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फ़ूभा बाई

7 अप्रैल 2022

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हैदराबाद से शहाब आया तो इस ने बमबई सैंट्रल स्टेशन के प्लेटफार्म पर पहला क़दम रखते ही हनीफ़ से कहा। “देखो भाई। आज शाम को वो मुआमला ज़रूर होगा वर्ना याद रखो में वापस चला जाऊंगा।”

हनीफ़ को मालूम था कि वो मुआमला किया है। चुनांचे शाम को उस ने टैक्सी ली। शहाब को साथ लिया। ग्रांट रोड के नाके पर एक दलाल को बुलाया और उस से कहा। “मेरे दोस्त हैदराबाद से आए हैं। इन के लिए अच्छी छोकरी चावे।”

दलाल ने अपने कान से अड़सी हुई बीड़ी निकाली और उस को होंटों में दबा कर कहा। “दक्कनी चलेगी?”

हनीफ़ ने शहाब की तरफ़ सवालिया नज़रों से देखा। शहाब ने कहा “नहीं भाई.... मुझे कोई मुसलमान चाहिए”

“मुसलमान?” दलाल ने बीड़ी को चूसा “चलिए” और ये कह कर वो टैक्सी की अगली नशिस्त पर बैठ गया। ड्राईवर से उस ने कुछ कहा। टैक्सी स्टार्ट हुई और मुख़्तलिफ़ बाज़ारों से होती हुई फ़ोरजट स्टरीट की साथ वाली गली में दाख़िल हुई ये गली एक पहाड़ी पर थी। बहुत ऊँचान थी। ड्राईवर ने गाड़ी को फ़र्स्ट गीअर में डाला। हनीफ़ को ऐसा महसूस हुआ कि रास्ते में टैक्सी रुक कर वापस चलना शुरू कर देगी। मगर ऐसा न हुआ दलाल ने ड्राईवर को ऊँचान के ऐन आख़िरी सिरे पर जहां चौक सा बना था रुकने के लिए कहा।

हनीफ़ कभी इस तरफ़ नहीं आया था। ऊंची पहाड़ी थी जिस के दाएं तरफ़ एक दम ढलान थी। जिस बिल्डिंग में दलाल दाख़िल हुआ उस की तरफ़ दो मंज़िलें थीं हालाँकि दूसरी तरफ़ की बिल्डिंग सब की सब चार मंज़िला थीं। हनीफ़ को बाद में मालूम हुआ कि ढलान के बाइस इस बिल्डिंग की तीन मंज़िलें नीचे थीं जहां लिफ़्ट जाती थी।

शहाब और हनीफ़ दोनों ख़ामोश बैठे रहे। उन्हों ने कोई बात न की। रास्ते में दलाल ने उस लड़की की बहुत तारीफ़ की थी जिस को लाने वो इस बिल्डिंग में गया था। उस ने कहा था “बड़े अच्छे ख़ानदान की लड़की है। स्पैशल तौर पर आप के लिए निकाल रहा हूँ।”

दोनों सोच रहे थे ये लड़की कैसी होगी जो स्पैशल तौर पर निकाली जा रही है।

थोड़ी देर के बाद दलाल नमूदार हुआ वो अकेला था। ड्राईवर से उस ने कहा गाड़ी वापस करो ये कह कर वो अगली सीट पर बैठ गया। गाड़ी एक चक्कर लेकर मुड़ी। तीन चार बिल्डिंग छोड़कर दलाल ने ड्राईवर से कहा रोक लो फिर हनीफ़ से मुख़ातब हुआ “आ रही है........ पूछ रही थी कैसे आदमी हैं, मैंने कहा नंबर वन”

दस पंद्रह मिनट के बाद एक दम टैक्सी का दरवाज़ा खुला। और एक औरत हनीफ़ के साथ बैठ गई। रात का वक़्त था। गली में रोशनी कम थी। इस लिए शहाब और हनीफ़ दोनों उस को अच्छी तरह न देख सके। सीट पर बैठते ही उस ने कहा “चलो”

टैक्सी तेज़ी से नीचे उतरने लगी।

हनीफ़ के पास कोई ऐसी जगह न थी जहां कोई मुआमला होसके चुनांचे जैसा तय पाया था। वो डाक्टर ख़ां साहब के हाँ चले गए वो मिल्ट्री हॉस्पीटल में मुतअय्यन था और उस को वहीं दो कमरे मिले हुए थे। शहाब ने बंबई आते ही उस को फ़ोन कर दिया था कि वो हनीफ़ के साथ रात को उसके पास आएगा और मुआमला साथ होगा, चुनांचे टैक्सी मिल्ट्री हस्पताल में पहुंची। दलाल सो रुपया लेकर ग्रांट रोड पर उतर गया।

रास्ते में भी शहाब और हनीफ़ उस औरत को अच्छी तरह न देख सके। कोई ख़ास बातें भी न हुईं। शहाब ने जब उस से अपने ठीट हैदराबादी लहजे में पूछा “आप का असम-ए-गिरामी” तो उस औरत ने कहा। “फ़ूभा बाई”

