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राम खेलावन

9 अप्रैल 2022

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खटमल मारने के बाद में ट्रंक में पुराने काग़ज़ात देख रहा था कि सईद भाई जान की तस्वीर मिल गई। मेज़ पर एक ख़ाली फ़्रेम पड़ा था....... मैंने इस तस्वीर से उस को पुर कर दिया और कुर्सी पर बैठ कर धोबी का इंतिज़ार करने लगा।

हर इतवार को मुझे इसी तरह इंतिज़ार करना पड़ता था क्योंकि हफ़्ते की शाम को मेरे धुले हुए कपड़ों का स्टाक ख़त्म हो जाता था....... मुझे स्टाक तो नहीं कहना चाहिए इस लिए कि मुफ़्लिसी के उस ज़माने में मेरे सिर्फ़ इतने कपड़े थे जो बमुश्किल छः सात दिन तक मेरी वज़ादारी क़ायम रख सकते थे।

मेरी शादी की बातचीत होरही थी और इस सिलसिले में पिछले दो तीन इतवारों से में माहिम जा रहा है। धोबी शरीफ़ आदमी था। यानी धुलाई न मिलने के बावजूद हर इतवार को बाक़ायदगी के साथ पूरे दस बजे मेरे कपड़े ले आता था, लेकिन फिर भी मुझे खटका था कि ऐसा न हो मेरी ना-दहिंदगी से तंग आकर किसी रोज़ मेरे कपड़े चोर बाज़ार में फ़रोख़्त करदे और मुझे अपनी शादी की बातचीत में बग़ैर कपड़ों के हिस्सा लेना पड़े जो कि ज़ाहिर है बहुत ही मायूब बात होती।

खोली में मरे हुए खटमलों की निहायत ही मकरूह बू फैली हुई थी। मैं सोच रहा था कि उसे किस तरह दबाऊं कि धोबी आगया। “साब सलाम।” करके उस ने अपनी गठड़ी खोली और मेरे गिनती के कपड़े मेज़ पर रख दिए। ऐसा करते हुए उस की नज़र सईद भाई जान की तस्वीर पर पड़ी। एक दम चौंक कर उस ने उस को ग़ौर से देखना शुरू कर दिया। और एक अजीब और ग़रीब आवाज़ हलक़ से निकाली। “है है है हैं?”

मैंने इस से पूछा। “क्या बात है धोबी?”

धोबी की नज़रें उस तस्वीर पर जमी रहीं। “ये तो साईद शालीम बालिशटर है?”

“कौन?”

धोबी ने मेरी तरफ़ देखा और बड़े वसूक़ से कहा। “साईद शालीम बालिशटर।”

“तुम जानते हो इन्हें?”

धोबी ने ज़ोर से सर हिलाया। “हाँ....... दो भाई होता....... उधर कोलाबा में इन का कोठी होता....... साईद शालीम बालिशटर....... मैं इन का कपड़ा धोता होता।”

मैंने सोचा ये दो बरस पहले की बात होगी क्योंकि सईद हसन और मोहम्मद हसन भाई जान ने फिजी आईलैंड जाने से पहले तक़रीबन एक बम्बे में प्रैक्टिस की थी। चुनांचे मैंने उस से कहा। “दो बरस पहले की बात करते हो तुम।”

धोबी ने ज़ोर से सर हिलाया। “हाँ....... साईद शालीम बालिशटर जब गया तो हम को एक पगड़ी दिया....... एक धोती दिया.... एक कुर्ता दिया.... नया.... बहुत अच्छा लोग होता.... एक का दाढ़ी होता.... ये बड़ा।” उस ने हाथ से दाढ़ी की लंबाई बताई और सईद भाई जान की तस्वीर की तरफ़ इशारा करके कहा: “ये छोटा होता....... इस का तीन बुलवा लोग होता.... दो लड़का, एक लड़की.... हमारे संग बहुत खेलता होता.... कोलाबे में कोठी होता.... बहुत बड़ा....... ”

मैंने कहा। “धोबी ये मेरे भाई हैं।”

धोबी ने हलक़ से अजीब-ओ-ग़रीब आवाज़ निकाली। “है है है हैं?.... साईद शालीम बालिशटर??”

मैंने उस की हैरत दूर करने की कोशिश की और कहा। “ये तस्वीर सईद हसन भाई जान की है.... दाढ़ी वाले मोहम्मद हसन हैं.... हम सब से बड़े।”

धोबी ने मेरी तरफ़ घूर के देखा, फिर मेरी खोली की ग़लाज़त का जायज़ा लिया.... एक छोटी सी कोठड़ी थी बिजली लाईट से महरूम। एक मेज़ था। एक कुर्सी और एक टाट की कोट जिस में हज़ारहा खटमल थे। धोबी को यक़ीन नहीं आता था कि मैं साईद शालीम बालिशटर का भाई हूँ। लेकिन जब मैंने उस को उन की बहुत सी बातें बताएं तो उस ने सर को अजीब तरीक़े से जुंबिश दी और कहा। “साईद शालीम बालिशटर कोलाबे में रहता और तुम इस खोली में!”

