शून्य भेदभाव दिवस (Zero Discrimination Day) हर साल 1 मार्च को मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य सभी लोगों को उनके कानून और नीतियों में बिना किसी भेदभाव के समानता, समावेश और सुरक्षा का अधिकार सुनिश्चित करना है ताकि किसी भी बाधा के बावजूद गरिमा के साथ पूर्ण जीवन जी सकें। शून्य भेदभाव दिवस इस बात पर प्रकाश डालता है कि कैसे लोगों को समावेश, करुणा, शांति और सबसे बढ़कर, परिवर्तन के लिए एक आंदोलन के बारे में सूचित किया जा सकता है और बढ़ावा दिया जा सकता है। शून्य भेदभाव दिवस सभी प्रकार के भेदभाव को समाप्त करने के लिए एकजुटता के वैश्विक आंदोलन को बनाने में मदद कर रहा है।शून्य भेदभाव दिवस पहली बार 1 मार्च 2014 को मनाया गया था और UNAIDS के दिसंबर 2013 में विश्व एड्स दिवस पर अपना शून्य भेदभाव अभियान शुरू करने के बाद बीजिंग में UNAIDS के कार्यकारी निदेशक द्वारा शुरू किया गया था।
इसका उद्देश्य धरती पर फैलै भेदभाव को मिटाकर धरती को भेदभाव से शून्य करना है। हमारे देश मैं आज भी लिंग, जाति
धर्म, के आधार पर भेदभाव होता है। अतः आवश्यकता है की मनुष्य का मनुष्य से भेदभाव समाप्त हो। किसी व्यक्ति को यह सहना न पड़े की वह काले रंग का है या वह लड़की है या वह निम्न वर्ग का है या फिर इस धर्म का है। मनुष्य मनुष्य को मानव माने और एक ही धर्म हो मानवता का धर्म। सभी मनुष्य ईश्वर की दृष्टि में समान है सभी में एक ही लहू बहता है। फिर यह मानव जनित भेदभाव इस धरा से दूर होना चाहिए। मनुष्य की समानता ही शून्य भेदभाव दिवस उद्देश्य है। यह उद्देश्य तभी पूरा हो सकता है जब मानव के हृदय से छोटे बड़े गरीब अमीर ऊंच-नीच की भावना दूर हो जाए। तब इस धरती पर स्वर्ग का निर्माण होगा। मनुष्य किसी को गुलाम नहीं बनाएगा, किसी का गुलाम नहीं बनेगा। सब सामान होंगें।
यह उद्देश्य तभी पूरा होगा जब हमारे परिवारों मैं बच्चों को मानवता की शिक्षा व ऐसे संस्कार दिए जाएंगे। बालमन बहुत भोला होता है, आप उसे जो दिखाओगे, समझाओगे वही उसके संस्कार बन जाएंगे। अतः जरूरत है कि समानता की शिक्षा
हम बच्चों को बचपन से दे लेकिन इसके लिए हमें खुद भी उनके सामने दूसरों के साथ समानता का व्यवहार करना पड़ेगा। तभी वे समानता को अपने जीवन में उतार पाएंगे।
(© ज्योति)