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रेणुका

रामधारी सिंह दिनकर

44 अध्याय
1 व्यक्ति ने लाइब्रेरी में जोड़ा
2 पाठक
25 अप्रैल 2022 को पूर्ण की गई
निःशुल्क

उन्होंने सामाजिक और आर्थिक समानता और शोषण के खिलाफ कविताओं की रचना की। एक प्रगतिवादी और मानववादी कवि के रूप में उन्होंने ऐतिहासिक पात्रों और घटनाओं को ओजस्वी और प्रखर शब्दों का तानाबाना दिया। उनकी महान रचनाओं में रश्मिरथी और परशुराम की प्रतीक्षा शामिल है। उर्वशी को छोड़कर दिनकर की अधिकतर रचनाएँ वीर रस से ओतप्रोत है। भूषण जी के बाद उन्हें वीर रस का सर्वश्रेष्ठ कवि माना जाता है।  

renuka

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पुस्तक के भाग

1

मंगल-आह्वान

12 फरवरी 2022
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भावों के आवेग प्रबल मचा रहे उर में हलचल। कहते, उर के बाँध तोड़ स्वर-स्त्रोत्तों में बह-बह अनजान, तृण, तरु, लता, अनिल, जल-थल को छा लेंगे हम बनकर गान। पर, हूँ विवश, गान से कैसे जग को हाय ! जग

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तांडव

12 फरवरी 2022
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नाचो, हे नाचो, नटवर ! चन्द्रचूड़ ! त्रिनयन ! गंगाधर ! आदि-प्रलय ! अवढर ! शंकर! नाचो, हे नाचो, नटवर ! आदि लास, अविगत, अनादि स्वन, अमर नृत्य - गति, ताल चिरन्तन, अंगभंगि, हुंकृति-झंकृति कर थिरक-थि

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हिमालय

12 फरवरी 2022
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मेरे नगपति! मेरे विशाल! साकार, दिव्य, गौरव विराट्, पौरूष के पुन्जीभूत ज्वाल! मेरी जननी के हिम-किरीट! मेरे भारत के दिव्य भाल! मेरे नगपति! मेरे विशाल! युग-युग अजेय, निर्बन्ध, मुक्त, युग-युग ग

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प्रेम का सौदा

12 फरवरी 2022
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सत्य का जिसके हृदय में प्यार हो, एक पथ, बलि के लिए तैयार हो । फूँक दे सोचे बिना संसार को, तोड़ दे मँझधार जा पतवार को । कुछ नई पैदा रगों में जाँ करे, कुछ अजब पैदा नया तूफाँ करे। हाँ, नईं दु

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कविता की पुकार

12 फरवरी 2022
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आज न उडु के नील-कुंज में स्वप्न खोजने जाऊँगी, आज चमेली में न चंद्र-किरणों से चित्र बनाऊँगी। अधरों में मुस्कान, न लाली बन कपोल में छाउँगी, कवि ! किस्मत पर भी न तुम्हारी आँसू बहाऊँगी । नालन्दा-वैशाल

6

बोधिसत्त्व

12 फरवरी 2022
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सिमट विश्व-वेदना निखिल बज उठी करुण अन्तर में, देव ! हुंकरित हुआ कठिन युगधर्म तुम्हारे स्वर में । काँटों पर कलियों, गैरिक पर किया मुकुट का त्याग किस सुलग्न में जगा प्रभो ! यौवन का तीव्र विराग ? चले

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मिथिला

12 फरवरी 2022
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मैं पतझड़ की कोयल उदास, बिखरे वैभव की रानी हूँ मैं हरी-भरी हिम-शैल-तटी की विस्मृत स्वप्न-कहानी हूँ। अपनी माँ की मैं वाम भृकुटि, गरिमा की हूँ धूमिल छाया, मैं विकल सांध्य रागिनी करुण, मैं मुरझी

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पाटलिपुत्र की गंगा से

12 फरवरी 2022
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संध्या की इस मलिन सेज पर गंगे ! किस विषाद के संग, सिसक-सिसक कर सुला रही तू अपने मन की मृदुल उमंग? उमड़ रही आकुल अन्तर में कैसी यह वेदना अथाह ? किस पीड़ा के गहन भार से निश्चल-सा पड़ गया प्रवाह

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कस्मै देवाय ?