मैंने बड़े फ़ल्सफ़ियाना अंदाज़ में कहा। “दुनिया के यही रंग हैं धोबी....... कहीं धूप कहीं छाओं.... पाँच उंगलियां एक जैसी नहीं होतीं।”

हाँ साब....... तुम बरोबर कहता है।” ये कह कर धोबी ने गठड़ी उठाई और बाहर जाने लगा। मुझे उस के हिसाब का ख़्याल आया। जेब में सिर्फ़ आठ आने थे जो शादी की बातचीत के सिलसिले में माहिम तक आने जाने के लिए बमुश्किल काफ़ी थे। सिर्फ़ ये बताने के लिए मेरी नीयत साफ़ है मैंने उसे ठहराया और कहा। “धोबी....... कपड़ों का हिसाब याद रखना....... ख़ुदा मालूम कितनी धलाईआं हो चुकी हैं।”

धोबी ने अपनी धोती का लॉंग दरुस्त किया और कहा। “साब हम हिसाब नहीं रखते....... साईद शालीम बालिशटर का एक बरस काम किया....... जो दे दिया, ले लिया....... हम हिसाब जानते ही न हैं।”

ये कह वो चला गया और मैं शादी की बातचीत के सिलसिले में माहिम जाने के लिए तैय्यार होने लगा।

बातचीत कामयाब रही....... मेरी शादी होगई। हालात भी बेहतर होगए और मैं स्कैंड पीर ख़ान स्ट्रीट की खोली से जिस का किराया नौ रुपय माहवार था क्लीयर रोड के एक फ़्लैट में जिस का किराया पैंतीस रुपय माहवार था, उठ आया और धोबी को माह बमाह बाक़ायदगी से उस की धुलाइयों के दाम मिलने लगे।

धोबी ख़ुश था कि मेरे हालात पहले की बनिसबत बेहतर हैं चुनांचे उस ने मेरी बीवी से कहा। “बेगम साब....... साब का भाई साईद शालीम बालिशटर बहुत बड़ा आदमी होता....... उधर कोलाबा में रहता होता....... जब गया तो हम को एक पगड़ी, एक धोती, एक कुर्ता दिया होता....... तुम्हारा साब भी एक दिन बड़ा आदमी बनता हुआ” मैं अपनी बीवी को तस्वीर वाला क़िस्सा सुना चुका था और उस को ये भी बता चुका था कि मुफ़लिसी के ज़माने में कितनी दरिया दिल्ली से धोबी ने मेरा साथ दिया था....... जब दे दिया, जो दे दिया। उस ने कभी शिकायत की ही न थी....... लेकिन मेरी बीवी को थोड़े अर्से के बाद ही इस से ये शिकायत पैदा होगई कि वो हिसाब नहीं करता। मैंने इस से कहा। “चार बरस मेरा काम करता रहा....... उस ने कभी हिसाब नहीं किया।”

जवाब ये मिला। “हिसाब क्यों करता....... वैसे दोगुने चौगुने वसूल कर लेता होगा।”

“वो कैसे?”

“आप नहीं जानते.... जिन के घरों में बीवीयां नहीं होतीं उन को ऐसे लोग बेवक़ूफ़ बनाना जानते हैं।”

क़रीब क़रीब हर महीने धोबी से मेरी बीवी की चख़ चख़ होती थी कि वो कपड़ों का हिसाब अलग अपने पास क्यों नहीं रखता। वो बड़ी सादगी से सिर्फ़ इतना कह देता। “बेगम साब....... हम हिसाब जानत नाहीं। तुम झूट नाहीं बोलतेगा .......साईद शालीम बालिशटर जो तुम्हारे साब का भाई होता....... हम एक बरस उस का काम क्या होता....... बेगम साब बोलता धोबी तुम्हारा इतना पैसा हुआ....... हम बोलता, ठीक है!”

एक महीने ढाई सौ कपड़े धुलाई में गए। मेरी बीवी ने आज़माने के लिए इस से कहा। “धोबी इस महीने साठ कपड़े हुए।”

इस ने कहा। “ठीक है....... बेगम साब, तुम झूट नाहीं बोलेगा।”

मेरी बीवी ने साठ कपड़ों के हिसाब से जब उस को दाम दिए तो उस ने माथे के साथ रुपय छुवा कर सलाम किया और चला गया।

शादी के दो बरस बाद मैं दिल्ली चला गया। डेढ़ साल वहां रहा, फिर वापस बंबई आगया और माहिम में रहने लगा। तीन महीने के दौरान में हम ने चार धोबी तबदील किए क्योंकि बेहद ईमान और झगड़ालू थे। हर धुलाई पर झगड़ा खड़ा हो जाता था। कभी कपड़े कम निकलते थे, कभी धुलाई निहायत ज़लील होती थी। हमें अपना पुरानी धोबी याद आने लगा। एक रोज़ जब कि हम बिलकुल बग़ैर धोबी के रह गए थे वो अचानक आगया और कहने लगा। “साब को हम ने तक दिन बस में देखा.... हम बोला, ऐसा कैसा....... साब तो दिल्ली चला गया था....... हम ने इधर बाई ख़ला में तपास किया। छापा वाला बोला, उधर माहिम में तपास करो....... बाजू वाली चाली में साब का दोस्त होता....... उस से पूछा और आगया।”

