shabd-logo

सड़क के किनारे

9 अप्रैल 2022

34 बार देखा गया 34

“यही दिन थे......... आसमान उस की आँखों की तरह ऐसा ही नीला था जैसा कि आज है। धुला हुआ, निथरा हुआ......... और धूप भी ऐसी ही कनकनी थी......... सुहाने ख़्वाबों की तरह। मिट्टी की बॉस भी ऐसी ही थी जैसी कि इस वक़्त मेरे दिल-ओ-दिमाग़ में रच रही है......... और मैं ने इसी तरह लेटे लेटे अपनी फड़फड़ाती हुई रूह उस के हवाले कर दी थी।”

“उन ने मुझ से कहा था......... तुम ने मुझे जो ये लम्हात अता किए हैं यक़ीन जानो। मेरी ज़िंदगी उन से ख़ाली थी......... जो ख़ाली जगहें तुम ने आज मेरी हस्ती में पुर की हैं।, तुम्हारी शुक्र-गुज़ार हैं। तुम मेरी ज़िंदगी में न आतीं तो शायद वो हमेशा अधूरी रहती......... मेरी समझ में नहीं आता। मैं तुम से और क्या कहूं......... मेरी तकमील हो गई है। ऐसे मुकम्मल तौर पर कि महसूस होता है मुझे अब तुम्हारी ज़रूरत नहीं रही......... और वो चला गया......... हमेशा के लिए चला गया।”

“मेरी आँखें रोईं......... मेरा दिल रोया......... मैं ने उस की मिन्नत समाजत की। उस से लाख मर्तबा पूछा कि मेरी ज़रूरत अब तुम्हें क्यों नहीं रही......... जबकि तुम्हारी ज़रूरत......... अपनी तमाम शिद्दतों के साथ अब शुरू होई है। उन लम्हात के बाद जिन्हों ने बाक़ौल तुम्हारे, तुम्हारी हस्ती की ख़ाली जगहें पुर की हैं।”

उस ने कहा। “तुम्हारे वजूद के जिस जिस ज़र्रे की मेरी हस्ती की तामीर-ओ-तकमील को ज़रूरत थी, ये लम्हात चुन चुन कर देते रहे......... अब कि तकमील हो गई है तुम्हारा मेरा रिश्ता ख़ुद-ब-ख़ुद ख़त्म हो गया है।”

किस क़दर ज़ालिमाना लफ़्ज़ थे......... मुझ से ये पथराओ बर्दाश्त न किया गया......... मैं चीख़ चीख़ कर रोने लगी......... मगर इस पर कुछ असर न हुआ मैं ने उस से कहा। “ये ज़र्रे जिन से तुम्हारी हस्ती की तकमील हुई है, मेरे वजूद का एक हिस्सा थे......... क्या इन का मुझ से कोई रिश्ता नहीं......... क्या मेरे वजूद का बक़ाया हिस्सा उन से अपना नाता तोड़ सकता है?......... तुम मुकम्मल हो गए हो......... लेकिन मुझे अधूरा कर के......... क्या मैं ने इसी लिए तुम्हें अपना माबूद बनाया था?”

उस ने कहा। “भोंरे, फूलों और कलियों का रस चूस चूस कर शहीद कशीद करते हैं, मगर वो उस की तलछट तक भी इन फूलों और कलियों के होंटों तक नहीं लाते......... ख़ुदा अपनी परसतिश कराता है, मगर ख़ुद बंदगी नहीं करता......... अदम के साथ ख़ल्वत में चंद लम्हात बसर कर के उस ने वजूद की तकमील की......... अब अदम कहाँ है......... उस की अब वजूद को क्या ज़रूरत है। वो एक ऐसी माँ थी जो वजूद को जन्म देते ही ज़चगी के बिस्तर पर फ़ना हो गई थी।”

औरत रो सकती है......... दलीलें पेश नहीं कर सकती......... उस की सब से बड़ी दलील उस की आँख से ढलका हुआ आँसू है......... मैं ने उस से कहा। “देखो......... मैं रो रही हूँ......... मेरी आँखें आँसू बरसा रही हैं तुम जा रहे हो तो जाओ, मगर इन में से कुछ आँसूओं को तो अपने रूमाल के कफ़न में लपेट कर साथ लेते जाओ......... मैं तो सारी उम्र रोती रहूंगी......... मुझे इतना तो याद रहेगा कि चंद आँसूओं के कफ़न दफ़न का सामान तुम ने भी किया था......... मुझ ख़ुश करने के लिए!”

उस ने कहा। “मैं तुम्हें ख़ुश कर चुका हूँ......... तुम्हें उस ठोस मुसर्रत से हम-कनार कर चुका हूँ। जिस के तुम सराब ही देखा करती थीं......... क्या उस का लुत्फ़ उस का कैफ़, तुम्हारी ज़िंदगी के बक़ाया लम्हात का सहारा नहीं बन सकता। तुम कहती हो कि मेरी तकमील ने तुम्हें अधूरा कर दिया है......... लेकिन ये अधूरा पन ही क्या तुम्हारी ज़िंदगी को मुतहर्रिक रखने के लिए काफ़ी नहीं......... मैं मर्द हूँ......... आज तुम ने मेरी तकमील की है......... कल कोई और करेगा......... मेरा वजूद कुछ ऐसे आब-ओ-गुल से बना है जिस की ज़िंदगी में ऐसे कई लम्हात आयेंगे जब वो ख़ुद को तिश्ना-ए-तकमील समझेगा......... वो तुम जैसी कई औरतें आयेंगी जो इन लम्हात की पैदा की हुई ख़ाली जगहें पुर करेंगी।”

