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साथी, हमें अलग होना है

28 जुलाई 2022

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साथी, हमें अलग होना है!


भार उठाते सब अपने बल,

संवेदना प्रथा है केवल,

अपने सुख-दुख के बोझे को सबको अलग-अलग ढोना है!

साथी, हमें अलग होना है!


संग क्षणिक ही तेरा-मेरा,

एक रहा कुछ दिन पथ-डेरा,

जो कुछ भी पाया है हमने, एक न एक समय खोना है!

साथी, हमें अलग होना है!


मिलकर एक गीत, आ, गा लें,

मिलकर दो-दो अश्रु बहा लें,

अलग-अलग ही अब से हमको जीवन में गाना रोना है!

साथी, हमें अलग होना है!

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रचनाएँ
निशा निमन्त्रण
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निशा−निमन्त्रण' बच्चन जी का बहुत ही लोकप्रिय काव्य है। इसका पहला संस्करण 1938 में निकला था। निशा निमंत्रण हरिवंशराय बच्चन के गीतों का संकलन है जिसका प्रकाशन १९३८ ई० में हुआ। ये गीत १३-१३ पंक्तियों के हैं जो कि हिन्दी साहित्य की श्रेष्ठतम उपलब्धियों में से हें। ये गीत शैली और गठन की दृष्टि से अतुलनीय है। नितान्त एकाकीपन की स्थिति में लिखी गईं ये त्रयोदशपदियाँ अनुभूति की दृष्टि से वैसी ही सघन हैं जैसी भाषा शिल्प की दृष्टि से परिष्कृत। संकलन के सभी गीत स्वतंत्र हैं फिर भी प्रत्येक की रचना का गठन एक मूल भाव से अनुशासित है। पहला गीत "दिन जल्दी जल्दी ढलता है" से प्रारम्भ होकर "निशा निमंत्रण" रात्रि की निस्तब्धता के बड़े सघन चित्र करता हुआ प्रातःकालीन प्रकअश में समाप्त होता है। प्रत्येक दृष्टि से निशा निमंत्रण के गीत उच्चकोटि के हैं और बच्चन का कवि अपने चरम पर पहुँच गया प्रतीत होता है।
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निशा निमन्त्रण

28 जुलाई 2022
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एक कहानी (१) कहानी है सृष्टि के प्रारम्भ की। पृथ्वी पर मनुष्य था, मनुष्य में हृदय था, हृदय में पूजा की भावना थी, पर देवता न थे। वह सूर्य को अर्ध्यदान देता था, अग्नि को हविष समर्प्ति कर्ता था, पर वह

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दिन जल्दी जल्दी ढलता है

28 जुलाई 2022
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दिन जल्दी-जल्दी ढलता है! हो जाए न पथ में रात कहीं, मंजिल भी तो है दूर नहीं यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है! दिन जल्दी-जल्दी ढलता है! बच्चे प्रत्याशा में होंगे, नीड़ों से झाँक र

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साथी, अन्त दिवस का आया

28 जुलाई 2022
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साथी, अन्त दिवस का आया! तरु पर लौट रहे हैं नभचर, लौट रहीं नौकाएँ तट पर, पश्चिम की गोदी में रवि की श्रात किरण ने आश्रय पाया! साथी, अन्त दिवस का आया! रवि-रजनी का आलिंगन है, संध्या स्नेह मिलन क

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साथी, सांझ लगी अब होने

28 जुलाई 2022
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साथी, सांझ लगी अब होने! फैलाया था जिन्हें गगन में, विस्तृत वसुधा के कण-कण में, उन किरणों को अस्तांचल पर पहँच लगा है सूर्य सँजोने! साथी, सांझ लगी अब होने! खेल रही थी धूलि कणों में, लोट लिपट त

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संध्या सिंदूर लुटाती है

28 जुलाई 2022
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संध्‍या सिंदूर लुटाती है! रंगती स्‍वर्णिम रज से सुदंर निज नीड़-अधीर खगों के पर, तरुओं की डाली-डाली में कंचन के पात लगाती है! संध्‍या सिंदूर लुटाती है! करती सरि‍ता का जल पीला, जो था पल भर पहल

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बीत चली संध्या की वेला

28 जुलाई 2022
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बीत चली संध्‍या की वेला! धुंधली प्रति पल पड़नेवाली एक रेख में सिमटी लाली कहती है, समाप्‍त होता है सतरंगे बादल का मेला! बीत चली संध्‍या की वेला! नभ में कुछ द्युतिहीन सितारे मांग रहे हैं हाथ प

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चल बसी संध्या गगन से

28 जुलाई 2022
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चल बसी संध्या गगन से! क्षितिज ने साँस गहरी और संध्या की सुनहरी छोड़ दी सारी, अभी तक था जिसे थामे लगन से! चल बसी संध्या गगन से! हिल उठे तरु-पत्र सहसा, शांति फिर सर्वत्र सहसा छा गई, जैसे प्रक

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उदित संध्या का सितारा

28 जुलाई 2022
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उदित संध्या का सितारा! थी जहाँ पल पूर्व लाली, रह गई कुछ रेख काली, अब दिवाकर का गया मिट तेज सारा, ओज सारा! उदित संध्या का सितारा! शोर स्यारों ने मचाया, ’(अंधकार) हुआ’--बताया, रात के प्रहरी उ

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अंधकार बढ़ता जाता है

28 जुलाई 2022
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अंधकार बढ़ता जाता है! मिटता अब तरु-तरु में अंतर, तम की चादर हर तरुवर पर, केवल ताड़ अलग हो सबसे अपनी सत्ता बतलाता है! अंधकार बढ़ता जाता है! दिखलाई देता कुछ-कुछ मग, जिसपर शंकित हो चलते पग, दू

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अब निशा नभ से उतरती

28 जुलाई 2022
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अब निशा नभ से उतरती! देख, है गति मन्द कितनी पास यद्यपि दीप्ति इतनी, क्या सबों को जो ड़राती वह किसी से आप ड़रती? जब निशा नभ से उतरती! थी किरण अगणित बिछी जब, पथ न सूझा! गति कहाँ अब? कुछ दिखात

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तुम तूफ़ान समझ पाओगे ?

