मा की सृजन-ऊर्जा मेरे प्रिय आत्मन्! प्रेम क्या है? जीना और जानना तो आसान है, लेकिन कहना बहुत कठिन है। जैसे कोई मछली से पूछे कि सागर क्या है? तो मछली कह सकती है, यह है सागर, यह रहा चारों तरफ,

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संभोग से समाधि की ओर (दूसरा प्रवचन)

23 अक्टूबर 2021
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संभोग: अहं-शून्यता की झलक मेरे प्रिय आत्मन्! एक सुबह, अभी सूरज भी निकला नहीं था और एक मांझी नदी के किनारे पहुंच गया था। उसका पैर किसी चीज से टकरा गया। झुक कर उसने देखा, पत्थरों से भरा हुआ एक झोला पड़

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संभोग से समाधि की ओर (चौथा प्रवचन)

25 अक्टूबर 2021
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मेरे प्रिय आत्मन्! एक छोटा सा गांव था। उस गांव के स्कूल में शिक्षक राम की कथा पढ़ाता था। करीब-करीब सारे बच्चे सोए हुए थे। राम की कथा सुनते समय बच्चे सो जाएं, यह आश्चर्य नहीं। क्योंकि राम की कथा सुनते

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संभोग से समाधि की ओर (पांचवा प्रवचन)

25 अक्टूबर 2021
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मेरे प्रिय आत्मन्! मित्रों ने बहुत से प्रश्न पूछे हैं। सबसे पहले एक मित्र ने पूछा है कि मैंने बोलने के लिए सेक्स या काम का विषय क्यों चुना है? इसकी थोड़ी सी कहानी है। एक बड़ा बाजार है। उस बड़े बाजार को

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संभोग से समाधि की ओर (छठा प्रवचन)

26 अक्टूबर 2021
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यौन: जीवन का ऊर्जा-आयाम प्रश्न: धर्मशास्त्रों में स्त्रियों और पुरुषों का अलग रहने में और स्पर्श आदि के बचने में क्या चीज है? इतने इनकार में अनिष्ट वह नहीं होता है? धर्म के दो रूप हैं। जैसे कि सभी च

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संभोग से समाधि की ओर (सातवां प्रवचन)

26 अक्टूबर 2021
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युवक और यौन एक कहानी से मैं अपनी बात शुरू करना चाहूंगा। एक बहुत अदभुत व्यक्ति हुआ है। उस व्यक्ति का नाम था नसरुद्दीन। एक मुसलमान फकीर था। एक दिन सांझ अपने घर से बाहर निकला था किन्हीं मित्रों से मिलन

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संभोग से समाधि की ओर (चौदवां प्रवचन)

28 अक्टूबर 2021
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1. क्या मेरे सूखे हृदय में भी उस परम प्यारे की अभीप्सा का जन्म होगा? 2. आप वर्षों से बोल रहे हैं। फिर भी आप जो कहते हैं वह सदा नया लगता है। इसका राज क्या है? 3. मैं संसार को रोशनी दिखाना चाहता हूं।

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संभोग से समाधि की ओर (आठवाँ प्रवचन) (भाग 1)

20 अप्रैल 2022
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मनुष्य की आत्मा, मनुष्य के प्राण निरंतर ही परमात्मा को पाने के लिए आतुर हैं। लेकिन किस परमात्मा को? कैसे परमात्मा को? उसका कोई अनुभव, उसका कोई आकार, उसकी कोई दिशा मनुष्य को ज्ञात नहीं है। सिर्फ एक छोट

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संभोग से समाधि की ओर (आठवाँ प्रवचन) (भाग 2)

20 अप्रैल 2022
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जब एक स्त्री और पुरुष परिपूर्ण प्रेम और आनंद में मिलते हैं, तो वह मिलन एक स्प्रिचुअल एक्ट हो जाता है, एक आध्यात्मिक कृत्य हो जाता है। फिर उसका सेक्स से कोई संबंध नहीं है। वह मिलन फिर कामुक नहीं है, व

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संभोग से समाधि की ओर-(प्रवचन-09) (भाग 1)

20 अप्रैल 2022
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पृथ्वी के नीचे दबे हुए, पहाड़ों की कंदराओं में छिपे हुए, समुद्र की तलहटी में खोजे गए ऐसे बहुत से पशुओं के अस्थिपंजर मिले हैं जिनका अब कोई भी निशान शेष नहीं रह गया। वे कभी थे। आज से दस लाख साल पहले पृथ्

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संभोग से समाधि की ओर-(प्रवचन-09) (भाग 2)