मैं रोती रही। झुँझलाती रही।

मैं ने सोचा......... ये चंद लम्हात जो अभी अभी मेरी मुट्ठी में थे.........नहीं......... मैं इन लम्हात की मुट्ठी में थी......... मैं ने क्यों ख़ुद को उन के हवाले कर दिया......... मैं ने क्यों अपनी फड़फड़ाती रूह उन के मुँह खोले क़फ़स में डाल दी......... इस में मज़ा था। एक लुत्फ़ था.........एक कैफ़ था......... था, ज़रूर था......... और ये उस के और मेरे तसादुम में था.........लेकिन.........ये किया कि वो साबित-ओ-सालिम रहा......... और मुझ में तरीड़े पड़ गए......... ये क्या, कि वो अब मेरी ज़रूरत महसूस नहीं करता।। लेकिन मैं और भी शिद्दत से उस की ज़रूरत महसूस करती हूँ......... वो ताक़तवर बन गया है। मैं नहीफ़ हो गई हूँ......... ये क्या कि आसमान पर दो बादल हम-आग़ोश हों......... एक रो रो कर बरसने लगा, दूसरा बिजली का कूदा बन कर इस बारिश से खेलता, कदकड़े लगाता भाग जाये......... ये किस का क़ानून है?.........आसमानों का?......... ज़मीनों का......... या उन के बनाने वालों का?

मैं सोचती रही और झुँझलाती रही।

दो रूहों का सिमट कर एक हो जाना और एक हो कर वालहाना वुसअत इख़्तियार कर जाना......... क्या ये सब शायरी है......... नहीं, दो रूहें सिमट कर ज़रूर उस नन्हे से नुक्ते पर पहुंचती हैं जो फैल कर कायनात बनता है......... लेकिन इस कायनात में एक रूह क्यों कभी कभी घायल छोड़ दी जाती है......... क्या इस क़सूर पर कि उस ने दूसरी रूह को इस नन्हे से नुक्ते पर पहुंचने में मदद थी।

ये कैसी कायनात है।

यही दिन थे......... आसमान की आँखों की तरह ऐसा ही नीला था जैसा कि आज है......... और धूप भी ऐसी ही कनकनी थी......... और मैं ने इसी तरह लेटे लेटे अपनी फड़फड़ाती हुई रूह उस के हवाले कर दी थी......... वो मौजूद नहीं है......... बिजली का कोंदा बन कर जाने वो किन बदलियों की गिर्या-ओ-ज़ारी से खेल रहा है......... अपनी तकमील कर के चला गया......... एक साँप था जो मुझे डस कर चला गया......... लेकिन अब उस की छोड़ी हुई लकीर क्यों मेरे पेट में करवटें ले रही है......... क्या ये मेरी तकमील हो रही है?

नहीं, नहीं......... ये कैसी तकमील हो सकती है......... ये तो तख़्रीब है.........

लेकिन ये मेरे जिस्म की ख़ाली जगहें पुर हो रही हैं......... ये जो गढ़्ढ़े थे किस मल्बे से पुर किए जा रहे हैं......... मेरी रगों में ये कैसी सरसराहटें दौड़ रही हैं......... मैं सिमट कर अपने पेट में किस नन्हे से नुक्ते पर पहुंचने के लिए पेच-ओ-ताब खा रही हूँ......... मेरी नाव डूब कर अब किन समुंद्रों में उभरने के लिए उठ रही है.........?

ये मेरे अंदर दहकते हुए चूल्हों पर किस मेहमान के लिए दूध गर्म किया जा रहा है......... ये मेरा दिल मेरे ख़ून को धुनक धुनक कर किस के लिए नर्म-ओ-नाज़ुक रज़ाईयां तैय्यार कर रहा है। ये मेरा दिमाग़ मेरे हालात के रंग बिरंग धागों से किस के लिए नन्ही मुन्नी पोशाकें बुन रहा है?

मेरा रंग किस के लिए निखर रहा है......... मेरे अंग अंग और रुम रुम में फंसी हुई हिचकियां लोरियों में क्यों तब्दील हो रही हैं.........

यही दिन थे......... आसमान उस की आँखों की तरह ऐसा ही नीला था जैसा कि आज है......... लेकिन ये आसमान अपनी बुलंदियों से उतर कर क्यों मेरे पेट में तन गया है......... उस की नीली नीली आँखें क्यों मेरी रगों में दौड़ती फिरती हैं?

मेरे सीने की गोलाइयों में मस्जिदों के मेहराबों ऐसी तक़दीस क्यों आ रही है?

नहीं, नहीं......... ये तक़दीस कुछ भी नहीं......... मैं इन मेहराबों को ढह दूंगी......... मैं अपने अंदर तमाम चूल्हे सर्द कर दूँगी जिन पर बिन बुलाए मेहमान की ख़ातिर हाढ़ियां चढ़ी हैं......... मैं अपने ख़यालात के तमाम रंग बिरंग धागे आपस में उलझा दूंगी.........

यही दिन थे......... आसमान उस की आँखों की तरह ऐसा ही नीला था जैसा कि आज है......... लेकिन मैं वो दिन क्यों याद करती हूँ जिन के सीने पर से वो अपने नक़श-ए-क़दम भी उठा कर ले गया था.........

लेकिन ये......... ये नक़श-ए-क़दम किस का है......... ये जो मेरे पेट की गहराईयों में तड़प रहा है.........?......... क्या यह मेरा जाना पहचाना नहीं.........