28 जुलाई 2022
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तुम तूफ़ान समझ पाओगे? गीले बादल, पीछे रजकण, सूखे पत्‍ते, रूखे तृण घन लेकर चलता करता 'हरहर'- इसका गान समझ पाओगे? तुम तूफ़ान समझ पाओगे? गंध-भरा यह मंद पवन था, लहराता इससे मधुवन था, सहसा इसका

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प्रबल झंझावात, साथी

28 जुलाई 2022
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प्रबल झंझावात, साथी! देह पर अधिकार हारे, विवशता से पर पसारे, करुण रव-रत पक्षियों की आ रही है पाँत, साथी! प्रबल झंझावात, साथी! शब्द ’हरहर’, शब्द ’मरमर’ तरु गिरे जड़ से उखड़कर, उड़ गए छत और छ

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है यह पतझड़ की शाम, सखे!

28 जुलाई 2022
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है यह पतझड़ की शाम, सखे! नीलम-से पल्लव टूट गए, मरकत-से साथी छूट गए, अटके फिर भी दो पीत पात जीवन-डाली को थाम, सखे! है यह पतझड़ की शाम, सखे! लुक-छिप करके गानेवाली, मानव से शरमानेवाली, कू-कू क

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है यह पतझड़ की शाम, सखे!

28 जुलाई 2022
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है यह पतझड़ की शाम, सखे! नीलम-से पल्लव टूट गए, मरकत-से साथी छूट गए, अटके फिर भी दो पीत पात जीवन-डाली को थाम, सखे! है यह पतझड़ की शाम, सखे! लुक-छिप करके गानेवाली, मानव से शरमानेवाली, कू-कू क

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यह पावस की सांझ रंगीली

28 जुलाई 2022
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यह पावस की सांझ रंगीली! फैला अपने हाथ सुनहले रवि, मानो जाने से पहले, लुटा रहा है बादल दल में अपनी निधि कंचन चमकीली! यह पावस की सांझ रंगीली! घिरे घनों से पूर्व गगन में आशाओं-सी मुर्दा मन में,

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दीपक पर परवाने आए

28 जुलाई 2022
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दीपक पर परवाने आए! अपने पर फड़काते आए, किरणों पर बलखाते आए, बड़ी-बड़ी इच्छाएँ लाए, बड़ी-बड़ी आशाएँ लाए! दीपक पर परवाने आए! जले ज्वलित आलिंगन में कुछ, जले अग्निमय चुंबन में कुछ, रहे अधजले, र

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वायु बहती शीत-निष्ठुर

28 जुलाई 2022
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वायु बहती शीत-निष्ठुर! ताप जीवन श्वास वाली, मृत्यु हिम उच्छवास वाली। क्या जला, जलकर बुझा, ठंढा हुआ फिर प्रकृति का उर! वायु बहती शीत-निष्ठुर! पड़ गया पाला धरा पर, तृण, लता, तरु-दल ठिठुरकर हो

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गिरजे से घंटे की टन-टन

28 जुलाई 2022
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गिरजे से घंटे की टन-टन! मंदिर से शंखों की तानें, मस्जिद से पाबंद अजानें उठ कर नित्य किया करती हैं अपने भक्तों का आवाहन! गिरजे से घंटे की टन-टन! मेरा मंदिर था, प्रतिमा थी, मन में पूजा की महिम

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अब निशा देती निमंत्रण

28 जुलाई 2022
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अब निशा देती निमंत्रण! महल इसका तम-विनिर्मित, ज्वलित इसमें दीप अगणित! द्वार निद्रा के सजे हैं स्वप्न से शोभन-अशोभन! अब निशा देती निमंत्रण! भूत-भावी इस जगह पर वर्तमान समाज होकर सामने है देश-

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स्वप्न भी छल, जागरण भी

28 जुलाई 2022
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स्वप्न भी छल, जागरण भी! भूत केवल जल्पना है, औ’ भविष्यत कल्पना है, वर्तमान लकीर भ्रम की! और है चौथी शरण भी! स्वप्न भी छल, जागरण भी! मनुज के अधिकार कैसे! हम यहाँ लाचार ऐसे, कर नहीं इनकार सकते

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आ, सोने से पहले गा लें

28 जुलाई 2022
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आ, सोने से पहले गा लें! जग में प्रात पुनः आएगा, सोया जाग नहीं पाएगा, आँख मूँद लेने से पहले, आ, जो कुछ कहना कह डालें! आ, सोने से पहले गा लें! दिन में पथ पर था उजियाला, फैली थी किरणों की माला

