सद्गुरु
जग्गी वासुदेव एक लेखक हैं। उनको "सद्गुरु" भी कहा जाता है। वह ईशा फाउंडेशन नामक लाभरहित मानव सेवी संस्थान के संस्थापक हैं। ईशा फाउंडेशन भारत सहित संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैंड, लेबनान, सिंगापुर और ऑस्ट्रेलिया में योग कार्यक्रम सिखाता है, साथ ही साथ कई सामाजिक और सामुदायिक विकास योजनाओं पर भी काम करते हैं। इन्हें संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद (अंग्रेजी: ECOSOC) में विशेष सलाहकार की पदवी प्राप्त है। उन्होने ८ भाषाओं में १०० से अधिक पुस्तकों की रचना की है। सन् २०१७ में भारत सरकार द्वारा उन्हें सामाजिक सेवा के लिए पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया है। सद्गुरु जग्गी वासुदेव का जन्म 3 September 1957 को कर्नाटक राज्य के मैसूर शहर में एक तेलुगु भाषी परिवार में हुआ था। उनके पिता एक डॉक्टर थे। बालक जग्गी को प्रकृति से खूब लगाव था। अक्सर ऐसा होता था वे कुछ दिनों के लिये जंगल में गायब हो जाते थे, जहां वे पेड़ की ऊँची डाल पर बैठकर हवाओं का आनंद लेते और अनायास ही गहरे ध्यान में चले जाते थे। जब वे घर लौटते तो उनकी झोली सांपों से भरी होती थी जिनको पकड़ने में उन्हें महारत हासिल है। ११ वर्ष की उम्र में जग्गी वासुदेव ने योग का अभ्यास करना शुरु किया। इनके योग शिक्षक थे श्री राघवेन्द्र राव, जिन्हें मल्लाडिहल्लि स्वामी के नाम से जाना जाता है। मैसूर विश्वविद्यालय से उन्होंने अंग्रजी भाषा में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। 1999 में सद्गुरु द्वारा प्रतिष्ठित ध्यान लिंग अपनी तरह का पहला लिंग है जिसकी प्रतिष्ठता पूरी हुई है। योग विज्ञान का सार ध्यानलिंग, ऊर्जा का एक शाश्वत और अनूठा आकार है। १३ फीट ९ इंच की ऊँचाई वाला यह ध्यानलिंग विश्व का सबसे बड़ा पारा-आधारित जीवित लिंग है। यह किसी खास संप्रदाय या मत से संबंध नहीं रखता, ना ही यहाँ पर किसी विधि-विधान, प्रार्थना या पूजा की जरू
चाहो ! सब कुछ चाहो
"लोग मुझसे अक्सर पूछते हैं, 'बुद्ध ने कहा इच्छा न करो। लेकिन आप तो कहते हैं-सारा कुछ पाने की इच्छा करो। यह विरोधाभास क्यों है?' जो अपने जीवन-काल के अंदर समस्त मानव-जाति को ज्ञान प्रदान करने की इच्छा करते रहे, क्या उन्होंने लोगों को इच्छा का त्याग करन
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मृत्यु
आपको बहुत गंभीर होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि जीवन क्षणिक है, एक बुलबुले की तरह, पर आपकी मृत्यु बहुत लंबे समय के लिए होगी। विश्व की अधिकतर संस्कृतियों में मृत्यु पर चर्चा को अशुभ माना जाता है। लोग इसके बारे में बात करने से बचना चाहते हैं। लेकिन
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राह के फूल
प्रस्तुत ’राह के फूल‘ श्रृंखला पाठकों के लिए एक गुलदस्ता है; यह ’टाइम्स ऑफ इंडिया‘ के स्तंभ ’स्पीकिंग ट्री‘ में धारावाहिक रूप से प्रकाशित सद्गुरु द्वारा मुखरित आलेखों का संग्रह है। वर्षों से, इन रचनाओं ने एकरसता और अशान्ति में घिसरते जन समुदाय के जीव
राह के फूल
प्रस्तुत ’राह के फूल‘ श्रृंखला पाठकों के लिए एक गुलदस्ता है; यह ’टाइम्स ऑफ इंडिया‘ के स्तंभ ’स्पीकिंग ट्री‘ में धारावाहिक रूप से प्रकाशित सद्गुरु द्वारा मुखरित आलेखों का संग्रह है। वर्षों से, इन रचनाओं ने एकरसता और अशान्ति में घिसरते जन समुदाय के जीव
आनंद लहर – चाहो और पा लो
जीवन के कई पहलू हैं- परिवार, रिश्ते, शिक्षा, कैरियर, रोजगार, स्वास्थ्य और न जाने कितनी ऐसी चीजें, जिन पर निर्भर होती है हमारी खुशहाली और कामयाबी। समय की धारा में बहते, हम इनमें कहीं न कहीं उलझते, अटकते और लडख़ड़ाते रहते हैं। जीवन-सागर में ऐसी भी लहरें
आनंद लहर – चाहो और पा लो
जीवन के कई पहलू हैं- परिवार, रिश्ते, शिक्षा, कैरियर, रोजगार, स्वास्थ्य और न जाने कितनी ऐसी चीजें, जिन पर निर्भर होती है हमारी खुशहाली और कामयाबी। समय की धारा में बहते, हम इनमें कहीं न कहीं उलझते, अटकते और लडख़ड़ाते रहते हैं। जीवन-सागर में ऐसी भी लहरें
इनर इंजीनियरिंग
आनंद आपका हमेशा का संगी-साथी बन जाए, यही इस पुस्तक का उद्देश्य है। इसे एक वास्तविकता बनाने के लिए यह पुस्तक आपको कोई उपदेश नहीं, बल्कि एक विज्ञान भेंट करती है; कोई शिक्षा नहीं, बल्कि एक तकनीक भेंट करती है, कोई नियम नहीं, बल्कि एक मार्ग भेंट करती है।
इनर इंजीनियरिंग
आनंद आपका हमेशा का संगी-साथी बन जाए, यही इस पुस्तक का उद्देश्य है। इसे एक वास्तविकता बनाने के लिए यह पुस्तक आपको कोई उपदेश नहीं, बल्कि एक विज्ञान भेंट करती है; कोई शिक्षा नहीं, बल्कि एक तकनीक भेंट करती है, कोई नियम नहीं, बल्कि एक मार्ग भेंट करती है।