मैं उसे खुरच दूंगी......... उसे मिटा दूंगी......... ये रसूली है......... फोड़ा है......... बहुत ख़ौफ़-नाक फोड़ा।

लेकिन मुझे क्यों महसूस होता है कि ये फाहा है......... फाहा है तो किस ज़ख़्म का?......... उस ज़ख़्म का जो वो मुझे लगा कर चला गया था?......... नहीं नहीं......... ये तो ऐसा लगता है किसी पैदाइशी ज़ख़्म के लिए है......... ऐसे ज़ख़्म के लिए जो मैं ने कभी देखा ही नहीं था......... जो मेरी कोख में जाने कब से सो रहा था।

ये कोख क्या?......... फ़ुज़ूल सी मिट्टी की हन्डकलया......... बच्चों का खिलौना। मैं इसे तोड़ फोड़ दूंगी।

लेकिन ये कौन मेरे कान में कहता है। ये दुनिया एक चौराहा है......... अपना भांडा क्यों इस में फोड़ती है......... याद रख तुझ पर उंगलियां उठेंगी।

उंगलियां......... उधर क्यों ना उठेंगी, जिधर वो अपनी हस्ती मुकम्मल कर के चला गया था......... क्या इन उंगलियों को वो रास्ता मालूम नहीं......... ये दुनिया एक चौराहा है......... लेकिन उस वक़्त तो वो मुझे एक दोराहे पर छोड़ कर चला गया था......... इधर भी अधूरा पन था। उधर भी अधूरा पन......... इधर भी आँसू, उधर भी आँसू।

लेकिन ये किस का आँसू, मेरे सीप में मोती बन रहा है......... ये कहाँ बंधेगा?

उंगलियां उठींगी......... जब सीप का मुँह खुले और मोती फिसल कर बाहर चौराहे में गिर पड़ेगा तो उंगलियां उठेंगी......... सीपी की तरफ़ भी और मोती की तरफ़ भी......... और ये उंगलियां संपोलियां बन बन कर उन दोनों को डसींगी और अपने ज़हर से उन को नीला कर देंगी।

आसमान उस की आँखों की तरह ऐसा ही नीला था जैसा कि आज है......... ये गिर क्यों नहीं पड़ता......... वो कौन से सुतून हैं जो उस को थामे हुए हैं......... क्या उस दिन जो ज़लज़ला आया था वो इन सुतूनों की बुनियादें हिला देने के लिए काफ़ी नहीं था......... ये क्यों अब तक मेरे सर के ऊपर इसी तरह तना हुआ है?

मेरी रूह पसीने में ग़र्क़ है......... इस का हर मसाम खुला हुआ है। चारों तरफ़ आग दहक रही है......... मेरे अंदर कठाली में सोना पिघल रहा है......... धोंकनियां चल रही हैं। शोले भड़क रहे हैं। सोना, आतिश फ़िशां पहाड़ के लावे की तरह उबल रहा है......... मेरी रगों में नीली आँखें दौड़ दौड़ कर हांप रही हैं......... घंटियां बज रही हैं......... कोई आ रहा है......... कोई आ रहा है.........

बंद कर दो......... बंद कर दो किवाड़.........

कठाली उलट गई है......... पिघला हुआ सोना बह रहा है......... घंटियां बज रही हैं......... वो आ रहा है......... मेरी आँखें मुंद रही हैं......... नीला आसमान गदला हो कर नीचे आ रहा है.........

ये किस के रोने की आवाज़ है......... उसे चुप कराओ......... उस की चीख़ें मेरे दिल पर हथौड़े मार रही हैं......... चुप कराओ......... उसे चुप कराओ......... उसे चुप कराओ......... मैं गोद बन रही हूँ......... मैं क्यों गोद बन रही हूँ.........

मेरी बांहें खुल रही हैं......... चूल्हों पर दूध उबल रहा है......... मेरे सीने की गोलाईआं प्यालियां बन रही हैं......... लाओ इस गोश्त के लोथड़े को मेरे दिल के धुनके हुए ख़ून के नर्म नर्म गालों में लेटा दो.........

मत छीनो.........मत छीनो उसे......... मुझ से जुदा न करो। ख़ुदा के लिए मुझ से जुदा न करो।

उंगलियां.........उंगलियां......... उठने दो उंगलियां......... मुझे कोई पर्वा नहीं......... ये दुनिया चौराहा है......... फूटने दो मेरी ज़िंदगी के तमाम भाँडे.........

मेरी ज़िंदगी तबाह हो जाएगी?......... हो जाने दो......... मुझे मेरा गोश्त वापस दे दो......... मेरी रूह का ये टुकड़ा मुझ से मत छीनो......... तुम नहीं जानते ये कितना क़ीमती है......... ये गौहर है जो मुझे उन चंद लम्हात ने अता किया है......... उन चंद लम्हात ने जिन्हों ने मेरे वजूद के कई ज़र्रे चुन चुन कर किसी की तकमील की थी और मुझे अपने ख़याल में अधूरा छोड़ के चले गए थे......... मेरी तकमील आज हुई है।

मान लो.........मान लो......... मेरे पेट के खला से पूछो......... मेरी दूध भरी हुई छातियों से पूछो......... उन लोरियों से पूछो, जो मेरे अंग अंग और रुम रुम में तमाम हिचकियां सुला कर आगे बढ़ रही हैं......... उन झूलनों से पूछो जो मेरे बाज़ूओं में डाले जा रहे हैं।

मेरे चेहरे की ज़रदियों से पूछो जो गोश्त के इस लोथड़े के गालों को अपनी तमाम सुर्खियां छुपाती रही हैं......... उन सांसों से पूछो, जो छुपे चोरी उस को उस का हिस्सा पहुंचाते रहे हैं।

उंगलियां......... उठने दो उंगलियां......... मैं उन्हें काट डालूंगी......... शोर मचेगा......... मैं ये उंगलियां उठा कर अपने कानों में ठोंस लूंगी......... मैं गूंगी हो जाऊंगी, बहरी हो जाऊंगी, अंधी हो जाऊंगी......... मेरा गोश्त, मेरे इशारे समझ लिया करेगा......... मैं उसे टटोल टटोल कर पहचान लिया करूंगी.........

