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शैदा

9 अप्रैल 2022

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शैदे के मुतअल्लिक़ अमृतसर में ये मशहूर था कि वो चट्टान से भी टक्कर ले सकता है उस में बला की फुर्ती और ताक़त थी गो तन-ओ-तोश के लिहाज़ से वो एक कमज़ोर इंसान दिखाई देता था लेकिन अमृतसर के सारे गुंडे उस से ख़ौफ़ खाते और उस को एहतिराम की नज़रों से देखते थे।

फ़रीद का चौक, मालूम नहीं फ़सादात के बाद उस की क्या हालत है अजीब-ओ-ग़रीब जगह थी यहां शायर भी थे। डाक्टर और हकीम भी मोची और जुलाहे, जुवारी और बदमाश, नेक और परहेज़गार सभी यहां बस्ते थे। हर वक़्त गहमा गहमी रहती थी।

शैदे की सरगर्मीयां चौक से बाहर होती थीं यानी वो अपने इलाक़े में कोई ऐसी हरकत नहीं करता था जिस पर उस के मुहल्ले वालों को एतराज़ हो उस ने जितनी लड़ाईयां लड़ीं दूसरे ग़ुंडों के मुहल्ले में।

वो कहता था अपने मुहल्ले में किसी दूसरे मुहल्ले के गुंडे से लड़ना ना-मर्दी की निशानी है मज़ा तो ये है कि दुश्मन को उस की अपनी जगह पर मारा जाये।

और ये सही था। एक बार पीटरंगों से उस की ठन गई। वो कई मर्तबा चौक फ़रीद से गुज़रे बढ़कीं मारते, नारे लगाते शैदे को गालियां देते। वो ये सब सुन रहा था मगर उस ने उन से भिड़ना मुनासिब न समझा और ख़ामोश रहमान मानदरू की दुकान में बैठा रहा।

लेकिन दो घंटों के बाद वो पिटरंगों के मुहल्ले की तरफ़ रवाना हुआ। अकेला बिलकुल अकेला और फिर ग़ैर मुसल्लह।

वहां जा कर उस ने एक फ़लक शि्गाफ़ नारा बुलंद किया और पिटरंगों को जो अपने काम में मसरूफ़ थे ललकारा “निकलो बाहर तुम्हारी ”

दस पंद्रह पिटरंग लाठियां लेकर बाहर निकल आए और जंग शुरू होगई मेरा ख़याल है शैदे गतके और नबोट का माहिर था। उस पर लाठियां बरसाई गईं लेकिन उस ने एक भी ज़र्ब अपने पर न लगने दी ऐसे पैंतरे बदलता रहा कि पिटरंगों की सिटी गुम होगई।

आख़िर उस ने एक पिटरंग से बड़ी चाबुक-दस्ती से लाठी चीनी और हमला आवरों को मार मार को अध् मुवा कर दिया।

दूसरे रोज़ उसे गिरफ़्तार कर लिया गया दो बरस क़ैद बा-मुशक़क़्त की सज़ा हुई। वो जेल चला गया जैसे वो उस का अपना घर है। इस दौरान में उस की बूढ़ी माँ वक़तन फ़वक़तन मुलाक़ात के लिए आती रही।

वो मशक़्क़त करता था लेकिन उसे कोई कोफ़्त नहीं होती थी वो सोचता था कि चलो वरज़िश हो रही है सेहत ठीक रहेगी। उस की सेहत बावजूद इस के कि खाना बड़ा वाहियात होता था पहले से बेहतर थी उस का वज़न बढ़ गया था लेकिन वो बाअज़ औक़ात मग़्मूम हो जाता और अपनी कोठड़ी में सारी रात जागता रहता। उस के होंटों पर पंजाबी की ये बोली होती

