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संतर पंच

9 अप्रैल 2022

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मैं लाहौर के एक स्टूडियो में मुलाज़िम हुआ जिस का मालिक मेरा बंबई का दोस्त था उस ने मेरा इस्तिक़बाल क्या मैं उस की गाड़ी में स्टूडियो पहुंचा था बग़लगीर होने के बाद उस ने अपनी शराफ़त भरी मोंछों को जो ग़ालिबन कई दिनों से ना-तराशीदा थीं थिरका कर कहा:

“क्यों ख़्वाजा! छोड़ दी ”

मैंने जवाब दिया।

“छोड़नी पड़ी ”

स्टूडियो का मालिक जो अच्छा फ़िल्म डायरेक्टर भी है (मैं उसे सहूलत की ख़ातिर गीलानी कहूंगा) मुझे अपने ख़ास कमरे में ले गया इधर उधर की बे-शुमार बातें करने के बाद उस ने चाय मंगवाई जो निहायत ज़लील थी, ज़बरदस्ती पिलाई कई सिगरेट इस दौरान ख़ुद फूंके और मुझ से फूंकवाए।

मुझे एक ज़रूरी काम से जाना था चुनांचे मैंने उस से कहा

“यार, छोड़ो अब चाय की बकवास को मुझे ये बताओ कि तुम ने आज इतने बरसों के बाद कैसे याद कर लिया”

“बस एक दिन अचानक याद आगए बुला लिया बताओ अब सेहत कैसी है ”

“तुम्हारी दुआ से ठीक है मेरे लहजे में दोस्ताना तंज़ था। वो हंसा ”

“वाह, मेरे मौलवी साहब मेरा ख़याल है कि जब से तुम ख़ुश्क ख़ुश्क हुए हो तुम्हारी हर वक़्त शगुफ़्ता रहने वाली तबीयत ठहरे पानी की तरह ठहर गई है ”

“होगा ऐसा ही ”

“होगा क्या है ही ऐसा मुआमला लेकिन ख़ुदा न करे, ऐसी ज़ेहानत जिस के सब मोतरिफ़ हैं इस का भी यही हश्र हो क्या तुम अब भी फ़िल्म कहानी का ढांचा तैय्यार कर सकते हो फ़रस्ट क्लास कहानी ”

मैंने उस से कहा:

“फ़र्स्ट, सीकन्ड, इंटर और थर्ड मैं नहीं जानता अलबत्ता कहानी ज़रूर होगी तुम सोचते हो फ़र्स्ट की कहानी वो स्क्रीन पर आते ही थर्ड न बन जाये या थर्ड जिस को तुम ने डिब्बों में बंद कर के गोदाम में रख छोड़ा था वो गोल्डन जुबली फ़िल्म साबित हो किया दरुस्त नहीं ख़ैर इन बातों को छोड़ो तुम ये बताओ कि चाहते क्या हो।”

इस ने मुझे एक सिगरेट सुलगा कर दिया और संजीदगी से कहा:

“देखो मंटो मैं एक कहानी चाहता हूँ बड़ा दिलचस्प रोमान हो और तुम मुझे उस का मुफ़स्सल स्कैच एक हफ़्ते के अंदर अंदर दे दो क्योंकि में फ़िल्म डिस्टरीब्यूटर से कंट्रैक्ट कर चुका हूँ तुम बताओ कितनी देर में लिख लोगे ”

“फ़राग़त से एक महीने के बाद ”

सर्दियों का मौसम था उस ने अपने हाथ एक दूसरे के साथ बड़े ज़ोर के साथ मिले इस के इस अमल से दो चीज़ें ज़ाहिर होती थीं अव्वल ये कि उस के हाथ गर्म होगए हैं दोम ये कि उस के सर का बोझ हल्का होगया है कि उस को कहानी वक़्त पर मिल जाएगी और वो जो कि मेरी तरह तेज़ी से काम करने वाला है, उसे वक़्त-ए-मुक़र्ररा के अंदर अंदर डाइरेक्ट कर के उस के प्रिंट डिस्टरीब्यूटर के हवाले कर देगा और कंट्रैक्ट की रू से जो बक़ाया रक़म इस के नाम निकलती थी, उसी वक़्त मेज़ पर धरवा लेगा।