हम बहुत ख़ुश हुए और हमारे कपड़ों के दिन हंसी ख़ुशी गुज़रने लगे।

कांग्रस बरसर-ए-इक्तदार आई तो इम्तिना-ए-शराब का हुक्म नाफ़िज़ होगया। अंग्रेज़ी शराब मिलती थी लेकिन देसी शराब की कशीद और फ़रोख़्त बिलकुल बंद होगई। निन्नानवे फ़ीसदी धोबी शराब के आदी थे.... दिन भर पानी में रहने के बाद शाम को पाओ आध पाओ शराब उन की ज़िंदगी का जुज़्व बन चुकी थी....... हमारा धोबी बीमार होगया। इस बीमारी का ईलाज उस ने उस ज़हरीली शराब से किया जो नाजायज़ तौर पर कशीद करके छुपे चोरी बिकती थी। नतीजा ये हुआ कि उस के मादे में ख़तरनाक गड़बड़ पैदा होगई जिस ने उस को मौत के दरवाज़े तक पहुंचा दिया।

मैं बेहद मसरूफ़ था। सुबह छः बजे घर से निकलता था और रात को दस साढ़े दस बजे लौटता था। मेरी बीवी को जब उस की ख़तरनाक बीमारी का इल्म हुआ तो वो टैक्सी लेकर उस के घर गई। नौकर और शोफ़र की मदद से उस को गाड़ी में बिठाया और डाक्टर के पास ले गई। डाक्टर बहुत मुतअस्सिर हुआ चुनांचे उस ने फ़ीस लेने से इनकार कर दिया। लेकिन मेरी बीवी ने कहा। “डाक्टर साहिब, आप सारा सवाब हासिल नहीं कर सकते।”

डाक्टर मुस्कुराया। “तो आधा आधा कर लीजीए।”

डाक्टर ने आधी फ़ीस क़बूल करली।

धोबी का बाक़ायदा ईलाज हुआ। मादे की तकलीफ़ चंद इंजैक्शनों ही से दूर होगई। नक़ाहत थी, वो आहिस्ता आहिस्ता मुक़व्वी दवाओं के इस्तिमाल से ख़त्म होगई। चंद महीनों के बाद वो बिलकुल ठीक ठाक था और उठते बैठते हमें दुआएं देता था। “भगवान साब को साईद शालीम बालिशटर बनाए....... उधर कोलाबे में साब रहने को जाये....... बावा लोग हैं.... बहुत बहुत पैसा हो.... बेगम साब धोबी को लेने आया.... मोटर में.... उधर किले(क़िले) में बहुत बड़े डाक्टर के पास ले गया जिस के पास मेम होता....... भगवान बेगम साब को ख़ुस रखे....... ”

कई बरस गुज़र गए। इस दौरान में कई सयासी इन्क़िलाब आए। धोबी बिलानागा इतवार को आता रहा। उस की सेहत अब बहुत अच्छी थी। इतना अर्सा गुज़रने पर भी वो हमारा सुलूक नहीं भूला था। हमेशा दुआएं देता था। शराब क़तई तौर पर छूट चुकी थी। शुरू में वो कभी कभी उसे याद किया करता था। पर अब नाम तक न लेता था। सारा दिन पानी में रहने के बाद थकन दूर करने के लिए अब उसे दारू की ज़रूरत महसूस नहीं होती थी।

हालात बहुत ज़्यादा बिगड़ गए थे। बटवारा हुआ तो हिंदू मुस्लिम फ़सादाद शुरू होगए। हिंदूओं के इलाक़ों में मुस्लमान और मुस्लमानों के इलाक़ों में हिंदू दिन की रोशनी और रात की तारीकी में हलाक किए जाने लगे। मेरी बीवी लाहौर चली गई।

जब हालात और ज़्यादा ख़राब हुए तो मैंने धोबी से कहा। “देखो धोबी अब तुम काम बंद करदो....... ये मुस्लमानों का मुहल्ला है, ऐसा न हो कोई तुम्हें मार डाले।”

धोबी मुस्कुराया। “साब अपुन को कोई नहीं मारता।”

हमारे मुहल्ले में कई वारदातें हुईं मगर धोबी बराबर आता रहा।

एक इतवार मैं घर में बैठा अख़बार पढ़ रहा था। खेलों के सफ़्हे पर क्रिकेट के मैचों का स्कोर दर्ज था और पहले सफ़हात पर फ़सादाद के शिकार हिंदूओं और मुस्लमानों के आदाद-ओ-शुमार....... मैं इन दोनों की ख़ौफ़नाक मुमासिलत पर ग़ौर कररहा था कि धोबी आगया। कापी निकाल कर मैंने कपड़ों की पड़ताल शुरू करदी तो धोबी ने हंस हंस के बातें शुरू करदीं। “साईद शालीम बालिशटर बहुत अच्छा आदमी होता....... यहां से जाता तो हम को एक पगड़ी, एक धोती, एक कुर्ता दिया होता....... तुम्हारा बेगम साब भी एक दम अच्छा आदमी होता....... बाहर गाम गया है ना?....... अपने मुल्क में?....... उधर कागज लिखो तो हमारा सलाम बोलो....... मोटर लेकर आया हमारी खोली में....... हम को इतना जुलाब आना होता.... डाक्टर ने सोई लगाया....... एक दम ठीक होगया....... उधर कागज लिखो तो हमारा सलाम बोलो....... बोलो राम खिलावन बोलता है, हम को भी कागज लिखो....... ”

मैंने उस की बात काट कर ज़रा तेज़ी से कहा। “धोबी....... दारू शुरू करदी?”

