shabd-logo

सहज ज्योतिष

16 नवम्बर 2022

63 बार देखा गया 63

10- राशि चक्र व राशि प्रसंग-

यह ज्योतिष का एक सर्वथा मूल सिद्धांत है। इसमें कुल बारह राशियां मानी गई हैं। इन्हें प्रायः सब जानते हैं। संत तुलसीदास कह गए हैं -

बड़े भाग मानुस तन पायो !

इस मानुस तन के पिछले व आने वाले कर्मों का लेख जन्म कुंडली बताने में सक्षम है। कुंडली के बारह भाव होते हैं जिनमें बारहों राशियों तथा नवग्रहों के संयोजन, स्वरूप आदि से फल निर्धारित किये जाने का विधान है।

इस राशि चक्र में,

-मेष राशि व लग्न प्रथम है तथा मीन राशि अंतिम है।

-मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु तथा कुंभ विषम राशियां हैं। इसी प्रकार,

-वृषभ, कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर तथा मीन राशियां सम राशियां हैं।

तथा

इन राशियों के क्रमवार नाम इस प्रकार हैं मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ तथा मीन। लग्न सारिणी में इन बारह राशियों के अनुसार ही कुल बारह लग्न माने गए हैं। अगले पृष्ठों में राशि परिचय देने जा रही हूं -

1-मेष राशि  को पुरूष जाति का, चर संज्ञा तथा पूर्व दिशा की स्वामी कहा गया है। उग्र प्रकृति वाली, धातु संज्ञक,
रक्त-पीतवर्णी, बहुत कुछ कांति हीन सी, क्षत्रिय वर्णी कही गई है। यह राशि अश्विनी, कृतिका तथा भरणी नक्षत्रों के योग से निर्मित कही जाती है। अप्रेल तथा मई के बीच का समय इसका मुख्य होता है। इसकी प्रकृति पित्त प्रधान बताई जाती है। इससे प्रभावित जातक लंबे कद, मजबूत शरीर,लालिमा युक्त चेहरे वाले, चंचल, कू्रर,बुद्धिमान, साहसी स्वभावी, अभिमानी तथाअपने मित्रों पर मेहरबान होते हैं। इन्हें अपने कार्यों केप्रति समर्पित पाया जाता है। इनके सब अंग सुडौल, समान तथा नपे-तुले होते हैं। संतान के मामले में इसराशि वाले जातक की संतति अल्प कही गई है। इस राशि का स्वामी मंगल होता है।

इन्हें शुभ रत्न मूंगा तथा माणिक्य बताया जाता है। मंगलवार, गुरूवार तथा रविवार इनके लिये अच्छे दिन बतलाए गए हैं। इनका शुभ अंक 9 कहा गया है।

2-वृष राशि वृष या वृषभ को स्त्री राशि की, स्थिर संज्ञा वाली, शीतल स्वभावी, भूमि तत्व वाली, स्थूल शरीरी,
बैल के आकार की, वात प्रकृति वाली, कांति हीन, श्वेत वर्णी, वैश्य वर्णी व अर्धजलीय मानी जाती है। इसे रात्रिबली, मध्यम संतति, दक्षिण दिशा की स्वामिनी तथा समझ-बूझ वाली, सांसारिक कार्यों में दक्षता रखने वाली, कोमल, स्थिर व शांत बताया जाता है। इससे प्रभावित जातकों में ये गुण मिलते हैं। इससे प्रभावित जातक गुरू तथा माता-पिता के अनन्य भक्त तथा तेजस्वी होते हैं। ये विचारक भी होते हैं लेकिन भावुकता तथा अति महत्वाकांक्षा इनका एक अहम गुण होता है। कर्म पर विश्वास करने वाले कहे जाते हैं। इन्हें अच्छे मित्र मिलते हैं। इस राशि का स्वामी शुक्र है।

इस राशि से जातक के कंठ, चेहरे व कपोलों आदि का विचार किया जाता है। यह राशि रोहिणी, कृतिका व मृगशिरा नक्षत्रों के मेल से बनी है। इस राशि के जातकों को हीरा पहनना शुभ माना गया है। बुध, शुक्र तथा शनिवार इनके लिये अच्छे बताए जाते हैं।

