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रंगमंच

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भाग-3 (वो दुलहन )

"हक से माँगों.....बाबू चन्दन" कॉपी के

बच्चें अपने कमरें में बैठकर बातें कर रहे है।नज़र दरबाजे पर टिकी है।
भानवी:-दीदी दीदी !

इच्छाएं स्वयं  हम निर्धारित करते  है अच्छी  और बुरी  ....असीमित  और प्

यह पंक्तियां माखनलाल चतुर्वेदी जी की पुष्प की अभिलाषा से अभिप्रेरित है बिलासपुर की पुण्य धरा पर

जमाने से है दिल बेखबर  पर 
मन किताब में सबके खत रखता हूँ।

ये जो है अन्दर छुपा मेरे

मेरा बचपन

ना मैं

दबे पाँव जब तुम आए महक उठा तन
 झंकृत हो  उठा जब मन  महक गई कस्तूरी&nbs

भाषा की जब बात होती है तो इसके विभिन्न आयामों में से एक है कि यह एक साधन है:अभिव्यक्ति ,संवाद&n

नृत्य  अर्थात नाचना या डांस।यह विद्युतीय कला स्पंदन है जो शरीर  को आनंद  प्रफुल्

बेअदब ज़माने के किस्सों में
कुछ हुनर बना कर रखो
सुना सको जो तुम अपनो को

तुमको क्या मालूम ऐ रूप
जाने कितना  ख़ुदग़र्ज़ हूँ मैं
मौका परस्ती फितरत त

जीवन , जीवन को हम कई तरीके से अपने हिसाब से जी सकते हैं पर जीवन जीने के भी बहुत से हिसाब होते ह

जीवन में बहुत से रगं होते है और उन्ही से जीवन रंगीन बनता है हर रंग का अपना अलग महत्व होता है जै

मैं  कहती रही  वों सुनते रहे
खामोशी  की चादर ओढ़कर वो गुमशुम रहे
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जन्म के साथ ही माँ का आंचल छूट जायें और पिता मुँह मोड़ लें।पिता का दिया नाम अशुभ दुर्भाग्य! कभी

जन्म के साथ ही विधाता ग्रह नक्षत्रो के साथ काल-चक्र का सहयोग हमारे साथ भेज देंता हैं।ग्रह-नक्षत

डायरी के रथ पर सवार होकर हाथों में कलम की कमान साधे दिल के विचारों और ख्यालातों के तीरों का संध

गणेशा का हुआ है आगमन
दिन रात एक हुए स्वागत में उनके
देवा आए खुशियां लाए ।।<

वो उसका दिल है कि श्मशान
कितने दफन हैं 
जरा देख तो लो
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मुझसे दोस्ती यूँ लम्बी निभाओगे क्या ,
मैं नादान

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