12 फरवरी 2022
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रच फूलों के गीत मनोहर. चित्रित कर लहरों के कम्पन, कविते ! तेरी विभव-पुरी में स्वर्गिक स्वप्न बना कवि-जीवन। छाया सत्य चित्र बन उतरी, मिला शून्य को रूप सनातन, कवि-मानस का स्वप्न भूमि पर बन आया

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बागी

12 फरवरी 2022
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(बोरस्टल जेल के शहीद यतीन्द्रनाथ दास की मृत्यु पर) निर्मम नाता तोड़ जगत का अमरपुरी की ओर चले, बन्धन-मुक्ति न हुई, जननि की गोद मधुरतम छोड़ चले। जलता नन्दन-वन पुकारता, मधुप! कहाँ मुँह मोड़ चले? बि

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ओ द्विधाग्रस्त शार्दूल ! बोल

12 फरवरी 2022
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हिल रहा धरा का शीर्ण मूल, जल रहा दीप्त सारा खगोल, तू सोच रहा क्या अचल, मौन ? ओ द्विधाग्रस्त शार्दूल ! बोल ? जाग्रत जीवन की चरम-ज्योति लड़ रही सिन्धु के आरपार, संघर्ष-समर सब ओर, एक हिमगुहा-बीच

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पटना जेल की दीवार से

12 फरवरी 2022
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मृत्यु-भीत शत-लक्ष मानवों की करुणार्द्र पुकार! ढह पड़ना था तुम्हें अरी ! ओ पत्थर की दीवार! निष्फल लौट रही थी जब मरनेवालों की आह, दे देनी थी तुम्हें अभागिनि, एक मौज को राह । एक मनुज, चालीस कोटि म

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गा रही कविता युगों से मुग्ध हो

12 फरवरी 2022
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गा रही कविता युगों से मुग्ध हो, मधुर गीतों का न पर, अवसान है। चाँदनी की शेष क्यों होगी सुधा, फूल की रुकती न जब मुस्कान है? चन्द्रिका किस रूपसी की है हँसी? दूब यह किसकी अनन्त दुकूल है? किस परी

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जागरण

12 फरवरी 2022
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(वसन्त के प्रति शिशिर की उक्ति) मैं शिशिर-शीर्णा चली, अब जाग ओ मधुमासवाली ! खोल दृग, मधु नींद तज, तंद्रालसे, रूपसि विजन की ! साज नव शृंगार, मधु-घट संग ले, कर सुधि भुवन की । विश्व में तृण-तृण ज

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राजा-रानी

12 फरवरी 2022
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राजा बसन्त, वर्षा ऋतुओं की रानी, लेकिन, दोनों की कितनी भिन्न कहानी ! राजा के मुख में हँसी, कंठ में माला, रानी का अन्तर विकल, दृगों में पानी । डोलती सुरभि राजा-घर कोने-कोने, परियाँ सेवा में खड़ी

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निर्झरिणी

12 फरवरी 2022
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मधु-यामिनी-अंचल-ओट में सोई थी बालिका-जूही उमंग-भरी; विधु-रंजित ओस-कणों से भरी थी बिछी वन-स्वप्न-सी दूब हरी; मृदु चाँदनी-बीच थी खेल रही वन-फूलों से शून्य में इन्द्र-परी, कविता बन शैल-महाकवि के उ

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कोयल

12 फरवरी 2022
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कैसा होगा वह नन्दन-वन? सखि! जिसकी स्वर्ण-तटी से तू स्वर में भर-भर लाती मधुकण। कैसा होग वह नन्दन-वन? कुंकुम-रंजित परिधान किये, अधरों पर मृदु मुसकान लिए, गिरिजा निर्झरिणी को रँगने कंचन-घट में स

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मिथिला में शरत्‌

12 फरवरी 2022
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किस स्वप्न-लोक से छवि उतरी? ऊपर निरभ्र नभ नील-नील, नीचे घन-विम्बित झील-झील। उत्तर किरीट पर कनक-किरण, पद-तल मन्दाकिनि रजत-वरण। छलकी कण-कण में दिव्य सुधा, बन रही स्वर्ग मिथिला-वसुधा। तन की

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विश्व-छवि

12 फरवरी 2022
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मैं तुझे रोकता हूँ पल-पल, तू और खिंचा-सा जाता है, मन, जिसे समझता तू सुन्दर, उस जग से कब का नाता है? कुछ विस्मृत-सा परिचय है क्या जिससे बढ़ता है प्यार? कण-कण में कौन छिपा अपना जो मुझको रहा पुकार?

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अमा-संध्या

12 फरवरी 2022
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नीरव, प्रशान्त जग, तिमिर गहन। रुनझुन रुनझुन किसका शिंजन? किसकी किंकिणि-ध्वनि? मौन विश्व में झनक उठा किसका कंकण? झिल्ली-स्वन? संध्या श्याम परी की हृदय-शिराओं का गुंजन? रुनझुन रुनझुन किसका शिंजन?

