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राम नरेश पाठक के बारे में

रामनरेश पाठक छायावाद पूर्व की खड़ी बोली के महत्वपूर्ण कवि माने जाते । आरंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद स्वाध्याय से हिंदी अंग्रेजी का ज्ञान प्राप्त किया। उन्होंने उस समय के कवियों के प्रिय विषय समाज सुधार के स्थान पर रोमांटिक प्रेम की कविता का विषय बनाया। आज की इस पोस्ट में हम हिंदी के प्रसिद्ध कवि रामनरेश त्रिपाठी का जीवन परिचय पढ़ेंगे तो आपको इस पोस्ट को पूरा पढ़ना है और अंत तक पढ़ना है और आपको अंत में बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न दिए गए हैं और उनके उत्तर भी दिए गए हैं। मननशील, विद्वान और परिश्रमी थे। हिंदी के प्रचार-प्रसार और साहित्य-सेवा की भावना से प्रेरित होकर इन्होंने 'हिंदी मंदिर' की स्थापना की। इन्होंने अपनी कृतियों का प्रकाशन भी स्वयं ही किया। ये दिवेदी युग के उन साहित्यकारों में से हैं, जिन्होंने द्विवेदी-मंडल के प्रभाव से पृथक रहकर अपने मौलिक प्रतिभा से साहित्य के क्षेत्र में कई कार्य किए। इन्होंने भाव प्रधान काव्य की रचना की।। राष्ट्रीयता, देश-प्रेम, सेवा, त्याग आदि भावना प्रधान विषयों पर इन्होंने उत्कृष्ट साहित्य की रचना की। ये हिंदी साहित्य-सम्मेलन, प्रयाग के प्रचार मंत्री भी रहे। सराहनीय कार्य किया। साहित्य की विविध विधाओं पर इनका पूर्ण अधिकार था। कविता के आदर्श और सूक्ष्म सौंदर्य को चित्रित करने वाला यह कवि पंचतत्व में विलीन हो गया। भाषा भावानुकूल, प्रभाहपूर्ण, सरल खड़ी बोली है। संस्कृत के तत्सम शब्दों एवं सामासिक पदों की भाषा में अधिकता है। शैली सरल, स्पष्ट एवं प्रभाहमयी है। मुख्य रूप से इन्होंने वर्णनात्मक और उपदेशात्मक शैली का प्रयोग किया है। इनका प्रकृति चित्र वर्णनात्मक शैली पर आधारित है। छंद का बंधन इन्होंने स्वीकार नहीं किया है तथा प्राचीन और आधुनिक दोनों ही छंदों में काव्य रचना की है। इन्होंने श्रंगार, शांत और करूण रस का प्रयोग किया है। अनुप्रास, र

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राम नरेश पाठक की पुस्तकें

राम नरेश त्रिपाठी की प्रसिद्ध कविताएँ

राम नरेश त्रिपाठी की प्रसिद्ध कविताएँ

कविता, संस्मरण, साहित्य सभी पर उन्होंने कलम चलाई। अपने जीवन काल में उन्होंने ग्राम गीतों का संकलन करने वाले वह हिंदी के जिसे 'कविता इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए उन्होंने गांव-गांव जाकर, रात-रात भर घरों के पिछवाड़े बैठकर सोहर और विवाह गीतों को सुना और च

2 पाठक
52 रचनाएँ

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राम नरेश त्रिपाठी की प्रसिद्ध कविताएँ

राम नरेश त्रिपाठी की प्रसिद्ध कविताएँ

कविता, संस्मरण, साहित्य सभी पर उन्होंने कलम चलाई। अपने जीवन काल में उन्होंने ग्राम गीतों का संकलन करने वाले वह हिंदी के जिसे 'कविता इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए उन्होंने गांव-गांव जाकर, रात-रात भर घरों के पिछवाड़े बैठकर सोहर और विवाह गीतों को सुना और च

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मैं अथर्व हूँ

मैं अथर्व हूँ

कविता, संस्मरण, साहित्य सभी पर उन्होंने कलम चलाई। अपने जीवन काल में उन्होंने ग्राम गीतों का संकलन करने वाले वह हिंदी के जिसे 'कविता इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए उन्होंने गांव-गांव जाकर, रात-रात भर घरों के पिछवाड़े बैठकर सोहर और विवाह गीतों को सुना