20 अप्रैल 2022
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गरीब समाज रोज दीन होता है, रोज हीन होता चला जाता है। गरीब बाप दो बेटे पैदा करता है तो अपने से दुगने गरीब पैदा कर जाता है, उसकी गरीबी भी बंट जाती है। हिंदुस्तान कई सैकड़ों सालों से अमीरी नहीं बांट रहा ह

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संभोग से समाधि की ओर (प्रवचन दसवां) (भाग 1)

20 अप्रैल 2022
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विद्रोह क्‍या है हिप्‍पी वाद मैं कुछ कहूं ऐसा छात्रों ने अनुरोध किया है।   इस संबंध में पहली बात, बर्नार्ड शॉ ने एक किताब लिखी है: मैक्‍सिम्‍प फॉर ए रेव्‍होल्‍यूशनरी, क्रांतिकारी के लिए कुछ स्‍वर्ण-

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संभोग से समाधि की ओर (प्रवचन दसवां) (भाग 2)

20 अप्रैल 2022
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इस संबंध में एक बात और मुझे कह लेने जैसी है कि हिप्‍पी क्रांतिकारी, रिव्‍योल्‍यूशनरी नहीं है—विद्रोहो, रिबेलियस है। क्रांतिकारी नहीं है—बगावती है। विद्रोहो है। और क्रांति और बगावत के फर्क को थोड़ा सम

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संभोग से समाधि कि ओर (ग्‍याहरवां प्रवचन)

20 अप्रैल 2022
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युवकों के लिए कुछ भी बोलने के पहले यह ठीक से समझ लेना जरूरी है कि युवक का अर्थ क्या है? युवक का कोई भी संबंध शरीर की अवस्था से नहीं है। उम्र से युवा है। उम्र का कोई भी संबंध नहीं है। बूढ़े भी युवा हो

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संभोग से समाधि की ओर-(प्रवचन-12)

20 अप्रैल 2022
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मेरे प्रिय आत्मन्! सोरवान विश्वविद्यालय की दीवालों पर जगह-जगह एक नया ही वाक्य लिखा हुआ दिखाई पड़ता है। जगह-जगह दीवालों पर, द्वारों पर लिखा है: प्रोफेसर्स, यू आर ओल्ड! अध्यापकगण, आप बूढ़े हो गए हैं!

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संभोग से समाधि की ओर-(प्रवचन-13)

20 अप्रैल 2022
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मेरे प्रिय आत्मन्! व्यक्तियों में ही, मनुष्यों में ही स्त्री और पुरुष नहीं होते हैं–पशुओं में भी, पक्षियों में भी। लेकिन एक और भी नई बात आपसे कहना चाहता हूं: देशों में भी स्त्री और पुरुष देश होते ह

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संभोग से समाधि की ओर-(प्रवचन-15)

20 अप्रैल 2022
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सिद्धांत, शास्त्र और वाद से मुक्ति  मेरे प्रिय आत्मन्! अभी-अभी सूरज निकला। सूरज के दर्शन करता था। देखा आकाश में दो पक्षी उड़े जाते हैं। आकाश में न तो कोई रास्ता है, न कोई सीमा है, न कोई दीवाल है, न

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संभोग से समाधि की ओर-(प्रवचन-16)

20 अप्रैल 2022
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भीड़ से, समाज से–दूसरों से मुक्ति  मेरे प्रिय आत्मन्! मनुष्य का जीवन जैसा हो सकता है, मनुष्य जीवन में जो पा सकता है, मनुष्य जिसे पाने के लिए पैदा होता है–वही चूक जाता है, वही नहीं मिल पाता है। कभी

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संभोग से समाधि की ओर-(प्रवचन-17)

20 अप्रैल 2022
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मेरे प्रिय आत्मन्! जीवन-क्रांति के सूत्र, इस चर्चा के तीसरे सूत्र पर आज आपसे बात करनी है। पहला सूत्र: सिद्धांत, शास्त्र और वाद से मुक्ति। दूसरा सूत्र: भीड़ से, समाज से–दूसरों से मुक्ति। और

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संभोग से समाधि की ओर-(प्रवचन-18)

20 अप्रैल 2022
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तीन सूत्रों पर हमने बात की है जीवन-क्रांति की दिशा में। पहला सूत्र था: सिद्धांतों से, शास्त्रों से मुक्ति। क्योंकि जो किसी भी तरह के मानसिक कारागृह में बंद है, वह जीवन की, सत्य की खोज की यात्रा नही

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