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स्वर्ण घन

12 फरवरी 2022
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उठो, क्षितिज-तट छोड़ गगन में कनक-वरण घन हे! बरसो, बरसो, भरें रंग से निखिल प्राण-मन हे! भींगे भुवन सुधा-वर्षण में, उगे इन्द्र-धनुषी मन-मन में; भूले क्षण भर व्यथा समर-जर्जर विषण्ण जन हे! उठो, क्ष

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राजकुमारी और बाँसुरी

12 फरवरी 2022
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राजमहल के वातायन पर बैठी राजकुमारी, कोई विह्वल बजा रहा था नीचे वंशी प्यारी। "बस, बस, रुको, इसे सुनकर मन भारी हो जाता है, अभी दूर अज्ञात दिशा की ओर न उड़ पाता है। अभी कि जब धीरे-धीरे है डूब रहा दिन

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प्लेग

12 फरवरी 2022
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सब देते गालियाँ, बताते औरत बला बुरी है, मर्दों की है प्लेग भयानक, विष में बुझी छुरी है। और कहा करते, "फितूर, झगड़ा, फसाद, खूँरेज़ी, दुनिया पर सारी मुसीबतें इसी प्लेग ने भेजीं।" मैं कहती हूँ, अगर क

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गोपाल का चुम्बन

12 फरवरी 2022
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छिः, छिः, लज्जा-शरम नाम को भी न गई रह हाय, औचक चूम लिया मुख जब मैं दूह रही थी गाय। लोट गई धरती पर अब की उलर फूल की डार, अबकी शील सँभल नहीं सकता यौवन का भार। दोनों हाथ फँसे थे मेरे, क्या करती मैं

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विपक्षिणी

12 फरवरी 2022
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क्षमा करो मोहिनी विपक्षिणी! अब यह शत्रु तुम्हारा हार गया तुमसे विवाद में मौन-विशिख का मारा। यह रण था असमान, लड़ा केवल मैं इस आशय से, तुमसे मिली हार भी होगी मुझको श्रेष्ठ विजय से। जो कुछ मैंने कह

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फूल

12 फरवरी 2022
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अवनी के नक्षत्र! प्रकृति के उज्ज्वल मुक्ताहार! उपवन-दीप! दिवा के जुगनू! वन के दृग सुकुमार! मेरी मृदु कल्पना-लहर-से पुलकाकुल, उद्‌भ्रान्त! उर में मचल रहे लघु-लघु भावों-से कोमल-कान्त! वृन्तों के दीप

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गीतवासिनी

12 फरवरी 2022
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सात रंगों के दिवस, सातो सुरों की रात, साँझ रच दूँगा गुलावों से, जवा से प्रात। पाँव धरने के लिए पथ में मसृण, रंगीन, भोर का दूँगा बिछा हर रोज मेघ नवीन। कंठ में मोती नहीं, उजली जुही की माल, अंग

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कवि

12 फरवरी 2022
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नवल उर में भर विपुल उमंग, विहँस कल्पना-कुमारी-संग, मधुरिमा से कर निज शृंगार, स्वर्ग के आँगन में सुकुमार ! मनाते नित उत्सव-आनन्द, कौन तुम पुलकित राजकुमार ! फैलता वन-वन आज वसन्त, सुरभि से भरता

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कलातीर्थ

12 फरवरी 2022
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(१) पूर्णचन्द्र-चुम्बित निर्जन वन, विस्तृत शैल प्रान्त उर्वर थे; मसृण, हरित, दूर्वा-सज्जित पथ, वन्य कुसुम-द्रुम इधर-उधर थे। पहन शुक्र का कर्ण-विभूषण दिशा-सुन्दरा रूप-लहर से मुक्त-कुन्तला मिला

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कलातीर्थ

12 फरवरी 2022
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बढ़ा और कुछ दूर विपिन में, देखा पथ संकीर्ण सघन है, दूब, फूल, रस, गंध न किंचित, केवल कुलिश और पाहन है। झुर्मुट में छिप रहा पंथ, ऊँचे-नीचे पाहन बिखरे हैं। दुर्गम पथ, मैं पथिक अकेला, इधर-उधर बन-

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कलातीर्थ

12 फरवरी 2022
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कुछ क्षण बाद मिला फिर पथ में गंध-फूल-दूर्वामय प्रान्तर। हरी-भरी थी शैल-तटी, त्यों, सघन रत्न-भूषित नीलाम्बर। दूबों की नन्हीं फुनगी पर जगमग ओस बने आभा-कण; कुसुम आँकते उनमें निज छवि, जुगनू बना र

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फूँक दे जो प्राण में उत्तेजना

12 फरवरी 2022
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फूँक दे जो प्राण में उत्तेजना, गुण न वह इस बाँसुरी की तान में। जो चकित करके कँपा डाले हृदय, वह कला पाई न मैंने गान में। जिस व्यथा से रो रहा आकाश यह, ओस के आँसू बहाकर फूल में, ढूँढती उसकी दवा म

