शायरी
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गुफ़्तगू के चलते लब यूँ ही ना बेज़ार हो जाए ऐसी भी हदें ना रखो तुम के हदें पार हो जाए
मुझे नींद कहाँ आतीं हैं मेरी रातें सोतीं रहतीं हैं मैं जानता हूँ के मेरे पीठ पीछे मेरी बातें होती हैं जब तक रहा वहाँ पर अकेला बंजर ही पड़ा रहा अब सुनने में आता है वहाँ बरसातें होती रहतीं हैं