उस ने चंद लमहात ग़ौर किया।

“कल ही काम शुरू कर देगा ”

मैंने जवाब दिया:

काम तो मैं शुरू कर दूं लेकिन यहां मेरे लिए कोई अलाहिदा कमरा होना चाहिए।”

“हो जाएगा ”

“और एक अस्सिटैंट ”

“मिल जाएगा तो कल से आना शुरू कर दोगे ”

मैंने उस से कहा:

“देखो गीलानी मेरे घर से और तुम्हारे स्टूडियो तक का फ़ासिला काफ़ी है तांगे में आऊं तो क़रीब क़रीब डेढ़ घंटा बस का सवाल ही पैदा नहीं होता ”

उस ने पूछा

“क्यों ”

“यानी उस का इंतिज़ार करना पड़ता है बस स्टैंड पर खड़े रहो ख़ुदा ख़ुदा कर के पाँच नंबर की बस आगई मुसाफ़िरों से भरी हुई और वो बग़ैर ठहरे चल दी और तुम ख़ुद को दुनिया का कम-तरीन इंसान महसूस करते हो जी में आता है कि ख़ुदकुशी कर लो या फिर दुनिया वालों की बे-रुख़ी से नजात हासिल करने के लिए सन्यास धार लूँ ”

गीलानी ने अपनी शरारत भरी मोंछें थिरकाईं।

“मैं शर्त बदने के लिए तैय्यार हूँ कि तुम कभी दुनिया त्याग नहीं सकते जिस दुनिया में हर क़िस्म की शराब मिलती है और ख़ूबसूरत औरतें भी ”

मैंने चिड़ कर कहा:

“औरतें जाएं जहन्नम में तुम अच्छी तरह जानते हो कि मैं बंबई के हर स्टूडियो में, जहां मैंने काम किया, उन से दूर ही रहा।”

“तुम तो ख़ैर अपने वक़्त के डोन जो आन Donjyan हो।”

“मज़ाक़ उड़ाते हो तुम ख़्वाजा मेरा।”

मैंने संजीदगी के साथ उस से कहा:

“नहीं गीलानी

ये रुत्बा बुलंद मिला जिस को मिल गया

या यूं कह लो

ईं सआदत बज़ोर बाज़ू नीस्त

ता ना बख़शद ख़ुदाए बख़शिंदा

गीलानी मुस्कुराया

“ख़ुदाए बख़शिंदा तो बड़े अर्से से तुम्हें मरहूम ओ मग़फ़ूर कर चुका है तुम बख़्शी हुई रूह हो।”

मैंने कहा:

“इस से क्या होता है मैं अपने गुनाहों की सज़ा भुगतना चाहता हूँ ”

“फ़लसफ़ा मत बघारो यार ये बताओ क्या अभी तक तुम्हारे पास वो उर्दू टाइपराइटर मौजूद है।”

“अच्छा तो ये बताओ कि वो ऐक्ट्रीस जिस से तुम ने कलकत्ता में शादी की थी, अभी तक तुम्हारे पास मौजूद है ”

गीलानी ने फ़ख़्रिया अंदाज़ में जवाब दिया:

“मौजूद क्यों नहीं होगी गोया तुम्हारी नज़र में ऐक्ट्रीस और टाइपराइटर में कोई फ़र्क़ नहीं ”

मैंने उस से कहा:

“क्या फ़र्क़ है एक फ़िल्म पर टाइप करती है दूसरी काग़ज़ पर दोनों किसी वक़्त भी बिगड़ सकती हैं ”

गीलानी मेरी इन बातों से तंग आगया था आख़िर मैंने उस को दिलासा दिया

“यार, ये सब मज़ाक़ था तो मैं कल आजाऊँ मेरा मतलब है तुम गाड़ी भेज दोगे?”

