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साप्ताहिक प्रतियोगिता

hindi articles, stories and books related to saaptaahik prtiyogitaa


एक पल में जमीन दोस्त होती है अवैध खनन से बनी बिल्डिंग्स,एक पल बिल्डिंग के साथ साथ मिट्टी होती जनता की दौलत भी।

कुछ साथ कुछ अकेला,कुछ अपना कुछ परायाकुछ तेरा कुछ मेरा बनकेयादगार बीता अपना सफ़र।थोड़ा थोड़ा रूठकर चल दियाथोड़ा हमारे मनाने पर मान गया,थोड़ा खुद से गिला करते करते चला,थोड़ा हमसे नाराज होकर चल दिया।क्या

भारत पाक मैच नहीं होता है एक जज़्बा,आखिरी गेंद तक जीतने का सही हौसला।

हमने अपने कर्मो से, ला रहे कुदरत का कहर,जो शांति का था कभी,एक प्यारा सा अपना बसर।जहा पक्षियों की चहचहाट,और आंगन में आना जाना,जहा महकता था हर दिन,बगीचे में गुलाब की महक।आम बेल से दिल ललचाता,पेड़ो

धर्म के नाम पर एक दूसरे को लड़ाए है धार्मिक उन्माद ही,इससे बेहतर है की नफरत के वजह प्यार फैरलाओ बनो इंसान।

कुछ यूंही बीते दिन,उंगलीयो पे बस गिन,कुछ याद आते गए,किसी को हम भूलते ।कुछ उम्मीद बरसाते,कुछ बेवजह मायूसी,दिन तो एक जैसा ही ,पर थोड़े ज्यादा हम रूठे।कभी किसी बात पे खुश,कभी हम खुद पर नाराज,क्या कहूं अब

जल ही जीवन और जल से आनेवाले कल,जल का कर सरंक्षण और रहो सदा खुशहाल।

कब तक बैठे हम भूखे प्यासेबादलों से निकल बाहर आ,फलक पर आकर सूरत दिखा,तरसे नयना दीदार के लिए तेरे। लंबी उम्र का वरदान देकर जा,करवा चौथ को मेरे सफल बना,तेरे जैसे रोशनी फैलाना ने का,कुछ कानमंत्र तो च

काश होता मुझे भी यूं पहली नज़र का प्यार, दिल के तिजोरी में बैठा, होता मेरे कोई प्यारा यार। गुमसुम ना रहती थोड़ी भी, बनते कई रोज ही अफसाने, फिजाओं में खुशबू बनकर, फिर महकते कितने फसाने। नजर नजर में होत

नफरत की बीज बोती है हर एक हेट से भरी स्पीच वजह इसके मोहब्बत फैरलो बोकर प्यार के बीज।

रह रह कर याद आती है, मुझे बीते वक्त की यादें,जब कोई दरवाजे से आवाज,देता जैसे भूली बिसरी यादें।खुशियां अपनी रहती पास,दूर रहते थे हमसे सारे गम,समय खेलने के लिए कम,और साथ में थे दोस्त सारे।जब पढ़ाई लगती

कल्चर खराब नही होता इंसान कायदे के नही होते,बायकॉट करना हो तो अवगुणों का कल्चर का नही

एक मांगी थी हमने तो दुवा,की मिल जाए इश्क का जहा,बेकार चली गई हर एक दुवा,ना साकार हुवा सपनों का जहा।बड़े निकाले वो दुनियादारी के,जज़्बात कहा हमारे तोल पाते,साथ भले ही चलते थी लेकिनकहा हमारे वफादार रह प

गुरु दक्षिणा किसीने ऐसी दी, के हालत मेरी कुछ बदल गई दूर जाते जाते मैं खुद के ऐसे,थोड़ी ज्यादा में पास आ गई। जिंदगी भर की मेरी कमाई, थी मेरी किताबों से दोस्ती, और किताबों ने से दिया, ज्ञान की मुझे गुर

आगाज हो गया ऐसे, कुछ मेरी कहानी का,अंजाम तक आते आते,कहानी ही सारी बदल गई।जो लगते थे नायक सारे,अचानक खलनायक हुवे,साथ साथ चलते चलते,रास्ते की धूल बन गए।हर कोरे पन्नों से मैंने भी,लिखावट खुद की बदली

बहुत दिनों बाद आई मिलने,मुझसे थोड़ी खुशी, थोड़े गम,क्या ये कम है की मेरे हिस्से ,आती कभी खुशी, कभी गम।हाथ थामकर मेरे साथ साथ,चले आए सच झूठ बोलने,उम्मीद के मुताबिक मुझमें,थोड़ा थोड़ा करके वो रहने।बड़े

कितने युगों से चलता आया,जिंदगी में हर एक के संघर्ष,कभी हमारे हिस्से आया दर्द,कभी हुवा बेशुमार हमको हर्ष।बीते दिनों के गलतियां से लेकर,सीखे सबक कितने ही अनमोल,तभी तो जान पाए है हम सही से,अपने अपनों के

वो खामोशी के अंधेरे तले, कितने ही थे गम को लपटे,हमने चाहा दिल से मिटाने,पर हम हो बैठे खामोश सदा।कैसी आग की लपटे थी वो,जो हमारा सुख चैन ले गई,जाते जाते भी दर्द के गहराई में,हमें तन्हा वो छोड़ कर च

कोई जो हर दम पूछता है,बता क्या है तेरे लिए तिरंगा,अब उस पगली को क्या कहूं,है मेरी आन,बान,शान तिरंगा।कहता है एक फौजी वतन से,तिरंगा रहा है सदा रब उसका,ईमान से ना कभी गिरने देता,है तिरंगा उसकी धड़कन सदा।

कोई जो हर दम पूछता है,बता क्या है तेरे लिए तिरंगा,अब उस पगली को क्या कहूं,है मेरी आन,बान,शान तिरंगा।कहता है एक फौजी वतन से,तिरंगा रहा है सदा रब उसका,ईमान से ना कभी गिरने देता,है तिरंगा उसकी धड़कन सदा।

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