की कचिए तेरी यारी

महनां महनां हो के टुट गई

एक बरस गुज़र गया मशक़्क़त करते करते अब उस की अफ़्सुर्दगी का दौर शुरू हुआ। उस ने मुख़्तलिफ़ बोलियां गाना शुरू कर दीं मुझे एक क़ैदी ने बताया जो उस के साथ वाली कोठड़ी में था कि वो बोलियां गाया करता था।

लभ जानगे यार गोवा चे

ठेके ले ले पतनां दे

इस का मतलब ये है कि तुझे अपना गुमशुदा महबूब मिल जाएगा अगर तू दरिया के साहिल पर कश्तियां चलाने का ठेका ले ले।

गुडी कट जांदी जनहां दी प्रेम वाली

मुनडे ले जानदे ओनहां दी डोर लुट के

यानी जिन की मुहब्बत का पतंग कट जाता है तो लड़के बाले बड़ा शोर मचाते हैं और उन की डोर लूट कर ले जाते हैं।

मैं अब और बोलियों का ज़िक्र नहीं करूंगा। क्योंकि इन सब का जो शैदे के होंटों पर होती थीं, एक ही क़िस्म का मफ़हूम है।

इस क़ैदी ने मुझ से कहा हम समझ गए थे कि शैदे किसी के इश्क़ में गिरफ़्तार है क्योंकि हम ने कई मर्तबा उसे आहें भरते भी देखा मशक़्क़त के दौरान में वो बिलकुल ख़ामोश रहता, ऐसा मालूम होता था जैसे वो किसी और दुनिया की सैर कर रहा है थोड़े थोड़े वक़्फ़ों के बाद एक लंबी आह भरता और फिर अपने ख़यालात में खो जाता।

डेढ़ बरस के बाद जब शैदे ख़ुदकुशी का इरादा कर चुका था और कोई ऐसी तरकीब सोच रहा था कि अपनी ज़िंदगी ख़त्म कर दे कि उसे इत्तिला मिली कि एक जवान लड़की तुम से मिलने आई है। उस को बड़ी हैरत हुई कि ये जवान लड़की कौन हो सकती है। उस की तो सिर्फ़ माँ थी जो इस से अपनी ममता के बाइस मिलने आ जाया करती थी।

मुलाक़ात का इंतिज़ाम हुआ। शैदे सलाखों के पीछे खड़ा था। उस के साथ मुसल्लह सिपाही। लड़की को बुलाया गया शैदे ने सलाखों में से देखा कि एक बुर्क़ा-पोश औरत आहनी पिंजरे की तरफ़ बढ़ रही है उस को अभी तक ये हैरत थी कि ये औरत या लड़की कौन हो सकती है।

सफ़ैद बुर्क़ा था जब वो पास आई तो इस ने नक़ाब उठाई शैदे चीख़ा “तुम तुम कैसे ”

ज़ुलेख़ा जो कि पिटरंगों की लड़की थी ज़ारो क़तार रोने लगी उस के हलक़ में लफ़्ज़ अटक अटक गए “मैं तुम से मिलने आई हूँ लेकिन लेकिन मुझे माफ़ कर देना इतनी देर के बाद आई हूँ तुम ख़ुदा मालूम अपने दिल में मेरे मुतअल्लिक़ क्या सोचते होगे।”

शैदे ने सलाखों के साथ सर लगा कर कहा “नहीं मेरी जान मैं तुम्हारे मुतअल्लिक़ सोचता ज़रूर रहा लेकिन मैं जानता था कि तुम मजबूर हो” ज़ुलेख़ा ने रोते हुए कहा “मैं वाक़ई मजबूर थी लेकिन आज मुझे मौक़ा मिला तो मैं आगई। सच्च कहती हूँ मेरा दिल किसी चीज़ में नहीं लगता था।”

“ये मौक़ा तुम्हें कैसे मिल गया?”

