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शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय की प्रसिद्ध कहानियाँ

शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय

14 अध्याय
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शरत चंद्र चट्टोपाध्याय यथार्थवाद को लेकर साहित्य क्षेत्र में उतरे थे। यह लगभग बंगला साहित्य में नई चीज़ थी। शरत चंद्र चट्टोपाध्याय ने अपने लोकप्रिय उपन्यासों एवं कहानियों में सामाजिक रूढ़ियों पर प्रहार किया था, पिटी-पिटाई लीक से हटकर सोचने को बाध्य किया था।उन्होंने अपने लेखन के माध्यम से इस षड्यन्त्र के अन्तर्गत पनप रही तथाकथित सामाजिक 'आम सहमति' पर रचनात्मक हस्तक्षेप किया, जिसके चलते वह लाखों करोड़ों पाठकों के चहेते शब्दकार बने। नारी और अन्य शोषित समाजों के धूसर जीवन का उन्होंने चित्रण ही नहीं किया, बल्कि उनके आम जीवन में आच्छादित इन्दधनुषी रंगों की छटा भी बिखेरी। 

sharatchandra chattopadhyay ke prasiddh kahaniyan

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पुस्तक के भाग

1

सती

24 जनवरी 2022
2
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एक हरीश पबना एक संभ्रांत, भला वकील है, केवल वकालत के हिसाब से ही नहीं, मनुष्यता के हिसाब से भी। अपने देश के सब प्रकार के शुभ अनुष्ठानों के साथ वह थोड़ा-बहुत संबंधित रहता है। शहर का कोई भी काम उसे अलग

2

बालकों का चोर

24 जनवरी 2022
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उन दिनों चारों ओर यह खबर फैल गई कि रूपनारायण-नद के ऊपर रेल का पुल बनेगा, परंतु पुल का काम रुका पड़ा है, इसका कारण यह है कि पुल की देवी तीन बच्चों की बलि चाहती है, बलिदान दिए बिना पुल नहीं बन सकता। तत्

3

देवधर की स्मृतियाँ

24 जनवरी 2022
1
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डॉक्टरों के आदेशानुसार दवा के बदलाव के लिए देवधर को जाना पड़ा। चलते वक्त कविगुरु की एक कविता बार-बार स्मरण होने लगी- “औषुधे डाक्टरे व्याधिर चेये आधि हल बड़ करले जखन अस्थी जर जर तखन बलले हावा बदल क

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अभागी का स्वर्ग

24 जनवरी 2022
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एक सात दिनों तक ज्वरग्रस्त रहने के बाद ठाकुरदास मुखर्जी की वृद्धा पत्नी की मृत्यु हो गई। मुखोपाध्याय महाशय अपने धान के व्यापार से काफी समृद्ध थे। उन्हें चार पुत्र, चार पुत्रियां और पुत्र-पुत्रियों के

5

अनुपमा का प्रेम

24 जनवरी 2022
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ग्यारह वर्ष की आयु से ही अनुपमा उपन्यास पढ़-पढ़कर मष्तिष्क को एकदम बिगाड़ बैठी थी। वह समझती थी, मनुष्य के हृदय में जितना प्रेम, जितनी माधुरी, जितनी शोभा, जितना सौंदर्य, जितनी तृष्णा है, सब छान-बीनकर,

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मन्दिर

24 जनवरी 2022
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नदी किनारे एक गाँव में कुम्हारों के दो घर थे। उनका काम था नदी से मिट्टी उठाकर लाना और साँचे में ढाल के उसके खिलौने बनाना और हाट में ले जाकर उन्हें बेच आना। बहुत दिनों से उनके यहाँ यही काम होता था और इ

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बाल्य-स्मृति

24 जनवरी 2022
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अन्नप्राशन के समय जब मेरा नामकरण हुआ था तब मैं ठीक मैं नहीं बन सका था या फिर बाबा का ज्योतिषशास्त्र में विशेष दख़ल न था। किसी भी कारण से हो, मेरा नाम 'सुकुमार' रखा गया। बहुत दिन न लगे, दो ही चार साल मे

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हरिचरण

24 जनवरी 2022
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बहुत पहले की बात है। लगभग दस-बारह वर्ष हो गए होंगे। दुर्गादास बाबू तब तक वकील नहीं बने थे। दुर्गादास बंद्योपाध्याय को शायद तुम ठीक से पहचानते नहीं हो, मैं जानता हूं उन्हें। आइए, उनसे परिचय करा देता हू

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विलासी

24 जनवरी 2022
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पक्का दो कोस रास्ता पैदल चलकर स्कूल में पढ़ने जाया करता हूँ। मैं अकेला नहीं हूँ, दस-बारह जने हैं। जिनके घर देहात में हैं, उनके लड़कों को अस्सी प्रतिशत इसी प्रकार विद्या-लाभ करना पड़ता है। अत: लाभ के अ

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भला बुरा

24 जनवरी 2022
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अविनाश घोषाल कुछ वर्ष और नौकरी कर सकते थे, लेकिन संभव नहीं हुआ। खबर आई कि इस बार भी उन्हें धत्ता बतलाकर कोई जूनियर मुंसिफ सब-जज बन गया। दूसरी बार की तरह इस बार भी अविनाश खामोश रहे। फर्क केवल इतना ही थ

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राजू का साहस

24 जनवरी 2022
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उन दिनों मैं स्कूल में पढ़ता था। राजू स्कूल छोड़ देने के पश्चात् जन-सेवा में लगा रहता था। कब किस पर कैसी मुसीबत आयी, उससे उसे मुक्त करना, किसी बीमार की सेवा-टहल, कौन कहाँ मर गया, उसका दाह-संस्कार इत्य

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अँधेरे में उजाला

24 जनवरी 2022
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1. बहुत दिनों की बात है। सत्येंद्र चौधरी जमींदार का लड़का बी.ए. पास करके घर लौटा, तो उसकी माँ बोली, 'लड़की साक्षात् लक्ष्मी है। बेटा, बात सुन, एक बार देख आ!' सत्येंद्र ने सिर हिलाकर कहा, 'नहीं माँ,

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गुरुजी

24 जनवरी 2022
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बहुत दिन पहले की बात है। लालू और मैं छोटे-छोटे थे। हमारी उम्र होगी करीब 10-11 साल। हम अपने गांव की पाठशाला में साथ-साथ पढ़ते थे। लालू बहुत शरारती था। उसे दूसरे को परेशान करने और डराने में मजा आता था।

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बलि का बकरा

24 जनवरी 2022
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लोग उसे लालू के नाम से पुकारते थे, लेकिन उसका घर का नाम कुछ और भी था। तुम्हें यह पता होगा कि 'लाल' शब्द का अर्थ प्रिय होता है। यह नाम उसका किसने रखा था, यह मैं नहीं जानता; लेकिन देखा ऐसा गया है कि कोई

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