मत छीनो......... मत छीनो उसे......... ये मेरी कोख की मांग का सिंदूर है......... ये मेरी ममता के माथे की बिंदिया है......... मेरे गुनाह का कड़वा फल है?

.........लोग इस पर थू थू करेंगे?......... मैं चाट लूंगी ये सब थूकें......... ऑनवल समझ कर साफ़ कर दूँगी.........

देखो, मैं हाथ जोड़ती हूँ......... तुम्हारे पांव पड़ती हूँ।

मेरे भरे हुए दूध के बर्तन औंधे ना करो......... मेरे दिल के धुन्के हुए ख़ून के नरम नरम गालों में आग न लगाओ......... मेरी बाँहों के झूलों की रस्सियां न तोड़ो......... मेरे कानों को उन गीतों से महरूम न करो जो उस के रोने में मुझे सुनाई देते हैं।

मत छीनो......... मत छीनो......... मुझ से जुदा न करो......... ख़ुदा के लिए मुझे उस से जुदा न करो।

लाहौर 21 जनवरी

धोबी मंडी से पुलिस ने एक नौ-ज़ाईदा बच्ची को सर्दी से ठिठुरते सड़क के किनारे पड़ी हुई पाया और अपने क़ब्ज़े में ले लिया। किसी संग-दिल ने बच्ची की गर्दन को मज़बूती से कपड़े में जकड़ रखा था और उर्यां जिस्म को पानी से गीले कपड़े में बांध रखा था ताकि वो सर्दी से मर जाये। मगर वो ज़िंदा थी। बच्ची बहुत ख़ूबसूरत है। आँखें नीली हैं। उस को हस्पताल पहुंचा दिया गया है।

61
रचनाएँ
सआदत हसन मंटो की लोकप्रिय कहानियाँ
0.0
मंटो की लोकप्रिय कहानियाँ उतनी महत्वपूर्ण है कि मंटो ने इतने बरस पहले जो कुछ लिखा उसमें आज की हकीकत सिमटी नजर आती है मंटो की लोकप्रिय कहानियाँ उतनी महत्वपूर्ण है कि मंटो ने इतने बरस पहले जो कुछ लिखा उसमें आज की हकीकत सिमटी नजर आती है
1

शो शो

8 अप्रैल 2022
7
0
0

घर में बड़ी चहल पहल थी। तमाम कमरे लड़के लड़कियों, बच्चे बच्चियों और औरतों से भरे थे। और वो शोर बरपा हो रहा था। कि कान पड़ी आवाज़ सुनाई ना देती थी। अगर उस कमरे में दो तीन बच्चे अपनी माओं से लिपटे दूध पीने क

2

सहाय

8 अप्रैल 2022
2
0
0

“ये मत कहो कि एक लाख हिंदू और एक लाख मुस्लमान मरे हैं...... ये कहो कि दो लाख इंसान मरे हैं...... और ये इतनी बड़ी ट्रेजडी नहीं कि दो लाख इंसान मरे हैं, ट्रेजडी अस्ल में ये है कि मारने और मरने वाले किसी

3

हरनाम कौर

8 अप्रैल 2022
0
0
0

निहाल सिंह को बहुत ही उलझन हो रही थी। स्याह-व-सफ़ैद और पत्ली मूंछों का एक गुच्छा अपने मुँह में चूसते हुए वो बराबर दो ढाई घंटे से अपने जवान बेटे बहादुर की बाबत सोच रहा था। निहाल सिंह की अधेड़ मगर तेज़

4

हामिद का बच्चा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

लाहौर से बाबू हरगोपाल आए तो हामिद घर का रहा ना घाट का। उन्हों ने आते ही हामिद से कहा। “लो भई फ़ौरन एक टैक्सी का बंद-ओ-बस्त करो।” हामिद ने कहा। “आप ज़रा तो आराम कर लीजिए। इतना लंबा सफ़र तय करके यहां आए ह

5

सोने कि अंगूठी

8 अप्रैल 2022
1
0
0

सोने कि अंगूठी सआदत हसन मंटो “छत्ते का छत्ता होगया आप के सर पर मेरी समझ में नहीं आता कि बाल न कटवाना कहाँ का फ़ैशन है ” “फ़ैशन वेशन कुछ नहीं तुम्हें अगर बाल कटवाने पड़ें तो क़दर-ए-आफ़ियत मालूम हो जाये

6

हाफ़िज़ हुसैन दीन

8 अप्रैल 2022
0
0
0

हाफ़िज़ हुसैन दीन जो दोनों आँखों से अंधा था, ज़फ़र शाह के घर में आया। पटियाले का एक दोस्त रमज़ान अली था, जिस ने ज़फ़र शाह से उस का तआरुफ़ कराया। वो हाफ़िज़ साहिब से मिल कर बहुत मुतअस्सिर हुआ। गो उन की

7

हारता चला गया

8 अप्रैल 2022
0
0
0

लोगों को सिर्फ़ जीतने में मज़ा आता है। लेकिन उसे जीत कर हार देने में लुत्फ़ आता है। जीतने में उसे कभी इतनी दिक़्क़त महसूस नहीं हुई। लेकिन हारने में अलबत्ता उसे कई दफ़ा काफ़ी तग-ओ-दो करना पड़ी। शुरू शुर

8

अंजाम-ए-नजीर

8 अप्रैल 2022
0
0
0

बटवारे के बाद जब फ़िर्का-वाराना फ़सादात शिद्दत इख़्तियार कर गए और जगह जगह हिंदूओं और मुस्लमानों के ख़ून से ज़मीन रंगी जाने लगी तो नसीम अख़तर जो दिल्ली की नौ-ख़ेज़ तवाइफ़ थी अपनी बूढ़ी माँ से कहा “चलो माँ यहां

