पूरब का ऑक्सफ़ोर्ड' और 'साहित्य की राजधानी' जैसे और भी कई विशेषणों से मशहूर शहर इलाहाबाद को एक पत्रकार और उभरते कहानीकार ने जैसा देखा, जिया और भुगता, हूबहू वैसा उतार दिया है। इस अलहदा शहर की मस्ती, इसकी बेबाकी और इसमें मिली मोहब्बत का कोलाज है यह किता
कविता पढ़नेवाले अल्पसंख्यक तो हैं, लेकिन अपार हैं। उन्हें गिनती में सीमित नहीं किया जा सकता। वे कविता से रिश्ता न रखनेवाले बहुसंख्यकों से कम ज़रूर हैं, लेकिन परिमेय नहीं हैं। कविता से ख़ुद को और ख़ुद से कविता को बदलनेवाले वे लोग लगातार हैं, लेकिन भूम
प्रेमपूर्वक कठोर झिड़की भी दी है। अब, कि जब सचमुच उनकी पुस्तक आ रही है, तो यह उनसे अधिक मेरे लिए हर्ष का विषय है। लोकेश रहस्य-रोमांच विधा में शानदार लिखते रहे हैं और उन्होंने अपने पहले उपन्यास "कालदण्ड" में एक अद्भुत रहस्यमय कहानी गढ़ी है। उम्मीद है कि
“इतिहास जब-तब जीवन की शक्तियों और मृत्यु की शक्तियों के बीच ऐसे संघर्षों का साक्षी बनता है जहाँ एक ओर, मृत्यु की शक्ति की हर पराजय असत्य पर सत्य की विजय में आस्था को बल प्रदान करती है तो दूसरी ओर, असत्य की हर कामयाबी में मनुष्यता के सम्पूर्ण विनाश की
आत्मजयी' में मृत्यु सम्बंधी शाश्वत समस्या को कठोपनिषद का माध्यम बनाकर अद्भुत व्याख्या के साथ हमारे सामने रखा। इसमें नचिकेता अपने पिता की आज्ञा, 'मृत्य वे त्वा ददामीति' अर्थात मैं तुम्हें मृत्यु को देता हूँ, को शिरोधार्य करके यम के द्वार पर चला जाता ह
रवीश कुमार की यह किताब ‘बोलना ही है’ इस बात की पड़ताल करती है कि भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता किस-किस रूप में बाधित हुई है, परस्पर संवाद और सार्थक बहस की गुंजाइश कैसे कम हुई है और इससे देश में नफ़रत और असहिष्णुता को कैसे बढ़ावा मिला है। कैसे जनता क
आसान दीखनेवाली मुश्किल कृति ‘हमारा शहर उस बरस’ में साक्षात्कार होता है एक कठिन समय की बहुआयामी और उलझाव पैदा करनेवाली डरावनी सच्चाइयों से। बात ‘उस बरस’ की है, जब ‘हमारा शहर’ आए दिन साम्प्रदायिक दंगों से ग्रस्त हो जाता था। आगजनी, मारकाट और तद्जनित दहश
व्यंग्य के क्षेत्र में नरेंद्र कोहली ने अपनी अलग पहचान बनाई है व्यंग्य लेखन में जिस स्पष्टवादिता की आवश्यकता होती है वह कोहली जी के लेखन और व्यक्तित्व दोनों में देखने को मिलती है। व्यंग्य में कव्य-वैविध्य के अभाव को तोड़ती उनकी रचनाओं ने शिल्पगत वैविध
इसे आप हिंदी की पहली मौलिक डिक्शनरी कहें, थिसॉरस, व्यंग्य निबंधों का संग्रह या कुछ और, लेकिन एक बार पढ़ना शुरू करेंगे तो बिना खत्म किए छोड़ नहीं पाएँगे। हिंदी के सामाजिक-राजनीतिक परिवेश में इस्तेमाल होनेवाले पचास प्रचलित शब्दों की निहायत ही अप्रचलित
हिन्दुत्व में स्त्री को देवी के समान माना गया है। देश के विभिन्न हिस्सों में देवी के अलग-अलग रूप पूजे जाते हैं। कहीं वह प्रकृति के रूप में माता है, कहीं पर मानवता की स्रष्टा है, कहीं पर ज्ञान की देवी सरस्वती है तो कहीं पर सम्पदा की देवी लक्ष्मी है। इ
