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सिराज

9 अप्रैल 2022

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नागपाड़ा पुलिस चौकी के उस तरफ़ जो छोटा सा बाग़ है। उस के बिलकुल सामने ईरानी के होटल के बाहर, बिजली के खंबे के साथ लग कर ढूंढ़ो खड़ा था। दिन ढले, मुक़र्ररा वक़्त पर वो यहां आ जाता और सुबह चार बजे तक अपने धंदे में मसरूफ़ रहता।

मालूम नहीं, उस का अस्ल नाम क्या था। मगर सब उसे ढूंढ़ो कहते थे, इस लिहाज़ से तो ये बहुत मुनासिब था कि उस का काम अपने मुवक्किलों के लिए उन की ख़्वाहिश और पसंद के मुताबिक़ हर नसल और हर रंग की लड़कियां ढूंढता था।

ये धंदा वो क़रीब क़रीब दस बरस से कर रहा था। इस दौरान में हज़ारों लड़कियां उस के हाथों से गुज़र चुकी थीं। हर मज़हब की, हर नस्ल की, हर मिज़ाज की।

उस का अड्डा शुरू से यही रहा था। नागपाड़ा पुलिस चौकी के उस तरफ़। बाग़ के बिलकुल सामने। ईरानी होटल के बाहर बिजली के खंबे के साथ........ खंबा उस का निशान बन गया था। बल्कि मुझे तो वो ढूंढ़ो ही मालूम होता था। मैं जब कभी उधर से गुज़रता और मेरी नज़र उस खंबे पर पड़ती। जिस पर जगह जगह चूने और कथ्थे की उंगलियां पोंछी गई थीं तो मुझे ऐसा लगता कि ढूंढ़ो खड़ा है और काले काँडी और सेंके ली सूपारी वाला पान चबा रहा है।

ये खंबा काफ़ी ऊंचा था। ढूंढ़ो भी दराज़क़द था........ खंबे के ऊपर बिजली के तारों का एक जाल सा बिछा था। कोई तार दूर तक दौड़ता चला गया था और दूसरे खंबे के तारों के उलझाओ में मुदग़म हो गया था। कोई तार किसी बडिंग में और कोई किसी दुकान में चला गया था। ऐसा लगता था कि इस खंबे की पहुंच दूर दूर तक है। वो दूसरे खंबों से मिल कर गोया सारे शहर पर छाया हुआ है।

इस खंबे के साथ टेलीफ़ोन के महकमे ने एक बक्स लगा रखा था जिस के ज़रीये से वक़्तन फ़वक़्तन तारों की दुरुस्ती वग़ैरा की जांच पड़ताल की जाती थी। अक्सर सोचता था कि ढूंढ़ो भी इसी क़िस्म का एक बक्स है जो लोगों की जिन्सी जांच पड़ताल के लिए खंबे के साथ लगा रहता है। क्योंकि उसे आस पास के इलाक़े के इलावा दूर दूर के इलाक़ों के उन तमाम सेठों का पता था जिन को वक़्फ़ों के बाद या हमेशा ही अपनी जिन्सी ख़्वाहिशात के तने हुए या ढीले तार दरुस्त कराने की ज़रूरत महसूस होती थी।

उसे उन तमाम छोकरियों का भी पता था जो इस धंदे में थीं। वो उन के जिस्म के हर ख़द्द-ओ-ख़ाल से वाक़िफ़ था। उन की हर नब्ज़ से आश्ना था। कौन किस मिज़ाज की है और किस वक़्त और किस गाहक के लिए मौज़ूं है। उस को इस का ब-ख़ूबी अंदाज़ा था। लेकिन एक सिर्फ़ उस को सिराज के मुतअल्लिक़ अभी तक कोई अंदाज़ा नहीं हुआ था। वो उस की गहराई तक नहीं पहुंच सका था।

ढूंढ़ो कई बार मुझ से कह चुका था। “साली का मस्तक फिरे ला है........ समझ में नहीं आता मंटो साहब, कैसी छोकरी है........ घड़ी में माशा घड़ी में तोला........ कभी आग, कभी पानी। हंस रही है। क़हक़हे लगा रही है........लेकिन एक दम रोना शुरू कर देगी........ साली की किसी से नहीं बनती........ बड़ी झगड़ालू है। हर पसैंजर से लड़ती है। साली से कई बार कह चुका कि देख, अपना मस्तक ठीक कर, वर्ना जान जहां से आई है........ अंग पर तेरे कोई कपड़ा नहीं........ खाने को तेरे पास डीढ़या नहीं........ मारा मारी और धांदली से तो मेरी जान काम नहीं चलेगा........ पर वो एक तुख़्म है। किसी की सुनती ही नहीं”

मैं ने सिराज को एक दो मर्तबा देखा है। बड़ी दुबली पतली लड़की थी मगर ख़ूबसूरत........ उस की आँखें ज़रूरत से ज़्यादा बड़ी थीं। ऐसा लगता था कि वो उस के बैज़वी चेहरे पर सिर्फ़ अपनी बड़ाई जताने की ख़ातिर छाई हुई हैं। मैं ने जब उस को पहली मर्तबा क्लीयर रोड पर देखा था तो मुझे बड़ी उलझन हुई थी। मेरे दिल में ये ख़्वाहिश पैदा हुई थी कि उस की आँखों से कहूं कि भई तुम थोड़ी देर के लिए ज़रा एक तरफ़ हट जाओ ताकि में सिराज को देख सकूं। लेकिन मेरी इस ख़्वाहिश के बावजूद जो यक़ीनन मेरी आँखों ने उस की आँखें तक पहुंचा दी होगी, वो इसी तरह इस के सफ़ैद बैज़वी चेहरे पर छाई रहीं।

मुख़्तसर सी थी, मगर इस इख़्तिसार के बावजूद बड़ी जामे मालूम होती थी। ऐसा लगता था कि वो एक सुराही है जिस में एक हजम से ज़्यादा पानी मिली हुई शराब भरने की कोशिश की गई है और नतीजे के तौर पर सय्याल चीज़ दबाओ के बाइस इधर उधर, तड़प कर बह गई है।

मैं ने पानी मिली हुई शराब इस लिए कहा है कि उस में तल्ख़ी थी, वो जो तेज़-ओ-तुंद शराब की होती है, मगर ऐसा लगता था किसी धोके बाज़ ने इस में पानी मिला दिया है, ताकि मिक़दार ज़्यादा हो जाये। मगर सिराज में लिसानियत की जो मिक़दार थी, वैसी की वैसी मौजूद थी और इस झुंझलाहट से जो उस के घने बालों से उस की तीखी नाक से, उस के भिंचे हुए होंटों से और उस की उंगलियों से, जो नक़्शा-नवेसों की नोकीली और तेज़ तेज़ पैंसिलें मालूम होती थीं, मैं ने ये अंदाज़ा लगाया था कि वो हर चीज़ से नाराज़ है। ढूंढ़ो से........ उस खंबे से जिस के साथ लग कर वो खड़ा रहता था........ उन ग्राहकों से जो उस के लिए लाए जाते थे........अपनी बड़ी बड़ी आँखों से भी जो उस के सफ़ैद बैज़वी चेहरे पर क़ब्ज़ा जमाए रखती थीं।

उस की पतली पतली, नोकीली उंगलियां जो नक़्शा-नवेसों की पैंसिलों की तरह तेज़ थीं। ऐसा मालूम होता था कि वो उन से भी नाराज़ है। शायद इस लिए कि जो नक़्शा सिराज बनाना चाहती थी वो नहीं बना सकती थीं।

ये तो एक अफ़्साना निगार के तअस्सुरात में जो छोटे से तिल में संग-ए-अस्वद की तमाम सख़्तियां बयान कर सकता है........ आप ढूंढ़ो की ज़बानी सिराज के मुतअल्लिक़ सुनिए उस ने मुझ से एक दिन कहा। “मंटो साहब........ आज साली ने फिर टंटा कर दिया........ वो तो जाने किस दिन का सवाब काम आ गया और आप की दुआ से यूं भी नागपाड़ा चौकी के सब अफ़्सर मेहरबान हैं, वर्ना कल ढूंढ़ो अन्दर होता........ वो धमाल मचाई कि मैं तो बाप रे बाप कहता रह गया।”

मैं ने उस से पूछा। “क्या बात हुई थी?”