धोबी हंसा “दारू?....... दारू कहाँ से मिलती है साब?”

मैंने और कुछ कहना मुनासिब न समझा। इस ने मैले कपड़ों की गठड़ी बनाई और सलाम करके चला गया।

चंद दिनों में हालात बहुत ही ज़्यादा ख़राब होगए। लाहौर से तार पर तार आने लगे कि सब कुछ छोड़ो और जल्दी चले आओ। मैंने हफ़्ते के रोज़ इरादा करलिया कि इतवार को चल दूंगा। लेकिन मुझे सुबह सवेरे निकल जाना था। कपड़े धोबी के पास थे। मैंने सोचा कर्फ़यू से पहले पहले इस के हाँ जा कर ले आऊं, चुनांचे शाम को विक्टोरिया लेकर महा कुशमी रवाना होगया।

कर्फ़यू के वक़्त में भी एक घंटा बाक़ी था। इस लिए आमद-ओ-रफ़्त जारी थीं। ट्रेनें चल रही थीं। मेरी विक्टोरिया पुल के पास पहुंची तो एक दम शोर बरपा हुआ। लोग अंधा धुंद भागने लगे। ऐसा मालूम हुआ जैसे सांडों की लड़ाई हो रही ये....... हुजूम छदरा हुआ तो देखा, दो भैंसों के पास बहुत से धोबी लाठीयां हाथ में लिए नाच रहे हैं और तरह तरह की आवाज़ें निकाल रहे हैं। मुझे उधर ही जाना था मगर विक्टोरिया वाले ने इनकार कर दिया। मैंने उस को किराया अदा किया और पैदल चल पड़ा....... जब धोबियों के पास पहुंचा तो वो मुझे देख कर ख़ामोश होगए।

मैंने आगे बढ़ कर एक धोबी से पूछा। “राम खिलावन कहाँ रहता है?”

एक धोबी जिस के हाथ में लाठी थी झूमता हुआ उस धोबी के पास आया जिस से मैंने सवाल किया। “क्या पूछत है?”

“पूछत है राम खिलावन कहाँ रहता है?”

शराब से धुत धोबी ने क़रीब क़रीब मेरे ऊपर चढ़ कर पूछा। “तुम कौन है?”

“मैं?....... राम खिलावन मेरा धोबी है।”

“राम खिलावन तहार धोबी है....... तो किस धोबी का बच्चा है।”

एक चिल्लाया। “हिंदू धोबी या मुस्लिमीन धोबी का।”

तमाम धोबी जो शराब के नशे में चूर थे मक्के तान्तय और लाठीयां घुमाते मेरे इर्दगिर्द जमा होगए। मुझे उन के सिर्फ़ एक सवाल का जवाब देना था। मुस्लमान हूँ या हिंदू?....... मैं बेहद ख़ौफ़ज़दा होगया। भागने का सवाल ही पैदा नहीं होता था। क्योंकि मैं इन में घिरा हुआ था। नज़दीक कोई पुलिस वाला भी नहीं था। जिस को मदद के लिए पुकारता....... और कुछ समझ में न आया तो बेजोड़ अल्फ़ाज़ में उन से गुफ़्तुगू शुरू करदी। “राम खिलावन हिंदू है....... हम पूछता है वो किधर रहता है....... उस की खोली कहाँ है....... दस बरस से वो हमारा धोबी है....... बहुत बीमार था.... हम ने इस का ईलाज कराया था.... हमारी बेगम....... हमारी मेम साहब यहां मोटर लेकर आई थी....... ” यहां तक मैंने कहा कि तो मुझे अपने ऊपर बहुत तरस आया। दिल ही दिल में बहुत ख़फ़ीफ़ हुआ कि इंसान अपनी जान बचाने के लिए कितनी नीची सतह पर उतर आता है इस एहसास ने जुर्रत पैदा करदी चुनांचे मैंने उन से कहा “मैं मुस्लिमीन हूँ।”

“मार डालो....... मार डालो” का शोर बुलंद हुआ।

धोबी जो कि शराब के नशे में धुत था एक तरफ़ देख कर चिल्लाया। “ठहरो....... इसे राम खिलावन मारेगा।”

मैंने पलट कर देखा। राम खिलावन मोटा डंडा हाथ में लिए लड़खड़ा रहा था। इस ने मेरी तरफ़ देखा और मुसलमानों को अपनी ज़बान में गालियां देना शुरू करदीं। डंडा सर तक उठा कर गालियां देता हुआ वो मेरी तरफ़ बढ़ा। मैंने तहक्कुमाना लहजे में कहा। “राम खिलावन।”

राम खिलावन दहाड़ा। “चुप कर बे राम खिलावन के....... ”

मेरी आख़िरी उम्मीद भी डूब गई। जब वो मेरे क़रीब आ पहुंचा तो मैंने ख़ुश्क गले से हौले से कहा। “मुझे पहचानते नहीं राम खिलावन?”