गीलानी सोफे पर से उठा उस के साथ में भी उस ने कहा:

“हाँ हाँ भई कब चाहिए तुम्हें गाड़ी ”

“कोई वक़्त भी मुक़र्रर कर लो साढ़े नौ बजे सुबह ”

“ठीक है ”

“तुम काग़ज़ वग़ैरा आज ही मंगवा लेना ताकि में स्टूडियो पहुंचते ही काम शुरू कर दूँ और तुम से उल्टा न सुनूं कि देखो तुम ने मुझे लेट डाउन दिया। मेरा इतने हज़ार रुपय का नुक़्सान हो गया है।”

गीलानी ने बड़े प्यार से कहा:

“क्या बकते हो यार मैं तुम्हारी तबीयत से क्या वाक़िफ़ नहीं कभी कभी तुम डुबकी लगा जाया करते हो ”

मैंने उस को यक़ीन दिलाया:

“नहीं ऐसा नहीं होगा तुम मुतमइन रहो हाँ मेरा टाइपराइटर यहां महफ़ूज़ तो रहेगा? गीलानी की आदत है कि वो ज़रा ज़रा सी बात पर चढ़ जाता है।”

“महफ़ूज़ नहीं रहेगा तो क्या गुंडे अग़वाह करने आ जाऐंगे। अपने किसी आशिक़ के साथ तुम्हारी मशीन भाग निकलेगी ”

मैं बहुत हंसा।

हंसते हंसाते हम दोनों ने स्टूडियो का चक्कर लगाया इस के बाद उस ने मुझे उल-विदा कही और मैं उसी गाड़ी में बैठ कर रवाना होगया जहां पहुंचते ही मैंने टाइपराइटर की झाड़ पोंछ की इस लिए कि एक मुद्दत से मैंने उसे इस्तिमाल नहीं किया था क्योंकि फ़िल्मी कहानी लिखने का इस दौरान में कोई मौक़ा ही मयस्सर न आया।

बिगड़ा हुआ मिकैनिक या मिस्त्री आर्टिस्ट बन जाता है, ये मेरा अपना ज़ाती इख़्तिरा करदा मुहावरा है

गीलानी शुरू शुरू में मिकैनिक था बिगड़ कर वो आर्टिस्ट बन गया, पर वो मेहनती था

जब वो मिस्त्री था तो उसे ज़्यादा सहूलतें मयस्सर नहीं थीं लेकिन जब कैमरा क़ुली से तरक़्क़ी करता करता कैमरा मैन बन गया तो उस ने कैमरे के हर पेच के मुतअल्लिक़ अपनी ख़ुदादाद ज़ेहानत और जुस्तुजू तलब तबीयत की बदौलत ये दरयाफ़्त कर लिया कि इन का लोहे के इस चौखटे में अपनी अपनी जगह किया मसरफ़ है।

कैमरे को वो उल्टा करता कभी सीधा कभी उस का गेट खोल कर बैठ जाता और घंटों उस से अपने मुख़्तलिफ़ साइज़ के पेच पुरज़ों के ज़रीये बोस-ओ-कनार में मशग़ूल रहता।

फ़ुर्सत के औक़ात यानी जब शूटिंग नहीं होती थी वो अपनी साईकल पर शहर पहुंचता और सारा दिन कबाड़ियों की दुकानों पर सर्फ़ करता उस को दुनिया के तमाम कबाड़ियों से मुहब्बत है, और उन के कबाड़ ख़ानों को वो बड़ी मुक़द्दस जगहें तसो्वर करता था

वो उन दुकानों में बैठ कर मंसूबा तैय्यार करता रहता कि सिलाई मशीन का हैंडिल जो बे-कार पड़ा है अगर लोहे के फ़्लाई टुकड़े के साथ वैलिड कर दिया जाये और उस के फ़ुलां के अंदर छोटे पंखे जो नुक्कड़ वाली दुकान में मौजूद हैं, लगा दिए जाएं तो फ़र्स्ट क्लास धौंकनी बन सकती है।

ख़ुदा मालूम वो क्या क्या सोचता था इन दिनों दर असल ज़ेहनी वरज़िश कर रहा था ये वो तैय्यारी थी जो वो अपने मंसूबों की तकमील के लिए इस्तिमाल करना चाहता था।

उस ने ऐडीटिंग भी इसी तरह सीखी आस पास की हर नन्ही से नन्ही शैय का मुताला किया, और आख़िर एक दिन उस ने स्टूडियो की एक फ़िल्म की ऐसी उम्दा ऐडीटिंग की कि लोग दंग रह गए।