“फ़ूभा बाई?” हनीफ़ सोचता रह गया कि ये कैसा नाम है।

डाक्टर ख़ान उन का इंतिज़ार कर रहा था सब से पहले शहाब कमरे में दाख़िल हुआ। दोनों गले मिले और ख़ूब एक दूसरे को गालियां दीं।

डाक्टर ख़ान ने जब एक जवान औरत को दरवाज़े में देखा तो एक दम ख़ामोश होगया। “आईए आईए” उस ने अपने सीने पर हाथ रखा। “डाक्टर ख़ान........ आप?” उस ने शहाब की तरफ़ देखा।

शहाब ने उस औरत की तरफ़ देखा। औरत ने कहा “फ़ूभा बाई”

डाक्टर ख़ान ने बढ़ कर उस से हाथ मिलाया “आप से मिल कर बहुत ख़ुशी हुई।”

फ़ूभा बाई मुस्कुराई “मुझे भी ख़ुफ़ी हुई।”

शहाब और हनीफ़ ने एक दूसरे की तरफ़ देखा। डाक्टर ख़ान ने दरवाज़ा बंद कर दिया और अपने दोस्तों से कहा “आप दूसरे कमरे में चले जाईए........ मुझे कुछ काम करना है।”

शहाब ने जब फ़ूभा बाई से कहा “चलिए” तो उस ने डाक्टर ख़ान का हाथ पकड़ लिया, “नहीं आप भी तशरीफ़ लाईए”

“आप तशरीफ़ ले चलिए मैं आता हूँ” ये कह कर डाक्टर ख़ान ने अपना हाथ छुड़ा लिया।

शहाब और हनीफ़ फ़ूभा बाई को अंदर ले गए। थोड़ी देर गुफ़्तुगू हुई तो उस को मालूम हुआ कि उसकी ज़बान मोटी थी। वो शीन और सीन अदा नहीं कर सकती थी। इस के बदले इस के मुँह से फ़े निकलती थी। उस का नाम इस लिहाज़ से शोभा बाई था। लेकिन कुछ देर और बातें करने के बाद उन को पता चला कि शोभा उस का असली नाम नहीं था। वो मुस्लमान थी जयपुर उस का वतन था जहां से वो चार साल हुए भाग कर बंबई चली आई थी। इस से ज़्यादा उस ने अपने हालात न बताए।

मामूली शक्ल-ओ-सूरत थी। आँखें बड़ी नहीं थीं। नाक भी ख़ुशवज़ा थी। बालाई होंट के ऐन दरमयान एक छोटे से ज़ख़म का निशान था। जब वो बात करती तो ये निशान थोड़ा सा फैल जाता। गले में उस ने जड़ाऊ निकलस पहना हुआथा। दोनों हाथों में सोने की चूड़ियां थीं।

बहुत ही बातूनी औरत थी। बैठते ही उस ने इधर उधर की बातें शुरू करदीं। हनीफ़ और शहाब सिर्फ़ हूँ हाँ करते रहे। फिर उस ने उन के बारे में पूछना शुरू किया कि “वो क्या करते हैं, कहाँ रहते हैं, क्या उम्र है, फ़ादी फ़िदा हैं या ग़ैर फ़ादी फ़िदा। हनीफ़ इतना दुबला क्यों है। फ़हाब ने दो मस्नूई दाँत क्यों लगवाए हैं। गोफ़त ख़ौरा था तो इस का ईलाज डाक्टर ख़ां से क्यों ना कराया। फ़रमाता क्यों है। फॉर क्यों नहीं गाता।”

शहाब ने उसे कुछ शेअर सुनाए। शोभा ने बड़े ज़ोरों की दाद दी। शहाब ने ये शेअर सुनाया

खेतों को दे लो पानी अब बह रही है गंगा

कुछ कर लो नौजवानो उठती जवानियां हैं

तो शोभा उछल पड़ी। “वाह जनाब साहब वाह........ बहुत अच्छा फॉर है........ उठती जवानियां हैं। वाह वा!”

इस के बाद शोभा ने बेशुमार शेअर सुनाए, बिलकुल बे जोड़े बेतुके। जिन का सर था ना पैर। शेअर सुना कर उस ने शहाब से कहा “फ़हाब साहब........ मज़ा आया आप को”

शहाब ने जवाब दिया। “बहुत”

शोभा ने सरमा कर कहा “ये फॉर मेरे थे........ मुझे फ़ाअरी का बहुत फ़ौक़ है”

शहाब और हनीफ़ दोनों ने एक दूसरे की तरफ़ देखा और मुस्कुरा दिए........