“वही जो हुआ करती है........ मैं ने लाख लानत भेजी अपनी हश्त पुश्त पर कि हरामी जब तू इस छोकरी को अच्छी तरह जानता है तो फिर क्यों उंगली लेता है........ क्यों उस को निकाल कर लाता है। तेरी माँ लगती है या बहन........ मेरी तो कोई अक़ल काम नहीं करती मंटो साहब!”

हम दोनों ईरानी के होटल में बैठे थे। ढूंढ़ो ने कॉफ़ी मिली चाय पिर्च में उंडेली और सड़प सड़प पीने लगा। “अस्ल बात ये है कि साली से मुझे हमदर्दी है।”

मैं ने पूछा। “क्यों?”

ढूंढ़ो ने सर को एक झटका दिया। “जाने क्यों........ ये साला मालूम हो जाये तो ये रोज़ का टंटा ख़त्म न हो।” फिर उस ने एक दम पिर्च में प्याली औंधी कर के मुझ से कहा। “आप को मालूम है........ अभी तक कुंवारी है।”

यक़ीन मानिए कि मैं एक लहज़े के लिए चकरा गया। “कुंवारी।”

“आप की जान की क़सम”

मैं ने जैसे उस को अपनी बात पर नज़र-ए-सानी करने के लिए कहा। “नहीं ढूंढ़ो।”

ढूंढ़ो को मेरा ये शक ना-गवार मालूम हुआ “मैं आप से झूट नहीं कहता मंटो साहब........ सोला आने कुंवारी है........ आप मुझ से शर्त लगा लीजिए।”

मैं सिर्फ़ इसी क़दर कह सका। “मगर ऐसा क्यों कर हो सकता है।”

ढूंढ़ो ने बड़े वसूक़ के साथ कहा। “ऐसा क्यों होने को नहीं सकता........ सिराज जैसी छोकरी तो इस धंदे में भी रह कर सारी उम्र कुंवारी रह सकती है........साली किसी को हाथ ही नहीं लगाने देती........ मुझे उस की सारी हिस्री मालूम नहीं........ इतना जानता हूँ। पंजाबन है........लेमंगटन रोड पर मेम साहब के पास थी। वहां से निकाली गई कि हर पैसन्ज़र से लड़ती थी। दो तीन महीने निकल गए कि मडाम के पास दस बीस और छोकरिया थीं ........ पर मंटो साहब कोई कब तक किसे खिलाता है........ उस ने एक दिन तीन कपड़ों में निकाल बाहर किया........यहां से फ़ारस रोड में दूसरी मडाम के पास पहुंची। वहां भी उस का मस्तक वैसे का वैसा था। एक पैसन्ज़र के काट खाया........ दो तीन महीने यहां गुज़रे........ पर साली के मिज़ाज में तो जैसे आग भरी हुई है अब कौन उसे ठंडा करता फिरे........ फिर ख़ुदा आप का भला करे, खेत वाड़ी के एक होटल में रही........ पर यहां भी वही धमाल........ मैनेजर ने तंग आ कर चलता किया........ क्या बताऊं मंटो साहिब। न साली को खाने का होश है न पीने का........ कपड़ों में जुएँ पड़ी हैं। सर दो दो महीने से नहीं धोया........ चरस के एक दो सिगरेट मिल जाएं कहीं से तो फूंक लेती है........ या किसी होटल से दूर खड़ी हो कर, फ़िल्मी रिकार्ड सुनती रहती है।”

मेरे लिए ये तफ़सील काफ़ी थी। उस के रद्द-ए-अमल से मैं आप को आगाह नहीं करना चाहता कि अफ़्साना निगार की हैसियत से ये ना-मुनासिब है।

मैं ने ढूंढ़ो से महज़ सिलसिला-ए-गुफ़्तुगू क़ायम रखने के लिए पूछा। “तुम उसे वापस क्यों नहीं भेज देते। जब कि उसे इस धंदे से कोई दिलचस्पी नहीं........ किराया तुम मुझ से ले लो!”

ढूंढ़ो को ये बात भी ना-गवार मालूम हुई। “मंटो साहब किराए साले की क्या बात है........ मैं नहीं दे सकता।”

मैं ने टोह लेनी चाही। “फिर उसे वापस क्यों नहीं भेजते?”

ढूंढ़ो कुछ अर्से के लिए ख़ामोश हो गया। कान में अड़े हुए सिगरेट का टुकड़ा निकाल कर उस ने सुलगाया और धोएं को नाक के दोनों नथुनों से बाहर फेंक कर उस ने सिर्फ़ इतना कहा। “मैं नहीं चाहता कि वो जाये।”

मैं ने समझा। उलझे हुए धागे का एक सिरा मेरे हाथ में आ गया है। “क्या तुम उस से मोहब्बत करते हो?”

ढूंढ़ो पर इस का शदीद रद्द-ए-अमल हुआ। “आप कैसी बातें करते हैं मंटो साहब........।” फिर उस ने दोनों कान पकड़ कर खींचे। क़ुरआन की क़सम मेरे दिल में ऐसा पलीद ख़्याल कभी नहीं आया........ मुझे बस........ ” वो रुक गया। “मुझे बस, कुछ अच्छी लगती है!”

मैं ने बड़ा सही सवाल किया। “क्यों?”

ढूंढ़ो ने भी इस का बड़ा सही जवाब दिया। “इस लिए........ इस लिए कि वो दूसरों जैसी नहीं........बाक़ी जितनी हैं। सब पीस की पैर हैं........ हरामी हैं अव्वल दर्जे की........ पर ये जो है न........ कुछ अजीब-ओ-ग़रीब है........ निकाल के लाता हूँ तो राज़ी हो जाती है........ सौदा हो जाता है........ टैक्सी या विक्टोरिया में बैठ जाती है........ अब मंटो साहब, पैसन्ज़र साला मौज शौक़ के लिए आता है........ माल पानी ख़र्च करता है........ ज़रा दबा के देखता है........ या वैसे ही हाथ लगा के देखता है........बस धमाल मच जाती है। मारा मारी शुरू कर देती है........ आदमी शरीफ़ हो तो भाग जाता है। पीए वाला हो ........ या मवाली हो तो आफ़त........ हर मौक़े पर मुझे पहुंचना पड़ता है........ पैसे वापस करने पड़ते हैं और हाथ पैर अलग जोड़ने पड़ते हैं........ क़सम क़ुरआन की सिर्फ़ सिराज की ख़ातिर........ और मंटो साहब आप की जान की क़सम इसी साली की वजह से मेरा धंदा आधा रह गया है........!”