9

अब्जी डूडू

8 अप्रैल 2022
0
0
0

“मुझे मत सताईए....... ख़ुदा की क़सम, मैं आप से कहती हूँ, मुझे मत सताईए” “तुम बहुत ज़ुल्म कर रही हो आजकल!” “जी हाँ बहुत ज़ुल्म कर रही हूँ” “ये तो कोई जवाब नहीं” “मेरी तरफ़ से साफ़ जवाब है और ये मैं आप

10

इज़्ज़त के लिए

8 अप्रैल 2022
0
0
0

चवन्नी लाल ने अपनी मोटर साईकल स्टाल के साथ रोकी और गद्दी पर बैठे बैठे सुबह के ताज़ा अख़्बारों की सुर्ख़ियों पर नज़र डाली। साईकल रुकते ही स्टाल पर बैठे हुए दोनों मुलाज़िमों ने उसे नमस्ते कही थी। जिस का जवा

11

इफ़्शा-ए-राज़

8 अप्रैल 2022
0
0
0

“मेरी लगदी किसे न वेखी वे ते टुटदी नूँ जग जाणदा” “ये आप ने गाना क्यों शुरू कर दिया है” “हर आदमी गाता और रोता है कौनसा गुनाह किया है?” “कल आप ग़ुसल-ख़ाने में भी यही गीत गा रहे थे” “ग़ुसल-ख़ाने में तो ह

12

क़ब्ज़

8 अप्रैल 2022
0
0
0

नए लिखे हुए मुकालमे का काग़ज़ मेरे हाथ में था। ऐक्टर और डायरेक्टर कैमरे के पास सामने खड़े थे। शूटिंग में अभी कुछ देर थी। इस लिए कि स्टूडीयो के साथ वाला साबुन का कारख़ाना चल रहा था। हर रोज़ इस कारख़ाने के

13

कुत्ते की दुआ

8 अप्रैल 2022
0
0
0

“आप यक़ीन नहीं करेंगे। मगर ये वाक़िया जो मैं आप को सुनाने वाला हूँ, बिलकुल सही है।” ये कह कर शेख़ साहब ने बीड़ी सुलगाई। दो तीन ज़ोर के कश लेकर उसे फेंक दिया और अपनी दास्तान सुनाना शुरू की। शेख़ साहब के म

14

कोट पतलून

8 अप्रैल 2022
0
0
0

नाज़िम जब बांद्रा में मुंतक़िल हुआ तो उसे ख़ुशक़िसमती से किराए वाली बिल्डिंग में तीन कमरे मिल गए। इस बिल्डिंग में जो बंबई की ज़बान में चाली कहलाती है, निचले दर्जे के लोग रहते थे। छोटी छोटी (बंबई की ज़बान

15

ख़ालिद मियां

8 अप्रैल 2022
1
0
0

मुमताज़ ने सुबह सवेरे उठ कर हसब-ए-मामूल तीनों कमरे में झाड़ू दी। कोने खद्दरों से सिगरटों के टुकड़े, माचिस की जली हुई तीलियां और इसी तरह की और चीज़ें ढूंढ ढूंढ कर निकालें। जब तीनों कमरे अच्छी तरह साफ़ होगए

16

ख़ुदकुशी

8 अप्रैल 2022
0
0
0

ज़ाहिद सिर्फ़ नाम ही का ज़ाहिद नहीं था, उस के ज़ुहद-ओ-तक़वा के सब क़ाइल थे, उस ने बीस पच्चीस बरस की उम्र में शादी की, उस ज़माने में उस के पास दस हज़ार के क़रीब रुपय थे, शादी पर पाँच हज़ार सर्फ़ हो गए, उतनी ह

17

गिलगित ख़ान

8 अप्रैल 2022
0
0
0

शहबाज़ ख़ान ने एक दिन अपने मुलाज़िम जहांगीर को जो उस के होटल में अंदर बाहर का काम करता था उस की सुस्त-रवी से तंग आकर बर-तरफ़ कर दिया। असल में वो सुस्त-रो नहीं था। इस क़दर तेज़ था कि उस की हर हरकत शहबाज़ ख़ान

18

घोगा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

मैं जब हस्पताल में दाख़िल हुआ तो छट्ठे रोज़ मेरी हालत बहुत ग़ैर होगई। कई रोज़ तक बे-होश रहा। डाक्टर जवाब दे चुके थे लेकिन ख़ुदा ने अपना करम किया और मेरी तबीयत सँभलने लगी। इस दौरान की मुझे अक्सर बातें या

19

चुग़द

8 अप्रैल 2022
0
0
0

लड़कों और लड़कियों के मआशिक़ों का ज़िक्र हो रहा था। प्रकाश जो बहुत देर से ख़ामोश बैठा अंदर ही अंदर बहुत शिद्दत से सोच रहा था, एक दम फट पड़ा। सब बकवास है, सौ में से निन्नानवे मआशिक़े निहायत ही भोंडे और लचर

20

जानकी

8 अप्रैल 2022
0
0
0

पूना में रेसों का मौसम शुरू होने वाला था कि पिशावर से अज़ीज़ ने लिखा कि मैं अपनी एक जान पहचान की औरत जानकी को तुम्हारे पास भेज रहा हूँ, उस को या तो पूना में या बंबई में किसी फ़िल्म कंपनी में मुलाज़मत करा

21

तरक़्क़ी पसंद

8 अप्रैल 2022
0
0
0

जोगिंदर सिंह के अफ़साने जब मक़बूल होना शुरू हुए तो उसके दिल में ख़्वाहिश पैदा हुई कि वो मशहूर अदीबों और शाइरों को अपने घर बुलाए और उन की दावत करे। उस का ख़याल था कि यूं उस की शौहरत और मक़बूलियत और भी ज़्