सेठ ने सोचा कि अच्छे कैमरा मैन तो मिल जाऐंगे मगर ऐसा बा-कमाल ऐडीटर जो सीलो लॉयड के छोटे बड़े फीते के टुकड़ों को इस चाबुक-दस्ती से जोड़ता है कि फिर उस में मज़ीद कतर-बयूंत हो ही नहीं सकती चुनांचे ऐडीटिंग डिपार्टमैंट का हेड बना दिया। तनख़्वाह उस की वही रही जो बहैसीयत कैमरा मैन थी। वो अपना काम बड़ी मेहनत और तन-दही से करता रहा, लेकिन इस के साथ साथ वो लीबारटरी से भी दिलचस्पी लेता था।

थोड़ी ही देर में उस ने इस के कल पुर्ज़ों में चंद इस्लाहात और तरकीबें पेश कीं जो बड़ी रद्द-ओ-कद के बाद क़बूल कर ली गईं नतीजा देखा गया तो बड़ा हौसला अफ़्ज़ा था।

सेठ ने एक दिन सोचा

“क्यों न गीलानी को एक फ़िल्म डाइरेक्ट करने का मौक़ा दिया जाये”

जब उस से पूछा:

“तुम कोई फ़िल्म डाइरेक्ट कर लोगे ”

तो उस ने बड़ी ख़ुद एतिमादी से जवाब दिया:

“हाँ सेठ पर इस में कोई दख़ल न दे!”

“कहानी आधी गीलानी ने ख़ुद बनाई आधी इधर उधर के मुंशियों से लिखवाई और अल्लाह का नाम लेकर शूटिंग शुरू कर दी ये फ़िल्म ख़त्म हुआ और नुमाइश के लिए मुक़ामी सिनेमा हाऊस में पेश किया गया तो उस ने अगले पिछले तमाम रिकार्ड तोड़ दिए।

इस के बाद उस ने लाहौर में दो फ़िल्म बनाए ये भी सिलवर जुबली हिट साबित हुए एक कलकत्ता जा कर फिर बनाया वो भी कामयाब था। यहां वो बंबई पहुंचा क्योंकि वहां के फ़िल्मसाज़ों ने बड़ी तिकड़ी तिकड़ी आफ़रें भेजी थीं चुनांचे एक जगह उस ने ऑफ़र क़बूल कर के कंट्रैक्ट पर दस्तख़त कर दीए और कहानी “चुनवे” का मंज़र नामा ख़ुद लिखा फ़िल्म बन गया और इतना बड़ा बॉक्स ऑफ़िस साबित न हुआ

शायद इस लिए कि बटवारे के बाइस दूसरे शहरों के मानिंद बंबई में भी फ़िर्का वाराना फ़सादात शुरू होगए जिस तरह दूसरे मुस्लमान हिज्रत कर रहे थे इस तरह गीलानी भी बंबई छोड़कर कराची चला गया यहां से वो लाहौर पहुंचा और एक स्टूडियो की दाग़ बैल रखी साऊँड रिकार्ड सेट से लेकर कीलें ठोकने वाले तक को उस की ज़ाती निगरानी में काम करना पड़ता था क़िस्सा मुख़्तसर कि स्टूडियो तैय्यार होगया।

लाहौर के मुस्लमान हाथ पर हाथ धरे बैठे थे।

जब ये स्टूडियो बना तो उन की जान में जान आई चुनांचे यहां शूटिंग शुरू होगई इस के बाद ये चल निकला गीलानी इस दौरान में स्टेज और इधर उधर के मुतअल्लिक़ा सामान को दरुस्त और मुरम्मत कराने में मशग़ूल रहा उस का दस्त-ए-रास्त लाहौर ही का एक नौ-जवान सिराजुद्दीन था जो क़रीब क़रीब आठ बरस से उस के साथ था ने कहा “टाइपराइटर की दाल लेकर खा लो।”

इस के बाद गीलानी ने ख़ुद मेरे टाइपराइटर का मुआइना किया और फ़ैसला सादर कर दिया कि मशीन में कोई नुक़्स नहीं

मगर सिराज अपने तजुर्बे के बलबूते पर मुसिर था

“नहीं हुज़ूर ये अब मरम्मत तलब हो चुकी है बड़े और छोटे रोलर सब नए लगवाने पड़ेंगे ओवर हालिंग होगी इस का कुत्ता भी नाक़िस हो चुका है, वो भी पड़ेगा ”

“तुम्हारी टांगों पर ”