मेरे ज़ेहन ने सिराज का जो उक़बा मंज़र तय्यार किया था, मैं इस का ज़िक्र करना नहीं चाहता, लेकिन इतना है कि जो कुछ ढूंढ़ो ने मुझे बताया वो उस के साथ ठीक तौर पर जमता नहीं था।

मैं ने एक दिन सोचा कि ढूंढ़ो को बताए बग़ैर सिराज से मिलूं। वो बाई कल्ला स्टेशन के पास ही एक निहायत वाहियात जगह में रहती थी। जहां कूड़े करकेट के ढेर थे। आस पास का तमाम फुज़्ला था। कारपोरेशन ने यहां ग़रीबों के लिए जस्त के बे-शुमार झोंपड़े बना दिए थे। मैं यहां उन बुलंद बाम इमारतों का ज़िक्र करना नहीं चाहता जो इस ग़लाज़त-गाह से थोड़ी दूर ईस्तादह थीं। क्योंकि उन का इस अफ़्साने से कोई तअल्लुक़ नहीं। दुनिया नाम ही नशेब-ओ-फ़राज़ का है। या रिफ़अतों और पस्तियों का।

ढूंढ़ो से मुझे उस के झोंपड़े का अता पता मालूम था। मैं वहां गया........ अपने ख़ुशवज़ा कपड़ों को इस माहौल से छुपाए हुए........ लेकिन यहां मेरी ज़ात मुअल्लक़ नहीं।

बहर-हाल मैं वहां गया........ झोंपड़े के बाहर एक बकरी बंधी थी। उस ने मुझे देखा तो मिम्याई। अंदर से एक बुढ़िया निकली........ जैसे पुरानी दास्तानों के करम-ख़ूर्दा अंबार से कोई कटनी लाठी टेकती हुई........ मैं लौटने ही वाला था कि टाट के जगह जगह से फटे हुए पर्दे के पीछे मुझे दो बड़ी बड़ी आँखें नज़र आईं........बिलकुल उसी तरह फटी हुई जिस तरह वो टाट का पर्दा था। फिर मैं ने सिराज का सफेदी बैज़वी चेहरा देखा और मुझे इन ग़ासिब आँखों पर बड़ा ग़ुस्सा आया।

उस ने मुझे देख लिया था। मालूम नहीं अंदर क्या काम कर रही थी। फ़ौरन सब छोड़ छाड़ कर बाहर आई। उस ने बुढ़िया की तरफ़ कोई तवज्जा न दी और मुझ से कहा। “आप यहां कैसे आए?”

मैं ने मुख़्तसरन कहा। “तुम से मिलना था।”

सिराज ने भी इख़्तिसार ही के साथ कहा। “आओ अंदर!”

मैं ने कहा। “नहीं मेरे साथ चलिए।”

इस पर करम-ख़ूर्दा दास्तानों की करम-ख़ूर्दा कटनी बड़े दुकांदाराना अंदाज़ में बोली। “दस रुपय होंगे।”

मैं ने बटवा निकाल कर दस रुपय इस बुढ़िया को दे दिए और सिराज से कहा। “आओ सिराज........!”

सिराज की बड़ी बड़ी आँखों ने एक लहज़े के लिए मेरी निगाहों को रास्ता दिया कि उस के चेहरे की सड़क पर चंद क़दम चल सकें........ मैं एक बार फिर उसी नतीजे पर पहुंचा कि वो ख़ूबसूरत थी........ सुकड़ी हुई ख़ूबसूरती। हनूत लगी ख़ूबसूरती। सदियों की महफ़ूज़-ओ-मामून और मदफ़ून की हुई ख़ूबसूरती........ मैं ने एक लहज़े के लिए यूं महसूस किया कि मैं मिस्र में हूँ और पुराने दफ़ीनों की खुदाई पर मामूर किया गया हूँ।

मैं ज़्यादा तफ़्सील में नहीं जाना चाहता........ सिराज मेरे साथ थी। हम दोनों एक होटल में थे। वो मेरे सामने, अपने ग़लीज़ कपड़ों में मलबूस बैठी थी और उस की बड़ी बड़ी आँखें उस के बैज़वी चेहरे पर क़ब्ज़ा-ए-मुख़ालिफ़ाना किए थीं। मुझे ऐसा महसूस हो रहा था कि उन्हों ने सिर्फ़ सिराज के चेहरे ही को नहीं, उस के सारे वजूद को ढाँप लिया है कि मैं उस के किसी रोएँ को भी ना देख सकूं।

बुढ़िया ने जो क़ीमत बताई थी, मैं ने अदा कर दी थी। इस के इलावा मैं ने चालीस रुपय और सिराज को दिए थे........ मैं चाहता था कि वो मुझ से भी उसी तरह लड़े झगड़े, जिस तरह वो दूसरों के साथ लड़ती झगड़ती है। चुनांचे इसी ग़रज़ से मैं ने उस से कोई ऐसी बात न की जिस से मोहब्बत और ख़ुलूस की बू आए........उस की बड़ी बड़ी आँखों से भी मैं ख़ाइफ़ था। वो इतनी बड़ी थीं कि मेरे इलावा मेरे इर्द-गिर्द की सारी दुनिया भी देख सकती थीं।

वो ख़ामोश थी........वाहियात तरीक़े पर उसे छेड़ने के लिए ज़रूरी था कि मेरे जिस्म और ज़ेहन में ग़लत क़िस्म की हरारत हो। चुनांचे मैं ने विस्की के चार पैग पीए और उस को आम पैसेंजरों की तरह छेड़ा। उस ने कोई मुज़ाहमत ना की। मैं ने एक ज़बरदस्त फ़ुज़ूल हरकत की। मेरा ख़.ल था कि वो बारूद जो उस के अंदर भरी पड़ी है, उस को भक से उड़ाने के लिए ये चिंगारी काफ़ी है। मगर हैरत है कि वो किसी क़दर पुर-सुकून हो गई। उठ कर उस ने मुझे अपनी बड़ी बड़ी आँखों के फैलाओ में समेटते हुए कहा। “चरस का एक सिगरेट मंगवा दो मुझे!”

“शराब पियो!”

“नहीं........चरस का सिगरेट पियूंगी!”

मैं ने उसे चरस का सिगरेट मंगवा दिया........ उसे ठेट चरसियों के अंदाज़ में पी कर उस ने मेरी तरफ़ देखा........ उस की बड़ी बड़ी आँखें अब अपना तसल्लुत छोड़ चुकी थीं........मगर उसी तरह जिस तरह कोई ग़ासिब छोड़ता है........ उस का चेहरा मुझे एक उजड़ी हुई, एक बर्बाद-शुदा सलतनत नज़र आया........ताख़्त-ओ-ताराज मुल्क, उस का हर ख़त, हर ख़ाल........वीरानी की एक लकीर थी........