राम खिलावन ने वार करने के लिए डंडा उठाया.... एक दम उस की आँखें सिकुड़ें, फिर फैलें, फिर सिकुड़ें। डंडा हाथ से गिरा कर इस ने क़रीब आकर मुझे ग़ौर से देखा और पुकारा। “साब!” फिर वो अपने साथीयों से मुख़ातब हुआ “ये मुस्लिमीन नहीं....साब है....... बेगम साब का साब....... वो मोटर लेकर आया था.......डाक्टर के पास ले गया था.... ने मेरा जुलाब ठीक किया था।”

राम खिलावन ने अपने साथीयों को बहुत समझाया मगर वो न माने....... सब शराबी थे। तू तू में में शुरू होगई। कुछ धोबी राम खिलावन की तरफ़ होगए और हाथापाई पर नौबत आगई। मैंने मौक़ा ग़नीमत समझा और वहां से खिसक गया।

दूसरे रोज़ सुबह नौ बजे के क़रीब मेरा सामान तैय्यार था। सिर्फ़ जहाज़ के टिक्टों का इंतिज़ार था जो एक दोस्त ब्लैक मार्कीट से हासिल करने गया था।

मैं बहुत बेक़रार था। दिल में तरह तरह के जज़्बात उबल रहे थे। जी चाहता था कि जल्दी टिकट आजाऐं और मैं बंदरगाह की तरफ़ चल दूं। मुझे ऐसा महसूस होता था कि अगर देर होगई तो मेरा फ़्लैट मुझे अपने अंदर क़ैद करलेगा।

दरवाज़ा पर दस्तक हुई। मैंने सोचा टिकट आगए। दरवाज़ा खोला तो बाहर धोबी खड़ा था।

“साब सलाम!”

“सलाम”

“मैं अंदर आ जाऊँ?”

“आओ”

वो ख़ामोशी से अंदर दाख़िल हुआ। गठड़ी खोल कर उस ने कपड़े निकाल पलंग पर रखे। धोती से अपनी आँखें पोंछीं और गुलो गीर आवाज़ में कहा। “आप जा रहे हैं साब?”

“हाँ”

इस ने रोना शुरू कर दिया। “साब, मुझे माफ़ करदो....... ये सब दारू का क़ुसूर था....... और दारू....... दारू आजकल मुफ़्त मिलती है....... सेठ लोग बांटता है कि पी कर मुस्लिमीन को मारो....... मुफ़्त की दारू कौन छोड़ता है साब....... हम को माफ़ करदो.... हम पिए ला था....... साईद शालीम बालिशटर हमारा बहुत मेहरबान होता.... हम को एक पगड़ी, एक धोती, एक कुर्ता दिया होता....... तुम्हारा बेगम साब हमारा जान बचाया होता.... जुलाब से हम मरता होता.... वो मोटर लेकर आता। डाक्टर के पास ले जाता। इतना पैसा ख़र्च करता.... मुल्क मुल्क जाता.... बेगम साब से मत बोलना। राम खिलावन....... ”

उस की आवाज़ गले में रन्ध गई। गठड़ी की चादर कांधे पर डाल कर चलने लगा तो मैंने रोका “ठहरो राम खिलावन।”

लेकिन वो धोती का लॉंग सँभालता तेज़ी से बाहर निकल गया।

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मैं जब हस्पताल में दाख़िल हुआ तो छट्ठे रोज़ मेरी हालत बहुत ग़ैर होगई। कई रोज़ तक बे-होश रहा। डाक्टर जवाब दे चुके थे लेकिन ख़ुदा ने अपना करम किया और मेरी तबीयत सँभलने लगी। इस दौरान की मुझे अक्सर बातें या

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चुग़द

8 अप्रैल 2022
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लड़कों और लड़कियों के मआशिक़ों का ज़िक्र हो रहा था। प्रकाश जो बहुत देर से ख़ामोश बैठा अंदर ही अंदर बहुत शिद्दत से सोच रहा था, एक दम फट पड़ा। सब बकवास है, सौ में से निन्नानवे मआशिक़े निहायत ही भोंडे और लचर

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जानकी

8 अप्रैल 2022
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पूना में रेसों का मौसम शुरू होने वाला था कि पिशावर से अज़ीज़ ने लिखा कि मैं अपनी एक जान पहचान की औरत जानकी को तुम्हारे पास भेज रहा हूँ, उस को या तो पूना में या बंबई में किसी फ़िल्म कंपनी में मुलाज़मत करा

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तरक़्क़ी पसंद

8 अप्रैल 2022
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जोगिंदर सिंह के अफ़साने जब मक़बूल होना शुरू हुए तो उसके दिल में ख़्वाहिश पैदा हुई कि वो मशहूर अदीबों और शाइरों को अपने घर बुलाए और उन की दावत करे। उस का ख़याल था कि यूं उस की शौहरत और मक़बूलियत और भी ज़्

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दीवाना शायर

8 अप्रैल 2022
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[अगर मुक़द्दस हक़ दुनिया की मुतजस्सिस निगाहों से ओझल कर दिया जाये। तो रहमत हो उस दीवाने पर जो इंसानी दिमाग़ पर सुनहरा ख़्वाब तारी कर दे।] मैं आहों का ब्योपारी हूँ, लहू की शायरी मेरा काम है, चमन की मा

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निक्की

8 अप्रैल 2022
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तलाक़ लेने के बाद वो बिलकुल नचनत होगई थी। अब वो हर रोज़ की वानिता कुल कुल और मार कटाई नहीं थे। निक्की बड़े आराम-ओ-इत्मिनान से अपना गुज़र औक़ात कर रही थी। ये तलाक़ पूरे दस बरस के बाद हुई थी। निक्की का श