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तम ने जीवन-तरु को घेरा

28 जुलाई 2022
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तम ने जीवन-तरु को घेरा! टूट गिरीं इच्छा की कलियाँ, अभिलाषा की कच्ची फलियाँ, शेष रहा जुगुनूँ की लौ में आशामय उजियाला मेरा! तम ने जीवन-तरु को घेरा! पल्लव मरमर गान कहाँ अब! कोकिल पंचम तान कहाँ

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दीप अभी जलने दे, भाई

28 जुलाई 2022
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दीप अभी जलने दे, भाई! निद्रा की मादक मदिरा पी, सुख स्वप्नों में बहलाकर जी, रात्रि-गोद में जग सोया है, पलक नहीं मेरी लग पाई! दीप अभी जलने दे, भाई! आज पड़ा हूँ मैं बनकर शव, जीवन में जड़ता का अ

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आ, तेरे उर में छिप जाऊँ

28 जुलाई 2022
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आ, तेरे उर में छिप जाऊँ! मिल न सका स्वर जग क्रंदन का, और मधुर मेरे गायन का, आ तेरे उर की धड़कन से अपनी धड़कन आज मिलाऊँ! आ, तेरे उर में छिप जाऊँ! जिसे सुनाने को अति आतुर आकुल युग-युग से मेरा

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आओ, सो जाएँ, मर जाएँ

28 जुलाई 2022
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आओ, सो जाएँ, मर जाएँ! स्वप्न-लोक से हम निर्वासित, कब से गृह सुख को लालायित, आओ, निद्रा पथ से छिपकर हम अपने घर जाएँ! आओ, सो जाएँ, मर जाएँ! मौन रहो, मुख से मत बोलो, अपना यह मधुकोष न खोलो, भय

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हो मधुर सपना तुम्हारा

28 जुलाई 2022
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हो मधुर सपना तुम्हारा! पलक पर यह स्नेह चुम्बन पोंछ दे सब अश्रु के कण, नींद की मदिरा पिलाकर दे भुला जग-क्रूर-कारा! हो मधुर सपना तुम्हारा! दे दिखाई विश्व ऐसा, है रचा विधि ने न जैसा, दूर जिससे

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कोई पार नदी के गाता

28 जुलाई 2022
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कोई पार नदी के गाता! भंग निशा की नीरवता कर, इस देहाती गाने का स्वर, ककड़ी के खेतों से उठकर, आता जमुना पर लहराता! कोई पार नदी के गाता! होंगे भाई-बंधु निकट ही, कभी सोचते होंगे यह भी, इस तट पर

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आओ, बैठे तरु के नीचे

28 जुलाई 2022
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आओ, बैठें तरु के नीचे! कहने को गाथा जीवन की, जीवन के उत्थान पतन की अपना मुँह खोलें, जब सारा जग है अपनी आँखें मींचे! आओ, बैठें तरु के नीचे! अर्ध्य बने थे ये देवल के अंक चढ़े थे ये अंचल के आओ

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साथी, घर-घर आज दिवाली

28 जुलाई 2022
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साथी, घर-घर आज दिवाली! फैल गयी दीपों की माला मंदिर-मंदिर में उजियाला, किंतु हमारे घर का, देखो, दर काला, दीवारें काली! साथी, घर-घर आज दिवाली! हास उमंग हृदय में भर-भर घूम रहा गृह-गृह पथ-पथ पर,

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आ, गिन डालें नभ के तारे

28 जुलाई 2022
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आ, गिन डालें नभ के तारे! मिलकर हमको खींच रहे जो, श्रम-सींकर से सींच रहे जो, कण-कण उस पथ का पड़ने को जिसपर हैं पद बद्ध हमारे! आ, गिन डालें नभ के तारे! उठ अपने बल पर घमंड कर, देख एक मानव के ऊप

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मेरा गगन से संलाप

28 जुलाई 2022
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मेरा गगन से संलाप! दीप जब दुनिया बुझाती, नींद आँखों में बुलाती, तारकों में जा ठहरती दृष्टि मेरी आप! मेरा गगन से संलाप! बोल अपनी मूक भाषा कुछ मुझे देते दिलासा, किंतु जब कुछ पूछता मैं, देखते

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कहते हैं, तारे गाते हैं

28 जुलाई 2022
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कहते हैं, तारे गाते हैं! सन्नाटा वसुधा पर छाया, नभ में हमने कान लगाया, फिर भी अगणित कंठों का यह राग नहीं हम सुन पाते हैं! कहते हैं, तारे गाते हैं! स्वर्ग सुना करता यह गाना, पृथ्वी ने तो बस य

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साथी, देख उल्कापात

28 जुलाई 2022
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साथी, देख उल्कापात! टूटता तारा न दुर्बल, चमकती चपला न चंचल, गगन से कोई उतरती ज्योति वह नवजात! साथी, देख उल्कापात! बीच ही में क्षीण होकर, अंतरिक्ष विलीन होकर कर गई कुछ और पहले से अँधेरी रात!