मगर ये वीरानी क्या थी?........क्यों थी?........ बाज़ औक़ात ऐसा भी होता है कि आबादियां ही वीरानों का बाइस होती हैं........ क्या वो इसी क़िस्म की आबादी थी जो शुरू होने के बाद किसी हम्ला आवर के बाइस अधूरी रह गई थी और आहिस्ता आहिस्ता उस की दीवारें जो अभी गज़ भर भी ऊपर नहीं उठी थीं खन्डर बन गई थीं।

मैं चक्कर में था, लेकिन आप को मैं इस चक्कर में नहीं डालना चाहता........ मैं ने क्या सोचा, क्या नतीजा बरामद किया। इस से आप को क्या मतलब।

सिराज कुंवारी थी या नहीं। मैं इस के मुतअल्लिक़ जानना नहीं चाहता था। सलफ़े के धोएँ में, अलबत्ता उस की मह्ज़ून-ओ-मख़मूर आँखों में मुझे एक ऐसी झलक नज़र आई थी जिस को मेरा क़लम भी बयान नहीं कर सकता।

मैं ने उस से बातें करना चाहीं मगर उसे कोई दिलचस्पी नहीं थी। मैं ने चाहा कि वो मुझ से लड़े झगड़े, मगर यहां भी उस ने मुझे ना-उम्मीद किया।

मैं उसे घर छोड़ आया।

ढूंढ़ो को जब मेरे इस खु़फ़िया सिलसिले का पता चला तो वो बहुत नाराज़ हुआ। उस के दोस्ताना और ताजिराना जज़्बात दोनों बहुत बुरी तरह मजरूह हुए थे। उस ने मुझे सफ़ाई का मौक़ा न दिया। सिर्फ़ इतना कहा। “मंटो साहब आप से ये उम्मीद न थी!” और ये कह कर वो खंबे से हट कर एक तरफ़ चला गया।

अजीब बात है कि दूसरे रोज़ शाम को वक़्त-ए-मुक़र्ररा पर वो मुझे अपने अड्डे पर नज़र न आया। मैं समझा शायद बीमार है। मगर इस से अगले रोज़ भी वो मौजूद नहीं था।

एक हफ़्ता गुज़र गया। वहां से मेरा सुबह शाम आना जाना होता था। मैं जब उस खंबे को देखता। मुझे ढूंढ़ो याद आता। मैं बाई कल्ला स्टेशन के पास ही जो वाहियात जगह थी वहां भी गया। ये देखने के लिए सिराज कहाँ है। मगर वहां अब सिर्फ़ वो करम-ख़ूर्दा कटनी रहती थी। मैं ने उस से सिराज के मुतअल्लिक़ पूछा तो वो पोपली मुस्कुराहट में लाखों बरस की पुरानी जिन्सी करवटें बदल कर बोली। “वो गई........ और हैं........मंगवाऊँ!”

मैं ने सोचा, इस का क्या मतलब है। ढूंढ़ो और सिराज दोनों ग़ायब हैं और वो भी मेरी इस खु़फ़िया मुलाक़ात के बाद........ लेकिन मैं इस मुलाक़ात के मुतअल्लिक़ इतना मुतरद्दिद नहीं था........ यहां फिर मैं अपने ख़यालात आप पर ज़ाहिर नहीं करना चाहता लेकिन मुझे ये हैरत ज़रूर थी कि वो दोनों ग़ायब कहाँ हो गए। इन मैं मोहब्बत की क़िस्म की कोई चीज़ नहीं थी। ढूंढ़ो ऐसी चीज़ों से बाला-तर था। उस की बीवी थी बच्चे थे और वो उन से बे-हद मोहब्बत करता था, फिर ये सिलसिला क्या था कि दोनों ब-यक-वक़्त ग़ायब थे।

मैं ने सोचा। हो सकता है कि अचानक ढूंढ़ो के दिमाग़ में ये ख़याल आ गया हो कि सिराज को वापस घर जाना चाहिए। इस के मुतअल्लिक़ वो पहले फ़ैसला नहीं कर सका था, पर अब अचानक कर लिया हो।

ग़ालिबन एक महीना गुज़र गया।

एक शाम अचानक मुझे ढूंढ़ो नज़र आया। उसी खंबे के साथ, मुझे ऐसा महसूस हुआ कि जैसे बड़ी देर करंट फ़ेल रहने के बाद एक दम वापस आ गया है उस खंबे में जान पड़ गई। टेलीफ़ोन के डिब्बे में भी........ चारों तरफ़, ऊपर तारों के फैले हुए जाल, ऐसा लगता था आपस में सरगोशियां कर रहे हैं।

मैं उस के पास से गुज़रा........उस ने मेरी तरफ़ देखा और मुस्कुराया।

हम दोनों ईरानी के होटल में थे। मैं ने उस से कुछ न पूछा। उस ने अपने लिए कोफ़ी मिली चाय और मेरे लिए सादा चाय मंगवाई और पहलू बदल कर उस ने ऐसी नशिस्त क़ायम की कि जैसे वो मुझे कोई बहुत बड़ी बात सुनाने वाला है, मगर उस ने सिर्फ़ इतना कहा “और सुनाओ मंटो साहब।”

“क्या सुनाएँ ढूंढ़ो........बस गुज़र रही है।”

ढूंढ़ो मुस्कुराया। “ठीक कहा आप ने........बस गुज़र रही है........ और गुज़रती जाएगी........लेकिन ये साला गुज़रते रहना या गुज़रना भी अजीब चीज़ है........ सच पूछिए तो इस दुनिया में हर चीज़ अजीब है।”

मैं ने सिर्फ़ इतना कहा। “तुम ठीक कहते हो ढूंढ़ो।”

चाय आई और हम दोनों ने पीना शुरू की। ढूंढ़ो ने पिर्च में अपनी कोफ़ी मिली चाय उंडेली और मुझ से कहा। “मंटो साहब........ उस ने मुझे बता दी थी सारी बात........ कहती थी, वो सेठ जो तुम्हारा दोस्त है उस का मस्तक फिरे ला है।”

मैं हंसा। “क्यों?”

“बोली........मुझे होटल ले गया........ इतने रुपय दिए........पर सेठों वाली कोई बात न की।”

मैं अपने अनाड़ी पन पर बहुत ख़फ़ीफ़ हुआ। “वो क़िस्सा ही कुछ ऐसा था ढूंढ़ो”

अब ढूंढ़ो पेट भर के हसा। “मैं जानता हूँ........ मुझे माफ़ कर देना कि मैं उस रोज़ तुम से नाराज़ हो गया था।” उस के अंदाज़-ए-गुफ़्तुगू में उन-जाने में बे-तकल्लुफ़ी पैदा हो गई। पर अब वो क़िस्सा ख़लास हो गया है!

“कौन सा क़िस्सा?”

“इस साली का सिराज का........ और किस का?”

मैं ने पूछा। “क्या हुआ?”