3-मिथुन राशि को द्विस्वभावी, पुरूष राशि माना गया है। यह वायु तत्व प्रधान, रात्रि में बली, मध्यम संतति, इस राशि का स्वाभाविक रंग चमकीला हरा बिल्कुल तोते जैसा, शूद्र वर्णी, उष्ण कही गई है। इसके जातक शिथिल शरीरी होते है। इस राशि का प्राकृतिक स्वभाव कुशल शिल्पी तथा विद्याध्ययन की ओर प्रेरित कहा गया है। पश्चिम दिशा की स्वामी हो कर इससे जातक के हाथ, कंधे तथा बाजुओं का विचार किया जाता है। इस राशि का स्वामी बुध है। इससे प्रभावित जातक का कद लंबा, रंग भूरा-गोरा, बाल अच्छे होते हैं। अधिकतर ये तकनीकी कार्यों को पसंद करते हैं। प्रायः ये विवादों में घिर जाते हैं।अच्छे खान-पान के, भोग-विलास के शौकीन मिलते हैं। सोम, बुध तथा शुक्र इनके लिये शुभ दिन बताए हैं। इस राशि का रत्न पन्ना है।भाग्यांक 5 कहा जाता है।

4-कर्क राशि को उत्तर दिशा की स्वामी मानते हुए इसे स्त्री जाति का कहा गया है। यह रात्रि बली, जलीय, सौम्य तथा कफ प्रवृत्ति की, रक्ताभ-उज्जवल मिश्रित वर्णी, चर तथा बहु संततिकारी कही गई है। इसका स्वामी चंद्र है। पुष्य,
आश्लेषा तथा पुनर्वसु नक्षत्रों के मे लये निर्मित यह राशि अपने प्राकृतिक स्वभाव में सांसारिक उन्नति में अग्रणी प्रयास करने वाली, कार्यों में स्थिरता, लज्जा आदि से युक्त मानी गई है। इससे जातक के पेट, गुर्दे तथा वक्षस्थल का विचार किया जाता है। इससे प्रभावित जातकअधिकतर राजनेता, उच्च शिक्षित, बुद्धिमान, प्रोफेसर अथवा नेवी व समुद्र व पानी से जुड़े कार्य करने वाले होते हैं। नम्रता, सहृदयता तथा मिलनसारिता इनमें खूब पाई जाती है। प्राथमिकता से अपने कामों को पूर्ण करना, अन्यों के प्रति समानता के भाव रखना तथा उनकी सहायता करने के भाव इनमें मिलते हैं। पिता की तुलना में ये जातकअपनी माता के प्रतिअधिक आदर व प्रेम-भाव रखते हैं। इनके लिये शुभ दिवस सोमवार बताया गया है। मोती व माणिक्य धारण करने की सलाहें अक्सर दी जाती है। इनके लिये सफेद रंग को शुभ माना गया है तथा इनका शुभअंक है 7।

5-सिंह राशि को अग्नि तत्वीय,पुरूष राशि की, निर्जल, क्षत्रिय वर्णी, पीत वर्णी, स्थिर संज्ञी, दिन में बली, उष्ण स्वभावी कहा गया है। इस राशि का स्वामी है सूर्य। इसे पूर्व दिशा की स्वामी माना गया है। इसे उत्तरा फाल्गुनी तथा पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्रों के मेल से निर्मित हुई माना गया है।

इसके जातक का शरीर मजबूत,वे मजबूत भुजाओं वाले, पराक्रमी व निर्भयी तथा भ्रमण के शौकीन होते हैं। वनसेवा अथवा वन से संबधित व्यापार में, सेना, कलाकार, बढ़ई आदि के कार्यों में कुशल होते हैं। इससे जातक के हृदय का विचार करते हैं। इसके प्राकृतिक स्वभाव को मेष राशि की तरह का माना गया है, किंतु इसमें स्वतंत्रता के प्रति मोह तथा उदारता बहुतायत से मिलती है। इस राशि का शुभ रत्न माणिक, शुभ दिन गुरू तथा रविवार है। शुभ अंक है 1 तथा 4।

6-कन्या राशि को स्त्री जाति, द्विस्वभावी, रात्रि बली, वायु तथा शीत प्रकृति की,अल्प संतति, पिंगल वर्णी तथा पृथ्वी तत्वीय माना गया है। इसे प्राकृतिक स्वभाव में मिथुन के जैसी बताया गया है किंतु अपनी उन्नति तथा मान के बारे में यह बेहद सचेत होती है। कन्या राशि से पेट का विचार किया जाता है। दक्षिण दिशा की स्वामी कही गई है। हस्त,
चित्रा तथा उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्रों के योग से बनी है। इसका स्वामी भी बुध है।

इसके जातकों को मध्यम कद-काठी के,शर्मीले, कोमल हृदय वाले पाते हैं।आत्मविश्वास की कमी जैसी बातों से इन्हें जूझना पड़ सकता है। ये ऐकांत में समय बिताना पसंद करते हैं। प्रेम भाव से भरे होते हैं। रत्न पुखराज तथा पन्ना है तथा शुभ दिन बुधवार तथा शनिवार हैं। इन जातकों का भग्यांक 5 माना गया है।