इस के बाद सिर्फ़ एक सही शेअर शोभा ने सुनाया

कभी तो मरे दर्द-ए-दिल की ख़बर ले

मरे दर्द से आफ़ना होने अले

ये शेअर हनीफ़ कई बार सुन चुका था और शायद पढ़ भी चुका था। मगर शोभा ने कहा। “हनीफ़ साहिब ये फॉर भी मेरा है।”

हनीफ़ ने ख़ूब दाद दी। “माफ़ाअलला आप तो कमाल करती हैं”

शोभा चोंकि। “माफ़ कीजीएगा, मेरी ज़बान में तो कुछ ख़राबी है लेकिन आप ने क्यों माफ़ा अल्लाह के बदले माफ़ा अल्लाह कहा”

हनीफ़ और शहाब दोनों बेइख़्तियार हंस पड़े। शोभा भी हँसने लगी। इतने में डाक्टर ख़ान आगया। उस ने अंदर दाख़िल होते ही शोभा से कहा “क्यों जनाब इतनी हंसी कस बात पर आरही है।”

ज़्यादा हँसने के बाइस शोभा की आँखों में आँसू आगए थे। उस ने रूमाल से उन को पोंछा और डाक्टर ख़ान से कहा “एक बात ऐसी हुई कि हम सब हनफ़ पड़े”

डाक्टर ख़ान ने भी हंसना शुरू कर दिया।

शोभा ने उस से कहा “आईए बैठिए” चारपाई के एक तरफ़ सरक कर उस ने डाक्टर ख़ान का हाथ पकड़ा और उसे अपने पास बिठा लिया।

फिर शेअर-ओ-शायरी होगई। शोभा ने लंबी लंबी चार बेतुकी ग़ज़लें सुनाईं। सब ने दाद दी, शहाब उकता गया। वो मुआमला चाहता था। हनीफ़ उसके बदले हुए तीव्र देख कर भाँप गया। चुनांचे उस ने शहाब से कहा “अच्छा भई में रुख़स्त चाहता हूँ इंशाअल्लाह कल सुबह मुलाक़ात होगी।”

वो ये कह कर कुर्सी पर से उठा मगर शोभा ने उस का हाथ पकड़ लिया “नहीं, आप नहीं जा सकते।”

हनीफ़ ने जवाब दिया। “मैं माज़रत चाहता हूँ। बीवी मेरा इंतिज़ार कर रही होगी”

“ओह!........ लेकिन नहीं। आप थोड़ी देर और ज़रूर बैठें। अभी तो सिर्फ़ ग्यारह बजे हैं शोभा ने इसरार किया।”

शहाब ने एक जमाई ली “बहुत वक़्त हो गया है”

शोभा ने मुस्कुरा कर शहाब की तरफ़ देखा “मैं फ़ारी रात आप के पाफ़ हूँ”

शहाब का तकद्दुर दूर हो गया।

हनीफ़ थोड़ी देर बैठा, फिर रुख़स्त ली और चला गया........ दूसरे रोज़ सुबह नौ बजे के क़रीब शहाब आया और रात की बात सुनाने लगा, “अजीब-ओ-ग़रीब थी थी ये फ़ूभा बाई........ पेट पर बालिशत भर ऑप्रेशन का निशान था........ कहती थी कि वो एक लकड़ी वाले सेठ की दाश्ता थी उस ने एक फ़िल्म कंपनी खोल दी थी उसके चेकों पर दस्तख़त शोभा ही के होते थे। मोटर थी जो अब तक मौजूद है। नौकर चाकर है। लकड़ी वाला सेठ उस से बेहद मोहब्बत करता था। उस के पेट का ऑप्रेशन हुआ तो उस ने एक हज़ार रुपया यतीम ख़ाने को दिया।”

हनीफ़ ने पूछा। “ये लकड़ी वाला सेठ अब कहाँ है।”

शहाब ने जवाब दिया “दूसरी दुनिया में टाल खोले बैठा है........ औरत ख़ूब थी ये फ़ूभा बाई........ मैं दूसरे कमरे में सो गया। तो वो डाक्टर ख़ान के साथ लेट गई। सुबह पाँच बजे ख़ान ने उस से कहा कि अब जाओ। शोभा ने कहा अच्छा मैं जाती हूँ, लेकिन ये मेरे ज़ेवर तुम अपने पास रख लो। मैं अकेली इन के साथ बाहर नहीं निकलती।”

हनीफ़ ने पूछा “डाक्टर ने ज़ेवर रख लिए?”

शहाब ने सर हिलाया “हाँ........ पहले तो उस का ख़्याल था कि नक़ली हैं। मगर दिन की रोशनी में जब उस ने देखा तो असली थे।”

“और वो चली गई।”

“हाँ चली गई........ ये कह कर वो किसी रोज़ आकर अपने ज़ेवर वापिस ले जाएगी।”

“ये तुम ने बड़े अचंभे की बात सुनाई।”

“ख़ुदा की क़सम हक़ीक़त है” शहाब ने सिगरेट सुलगाया “इसी लिए तो मैंने कहा ये फ़ूभा बाई अजीब-ओ-ग़रीब औरत है।”

हनीफ़ ने पूछा “वैसे कैसी औरत थी?”