“आप मेरा मज़ाक़ न उड़ाईए अच्छा ख़ैर आप ही सही कहते हैं” ये कह कर वो अपने गंजे सर पर टोपी दरुस्त करता हुआ चला गया।

गीलानी ने अपना ख़ास टूल बक्स मंगवाया और मशीन के सब पुर्जे़ अलग अलग कर के रख दिए कोई पुर्ज़ा पत्थर पर घिसाया कोई रेगमाल पर किसी के सुरेश लगाई किसी को तेल। और उन को दुबारा फ़िट कर के फ़तह मंदाना अंदाज़ में मेरी तरफ़ देखा और कहा:

“क्यों साहब! ठीक हो गई या नहीं ”

मैंने ऐसे ही कह दिया

“हाँ, अब ठीक है।”

गीलानी ने अपने पास खड़े अस्सिटैंट को बुलाया:

“जाओ, उस उल्लु के पट्ठे एक्सपर्ट सिराज को बुला कर लाओ।”

चंद मिनट में सिराज हाज़िर होगया

उस ने मशीन चलाई तो दस पंद्रह बार टप टप करने के बाद ही ख़ामोश होगई सिराज ने गीलानी से कुछ न कहा।

थोड़े वक़फ़े के बाद गीलानी बड़े तहक्कुमाना लहजे में उस से मुख़ातब हुआ

“अच्छा तुम इसे बनाओ देखें तुम क्या तीर मारते हो।”

मुझे अपनी पंद्रह साला अज़ीज़ मशीन की इस दुर्गत पर तरस आरहा था मगर अब क्या हो सकता था जब इस के इंजर पिंजर ढीले हुए मेरी आँखों के सामने पड़े थे।

दूसरे दिन सिराज ने अपना टूल बक्स रिकार्डिंग में से मंगवाया और मेरी मशीन पर अपनी माहिराना सर्जरी शुरू कर दी।

ज़रूरी पुर्जे़ निकाल कर इस ने अलाहिदा रख लिए और बाक़ी हिस्से पैट्रोल में डाल दिए अब उन की चिता जलाने के लिए सिर्फ़ माचिस की एक तीली ही काफ़ी थी।

मैं ख़ामोश रहा

ये सब कुछ देखता रहा।

कुत्ते के जबड़ों को एक पलास के साथ ज़ोर से पकड़ा और मेरी तरफ़ करते हुए बोला:

“लो देख लो मैं न कहता था कुत्ता काम नहीं कर रहा इस का तो संत्र पंच ही ख़राब है ”

“संतर पंच ”

“हाँ ”

और सिराज एक बार फिर इस का संतर पंच ठीक करने लगा।

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ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह...... आप मुस्लमान हैं यक़ीन करें मैं जो कुछ कहूंगा, सच्च कहूंगा। पाकिस्तान का इस मुआमले से कोई तअल्लुक़ नहीं। क़ाइद-ए-आज़म जिन्नाह के लिए मैं जान देने के लिए तैय

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फ़रिश्ता

8 अप्रैल 2022
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सुर्ख़ खुरदरे कम्बल में अताउल्लाह ने बड़ी मुश्किल से करवट बदली और अपनी मुंदी हुई आँखें आहिस्ता आहिस्ता खोलीं। कुहरे की दबीज़ चादर में कई चीज़ें लिपटी हुई थीं जिन के सही ख़द्द-ओ-ख़ाल नज़र नहीं आते थे। एक लं

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फाहा

8 अप्रैल 2022
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गोपाल की रान पर जब ये बड़ा फोड़ा निकला तो इस के औसान ख़ता हो गए। गरमियों का मौसम था। आम ख़ूब हुए थे। बाज़ारों में, गलियों में, दुकानदारों के पास, फेरी वालों के पास, जिधर देखो, आम ही आम नज़र आते। लाल, पीले

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फुंदने

8 अप्रैल 2022
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कोठी से मुल्हक़ा वसीअ-ओ-अरीज़ बाग़ में झाड़ियों के पीछे एक बिल्ली ने बच्चे दिए थे, जो बिल्ला खा गया था। फिर एक कुतिया ने बच्चे दिए थे जो बड़े बड़े हो गए थे और दिन रात कोठी के अंदर बाहर भौंकते और गंदगी बिखेर