22

दीवाना शायर

8 अप्रैल 2022
0
0
0

[अगर मुक़द्दस हक़ दुनिया की मुतजस्सिस निगाहों से ओझल कर दिया जाये। तो रहमत हो उस दीवाने पर जो इंसानी दिमाग़ पर सुनहरा ख़्वाब तारी कर दे।] मैं आहों का ब्योपारी हूँ, लहू की शायरी मेरा काम है, चमन की मा

23

निक्की

8 अप्रैल 2022
0
0
0

तलाक़ लेने के बाद वो बिलकुल नचनत होगई थी। अब वो हर रोज़ की वानिता कुल कुल और मार कटाई नहीं थे। निक्की बड़े आराम-ओ-इत्मिनान से अपना गुज़र औक़ात कर रही थी। ये तलाक़ पूरे दस बरस के बाद हुई थी। निक्की का श

24

परी

8 अप्रैल 2022
0
0
0

कश्मीरी गेट दिल्ली के एक फ़्लैट में अनवर की मुलाक़ात परवेज़ से हुई। वो क़तअन मुतअस्सिर न हुआ। परवेज़ निहायत ही बेजान चीज़ थी। अनवर ने जब उस की तरफ़ देखा और उस को आदाब अर्ज़ कहा तो उस ने सोचा “ये क्या है औरत

25

पसीना

8 अप्रैल 2022
0
0
0

“मेरे अल्लाह!............... आप तो पसीने में शराबोर हो रहे हैं।” “नहीं। कोई इतना ज़्यादा तो पसीना नहीं आया।” “ठहरिए में तौलिया ले कर आऊं।” “तौलिए तो सारे धोबी के हाँ गए हुए हैं।” “तो मैं अपने दोपट्

26

पढ़े कलिमा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह...... आप मुस्लमान हैं यक़ीन करें मैं जो कुछ कहूंगा, सच्च कहूंगा। पाकिस्तान का इस मुआमले से कोई तअल्लुक़ नहीं। क़ाइद-ए-आज़म जिन्नाह के लिए मैं जान देने के लिए तैय

27

पीरन

8 अप्रैल 2022
0
0
0

ये उस ज़माने की बात है जब मैं बेहद मुफ़लिस था। बंबई में नौ रुपये माहवार की एक खोली में रहता था जिस में पानी का नल था न बिजली। एक निहायत ही ग़लीज़ कोठड़ी थी जिस की छत पर से हज़ारहा खटमल मेरे ऊपर गिरा करते थ

28

पढ़े कलिमा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह...... आप मुस्लमान हैं यक़ीन करें मैं जो कुछ कहूंगा, सच्च कहूंगा। पाकिस्तान का इस मुआमले से कोई तअल्लुक़ नहीं। क़ाइद-ए-आज़म जिन्नाह के लिए मैं जान देने के लिए तैय

29

फ़रिश्ता

8 अप्रैल 2022
0
0
0

सुर्ख़ खुरदरे कम्बल में अताउल्लाह ने बड़ी मुश्किल से करवट बदली और अपनी मुंदी हुई आँखें आहिस्ता आहिस्ता खोलीं। कुहरे की दबीज़ चादर में कई चीज़ें लिपटी हुई थीं जिन के सही ख़द्द-ओ-ख़ाल नज़र नहीं आते थे। एक लं

30

फाहा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

गोपाल की रान पर जब ये बड़ा फोड़ा निकला तो इस के औसान ख़ता हो गए। गरमियों का मौसम था। आम ख़ूब हुए थे। बाज़ारों में, गलियों में, दुकानदारों के पास, फेरी वालों के पास, जिधर देखो, आम ही आम नज़र आते। लाल, पीले

31

फुंदने

8 अप्रैल 2022
0
0
0

कोठी से मुल्हक़ा वसीअ-ओ-अरीज़ बाग़ में झाड़ियों के पीछे एक बिल्ली ने बच्चे दिए थे, जो बिल्ला खा गया था। फिर एक कुतिया ने बच्चे दिए थे जो बड़े बड़े हो गए थे और दिन रात कोठी के अंदर बाहर भौंकते और गंदगी बिखेर

32

बलवंत सिंह मजीठिया

8 अप्रैल 2022
0
0
0

शाह साहब से जब मेरी मुलाक़ात हुई तो हम फ़ौरन बे-तकल्लुफ़ हो गए। मुझे सिर्फ़ इतना मालूम था कि वो सय्यद हैं और मेरे दूर-दराज़ के रिश्तेदार भी हैं। वो मेरे दूर या क़रीब के रिश्तेदार कैसे हो सकते थे, इस के मु

33

बाई बाई

8 अप्रैल 2022
0
0
0

नाम उस का फ़ातिमा था पर सब उसे फातो कहते थे बानिहाल के दुर्रे के उस तरफ़ उस के बाप की पन-चक्की थी जो बड़ा सादा लौह मुअम्मर आदमी था। दिन भर वो इस पन चक्की के पास बैठी रहती। पहाड़ के दामन में छोटी सी जगह थ

34

बादशाहत का ख़ात्मा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

टेलीफ़ोन की घंटी बिजी। मनमोहन पास ही बैठा था। उस ने रीसीवर उठाया और कहा “हेलो....... फ़ौर फ़ौर फ़ौर फाईव सेवन” दूसरी तरफ़ से पतली सी निस्वानी आवाज़ आई। “सोरी....... रोंग नंबर” मनमोहन ने रीसीवर रख दिया और

35

बिलाउज़

8 अप्रैल 2022
0
0
0

कुछ दिनों से मोमिन बहुत बेक़रार था। उस को ऐसा महसूस होता था कि इस का वजूद कच्चा फोड़ा सा बन गया था। काम करते वक़्त, बातें करते हुए हत्ता कि सोचने पर भी उसे एक अजीब क़िस्म का दर्द महसूस होता था। ऐसा दर्द