शहाब झेंप सा गया। “भई मुझे ऐसे मुआमलों का कुछ पता नहीं........ ये तुम ख़ान से पूछना। वो एक्सपर्ट है।”

शाम को दोनों ख़ान से मिले। ज़ेवर उस के पास महफ़ूज़ थे। शोभा लेने नहीं आई थी। ख़ान ने बताया “मेरा ख़्याल है शोभा, किसी दिमाग़ी सदमे का शिकार है”

शहाब ने पूछा “तुम्हारा मतलब है पागल है?”

“ख़ान ने कहा नहीं........ पागल नहीं है लेकिन उस का दिमाग़ यक़ीनन नौरमल नहीं है। बेहद मुख़लिस औरत है। एक लड़का है उस का जयपुर में उस को बराबर दो सो रुपय माहवार भेजती है। हर तीसरे महीने उस से मिलने जाती है। जयपुर पहुंचते ही बुर्क़ा ओढ़ लेती है वहां उसे पर्दा करना पड़ता है।”

हनीफ़ ने कहा। “ये तुम ने कैसे समझा कि उस का दिमाग़ नौरमल नहीं।”

ख़ान ने जवाब दिया। “भई मेरा ख़्याल है........ नौरमल औरत होती तो अपने डेढ़ दो हज़ार के ज़ेवर एक अजनबी के पास क्यों छोड़ जाती........ इसके इलावा उस को मोरफ़िया के इंजैक्शन लेने की आदत है”

शहाब ने पूछा “नशा होता है एक क़िस्म का?”

ख़ान ने जवाब। “बहुत ही ख़तरनाक क़िस्म का........ शराब से भी बदतर!”

“उसकी आदत कैसे पड़ी उसे” शहाब ने मेज़ पर से पेपर वेट उठा कर दवात पर रख दिया।

“ऑप्रेशन हुआ तो बिगड़ गया। दर्द शिद्दत का था। उस का एहसास कम करने के लिए डाक्टर मोरफ़िया के इंजैक्शन देते रहे। तक़रीबन दो महीने तक........ बस आदत होगई।”

डाक्टर ख़ान ने मोरफ़िया और इस के ख़तरनाक असरात पर एक लैक्चर शुरू कर दिया।

एक हफ़्ता हो गया। शोभा ना आई। शहाब वापस हैदराबाद चला गया। डाक्टर ख़ान ज़ेवर लेकर हनीफ़ के पास आया कि चलो दे आएं। दोनों ने ग्रांट रोड के नाके पर इस दलाल को बहुत तलाश किया जो शहाब और हनीफ़ को शोभा के मकान के पास ले गया था मगर वो न मिला। हनीफ़ को इतना मालूम था कि गली कौन सी है और बिल्डिंग कौन सी है.... डाक्टर ख़ान ने कहा “ठीक है। हम पता लगा लेंगे........ ये ज़ेवर में अपने पास नहीं रखना चाहता। चोरी होगए तो क्या करूंगा। वो तो अजीब बेपर्वा औरत है”

दोनों टैक्सी में वहां पहुंच गए। डाक्टर ख़ान को हनीफ़ ने बिल्डिंग बता दी और कहा “मैं नहीं जाऊंगा भाई, तुम तलाश करो उसे”

डाक्टर ख़ान अकेला उस बिल्डिंग में दाख़िल हुआ तो एक दो आदमियों से पूछा मगर शोभा का कुछ पता न चला नीचे से लिफ़्ट ऊपर को आई तो होटल का छोकरा प्यालियां उठाए बाहर निकला ख़ान ने उस से पूछा तो उस ने बताया कि “सब से निचली मंज़िल के आख़िरी फ़्लैट पर चले जाओ।” लिफ़्ट के ज़रीया से ख़ान नीचे पहुंचा आख़िरी फ़्लैट की घंटी बजाई। थोड़ी देर के बाद एक बढ़िया औरत ने दरवाज़ा खोला। ख़ान ने उस से पूछा “शोभा बाई हैं?”

बढ़िया ने जवाब दिया। “हाँ हैं।”

ख़ान ने कहा “जाओ उस से कहो डाक्टर ख़ान आए हैं।”

अंदर से शोभा की आवाज़ आई। “आईए डाक्टर साहब आईए”

डाक्टर ख़ान अंदर दाख़िल हुआ। छोटा सा ड्राइंगरूम था। चमकीले फ़र्नीचर से भरा हुआ। फ़र्श पर क़ालीन बिछे हुए थे। बुढ़िया दूसरे कमरे में चली गई। फ़ौरन ही शोभा की आवाज़ आई “डाक्टर साहब अंदर आ जाईए........ मैं बाहर नहीं आसकती।”

डाक्टर ख़ान दूसरे कमरे में दाख़िल हुआ। शोभा चादर ओढ़े लेटी थी। इस ने उस से पूछा “क्या बात है”

शोभा मुस्कुराई कुछ नहीं डाक्टर साहिब, “तेल मालिश करा रही थी”

डाक्टर पलंग के पास कुर्सी पर बैठ गया। जेब से रूमाल निकाला जिस में ज़ेवर बंधे थे खोल कर उसे पलंग पर रख दिया “कब तक मैं तुम्हारे इन ज़ेवरों की हिफ़ाज़त करता रहूँगा। तुम ऐसी गईं कि फिर उधर का रुख़ तक न किया”

शोभा हंसी, “मुझे बहुत काम था........ लेकिन आप ने क्यों तकलीफ़ की मैं ख़ुद आके ले जाती” फिर उस ने बुढ़िया से कहा “चाय मँगाओ, डाक्टर के लिए”

डाक्टर ने कहा “नहीं मुझे अब जाना है।”

“कहाँ?”