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बलवंत सिंह मजीठिया

8 अप्रैल 2022
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शाह साहब से जब मेरी मुलाक़ात हुई तो हम फ़ौरन बे-तकल्लुफ़ हो गए। मुझे सिर्फ़ इतना मालूम था कि वो सय्यद हैं और मेरे दूर-दराज़ के रिश्तेदार भी हैं। वो मेरे दूर या क़रीब के रिश्तेदार कैसे हो सकते थे, इस के मु

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बाई बाई

8 अप्रैल 2022
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नाम उस का फ़ातिमा था पर सब उसे फातो कहते थे बानिहाल के दुर्रे के उस तरफ़ उस के बाप की पन-चक्की थी जो बड़ा सादा लौह मुअम्मर आदमी था। दिन भर वो इस पन चक्की के पास बैठी रहती। पहाड़ के दामन में छोटी सी जगह थ

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बादशाहत का ख़ात्मा

8 अप्रैल 2022
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टेलीफ़ोन की घंटी बिजी। मनमोहन पास ही बैठा था। उस ने रीसीवर उठाया और कहा “हेलो....... फ़ौर फ़ौर फ़ौर फाईव सेवन” दूसरी तरफ़ से पतली सी निस्वानी आवाज़ आई। “सोरी....... रोंग नंबर” मनमोहन ने रीसीवर रख दिया और

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बिलाउज़

8 अप्रैल 2022
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कुछ दिनों से मोमिन बहुत बेक़रार था। उस को ऐसा महसूस होता था कि इस का वजूद कच्चा फोड़ा सा बन गया था। काम करते वक़्त, बातें करते हुए हत्ता कि सोचने पर भी उसे एक अजीब क़िस्म का दर्द महसूस होता था। ऐसा दर्द

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सरकण्डों के पीछे

8 अप्रैल 2022
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कौन सा शहर था, इस के मुतअल्लिक़ जहां तक में समझता हूँ, आप को मालूम करने और मुझे बताने की कोई ज़रूरत नहीं ।बस इतना ही कह देना काफ़ी है कि वो जगह जो इस कहानी से मुतअल्लिक़ है, पेशावर के मुज़ाफ़ात में थी। सरहद

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मिसिज़ गुल

8 अप्रैल 2022
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मैंने जब उस औरत को पहली मर्तबा देखा तो मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मैंने लेमूँ निचोड़ ने वाला खटका देखा है। बहुत दुबली पतली, लेकिन बला की तेज़। उस का सारा जिस्म सिवाए आँखों के इंतिहाई ग़ैर निस्वानी था। ये आँख

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मलबे का ढेर

8 अप्रैल 2022
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कामिनी के ब्याह को अभी एक साल भी न हुआ था कि उस का पति दिल के आरिज़े की वजह से मर गया और अपनी सारी जायदाद उस के लिए छोड़ गया। कामिनी को बहुत सदमा पहुंचा, इस लिए कि वो जवानी ही में बेवा हो गई थी। उस की

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महमूदा

8 अप्रैल 2022
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मुस्तक़ीम ने महमूदा को पहली मर्तबा अपनी शादी पर देखा। आरसी मसहफ़ की रस्म अदा हो रही थी कि अचानक उस को दो बड़ी बड़ी.......ग़ैर-मामूली तौर पर बड़ी आँखें दिखाई दीं.......ये महमूदा की आँखें थीं जो अभी तक कुंवार

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मिसेज़ डी सिल्वा

8 अप्रैल 2022
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बिलकुल आमने सामने फ़्लैट थे। हमारे फ़्लैट का नंबर तेरह था। उस के फ़्लैट का चौदह। कभी कोई सामने का दरवाज़ा खटखटाता तो मुझे यही मालूम होता कि हमारे दरवाज़े पर दस्तक होरही है। इसी ग़लतफ़हमी में जब मैंने एक

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मेरा हमसफ़र

9 अप्रैल 2022
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प्लेटफार्म पर शहाब, सईद और अब्बास ने एक शोर मचा रखा था। ये सब दोस्त मुझे स्टेशन पर छोड़ने के लिए आए थे, गाड़ी प्लेटफार्म को छोड़ कर आहिस्ता आहिस्ता चल रही थी कि शहाब ने बढ़ कर पाएदान पर चढ़ते हुए मुझ से