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देखो, टूट रहा है तारा

28 जुलाई 2022
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देखो, टूट रहा है तारा! नभ के सीमाहीन पटल पर एक चमकती रेखा चलकर लुप्त शून्य में होती-बुझता एक निशा का दीप दुलारा! देखो, टूट रहा है तारा! हुआ न उडुगन में क्रंदन भी, गिरे न आँसू के दो कण भी कि

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मुझसे चांद कहा करता है

28 जुलाई 2022
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मुझ से चाँद कहा करता है चोट कड़ी है काल प्रबल की, उसकी मुस्कानों से हल्की, राजमहल कितने सपनों का पल में नित्य ढहा करता है| मुझ से चाँद कहा करता है तू तो है लघु मानव केवल, पृथ्वी-तल का वासी न

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विश्व सारा सो रहा है

28 जुलाई 2022
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विश्व सारा सो रहा है! हैं विचरते स्वप्न सुंदर, किंतु इसका संग तजकर, अगम नभ की शून्यता का कौन साथी हो रहा है? विश्व सारा सो रहा है! अवनि पर सर, सरित, निर्झर, किन्तु इनसे दूर जाकर, कौन अपने घ

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कोई रोता दूर कहीं पर

28 जुलाई 2022
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कोई रोता दूर कहीं पर! इन काली घड़ियों के अंदर, यत्न बचाने के निष्फल कर, काल प्रबल ने किसके जीवन का प्यारा अवलम्ब लिया हर? कोई रोता दूर कहीं पर! ऐसी ही थी रात घनेरी, जब सुख की, सुखमा की ढेरी

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साथी, सो न, कर कुछ बात

28 जुलाई 2022
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साथी, सो न, कर कुछ बात! बोलते उडुगण परस्पर, तरु दलों में मंद 'मरमर', बात करतीं सरि-लहरियाँ कूल से जल स्नात! साथी, सो न, कर कुछ बात! बात करते सो गया तू, स्वप्‍न में फिर खो गया तू, रह गया मैं

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तूने क्या सपना देखा है?

28 जुलाई 2022
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तूने क्या सपना देखा है? पलक रोम पर बूँदें सुख की, हँसती सी मुद्रा कुछ मुख की, सोते में क्या तूने अपना बिगड़ा भाग्य बना देखा है। तूने क्या सपना देखा है? नभ में कर क्यों फैलाता है? किसको भुज म

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आज घिरे हैं बादल, साथी

28 जुलाई 2022
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आज घिरे हैं बादल, साथी! भरा हृदय नभ विगलित होकर आज बिखर जाएगा भूपर, चार नयन भी साथ गगन के आज पड़ेंगे ढल-ढल, साथी! आज घिरे हैं बादल, साथी! आँसू का बल हमें कभी था आँचल गीला किया जभी था जग जीव

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देख रात है काली कितनी

28 जुलाई 2022
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देख, रात है काली कितनी! आज सितारे भी हैं सोए, बादल की चादर में खोए, एक बार भी नहीं उठाती घूँघट घन-अवगुंठन वाली! देख, रात है काली कितनी! आज बुझी है अंतर्ज्वाला, जिससे हमने खोज निकाला था पथ अ

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यह पपीहे की रटन है

28 जुलाई 2022
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यह पपीहे की रटन है! बादलों की घिर घटाएँ, भूमि की लेतीं बलाएँ, खोल दिल देतीं दुआएँ- देख किस उर में जलन है! यह पपीहे की रटन है! जो बहा दे, नीर आया, आग का फिर तीर आया, वज्र भी बेपीर आया- कब रु

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है पावस की रात अंधेरी

28 जुलाई 2022
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है पावस की रात अँधेरी! विद्युति की है द्युति अम्बर में, जुगुनूँ की है ज्योति अधर में, नभ-मंड्ल की सकल दिशाएँ तम की चादर ने हैं घेरी! है पावस की रात अँधेरी! मैंने अपने हास चपल से, होड़ कभी ली

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आज मुझसे बोल, बादल

28 जुलाई 2022
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आज मुझसे बोल, बादल! तम भरा तू, तम भरा मैं, गम भरा तू, गम भरा मैं, आज तू अपने हृदय से हृदय मेरा तोल, बादल! आज मुझसे बोल, बादल! आग तुझमें, आग मुझमें, राग तुझमें, राग मुझमें, आ मिलें हम आज अपन

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आज रोती रात, साथी

28 जुलाई 2022
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आज रोती रात, साथी! घन तिमिर में मुख छिपाकर है गिराती अश्रु झर-झर, क्या लगी कोई हृदय में तारकों की बात, साथी! आज रोती रात, साथी! जब तड़ित क्रंदन श्रवणकर काँपती है धरणि थर थर, सोच, बादल के हृ

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रात-रात भर श्वान भूकते

28 जुलाई 2022
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रात-रात भर श्वान भूकते। पार नदी के जब ध्वनि जाती, लौट उधर से प्रतिध्वनि आती समझ खड़े समबल प्रतिद्वदी दे-दे अपने प्राण भूकते। रात-रात भर श्वान भूकते। इस रव से निशि कितनी विह्वल, बतला सकता हूँ

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रो, अशकुन बतलाने वाली

28 जुलाई 2022
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रो, अशकुन बतलाने वाली! ’आउ-आउ’ कर किसे बुलाती? तुझको किसकी याद सताती? मेरे किन दुर्भाग्य क्षणों से प्यार तुझे, ओ तम सी काली? रो, अशकुन बतलाने वाली! देख किसी को अश्रु बहाते, नेत्र सदा साथी बन

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साथी, नया वर्ष आया है

28 जुलाई 2022
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साथी, नया वर्ष आया है! वर्ष पुराना, ले, अब जाता, कुछ प्रसन्न सा, कुछ पछताता दे जी भर आशीष, बहुत ही इससे तूने दुख पाया है! साथी, नया वर्ष आया है! उठ इसका स्वागत करने को, स्नेह बाहुओं में भरने