7-तुला राशि  को चर, शूद्र संज्ञी माना गया है। यह वायु तत्वीय, पुरूष जाति, दिन बली, नीलाभ-श्याम वर्णी, कू्रर स्वभावी कही गई है। अपने प्राकृतिक स्वभाव में यह ज्ञानप्रिय, राजनीतिज्ञ, विचारवान तथा कार्यकुशल कही गई है।नाभि के नीचे केअंगों का इससे विचार किया जाता है। इसे पश्चिम दिशा की स्वामी कहा गया है। इसका स्वामी शुक्रहै।

इसके जातक परिश्रमी, मध्यस्थता करने वाले, ज्ञान युक्त, राजनीतिव दर्शन में रूचि रखने वाले तथा बच्चों को पसंद करने वाले होते हैं। इन्हें कुछ जिद्दी भी कहा जाता है। चित्रा, विशाखा तथा स्वाति नक्षत्रों के योग से बनी यह राशि जिनकी होती है उनका कद सामान्य तथा शरीर कमजोर होता है। इनका शुभ रत्न हीरा व मोती, शुभ दिन बुधवार व शनिवार तथा शुभ अंक 6 बताया गया है।

8-वृश्चिक राशि  को स्त्री जाति की, स्थिर संज्ञी, जलीय, रात्रि बली, बहु संतति, ब्राह्मण वर्णी तथा अर्धजलीय कहा गया है। अपने प्राकृतिक स्वभाव में यह हठी, दंभी किंतु निर्मल, स्पष्टवादी तथा दृढ़ प्रतिज्ञ मानी गई है। इससे जातक के कद व जननांगों का विचार किया जाता है। इसे उत्तरदिशा की स्वामी कहा गया है। इसे बिच्छू के आकार की, अचानक छुप के वार करने वाली कहा गया है।अनुराधा, ज्येष्ठा व विशाखा नक्षत्र से संबद्ध इस राशि का स्वामी मंगल है।

इससे प्रभावित जातकों को अपने धन को दो गुना करने में ही आनंदआता है। किंतु अपने जीवन साथी के अलावाअन्य में आसक्ति रहती है। वे अतिशय लोभी, विघ्नकर्ता तथा गंभीर अपराध करने में लिप्त हो सकते हैं। इनकी दोस्ती व दुश्मनी दोनों ही ठीक नहीं। इनका शुभ दिन सोम, गुरू तथा रविवार बताए गए हैं। रत्न मूंगा और माणिक्य तथा भाग्यकारी अंक बताया जाता है 9।

9-धनु राशि  को द्विस्वभावी, कांचन वर्णी, कू्रर संज्ञी, पुरूष जाति की, पित्त प्रकृति वाली,अग्नि तत्वीय, दिन बली, अल्प संतति, क्षत्रिय वर्णी तथा अर्धजलीय माना जाता है। इसका प्राकृतिक स्वभाव करूणा मय किंतु अधिकार प्रिय तथा मर्यादा का इच्छुक बताया गया है। इससे पैरों की संधि तथा जंघाओं का विचार किया जाता है। इसे पूर्व दिशा की स्वामी कहा गया है। मूल, पूर्वाषाढ़ा तथा उत्तराषाढ़ा नक्षत्रों के मेल से बनी है। कू्रर धर्मा किंतु सौम्य, चंचल व साथ ही शांत लक्षणों से युक्त भी कही जाती है। इसके जातक प्रायः समदेही, द्विस्वभाव वाले होते है। अच्छे लेखक, प्राध्यापक,
दार्शनिक, कला निपुण व लेखक, ईश्वर भक्त, कर्मयोगी होते हैं। सुंदर चेहरा, बड़े कानों वाले, मोटे होंठों तथा मजबूत शरीर वाले धनवान तथा मेधा युक्त होते हैं। शुभ रतन पीला पुखराज तथा शुभदिन गुरूवार व रविवार है। भाग्यांक 3 होता है। इस राशि का स्वामी गुरू है।