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परदेशी

12 फरवरी 2022
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माया के मोहक वन की क्या कहूँ कहानी परदेशी? भय है, सुन कर हँस दोगे मेरी नादानी परदेशी! सृजन-बीच संहार छिपा, कैसे बतलाऊं परदेशी? सरल कंठ से विषम राग मैं कैसे गाऊँ परदेशी? एक बात है सत्य कि झर जाते

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मनुष्य

12 फरवरी 2022
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कैसी रचना! कैसा विधान! हम निखिल सृष्टि के रत्न-मुकुट, हम चित्रकार के रुचिर चित्र, विधि के सुन्दरतम स्वप्न, कला की चरम सृष्टि, भावुक, पवित्र। हम कोमल, कान्त प्रकृति-कुमार, हम मानव, हम शोभा-नि

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उत्तर में

12 फरवरी 2022
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तुम कहते, ‘तेरी कविता में कहीं प्रेम का स्थान नहीं; आँखों के आँसू मिलते हैं; अधरों की मुसकान नहीं’। इस उत्तर में सखे, बता क्या फिर मुझको रोना होगा? बहा अश्रुजल पुनः हृदय-घट का संभ्रम खोना होग

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जीवन संगीत

12 फरवरी 2022
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कंचन थाल सजा सौरभ से ओ फूलों की रानी! अलसाई-सी चली कहो, करने किसकी अगवानी? वैभव का उन्माद, रूप की यह कैसी नादानी! उषे! भूल जाना न ओस की कारुणामयी कहानी। ज़रा देखना गगन-गर्भ में तारों का छ

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विधवा

12 फरवरी 2022
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जीवन के इस शून्य सदन में जलता है यौवन-प्रदीप; हँसता तारा एकान्त गगन में। जीवन के इस शून्य सदन में। पल्लव रहा शुष्क तरु पर हिल, मरु में फूल चमकता झिलमिल, ऊषा की मुस्कान नहीं, यह संध्या विहँस रही

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याचना

12 फरवरी 2022
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प्रियतम! कहूँ मैं और क्या? शतदल, मृदुल जीवन-कुसुम में प्रिय! सुरभि बनकर बसो। घन-तुल्य हृदयाकाश पर मृदु मन्द गति विचरो सदा। प्रियतम! कहूँ मैं और क्या? दृग बन्द हों तब तुम सुनहले स्वप्न बन आया क

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सुन्दरता और काल

12 फरवरी 2022
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बाग में खिला था कहीं अल्हड़ गुलाब एक, गरम लहू था, अभी यौवन के दिन थे; ताना मार हँसा एक माली के बुढ़ापे पर, "लटक रहे हैं कब्र-बीच पाँव इसके।" चैत की हवा में खूब खिलता गया गुलाब, बाकी रहा कहीं भी

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संजीवन-घन दो

12 फरवरी 2022
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जो त्रिकाल-कूजित संगम है, वह जीवन-क्षण दो, मन-मन मिलते जहाँ देवता! वह विशाल मन दो। माँग रहा जनगण कुम्हलाया बोधिवृक्ष की शीतल छाया, सिरजा सुधा, तृषित वसुधा को संजीवन-घन दो। मन-मन मिलते जहाँ देवत

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समाधि के प्रदीप से

12 फरवरी 2022
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तुम जीवन की क्षण-भंगुरता के सकरुण आख्यान! तुम विषाद की ज्योति! नियति की व्यंग्यमयी मुस्कान! अरे, विश्व-वैभव के अभिनय के तुम उपसंहार! मन-ही-मन इस प्रलय-सेज पर गाते हो क्या गान? तुम्हारी इस उदास ल

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वैभव की समाधि पर

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हँस उठी कनक-प्रान्तर में जिस दिन फूलों की रानी, तृण पर मैं तुहिन-कणों की पढ़ता था करुण कहानी। थी बाट पूछती कोयल ऋतुपति के कुसुम-नगर की, कोई सुधि दिला रहा था तब कलियों को पतझर की। प्रिय से

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वैभव की समाधि पर

12 फरवरी 2022
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है भरा समय-सागर में जग की आँखों का पानी, अंकित है इन लहरों पर कितनों की करुण कहानी। कितने ही विगत विभव के सपने इसमें उतराते, जानें, इसके गह्वर में कितने निज राग गुँजाते। अरमानों के ईंधन मे

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वैभव की समाधि पर

12 फरवरी 2022
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स्वप्निल विभूति जगती की, हँसता यह ताजमहल है। चिन्तित मुमताज़-विरह में रोता यमुना का जल है। ठुकरा सुख राजमहल का, तज मुकुट विभव-जल-सीचे, वह, शाहजहाँ सोते हैं अपनी समाधि के नीचे। कैसे श्मशान

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