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51 रचनाएँ

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मैं अथर्व हूँ

मैं अथर्व हूँ

कविता, संस्मरण, साहित्य सभी पर उन्होंने कलम चलाई। अपने जीवन काल में उन्होंने ग्राम गीतों का संकलन करने वाले वह हिंदी के जिसे 'कविता इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए उन्होंने गांव-गांव जाकर, रात-रात भर घरों के पिछवाड़े बैठकर सोहर और विवाह गीतों को सुना

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राम नरेश पाठक के लेख

एक अदद गीत के लिए

18 अगस्त 2022
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मैं कहाँ-कहाँ नहीं गया एक अदद गीत के लिए वन, पर्वत, नदी, तड़ाग वृक्ष, झील, निर्झरनी-कूल पंथ पंक, मरू, उर्वर, घाट ताल, ताल चोटियाँ, त्रिशूल वज्र-मौन, विष-बुझे नयन एक अदद गीत के लिए लोक ती

कल्प मन्वंतर चुके यायावरी ढ़ोते

18 अगस्त 2022
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कल्प, मन्वंतर चुके यायावरी ढ़ोते वेद से दिन, उपनिषद सी सांझ का भोगी महाकाव्या यामिनी में सांख्य का योगी श्वेत शतदल पर कठिन यायावरी बोते कल्प, मन्वंतर चुके यायावरी ढ़ोते न्याय से पथ, द्वैघ द

दिन रेगिस्तान, रात और फिर पहाड़ हुई

18 अगस्त 2022
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दिन रेगिस्तान, रात और फिर पहाड़ हुई जंगल कटते, बनते गए रोज अलमीरा बंद हुए वाल्मीकि कालिदास औ' मीरा त्वचा, मांस, रक्त शेष, देह मात्र हाड़ हुई दिन रेगिस्तान, रात और फिर पहाड़ हुई अपराधों की

खिड़की दरवाजे सब बंद ही रहे

18 अगस्त 2022
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खिड़की दरवाजे सब बंद ही रहे घर, आँगन कैसे मकरंद हो गए एक हंसी टुह-टुह पलाश पर टंगी एक हंसी पीत अमलतास पर पगी धमनी के तार-तार मन्द्र ही रहे घर, जंगल कैसे मकरंद हो गए नदियों की रेत लो अबीर ह

मीता! क्या याद कभी आता है नाम

18 अगस्त 2022
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मीता! क्या याद तुम्हें आता है नाम, क्या अब भी पड़ता है मुझसे कोई काम क्या अब भी बजते हैं गंध भरे गीत, आँखों में उगती है रह रह कर प्रीत कौंध कभी जाते क्या फूलों के दाम 'मीता'! क्या याद कभी आता

बजी डफली रे

18 अगस्त 2022
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बजी डफली रे गूँजा वन, पर्वत गूँजी घाटी रे बजी डफली रे उमगी वन-पाँखी उमगी छाती रे बजी डफली रे चंदा सुधि बिसरा नन्हा मन बिखरा बोली हँसुली रे बजी डफली रे पत्थर परदेसी पग पग पर ह

अब अकेला मैं निपट हूँ

18 अगस्त 2022
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रेत पर वह भी रुकी है विष-बुझी पुरवा हवा अब अकेला मैं निपट हूँ आज सर्पिल कुंडली में बंध गया मन एक दीमक-ढूह-सा भारी हुआ तन धमनियों में बस गयी है निविड़ भादो की अमा अब अकेला मैं निपट हूँ अब

बांसुरी बज रही जंगलों में

18 अगस्त 2022
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बांसुरी बज रही जंगलों में चांदनी में नहायी नहायी पर्वतों में मधुर गूँज फैली माधवी बन गयी मुग्ध राफा नृत्यवंतिन पुलक-मधु लताएं छन्द मूर्तित सपन की वलाका रास का जागता है समंदर अम्बपाली ठगी वन

बरसाती रात सावन की

18 अगस्त 2022
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बरसाती रात सावन की अभी आधी न बीती है गगन के पास जब आँखें पता तेरा गयीं लेने लगे तब मुस्कुरा कर तुम पता आना स्वयं देने पिघलती बात सावन की अभी सिहरी न बीती है गली में बादलों को जब भटकते द

दूर कहीं बांसुरी बजाता है

18 अगस्त 2022
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रात है, मौन हैं, सन्नाटा है दूर कहीं बांसुरी बजाता है झील, चांदनी, हवा, तनिक सुनकी नाव डमन सी तैरे बह बहकी गाता है, क्रौंच है, अघाता है दूर कहीं बांसुरी बजाता है रतिक सुगबुगी ज़वा, क्षणिक

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