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परी

8 अप्रैल 2022
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कश्मीरी गेट दिल्ली के एक फ़्लैट में अनवर की मुलाक़ात परवेज़ से हुई। वो क़तअन मुतअस्सिर न हुआ। परवेज़ निहायत ही बेजान चीज़ थी। अनवर ने जब उस की तरफ़ देखा और उस को आदाब अर्ज़ कहा तो उस ने सोचा “ये क्या है औरत

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पसीना

8 अप्रैल 2022
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“मेरे अल्लाह!............... आप तो पसीने में शराबोर हो रहे हैं।” “नहीं। कोई इतना ज़्यादा तो पसीना नहीं आया।” “ठहरिए में तौलिया ले कर आऊं।” “तौलिए तो सारे धोबी के हाँ गए हुए हैं।” “तो मैं अपने दोपट्

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पढ़े कलिमा

8 अप्रैल 2022
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ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह...... आप मुस्लमान हैं यक़ीन करें मैं जो कुछ कहूंगा, सच्च कहूंगा। पाकिस्तान का इस मुआमले से कोई तअल्लुक़ नहीं। क़ाइद-ए-आज़म जिन्नाह के लिए मैं जान देने के लिए तैय

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पीरन

8 अप्रैल 2022
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ये उस ज़माने की बात है जब मैं बेहद मुफ़लिस था। बंबई में नौ रुपये माहवार की एक खोली में रहता था जिस में पानी का नल था न बिजली। एक निहायत ही ग़लीज़ कोठड़ी थी जिस की छत पर से हज़ारहा खटमल मेरे ऊपर गिरा करते थ

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पढ़े कलिमा

8 अप्रैल 2022
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ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह...... आप मुस्लमान हैं यक़ीन करें मैं जो कुछ कहूंगा, सच्च कहूंगा। पाकिस्तान का इस मुआमले से कोई तअल्लुक़ नहीं। क़ाइद-ए-आज़म जिन्नाह के लिए मैं जान देने के लिए तैय

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फ़रिश्ता

8 अप्रैल 2022
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सुर्ख़ खुरदरे कम्बल में अताउल्लाह ने बड़ी मुश्किल से करवट बदली और अपनी मुंदी हुई आँखें आहिस्ता आहिस्ता खोलीं। कुहरे की दबीज़ चादर में कई चीज़ें लिपटी हुई थीं जिन के सही ख़द्द-ओ-ख़ाल नज़र नहीं आते थे। एक लं

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फाहा

8 अप्रैल 2022
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गोपाल की रान पर जब ये बड़ा फोड़ा निकला तो इस के औसान ख़ता हो गए। गरमियों का मौसम था। आम ख़ूब हुए थे। बाज़ारों में, गलियों में, दुकानदारों के पास, फेरी वालों के पास, जिधर देखो, आम ही आम नज़र आते। लाल, पीले

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फुंदने

8 अप्रैल 2022
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कोठी से मुल्हक़ा वसीअ-ओ-अरीज़ बाग़ में झाड़ियों के पीछे एक बिल्ली ने बच्चे दिए थे, जो बिल्ला खा गया था। फिर एक कुतिया ने बच्चे दिए थे जो बड़े बड़े हो गए थे और दिन रात कोठी के अंदर बाहर भौंकते और गंदगी बिखेर

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बलवंत सिंह मजीठिया

8 अप्रैल 2022
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शाह साहब से जब मेरी मुलाक़ात हुई तो हम फ़ौरन बे-तकल्लुफ़ हो गए। मुझे सिर्फ़ इतना मालूम था कि वो सय्यद हैं और मेरे दूर-दराज़ के रिश्तेदार भी हैं। वो मेरे दूर या क़रीब के रिश्तेदार कैसे हो सकते थे, इस के मु

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बाई बाई

8 अप्रैल 2022
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नाम उस का फ़ातिमा था पर सब उसे फातो कहते थे बानिहाल के दुर्रे के उस तरफ़ उस के बाप की पन-चक्की थी जो बड़ा सादा लौह मुअम्मर आदमी था। दिन भर वो इस पन चक्की के पास बैठी रहती। पहाड़ के दामन में छोटी सी जगह थ

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बादशाहत का ख़ात्मा

8 अप्रैल 2022
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टेलीफ़ोन की घंटी बिजी। मनमोहन पास ही बैठा था। उस ने रीसीवर उठाया और कहा “हेलो....... फ़ौर फ़ौर फ़ौर फाईव सेवन” दूसरी तरफ़ से पतली सी निस्वानी आवाज़ आई। “सोरी....... रोंग नंबर” मनमोहन ने रीसीवर रख दिया और

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बिलाउज़

8 अप्रैल 2022
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कुछ दिनों से मोमिन बहुत बेक़रार था। उस को ऐसा महसूस होता था कि इस का वजूद कच्चा फोड़ा सा बन गया था। काम करते वक़्त, बातें करते हुए हत्ता कि सोचने पर भी उसे एक अजीब क़िस्म का दर्द महसूस होता था। ऐसा दर्द

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सरकण्डों के पीछे

8 अप्रैल 2022
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कौन सा शहर था, इस के मुतअल्लिक़ जहां तक में समझता हूँ, आप को मालूम करने और मुझे बताने की कोई ज़रूरत नहीं ।बस इतना ही कह देना काफ़ी है कि वो जगह जो इस कहानी से मुतअल्लिक़ है, पेशावर के मुज़ाफ़ात में थी। सरहद

