एक गाँव में बहुत समृद्ध परिवार रहता था और उसकी एक परिवार से शत्रुता थी । दूसरे परिवार वाले लोग वह गाँव छोड़ देना चाहते थे । उन्होंने एक दिन गाँव छोड़ने की योजना बनाई और सारा सामान ले जा रहे थे । पहले परिवार के व्यक्तियों ने उनके परिवार के एक व्यक्ति की मृत्यु कर दी । वह व्यक्ति तो मर गया, परन्तु प्रतिकार की भावना से उनकी आत्मा वहीं भटकती रही । वह प्रेत बनकर उस परिवार के घर के सामने वाले वृक्ष पर ही रहने लग गया । उसके रहते हुए काफी समय व्यतीत हो चुका था । उसने अपना प्रतिशोध लेना आरम्भ कर दिया । कभी बोई हुई फसल का नुकसान कर दिया करता था और कभी कुछ कर दिया करता था । हर वर्ष उनको घाटा पड़ने लगा । घर के व्यक्तियों का गुज़ारा बड़ी कठिनाई से होने लगा । धीरे- धीरे एक समय ऐसा भी आया कि सभी परिवार के सदस्य भूखे मरने लगे और घर छोड़ने के लिए विवश हो गए । घर के कई व्यक्ति नौकरी करने के लिए घर छोड़कर चले गए, परन्तु कमल नामक एक व्यक्ति जो कि पढ़ा- लिखा था, कहने लगा, “ मैं अपनी मातृभूमि को छोड़कर नहीं जाऊँगा, चाहे मुझे कितने ही दुःख- दर्द क्यों न सहन करने पड़ें । मैं यहीं पर ही कृषि करूँगा । तुम लोग जाना चाहते हो तो जाओ ।" कमल की इन बातों को सुनकर घर के सभी सदस्यों ने उसे मूर्ख कहा । वे अपना सामान लेकर चले गए । अब कमल और उसकी पत्नी ही उस घर में और गाँव में अकेले रह गए ।
कमल ने बहुत मेहनत से बीज बोया था, परन्तु प्रेत खेत में कुछ भी नहीं होने देता था । हर बार फसल बहुत कम होती थी, जिससे उनका निर्वाह होना बहुत कठिन हो गया था । वे अब तंग आ गए । उसकी पत्नी उससे लड़ती- झगड़ती रहती थी और उसे घर- बाहर छोड़कर कहीं और नौकरी करने के लिए कहा करती थी, परन्तु वह न माना । जब काफी समय इसी तरह लड़ाई- झगड़े में व्यतीत हो गया तो वह घर छोड़कर नौकरी पर जाने के लिए तैयार हो गया । अन्त में, एक दिन कमल ने घर छोड़ दिया और अपनी पत्नी को उसके पीहर में छोड़कर आजीविका के लिए चल पड़ा ।
इधर प्रेत अकेला ही रह गया था । अब उसने सोचा," अब मैं यहाँ अकेला रहकर क्या करूँगा, जब मेरे शत्रु ही यहाँ से चले गए ।" बहुत सोच- विचार कर उस प्रेत ने एक व्यक्ति का रूप धारण कर लिया और कमल को जाकर मिला । मार्ग में जाकर कमल से मेल- जोल बढ़ाया और पूछा कि, “ कहाँ जा रहे हो?" कमल ने कहा, “ घर से तंग आकर कुछ कमाने- धमाने के लिए जा रहा हूँ । कमल ने उस व्यक्ति से पूछा, “ तुम कहाँ जा रहे हो? ” यह सुनकर उसने भी वही उत्तर दिया । इस सफर में उनकी मित्रता हो गई । इस प्रकार साथ- ही- साथ सफर करते- करते वे एक शहर में पहुँच गए । प्रेत ने उसको बताया कि," प्रेत बनकर मैं राजा जी की लड़की के भीतर प्रविष्ठ हो जाऊँगा, तुम