“हस्पताल”

“टैक्सी में आए हैं आप?”

“हाँ”

“बाहर खड़ी है”

डाक्टर ने सर के इशारे से हाँ की।

“तो आप चलिए मैं आती हूँ” ये कह कर उस ने ज़ेवर तकीए के नीचे रख दिए और रूमाल डाक्टर ख़ान को दे दिया। डाक्टर ख़ान हनीफ़ के पास पहुंचा तो इस ने पूछा “मिल गई?”

डाक्टर मुस्कुराया “मिल गई........ आ रही है!”

पंद्रह बीस मिनट के बाद शोभा ने तेज़ी से टैक्सी का दरवाज़ा खोला और अंदर बैठ गई।

डाक्टर ख़ान के कमरे में देर तक फ़ुज़ूल क़िस्म की शेअर बाज़ी होती रही। हिज्रो विसाल और इश्क़-ओ-मोहब्बत के बेशुमार आमियाना अशआर शोभा ने सुनाए और उन्हें अपने नाम से मंसूब किया। डाक्टर ख़ान और हनीफ़ ने ख़ूब दाद दी। शोभा बहुत ख़ुश हुई और कहने लगी “याक़ूब फ़ेठ घंटों मुझ से फॉर फ़ुना करते थे।”

याक़ूब फ़ेठ वो लकड़ी वाला सेठ था जिस ने शोभा के लिए एक फ़िल्म कंपनी खोली थी। डाक्टर ख़ान और हनीफ़ हंस पड़े। शोभा भी हँसने लगी।

डाक्टर ख़ान और शोभा की दोस्ती हो गई। शुरू शुरू में तो वो हफ़्ते में दो बार आती थी। अब क़रीब क़रीब हर रोज़ आने लगी। रात आती। सुबह सवेरे चली जाती। शाम को बिलानागा मोरफ़िया का इंजैक्शन लेती। डाक्टर इंजैक्शन लगाने से पहले इस के बाज़ू पर बेहिस करने वाली दवा लगा देता था ये ठंडी ठंडी चीज़ उसे बहुत पसंद थी।

तीन महीने गुज़रे तो शोभा जयपुर जाने के लिए तैय्यार हुई। मोटर अपनी डाक्टर ख़ान के हवाले करदी कि वो उस का ध्यान रखे। डाक्टर उसे स्टेशन पर छोड़ने गया। देर तक गाड़ी में एक दूसरे से बातें करते रहे। जब गाड़ी चलने लगी तो शोभा ने एक दम डाक्टर का हाथ पकड़ कर कहा “मुझे क्यों एक दम ऐफ़ा लगा है कि कुछ होने वाला है।”

डाक्टर ख़ान ने कहा। “क्या होने वाला है।”

शोभा के चेहरे से वहशत बरसने लगी मालूम नहीं “मेरा दिल बैठा जा रहा है।”

डाक्टर ख़ान ने उसे दम दिलासा दिया गाड़ी चल दी। “दूर तक शोभा का हाथ हिलता रहा।”

जयपुर से शोभा के दो ख़त आए जिन से सिर्फ़ इतना पता चलता था कि वो ख़ैरीयत से पहुंच गई है। जब वापस आएगी तो इस के लिए बहुत से तोहफ़े लाएगी। इस के बाद एक कार्ड आया जिस में ये लिखा था “मेरी अंधेरी ज़िंदगी में सिर्फ़ एक दिया था वो कल ख़ुदा ने बुझा दिया........ भला हो इस का?”

हनीफ़ ने ये अल्फ़ाज़ पढ़े तो उसकी आँखों में आँसू आगए। भला हो उस का में “बेपनाह ग़म था।”

बहुत अर्सा गुज़र गया शोभा का कोई ख़त ना आया। पूरा एक बरस बीत गया। डाक्टर ख़ान को उस का कोई पता न चला। शोभा अपनी मोटर उस के हवाले करगई थी। इस बिल्डिंग में गया जिस की सब से निचली मंज़िल में वो रहा करती थी। फ़्लैट पर कोई और ही क़ाबिज़ था एक दलाल किस्म का आदमी। डाक्टर ख़ान आख़िर थक हार कर ख़ामोश होगया। मोटर इस ने एक गिराज में रखवा दी।

एक दिन हनीफ़ घबराया हुआ हस्पताल आया उस का चेहरा ज़र्द था। डाक्टर ख़ान को डयूटी से हटा कर वो एक तरफ़ ले गया और उस से कहा “मैंने आज शोभा को देखा।”

डाक्टर ख़ान ने हनीफ़ का बाज़ू पकड़ कर एक दम पूछा “कहाँ?”