10-मकर राशि  को चर संज्ञी, रात्रि बली, स्त्री जाति, पृथ्वी तत्वीय, वात प्रकृतिवाली, वैश्यवर्णी, पिंगल वर्णी कहा गया है। अपने प्राकृतिक स्वभाव में इसे उच्च अभिलाषाओं से परिपूर्ण उच्च दशाओं की इच्छुक माना गया है। इससे जातक के घुटनों का विचार किया जाता है। यह दक्षिण दिशा की स्वामी कही जाती है। उत्तराषाढ़ा, धनिष्ठा व श्रवण नक्षत्र समूह से निर्मित है। स्वभाव से यह राशि सौम्य,चंचल, चर,रजोगुणी तथा जलचर मानी गई है। इसका स्वामी शनि है।इसके जातकों को हम सुंदर नैत्रों वाले, मनन-चिंतनशील, त्यागी, आध्यात्मिक प्रवृत्ति के, धैर्यवान, सेवा भावी व चालाक,कर्मठ तथा अपने गृहस्थ जीवन से खुश न रहने वाले पाते हैं। शुभ रत्न हीरा, गोमेद, सफेद मोती व नीलम हैं। बुधवार,शुक्रवार व शनिवार इन्हें शुभ बताया है तथा इनका भाग्यांक 8 कहा जाता है।

11-कुंभ राशि को वायु प्रधान, स्थिर संज्ञी, पुरूष जाति,अर्धजलीय, विचित्र वर्णी, दिनबली, त्रिदोष प्रकृति, उष्ण स्वभाव की, शूद्रवर्णी, मध्यम संतति तथा क्रूर माना गया है। इसका प्राकृतिक स्वभाव शांत बताया है, विचारवान, धर्म युक्त तथा नवीन अविष्कारों की इच्छा इसमें बहुतायत से पाई जाती है। इससे जातक के पेट के अंदरूनी हिस्सों का विचार किया जाता है। इसे पश्चिम दिशा की स्वामी कहा गया है। इसका स्वामी भी शनि है। धनिष्ठा, शतभिषा तथा पूर्व भाद्रपद नक्षत्रों के संयोग से बनी है। नवीन खोजें करना इसका स्वभाव है।

इसके जातक प्रायःसामान्य कद-काठी के,काले केशों तथा पतली कमर वाले होते हैं। तीव्र बुद्धियुक्त, कार्यों में सदा व्यस्त रहने वाले, दयालू, परोपकारी, मिलनसार, मित्रता करने में कुशल किंतुअपने गृहस्थ जीवन से सदा दुखी होते देखे जाते हैं। स्त्री जातकों में यह दुख अधिक मिलता है, वे इस कारण अस्वस्थ भी रहती हैं। वे भावुक व समझदार होती हैं। नीलम शुभ कहा गया है। शनिवार तथा रविवार शुभ दिन तथा इनका शुभांक 8 होता है।

12-मीन राशि को द्विस्वभावी, कफ प्रकृति की, जलीय, विप्रवर्णी, रात्रिबली, ब्राह्मण वर्णी, पिंगल वर्णी तथा स्त्री जाति का माना गया है। उत्तर दिशा की स्वामी है। इसे अपने प्राकृतिक स्वभाव में दयालू तथा दानशील मानते हुए उत्तम माना गया है। मीन का मतलब है मछलीअतः यह पूरी तरह से जल राशि मानी गई है। पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद तथा रेवती नक्षत्रों के मेल से बनी इस राशि का स्वामी गुरू बताया गया है।

इससे जातक के पैरों का विचार करना बताया है। इसका प्रभाव जलाशयों, नदियों व समुद्र से जुड़ा है। इसके जातक मजबूत कद-काठी के, रूपवान, अच्छे स्वभाव के, चंचल, भावुक, जल्दी ही वश में आ जाने वाले, उच्च श्रेणी के कवि, गीतकार व संगीतकार होते हैं।

ये प्रायः जल से संबंधित कार्यों में पाए जाते हैं नेवी, नगर निगम व खेती आदि में भी ये प्रायः मिलते हैं। इनका शुभ रत्न पुखराज व शुभ दिन गुरू तथा शनिवार होता है। शुभ अंक 3 बताया गया है।

’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’