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आओ, नूतन वर्ष मना लें

28 जुलाई 2022
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आओ, नूतन वर्ष मना लें! गृह-विहीन बन वन-प्रयास का तप्त आँसुओं, तप्त श्वास का, एक और युग बीत रहा है, आओ इस पर हर्ष मना लें! आओ, नूतन वर्ष मना लें! उठो, मिटा दें आशाओं को, दबी छिपी अभिलाषाओं को

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रात आधी हो गई है

28 जुलाई 2022
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रात आधी हो गई है! जागता मैं आँख फाड़े, हाय, सुधियों के सहारे, जब कि दुनिया स्‍वप्‍न के जादू-भवन में खो गई है! रात आधी हो गई है! सुन रहा हूँ, शांति इतनी, है टपकती बूंद जितनी ओस की, जिनसे द्र

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विश्व मनाएगा कल होली

28 जुलाई 2022
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विश्व मनाएगा कल होली! घूमेगा जग राह-राह में आलिंगन की मधुर चाह में, स्नेह सरसता से घट भरकर, ले अनुराग राग की झोली! विश्व मनाएगा कल होली! उर से कुछ उच्छवास उठेंगे, चिर भूखे भुज पाश उठेंगे, क

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खेल चुके हम फाग समय से

28 जुलाई 2022
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खेल चुके हम फाग समय से! फैलाकर निःसीम भुजाएँ, अंक भरीं हमने विपदाएँ, होली ही हम रहे मनाते प्रतिदिन अपने यौवन वय से! खेल चुके हम फाग समय से! मन दे दाग अमिट बतलाते, हम थे कैसा रंग बहाते मलते

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साथी, कर न आज दुराव

28 जुलाई 2022
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साथी, कर न आज दुराव! खींच ऊपर को भ्रुओं को रोक मत अब आँसुओं को, सह सकेगी भार कितना यह नयन की नाव! साथी, कर न आज दुराव! व्यक्त कर दे अश्रु कण से, आह से, अस्फुट वचन से, प्राण तन-मन को दबाए जो

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हम कब अपनी बात छिपाते?

28 जुलाई 2022
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हम कब अपनी बात छिपाते? हम अपना जीवन अंकित कर फेंक चुके हैं राज मार्ग पर, जिसके जी में आए पढ़ले थमकर पलभर आते जाते! हम कब अपनी बात छिपाते? हम सब कुछ करके भी मानव, हमीं देवता, हम ही दानव, हमी

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हम आँसू की धार बहाते

28 जुलाई 2022
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हम आँसू की धार बहाते! मानव के दुख का सागर जल हम पी लेते बनकर बादल, रोकर बरसाते हैं, फिर भी हम खारे को मधुर बनाते! हम आँसू की धार बहाते! उर मथकर कंठों तक आता, कंठ रुँधा पाकर फिर जाता, कितने

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क्यों रोता है जड़ तकियों पर

28 जुलाई 2022
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क्यों रोता है जड़ तकियों पर! जिनका उर था स्नेह विनिर्मित, भाव सरसता से अभिसिंचित, जब न पसीजे इनसे वे भी, आज पसीजेगें क्या पत्थर! क्यों रोता है जड़ तकियों पर! इनमें मानव का जीवन है, जीवन का न

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मैंने दुर्दिन में गाया है

28 जुलाई 2022
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मैंने दुर्दिन में गाया है! दुर्दिन जिसके आगे रोता, बंदी सा नतमस्तक होता, एक न एक समय दुनिया का एक-एक प्राणी आया है! मैंने दुर्दिन में गाया है! जीवन का क्या भेद बताऊँ, जगती का क्या मर्म जताऊँ

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साथी, कवि नयनों का पानी

28 जुलाई 2022
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साथी, कवि नयनों का पानी चढ जाए मंदिर प्रतिमा पर, यी दे मस्जिद की गागर भर, या धोए वह रक्त सना है जिससे जग का आहत प्राणी? साथी, कवि नयनों का पानी लिखे कथाएँ राज-काज की, या परिवर्तित जन समाज की

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जग बदलेगा, किन्तु न जीवन

28 जुलाई 2022
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जग बदलेगा, किंतु न जीवन! क्या न करेंगे उर में क्रंदन मरण-जन्म के प्रश्न चिरंतन, हल कर लेंगे जब रोटी का मसला जगती के नेतागण? जग बदलेगा, किंतु न जीवन! प्रणय-स्वप्न की चंचलता पर जो रोएँगे सिर ध

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क्षण भर को क्यों प्यार किया था?

28 जुलाई 2022
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क्षण भर को क्यों प्यार किया था? अर्द्ध रात्रि में सहसा उठकर, पलक संपुटों में मदिरा भर तुमने क्यों मेरे चरणों में अपना तन-मन वार दिया था? क्षण भर को क्यों प्यार किया था? ‘यह अधिकार कहाँ से लाय

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'आज सुखी मैं कितनी,प्यारे'

28 जुलाई 2022
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’आज सुखी मैं कितनी, प्यारे!’ चिर अतीत में ’आज’ समाया, उस दिन का सब साज समाया, किंतु प्रतिक्षण गूँज रहे हैं नभ में वे कुछ शब्द तुम्हारे! ’आज सुखी मैं कितनी, प्यारे!’ लहरों में मचला यौवन था, त

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सोच सुखी मेरी छाती है

28 जुलाई 2022
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सोच सुखी मेरी छाती है दूर कहाँ मुझसे जाएगी, कैसे मुझको बिसराएगी? मेरे ही उर की मदिरा से तो, प्रेयसि, तू मदमाती है! सोच सुखी मेरी छाती है मैंने कैसे तुझे गँवाया, जब तुझको अपने में पाया? पास