ढूंढ़ो गटकने लगा। “जिस रोज़ आप के साथ गई........ वापस आ कर मुझ से कहने लगी........ मेरे पास चालीस रुपय हैं........चलो मुझे लाहौर ले चलो........ मैं बोला साली, ये एक दम तेरे सर पर क्या भूत सवार हुआव........ बोली, नहीं। चल ढूंढ़ो, तुझे मेरी क़सम........ और मंटो साहब, आप जानते हैं........ मैं साली की कोई बात नहीं टाल सकता कि मुझे अच्छी लगती है........ मैं ने कहा चल........ सो टिकट कटा के हम दोनों गाड़ियों में सवार हुए........ लाहौर पहुंच कर एक होटल में ठहरे........मुझ से बोली। ढूंढ़ो। एक बुर्ख़ा ला दे मैं ले आया........ इसे पहन कर वो लगी सड़क सड़क और गली गली घूमने........ कई दिन गुज़र गए........मैं बोला। ये भी अच्छी रही ढूंढ़ो। सिराज साली का मस्तक तो फिरे ला था। साला तेरा भी भेजा फिर गया जो तू इतनी दूर इस के साथ आ गया ........मंटो साहिब। आख़िर एक दिन इस ने टांगा रुकवाया और एक आदमी की तरफ़ इशारा करके मुझ से कहने लगी........ढूंढ़ो........ उस आदमी को मेरे पास ले आ........ मैं चलती हूँ वापस सराय में........मेरी अक़्ल जवाब दे गई........मैं टांगे से उतरा तो वो ग़ायब........ अब मैं उस आदमी के पीछे पीछे........आप की दुआ से और अल्लाह ताला की मेहरबानी से........ मैं आदमी आदमी को पहचानता हूँ। दो बातें कीं और मैं ताड़ गया कि मौज शौक़ करने वाला है........ मैं बोला बंबई का ख़ास माल है........ बोला, अभी चलो........ मैं बोला। नहीं पहले माल पानी दिखाओ। इस ने इतने सॉर्ट नोट दिखाए........ मैं दिल में बोला........ चलो ढूंढ़ो........यहां भी अपना धंदा चलता रहे........पर मेरी समझ में ये बात नहीं आई थी कि सिराज साली ने सारे लाहौर में इसी को क्यों चुना........ मैं ने कहा, चलता है........टांगा लिया और सीधा सराय में........ सिराज को ख़बर की........ वो बोली। अभी ठहर........मैं ठहर गया........ थोड़ी देर के बाद उस आदमी को जो अच्छी शक्ल का था अंदर ले गया........सिराज को देखते ही वो साला यूं बिदका जैसे घोड़ा........ सिराज ने उस को पकड़ लिया।

ढूंढ़ो ने यहां पहुंच कर प्याली से अपनी ठंडी कोफ़ी मिली चाय एक ही जर्रे में ख़त्म की और बीड़ी सुलगाने लगा।

मैं ने उस से कहा। “सिराज ने उस को पकड़ लिया।”

ढूंढ़ो ने बुलंद आवाज़ में कहा। “हाँ जी........ पकड़ लिया उस साले को........ कहने लगी। अब कहाँ जाता है........ मेरा घर छुड़ा कर तू मुझे अपने साथ किस लिए लाया था........ मैं तुझ से मोहब्बत करती थी........ तू ने भी मुझ से यही कहा था कि तू मुझ से मोहब्बत करता है........ पर जब मैं अपना घर बार, अपना माँ बाप छोड़ कर तेरे साथ भाग निकली और अमृतसर से हम दोनों यहां आए........ इसी सराय में आ कर ठहरे तो रात ही रात तो भाग गया........ मुझे अकेली छोड़ कर........किस लिए लाया था तू मुझे यहां........किस लिए भगाया था तू ने मुझे........ मैं हर चीज़ के लिए तय्यार थी........पर तू मेरी सारी तैय्यारियां छोड़ कर भाग गया........आ........ अब मैं ने तुम्हें बुलाया है........ मेरी मोहब्बत वैसी की वैसी क़ायम है........आ........ और मंटो साहब, वो उस के साथ लिपट गई........ उस साले के आँसू टपकने लगे........रो रो कर माफियां मांगने लगा........ मुझ से ग़लती हुई........ मैं डर गया था........ मैं अब कभी तुम से अलाहिदा नहीं हूँगा। क़स्में खाता रहा........ जाने क्या बकता रहा........ सिराज ने मुझे इशारा किया........ मैं बाहर चला गया........सुबह हुई तो मैं बाहर खाट पर सो रहा था........ सिराज ने मुझे जगाया और कहा........ चलो ढूंढ़ो........ मैं बोला। कहाँ?........ बोली, वापस बंबई........ मैं बोला........वो साला कहाँ है........ सिराज ने कहा। सो रहा है........ मैं उस पर अपना बुर्ख़ा डाल आई हूँ।”

ढूंढ़ो ने अपने लिए दूसरी कोफ़ी मिली चाय का आर्डर दिया तो सिराज अंदर दाख़िल हुई........ उस का सफ़ैद बैज़वी चेहरा निखरा हुआ था और उस पर उस की बड़ी बड़ी आँखें दो गिरे हुए सिगनल मालूम होती थीं।

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घर में बड़ी चहल पहल थी। तमाम कमरे लड़के लड़कियों, बच्चे बच्चियों और औरतों से भरे थे। और वो शोर बरपा हो रहा था। कि कान पड़ी आवाज़ सुनाई ना देती थी। अगर उस कमरे में दो तीन बच्चे अपनी माओं से लिपटे दूध पीने क

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सहाय

8 अप्रैल 2022
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“ये मत कहो कि एक लाख हिंदू और एक लाख मुस्लमान मरे हैं...... ये कहो कि दो लाख इंसान मरे हैं...... और ये इतनी बड़ी ट्रेजडी नहीं कि दो लाख इंसान मरे हैं, ट्रेजडी अस्ल में ये है कि मारने और मरने वाले किसी

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हरनाम कौर

8 अप्रैल 2022
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निहाल सिंह को बहुत ही उलझन हो रही थी। स्याह-व-सफ़ैद और पत्ली मूंछों का एक गुच्छा अपने मुँह में चूसते हुए वो बराबर दो ढाई घंटे से अपने जवान बेटे बहादुर की बाबत सोच रहा था। निहाल सिंह की अधेड़ मगर तेज़

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हामिद का बच्चा

8 अप्रैल 2022
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लाहौर से बाबू हरगोपाल आए तो हामिद घर का रहा ना घाट का। उन्हों ने आते ही हामिद से कहा। “लो भई फ़ौरन एक टैक्सी का बंद-ओ-बस्त करो।” हामिद ने कहा। “आप ज़रा तो आराम कर लीजिए। इतना लंबा सफ़र तय करके यहां आए ह

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सोने कि अंगूठी

8 अप्रैल 2022
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सोने कि अंगूठी सआदत हसन मंटो “छत्ते का छत्ता होगया आप के सर पर मेरी समझ में नहीं आता कि बाल न कटवाना कहाँ का फ़ैशन है ” “फ़ैशन वेशन कुछ नहीं तुम्हें अगर बाल कटवाने पड़ें तो क़दर-ए-आफ़ियत मालूम हो जाये

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हाफ़िज़ हुसैन दीन

8 अप्रैल 2022
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हाफ़िज़ हुसैन दीन जो दोनों आँखों से अंधा था, ज़फ़र शाह के घर में आया। पटियाले का एक दोस्त रमज़ान अली था, जिस ने ज़फ़र शाह से उस का तआरुफ़ कराया। वो हाफ़िज़ साहिब से मिल कर बहुत मुतअस्सिर हुआ। गो उन की

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हारता चला गया

8 अप्रैल 2022
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लोगों को सिर्फ़ जीतने में मज़ा आता है। लेकिन उसे जीत कर हार देने में लुत्फ़ आता है। जीतने में उसे कभी इतनी दिक़्क़त महसूस नहीं हुई। लेकिन हारने में अलबत्ता उसे कई दफ़ा काफ़ी तग-ओ-दो करना पड़ी। शुरू शुर

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अंजाम-ए-नजीर

8 अप्रैल 2022
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बटवारे के बाद जब फ़िर्का-वाराना फ़सादात शिद्दत इख़्तियार कर गए और जगह जगह हिंदूओं और मुस्लमानों के ख़ून से ज़मीन रंगी जाने लगी तो नसीम अख़तर जो दिल्ली की नौ-ख़ेज़ तवाइफ़ थी अपनी बूढ़ी माँ से कहा “चलो माँ यहां