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मेरा और उसका इंतिक़ाम

9 अप्रैल 2022
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घर में मेरे सिवा कोई मौजूद नहीं था। पिता जी कचहरी में थे और शाम से पहले कभी घर आने के आदी न थे। माता जी लाहौर में थीं और मेरी बहन बिमला अपनी किसी सहेली के हाँ गई थी! मैं तन्हा अपने कमरे में बैठा किताब

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वह लड़की

9 अप्रैल 2022
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सवा-चार बज चुके थे लेकिन धूप में वही तमाज़त थी जो दोपहर को बारह बजे के क़रीब थी। उस ने बालकनी में आ कर बाहर देखा तो उसे एक लड़की नज़र आई जो बज़ाहिर धूप से बचने के लिए एक साया-दार दरख़्त की छांव में आलती पाल

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वो ख़त जो पोस्ट न किये गए

9 अप्रैल 2022
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हव्वा की एक बेटी के चंद ख़ुतूत जो उस ने फ़ुर्सत के वक़्त मुहल्ले के चंद लोगों को लिखे। मगर इन वजूह की बिना पर पोस्ट न किए गए जो इन ख़ुतूत में नुमायां नज़र आती हैं। (नाम और मुक़ाम फ़र्ज़ी हैं) पहला ख़त म

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शादी

9 अप्रैल 2022
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जमील को अपना शैफर लाइफ-टाइम क़लम मरम्मत के लिए देना था। उस ने टेलीफ़ोन डायरेक्ट्री में शैफर कंपनी का नंबर तलाश किया। फ़ोन करने से मालूम हुआ कि उन के एजेंट मैसर्ज़ डी, जे, समतोइर हैं जिन का दफ़्तर ग्रीन

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सड़क के किनारे

9 अप्रैल 2022
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“यही दिन थे......... आसमान उस की आँखों की तरह ऐसा ही नीला था जैसा कि आज है। धुला हुआ, निथरा हुआ......... और धूप भी ऐसी ही कनकनी थी......... सुहाने ख़्वाबों की तरह। मिट्टी की बॉस भी ऐसी ही थी जैसी कि इ

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शारदा

9 अप्रैल 2022
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नज़ीर ब्लैक मार्कीट से विस्की की बोतल लाने गया। बड़क डाकख़ाने से कुछ आगे बंदरगाह के फाटक से कुछ इधर सिगरेट वाले की दुकान से उस को स्काच मुनासिब दामों पर मिल जाती थी। जब उस ने पैंतीस रुपये अदा करके काग़

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सिराज

9 अप्रैल 2022
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नागपाड़ा पुलिस चौकी के उस तरफ़ जो छोटा सा बाग़ है। उस के बिलकुल सामने ईरानी के होटल के बाहर, बिजली के खंबे के साथ लग कर ढूंढ़ो खड़ा था। दिन ढले, मुक़र्ररा वक़्त पर वो यहां आ जाता और सुबह चार बजे तक अपने धंद

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हज्ज-ए-अकबर

9 अप्रैल 2022
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इम्तियाज़ और सग़ीर की शादी हुई तो शहर भर में धूम मच गई। आतिश बाज़ियों का रिवाज बाक़ी नहीं रहा था मगर दूल्हे के बाप ने इस पुरानी अय्याशी पर बे-दरेग़ रुपया सर्फ़ किया। जब सग़ीर ज़ेवरों से लदे फंदे सफ़ैद बुर्र

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सजदा

9 अप्रैल 2022
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गिलास पर बोतल झुकी तो एक दम हमीद की तबीयत पर बोझ सा पड़ गया। मलिक जो उसके सामने तीसरा पैग पी रहा था फ़ौरन ताड़ गया कि हमीद के अंदर रुहानी कश्मकश पैदा होगई है। वो हमीद को सात बरस से जानता था, और इन सात बर

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लाइसेंस

9 अप्रैल 2022
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अब्बू कोचवान बड़ा छैल छबीला था। उस का ताँगा घोड़ा भी शहर में नंबर वन था। कभी मामूली सवारी नहीं बिठाता था। उस के लगे बंधे गाहक थे जिन से उस को रोज़ाना दस पंद्रह रुपय वसूल हो जाते थे जो अब्बू के लिए काफ़ी थ