“चौपाटी पर........ मैं उसे बिलकुल ना पहचाँता क्योंकि वो महज़ हड्डियों का ढांचा थी।”

डाक्टर ख़ान खोखली आवाज़ में बोला। “हड्डियों का ढांचा”

हनीफ़ ने सर्द आह भरी “शोभा नहीं थी उस का साया था। आँखें अंदर को धंसी हुईं। बाल परेशान और गर्द आलूद। यूं चलती थी कि अपने आप को घसीट रही है। मेरे पास आई और कहा मुझे पाँच रुपय दो........ मैंने उसको न पहचाना। पूछा क्या करोगी पाँच रुपय लेकर। बोली मोरफ़िया का टीका लूंगी........ एक दम मैंने ग़ौर से उस की तरफ़ देखा........ इस के बालाई होंट पर ज़ख़म का निशान मौजूद था........मैं चिल्लाया। शोभा........ उस ने थकी हुई वीरान आँखों से मुझे देखा और पूछा, कौन हो तुम........ मैंने कहा हनीफ़........ उस ने जवाब दिया। मैं किसी हनीफ़ को नहीं जानती। मैंने तुम्हारा ज़िक्र किया कि तुम ने उसे बहुत तलाश क्या, बहुत ढ़ूंडा। ये सुन कर इस के होंटों पर ख़फ़ीफ़ सी मुस्कुराहट पैदा हुई और कहने लगी, उस से कहना मत ढ़ूंढ़े मुझे। मेरी तरफ़ देखो। में इतनी मुद्दत से अपना खोया हुआ लाल ढूंढती फिर रही हूँ........ ये ढूंढना बिलकुल बेकार है........ कुछ नहीं मिलता........ लाओ पाँच रुपय दो मुझे........ मैंने उसे पाँच रुपय दिए और कहा, अपनी मोटर तो ले जाओ डाक्टर ख़ान से” वो क़हक़हे लगाती हुई चली गई।

ख़ान ने पूछा “कहाँ?”

हनीफ़ ने जवाब दिया “मालूम नहीं........ किसी डाक्टर के पास गई होगी।”

डाक्टर ख़ान ने बहुत तलाश किया मगर शोभा का कुछ पता ना चला।

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गोपाल की रान पर जब ये बड़ा फोड़ा निकला तो इस के औसान ख़ता हो गए। गरमियों का मौसम था। आम ख़ूब हुए थे। बाज़ारों में, गलियों में, दुकानदारों के पास, फेरी वालों के पास, जिधर देखो, आम ही आम नज़र आते। लाल, पीले

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बग़ैर इजाज़त

7 अप्रैल 2022
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नईम टहलता टहलता एक बाग़ के अन्दर चला गया उस को वहां की फ़ज़ा बहुत पसंद आई घास के एक तख़्ते पर लेट कर उस ने ख़ुद कलामी शुरू कर दी। कैसी पुर-फ़ज़ा जगह है हैरत है कि आज तक मेरी नज़रों से ओझल रही नज़रें ओझल इ

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बदतमीज़ी

7 अप्रैल 2022
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“मेरी समझ में नहीं आता कि आप को कैसे समझाऊं” “जब कोई बात समझ में न आए तो उस को समझाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए” “आप तो बस हर बात पर गला घूँट देते हैं आप ने ये तो पूछ लिया होता कि मैं आप से क्या कहना

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पेशावर से लाहौर तक

20 अप्रैल 2022
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वो इंटर क्लास के ज़नाना डिब्बे से निकली उस के हाथ में छोटा सा अटैची केस था। जावेद पेशावर से उसे देखता चला आ रहा था। रावलपिंडी के स्टेशन पर गाड़ी काफ़ी देर ठहरी तो वो साथ वाले ज़नाना डिब्बे के पास से कई

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क़ीमे की बजाय बोटियाँ

20 अप्रैल 2022
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डाक्टर सईद मेरा हम-साया था उस का मकान मेरे मकान से ज़्यादा से ज़्यादा दो सौ गज़ के फ़ासले पर होगा। उस की ग्रांऊड फ़्लोर पर उस का मतब था। मैं कभी कभी वहां चला जाता एक दो घंटे की तफ़रीह हो जाती बड़ा बज़्लास

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ख़ाली बोतलें, ख़ाली डिब्बे

20 अप्रैल 2022
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ये हैरत मुझे अब भी है कि ख़ास तौर पर ख़ाली बोतलों और डिब्बों से मुजर्रद मर्दों को इतनी दिलचस्पी क्यूं होती है?...... मुजर्रद मर्दों से मेरी मुराद उन मर्दों से है जिन को आम तौर पर शादी से कोई दिलचस्पी

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ख़ुवाब-ए-ख़रगोश

20 अप्रैल 2022
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सुरय्या हंस रही थी। बे-तरह हंस रही थी। उस की नन्ही सी कमर इस के बाइस दुहरी होगई थी। उस की बड़ी बहन को बड़ा ग़ुस्सा आया। आगे बढ़ी तो सुरय्या पीछे हट गई। और कहा “जा मेरी बहन, बड़े ताक़ में से मेरी चूड़ियो