चिमटा लेकर जाना । तुम्हारे कहने पर मैं बाहर आ जाऊँगा, परन्तु तुम्हें मेरे साथ एक वायदा करना होगा कि तुम मेरे और वज़ीर की लड़की के प्यार में किसी प्रकार का कोई विघ्न नहीं डालोगे । इसका कारण यह है कि मैं वज़ीर की लड़की से सच्चे हृदय से प्यार करता हूँ । यदि तुमने इसमें विघ्न डालने का प्रयत्न किया तो मैं तुम्हारी गर्दन तोड़ दूंगा । यह वचन लेकर वह शहर चला गया और कहा कि, “ तुम कल तक महल में पहुँच जाना ।
उस प्रेत ने जाकर राजा की लड़की को तंग करना आरम्भ कर दिया राजा ने बड़े- से- बड़े वैद्य और हकीम बुलवाए, परन्तु कोई भी उसका उपचार नहीं कर पाया । राजा ने फरमान जारी कर दिया और ढिंढोरा पिटवा दिया कि, “ यदि कोई भी व्यक्ति राजकुमारी को पूरी तरह से ठीक कर देगा, तो मैं उसका विवाह राजकुमारी से कर दूंगा ।"
बहुत- से व्यक्ति अपना भाग्य अजमाने के लिए आए, परन्तु वे राजकुमारी को ठीक न कर सके । इस प्रकार वे सभी निराश होकर अपने घर वापस लौट गए ।
एक दिन कमल साधु के रूप में वहाँ पर अलख- निरंजन करता हुआ आ गया । राजा ने उसका बहुत आदर- सत्कार किया और अपने से ऊँचे आसन पर बिठाया । राजकुमारी का सारा हाल उसे बताया तो कमल ने चिकित्सा करने का वायदा किया । साधु को राजकुमारी के कमरे में ले जाया गया । राजकुमारी बहुत ही दुविधा में थी । साधु ने ऐसे ही मंत्र पढ़ने आरम्भ कर दिए और कई घण्टों तक मंत्र ही गुनगुनाता रहा ।
अंत में राजा को कहा कि," इसमें एक प्रेत का वास है । मैं इसकी चिकित्सा कर सकता हूँ । मैं प्रेत को निकाल दूंगा । उसने राजा के सामने प्रेत से कहा कि," तुम चले जाओ, परन्तु जाते समय अपनी कोई पहचान छोड़ जाओ ।" यह सुनकर प्रेत ने कहा कि, “ मैं बाहर बाग में से एक वृक्ष को उखाड़ कर जाऊँगा ।" प्रेत चला गया और उसने बाग के एक वृक्ष को भी उखाड़ दिया ।
अब कमल का विवाह राजकुमारी से सम्पन्न हो गया । अब वह आनन्ददायक जीवन व्यतीत करने लगा । अब उस प्रेत ने वज़ीर की लड़की को तंग करना आरम्भ कर दिया । उसके इलाज के लिए कमल को कहा गया, परन्तु कमल ने उपचार करने के लिए इन्कार कर दिया । अन्त में उसकी किसी ने नहीं सुनी और खींच कर ले गए । कमल ने जाकर प्रेत से कहा," मैं अपनी इच्छा से नहीं आया हूँ । ये लोग मुझे जबरदस्ती ले आए हैं । इसमें मेरा कोई दोष नहीं है । मैंने तो अपना वायदा पूरा करना चाहा था । मुझे किसी भी राज्य अथवा धन की कोई आवश्यकता नहीं है । चलो हम वहीं पर चलते हैं । हमें इनसे क्या लेना- देना । यहाँ कोई भी वायदे को निभा नहीं सकता ।"
वे दोनों फिर से अपने मकान में चले गए । वहाँ प्रेत उसकी सहायता करने लगा और दोनों भरपेट खाना खाने लगे । इस प्रकार यह वर्षों पुरानी शत्रुता मित्रता में बदल गई