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जग का-मेरा प्यार नहीं था

28 जुलाई 2022
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जग-का मेरा प्यार नहीं था! तूने था जिसको लौटाया, क्या उसको मैंने फिर पाया? हृदय गया था अर्पित होने, साधारण उपहार नहीं था! जग-का मेरा प्यार नहीं था! सीमित जग से सीमित क्षण में सीमाहीन तृषा थी

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देवता उसने कहा था

28 जुलाई 2022
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देवता उसने कहा था! रख दिए थे पुष्प लाकर नत नयन मेरे चरण पर! देर तक अचरज भरा मैं देखता खुद को रहा था! देवता उसने कहा था! गोद मंदिर बन गई थी, दे नए सपने गई थी, किंतु जब आँखें खुलीं तब कुछ न थ

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मैंने भी जीवन देखा है

28 जुलाई 2022
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मैंने भी जीवन देखा है! अखिल विश्व था आलिंगन में, था समस्त जीवन चुम्बन में युग कर पाए माप न जिसकी मैंने ऐसा क्षण देखा है! मैंने भी जीवन देखा है! सिंधु जहाँ था, मरु सोता है! अचरज क्या मुझको हो

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क्या मैं जीवन से भागा था?

28 जुलाई 2022
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क्या मैं जीवन से भागा था? स्वर्ण श्रृंखला प्रेम-पाश की मेरी अभिलाषा न पा सकी, क्या उससे लिपटा रहता जो कच्चे रेशम का तागा था! क्या मैं जीवन से भागा था? मेरा सारा कोष नहीं था, अंशों से संतोष न

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निर्ममता भी है जीवन में

28 जुलाई 2022
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निर्ममता भी है जीवन में! हो वासंती अनिल प्रवाहित करता जिनको दिन-दिन विकसित, उन्हीं दलों को शिशिर-समीरण तोड़ गिराता है दो क्षण में! निर्ममता भी है जीवन में! जिसकी कंचन की काया थी, जिसमें सब स

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मैंने खेल किया जीवन से

28 जुलाई 2022
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मैंने खेल किया जीवन से! सत्‍य भवन में मेरे आया, पर मैं उसको देख न पाया, दूर न कर पाया मैं, साथी, सपनों का उन्‍माद नयन से! मैंने खेल किया जीवन से! मिलता था बेमोल मुझे सुख, पर मैंने उससे फेरा

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था तुम्हें मैंने रुलाया

28 जुलाई 2022
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था तुम्हें मैंने रुलाया! हाय, मृदु इच्छा तुम्हारी! हा, उपेक्षा कटु हमारी! था बहुत माँगा न तुमने किन्तु वह भी दे ना पाया! था तुम्हें मैंने रुलाया! स्नेह का वह कण तरल था, मधु न था, न सुधा-गरल

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ऎसे मैं मन बहलाता हूँ

28 जुलाई 2022
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ऐसे मैं मन बहलाता हूँ! सोचा करता बैठ अकेले गत जीवन के सुख-दुख झेले, दर्शनकारी स्मृतियों से मैं उर के छाले सहलाता हूँ! ऐसे मैं मन बहलाता हूँ! नहीं खोजने जाता मरहम, होकर अपने प्रति अति निर्मम

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अब वे मेरे गान कहाँ हैं

28 जुलाई 2022
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अब वे मेरे गान कहाँ हैं! टूट गई मरकत की प्याली, लुप्त हुई मदिरा की लाली, मेरा व्याकुल मन बहलानेवाले अब सामान कहाँ हैं! अब वे मेरे गान कहाँ हैं! जगती के नीरस मरुथल पर, हँसता था मैं जिनके बल प

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बीते दिन कब आनेवाले

28 जुलाई 2022
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बीते दिन कब आने वाले! मेरी वाणी का मधुमय स्‍वर, विश्‍व सुनेगा कान लगाकर, दूर गए पर मेरे उर की धड़कन को सुन पाने वाले! बीते दिन कब आने वाले! विश्‍व करेगा मेरा आदर, हाथ बढ़ाकर, शीश नवाकर, पर

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आज मुझसे दूर दुनिया

28 जुलाई 2022
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आज मुझसे दूर दुनिया! भावनाओं से विनिर्मित, कल्पनाओं से सुसज्जित, कर चुकी मेरे हृदय का स्वप्न चकनाचूर दुनिया! आज मुझसे दूर दुनिया! ’बात पिछली भूल जाओ, दूसरी नगरी बसाओ’ प्रेमियों के प्रति रही

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मैं जग से कुछ सीख न पाया

28 जुलाई 2022
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मैं जग से कुछ सीख न पाया। जग ने थोड़ा-थोड़ा चाहा, थोड़े में ही काम निबाहा, लेकिन अपनी इच्छाओं को मैंने सीमाहीन बनाया। मैं जग से कुछ सीख न पाया। जग ने जो दिन-बीच कमाया, उसे निशा में किया सवाय

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श्यामा तरु पर बोलने लगी

28 जुलाई 2022
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श्यामा तरु पर बोलने लगी! है अभी पहर भर शेष रात, है पड़ी भूमि हो शिथिल-गात, यह कौन ओस जल में सहसा मिश्री के कण घोलने लगी! श्यामा तरु पर बोलने लगी! दिग्वधुओं का मुख तमाच्छ्न्न, अब अस्फुट आभा स