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गर्म सूट

20 अप्रैल 2022
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गंडा सिंह ने चूँकि एक ज़माने से अपने कपड़े तबदील नहीं किए थे। इस लिए पसीने के बाइस उन में एक अजीब क़िस्म की बू पैदा होगई थी जो ज़्यादा शिद्दत इख़तियार करने पर अब गंडा सिंह को कभी कभी उदास करदेती थी। उस

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चन्द मुकालमे

20 अप्रैल 2022
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“अस्सलाम-ओ-अलैकुम” “वाअलैकुम अस्सलाम” “कहीए मौलाना क्या हाल है” “अल्लाह का फ़ज़ल-ओ-करम है हर हाल में गुज़र रही है” “हज से कब वापस तशरीफ़ लाए” “जी आप की दुआ से एक हफ़्ता होगया है” “अ

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गोली

20 अप्रैल 2022
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शफ़क़त दोपहर को दफ़्तर से आया तो घर में मेहमान आए हुए थे। औरतें थीं जो बड़े कमरे में बैठी थीं। शफ़क़त की बीवी आईशा उन की मेहमान नवाज़ी में मसरूफ़ थी। जब शफ़क़त सहन में दाख़िल हुआ तो उस की बीवी बाहर निकली

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चूहे-दान

20 अप्रैल 2022
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शौकत को चूहे पकड़ने में बहुत महारत हासिल है। वो मुझ से कहा करता है ये एक फ़न है जिस को बाक़ायदा सीखना पड़ता है और सच्च पूछिए तो जो जो तरकीबें शौकत को चूहे पकड़ने के लिए याद हैं, उन से यही मालूम होता है क

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चोरी

20 अप्रैल 2022
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स्कूल के तीन चार लड़के अलाव के गिर्द हलक़ा बना कर बैठ गए। और उस बूढ़े आदमी से जो टाट पर बैठा अपने इस्तिख़वानी हाथ तापने की ख़ातिर अलाव की तरफ़ बढ़ाए था कहने लगे “बाबा जी कोई कहानी सनाईए?” मर्द-ए-मुअम्म

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ऊपर नीचे और दरमियान

20 अप्रैल 2022
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मियां साहब! बहुत देर के बाद आज मिल बैठने का इत्तिफ़ाक़ हुआ है। बेगम साहिबा! जी हाँ! मियां साहब! मस्रूफ़ियतें... बहुत पीछे हटता हूँ मगर नाअह्ल लोगों का ख़याल करके क़ौम की पेश की हुई ज़िम्मेदारिय

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क़र्ज़ की पीते थे

20 अप्रैल 2022
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एक जगह महफ़िल जमी थी। मिर्ज़ा ग़ालिब वहां से उकता कर उठे, बाहर हवादार मौजूद था। उसमें बैठे और अपने घर का रुख़ किया। हवादार से उतर कर जब दीवानख़ाने में दाख़िल हुए तो क्या देखते हैं कि मथुरादास महाजन बैठ

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कबूतरों वाला साईं

20 अप्रैल 2022
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पंजाब के एक सर्द देहात के तकिए में माई जीवां सुबह सवेरे एक ग़लाफ़ चढ़ी क़ब्र के पास ज़मीन के अंदर खुदे हुए गढ़े में बड़े बड़े उपलों से आग लगा रही है। सुबह के सर्द और मटियाले धुँदलके में जब वो अपनी पानी भर

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काली कली

20 अप्रैल 2022
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जब उस ने अपने दुश्मन के सीने में अपना छुरा पैवस्त किया और ज़मीन पर ढेर होगया। उस के सीने के ज़ख़्म से सुर्ख़ सुर्ख़ लहू का चशमा फूटने लगा और थोड़ी ही देर में वहां लहू का छोटा सा हौज़ बन गया। क़ातिल पास ख

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क़ासिम

20 अप्रैल 2022
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बावर्चीख़ाना की मटमैली फ़िज़ा में बिजली का अंधा सा बल्ब कमज़ोर रोशनी फैला रहा था। स्टोव पर पानी से भरी हुई केतली धरी थी। पानी का खोलाओ और स्टोव के हलक़ से निकलते हुए शोले मिल जुल कर मुसलसल शोर बरपा कररह

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बासित

20 अप्रैल 2022
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बासित बिल्कुल रज़ामंद नहीं था, लेकिन माँ के सामने उसकी कोई पेश न चली। अव्वल अव्वल तो उसको इतनी जल्दी शादी करने की कोई ख़्वाहिश नहीं थी, इसके अलावा वो लड़की भी उसे पसंद नहीं थी जिससे उसकी माँ उसकी शादी

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तीन मोटी औरतें

20 अप्रैल 2022
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एक का नाम मिसेज़ रिचमेन और दूसरी का नाम मिसेज़ सतलफ़ था। एक बेवा थी तो दूसरी दो शौहरों को तलाक़ दे चुकी थी। तीसरी का नाम मिस बेकन था। वो अभी नाकतख़दा थी। उन तीनों की उम्र चालीस के लगभग थी। और ज़िंदगी क

