व्यंग्य ना तो संस्कारी होते हैं ना दरबारी। टेढ़ापन ही व्यंग्य का असली संस्कार है। राकेश कायस्थ मौजूदा पीढ़ी के उन चंद लेखकों में शामिल हैं, जो व्यंग्य की ताकत और व्यंग्यकार होने की जिम्मेदारी को ठीक से समझते हैं। समय, समाज और सत्ता की विसंगतियों को देखने जो लेंस इनके पास है, वह विरल है। 2015 में आई राकेश की किताब कोस-कोस शब्दकोश ने खूब चर्चा बटोरी। यथावत पत्रिका में पिछले पांच साल से चल रहा कॉलम ब





कोस-कोस शब्दकोश
इसे आप हिंदी की पहली मौलिक डिक्शनरी कहें, थिसॉरस,

कोस-कोस शब्दकोश
इसे आप हिंदी की पहली मौलिक डिक्शनरी कहें, थिसॉरस,

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