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शो शो

8 अप्रैल 2022

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घर में बड़ी चहल पहल थी। तमाम कमरे लड़के लड़कियों, बच्चे बच्चियों और औरतों से भरे थे। और वो शोर बरपा हो रहा था। कि कान पड़ी आवाज़ सुनाई ना देती थी। अगर उस कमरे में दो तीन बच्चे अपनी माओं से लिपटे दूध पीने के लिए बिलबिला रहे हैं। तो दूसरे कमरे में छोटी छोटी लड़कियां ढोलकी से बे-सुरी तानें उड़ा रही हैं। न ताल की ख़बर है न लै की। बस गाय जा रही हैं। नीचे डेयुढ़ी से लेकर बालाई मंज़िल के शह-नशीनों तक मकान मेहमानों से खचाखच भरा था। क्यों ना हो। एक मकान में दो ब्याह रचे थे। मेरे दोनों भाई अपनी चांद सी दुल्हनें ब्याह कर लाए थे।

रात के ग्यारह बजे के लग भग दोनों डोलियां आएं। और गली में इस क़दर शोर बरपा हुआ कि उल-अमान मगर वो नज़ारा बड़ा रूह अफ़्ज़ा था। जब गली की सब शोख़-ओ-शुंग लड़कियां बाहर निकल आईं। और तीतरयों की तरह इधर उधर फड़फड़ाने लगीं।

साड़ियों की रेशमी सरसराहट। किलिफ़ लगी शलवारों की खड़खड़ाहट और चूड़ियों की खनखनाहट हवा में तैरने लगी। तिमतिमाते हुए मुखड़ों पर बार बार गिरती हुई लटें। नन्हे नन्हे सीनों पर ज़ोर दे कर निकाली हुई बुलंद आवाज़ें ऊंची एड़ी के बूटों पर थिरकती हुई टांगें लचकती हुई उंगलियां, धड़कते हुए लहजे, फड़कती हुईं रगें। और फिर उन अल्हड़ लड़कियों की आपस की सरगोशियां!...... ये सब कुछ देख कर ऐसा लगता था कि गली के पथरीले फ़र्श पर हुस्न-ओ-शबाब अपने क़लम से मआनी लिख रहा है!

अब्बास मेरे पास खड़ा था। हम दोनों औरतों के हुजूम में घिरे हुए थे दफ़अतन अब्बास ने गली के नुक्कड़ पर नज़रें गाड़ कर कहा। “”शो शो कहाँ है?”

मैंने जवाब दिया। “मुझे इस वक़्त तुम्हारे सवाल का जवाब देने की फ़ुर्सत नहीं है।”

मैं इस हुजूम में उस भोंरे के मानिंद खड़ा था। जो फूलों भरी क्यारी देख कर ये फ़ैसला नहीं कर सकता कि किस फूल पर बैठे।

अब्बास ने रूनी आवाज़ में कहा। “वो नहीं आई!”

“तो क्या हुआ...... बाक़ी तो सब मौजूद हैं .....अरे....... देखो तो वो नीली साड़ी में कौन है?...... शो शो।” मैंने अब्बास का हाथ दबाया।

अब्बास ने ग़ौर से देखा। “नीली साड़ी में....... ” ये कह कर इस ने अपने मख़सूस अंदाज़ में मेरी तरफ़ क़हर आलूद निगाहों से देख कर कहा। “ईलाज कराओ अपनी आँखों का...... चुग़द कहीं के, ये शोशो है?”

“क्यों वो नहीं है क्या?” मैंने फिर नीली साड़ी की तरफ़ ग़ौर से देखा और ऐसा करते हुए मेरी निगाहें इका इकी उस लड़की की निगाहों से टकराईं कुछ इस तौर पर कि उस को एक धक्का सा लगा। वो सँभली और फ़ौरन मुँह से लाल जीब निकाल कर मेरा मुँह चढ़ाया। अपनी सहेली के कान में कुछ कहा........उस सहेली ने कनखियों से मेरी तरफ़ देखा........ मेरे माथे पर पसीना आ गया।

अब्बास ने जो अपना इत्मिनान करने के लिए एक बार फिर उस की तरफ़ देख रहा था बुलंद आवाज़ में कहा। “ब-ख़ुदा तुम उस की तौहीन कर रहे हो....... गधे कहीं के...... औरत के मुआमले में निरे अहमक़ हो....... काठ की कोई पतली नीले रंग में लपेट लपाट कर तुम्हारे सामने रख दी जाये। तुम उसी की बलाऐं लेना शुरू कर दोगे।”

ये अल्फ़ाज़ इतनी ऊंची आवाज़ में अदा किए गए थे कि उस नीली साड़ी वाली ने सुन लिए जब वो हमारे पास से गुज़रने लगी तो ख़ुदबख़ुद ठटक गई। एक लहज़े के लिए उस के क़दम रुके। गोया हम में से किसी ने उस को मुख़ातब किया है। फिर फ़ौरन उस को अपनी ग़लती का एहसास हुआ। और इस एहसास की पैदा की हुई ख़िफ़्फ़त दूर करने के लिए उस ने यूंही पीछे मुड़ कर देखा। और कहा। “अरे...... अमीना तू कहाँ उड़ गई?!”

मुझे मौक़ा मिला। में झट से अब्बास का हाथ अपने हाथ में ले लिया। और उसे अच्छी तरह दबा कर उस से कहा। “आप से मिल कर बहुत ख़ुशी हासिल हुई। मगर मेरा नाम मुहम्मद अमीन है.... मुझे नील कंठ भी कहते हैं!”

जल ही तो गई। मगर हम ज़ेरे लब मुसकराते आगे बढ़ गए। चंद ही क़दम चले होंगे कि अब्बास ने इज़्तिराब भरे लहजे में कहा। “शो शो अभी तक नहीं आई।”

“तो मैं क्या करूं...... मेरे सर पर नमदा बांध दीजिए। तो मैं अभी सरकार के लिए उसे तलाश करके ले आता हूँ........ आख़िर ये क्या हमाक़त है भई। तुम तमाशा भी देखने दोगे या कि नहीं?....... और फिर जनाब ये तो बताईए। अगर वो यहां मौजूद भी हो तो आप उस से मुलाक़ात क्योंकर कर सकते हैं....... आप कोई अमरीकी नावेल नहीं पढ़ रहे। कोई ख़्वाब तो नहीं देख रहे!”

अब्बास मेरी बात फ़ौरन समझ गया। वो इतना बेवक़ूफ़ नहीं था। चुनांचे हम दोनों आहिस्ता आहिस्ता क़दम उठाए गली से निकल कर बाज़ार में चले गए। मोड़ पर राम भरोसे पनवाड़ी की दुकान खुली थी। जो बिजली के क़ुमक़ुमे के नीचे सर झुकाए ओंघ रहा था। हम ने उस से दो पान बनवाए और वहीं बाज़ार में कुर्सियों पर बैठ कर बातें करने में मशग़ूल हो गए। देर तक हम हिंदूस्तान में मर्द औरत के दरमियान जो अजनबीयत चली आ रही है। इस के बारे में गुफ़्तुगू करते रहे। जब एक बज गया तो अब्बास जमाई लेकर उठा और कहने लगा। “भई अब नींद आ रही है...... इस हसरत को साथ लिए जा रहा हूँ कि शो शो को ना देख सका। सच्च कहता हूँ अमीन वो लड़की....... मैं अब तुम्हें क्या बताऊं कि वो क्या है?”

अब्बास ने अपने घर का रुख़ किया और मैंने अपने घर का। रास्ते में सोचता रहा कि अब्बास ने शो शो जैसी मामूली लड़की में ऐसी कौनसी ग़ैरमामूली चीज़ देखी है जो हरवक़्त उसी का ज़िक्र करता रहता है। अब्बास के मज़ाक़ के मुतअल्लिक़ मैं यक़ीन के साथ कह सकता हूँ कि बड़ा ऊंचा है। मगर यहां उसे क्या हो गया था?........ शो शो.... शोशो..... अरे ये क्या?....... दो तीन बार उस का नाम मेरी ज़बान पर आया। तो मैंने यूं महसूस किया कि पेपरमिन्ट की गोलीयां चूस रहा हूँ........ शो शो......... एक दो मर्तबा आप भी उसे दोहराईए। ज़रा जल्दी जल्दी..... क्या आप को लज़्ज़त महसूस हुई?........ ज़रूर हुई होगी मगर क्यों?......... समझ में नहीं आता था कि मैं अब्बास की महबूबा शो शो के बारे में ख़्वाम-ख़्वाह क्यों ग़ौर करने लगा हूँ? इस में ऐसी कोई चीज़ है ही नहीं जो ग़ैर अफ़रोज़ हो मगर....... मगर....... ये शो शो नाम में दिलचस्पी ज़रूर थी। और क्या कहा था मैंने लज़्ज़त भी!

शो शो में बानजो के थिरकते हुए तारों की झनकार सी पाई जाती है। आप ये नाम पुकारईए तो ऐसा मालूम होगा कि आप ने किसी साज़ के तने हुए तारों पर ज़ोर से गज़ फेर दिया है।

शो शो........ सौ शीला का दूसरा नाम है। यानी उस की बिगड़ी हुई शक्ल मगर इस के बावजूद उस में कितनी मोसीक़ी है........ सौ शीला........ शो शो......... शोशो........ सौ शीला......... ग़लत....... सौ शीला में शोशो की सी मोसीक़ियत हरगिज़ नहीं हो सकती!

फ़िरंगी शायर बाइरन शकील था। मगर उस में वो कौन सी शैय थी। जो औरतों के सीने में हैजान बरपा कर देती थी?....... उस का लंगड़ा कर चलना। ग्रेटा गारियो क़तअन ख़ुश शक्ल नहीं है। मगर उस में कौन सी चीज़ है जो फ़िल्मी तमाशाइयों पर जादू का काम करती है?...... उस का ज़रा बिगड़े हुए अंग्रेज़ी लहजे में बातें करना......ये क्या बात है कि बाअज़ औक़ात अच्छी भली शैय को बिगाड़ने से उस में हुस्न पैदा हो जाता है?........

सूशीला पंद्रह बरस की एक मामूली लड़की है। जो हमारे पड़ोस में रहती है। इस उम्र में उन तमाम चीज़ों की मालिक है। जो आम नौजवानों के सीने में हलचल पैदा करने के लिए काफ़ी होती हैं। मगर अब्बास की नज़रों में ये कोई ख़ूबी ना थी। आम नौजवानों की तरह अब्बास का दिल घास की पत्ती के मानिंद नहीं था। जो हवा के हल्के से झोंके के साथ ही काँपना शुरू कर देती है...... ख़ुदा जाने वो उस की किस अदा पर मरता था। जो मेरे ज़ेहन से बाला-ए-तर थी।

मैंने सूशीला की शक्ल व सोरत और उस की सनाआना क़द्र-ओ-क़ीमत के मुतअल्लिक़ कभी ग़ौर नहीं किया था। मगर न जाने में उस रोज़ उस के मुतअल्लिक़ क्यों सोचता रहा। बार बार वो मेरे ज़ेहन में आ रही थी। और हर बार मैं सूशीला को छोड़कर इस के मुख़्तसर नाम शोशो की मोसीक़ी में गुम हो जाता था। इन्ही ख़यालात में ग़र्क़ गली के मोड़ पर पहुंच गया। और मुझे इस चीज़ का एहसास उस वक़्त हुआ जब मैंने दफ़अतन वहां की फ़िज़ा को ग़ैरमामूली तौर पर ख़ामोश पाया। मकान मेरी नज़रों के सामने था। उस के बाहर गली की दीवार के साथ एक बर्क़ी क़ुमक़ुमा लटक रहा था। जिस की चौंधिया देने वाली रोशनी सारी गली में बिखरी हुई थी....... मुझे इस क़ुमक़ुमे के तजर्रुद पर बड़ा तरस आया। गली बिलकुल सुनसान थी। और वो क़ुमक़ुमा मतहय्यर मालूम होता था।

घर में दाख़िल हूवा। तो वहां भी ख़ामोशी थी। अलबत्ता कभी कभार किसी बच्चे के रोने की लर्ज़ां सदा और फिर साथ ही उस की माँ की ख़्वाब आलूद आवाज़ सुनाई देती थी। डेयोढ़ी के साथ वाला कमरा खोल कर में सोफे पर बैठ गया। पास ही तिपाई पर रोमान पड़ा था। उस को उठा कर मैंने वर्क़ गरदानी शुरू की। वर्क़ उलटते उलटते अख़तर की ग़ज़ल पर नज़रें जम गईं। मतला किस क़दर हसीन था।

ना भूलेगा तिरा रातों को शर्माते हूए आना

रसीली अंखड़ियों से नींद बरसाते हूए आना

मुझे नींद आ गई। क्लाक की तरफ़ देखा। तो छोटी सोई दो के हिन्दसे के पास पहुंच चुकी थी। और इस का ऐलान करने के लिए अलार्म में इर्तिआश पैदा हो रहा था..... टन नन नन....... टन नन नन....... नून!

दो बज गए....... मैं उठा और सोने के इरादे से सीढ़ियां तय करके अपनी ख़्वाब-गाह में पहुंचा। बहार के दिन थे। और मौसम ख़नक। मेरी ख़्वाब-गाह की एक खिड़की बाहर की गली में खुलती है। जिस के पियाज़ी रंग के रेशमी पर्दे में हवा के हल्के हल्के झोंके बड़ी प्यारी लहरें पैदा कर रहे थे।

मैंने शब ख़्वाबी का लिबास पहना और सब्ज़ रंग का क़ुमक़ुमा रोशन करके बिस्तर पर लेट गया।

मेरी पलकें आपस में मिलने लगीं। ऐसा महसूस होने लगा कि में धुनकी हुई रूई के बहुत बड़े अंबार में धंसा जा रहा हूँ। नींद और बेदारी के दरमियान एक लहज़ा बाक़ी रह गया था कि अचानक मेरे कानों में किसी के बोलने की गुनगुनाहट आई। इस पर मिलती हुई पलकें खुल गईं। और मैंने ग़नूदगी दूर करते हूए ग़ौर से सुनना शुरू किया। साथ वाले कमरे में कोई बोल रहा था। यकायक किसी की दिलकश हंसी की तरन्नुम आवाज़ बुलंद हुई। और फुलझड़ी के नूरानी तारों के मानिंद पुर-सुकूत फ़िज़ा में बिखर गई।

मैं बिस्तर पर से उठा और दरवाज़े के साथ कान लगा कर खड़ा हो गया।

“दोनों दुल्हनों माशा अल्लाह बड़ी ख़ूबसूरत हैं।”

“चंदे आफ़ताब चंदे माहताब”

ग़ालिबन दो लड़कियां आपस में बातें कर रही थीं। उन के मौज़ू ने मेरी दिलचस्पी को बढ़ा दिया। और मैंने ज़्यादा ग़ौर से सुनना शुरू किया।

“तिल्ले वाली सुर्ख़ साड़ी में नर्गिस कितनी भली मालूम होती थी..... गोरे गोरे गालों पर बिखरी हुई मुक़य्यश........ जी चाहता था। बढ़ कर बलाऐं ले लूं।”

“बिचारी सिमटी जा रही थी।”

“सर तो उठाया ही नहीं उस ने..... पर..... ”

“पर ये शर्म-ओ-हया कब तक रहेगी...... आज रात..... ”

“आज रात.....!”

“ऊई अल्लाह..... तू कैसी बातें कर रही है शोशो।” इस के साथ ही कपड़े की सरसराहट सुनाई दी। मेरे जिस्म में बिजली सी दौड़ गई...... शोशो........ तो इन में से एक सूशीला भी थी। मेरी दिलचस्पी और भी बढ़ गई और मैंने दरवाज़े में कोई दराड़ तलाश करना शुरू की। कि उन की गुफ़्तुगू के साथ साथ उन को देख भी सकूं।

एक किवाड़ के निचले तख़्ते से छोटी सी गांठ निकल गई थी। और इस तरह चवन्नी के बराबर सूराख़ पैदा हो गया था। घुटनों के बल बैठ कर मैंने उस पर आँख जमा दी।

शो शो क़ालीन पर बैठी बिसकुटी रंग की साड़ी से अपनी नंगी पिंडली को ढांक रही थी। उस के पास इफ्फत शर्माई हुई सी गाव तकिए पर दोनों कुहनियाँ टेके लेटी थी।

इस वक़्त उन गोरी चिट्टी दुल्हनों पर क्या बीत रही होगी? शोशो ये कह कर रुक गई और अपनी आवाज़ दबा कर उस ने इफ्फत की चूड़ियों को छेड़कर उन में खनखनाहट पैदा करते हुए कहा। “ज़रा सोचो तो?”

इफ़्फ़त के गाल एक लम्हे के लिए थरथराए। “कैसी बहकी बहकी बातें कर रही हो शोशो।”

“जी हाँ...... गोया इन बातों से दिलचस्पी नहीं मेरी बन्नो को। बस में हो तो अभी से अभी अपनी शादी रचालो।”

इफ्फत ने सूशीला की बात काट दी। “पर ये दुल्हनों को कहाँ ले गए हैं शोशो?”

“कहाँ ले गए हैं? “ शोशो मुस्कुराई। “समुंद्र की तह में जहां जल परियों का राज है..... कोह-ए-क़ाफ़ के गारों में जहां सींगों वाले जिन रहते हैं..... ”

चंद लम्हात के लिए एक पुर-इसरार सुकूत तारी रहा। इस के बाद शोशो फिर बोली। “कहाँ ले गए हैं?...... ले गए होंगे अपने अपने कमरों में!”

“बेचारियों को नींद कैसे आएगी?” एक लड़की ने जो अभी तक ख़ामोश बैठी थी और जिस का नाम में नहीं जानता था। अपना अंदेशा ज़ाहिर किया।

शोशो कहने लगी। “बे-चारियाँ!...... कोई ज़रा उन के दिल से जा कर पूछे कि उन की आँखें इस रुत-जगे के लिए कितनी बेक़रार थीं?”

“तो बहुत ख़ुश होंगी?”

“और किया?”

“पर मैंने ये सुना है कि ये लोग बहुत सताया करते हैं?” इफ्फत सूशीला के पास सरक आई।

“मैं पूछती हूँ तुम्हें अंदेशा किस बात का हो रहा है?...... जब तुम्हारे वो सताने लगेंगे तो न सताने देना उन्हें...... हाथ पैर बांध देना उन के....... अभी से फ़िक्र में क्यों घुली जा रही हो।”

“हाएं हाएं।” इफ्फत ने तेज़ी से कहा। “तुम कैसी बातें कर रही हो शोशो। देखो तो मेरा दल कितने ज़ोर से धड़कने लगा है!?” इफ्फत ने सूशीला का हाथ उठा कर दल के मुक़ाम पर रख दिया। “क्यों?”

