राजस्थान के खोरोली गांव में चार साल का आहिल अपने अम्मी-अब्बू के साथ बड़े ही खुशी के साथ रहता था कि एक दिन उसके गांव में एक पीर बाबा का आगमन होता है। जिसकी उपदेश से प्रभावित होकर आहिल के पिता सरीम उसे लेकर उस महान आत्मा के पास पहुचते हैं।
कुरान की सारी आयतें याद होने के कारण पीर बाबा सरीम को बहुत सी परेशानियों का हल बताया और कुछ उपाय भी ताकि आने वाले जीवन में कभी कोई परेशानी का सामना न करना पड़े। उस पीर बाबा द्वारा दिए गए सभी उपदेश में एक यह भी था कि हमेशा दायें हाथ से खाना खाना चाहिए। अन्यथा घर में सुख-शांति नहीं रहती है। पीर बाबा से ज्ञान लेने के बाद दोनों अपने घर को निकल गए।
एक दिन रात के समय आहिल को दायें हाथ से खाना खाते देखकर सरीम गुस्सा हो जाता है वह आहिल को बेतहासा मारने लगा। जिससे उसके होंठ कट गए। वो तो आहिल की माँ अंजुम ने उसे बचा लिया। उसके बाद सरीम आहिल को हमेशा क्रोध की नज़रों से ही देखता।
एक साल बाद अंजुम को दूसरा बेटा हुआ, जिसका नाम दाविद रखा गया। दाविद के होने के बाद सरीम का गुस्सा कुछ कम होने लगा और वह दाविद को बहुत प्यार करता। आहिल भी उससे प्यार करता। लेकिन मन ही मन वह उससे बहुत नफरत भी करता। क्योंकि सरीम दाविद को अपना सारा प्यार देता और आहिल को पूछता तक नहीं। धीरे-धीरे समय बीतता गया आऊर दाविद चार साल का हो गया।
दोनों साथ में मदरसा जाते और रास्ते में लौटते हुए एक कुए के पास बैठकर कुएं में पत्थर मारते, जिसके कारण कुएं के दरारों में रहने वाले कबूतर फड़फड़ाकर बाहर निकलते और दाविद उन्हे देखकर बहुत खुश होता। उसके बाद दोनों घर को चले जाते। एक दिन पास के गांव में मेला लगा था। सरीम आहिल को मेला नहीं ले गया लेकिन दाविद को खुशी-खुशी कंधे पर बैठाकर ले गया। जिससे आहिल को दाविद को लेकर और भी चिढ़न बढ़ गई।
एक दिन दोनों जब मदरसे से लौटते समय कुए के मुंडेर पर बैठकर उड़ते कबूतरों को देख रहे थे कि अचानक आहिल के मन में दाविद के प्रति घृणा भर उठी और उसने दाविद को कुएं में धक्का दे दिया। और फिर दौड़ते हुए उसके सरीम और अंजुम को इकत्तिला भी कर दिया। लेकिन तब तक देर हो चुकि थी। चुकि सरीम को पता था कि ये आहिल ने जान बुझ कर किया है तो उसने कुल्हाड़ी से आहिल के हाथ ही काट दिए।
अंजुम के बहुत विनती करने के बाद आहिल को बचा लिया लेकिन सरीम ने उसे एक कमरे में बंद कर दिया। कुछ दिन ऐसे ही बीते कि एक दिन मौका पाते ही आहिल घर से फरार हो गया और रास्ते में उसे एक ट्रक वाले का साथ मिल गया। जिसका नाम माधव था। माधव ने अपने ट्रक पर उसे पनाह दी। धीरे-धीरे दिन बितते गए और आहिल ट्रक चलाना भी जान गया। उसने अपने पास पैसे भी इकट्ठे कीए।
एक दिन माधव की गैर-मौजूदगी में उसकी मुलाकात रास्ते में एक औरत से हुई, जिसके साथ उसने रात बिताई और वह ऐसे ही जीवन जिने के लिए उसके मन में इच्छा पैदा हुई। ज्यादा पैसा कमाने की इच्छा पैदा हुई। अब ईमानदारी से ज्यादा पैदा कमा नहीं सकता तो उसके माधव को ट्रक मालिक झूठा-सच्चा बयान देकर उसे कां से निकलवा दिया और खुद उस ट्रक का मालिक बन गया।
जिसके बाद उसने बहुत लूट-पाट मचाया। आहिल ने शराब भी पीना शुरू कर दिया। जब उसकी सोच अपने माता-पिता पर गई तो उसने ट्रक से कमाए हुए पैसे लेकर ट्रक से घर जाने लगा लेकिन रास्ते में एक कार से टकरा जाने के बाद वह वहाँ से भाग खड़ा हुआ और गुजरात पहुँच गया।
गुजरात में उसे एक कारोबारी ने उस पर रहम खा कर अपने यहाँ पनाह दी। वह वहाँ आराम से रहने लगा और उसके बाग-बगीचों की रखवाली करता। चुकि आहिल अब चौबीस साल का एक युवा हो चुका था। उस पर कारोबारी की पत्नी का हवस जाग उठा। वह उसका इस्तेमाल करने लगी।
हालांकि, आहिल ऐसा नहीं चाहता था, लेकिन फिर वह उसके उकसावे से बच नहीं सका और दोनों दोपहर। रात को मिलने लगे। कुछ साल बिताने के बाद जब कारोबारी को इसकी भयानक लगी तो आहिल ने उसकी पत्नी से पैसा और सोने-जेवरात लेकर साथ भागने का प्लान बनाया। यह बात उस कारोबारी पत्नी को जच गई। उसने दोपहर के समय एक बैग में पैसे और जेवरात के साथ अपने कुछ कपड़े भी रख कर आहिल के कमरे में रख आई।
आधी रात के समय जब सारे सो गए थे तो उस कारोबारी की पत्नी से धीरे से किसी तरह आहिल के कमरे तक पहुँच गई और जब दरवाजा खोला तो आहिल वहाँ पहलए से ही गायब था। वह धीरे से जाकर वापस अपने कमरे में सो गई।
आहिल सब कुछ लेकर अपने गांव को रवाना हो गया। घर जाते वक्त रास्ते में जब उसकी नज़र उस कुएं में पड़ी तो उसे कुछ पुराने दिन याद आने लगे, जिससे उसका मुह उदास हो गया लेकिन पास ही में पड़ा पत्थर उठाकर उसने कुएं में मार और ये कहते हुए घर की ओर चल देता है कि “कुएं में पत्थर फेकने के मज़े लेने हैं तो कुछ कबूतरों की ज़िंदगी तो हराम करनी ही पड़ती है।”