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अब्जी डूडू

8 अप्रैल 2022
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“मुझे मत सताईए....... ख़ुदा की क़सम, मैं आप से कहती हूँ, मुझे मत सताईए” “तुम बहुत ज़ुल्म कर रही हो आजकल!” “जी हाँ बहुत ज़ुल्म कर रही हूँ” “ये तो कोई जवाब नहीं” “मेरी तरफ़ से साफ़ जवाब है और ये मैं आप

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इज़्ज़त के लिए

8 अप्रैल 2022
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चवन्नी लाल ने अपनी मोटर साईकल स्टाल के साथ रोकी और गद्दी पर बैठे बैठे सुबह के ताज़ा अख़्बारों की सुर्ख़ियों पर नज़र डाली। साईकल रुकते ही स्टाल पर बैठे हुए दोनों मुलाज़िमों ने उसे नमस्ते कही थी। जिस का जवा

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इफ़्शा-ए-राज़

8 अप्रैल 2022
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“मेरी लगदी किसे न वेखी वे ते टुटदी नूँ जग जाणदा” “ये आप ने गाना क्यों शुरू कर दिया है” “हर आदमी गाता और रोता है कौनसा गुनाह किया है?” “कल आप ग़ुसल-ख़ाने में भी यही गीत गा रहे थे” “ग़ुसल-ख़ाने में तो ह

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क़ब्ज़

8 अप्रैल 2022
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नए लिखे हुए मुकालमे का काग़ज़ मेरे हाथ में था। ऐक्टर और डायरेक्टर कैमरे के पास सामने खड़े थे। शूटिंग में अभी कुछ देर थी। इस लिए कि स्टूडीयो के साथ वाला साबुन का कारख़ाना चल रहा था। हर रोज़ इस कारख़ाने के

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कुत्ते की दुआ

8 अप्रैल 2022
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“आप यक़ीन नहीं करेंगे। मगर ये वाक़िया जो मैं आप को सुनाने वाला हूँ, बिलकुल सही है।” ये कह कर शेख़ साहब ने बीड़ी सुलगाई। दो तीन ज़ोर के कश लेकर उसे फेंक दिया और अपनी दास्तान सुनाना शुरू की। शेख़ साहब के म

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कोट पतलून

8 अप्रैल 2022
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नाज़िम जब बांद्रा में मुंतक़िल हुआ तो उसे ख़ुशक़िसमती से किराए वाली बिल्डिंग में तीन कमरे मिल गए। इस बिल्डिंग में जो बंबई की ज़बान में चाली कहलाती है, निचले दर्जे के लोग रहते थे। छोटी छोटी (बंबई की ज़बान

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ख़ालिद मियां

8 अप्रैल 2022
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मुमताज़ ने सुबह सवेरे उठ कर हसब-ए-मामूल तीनों कमरे में झाड़ू दी। कोने खद्दरों से सिगरटों के टुकड़े, माचिस की जली हुई तीलियां और इसी तरह की और चीज़ें ढूंढ ढूंढ कर निकालें। जब तीनों कमरे अच्छी तरह साफ़ होगए

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ख़ुदकुशी

8 अप्रैल 2022
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ज़ाहिद सिर्फ़ नाम ही का ज़ाहिद नहीं था, उस के ज़ुहद-ओ-तक़वा के सब क़ाइल थे, उस ने बीस पच्चीस बरस की उम्र में शादी की, उस ज़माने में उस के पास दस हज़ार के क़रीब रुपय थे, शादी पर पाँच हज़ार सर्फ़ हो गए, उतनी ह

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गिलगित ख़ान

8 अप्रैल 2022
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शहबाज़ ख़ान ने एक दिन अपने मुलाज़िम जहांगीर को जो उस के होटल में अंदर बाहर का काम करता था उस की सुस्त-रवी से तंग आकर बर-तरफ़ कर दिया। असल में वो सुस्त-रो नहीं था। इस क़दर तेज़ था कि उस की हर हरकत शहबाज़ ख़ान

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घोगा

8 अप्रैल 2022
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मैं जब हस्पताल में दाख़िल हुआ तो छट्ठे रोज़ मेरी हालत बहुत ग़ैर होगई। कई रोज़ तक बे-होश रहा। डाक्टर जवाब दे चुके थे लेकिन ख़ुदा ने अपना करम किया और मेरी तबीयत सँभलने लगी। इस दौरान की मुझे अक्सर बातें या

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चुग़द

8 अप्रैल 2022
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लड़कों और लड़कियों के मआशिक़ों का ज़िक्र हो रहा था। प्रकाश जो बहुत देर से ख़ामोश बैठा अंदर ही अंदर बहुत शिद्दत से सोच रहा था, एक दम फट पड़ा। सब बकवास है, सौ में से निन्नानवे मआशिक़े निहायत ही भोंडे और लचर

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जानकी

8 अप्रैल 2022
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पूना में रेसों का मौसम शुरू होने वाला था कि पिशावर से अज़ीज़ ने लिखा कि मैं अपनी एक जान पहचान की औरत जानकी को तुम्हारे पास भेज रहा हूँ, उस को या तो पूना में या बंबई में किसी फ़िल्म कंपनी में मुलाज़मत करा

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तरक़्क़ी पसंद

8 अप्रैल 2022
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जोगिंदर सिंह के अफ़साने जब मक़बूल होना शुरू हुए तो उसके दिल में ख़्वाहिश पैदा हुई कि वो मशहूर अदीबों और शाइरों को अपने घर बुलाए और उन की दावत करे। उस का ख़याल था कि यूं उस की शौहरत और मक़बूलियत और भी ज़्

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दीवाना शायर

8 अप्रैल 2022
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[अगर मुक़द्दस हक़ दुनिया की मुतजस्सिस निगाहों से ओझल कर दिया जाये। तो रहमत हो उस दीवाने पर जो इंसानी दिमाग़ पर सुनहरा ख़्वाब तारी कर दे।] मैं आहों का ब्योपारी हूँ, लहू की शायरी मेरा काम है, चमन की मा

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निक्की

8 अप्रैल 2022
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तलाक़ लेने के बाद वो बिलकुल नचनत होगई थी। अब वो हर रोज़ की वानिता कुल कुल और मार कटाई नहीं थे। निक्की बड़े आराम-ओ-इत्मिनान से अपना गुज़र औक़ात कर रही थी। ये तलाक़ पूरे दस बरस के बाद हुई थी। निक्की का श

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परी

8 अप्रैल 2022
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कश्मीरी गेट दिल्ली के एक फ़्लैट में अनवर की मुलाक़ात परवेज़ से हुई। वो क़तअन मुतअस्सिर न हुआ। परवेज़ निहायत ही बेजान चीज़ थी। अनवर ने जब उस की तरफ़ देखा और उस को आदाब अर्ज़ कहा तो उस ने सोचा “ये क्या है औरत

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पसीना

8 अप्रैल 2022
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“मेरे अल्लाह!............... आप तो पसीने में शराबोर हो रहे हैं।” “नहीं। कोई इतना ज़्यादा तो पसीना नहीं आया।” “ठहरिए में तौलिया ले कर आऊं।” “तौलिए तो सारे धोबी के हाँ गए हुए हैं।” “तो मैं अपने दोपट्

