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रहस्यमई जंगल

विशाल सिंह

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मेरे गांव एक जंगल के बीच बीच एक पहाड़ी पर था जहां से मैं रोज काम करने के लिए रोज शहर आता- जाता रहता था उस रात बहुत सर्दी पड़ रही थी मुझे उस रात काम से निकलते निकलते रात के 11:30 बज गए , मैं कंपनी से बाहर निकला और अपनी बाइक उठाई और घर के लिए निकल पड़ा क्योंकि उस रात सर्दी ज्यादा हो रही थी इसलिए बाइक ज्यादा तेज नहीं चला रहा था सामने कोहरा बहुत था इसलिए बहुत साफ नहीं दिखाई पड़ रहा था करीब आधे घंटे गाड़ी चली होगी कि मैं जंगल में एंटर हो गया, जंगल के अंदर करीब 6, 7 किलोमीटर अंदर जाने पर ऊपर पहाड़ी पर मेरा घर था, जंगल का इलाका आ गया था इसलिए मुझे गाड़ी अब और सावधानी से चलानी थी ऊपर से कोहरा कब कौन सा जानवर आकर टकरा जाए किसी को पता नहीं चलेगा, मैं धीरे-धीरे गाड़ी चलाया जा रहा था चारों तरफ घोर अंधेरा और सन्नाटा छाया हुआ था आसपास के जंगलों से सियार और कुछ जंगली जानवरों की आवाज सुनाई पड़ रही थी क्योंकि रोज मेरा इस रास्ते से आना जाना रहता है था इसलिए मुझे इन सब आवाज और से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता था लेकिन अगर कोई अकेला आदमी सुनसान जंगल से गुजरे तो पक्का डर जाता, धीरे-धीरे गाड़ी चला रहा था तभी एक कोई छोटा सा जानवर मेरे गाड़ी के सामने से गुजरा मुझे तो दिखाई ही नहीं पड़ा वह जानवर कब सामने आया आ गया मेरी तो दिल की धड़कनें बढ़ गई मैंने सोचा अब तो गाड़ी से टकरा ही जाएगी लेकिन मैंने किसी तरह अपनी गाड़ी कंट्रोल की मैं उससे टकराते टकराते बचा, गाड़ी थोड़ी आगे निकली तब जाकर मैंने चैन की सांस की अब मैं गाड़ी और देर में चलाने लगा था गाड़ी चलाते-चलाते मैं इधर उधर देख रहा था तो मुझे दूर कहीं जंगल के बीचो बीच एक रोशनी दिखाई दी ऐसा नहीं था कि मैंने रोशनी पहली बार देखी लेकिन यह अक्सर बरसात के महीने में दिखती थी तो मैं समझता था सायद यह बिजली गिरी होगी इसलिए यह उजाला जंगल में दिखाई दे रहा है, यह आज लगातार चौथा दिन था जब मुझे भी रोशनी दिखाई दी चारों तरफ घोर अंधेरा लेकिन यह साफ दूधिया रोशनी कहां से आ रही थी मैं यह अपने दिमाग में सोचने लगा क्योंकि मैं अपने घर के करीब पहुंच गया था यहां से मेरा घर करीब आधा किलोमीटर की दूरी पर था तो मैंने सोचा है चलकर आज देख ही लेता हूं यह कैसी रोशनी है जो रोज मुझे दिखाई पड़ती है मुझे थोड़ा थोड़ा डर लग रहा था लेकिन मैंने सोचा यह हमारा इलाका है इसमें क्या डरना 

rahasyamai jangal

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