ज़ुलैख़ा की आँखों से आँसू रवां थे “मेरे अब्बा का इंतिक़ाल हो गया है। कल उन का चालीसवां था।”

शैदे मरहूम से अपनी सारी मुख़ासिमत भूल गया “ख़ुदा उन्हें जन्नत बख़्शे मुझे ये ख़बर सुन कर बड़ा अफ़सोस हुआ। ये कहते हुए उस की आँखों में आँसू आ गए। सब्र करो ज़ुलेख़ा इस के सिवा और कोई चारा नहीं”

ज़ुलीख़ा ने अपने सफ़ैद बुरक़े से आँसू पोंछे “मैंने बहुत सब्र किया है शैदे, अब और कितनी देर करना पड़ेगा तुम यहां से कब निकलोगे?”

“बस छः महीने रह गए हैं लेकिन मेरा ख़याल है कि मुझे बहुत पहले ही छोड़ देंगे। यहां के सब अफ़्सर मुझ पर मेहरबान हैं।”

ज़ुलेख़ा की आवाज़ में मुहब्बत का बे-पनाह जज़्बा पैदा होगया “जल्दी आओ प्यारे मुझे अब तुम्हारी होने से रोकने वाला कोई नहीं। ख़ुदा की क़सम अगर किसी ने तुम्हारी तरफ़ आँख उठा कर भी देखा तो में ख़ुद उस से निपट लूंगी मैं नहीं चाहती कि तुम फिर इसी मुसीबत में गिरफ़्तार हो जाओ।”

संतरी ने कहा कि वक़्त ख़त्म होगया। चुनांचे उन की मुलाक़ात भी ख़त्म होगई। ज़ुलेखा रोती चली गई और शैदे दिल में मुसर्रत और आँखों में आँसू लिए जेल के अन्दर चला गया जहां उस को मशक़्क़त करना थी उस दिन इस ने इतना काम किया कि जेलर दंग रह गए।

दो महीनों के बाद उसे रिहा कर दिया गया इस दौरान में ज़ुलेख़ा दो मर्तबा उस से मुलाक़ात करने आई थी। उस ने आख़िरी मुलाक़ात में उस को बता दिया था कि वो किस तारीख़ को जेल से बाहर निकलेगा चुनांचे वो गेट के पास बुर्क़ा पहने खड़ी थी। दोनों फ़र्त-ए-मुहब्बत में आँसू बहाने लगे।

शैदे ने ताँगा लिया दोनों उस में सवार हुए और शहर की जानिब चले। लेकिन शैदे की समझ में नहीं आता था कि वो ज़ुलेख़ा को कहाँ ले जाएगा। “ज़ुलेख़ा तुम्हें कहाँ जाना है” ज़ुलेख़ा ने जवाब दिया “मुझे मालूम नहीं तुम जहां ले जाओगे वहीं चली जाऊंगी”

शैदे ने कुछ देर सोचा और ज़ुलेखा से कहा “नहीं ये ठीक नहीं तुम अपने घर जाओ दुनिया मुझे गुंडा कहती है लेकिन मैं तुम्हें जायज़ तरीक़े पर हासिल करना चाहता हूँ तुम से बाक़ायदा शादी करूंगा।”

ज़ुलीख़ा ने पूछा “कब?”

“बस एक दो महीने लग जाऐंगे मैं अपनी जूए की बैठक फिर से क़ायम कर लूं इस अर्से में इतना रुपया इकट्ठा हो जाएगा कि मैं तुम्हारे लिए ज़ेवर कपड़े ख़रीद सकूं ”

ज़ुलेख़ा बहुत मुतअस्सिर हुई “तुम कितने अच्छे हो शैदे जितनी देर तुम कहोगे मैं उस घड़ी के लिए इंतिज़ार करूंगी जब में तुम्हारी हो जाऊंगी।”

शैदे ज़रा जज़्बाती होगया जानी, “तुम अब भी मेरी हो मैं भी तुम्हारा हूँ लेकिन मैं चाहता हूँ जो काम हो तौर तरीक़े से हो मैं उन लोगों से नहीं जो दूसरों की जवान कुंवारी को वरग़ला कर ख़राब करते हैं मुझे तुम से मुहब्बत है जिस का सब से बड़ा सबूत ये है कि तुम्हारी ख़ातिर मैंने मारखाई और क़रीब क़रीब दो बरस जेल में काटे ख़ुदावंद पाक की कसम खा के कहता हूँ हर वक़्त मेरे होंटों पर तुम्हारा नाम रहता था।”

ज़ुलेख़ा ने कहा “मैंने कभी नमाज़ नहीं पढ़ी थी लेकिन तुम्हारे लिए मैंने एक हम-साई से सीखी और बिला-नागा पांचों वक़्त पढ़ती रही हर नमाज़ के बाद दुआ मांगती कि ख़ुदा तुम्हें हर आफ़त से महफ़ूज़ रखे।”

शैदे ने शहर पहुंचते ही दूसरा ताँगा ले लिया और ज़ुलेख़ा से जुदा होगया ताकि वो अपने घर जाये और वो अपने।

शैदे ने डेढ़ माह के अंदर अंदर एक हज़ार रुपय पैदा कर लिए। उन से उस ने ज़ुलेखा के लिए सोने की चूड़ियां और अँगूठियां बनवाईं। गले के लिए एक निकलेस भी लिया अब वो पूरी तरह लैस था।

एक दिन वो अपने घर में ऊपर पीढ़ी पर बैठा खाना खाने लगा था कि नीचे से किसी औरत के बैन करने जैसी आवाज़ आई। वो उसे पुकार रही थी और साथ साथ कोसने भी दे रही थी।

शैदे ने उठ कर खिड़की में से नीचे झांका तो एक बढ़िया थी जो उस के मुहल्ले की नहीं थी उस ने गर्दन उठा कर ऊपर देखा और पूछा “क्या तुम ही शैदे हो”

“हाँ हाँ”

“ख़ुदा करे न रहो इस दुनिया के तख़्ते पर तुम्हारी जवानी टूटे तुम पर बिजली गिरे।”

शैदे ने किसी क़दर ग़ुस्से में बुढ़िया से पूछा “बात किया है?”

बुढ़िया का लहजा और ज़्यादा तल्ख़ हो गया “मेरी बच्ची तुम पर जान छिड़के और तुम्हें कुछ पता ही नहीं।”

शैदे ने हैरत से उस बुढ़िया से सवाल किया “कौन है तुम्हारी बच्ची?”

“ज़ुलेख़ा और कौन?”

“क्यों क्या हुआ उस को?”

बुढ़िया रोने लगी “वो तुम से मिलती थी, तुम गुंडे हो, इस लिए एक थानेदार ने ज़बरदस्ती उस के साथ अपना मुँह काला किया।” शैदे के होश-ओ-हवास एक लहज़े के लिए ग़ायब होगए। मगर सँभल कर उस ने बुढ़िया से पूछा “क्या नाम है इस थानेदार का?”

बुढ़िया काँप रही थी “करम दाद तुम यहां ऊपर मज़े में बैठे हो बहुत बड़े गुंडे बने फिरते हो अगर तुम में थोड़ी सी ग़ैरत है तो जाओ और उस थानेदार का सर गंडासे से काट के रख दो”

शैदे ने कुछ न कहा खिड़की से हिट कर उस ने बड़े इत्मिनान से खाना खाया। पेट भर के दो गिलास पानी के पीए और एक कोने में रखी हुई कुल्हाड़ी लेकर बाहर चला गया।

एक घंटे के बाद इस ने ज़ुलेख़ा के घर दरवाज़े पर दस्तक दी। वही बुढ़िया बाहर निकली शैदे के हाथ में ख़ून आलूद कुल्हाड़ी थी उस ने बड़े पुर-सुकून लहजे में उस से कहा “माँ जो काम तुम ने मुझ से कहा था कर आया हूँ ज़ुलेख़ा से मेरा सलाम कहना मैं अब चलता हूँ।”

ये कह कर वो सीधा कोतवाली गया और ख़ुद को पुलिस के हवाले कर दिया।

(३० मई ५४ ई.)