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पढ़े कलिमा

8 अप्रैल 2022
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ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह...... आप मुस्लमान हैं यक़ीन करें मैं जो कुछ कहूंगा, सच्च कहूंगा। पाकिस्तान का इस मुआमले से कोई तअल्लुक़ नहीं। क़ाइद-ए-आज़म जिन्नाह के लिए मैं जान देने के लिए तैय

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पीरन

8 अप्रैल 2022
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ये उस ज़माने की बात है जब मैं बेहद मुफ़लिस था। बंबई में नौ रुपये माहवार की एक खोली में रहता था जिस में पानी का नल था न बिजली। एक निहायत ही ग़लीज़ कोठड़ी थी जिस की छत पर से हज़ारहा खटमल मेरे ऊपर गिरा करते थ

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पढ़े कलिमा

8 अप्रैल 2022
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ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह...... आप मुस्लमान हैं यक़ीन करें मैं जो कुछ कहूंगा, सच्च कहूंगा। पाकिस्तान का इस मुआमले से कोई तअल्लुक़ नहीं। क़ाइद-ए-आज़म जिन्नाह के लिए मैं जान देने के लिए तैय

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फ़रिश्ता

8 अप्रैल 2022
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सुर्ख़ खुरदरे कम्बल में अताउल्लाह ने बड़ी मुश्किल से करवट बदली और अपनी मुंदी हुई आँखें आहिस्ता आहिस्ता खोलीं। कुहरे की दबीज़ चादर में कई चीज़ें लिपटी हुई थीं जिन के सही ख़द्द-ओ-ख़ाल नज़र नहीं आते थे। एक लं

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फाहा

8 अप्रैल 2022
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गोपाल की रान पर जब ये बड़ा फोड़ा निकला तो इस के औसान ख़ता हो गए। गरमियों का मौसम था। आम ख़ूब हुए थे। बाज़ारों में, गलियों में, दुकानदारों के पास, फेरी वालों के पास, जिधर देखो, आम ही आम नज़र आते। लाल, पीले

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फुंदने

8 अप्रैल 2022
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कोठी से मुल्हक़ा वसीअ-ओ-अरीज़ बाग़ में झाड़ियों के पीछे एक बिल्ली ने बच्चे दिए थे, जो बिल्ला खा गया था। फिर एक कुतिया ने बच्चे दिए थे जो बड़े बड़े हो गए थे और दिन रात कोठी के अंदर बाहर भौंकते और गंदगी बिखेर

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बलवंत सिंह मजीठिया

8 अप्रैल 2022
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शाह साहब से जब मेरी मुलाक़ात हुई तो हम फ़ौरन बे-तकल्लुफ़ हो गए। मुझे सिर्फ़ इतना मालूम था कि वो सय्यद हैं और मेरे दूर-दराज़ के रिश्तेदार भी हैं। वो मेरे दूर या क़रीब के रिश्तेदार कैसे हो सकते थे, इस के मु

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बाई बाई

8 अप्रैल 2022
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नाम उस का फ़ातिमा था पर सब उसे फातो कहते थे बानिहाल के दुर्रे के उस तरफ़ उस के बाप की पन-चक्की थी जो बड़ा सादा लौह मुअम्मर आदमी था। दिन भर वो इस पन चक्की के पास बैठी रहती। पहाड़ के दामन में छोटी सी जगह थ

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बादशाहत का ख़ात्मा

8 अप्रैल 2022
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टेलीफ़ोन की घंटी बिजी। मनमोहन पास ही बैठा था। उस ने रीसीवर उठाया और कहा “हेलो....... फ़ौर फ़ौर फ़ौर फाईव सेवन” दूसरी तरफ़ से पतली सी निस्वानी आवाज़ आई। “सोरी....... रोंग नंबर” मनमोहन ने रीसीवर रख दिया और

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बिलाउज़

8 अप्रैल 2022
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कुछ दिनों से मोमिन बहुत बेक़रार था। उस को ऐसा महसूस होता था कि इस का वजूद कच्चा फोड़ा सा बन गया था। काम करते वक़्त, बातें करते हुए हत्ता कि सोचने पर भी उसे एक अजीब क़िस्म का दर्द महसूस होता था। ऐसा दर्द

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सरकण्डों के पीछे

8 अप्रैल 2022
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कौन सा शहर था, इस के मुतअल्लिक़ जहां तक में समझता हूँ, आप को मालूम करने और मुझे बताने की कोई ज़रूरत नहीं ।बस इतना ही कह देना काफ़ी है कि वो जगह जो इस कहानी से मुतअल्लिक़ है, पेशावर के मुज़ाफ़ात में थी। सरहद

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मिसिज़ गुल

8 अप्रैल 2022
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मैंने जब उस औरत को पहली मर्तबा देखा तो मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मैंने लेमूँ निचोड़ ने वाला खटका देखा है। बहुत दुबली पतली, लेकिन बला की तेज़। उस का सारा जिस्म सिवाए आँखों के इंतिहाई ग़ैर निस्वानी था। ये आँख

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मलबे का ढेर

8 अप्रैल 2022
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कामिनी के ब्याह को अभी एक साल भी न हुआ था कि उस का पति दिल के आरिज़े की वजह से मर गया और अपनी सारी जायदाद उस के लिए छोड़ गया। कामिनी को बहुत सदमा पहुंचा, इस लिए कि वो जवानी ही में बेवा हो गई थी। उस की

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महमूदा

8 अप्रैल 2022
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मुस्तक़ीम ने महमूदा को पहली मर्तबा अपनी शादी पर देखा। आरसी मसहफ़ की रस्म अदा हो रही थी कि अचानक उस को दो बड़ी बड़ी.......ग़ैर-मामूली तौर पर बड़ी आँखें दिखाई दीं.......ये महमूदा की आँखें थीं जो अभी तक कुंवार

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मिसेज़ डी सिल्वा

8 अप्रैल 2022
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बिलकुल आमने सामने फ़्लैट थे। हमारे फ़्लैट का नंबर तेरह था। उस के फ़्लैट का चौदह। कभी कोई सामने का दरवाज़ा खटखटाता तो मुझे यही मालूम होता कि हमारे दरवाज़े पर दस्तक होरही है। इसी ग़लतफ़हमी में जब मैंने एक

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मेरा हमसफ़र

9 अप्रैल 2022
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प्लेटफार्म पर शहाब, सईद और अब्बास ने एक शोर मचा रखा था। ये सब दोस्त मुझे स्टेशन पर छोड़ने के लिए आए थे, गाड़ी प्लेटफार्म को छोड़ कर आहिस्ता आहिस्ता चल रही थी कि शहाब ने बढ़ कर पाएदान पर चढ़ते हुए मुझ से

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मेरा और उसका इंतिक़ाम

9 अप्रैल 2022
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घर में मेरे सिवा कोई मौजूद नहीं था। पिता जी कचहरी में थे और शाम से पहले कभी घर आने के आदी न थे। माता जी लाहौर में थीं और मेरी बहन बिमला अपनी किसी सहेली के हाँ गई थी! मैं तन्हा अपने कमरे में बैठा किताब

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वह लड़की

9 अप्रैल 2022
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सवा-चार बज चुके थे लेकिन धूप में वही तमाज़त थी जो दोपहर को बारह बजे के क़रीब थी। उस ने बालकनी में आ कर बाहर देखा तो उसे एक लड़की नज़र आई जो बज़ाहिर धूप से बचने के लिए एक साया-दार दरख़्त की छांव में आलती पाल