6
रचनाएँ
सहज ज्योतिष
0.0
आत्म-विकास के साथ-साथ लोक-कल्याण अर्थात मानव-कल्याण ही जयोतिष विद्या के विकास के मूल में विद्यमान माना गया है। इसमें माना गया है कि ग्रह वास्तव में किसी जातक को फल-कुफल देने के निर्धारक नहीं हैं बल्कि वे इसके सूचक अवश्य कहे जा सकते हैं। यानि ग्रह किसी मानव को सुख-दुख, लाभ-हानि नहीं पहुंचाते वरन वे मानव को आगे आने वाले सुख-दुख, हानि-लाभ व बाधाओं आदि के बारे में सूचना अवश्य देते हैं। मानव के कर्म ही उसके सुख व दुख के कारक कहे गए हैं। ग्रहों की दृष्टि मानो टॉर्चलाइट की तरह आती है कि अब तुम्हारे कैसे-कौन प्रकार के कर्मों के फल मिलने का समय आ रहा है। अतः मेरी नजर में ज्योतिष के ज्ञान का उपयोग यही है कि ग्रहों आदि से लगने वाले भावी अनुमान के आधार पर मानव सजग रहे। यह ध्यान रखना अत्यंत जरूरी है कि केवल ग्रह फल-भोग ही जीवन होता तो फिर मानव के पुरूषार्थ के कोई मायने नहीं थे, तब इस शब्द का अस्तित्व ही न आया होता। हमारे आचार्य मानते थे कि पुरूषार्थ से अदृष्ट के दुष्प्रभाव कम किये जा सकते हैं, उन्हें टाला जा सकता है। इसमें ज्योतिष उसकी मदद करने में पूर्ण सक्षम है। उनका मत था कि अदृष्ट वहीं अत्यंत प्रबल होता है जहां पुरूषार्थ निम्न होता है। इसके विपरीत, जब अदृष्ट पर मानव प्रयास व पुरूषार्थ भारी पड़ जाते हैं तो अदृष्ट को हारना पड़ता है। प्राचीन आचार्यों के अभिमत के आगे शीश झुकाते हुए, उनके अभिमत को स्वीकारते हुए मेरा भी यही मानना है कि ज्योतिष विद्या से हमें आने वाले समय की, शुभ-अशुभ की पूर्व सूचना मिलती है जिसका हम सदुपयोग कर सकते हैं। हाथ पर हाथ धर कर बैठने की हमें कोई आवश्यकता नहीं कि सब कुछ अपने आप ही अच्छा या बुरा हो जाऐगा। यह कोई विधान रचने वाला शास्त्र नहीं कि बस् अमुक घटना हो कर ही रहेगी, बल्कि यह तो सूचना देने वाला एक शास्त्र है ! यह बार-बार दोहराने की बात नहीं कि आचार्यों, मुनियों, ऋषियों ने ज्योतिष में रूचि इसलिये ली होगी कि मानव को कर्तव्य की प्रेरणा मिले। आगत को भली-भांति जान कर वह अपने कर्म व कर्तव्य के द्वारा उस आगत से अनुकूलन कर सके ताकि जीवन स्वाभाविक गति से चलता रह सके।
1

सहज ज्योतिष

14 नवम्बर 2022
6
1
1

सहज ज्योतिष सु-योग, राजयोग व धनयोग डॉ आशा चौधरी                       परम पूज्य मामाजी स्व श्री भैरवप्रसादजी ओझा                                         तथा गुरूदेव स्व.                       

2

सहज ज्योतिष

15 नवम्बर 2022
3
1
0

5- जन्म कुंडली तथा द्वादश भाव परिचय- जन्म कुंडली को मानव के पूर्व जन्मों में किये गए संचित कर्मों का बारह भावों में निबद्ध एक सांकेतिक लेखा-जोखा ही कहा जा सकता है। उसकी जन्म कुंडली यदि सही-सही बनी है

3

सहज ज्योतिष

16 नवम्बर 2022
1
1
0

10- राशि चक्र व राशि प्रसंग- यह ज्योतिष का एक सर्वथा मूल सिद्धांत है। इसमें कुल बारह राशियां मानी गई हैं। इन्हें प्रायः सब जानते हैं। संत तुलसीदास कह गए हैं - बड़े भाग मानुस तन पायो ! इस मानुस तन के

4

सहज ज्योतिष

16 नवम्बर 2022
2
1
0

11- ज्योतिष में राशि का प्रयोजन- ज्योतिष में राशि प्रयोजन को इस प्रकार समझा जा सकता है कि बारहों राशियों के स्वरूप केअनुसार ही इनके जातकों का उसी प्रकार का स्वरूप भी बताया गया है। किसी जन्म कुंडली मे

5

सहज ज्योतिष

17 नवम्बर 2022
1
1
0

16- जन्मकुंडली से शरीर का विचार- ज्योर्तिविज्ञान में माना गया है कि जातक के अंगों के परिमाण का विचार करने के लिये जन्म कुंडली को इस प्रकार अभिव्यक्त किया गया है। -लग्नगत राशि को सिर, -द्वितीय भाव म

6

सहज ज्योतिष

17 नवम्बर 2022
1
1
0

33- जन्म कुंडली में राजयोग इस अपनी पुस्तक मे बात करने जा रही हूँ  किन्हीं राजयोगों की। सु-योगों की ही तरह राजयोग भी वे योग होते हैं जो जातक को हर प्रकार से सुखी-संपन्न बनाते हैं। राजयोग अगर किसी कुं

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए