यह कविता चतुर्वेदी जी के 'युगचरण' नामक काव्य-संग्रह से संगृहीत है। प्रसंग-इन पंक्तियों में कवि ने पुष्प के माध्यम से देश पर बलिदान होने की प्रेरणा दी है। व्याख्या-कवि अपनी देशप्रेम की भावना को पुष्प की अभिलाषा के रूप में व्यक्त करते हुए कहता है कि मेरी इच्छा किसी देवबाला के आभूषणों में गूंथे जाने की नहीं है।
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