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वो ख़त जो पोस्ट न किये गए

9 अप्रैल 2022
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हव्वा की एक बेटी के चंद ख़ुतूत जो उस ने फ़ुर्सत के वक़्त मुहल्ले के चंद लोगों को लिखे। मगर इन वजूह की बिना पर पोस्ट न किए गए जो इन ख़ुतूत में नुमायां नज़र आती हैं। (नाम और मुक़ाम फ़र्ज़ी हैं) पहला ख़त म

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शादी

9 अप्रैल 2022
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जमील को अपना शैफर लाइफ-टाइम क़लम मरम्मत के लिए देना था। उस ने टेलीफ़ोन डायरेक्ट्री में शैफर कंपनी का नंबर तलाश किया। फ़ोन करने से मालूम हुआ कि उन के एजेंट मैसर्ज़ डी, जे, समतोइर हैं जिन का दफ़्तर ग्रीन

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सड़क के किनारे

9 अप्रैल 2022
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“यही दिन थे......... आसमान उस की आँखों की तरह ऐसा ही नीला था जैसा कि आज है। धुला हुआ, निथरा हुआ......... और धूप भी ऐसी ही कनकनी थी......... सुहाने ख़्वाबों की तरह। मिट्टी की बॉस भी ऐसी ही थी जैसी कि इ

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शारदा

9 अप्रैल 2022
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नज़ीर ब्लैक मार्कीट से विस्की की बोतल लाने गया। बड़क डाकख़ाने से कुछ आगे बंदरगाह के फाटक से कुछ इधर सिगरेट वाले की दुकान से उस को स्काच मुनासिब दामों पर मिल जाती थी। जब उस ने पैंतीस रुपये अदा करके काग़

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सिराज

9 अप्रैल 2022
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नागपाड़ा पुलिस चौकी के उस तरफ़ जो छोटा सा बाग़ है। उस के बिलकुल सामने ईरानी के होटल के बाहर, बिजली के खंबे के साथ लग कर ढूंढ़ो खड़ा था। दिन ढले, मुक़र्ररा वक़्त पर वो यहां आ जाता और सुबह चार बजे तक अपने धंद

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हज्ज-ए-अकबर

9 अप्रैल 2022
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इम्तियाज़ और सग़ीर की शादी हुई तो शहर भर में धूम मच गई। आतिश बाज़ियों का रिवाज बाक़ी नहीं रहा था मगर दूल्हे के बाप ने इस पुरानी अय्याशी पर बे-दरेग़ रुपया सर्फ़ किया। जब सग़ीर ज़ेवरों से लदे फंदे सफ़ैद बुर्र

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सजदा

9 अप्रैल 2022
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गिलास पर बोतल झुकी तो एक दम हमीद की तबीयत पर बोझ सा पड़ गया। मलिक जो उसके सामने तीसरा पैग पी रहा था फ़ौरन ताड़ गया कि हमीद के अंदर रुहानी कश्मकश पैदा होगई है। वो हमीद को सात बरस से जानता था, और इन सात बर

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लाइसेंस

9 अप्रैल 2022
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अब्बू कोचवान बड़ा छैल छबीला था। उस का ताँगा घोड़ा भी शहर में नंबर वन था। कभी मामूली सवारी नहीं बिठाता था। उस के लगे बंधे गाहक थे जिन से उस को रोज़ाना दस पंद्रह रुपय वसूल हो जाते थे जो अब्बू के लिए काफ़ी थ

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हाफ़िज़ हुसैन दीन

9 अप्रैल 2022
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हाफ़िज़ हुसैन दीन जो दोनों आँखों से अंधा था, ज़फ़र शाह के घर में आया। पटियाले का एक दोस्त रमज़ान अली था, जिस ने ज़फ़र शाह से उस का तआरुफ़ कराया। वो हाफ़िज़ साहिब से मिल कर बहुत मुतअस्सिर हुआ। गो उन की

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संतर पंच

9 अप्रैल 2022
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मैं लाहौर के एक स्टूडियो में मुलाज़िम हुआ जिस का मालिक मेरा बंबई का दोस्त था उस ने मेरा इस्तिक़बाल क्या मैं उस की गाड़ी में स्टूडियो पहुंचा था बग़लगीर होने के बाद उस ने अपनी शराफ़त भरी मोंछों को जो ग़ालिबन

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शैदा

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शैदे के मुतअल्लिक़ अमृतसर में ये मशहूर था कि वो चट्टान से भी टक्कर ले सकता है उस में बला की फुर्ती और ताक़त थी गो तन-ओ-तोश के लिहाज़ से वो एक कमज़ोर इंसान दिखाई देता था लेकिन अमृतसर के सारे गुंडे उस से ख़ौ

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राम खेलावन

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खटमल मारने के बाद में ट्रंक में पुराने काग़ज़ात देख रहा था कि सईद भाई जान की तस्वीर मिल गई। मेज़ पर एक ख़ाली फ़्रेम पड़ा था....... मैंने इस तस्वीर से उस को पुर कर दिया और कुर्सी पर बैठ कर धोबी का इंतिज़ार

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रहमत-ए-खुदा-वंदी के फूल

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ज़मींदार, अख़बार में जब डाक्टर राथर पर रहमत-ए-ख़ुदा-वंदी के फूल बरसते थे तो यार दोस्तों ने ग़ुलाम रसूल का नाम डाक्टर राथर रख दिया। मालूम नहीं क्यूँ, इस लिए कि ग़ुलाम रसूल को डाक्टर राथर से कोई निसबत नह

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मिस फ़र्या

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शादी के एक महीने बाद सुहेल परेशान होगया। उस की रातों की नींद और दिन का चैन हराम हो गया। उस का ख़याल था कि बच्चा कम अज़ कम तीन साल के बाद पैदा होगा मगर अब एक दम ये मालूम करके उस के पांव तले की ज़मीन निक

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मिस अडना जैक्सन

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कॉलिज की पुरानी प्रिंसिपल के तबादले का एलान हुआ, तालिबात ने बड़ा शोर मचाया। वो नहीं चाहती थीं कि उन की महबूब प्रिंसिपल उन के कॉलेज से कहीं और चली जाये। बड़ा एहतिजाज हुआ। यहाँ तक कि चंद लड़कियों ने भूक हड़

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बुड्ढ़ा खूसट

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ये जंग-ए-अज़ीम के ख़ातमे के बाद की बात है जब मेरा अज़ीज़ तरीन दोस्त लैफ़्टीनैंट कर्नल मोहम्मद सलीम शेख़ (अब) ईरान इराक़ और दूसरे महाज़ों से होता हुआ बमबई पहुंचा। उस को अच्छी तरह मालूम था, मेरा फ़्लैट कहाँ ह

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शह नशीं पर

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वो सफ़ैद सलमा लगी साड़ी में शह-नशीन पर आई और ऐसा मालूम हुआ कि किसी ने नक़रई तारों वाला अनार छोड़ दिया है। साड़ी के थिरकते हूए रेशमी कपड़े पर जब जगह जगह सलमा का काम टिमटिमाने लगता तो मुझे जिस्म पर वो तमाम

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चुग़द

9 अप्रैल 2022
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लड़कों और लड़कियों के मआशिक़ों का ज़िक्र हो रहा था। प्रकाश जो बहुत देर से ख़ामोश बैठा अंदर ही अंदर बहुत शिद्दत से सोच रहा था, एक दम फट पड़ा। सब बकवास है, सौ में से निन्नानवे मआशिक़े निहायत ही भोंडे और लचर

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