शोशो ने इफ्फत के दिल की धड़कनें ग़ौर से सुनीं। और बड़े पुर-इसरार लहजे में कहा। “जानती हूँ क्या कह रहा है?”

इफ़्फ़त ने जवाब दिया। “नहीं तो?”

“ये कहता है इफ़्फ़त बानो ग़ज़नवी दुल्हन बनना चाहती है!...... ”

“हटाओ जी, लाज तो नहीं आती तुम्हें।” इफ़्फ़त ने मुस्कुरा कर करवट बदली। “दिल अपना चाहता है तुम्हारा और ख़्वाह-मख़्वाह ये सब कुछ मेरे सर मुंढ रही हो।” फिर यकायक उठ खड़ी हुई। और सूशीला से पूछने लगी। “हाँ, ये तो बताओ शोशो तुम भला कैसे आदमी से शादी करना पसंद करोगी?...... मेरे सर की क़सम, सच्च सच्च बताओ। मुझी को हाय हाय करो। अगर झूट बोलो!”

“मैं क्यों बताऊं।” ये कह कर सूशीला ने तेज़ी से अपने सर को हरकत दी। और उस का चेहरा (जो मेरी) निगाहों से पोशीदा था, सामने आगया, मैंने ग़ौर से देखा वो मुझे बेहद हसीन मालूम हुई। आँखें मस्त थीं। और होंट तलवार के ताज़ा ज़ख़्म के मानिंद खुले हूए थे। सर के चंद परेशान बाल बर्क़ी रोशनी से मुनव्वर फ़िज़ा में नाच रहे थे। चेहरे का गंदुमी रंग निखरा हुआ था। और सीना पर से साड़ी का पल्लू नीचे ढलक गया था। हौले-हौले धड़क रहा था। चौड़े माथे पर सुर्ख़ बिंदिया बड़ी प्यारी मालूम होती थी।

इफ्फत ने इसरार किया। “तुम्हें मेरे सर की क़सम बताओ?”

शोशो ने कहा। “पहले तुम बताओ।”

“तो सुनो, मगर किसी से कहोगी तो नहीं।” ये कह कर इफ्फत कुछ शर्मा सी गई। “मैं चाहती हूँ...... मैं चाहती हूँ कि मेरी शादी एक ऐसे नौजवान से हो....... ऐसे..... ”

शोशो बोली। “तौबा अब कह भी दो।”

इफ्फत ने पेशानी पर से बाल हटाए और कहा। “ऐसे नौजवान से हो जिस का क़द लंबा हो जिस्म बड़े भाई की तरह सुडौल हो। इंगलैंड रीटर्नड हो। अंग्रेज़ी फ़रफ़र बोलता हो...... रंग गोरा और नक़्श तीखे हूँ। मोटर चलाना जानता हो। और बैडमिंटन भी खेलता हो।”

शोशो ने पूछा। “बस कह चुकीं?”

हाँ इफ्फत ने नीम-वा लबों से सूशीला की तरफ़ ग़ौर से देखना शुरू किया।

“मेरी दुआ है कि परमात्मा तुम्हें ऐसा ही पति अता फ़रमाएं।” सूशीला का चेहरा बड़ा संजीदा था। और लहजा ऐसा था। जैसे मंदिर में कोई मुक़द्दस मंत्र पढ़ रही है।

वो लड़की जो गुफ़्तुगू में बहुत कम हिस्सा लेती थी। बोली “इफ्फत! अब शोशो की बारी है।”

इफ्फत जो शोशो की साड़ी का एक किनारा पकड़ कर अपनी उंगली के गर्द लपेट रही थी कहने लगी। “भई अब तुम बताओ हम ने तो अपने दिल की बात तुम से कह दी।”

शोशो ने जवाब दिया। “सुन के क्या करोगी?..... मेरे ख़यालात तुम से बिलकुल मुख़्तलिफ़ हैं।”

“मुख़्तलिफ़ हूँ या मिलते हूँ। पर हम सुने बग़ैर तुम्हें नहीं छोड़ेंगे।”

“मैं......... ” सूशीला ने छत की तरफ़ देखा। और कुछ देर ख़ामोश रहने के बाद कहने लगी। “मैं........ पर तुम मज़ाक़ उड़ाओगी इफ्फत!”

“अरे...... तुम सुनाओ तो?”

सूशीला ने एक आह भरी। “मेरे सपने अजीब-ओ-ग़रीब हैं इफ्फत...... ये मेरे दिमाग़ में साबुन के रंग बिरंगे बुलबुलों की तरह पैदा होते हैं। और आँखों के सामने नाच कर ग़ायब हो जाते हैं..... मैं सोचती हूँ........ और फिर सोचती हूँ कि मैं क्यों सोचा करती हूँ। इंसान जो कुछ चाहता है। अगर हो जाया करे तो कितनी अच्छी बात है..... लेकिन फिर ज़िंदगी में क्या रह जाएगा...... ख्वाहिशें और तमन्नाएं कहाँ से पैदा होंगी....... हम जिस तरह जी रहे हैं ठीक है..... जानती हूँ कि जो कुछ मांग रही हूँ। नहीं मिलेगा। मगर दिल में मांग तो रहेगी...... क्या ज़िंदा रहने के लिए यही काफ़ी नहीं?”

इफ्फत और दूसरी लड़की ख़ामोश बैठी थीं।

शोशो ने फिर कहना शुरू किया। “मैं अपना जीवन साथी एक ऐसे नौजवान को बनाना चाहती हूँ। जो सिर्फ़ उम्र के लिहाज़ से ही जवान न हो, बल्कि उस का दिल, इस का दिमाग़...... इस का रूवां रूवां जवान हो..... वो शायर हो........ मैं शक्ल-ओ-सूरत की क़ाइल नहीं...... मुझे शायर चाहिए जो मेरी मुहब्बत में गिरफ़्तार हो कर सर-ता-पा मुहब्बत बन जाये। जिस को मेरी हर बात में हुस्न नज़र आए...... जिस के हर शेर में मेरी और सिर्फ़ मेरी तस्वीर हो....... जो मेरी मुहब्बत की गहराईयों में गुम हो जाये....... मैं उसे इन तमाम चीज़ों के बदले में अपनी निस्वानियत का वो तख़फ़ा दूंगी। जो आज तक कोई औरत नहीं दे सकी।”