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यह अरुण चूड़ का तरुण राग

28 जुलाई 2022
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यह अरुण-चूड़ का तरुण राग! सुनकर इसकी हुंकार वीर हो उठा सजग अस्थिर समीर, उड चले तिमिर का वक्ष चीर चिड़ियों के पहरेदार काग! यह अरुण-चूड़ का तरुण राग! जग पड़ा खगों का कुल महान, छिड़ गया सम्मिलि

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तारक-दल छिपता जाता है

28 जुलाई 2022
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तारक दल छिपता जाता है। कलियाँ खिलती, फूल बिखरते, मिल सुख-दुख के आँसू झरते, जीवन और मरण दोनों का राग विहंगम-दल गाता है। तारक दल छिपता जाता है। इसे कहूँ मैं हास पवन का, या समझूँ उच्छ्वास पवन क

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शुरू हुआ उजियाला होना

28 जुलाई 2022
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शुरू हुआ उजियाला होना! हटता जाता है नभ से तम, संख्या तारों की होती कम, उषा झाँकती उठा क्षितिज से बादल की चादर का कोना! शुरू हुआ उजियाला होना! ओस-कणों से निर्मल-निर्मल, उज्जवल-उज्जवल शीतल-शीत

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आ रही रवि की सवारी

28 जुलाई 2022
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आ रही रवि की सवारी! नव किरण का रथ सजा है, कलि-कुसुम से पथ सजा है, बादलों से अनुचरों ने स्वर्ण की पोशाक धारी! आ रही रवि की सवारी! विहग बंदी और चारण, गा रहे हैं कीर्ति गायन, छोड़कर मैदान भागी

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अब घन-गर्जन-गान कहाँ हैं

28 जुलाई 2022
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अब घन-गर्जन-गान कहाँ हैं! कहती है ऊषा की पहली किरण लिए मुस्कान सुनहली नहीं दमकती दामिनि का ही, मेरा भी अस्तित्व यहाँ है! अब घन-गर्जन-गान कहाँ हैं! कहता एक बूँद आँसू झर पलक-पाँखुरी से पल्लव प

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भीगी रात विदा अब होती

28 जुलाई 2022
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भीगी रात विदा अब होती। रोते-रोते रक्त नयन हो, पीत बदन हो, छाया तन हो, पार क्षितिज के रजनी जाती, अपना अंचल छोर निचोती। भीगी रात विदा अब होती। प्राची से ऊषा हँस पड़ती, विहगावलियाँ नौबत झड़ती,

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मैं कल रात नहीं रोया था

28 जुलाई 2022
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मैं कल रात नहीं रोया था दुख सब जीवन के विस्मृत कर, तेरे वक्षस्थल पर सिर धर, तेरी गोदी में चिड़िया के बच्चे-सा छिपकर सोया था! मैं कल रात नहीं रोया था! प्यार-भरे उपवन में घूमा, फल खाए, फूलों क

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मैं उसे फिर पा गया था

28 जुलाई 2022
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मैं उसे फिर पा गया था! था वही तन, था वही मन, था वही सुकुमार दर्शन, एक क्षण सौभाग्य का छूटा हुआ-सा आ गया था! मैं उसे फिर पा गया था! वह न बोली, मैं न बोला, वह न डोली, मैं न डोला, पर लगा पल मे

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स्वप्न था मेरा भयंकर

28 जुलाई 2022
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स्वप्न था मेरा भयंकर! रात का-सा था अंधेरा, बादलों का था न डेरा, किन्तु फिर भी चन्द्र-तारों से हुआ था हीन अम्बर! स्वप्न था मेरा भयंकर! क्षीण सरिता बह रही थी, कूल से यह कह रही थी शीघ्र ही मैं

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हूँ जैसा तुमने कर डाला

28 जुलाई 2022
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हूँ जैसा तुमने कर डाला! पूण्य किया, पापों में डूबा, सुख से ऊबा, दुख से ऊबा, हमसे यह सब करा तुम्हीं ने अपना कोई अर्थ निकाला! हूँ जैसा तुमने कर डाला! क्षय मेरा निर्माण जगत का लय मेरा उत्थान जग

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मैं गाता, शून्य सुना करता

28 जुलाई 2022
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मैं गाता, शून्य सुना करता! इसको अपना सौभाग्य कहूँ, अथवा दुर्भाग्य इसे समझूँ, वह प्राप्त हुआ बन चिर-संगी जिससे था मैं पहले डरता! मैं गाता, शून्य सुना करता! जब सबने मुझको छोड़ दिया, जब सबने ना

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मधुप, नहीं अब मधुवन तेरा

28 जुलाई 2022
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मधुप, नहीं अब मधुवन तेरा! तेरे साथ खिली जो कलियाँ, रूप-रंगमय कुसुमावलियाँ, वे कब की धरती में सोईं, होगा उनका फिर न सवेरा! मधुप, नहीं अब मधुवन तेरा! नूतन मुकुलित कलिकाओं पर, उपवन की नव आशाओं

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आओ, हम पथ से हट जाएँ

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आओ, हम पथ से हट जाएँ! युवती और युवक मदमाते, उत्‍सव आज मनाने आते, लिए नयन में स्‍वप्‍न, वचन में हर्ष, हृदय में अभिलाषाएँ! आओ, हम पथ से हट जाएँ! इनकी इन मधुमय घडि‍यों में, हास-लास की फुलझड़ियो

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क्या कंकड़-पत्थर चुन लाऊँ?