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मिसिज़ गुल

8 अप्रैल 2022
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मैंने जब उस औरत को पहली मर्तबा देखा तो मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मैंने लेमूँ निचोड़ ने वाला खटका देखा है। बहुत दुबली पतली, लेकिन बला की तेज़। उस का सारा जिस्म सिवाए आँखों के इंतिहाई ग़ैर निस्वानी था। ये आँख

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मलबे का ढेर

8 अप्रैल 2022
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कामिनी के ब्याह को अभी एक साल भी न हुआ था कि उस का पति दिल के आरिज़े की वजह से मर गया और अपनी सारी जायदाद उस के लिए छोड़ गया। कामिनी को बहुत सदमा पहुंचा, इस लिए कि वो जवानी ही में बेवा हो गई थी। उस की

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महमूदा

8 अप्रैल 2022
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मुस्तक़ीम ने महमूदा को पहली मर्तबा अपनी शादी पर देखा। आरसी मसहफ़ की रस्म अदा हो रही थी कि अचानक उस को दो बड़ी बड़ी.......ग़ैर-मामूली तौर पर बड़ी आँखें दिखाई दीं.......ये महमूदा की आँखें थीं जो अभी तक कुंवार

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मिसेज़ डी सिल्वा

8 अप्रैल 2022
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बिलकुल आमने सामने फ़्लैट थे। हमारे फ़्लैट का नंबर तेरह था। उस के फ़्लैट का चौदह। कभी कोई सामने का दरवाज़ा खटखटाता तो मुझे यही मालूम होता कि हमारे दरवाज़े पर दस्तक होरही है। इसी ग़लतफ़हमी में जब मैंने एक

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मेरा हमसफ़र

9 अप्रैल 2022
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प्लेटफार्म पर शहाब, सईद और अब्बास ने एक शोर मचा रखा था। ये सब दोस्त मुझे स्टेशन पर छोड़ने के लिए आए थे, गाड़ी प्लेटफार्म को छोड़ कर आहिस्ता आहिस्ता चल रही थी कि शहाब ने बढ़ कर पाएदान पर चढ़ते हुए मुझ से

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मेरा और उसका इंतिक़ाम

9 अप्रैल 2022
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घर में मेरे सिवा कोई मौजूद नहीं था। पिता जी कचहरी में थे और शाम से पहले कभी घर आने के आदी न थे। माता जी लाहौर में थीं और मेरी बहन बिमला अपनी किसी सहेली के हाँ गई थी! मैं तन्हा अपने कमरे में बैठा किताब

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वह लड़की

9 अप्रैल 2022
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सवा-चार बज चुके थे लेकिन धूप में वही तमाज़त थी जो दोपहर को बारह बजे के क़रीब थी। उस ने बालकनी में आ कर बाहर देखा तो उसे एक लड़की नज़र आई जो बज़ाहिर धूप से बचने के लिए एक साया-दार दरख़्त की छांव में आलती पाल

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वो ख़त जो पोस्ट न किये गए

9 अप्रैल 2022
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हव्वा की एक बेटी के चंद ख़ुतूत जो उस ने फ़ुर्सत के वक़्त मुहल्ले के चंद लोगों को लिखे। मगर इन वजूह की बिना पर पोस्ट न किए गए जो इन ख़ुतूत में नुमायां नज़र आती हैं। (नाम और मुक़ाम फ़र्ज़ी हैं) पहला ख़त म

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शादी

9 अप्रैल 2022
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जमील को अपना शैफर लाइफ-टाइम क़लम मरम्मत के लिए देना था। उस ने टेलीफ़ोन डायरेक्ट्री में शैफर कंपनी का नंबर तलाश किया। फ़ोन करने से मालूम हुआ कि उन के एजेंट मैसर्ज़ डी, जे, समतोइर हैं जिन का दफ़्तर ग्रीन

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सड़क के किनारे

9 अप्रैल 2022
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“यही दिन थे......... आसमान उस की आँखों की तरह ऐसा ही नीला था जैसा कि आज है। धुला हुआ, निथरा हुआ......... और धूप भी ऐसी ही कनकनी थी......... सुहाने ख़्वाबों की तरह। मिट्टी की बॉस भी ऐसी ही थी जैसी कि इ

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शारदा

9 अप्रैल 2022
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नज़ीर ब्लैक मार्कीट से विस्की की बोतल लाने गया। बड़क डाकख़ाने से कुछ आगे बंदरगाह के फाटक से कुछ इधर सिगरेट वाले की दुकान से उस को स्काच मुनासिब दामों पर मिल जाती थी। जब उस ने पैंतीस रुपये अदा करके काग़

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सिराज

9 अप्रैल 2022
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नागपाड़ा पुलिस चौकी के उस तरफ़ जो छोटा सा बाग़ है। उस के बिलकुल सामने ईरानी के होटल के बाहर, बिजली के खंबे के साथ लग कर ढूंढ़ो खड़ा था। दिन ढले, मुक़र्ररा वक़्त पर वो यहां आ जाता और सुबह चार बजे तक अपने धंद

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हज्ज-ए-अकबर

9 अप्रैल 2022
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इम्तियाज़ और सग़ीर की शादी हुई तो शहर भर में धूम मच गई। आतिश बाज़ियों का रिवाज बाक़ी नहीं रहा था मगर दूल्हे के बाप ने इस पुरानी अय्याशी पर बे-दरेग़ रुपया सर्फ़ किया। जब सग़ीर ज़ेवरों से लदे फंदे सफ़ैद बुर्र

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सजदा

9 अप्रैल 2022
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गिलास पर बोतल झुकी तो एक दम हमीद की तबीयत पर बोझ सा पड़ गया। मलिक जो उसके सामने तीसरा पैग पी रहा था फ़ौरन ताड़ गया कि हमीद के अंदर रुहानी कश्मकश पैदा होगई है। वो हमीद को सात बरस से जानता था, और इन सात बर

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लाइसेंस

9 अप्रैल 2022
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अब्बू कोचवान बड़ा छैल छबीला था। उस का ताँगा घोड़ा भी शहर में नंबर वन था। कभी मामूली सवारी नहीं बिठाता था। उस के लगे बंधे गाहक थे जिन से उस को रोज़ाना दस पंद्रह रुपय वसूल हो जाते थे जो अब्बू के लिए काफ़ी थ

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हाफ़िज़ हुसैन दीन

9 अप्रैल 2022
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हाफ़िज़ हुसैन दीन जो दोनों आँखों से अंधा था, ज़फ़र शाह के घर में आया। पटियाले का एक दोस्त रमज़ान अली था, जिस ने ज़फ़र शाह से उस का तआरुफ़ कराया। वो हाफ़िज़ साहिब से मिल कर बहुत मुतअस्सिर हुआ। गो उन की

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संतर पंच

9 अप्रैल 2022
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मैं लाहौर के एक स्टूडियो में मुलाज़िम हुआ जिस का मालिक मेरा बंबई का दोस्त था उस ने मेरा इस्तिक़बाल क्या मैं उस की गाड़ी में स्टूडियो पहुंचा था बग़लगीर होने के बाद उस ने अपनी शराफ़त भरी मोंछों को जो ग़ालिबन

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शैदा

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शैदे के मुतअल्लिक़ अमृतसर में ये मशहूर था कि वो चट्टान से भी टक्कर ले सकता है उस में बला की फुर्ती और ताक़त थी गो तन-ओ-तोश के लिहाज़ से वो एक कमज़ोर इंसान दिखाई देता था लेकिन अमृतसर के सारे गुंडे उस से ख़ौ

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राम खेलावन

9 अप्रैल 2022
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खटमल मारने के बाद में ट्रंक में पुराने काग़ज़ात देख रहा था कि सईद भाई जान की तस्वीर मिल गई। मेज़ पर एक ख़ाली फ़्रेम पड़ा था....... मैंने इस तस्वीर से उस को पुर कर दिया और कुर्सी पर बैठ कर धोबी का इंतिज़ार

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रहमत-ए-खुदा-वंदी के फूल

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ज़मींदार, अख़बार में जब डाक्टर राथर पर रहमत-ए-ख़ुदा-वंदी के फूल बरसते थे तो यार दोस्तों ने ग़ुलाम रसूल का नाम डाक्टर राथर रख दिया। मालूम नहीं क्यूँ, इस लिए कि ग़ुलाम रसूल को डाक्टर राथर से कोई निसबत नह

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मिस फ़र्या

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शादी के एक महीने बाद सुहेल परेशान होगया। उस की रातों की नींद और दिन का चैन हराम हो गया। उस का ख़याल था कि बच्चा कम अज़ कम तीन साल के बाद पैदा होगा मगर अब एक दम ये मालूम करके उस के पांव तले की ज़मीन निक

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मिस अडना जैक्सन

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कॉलिज की पुरानी प्रिंसिपल के तबादले का एलान हुआ, तालिबात ने बड़ा शोर मचाया। वो नहीं चाहती थीं कि उन की महबूब प्रिंसिपल उन के कॉलेज से कहीं और चली जाये। बड़ा एहतिजाज हुआ। यहाँ तक कि चंद लड़कियों ने भूक हड़

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बुड्ढ़ा खूसट

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ये जंग-ए-अज़ीम के ख़ातमे के बाद की बात है जब मेरा अज़ीज़ तरीन दोस्त लैफ़्टीनैंट कर्नल मोहम्मद सलीम शेख़ (अब) ईरान इराक़ और दूसरे महाज़ों से होता हुआ बमबई पहुंचा। उस को अच्छी तरह मालूम था, मेरा फ़्लैट कहाँ ह

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शह नशीं पर

9 अप्रैल 2022
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वो सफ़ैद सलमा लगी साड़ी में शह-नशीन पर आई और ऐसा मालूम हुआ कि किसी ने नक़रई तारों वाला अनार छोड़ दिया है। साड़ी के थिरकते हूए रेशमी कपड़े पर जब जगह जगह सलमा का काम टिमटिमाने लगता तो मुझे जिस्म पर वो तमाम

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चुग़द

9 अप्रैल 2022
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लड़कों और लड़कियों के मआशिक़ों का ज़िक्र हो रहा था। प्रकाश जो बहुत देर से ख़ामोश बैठा अंदर ही अंदर बहुत शिद्दत से सोच रहा था, एक दम फट पड़ा। सब बकवास है, सौ में से निन्नानवे मआशिक़े निहायत ही भोंडे और लचर

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