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राकेश कायस्थ के बारे में

व्यंग्य ना तो संस्कारी होते हैं ना दरबारी। टेढ़ापन ही व्यंग्य का असली संस्कार है। राकेश कायस्थ मौजूदा पीढ़ी के उन चंद लेखकों में शामिल हैं, जो व्यंग्य की ताकत और व्यंग्यकार होने की जिम्मेदारी को ठीक से समझते हैं। समय, समाज और सत्ता की विसंगतियों को देखने जो लेंस इनके पास है, वह विरल है। 2015 में आई राकेश की किताब कोस-कोस शब्दकोश ने खूब चर्चा बटोरी। यथावत पत्रिका में पिछले पांच साल से चल रहा कॉलम बतरस भी काफी लोकप्रिय है। टीवी पत्रकारिता के लंबे सफर में आजतक, तेज़ और न्यूज़ 24 जैसे चैनलों के लिए कई लोकप्रिय व्यंग्य कार्यक्रमों की परिकल्पना, लेखन और निर्देशन भी इनके खाते में दर्ज़ हैं। एंटरेनमेंट टेलिविजन से पुराना नाता रहा है, जिसकी निशानियां मूवर्स एंड शेकर्स जैसे लोकप्रिय कार्यक्रमों में पाई जाती हैं। सिनेमा, विज्ञापन और खेलों की दुनिया में गहरी रूचि रखने वाले राकेश फिलहाल स्टार टीवी नेटवर्क से जुड़े हैं। इनका क्रिएटिव कैनवास काफ़ी बड़ा है। न्यूज चैनलों पर राजनीतिक व्यंग्य आधारित कार्यक्रमों को विस्तार देने से लेकर, डॉक्युमेंट्री फ़िल्म मेकिंग और ‘Movers and Shakers’ जैसे लोकप्रिय धारावाहिकों की पटकथा सरीखे कई काम खाते में दर्ज हैं। मुख्यधारा की पत्रकारिता में लंबा समय बिता चुके राकेश ठेठ देहाती दुनिया से लेकर चका चौंध भरी महानगरीय जिंदगी तक पूरे देश और परिवेश को समग्रता से समझते हैं। समय, समाज और सत्ता की विसंगतियों को देखने जो लेंस इनके पास है, वह विरल है। राकेशजी का चर्चित व्यंग्य संग्रह ‘कोस-कोस शब्दकोश’ और फैंटेसी नॉवेल ‘प्रजातंत्र के पकौड़े’ के बा द ‘रामभक्त रंगबाज’ इनकी नई किताब है, जो शिल्प और कथ्य के मामले में पिछली रचनाओं से एकदम अलग है।

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राकेश कायस्थ की पुस्तकें

रामभक्त रंगबाज़

रामभक्त रंगबाज़

रामभक्त रंगबाज़ की कहानी में गहराई है लेकिन लहजे में ग़जब की क़िस्सागोई है। आरामगंज में कदम रखते ही आप समकालीन इतिहास की उन पेंचदार गलियों में खो जाते हैं, जहाँ मासूम आस्था और शातिर सियासत दोनों हैं। धार चढ़ाई जाती सांप्रदायिकता है लेकिन कभी न टूटने व

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199/-

रामभक्त रंगबाज़

रामभक्त रंगबाज़

रामभक्त रंगबाज़ की कहानी में गहराई है लेकिन लहजे में ग़जब की क़िस्सागोई है। आरामगंज में कदम रखते ही आप समकालीन इतिहास की उन पेंचदार गलियों में खो जाते हैं, जहाँ मासूम आस्था और शातिर सियासत दोनों हैं। धार चढ़ाई जाती सांप्रदायिकता है लेकिन कभी न टूटने व

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कोस-कोस शब्दकोश

कोस-कोस शब्दकोश

इसे आप हिंदी की पहली मौलिक डिक्शनरी कहें, थिसॉरस, व्यंग्य निबंधों का संग्रह या कुछ और, लेकिन एक बार पढ़ना शुरू करेंगे तो बिना खत्म किए छोड़ नहीं पाएँगे। हिंदी के सामाजिक-राजनीतिक परिवेश में इस्तेमाल होनेवाले पचास प्रचलित शब्दों की निहायत ही अप्रचलित

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100/-

कोस-कोस शब्दकोश

कोस-कोस शब्दकोश

इसे आप हिंदी की पहली मौलिक डिक्शनरी कहें, थिसॉरस, व्यंग्य निबंधों का संग्रह या कुछ और, लेकिन एक बार पढ़ना शुरू करेंगे तो बिना खत्म किए छोड़ नहीं पाएँगे। हिंदी के सामाजिक-राजनीतिक परिवेश में इस्तेमाल होनेवाले पचास प्रचलित शब्दों की निहायत ही अप्रचलित

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