परिवर्तन का समय अभी है। विकल्प स्पष्ट और भयानक है। अगर हम वर्तमान ढर्रे पर ही चलते रहे तो विश्व के अन्य लोग हमसे आगे निकल जाएँगे। गरीबी व बेरोजगारी और ज्यादा बढ़ जाएगी, जो हमारे समाज को अंतर्विस्फोट की ओर ले जाएगी। और अगर हम बदलाव लाएँगे तो हम वास्तव
इक्कीसवीं सदी की यह गाथा एक स्त्री और एक पुरुष के बीच संवाद और आत्मालाप से बुनी गई है। यहाँ सिर्फ सोच की उलझनें और उनकी टकराहट ही नहीं, आत्मीयता की आहट भी है। किन्तु यह सम्बन्ध इंटरनेट की हवाई तरंगों के मार्फत है, जहाँ किसी का अनदेखा, अनजाना वजूद पूर
माटी ने ही रची विनाशलीला और उसी माटी से फिर मिला पुनर्जीवन.... 1999 में ओड़िशा में एक ऐसा भयंकर साइक्लोन आया जो उत्तरी हिन्द महासागर में अभी तक का सबसे विनाशकारी साइक्लोन था। समुद्र का पानी तट को पार कर 35 किलोमीटर अन्दर तक पहुँच कर जगतसिंहपुर जिले के
वरिष्ठ कवि कुँवर नारायण घनी भूत जीवन-विवेक सम्पन्न रचनाकार हैं। इस विवेक की आँख से वे कृतियों, व्यक्तियों, प्रवृत्तियों व निष्पत्तियों में कुछ ऐसा देख लेते हैं जो अन्यत्र दुर्लभ है। समय-समय पर उनके द्वारा लिखे गए लेख आदि इसका प्रमाण हैं। ‘रुख’ कुँवर
तीन निगाहों की एक तस्वीर आपका बंटी और महाभोज जैसे कालजयी उपन्यासों की रचयिता मन्नू भंडारी की कहानियाँ अपने मन्तव्य की स्पष्टता, साफगोई और भाषागत सहजता के लिए खासतौर पर उल्लेखनीय रही हैं। उनकी कहानियों में जीवन की बड़ी दिखनेवाली जटिल और गझिन समस्याओं
प्रस्तुत पुस्तक अजीत भारती की चौथी पुस्तक है। व्यंग्य की विधा में ‘बकर पुराण’ से अपनी अलग पहचान बना चुके लेखक ने दोबारा उसी विधा में वापसी की है। ‘जो भी कहूँगा, सच कहूँगा’ राजनैतिक व्यंग्य संग्रह है जिसमें भारत की न्यायिक व्यवस्था, नेताओं और पार्टियो
जल जीवन का आधार है और हिमनद जल का स्रोत बड़े-बड़े हिमखंड, जो अपने ही भार के कारण निम्न भूमि की ओर खिसकते रहते हैं, बर्फ के ऐसे ही विशाल संग्रह को हिमनद कहते हैं। यही ठोस बर्फ पिघलकर नदी के रूप में बहती है जो मानव ही नहीं, प्राणिमात्र को शुद्ध और स्वच
अनामिका की ये कविताएँ सगेपन की घनी बातचीत-सी कविताएँ हैं। स्त्रियों का अपना समय इनमें मद्धम लेकिन स्थिर स्वर में अपने दु:ख-दर्द, उम्मीदें बोलता है। इनमें किसी भी तरह का काव्य-चमत्कार पैदा करने का न आग्रह है, न लगता है कि अपने होने का उद्देश्य ये कवित
अमर भारत में अमीश तीक्ष्ण लेखों, गहन वक्तव्यों और बौद्धिक चर्चाओं की श्रृंखला के माध्यम से भारत को एक नए रूप में समझने में आपकी मदद करते हैं। धर्म, पुराण, परंपरा, इतिहास, समकालीन सामाजिक आदर्शों, प्रशासन, और नैतिक मूल्यों जैसे विषयों पर अपनी गहन जानक
यह एक लोकप्रिय धारणा है कि रामायण आदर्शवादी है, जबकि महाभारत यथार्थवादी है। फिर भी ये दो महाकाव्यों में समान निर्माण खंड, समान विषयवस्तु और समान इतिहास है। इस अभूतपूर्व पुस्तक में, भारत के सबसे लोकप्रिय पौराणिक कथाकार, देवदत्त पटनायक ने इसकी पड़त