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कुछ दिनों से मोमिन बहुत बेक़रार था। उस को ऐसा महसूस होता था कि इस का वजूद कच्चा फोड़ा सा बन गया था। काम करते वक़्त, बातें करते हुए हत्ता कि सोचने पर भी उसे एक अजीब क़िस्म का दर्द महसूस होता था। ऐसा दर्द

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सरकण्डों के पीछे

8 अप्रैल 2022
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कौन सा शहर था, इस के मुतअल्लिक़ जहां तक में समझता हूँ, आप को मालूम करने और मुझे बताने की कोई ज़रूरत नहीं ।बस इतना ही कह देना काफ़ी है कि वो जगह जो इस कहानी से मुतअल्लिक़ है, पेशावर के मुज़ाफ़ात में थी। सरहद

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मिसिज़ गुल

8 अप्रैल 2022
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मैंने जब उस औरत को पहली मर्तबा देखा तो मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मैंने लेमूँ निचोड़ ने वाला खटका देखा है। बहुत दुबली पतली, लेकिन बला की तेज़। उस का सारा जिस्म सिवाए आँखों के इंतिहाई ग़ैर निस्वानी था। ये आँख

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मलबे का ढेर

8 अप्रैल 2022
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कामिनी के ब्याह को अभी एक साल भी न हुआ था कि उस का पति दिल के आरिज़े की वजह से मर गया और अपनी सारी जायदाद उस के लिए छोड़ गया। कामिनी को बहुत सदमा पहुंचा, इस लिए कि वो जवानी ही में बेवा हो गई थी। उस की

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महमूदा

8 अप्रैल 2022
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मुस्तक़ीम ने महमूदा को पहली मर्तबा अपनी शादी पर देखा। आरसी मसहफ़ की रस्म अदा हो रही थी कि अचानक उस को दो बड़ी बड़ी.......ग़ैर-मामूली तौर पर बड़ी आँखें दिखाई दीं.......ये महमूदा की आँखें थीं जो अभी तक कुंवार

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मिसेज़ डी सिल्वा

8 अप्रैल 2022
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बिलकुल आमने सामने फ़्लैट थे। हमारे फ़्लैट का नंबर तेरह था। उस के फ़्लैट का चौदह। कभी कोई सामने का दरवाज़ा खटखटाता तो मुझे यही मालूम होता कि हमारे दरवाज़े पर दस्तक होरही है। इसी ग़लतफ़हमी में जब मैंने एक

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मेरा हमसफ़र

9 अप्रैल 2022
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प्लेटफार्म पर शहाब, सईद और अब्बास ने एक शोर मचा रखा था। ये सब दोस्त मुझे स्टेशन पर छोड़ने के लिए आए थे, गाड़ी प्लेटफार्म को छोड़ कर आहिस्ता आहिस्ता चल रही थी कि शहाब ने बढ़ कर पाएदान पर चढ़ते हुए मुझ से

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मेरा और उसका इंतिक़ाम

9 अप्रैल 2022
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घर में मेरे सिवा कोई मौजूद नहीं था। पिता जी कचहरी में थे और शाम से पहले कभी घर आने के आदी न थे। माता जी लाहौर में थीं और मेरी बहन बिमला अपनी किसी सहेली के हाँ गई थी! मैं तन्हा अपने कमरे में बैठा किताब

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वह लड़की

9 अप्रैल 2022
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सवा-चार बज चुके थे लेकिन धूप में वही तमाज़त थी जो दोपहर को बारह बजे के क़रीब थी। उस ने बालकनी में आ कर बाहर देखा तो उसे एक लड़की नज़र आई जो बज़ाहिर धूप से बचने के लिए एक साया-दार दरख़्त की छांव में आलती पाल