28 जुलाई 2022
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क्‍या कंकड़-पत्‍थर चुन लाऊँ? यौवन के उजड़े प्रदेश के, इस उर के ध्‍वंसावशेष के, भग्‍न शिला-खंडों से क्‍या मैं फिर आशा की भीत उठाऊँ? क्‍या कंकड़-पत्‍थर चुन लाऊँ? स्‍वप्‍नों के इस रंगमहल में, ह

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किस कर में यह वीणा धर दूँ?

28 जुलाई 2022
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किस कर में यह वीणा धर दूँ? देवों ने था जिसे बनाया, देवों ने था जिसे बजाया, मानव के हाथों में कैसे इसको आज समर्पित कर दूँ? किस कर में यह वीणा धर दूँ? इसने स्‍वर्ग रिझाना सीखा, स्‍वर्गिक तान स

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फिर भी जीवन की अभिलाषा

28 जुलाई 2022
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फिर भी जीवन की अभिलाषा! दुर्दिन की दुर्भाग्य निशा में, लीन हुए अज्ञात दिशा में साथी जो समझा करते थे मेरे पागल मन की भाषा! फिर भी जीवन की अभिलाषा! सुखी किरण दिन की जो खोई, मिली न सपनों में भी

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जग ने तुझे निराश किया

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जग ने तुझे निराश किया! डूब-डूबकर मन के अंदर लाया तू निज भावों का स्वर, कभी न उनकी सच्चाई पर जगती ने विश्वास किया! जग ने तुझे निराश किया! तूने अपनी प्यास बताई, जग ने समझा तू मधुपायी, सौरभ सम

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सचमुच तेरी बड़ी निराशा

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सचमुच तेरी बड़ी निराशा! जल की धार पड़ी दिखलाई, जिसने तेरी प्यास बढाई, मरुथल के मृगजल के पीछे दौड़ मिटी सब तेरी आशा! सचमुच तेरी बड़ी निराशा! तूने समझा देव मनुज है, पाया तूने मनुज दनुज है, बा

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क्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैं

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क्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैं! अगणित उन्‍मादों के क्षण हैं, अगणित अवसादों के क्षण हैं, रजनी की सूनी घड़ियों को किन-किन से आबाद करूँ मैं! क्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैं! याद सुखों की आँसू लाती,

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मूल्य अब मैं दे चुका हूँ

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मूल्य अब मैं दे चुका हूँ! स्वप्न-थल का पा निमंत्रण, प्यार का देकर अमर धन वेदनाओं की तरी में स्थान अपना ले चुका हूँ! मूल्य अब मैं दे चुका हूँ! उठ पड़ा तूफान, देखो! मैं नहीं हैरान, देखो! एक झ

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तू क्यों बैठ गया है पथ पर?

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तू क्यों बैठ गया है पथ पर? ध्येय न हो, पर है मग आगे, बस धरता चल तू पग आगे, बैठ न चलनेवालों के दल में तू आज तमाशा बनकर! तू क्यों बैठ गया है पथ पर? मानव का इतिहास रहेगा कहीं, पुकार-पुकार कहेगा

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साथी, सब कुछ सहना होगा

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साथी, सब कुछ सहना होगा! मानव पर जगती का शासन, जगती पर संसृति का बंधन, संसृति को भी और किसी के प्रतिबंधो में रहना होगा! साथी, सब कुछ सहना होगा! हम क्या हैं जगती के सर में! जगती क्या, संसृति स

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साथी, साथ न देगा दुख भी

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साथी, साथ न देगा दुख भी! काल छीनने दु:ख आता है, जब दु:ख भी प्रिय हो जाता है, नहीं चाहते जब हम दु:ख के बदले चिर सुख भी! साथी साथ ना देगा दु:ख भी! जब परवशता का कर अनुभव अश्रु बहाना पड़ता नीर

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साथी, हमें अलग होना है

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साथी, हमें अलग होना है! भार उठाते सब अपने बल, संवेदना प्रथा है केवल, अपने सुख-दुख के बोझे को सबको अलग-अलग ढोना है! साथी, हमें अलग होना है! संग क्षणिक ही तेरा-मेरा, एक रहा कुछ दिन पथ-डेरा, ज

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जय हो, हे संसार तुम्हारी

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जय हो, हे संसार, तम्हारी! जहाँ झुके हम वहाँ तनो तुम, जहाँ मिटे हम वहाँ बनो तुम, तुम जीतो उस ठौर जहाँ पर हमने बाज़ी हारी! जय हो, हे संसार, तुम्हारी! मानव का सच हो सपना सब, हमें चाहिए और न कुछ

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जाओ कल्पित साथी मन के

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जाओ कल्पित साथी मन के! जब नयनों में सूनापन था, जर्जर तन था, जर्जर मन था, तब तुम ही अवलम्ब हुए थे मेरे एकाकी जीवन के! जाओ कल्पित साथी मन के! सच, मैंने परमार्थ ना सीखा, लेकिन मैंने स्वार्थ ना

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विश्व को उपहार मेरा

28 जुलाई 2022
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विश्व को उपहार मेरा! पा जिन्हें धनपति, अकिंचन, खो जिन्हें सम्राट निर्धन, भावनाओं से भरा है आज भी भंडार मेरा! विश्व को उपहार मेरा! थकित, आजा! व्यथित, आजा! दलित, आजा! पतित, आजा! स्थान किसको द

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