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लालटेन

20 अप्रैल 2022
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मेरा क़ियाम “बटोत” में गो मुख़्तसर था। लेकिन गूनागूं रुहानी मसर्रतों से पुर। मैंने उसकी सेहत अफ़्ज़ा मुक़ाम में जितने दिन गुज़ारे हैं उनके हर लम्हे की याद मेरे ज़ेहन का एक जुज़्व बन के रह गई है जो भुलाये

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क़ुदरत का उसूल

20 अप्रैल 2022
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क़ुदरत का ये उसूल है कि जिस चीज़ की मांग न रहे, वो ख़ुद-बख़ुद या तो रफ़्ता रफ़्ता बिलकुल नाबूद हो जाती है, या बहुत कमयाब अगर आप थोड़ी देर के लिए सोचें तो आप को मालूम हो जाएगा कि यहां से कितनी अजनास ग़ाय

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ख़त और उसका जवाब

20 अप्रैल 2022
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मंटो भाई ! तस्लीमात! मेरा नाम आप के लिए बिलकुल नया होगा। मैं कोई बहुत बड़ी अदीबा नहीं हूँ। बस कभी कभार अफ़साना लिख लेती हूँ और पढ़ कर फाड़ फेंकती हूँ। लेकिन अच्छे अदब को समझने की कोशिश ज़रूर करती हूँ

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ख़ुदा की क़सम

20 अप्रैल 2022
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उधर से मुसलमान और इधर से हिंदू अभी तक आ जा रहे थे। कैम्पों के कैंप भरे पड़े थे। जिनमें ज़रब-उल-मिस्ल के मुताबिक़ तिल धरने के लिए वाक़ई कोई जगह नहीं थी। लेकिन इसके बावजूद उनमें ठूंसे जा रहे थे। ग़ल्ला न

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ख़ुशबू-दार तेल

20 अप्रैल 2022
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“आप का मिज़ाज अब कैसा है?” “ये तुम क्यों पूछ रही हो अच्छा भला हूँ मुझे क्या तकलीफ़ थी ” “तकलीफ़ तो आप को कभी नहीं हुई एक फ़क़त मैं हूँ जिस के साथ कोई न कोई तकलीफ़ या आरिज़ा चिमटा रहता है ” “य

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मम्मी

20 अप्रैल 2022
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नाम उसका मिसेज़ स्टेला जैक्सन था मगर सब उसे मम्मी कहते थे। दरम्याने क़द की अधेड़ उम्र की औरत थी। उसका ख़ाविंद जैक्सन पिछली से पिछली जंग-ए-अ’ज़ीम में मारा गया था, उसकी पेंशन स्टेला को क़रीब क़रीब दस बरस से

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इश्क़-ए-हक़ीक़ी

20 अप्रैल 2022
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इ’श्क़-ओ-मोहब्बत के बारे में अख़लाक़ का नज़रिया वही था जो अक्सर आ’शिकों और मोहब्बत करने वालों का होता है। वो रांझे पीर का चेला था। इ’श्क़ में मर जाना उसके नज़दीक एक अज़ीमुश्शान मौत मरना था। अख़लाक़ तीस

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यज़ीद

20 अप्रैल 2022
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सन सैंतालीस के हंगामे आए और गुज़र गए। बिल्कुल उसी तरह जिस मौसम में ख़िलाफ़-ए-मा’मूल चंद दिन ख़राब आएं और चले जाएं। ये नहीं कि करीम दाद, मौला की मर्ज़ी समझ कर ख़ामोश बैठा रहा। उसने उस तूफ़ान का मर्दाना

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उल्लू का पट्ठा

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क़ासिम सुबह सात बजे लिहाफ़ से बाहर निकला और ग़ुसलख़ाने की तरफ चला। रास्ते में, ये इसको ठीक तौर पर मालूम नहीं, सोने वाले कमरे में, सहन में या ग़ुसलख़ाने के अंदर उसके दिल में ये ख़्वाहिश पैदा हुई कि वो किसी

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अब और कहने की ज़रुरत नहीं

20 अप्रैल 2022
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ये दुनिया भी अ’जीब-ओ-ग़रीब है... ख़ासकर आज का ज़माना। क़ानून को जिस तरह फ़रेब दिया जाता है, इसके मुतअ’ल्लिक़ शायद आपको ज़्यादा इल्म न हो। आजकल क़ानून एक बेमा’नी चीज़ बन कर रह गया है । इधर कोई नया क़ानून बनता

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नया क़ानून

20 अप्रैल 2022
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मंगू कोचवान अपने अड्डे में बहुत अक़लमंद आदमी समझा जाता था। गो उसकी तालीमी हैसियत सिफ़र के बराबर थी और उसने कभी स्कूल का मुँह भी नहीं देखा था लेकिन इसके बावजूद उसे दुनिया भर की चीज़ों का इल्म था। अड्ड

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