Mahashivratri parv Bharat ka bahut purana tyohar hai yah bholenath ke vivah aur is srishti utpati ke roop Mein manaya jata hai Bharat ki logon ka bolenath par atoot vishwas hai Bharat ke log hi Nahin Kai deshon ke log bhi bhagwan Shankar ki puja ka
इसे आप हिंदी की पहली मौलिक डिक्शनरी कहें, थिसॉरस, व्यंग्य निबंधों का संग्रह या कुछ और, लेकिन एक बार पढ़ना शुरू करेंगे तो बिना खत्म किए छोड़ नहीं पाएँगे। हिंदी के सामाजिक-राजनीतिक परिवेश में इस्तेमाल होनेवाले पचास प्रचलित शब्दों की निहायत ही अप्रचलित
भारत दुर्दशा भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा सन 1875 ई में रचित एक हिन्दी नाटक है। इसमें भारतेन्दु ने प्रतीकों के माध्यम से भारत की तत्कालीन स्थिति का चित्रण किया है। वे भारतवासियों से भारत की दुर्दशा पर रोने और फिर इस दुर्दशा का अन्त करने का प्रयास करन
प्रस्तुत उपन्यास कटोरा भर खून चन्द्रकान्ता की ही परम्परा खत्री जी का एक अत्यन्त रोचक और मार्मिक उपन्यास है। इसमें वातावरण सामन्तीय होते हुए भी मानवीय संवेदनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति हुई है। "काजर की कोठरी एक लघु उपन्यास है। इसका विशेष महत्त्व इसलिए भी
इक्कीसवीं सदी की यह गाथा एक स्त्री और एक पुरुष के बीच संवाद और आत्मालाप से बुनी गई है। यहाँ सिर्फ सोच की उलझनें और उनकी टकराहट ही नहीं, आत्मीयता की आहट भी है। किन्तु यह सम्बन्ध इंटरनेट की हवाई तरंगों के मार्फत है, जहाँ किसी का अनदेखा, अनजाना वजूद पूर
यह कुछ कविताओं और गजलों का संकलन है। जो अपने और अपने परिवेश की उपज है। उसे कलमबद्ध करने की कोशिश की गई है।
आजादी और गणतंत्र के सही मायने क्या हैं... ये बताने की एक छोटी सी कोशिश की हैं....।
प्रस्तुत पुस्तक अजीत भारती की चौथी पुस्तक है। व्यंग्य की विधा में ‘बकर पुराण’ से अपनी अलग पहचान बना चुके लेखक ने दोबारा उसी विधा में वापसी की है। ‘जो भी कहूँगा, सच कहूँगा’ राजनैतिक व्यंग्य संग्रह है जिसमें भारत की न्यायिक व्यवस्था, नेताओं और पार्टियो
एक विचारणीय लेख..... पुरूषों की जिंदगी से जुड़ा हुआ...।
अनामिका की ये कविताएँ सगेपन की घनी बातचीत-सी कविताएँ हैं। स्त्रियों का अपना समय इनमें मद्धम लेकिन स्थिर स्वर में अपने दु:ख-दर्द, उम्मीदें बोलता है। इनमें किसी भी तरह का काव्य-चमत्कार पैदा करने का न आग्रह है, न लगता है कि अपने होने का उद्देश्य ये कवित
परिवर्तन का समय अभी है। विकल्प स्पष्ट और भयानक है। अगर हम वर्तमान ढर्रे पर ही चलते रहे तो विश्व के अन्य लोग हमसे आगे निकल जाएँगे। गरीबी व बेरोजगारी और ज्यादा बढ़ जाएगी, जो हमारे समाज को अंतर्विस्फोट की ओर ले जाएगी। और अगर हम बदलाव लाएँगे तो हम वास्तव
पतझड़ आने वाला है उसका इंतजार क्यों आने से पहले उसके क्यों न जी लू मैं पतझड़ के बाद तो झड़ जाना है मुझे तो अभी क्यों न खिलखिलाऊँ मैं लहर लहर के क्यों न लहराऊँ मैं पतझड़ आने वाला है तो क्यों न गीत गाऊं मैं भंवरों की तरह क्यों न गुनगुनाऊँ मैं रस
एक ऐसी प्रेम कहानी जो एक लॉक डाउन से शुरू हुई है और दूसरे लॉक डाउन में खत्म हुई है।।।
यह किताब भारत देश द्वारा पहले व्यक्ति के नजरिए से दुनिया के लिए लिखी गई है ताकि वह 'सहिष्णुता' के नियम को समझकर प्रगति व समृद्धि के शिखर छू सकें. अपनी बात को सरलता से समझाने हेतु इसमें मशहूर हस्तियों की, राजनीतिक पार्टियों की, प्रधानमंत्रियों की, धर्
हाथों की चंद लकीरों का.... ये खेल हैं सब तकदीरों का....।
एक लेखक की दुनिया केवल कविता-कहानी या विधा के दायरे में कैद नहीं होती। लेखक अपने समय का सिपाही है तो समय को पहचानने के सारे उपाय उसे तलाशने होते हैं। असग़र वजाहत ऐसे लेखक हैं जो मानते हैं कि दुनिया को बेहतर बनाने के लिए साहित्य की भूमिका होती है। इसक