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हाफ़िज़ हुसैन दीन

9 अप्रैल 2022
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हाफ़िज़ हुसैन दीन जो दोनों आँखों से अंधा था, ज़फ़र शाह के घर में आया। पटियाले का एक दोस्त रमज़ान अली था, जिस ने ज़फ़र शाह से उस का तआरुफ़ कराया। वो हाफ़िज़ साहिब से मिल कर बहुत मुतअस्सिर हुआ। गो उन की

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संतर पंच

9 अप्रैल 2022
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मैं लाहौर के एक स्टूडियो में मुलाज़िम हुआ जिस का मालिक मेरा बंबई का दोस्त था उस ने मेरा इस्तिक़बाल क्या मैं उस की गाड़ी में स्टूडियो पहुंचा था बग़लगीर होने के बाद उस ने अपनी शराफ़त भरी मोंछों को जो ग़ालिबन

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शैदा

9 अप्रैल 2022
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शैदे के मुतअल्लिक़ अमृतसर में ये मशहूर था कि वो चट्टान से भी टक्कर ले सकता है उस में बला की फुर्ती और ताक़त थी गो तन-ओ-तोश के लिहाज़ से वो एक कमज़ोर इंसान दिखाई देता था लेकिन अमृतसर के सारे गुंडे उस से ख़ौ

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राम खेलावन

9 अप्रैल 2022
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खटमल मारने के बाद में ट्रंक में पुराने काग़ज़ात देख रहा था कि सईद भाई जान की तस्वीर मिल गई। मेज़ पर एक ख़ाली फ़्रेम पड़ा था....... मैंने इस तस्वीर से उस को पुर कर दिया और कुर्सी पर बैठ कर धोबी का इंतिज़ार

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रहमत-ए-खुदा-वंदी के फूल

9 अप्रैल 2022
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ज़मींदार, अख़बार में जब डाक्टर राथर पर रहमत-ए-ख़ुदा-वंदी के फूल बरसते थे तो यार दोस्तों ने ग़ुलाम रसूल का नाम डाक्टर राथर रख दिया। मालूम नहीं क्यूँ, इस लिए कि ग़ुलाम रसूल को डाक्टर राथर से कोई निसबत नह

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मिस फ़र्या

9 अप्रैल 2022
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शादी के एक महीने बाद सुहेल परेशान होगया। उस की रातों की नींद और दिन का चैन हराम हो गया। उस का ख़याल था कि बच्चा कम अज़ कम तीन साल के बाद पैदा होगा मगर अब एक दम ये मालूम करके उस के पांव तले की ज़मीन निक

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मिस अडना जैक्सन

9 अप्रैल 2022
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कॉलिज की पुरानी प्रिंसिपल के तबादले का एलान हुआ, तालिबात ने बड़ा शोर मचाया। वो नहीं चाहती थीं कि उन की महबूब प्रिंसिपल उन के कॉलेज से कहीं और चली जाये। बड़ा एहतिजाज हुआ। यहाँ तक कि चंद लड़कियों ने भूक हड़

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बुड्ढ़ा खूसट

9 अप्रैल 2022
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ये जंग-ए-अज़ीम के ख़ातमे के बाद की बात है जब मेरा अज़ीज़ तरीन दोस्त लैफ़्टीनैंट कर्नल मोहम्मद सलीम शेख़ (अब) ईरान इराक़ और दूसरे महाज़ों से होता हुआ बमबई पहुंचा। उस को अच्छी तरह मालूम था, मेरा फ़्लैट कहाँ ह

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शह नशीं पर

9 अप्रैल 2022
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वो सफ़ैद सलमा लगी साड़ी में शह-नशीन पर आई और ऐसा मालूम हुआ कि किसी ने नक़रई तारों वाला अनार छोड़ दिया है। साड़ी के थिरकते हूए रेशमी कपड़े पर जब जगह जगह सलमा का काम टिमटिमाने लगता तो मुझे जिस्म पर वो तमाम

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चुग़द

9 अप्रैल 2022
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लड़कों और लड़कियों के मआशिक़ों का ज़िक्र हो रहा था। प्रकाश जो बहुत देर से ख़ामोश बैठा अंदर ही अंदर बहुत शिद्दत से सोच रहा था, एक दम फट पड़ा। सब बकवास है, सौ में से निन्नानवे मआशिक़े निहायत ही भोंडे और लचर

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