36

सरकण्डों के पीछे

8 अप्रैल 2022
0
0
0

कौन सा शहर था, इस के मुतअल्लिक़ जहां तक में समझता हूँ, आप को मालूम करने और मुझे बताने की कोई ज़रूरत नहीं ।बस इतना ही कह देना काफ़ी है कि वो जगह जो इस कहानी से मुतअल्लिक़ है, पेशावर के मुज़ाफ़ात में थी। सरहद

37

मिसिज़ गुल

8 अप्रैल 2022
1
0
0

मैंने जब उस औरत को पहली मर्तबा देखा तो मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मैंने लेमूँ निचोड़ ने वाला खटका देखा है। बहुत दुबली पतली, लेकिन बला की तेज़। उस का सारा जिस्म सिवाए आँखों के इंतिहाई ग़ैर निस्वानी था। ये आँख

38

मलबे का ढेर

8 अप्रैल 2022
0
0
0

कामिनी के ब्याह को अभी एक साल भी न हुआ था कि उस का पति दिल के आरिज़े की वजह से मर गया और अपनी सारी जायदाद उस के लिए छोड़ गया। कामिनी को बहुत सदमा पहुंचा, इस लिए कि वो जवानी ही में बेवा हो गई थी। उस की

39

महमूदा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

मुस्तक़ीम ने महमूदा को पहली मर्तबा अपनी शादी पर देखा। आरसी मसहफ़ की रस्म अदा हो रही थी कि अचानक उस को दो बड़ी बड़ी.......ग़ैर-मामूली तौर पर बड़ी आँखें दिखाई दीं.......ये महमूदा की आँखें थीं जो अभी तक कुंवार

40

मिसेज़ डी सिल्वा

8 अप्रैल 2022
1
0
0

बिलकुल आमने सामने फ़्लैट थे। हमारे फ़्लैट का नंबर तेरह था। उस के फ़्लैट का चौदह। कभी कोई सामने का दरवाज़ा खटखटाता तो मुझे यही मालूम होता कि हमारे दरवाज़े पर दस्तक होरही है। इसी ग़लतफ़हमी में जब मैंने एक

41

मेरा हमसफ़र

9 अप्रैल 2022
0
0
0

प्लेटफार्म पर शहाब, सईद और अब्बास ने एक शोर मचा रखा था। ये सब दोस्त मुझे स्टेशन पर छोड़ने के लिए आए थे, गाड़ी प्लेटफार्म को छोड़ कर आहिस्ता आहिस्ता चल रही थी कि शहाब ने बढ़ कर पाएदान पर चढ़ते हुए मुझ से

42

मेरा और उसका इंतिक़ाम

9 अप्रैल 2022
0
0
0

घर में मेरे सिवा कोई मौजूद नहीं था। पिता जी कचहरी में थे और शाम से पहले कभी घर आने के आदी न थे। माता जी लाहौर में थीं और मेरी बहन बिमला अपनी किसी सहेली के हाँ गई थी! मैं तन्हा अपने कमरे में बैठा किताब

43

वह लड़की

9 अप्रैल 2022
0
0
0

सवा-चार बज चुके थे लेकिन धूप में वही तमाज़त थी जो दोपहर को बारह बजे के क़रीब थी। उस ने बालकनी में आ कर बाहर देखा तो उसे एक लड़की नज़र आई जो बज़ाहिर धूप से बचने के लिए एक साया-दार दरख़्त की छांव में आलती पाल

44

वो ख़त जो पोस्ट न किये गए

9 अप्रैल 2022
0
0
0

हव्वा की एक बेटी के चंद ख़ुतूत जो उस ने फ़ुर्सत के वक़्त मुहल्ले के चंद लोगों को लिखे। मगर इन वजूह की बिना पर पोस्ट न किए गए जो इन ख़ुतूत में नुमायां नज़र आती हैं। (नाम और मुक़ाम फ़र्ज़ी हैं) पहला ख़त म

45

शादी

9 अप्रैल 2022
0
0
0

जमील को अपना शैफर लाइफ-टाइम क़लम मरम्मत के लिए देना था। उस ने टेलीफ़ोन डायरेक्ट्री में शैफर कंपनी का नंबर तलाश किया। फ़ोन करने से मालूम हुआ कि उन के एजेंट मैसर्ज़ डी, जे, समतोइर हैं जिन का दफ़्तर ग्रीन

46

सड़क के किनारे

9 अप्रैल 2022
0
0
0

“यही दिन थे......... आसमान उस की आँखों की तरह ऐसा ही नीला था जैसा कि आज है। धुला हुआ, निथरा हुआ......... और धूप भी ऐसी ही कनकनी थी......... सुहाने ख़्वाबों की तरह। मिट्टी की बॉस भी ऐसी ही थी जैसी कि इ

47

शारदा

9 अप्रैल 2022
0
0
0

नज़ीर ब्लैक मार्कीट से विस्की की बोतल लाने गया। बड़क डाकख़ाने से कुछ आगे बंदरगाह के फाटक से कुछ इधर सिगरेट वाले की दुकान से उस को स्काच मुनासिब दामों पर मिल जाती थी। जब उस ने पैंतीस रुपये अदा करके काग़

48

सिराज

9 अप्रैल 2022
0
0
0

नागपाड़ा पुलिस चौकी के उस तरफ़ जो छोटा सा बाग़ है। उस के बिलकुल सामने ईरानी के होटल के बाहर, बिजली के खंबे के साथ लग कर ढूंढ़ो खड़ा था। दिन ढले, मुक़र्ररा वक़्त पर वो यहां आ जाता और सुबह चार बजे तक अपने धंद