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वो ख़त जो पोस्ट न किये गए

9 अप्रैल 2022
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हव्वा की एक बेटी के चंद ख़ुतूत जो उस ने फ़ुर्सत के वक़्त मुहल्ले के चंद लोगों को लिखे। मगर इन वजूह की बिना पर पोस्ट न किए गए जो इन ख़ुतूत में नुमायां नज़र आती हैं। (नाम और मुक़ाम फ़र्ज़ी हैं) पहला ख़त म

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शादी

9 अप्रैल 2022
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जमील को अपना शैफर लाइफ-टाइम क़लम मरम्मत के लिए देना था। उस ने टेलीफ़ोन डायरेक्ट्री में शैफर कंपनी का नंबर तलाश किया। फ़ोन करने से मालूम हुआ कि उन के एजेंट मैसर्ज़ डी, जे, समतोइर हैं जिन का दफ़्तर ग्रीन

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सड़क के किनारे

9 अप्रैल 2022
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“यही दिन थे......... आसमान उस की आँखों की तरह ऐसा ही नीला था जैसा कि आज है। धुला हुआ, निथरा हुआ......... और धूप भी ऐसी ही कनकनी थी......... सुहाने ख़्वाबों की तरह। मिट्टी की बॉस भी ऐसी ही थी जैसी कि इ

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शारदा

9 अप्रैल 2022
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नज़ीर ब्लैक मार्कीट से विस्की की बोतल लाने गया। बड़क डाकख़ाने से कुछ आगे बंदरगाह के फाटक से कुछ इधर सिगरेट वाले की दुकान से उस को स्काच मुनासिब दामों पर मिल जाती थी। जब उस ने पैंतीस रुपये अदा करके काग़

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सिराज

9 अप्रैल 2022
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नागपाड़ा पुलिस चौकी के उस तरफ़ जो छोटा सा बाग़ है। उस के बिलकुल सामने ईरानी के होटल के बाहर, बिजली के खंबे के साथ लग कर ढूंढ़ो खड़ा था। दिन ढले, मुक़र्ररा वक़्त पर वो यहां आ जाता और सुबह चार बजे तक अपने धंद

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हज्ज-ए-अकबर

9 अप्रैल 2022
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इम्तियाज़ और सग़ीर की शादी हुई तो शहर भर में धूम मच गई। आतिश बाज़ियों का रिवाज बाक़ी नहीं रहा था मगर दूल्हे के बाप ने इस पुरानी अय्याशी पर बे-दरेग़ रुपया सर्फ़ किया। जब सग़ीर ज़ेवरों से लदे फंदे सफ़ैद बुर्र

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सजदा

9 अप्रैल 2022
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गिलास पर बोतल झुकी तो एक दम हमीद की तबीयत पर बोझ सा पड़ गया। मलिक जो उसके सामने तीसरा पैग पी रहा था फ़ौरन ताड़ गया कि हमीद के अंदर रुहानी कश्मकश पैदा होगई है। वो हमीद को सात बरस से जानता था, और इन सात बर

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लाइसेंस

9 अप्रैल 2022
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अब्बू कोचवान बड़ा छैल छबीला था। उस का ताँगा घोड़ा भी शहर में नंबर वन था। कभी मामूली सवारी नहीं बिठाता था। उस के लगे बंधे गाहक थे जिन से उस को रोज़ाना दस पंद्रह रुपय वसूल हो जाते थे जो अब्बू के लिए काफ़ी थ

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हाफ़िज़ हुसैन दीन

9 अप्रैल 2022
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हाफ़िज़ हुसैन दीन जो दोनों आँखों से अंधा था, ज़फ़र शाह के घर में आया। पटियाले का एक दोस्त रमज़ान अली था, जिस ने ज़फ़र शाह से उस का तआरुफ़ कराया। वो हाफ़िज़ साहिब से मिल कर बहुत मुतअस्सिर हुआ। गो उन की

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संतर पंच

9 अप्रैल 2022
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मैं लाहौर के एक स्टूडियो में मुलाज़िम हुआ जिस का मालिक मेरा बंबई का दोस्त था उस ने मेरा इस्तिक़बाल क्या मैं उस की गाड़ी में स्टूडियो पहुंचा था बग़लगीर होने के बाद उस ने अपनी शराफ़त भरी मोंछों को जो ग़ालिबन

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शैदा

9 अप्रैल 2022
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शैदे के मुतअल्लिक़ अमृतसर में ये मशहूर था कि वो चट्टान से भी टक्कर ले सकता है उस में बला की फुर्ती और ताक़त थी गो तन-ओ-तोश के लिहाज़ से वो एक कमज़ोर इंसान दिखाई देता था लेकिन अमृतसर के सारे गुंडे उस से ख़ौ

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राम खेलावन

9 अप्रैल 2022
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खटमल मारने के बाद में ट्रंक में पुराने काग़ज़ात देख रहा था कि सईद भाई जान की तस्वीर मिल गई। मेज़ पर एक ख़ाली फ़्रेम पड़ा था....... मैंने इस तस्वीर से उस को पुर कर दिया और कुर्सी पर बैठ कर धोबी का इंतिज़ार

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रहमत-ए-खुदा-वंदी के फूल

9 अप्रैल 2022
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ज़मींदार, अख़बार में जब डाक्टर राथर पर रहमत-ए-ख़ुदा-वंदी के फूल बरसते थे तो यार दोस्तों ने ग़ुलाम रसूल का नाम डाक्टर राथर रख दिया। मालूम नहीं क्यूँ, इस लिए कि ग़ुलाम रसूल को डाक्टर राथर से कोई निसबत नह

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मिस फ़र्या

9 अप्रैल 2022
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शादी के एक महीने बाद सुहेल परेशान होगया। उस की रातों की नींद और दिन का चैन हराम हो गया। उस का ख़याल था कि बच्चा कम अज़ कम तीन साल के बाद पैदा होगा मगर अब एक दम ये मालूम करके उस के पांव तले की ज़मीन निक

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मिस अडना जैक्सन

9 अप्रैल 2022
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कॉलिज की पुरानी प्रिंसिपल के तबादले का एलान हुआ, तालिबात ने बड़ा शोर मचाया। वो नहीं चाहती थीं कि उन की महबूब प्रिंसिपल उन के कॉलेज से कहीं और चली जाये। बड़ा एहतिजाज हुआ। यहाँ तक कि चंद लड़कियों ने भूक हड़

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बुड्ढ़ा खूसट

9 अप्रैल 2022
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ये जंग-ए-अज़ीम के ख़ातमे के बाद की बात है जब मेरा अज़ीज़ तरीन दोस्त लैफ़्टीनैंट कर्नल मोहम्मद सलीम शेख़ (अब) ईरान इराक़ और दूसरे महाज़ों से होता हुआ बमबई पहुंचा। उस को अच्छी तरह मालूम था, मेरा फ़्लैट कहाँ ह

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शह नशीं पर

9 अप्रैल 2022
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वो सफ़ैद सलमा लगी साड़ी में शह-नशीन पर आई और ऐसा मालूम हुआ कि किसी ने नक़रई तारों वाला अनार छोड़ दिया है। साड़ी के थिरकते हूए रेशमी कपड़े पर जब जगह जगह सलमा का काम टिमटिमाने लगता तो मुझे जिस्म पर वो तमाम

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चुग़द

9 अप्रैल 2022
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लड़कों और लड़कियों के मआशिक़ों का ज़िक्र हो रहा था। प्रकाश जो बहुत देर से ख़ामोश बैठा अंदर ही अंदर बहुत शिद्दत से सोच रहा था, एक दम फट पड़ा। सब बकवास है, सौ में से निन्नानवे मआशिक़े निहायत ही भोंडे और लचर

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