वो ख़ामोश हो गई। इफ्फत हैरत के मारे उस का मुँह तकने लगी। उस के चेहरे से मालूम होता था। कि वो सूशीला की गुफ़्तुगू का कोई मतलब नहीं समझ सकी। मैं ख़ुद मतहय्यर था। कि पंद्रह सोला बरस की इस दुबली पतली लड़की के सीने में कैसे कैसे ख़यालात करवटें ले रहे हैं। उस का एक एक लफ़्ज़ दिमाग़ में गूंज रहा था।

“अगर वो मुझे नज़र आ जाये” ये कह कर सूशीला आगे बढ़ी और इफ़्फ़त के चेहरे को अपने दोनों हाथों में लेकर कहने लगी। “तो मैं उस के इस्तिक़बाल के लिए बड़ूँ और उस के होंटों पर वो बोसा दूं। जो एक ज़माने से मेरे होंटों के नीचे जल रहा है।”

और शोशो ने इफ्फत के हैरत से खुले हुए होंटों पर अपने होंट जमा दिए....... और देर तक उन को जमाए रखा। तअज्जुब है कि इफ्फत बिलकुल साकित बैठी रही। और मोतरिज़ न हुई।

जब दोनों के लब एक मद्धम आवाज़ के जुदा हूए और उन के चेहरे मुझे नज़र आए। तो एक अजीब-ओ-ग़रीब नज़ारा देखने में आया। जिस को अल्फ़ाज़ बयान ही नहीं कर सकते। इफ्फत उस शहद की मक्खी की तरह मसरूर मुतअज्जिब मालूम होती थी जिस ने पहली मर्तबा फूल की नाज़ुक पत्तियों पर बैठ कर उस का रस चूसने की लज़्ज़त महसूस की हो..... और सूशीला..... वो और ज़्यादा पुर-इसरार हो गई थी।

“आओ अब सोएँ।”

ये ख़्वाब आलूद और धीमी आवाज़ इफ़्फ़त की थी। इस के साथ ही कपड़ों की सरसराहट भी सुनाई दी और मैं ख़यालात के गहरे समुंद्र में ग़ोता लगा गया।

गंदुमी रंग की नन्ही सी गुड़िया, अपने छोटे से दिमाग़ में कैसे कैसे अनोखे ख़यालात की परवरिश कर रही थी...... और वो कौन सा तोहफ़ा अपने दामन-ए-निस्वानियत में छुपाए बैठी थी। जो आज तक कोई औरत मर्द को पेश नहीं कर सकी?......

मैंने सूराख़ में से देखा। शोशो। और इफ़्फ़त दोनों एक दूसरी के गले में बाहें डाले सौ रही थीं। शोशो के चेहरे पर बाल बिखरे हुए थे। और उस के सांस से इन में ख़फ़ीफ़ सा इर्तिआश पैदा हो रहा था। वो किस क़दर तर-ओ-ताज़ा मालूम होती थी...... वाक़ई वो इस काबिल थी कि उस पर शेर कहे जाएं..... लेकिन अब्बास तो शायर नहीं था?....... फिर फिर.....

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“मुझे मत सताईए....... ख़ुदा की क़सम, मैं आप से कहती हूँ, मुझे मत सताईए” “तुम बहुत ज़ुल्म कर रही हो आजकल!” “जी हाँ बहुत ज़ुल्म कर रही हूँ” “ये तो कोई जवाब नहीं” “मेरी तरफ़ से साफ़ जवाब है और ये मैं आप

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इज़्ज़त के लिए

8 अप्रैल 2022
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चवन्नी लाल ने अपनी मोटर साईकल स्टाल के साथ रोकी और गद्दी पर बैठे बैठे सुबह के ताज़ा अख़्बारों की सुर्ख़ियों पर नज़र डाली। साईकल रुकते ही स्टाल पर बैठे हुए दोनों मुलाज़िमों ने उसे नमस्ते कही थी। जिस का जवा

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इफ़्शा-ए-राज़

8 अप्रैल 2022
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“मेरी लगदी किसे न वेखी वे ते टुटदी नूँ जग जाणदा” “ये आप ने गाना क्यों शुरू कर दिया है” “हर आदमी गाता और रोता है कौनसा गुनाह किया है?” “कल आप ग़ुसल-ख़ाने में भी यही गीत गा रहे थे” “ग़ुसल-ख़ाने में तो ह

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क़ब्ज़

8 अप्रैल 2022
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नए लिखे हुए मुकालमे का काग़ज़ मेरे हाथ में था। ऐक्टर और डायरेक्टर कैमरे के पास सामने खड़े थे। शूटिंग में अभी कुछ देर थी। इस लिए कि स्टूडीयो के साथ वाला साबुन का कारख़ाना चल रहा था। हर रोज़ इस कारख़ाने के

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कुत्ते की दुआ

8 अप्रैल 2022
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“आप यक़ीन नहीं करेंगे। मगर ये वाक़िया जो मैं आप को सुनाने वाला हूँ, बिलकुल सही है।” ये कह कर शेख़ साहब ने बीड़ी सुलगाई। दो तीन ज़ोर के कश लेकर उसे फेंक दिया और अपनी दास्तान सुनाना शुरू की। शेख़ साहब के म

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कोट पतलून

8 अप्रैल 2022
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नाज़िम जब बांद्रा में मुंतक़िल हुआ तो उसे ख़ुशक़िसमती से किराए वाली बिल्डिंग में तीन कमरे मिल गए। इस बिल्डिंग में जो बंबई की ज़बान में चाली कहलाती है, निचले दर्जे के लोग रहते थे। छोटी छोटी (बंबई की ज़बान

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ख़ालिद मियां

8 अप्रैल 2022
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मुमताज़ ने सुबह सवेरे उठ कर हसब-ए-मामूल तीनों कमरे में झाड़ू दी। कोने खद्दरों से सिगरटों के टुकड़े, माचिस की जली हुई तीलियां और इसी तरह की और चीज़ें ढूंढ ढूंढ कर निकालें। जब तीनों कमरे अच्छी तरह साफ़ होगए

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ख़ुदकुशी

8 अप्रैल 2022
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ज़ाहिद सिर्फ़ नाम ही का ज़ाहिद नहीं था, उस के ज़ुहद-ओ-तक़वा के सब क़ाइल थे, उस ने बीस पच्चीस बरस की उम्र में शादी की, उस ज़माने में उस के पास दस हज़ार के क़रीब रुपय थे, शादी पर पाँच हज़ार सर्फ़ हो गए, उतनी ह

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गिलगित ख़ान

8 अप्रैल 2022
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शहबाज़ ख़ान ने एक दिन अपने मुलाज़िम जहांगीर को जो उस के होटल में अंदर बाहर का काम करता था उस की सुस्त-रवी से तंग आकर बर-तरफ़ कर दिया। असल में वो सुस्त-रो नहीं था। इस क़दर तेज़ था कि उस की हर हरकत शहबाज़ ख़ान

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घोगा

8 अप्रैल 2022
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मैं जब हस्पताल में दाख़िल हुआ तो छट्ठे रोज़ मेरी हालत बहुत ग़ैर होगई। कई रोज़ तक बे-होश रहा। डाक्टर जवाब दे चुके थे लेकिन ख़ुदा ने अपना करम किया और मेरी तबीयत सँभलने लगी। इस दौरान की मुझे अक्सर बातें या

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चुग़द

8 अप्रैल 2022
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लड़कों और लड़कियों के मआशिक़ों का ज़िक्र हो रहा था। प्रकाश जो बहुत देर से ख़ामोश बैठा अंदर ही अंदर बहुत शिद्दत से सोच रहा था, एक दम फट पड़ा। सब बकवास है, सौ में से निन्नानवे मआशिक़े निहायत ही भोंडे और लचर

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जानकी

8 अप्रैल 2022
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पूना में रेसों का मौसम शुरू होने वाला था कि पिशावर से अज़ीज़ ने लिखा कि मैं अपनी एक जान पहचान की औरत जानकी को तुम्हारे पास भेज रहा हूँ, उस को या तो पूना में या बंबई में किसी फ़िल्म कंपनी में मुलाज़मत करा

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तरक़्क़ी पसंद

8 अप्रैल 2022
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जोगिंदर सिंह के अफ़साने जब मक़बूल होना शुरू हुए तो उसके दिल में ख़्वाहिश पैदा हुई कि वो मशहूर अदीबों और शाइरों को अपने घर बुलाए और उन की दावत करे। उस का ख़याल था कि यूं उस की शौहरत और मक़बूलियत और भी ज़्

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दीवाना शायर

8 अप्रैल 2022
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[अगर मुक़द्दस हक़ दुनिया की मुतजस्सिस निगाहों से ओझल कर दिया जाये। तो रहमत हो उस दीवाने पर जो इंसानी दिमाग़ पर सुनहरा ख़्वाब तारी कर दे।] मैं आहों का ब्योपारी हूँ, लहू की शायरी मेरा काम है, चमन की मा

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निक्की

8 अप्रैल 2022
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तलाक़ लेने के बाद वो बिलकुल नचनत होगई थी। अब वो हर रोज़ की वानिता कुल कुल और मार कटाई नहीं थे। निक्की बड़े आराम-ओ-इत्मिनान से अपना गुज़र औक़ात कर रही थी। ये तलाक़ पूरे दस बरस के बाद हुई थी। निक्की का श

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परी

8 अप्रैल 2022
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कश्मीरी गेट दिल्ली के एक फ़्लैट में अनवर की मुलाक़ात परवेज़ से हुई। वो क़तअन मुतअस्सिर न हुआ। परवेज़ निहायत ही बेजान चीज़ थी। अनवर ने जब उस की तरफ़ देखा और उस को आदाब अर्ज़ कहा तो उस ने सोचा “ये क्या है औरत

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पसीना

8 अप्रैल 2022
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“मेरे अल्लाह!............... आप तो पसीने में शराबोर हो रहे हैं।” “नहीं। कोई इतना ज़्यादा तो पसीना नहीं आया।” “ठहरिए में तौलिया ले कर आऊं।” “तौलिए तो सारे धोबी के हाँ गए हुए हैं।” “तो मैं अपने दोपट्

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पढ़े कलिमा

8 अप्रैल 2022
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ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह...... आप मुस्लमान हैं यक़ीन करें मैं जो कुछ कहूंगा, सच्च कहूंगा। पाकिस्तान का इस मुआमले से कोई तअल्लुक़ नहीं। क़ाइद-ए-आज़म जिन्नाह के लिए मैं जान देने के लिए तैय

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पीरन

8 अप्रैल 2022
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ये उस ज़माने की बात है जब मैं बेहद मुफ़लिस था। बंबई में नौ रुपये माहवार की एक खोली में रहता था जिस में पानी का नल था न बिजली। एक निहायत ही ग़लीज़ कोठड़ी थी जिस की छत पर से हज़ारहा खटमल मेरे ऊपर गिरा करते थ

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पढ़े कलिमा

8 अप्रैल 2022
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ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह...... आप मुस्लमान हैं यक़ीन करें मैं जो कुछ कहूंगा, सच्च कहूंगा। पाकिस्तान का इस मुआमले से कोई तअल्लुक़ नहीं। क़ाइद-ए-आज़म जिन्नाह के लिए मैं जान देने के लिए तैय

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फ़रिश्ता

8 अप्रैल 2022
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सुर्ख़ खुरदरे कम्बल में अताउल्लाह ने बड़ी मुश्किल से करवट बदली और अपनी मुंदी हुई आँखें आहिस्ता आहिस्ता खोलीं। कुहरे की दबीज़ चादर में कई चीज़ें लिपटी हुई थीं जिन के सही ख़द्द-ओ-ख़ाल नज़र नहीं आते थे। एक लं

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फाहा

8 अप्रैल 2022
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गोपाल की रान पर जब ये बड़ा फोड़ा निकला तो इस के औसान ख़ता हो गए। गरमियों का मौसम था। आम ख़ूब हुए थे। बाज़ारों में, गलियों में, दुकानदारों के पास, फेरी वालों के पास, जिधर देखो, आम ही आम नज़र आते। लाल, पीले

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फुंदने

8 अप्रैल 2022
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कोठी से मुल्हक़ा वसीअ-ओ-अरीज़ बाग़ में झाड़ियों के पीछे एक बिल्ली ने बच्चे दिए थे, जो बिल्ला खा गया था। फिर एक कुतिया ने बच्चे दिए थे जो बड़े बड़े हो गए थे और दिन रात कोठी के अंदर बाहर भौंकते और गंदगी बिखेर

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बलवंत सिंह मजीठिया

8 अप्रैल 2022
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शाह साहब से जब मेरी मुलाक़ात हुई तो हम फ़ौरन बे-तकल्लुफ़ हो गए। मुझे सिर्फ़ इतना मालूम था कि वो सय्यद हैं और मेरे दूर-दराज़ के रिश्तेदार भी हैं। वो मेरे दूर या क़रीब के रिश्तेदार कैसे हो सकते थे, इस के मु

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बाई बाई

8 अप्रैल 2022
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नाम उस का फ़ातिमा था पर सब उसे फातो कहते थे बानिहाल के दुर्रे के उस तरफ़ उस के बाप की पन-चक्की थी जो बड़ा सादा लौह मुअम्मर आदमी था। दिन भर वो इस पन चक्की के पास बैठी रहती। पहाड़ के दामन में छोटी सी जगह थ

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बादशाहत का ख़ात्मा

8 अप्रैल 2022
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टेलीफ़ोन की घंटी बिजी। मनमोहन पास ही बैठा था। उस ने रीसीवर उठाया और कहा “हेलो....... फ़ौर फ़ौर फ़ौर फाईव सेवन” दूसरी तरफ़ से पतली सी निस्वानी आवाज़ आई। “सोरी....... रोंग नंबर” मनमोहन ने रीसीवर रख दिया और

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बिलाउज़

8 अप्रैल 2022
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कुछ दिनों से मोमिन बहुत बेक़रार था। उस को ऐसा महसूस होता था कि इस का वजूद कच्चा फोड़ा सा बन गया था। काम करते वक़्त, बातें करते हुए हत्ता कि सोचने पर भी उसे एक अजीब क़िस्म का दर्द महसूस होता था। ऐसा दर्द

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सरकण्डों के पीछे

8 अप्रैल 2022
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कौन सा शहर था, इस के मुतअल्लिक़ जहां तक में समझता हूँ, आप को मालूम करने और मुझे बताने की कोई ज़रूरत नहीं ।बस इतना ही कह देना काफ़ी है कि वो जगह जो इस कहानी से मुतअल्लिक़ है, पेशावर के मुज़ाफ़ात में थी। सरहद

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मिसिज़ गुल

8 अप्रैल 2022
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मैंने जब उस औरत को पहली मर्तबा देखा तो मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मैंने लेमूँ निचोड़ ने वाला खटका देखा है। बहुत दुबली पतली, लेकिन बला की तेज़। उस का सारा जिस्म सिवाए आँखों के इंतिहाई ग़ैर निस्वानी था। ये आँख

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मलबे का ढेर

8 अप्रैल 2022
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कामिनी के ब्याह को अभी एक साल भी न हुआ था कि उस का पति दिल के आरिज़े की वजह से मर गया और अपनी सारी जायदाद उस के लिए छोड़ गया। कामिनी को बहुत सदमा पहुंचा, इस लिए कि वो जवानी ही में बेवा हो गई थी। उस की

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महमूदा

8 अप्रैल 2022
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मुस्तक़ीम ने महमूदा को पहली मर्तबा अपनी शादी पर देखा। आरसी मसहफ़ की रस्म अदा हो रही थी कि अचानक उस को दो बड़ी बड़ी.......ग़ैर-मामूली तौर पर बड़ी आँखें दिखाई दीं.......ये महमूदा की आँखें थीं जो अभी तक कुंवार

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मिसेज़ डी सिल्वा

8 अप्रैल 2022
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बिलकुल आमने सामने फ़्लैट थे। हमारे फ़्लैट का नंबर तेरह था। उस के फ़्लैट का चौदह। कभी कोई सामने का दरवाज़ा खटखटाता तो मुझे यही मालूम होता कि हमारे दरवाज़े पर दस्तक होरही है। इसी ग़लतफ़हमी में जब मैंने एक

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मेरा हमसफ़र

9 अप्रैल 2022
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प्लेटफार्म पर शहाब, सईद और अब्बास ने एक शोर मचा रखा था। ये सब दोस्त मुझे स्टेशन पर छोड़ने के लिए आए थे, गाड़ी प्लेटफार्म को छोड़ कर आहिस्ता आहिस्ता चल रही थी कि शहाब ने बढ़ कर पाएदान पर चढ़ते हुए मुझ से

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मेरा और उसका इंतिक़ाम

9 अप्रैल 2022
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घर में मेरे सिवा कोई मौजूद नहीं था। पिता जी कचहरी में थे और शाम से पहले कभी घर आने के आदी न थे। माता जी लाहौर में थीं और मेरी बहन बिमला अपनी किसी सहेली के हाँ गई थी! मैं तन्हा अपने कमरे में बैठा किताब

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वह लड़की

9 अप्रैल 2022
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सवा-चार बज चुके थे लेकिन धूप में वही तमाज़त थी जो दोपहर को बारह बजे के क़रीब थी। उस ने बालकनी में आ कर बाहर देखा तो उसे एक लड़की नज़र आई जो बज़ाहिर धूप से बचने के लिए एक साया-दार दरख़्त की छांव में आलती पाल

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वो ख़त जो पोस्ट न किये गए

9 अप्रैल 2022
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हव्वा की एक बेटी के चंद ख़ुतूत जो उस ने फ़ुर्सत के वक़्त मुहल्ले के चंद लोगों को लिखे। मगर इन वजूह की बिना पर पोस्ट न किए गए जो इन ख़ुतूत में नुमायां नज़र आती हैं। (नाम और मुक़ाम फ़र्ज़ी हैं) पहला ख़त म

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शादी

9 अप्रैल 2022
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जमील को अपना शैफर लाइफ-टाइम क़लम मरम्मत के लिए देना था। उस ने टेलीफ़ोन डायरेक्ट्री में शैफर कंपनी का नंबर तलाश किया। फ़ोन करने से मालूम हुआ कि उन के एजेंट मैसर्ज़ डी, जे, समतोइर हैं जिन का दफ़्तर ग्रीन

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सड़क के किनारे

9 अप्रैल 2022
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“यही दिन थे......... आसमान उस की आँखों की तरह ऐसा ही नीला था जैसा कि आज है। धुला हुआ, निथरा हुआ......... और धूप भी ऐसी ही कनकनी थी......... सुहाने ख़्वाबों की तरह। मिट्टी की बॉस भी ऐसी ही थी जैसी कि इ

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शारदा

9 अप्रैल 2022
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नज़ीर ब्लैक मार्कीट से विस्की की बोतल लाने गया। बड़क डाकख़ाने से कुछ आगे बंदरगाह के फाटक से कुछ इधर सिगरेट वाले की दुकान से उस को स्काच मुनासिब दामों पर मिल जाती थी। जब उस ने पैंतीस रुपये अदा करके काग़

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सिराज

9 अप्रैल 2022
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नागपाड़ा पुलिस चौकी के उस तरफ़ जो छोटा सा बाग़ है। उस के बिलकुल सामने ईरानी के होटल के बाहर, बिजली के खंबे के साथ लग कर ढूंढ़ो खड़ा था। दिन ढले, मुक़र्ररा वक़्त पर वो यहां आ जाता और सुबह चार बजे तक अपने धंद

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हज्ज-ए-अकबर

9 अप्रैल 2022
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इम्तियाज़ और सग़ीर की शादी हुई तो शहर भर में धूम मच गई। आतिश बाज़ियों का रिवाज बाक़ी नहीं रहा था मगर दूल्हे के बाप ने इस पुरानी अय्याशी पर बे-दरेग़ रुपया सर्फ़ किया। जब सग़ीर ज़ेवरों से लदे फंदे सफ़ैद बुर्र

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सजदा

9 अप्रैल 2022
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गिलास पर बोतल झुकी तो एक दम हमीद की तबीयत पर बोझ सा पड़ गया। मलिक जो उसके सामने तीसरा पैग पी रहा था फ़ौरन ताड़ गया कि हमीद के अंदर रुहानी कश्मकश पैदा होगई है। वो हमीद को सात बरस से जानता था, और इन सात बर

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लाइसेंस

9 अप्रैल 2022
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अब्बू कोचवान बड़ा छैल छबीला था। उस का ताँगा घोड़ा भी शहर में नंबर वन था। कभी मामूली सवारी नहीं बिठाता था। उस के लगे बंधे गाहक थे जिन से उस को रोज़ाना दस पंद्रह रुपय वसूल हो जाते थे जो अब्बू के लिए काफ़ी थ

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हाफ़िज़ हुसैन दीन

9 अप्रैल 2022
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हाफ़िज़ हुसैन दीन जो दोनों आँखों से अंधा था, ज़फ़र शाह के घर में आया। पटियाले का एक दोस्त रमज़ान अली था, जिस ने ज़फ़र शाह से उस का तआरुफ़ कराया। वो हाफ़िज़ साहिब से मिल कर बहुत मुतअस्सिर हुआ। गो उन की

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संतर पंच

9 अप्रैल 2022
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मैं लाहौर के एक स्टूडियो में मुलाज़िम हुआ जिस का मालिक मेरा बंबई का दोस्त था उस ने मेरा इस्तिक़बाल क्या मैं उस की गाड़ी में स्टूडियो पहुंचा था बग़लगीर होने के बाद उस ने अपनी शराफ़त भरी मोंछों को जो ग़ालिबन

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शैदा

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शैदे के मुतअल्लिक़ अमृतसर में ये मशहूर था कि वो चट्टान से भी टक्कर ले सकता है उस में बला की फुर्ती और ताक़त थी गो तन-ओ-तोश के लिहाज़ से वो एक कमज़ोर इंसान दिखाई देता था लेकिन अमृतसर के सारे गुंडे उस से ख़ौ

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राम खेलावन

9 अप्रैल 2022
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खटमल मारने के बाद में ट्रंक में पुराने काग़ज़ात देख रहा था कि सईद भाई जान की तस्वीर मिल गई। मेज़ पर एक ख़ाली फ़्रेम पड़ा था....... मैंने इस तस्वीर से उस को पुर कर दिया और कुर्सी पर बैठ कर धोबी का इंतिज़ार

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रहमत-ए-खुदा-वंदी के फूल

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ज़मींदार, अख़बार में जब डाक्टर राथर पर रहमत-ए-ख़ुदा-वंदी के फूल बरसते थे तो यार दोस्तों ने ग़ुलाम रसूल का नाम डाक्टर राथर रख दिया। मालूम नहीं क्यूँ, इस लिए कि ग़ुलाम रसूल को डाक्टर राथर से कोई निसबत नह

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मिस फ़र्या

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शादी के एक महीने बाद सुहेल परेशान होगया। उस की रातों की नींद और दिन का चैन हराम हो गया। उस का ख़याल था कि बच्चा कम अज़ कम तीन साल के बाद पैदा होगा मगर अब एक दम ये मालूम करके उस के पांव तले की ज़मीन निक

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मिस अडना जैक्सन

9 अप्रैल 2022
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कॉलिज की पुरानी प्रिंसिपल के तबादले का एलान हुआ, तालिबात ने बड़ा शोर मचाया। वो नहीं चाहती थीं कि उन की महबूब प्रिंसिपल उन के कॉलेज से कहीं और चली जाये। बड़ा एहतिजाज हुआ। यहाँ तक कि चंद लड़कियों ने भूक हड़

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बुड्ढ़ा खूसट

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ये जंग-ए-अज़ीम के ख़ातमे के बाद की बात है जब मेरा अज़ीज़ तरीन दोस्त लैफ़्टीनैंट कर्नल मोहम्मद सलीम शेख़ (अब) ईरान इराक़ और दूसरे महाज़ों से होता हुआ बमबई पहुंचा। उस को अच्छी तरह मालूम था, मेरा फ़्लैट कहाँ ह

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शह नशीं पर

9 अप्रैल 2022
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वो सफ़ैद सलमा लगी साड़ी में शह-नशीन पर आई और ऐसा मालूम हुआ कि किसी ने नक़रई तारों वाला अनार छोड़ दिया है। साड़ी के थिरकते हूए रेशमी कपड़े पर जब जगह जगह सलमा का काम टिमटिमाने लगता तो मुझे जिस्म पर वो तमाम

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चुग़द

9 अप्रैल 2022
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लड़कों और लड़कियों के मआशिक़ों का ज़िक्र हो रहा था। प्रकाश जो बहुत देर से ख़ामोश बैठा अंदर ही अंदर बहुत शिद्दत से सोच रहा था, एक दम फट पड़ा। सब बकवास है, सौ में से निन्नानवे मआशिक़े निहायत ही भोंडे और लचर

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