49

हज्ज-ए-अकबर

9 अप्रैल 2022
0
0
0

इम्तियाज़ और सग़ीर की शादी हुई तो शहर भर में धूम मच गई। आतिश बाज़ियों का रिवाज बाक़ी नहीं रहा था मगर दूल्हे के बाप ने इस पुरानी अय्याशी पर बे-दरेग़ रुपया सर्फ़ किया। जब सग़ीर ज़ेवरों से लदे फंदे सफ़ैद बुर्र

50

सजदा

9 अप्रैल 2022
0
0
0

गिलास पर बोतल झुकी तो एक दम हमीद की तबीयत पर बोझ सा पड़ गया। मलिक जो उसके सामने तीसरा पैग पी रहा था फ़ौरन ताड़ गया कि हमीद के अंदर रुहानी कश्मकश पैदा होगई है। वो हमीद को सात बरस से जानता था, और इन सात बर

51

लाइसेंस

9 अप्रैल 2022
0
0
0

अब्बू कोचवान बड़ा छैल छबीला था। उस का ताँगा घोड़ा भी शहर में नंबर वन था। कभी मामूली सवारी नहीं बिठाता था। उस के लगे बंधे गाहक थे जिन से उस को रोज़ाना दस पंद्रह रुपय वसूल हो जाते थे जो अब्बू के लिए काफ़ी थ

52

हाफ़िज़ हुसैन दीन

9 अप्रैल 2022
0
0
0

हाफ़िज़ हुसैन दीन जो दोनों आँखों से अंधा था, ज़फ़र शाह के घर में आया। पटियाले का एक दोस्त रमज़ान अली था, जिस ने ज़फ़र शाह से उस का तआरुफ़ कराया। वो हाफ़िज़ साहिब से मिल कर बहुत मुतअस्सिर हुआ। गो उन की

53

संतर पंच

9 अप्रैल 2022
0
0
0

मैं लाहौर के एक स्टूडियो में मुलाज़िम हुआ जिस का मालिक मेरा बंबई का दोस्त था उस ने मेरा इस्तिक़बाल क्या मैं उस की गाड़ी में स्टूडियो पहुंचा था बग़लगीर होने के बाद उस ने अपनी शराफ़त भरी मोंछों को जो ग़ालिबन

54

शैदा

9 अप्रैल 2022
0
0
0

शैदे के मुतअल्लिक़ अमृतसर में ये मशहूर था कि वो चट्टान से भी टक्कर ले सकता है उस में बला की फुर्ती और ताक़त थी गो तन-ओ-तोश के लिहाज़ से वो एक कमज़ोर इंसान दिखाई देता था लेकिन अमृतसर के सारे गुंडे उस से ख़ौ

55

राम खेलावन

9 अप्रैल 2022
0
0
0

खटमल मारने के बाद में ट्रंक में पुराने काग़ज़ात देख रहा था कि सईद भाई जान की तस्वीर मिल गई। मेज़ पर एक ख़ाली फ़्रेम पड़ा था....... मैंने इस तस्वीर से उस को पुर कर दिया और कुर्सी पर बैठ कर धोबी का इंतिज़ार

56

रहमत-ए-खुदा-वंदी के फूल

9 अप्रैल 2022
0
0
0

ज़मींदार, अख़बार में जब डाक्टर राथर पर रहमत-ए-ख़ुदा-वंदी के फूल बरसते थे तो यार दोस्तों ने ग़ुलाम रसूल का नाम डाक्टर राथर रख दिया। मालूम नहीं क्यूँ, इस लिए कि ग़ुलाम रसूल को डाक्टर राथर से कोई निसबत नह

57

मिस फ़र्या

9 अप्रैल 2022
0
0
0

शादी के एक महीने बाद सुहेल परेशान होगया। उस की रातों की नींद और दिन का चैन हराम हो गया। उस का ख़याल था कि बच्चा कम अज़ कम तीन साल के बाद पैदा होगा मगर अब एक दम ये मालूम करके उस के पांव तले की ज़मीन निक

58

मिस अडना जैक्सन

9 अप्रैल 2022
0
0
0

कॉलिज की पुरानी प्रिंसिपल के तबादले का एलान हुआ, तालिबात ने बड़ा शोर मचाया। वो नहीं चाहती थीं कि उन की महबूब प्रिंसिपल उन के कॉलेज से कहीं और चली जाये। बड़ा एहतिजाज हुआ। यहाँ तक कि चंद लड़कियों ने भूक हड़

59

बुड्ढ़ा खूसट

9 अप्रैल 2022
0
0
0

ये जंग-ए-अज़ीम के ख़ातमे के बाद की बात है जब मेरा अज़ीज़ तरीन दोस्त लैफ़्टीनैंट कर्नल मोहम्मद सलीम शेख़ (अब) ईरान इराक़ और दूसरे महाज़ों से होता हुआ बमबई पहुंचा। उस को अच्छी तरह मालूम था, मेरा फ़्लैट कहाँ ह

60

शह नशीं पर

9 अप्रैल 2022
0
0
0

वो सफ़ैद सलमा लगी साड़ी में शह-नशीन पर आई और ऐसा मालूम हुआ कि किसी ने नक़रई तारों वाला अनार छोड़ दिया है। साड़ी के थिरकते हूए रेशमी कपड़े पर जब जगह जगह सलमा का काम टिमटिमाने लगता तो मुझे जिस्म पर वो तमाम

61

चुग़द

9 अप्रैल 2022
2
0
0

लड़कों और लड़कियों के मआशिक़ों का ज़िक्र हो रहा था। प्रकाश जो बहुत देर से ख़ामोश बैठा अंदर ही अंदर बहुत शिद्दत से सोच रहा था, एक दम फट पड़ा। सब बकवास है, सौ में से निन्नानवे मआशिक़े निहायत ही भोंडे और लचर

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए