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सियार और ढोल

18 जनवरी 2022

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एक बार एक जंगल के निकट दो राजाओं के बीच घोर युद्ध हुआ। एक जीता दूसरा हारा। सेनाएं अपने नगरों को लौट गईं। बस, सेना का एक ढोल पीछे रह गया। उस ढोल को बजा-बजाकर सेना के साथ गए भाट व चारण रात को वीरता की कहानियां सुनाते थे।
युद्ध के बाद एक दिन आंधी आई। आंधी के जोर में वह ढोल लुढ़कता-पुढ़कता एक सूखे पेड़ के पास जाकर टिक गया। उस पेड़ की सूखी टहनियां ढोल से इस तरह से सट गई थीं कि तेज हवा चलते ही ढोल पर टकरा जाती थीं और ढमाढम-ढमाढम की गुंजायमान आवाज होती।
एक सियार उस क्षेत्र में घूमता था। उसने ढोल की आवाज सुनी। वह बड़ा भयभीत हुआ। ऐसी अजीब आवाज बोलते पहले उसने किसी जानवर को नहीं सुना था। वह सोचने लगा कि यह कैसा जानवर है, जो ऐसी जोरदार बोली बोलता है 'ढमाढम'। सियार छिपकर ढोल को देखता रहता, यह जानने के लिए कि यह जीव उड़ने वाला है या चार टांगों पर दौड़ने वाला।
एक दिन सियार झाड़ी के पीछे छुपकर ढोल पर नजर रखे था। तभी पेड़ से नीचे उतरती हुई एक गिलहरी कूदकर ढोल पर उतरी। हलकी-सी ढम की आवाज भी हुई। गिलहरी ढोल पर बैठी दाना कुतरती रही।
सियार बड़बड़ाया, 'ओह! तो यह कोई हिंसक जीव नहीं है। मुझे भी डरना नहीं चाहिए।'
सियार फूंक-फूंककर कदम रखता ढोल के निकट गया। उसे सूंघा। ढोल का उसे न कहीं सिर नजर आया और न पैर। तभी हवा के झोंके से टहनियां ढोल से टकराईं। ढम की आवाज हुई और सियार उछलकर पीछे जा गिरा।
'अब समझ आया', सियार उठने की कोशिश करता हुआ बोला, 'यह तो बाहर का खोल है। जीव इस खोल के अंदर है। आवाज बता रही है कि जो कोई जीव इस खोल के भीतर रहता है, वह मोटा-ताजा होना चाहिए। चर्बी से भरा शरीर। तभी ये ढम-ढम की जोरदार बोली बोलता है।'
अपनी मांद में घुसते ही सियार बोला, 'ओ सियारी! दावत खाने के लिए तैयार हो जा। एक मोटे-ताजे शिकार का पता लगाकर आया हूं।'
सियारी पूछने लगी, 'तुम उसे मारकर क्यों नहीं लाए?'
सियार ने उसे झिड़की दी, 'क्योंकि मैं तेरी तरह मूर्ख नहीं हूं। वह एक खोल के भीतर छिपा बैठा है। खोल ऐसा है कि उसमें दो तरफ सूखी चमड़ी के दरवाजे हैं। मैं एक तरफ से हाथ डाल उसे पकड़ने की कोशिश करता तो वह दूसरे दरवाजे से न भाग जाता?'
चांद निकलने पर दोनों ढोल की ओर गए। जब वे निकट पहुंच ही रहे थे कि फिर हवा से टहनियां ढोल पर टकराईं और ढम-ढम की आवाज निकली। सियार सियारी के कान में बोला, 'सुनी उसकी आवाज? जरा सोच जिसकी आवाज ऐसी गहरी है, वह खुद कितना मोटा ताजा होगा।'
दोनों ढोल को सीधा कर उसके दोनों ओर बैठे और लगे दांतों से ढोल के दोनों चमड़ी वाले भाग के किनारे फाड़ने। जैसे ही चमड़ियां कटने लगी, सियार बोला, 'होशियार रहना। एक साथ हाथ अंदर डाल शिकार को दबोचना है।'
दोनों ने 'हूं' की आवाज के साथ हाथ ढोल के भीतर डाले और अंदर टटोलने लगे। अंदर कुछ नहीं था। एक-दूसरे के हाथ ही पकड़ में आए।
दोनों चिल्लाए, 'हैं ! यहां तो कुछ नहीं है।' और वे माथा पीटकर रह गए।
सीख : बड़ी-बड़ी शेखी मारने वाले लोग भी ढोल की तरह ही अंदर से खोखले होते हैं।
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यह कहानी सुनने के बाद पिंगलक ने कहा, “भाई, मैं क्या करूँ? जब मेरा पूरा परिवार और सभी साथी भयभीत होकर भागने पर तुले हैं तो अकेला मैं ही कैसे धैर्य से रह सकता हूँ?''
दमनक ने कहा, “इसमें आपके सेवकों का क्या दोष है! जैसा मालिक करेगा वैसा ही सेवक करेंगे। तो भी आप तब तक यहाँ ठहरिए जब तक मैं उस आवाज के विषय में ठीक-ठीक पता न लगा लूँ।''
पिंगलक ने आश्चर्य से पूछा, “क्या तुम वास्तव में वहाँ जाने की सोच रहे हो?"
दमनक ने जवाब दिया, “स्वामी की आज्ञा से तो योग्य सेवक कोई भी काम कर सकता है, चाहे उसे साँप के मुँह में हाथ डालना पड़े या समुद्र ही पार करना पड़े। राजाओं को चाहिए कि ऐसे ही सेवक को सदा अपने निकट रखें।"
पिंगलक ने कहा, ''अगर ऐसी बात है तो जाओ, भद्र, तुम्हारा मार्ग मंगलमय हो।''
दमनक उसको प्रणाम करके आवाज की दिशा में चल पड़ा।
पिंगलक को पछतावा होने लगा कि मैंने बेकार ही दमनक की बातों में आकर उसे अपने मन का भेद बता दिया। उसका क्या विश्वास! पहले मंत्री का पद छिन जाने के कारण वह खिन्‍न तो है ही। बदला लेने के लिए यह भी तो हो सकता है कि दमनक लालच में आकर शत्रु से मिल जाए और बाद में घात लगाकर मुझको ही मरवा दे। खैर, अब तो एक ही रास्ता है कि कहीं दूसरी जगह छिपकर दमनक के आने की राह देखी जाए।
उधर दमनक खोजते-खोजते संजीवक के पास पहुँचा तो उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। जिसके डर से सिंह की जान निकल रही थी, वह तो यह मामूली-सा बैल है। दमनक इस स्थिति से लाभ उठाने की सोचने लगा--अब तो इस बैल से संधि या विग्रह, कुछ भी करके पिंगलक को सहज ही अपने वश में किया जा सकता है। यही सोचता-सोचता वह लौटकर पिंगलक के पास पहुँचा।
पिंगलक उसे आते देख सँभलकर बैठ गया। दमनक ने पिंगलक को प्रणाम किया।
पिंगलक ने पूछा, “तुमने उस भयंकर प्राणी को देखा क्या? ''
दमनक ने कहा, '' आपकी कृपा से मैं उसे देख आया हूँ।''
पिंगलक को आश्चर्य हुआ- 'सच?'
पिंगलक ने अपनी झेंप मिटाने के लिए कहा, “तो फिर उस बलवान जंतु ने तुम्हें छोड़ कैसे दिया? शायद उसने इसीलिए तुमको छोड़ दिया होगा कि बलशाली लोग अपने समान बलवाले से ही बैर या मित्रता करते हैं। कहाँ वह महाबली और कहाँ तुम जैसा तुच्छ, विनम्र प्राणी!”
दमनक ने मन का क्षोभ छिपाकर कहा, “ऐसा ही सही। वह सचमुच महान्‌ है। बलशाली है और मैं एकदम क्षुद्र, दीन प्राणी हूँ। तो भी यदि आप कहें तो मैं उसे भी लाकर आपकी सेवा में लगा सकता हूँ।"
पिंगलक ने चकित होकर कहा, “सच कहते हो? ऐसा संभव है?''
दमनक बोला, “बुद्धि के लिए कुछ भी असंभव नहीं।''
तब पिंगलक ने कहा, “अगर ऐसी बात है तो मैं आज से ही तुमको अपना मंत्री नियुक्त करता हूँ। तुम्हें प्रजा पर दया और दंड के अधिकार देता हूँ।''
पद और अधिकार पाकर प्रसन्‍न दमनक बड़ी शान से चलता हुआ संजीवक के पास पहुँचा और गुर्राकर बोला, “ओरे दुष्ट बैल, इधर आ। मेरे स्वामी पिंगलक तुझे बुला रहे हैं। इस प्रकार निश्शंक होकर डकराने- गरजने की तुझे हिम्मत कैसे हुई?”
संजीवक ने पूछा, “यह पिंगलक कौन है, भाई?''
दमनक ने जवाब दिया, ''अरे! तू क्या वनराज सिंह पिंगलक को नहीं जानता? अभी तुझे पता चल जाएगा। वह देख, बरगद के पेड़ के नीचे अपने परिवार के साथ जो सिंह बैठा है, वही हमारे स्वामी पिंगलक हैं।''
यह सुनकर संजीवक की कंपकंपी छूट गई। वह कातर स्वर में बोला, ''भाई, तुम तो चतुर सुजान लगते हो। अपने स्वामी से मुझे माफ करवा दो तो मैं अभी तुम्हारे साथ चला चलता हूँ।"
दमनक ने कहा, “बात तो ठीक है, तुम्हारी! अच्छा, ठहरो। मैं अभी स्वामी से पूछकर आता हूँ।"
वह पिंगलक के पास जाकर बोला, “स्वामी, वह कोई मामूली जंतु नहीं है। वह तो भगवान्‌ शंकर का वाहन वृषभ है। मेरे पूछने पर उसने बताया कि भगवान्‌ शंकर के आदेश से वह नित्य यहाँ आकर यमुना-तट पर हरी-हरी घास चरता है और इस वन में घूमा करता है।''
पिंगलक भयभीत होकर बोला, ''यह सच ही होगा, क्योंकि भगवान्‌ की कृपा के बिना घास चरनेवाला यह प्राणी सर्पों से भरे वन में इस तरह से डकराता हुआ, निर्भय विचरण नहीं कर सकता। खैर, यह बता कि अब वह कहता क्या है?''
दमनक बोला, “मैंने उससे कह दिया है कि यह वन भगवती दुर्गा के वाहन मेरे स्वामी पिंगलक सिंह के अधिकार में है, इसलिए उनके पास चलकर भाईचारे के साथ रहते हुए इस वन में सुख से चरो। मेरी बात सुनकर उसने आपसे मित्रता की याचना की है।''
पिंगलक बहुत खुश हुआ। वह प्रशंसा करते हुए बोला, “मंत्रिवर, तुम धन्य हो! मैंने उसको अभयदान दिया; लेकिन तुम मुझे भी उससे अभयदान दिलाकर मेरे पास ले आओ।"
दमनक अपनी बुद्धि और भाग्य पर इतराता हुआ फिर संजीवक के पास पहुँचा। बोला, “मित्र! मेरे स्वामी ने तुमको अभयदान दे दिया है। अब तुम निडर होकर मेरे साथ चलो। किंतु याद रहे कि राजा का साथ और कृपा पाने के बाद भी तुम हमसे उचित व्यवहार ही करना। कहीं घमंड में आकर मनमाना आचरण न कर बैठना। मैं समयानुकूल ही शासन करूँगा। मंत्री के पद पर तुम्हारे रहने से हम दोनों को राज्य-लक्ष्मी का सुख मिलेगा। जो व्यक्ति अहंकार के कारण उत्तम, मध्यम और अधम व्यक्तियों का उचित सम्मान नहीं करते, वे राजा का सम्मान पाने के बाद भी दंतिल की तरह दुःख भोगते हैं।''
संजीवक ने पूछा, “यह दंतिल कौन था? !
दमनक कथा सुनाने लगा-- 

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रचनाएँ
सम्पूर्ण पंचतंत्र भाग 1
5.0
पंचतंत्र नीति, कथा और कहानियों का संग्रह है जिसके मशहूर भारतीय रचयिता आचार्य विष्णु शर्मा है। पंचतंत्र की कहानी में बच्चों के साथ-साथ बड़े भी रुचि लेते हैं। पंचतंत्र की कहानी के पीछे कोई ना कोई शिक्षा या मूल छिपा होता है जो हमें सीख देती है। पंचतंत्र की कहानी बच्चे बड़ी चाव से पढ़ते हैं तथा सीख लेते हैं। बच्चों के कोमल मन में बातों को गहराई तक पहुंचाने का तरीका कहानियों से बेहतर और क्या हो सकता है। खासकर, पंचतंत्र की कहानियां, जिसमें बेहतर सीख, संस्कार व जीवन में अच्छी चीजों की ओर बढ़ने की प्रेरणा मौजूद होती है। पांच भागों में बंटी पंचतंत्र की कहानियां ही हैं, जो दोस्ती की अहमियत, व्यवहारिकता व नेतृत्व जैसी अहम बातों को सरल और आसान शब्दों में बच्चों तक पहुंचा कर उन पर गहरी छाप छोड़ जाती हैं। शायद यही वजह है कि अक्सर बचपन में सुनी कहानियां और उनकी सीख जीवन के अहम पड़ाव में मार्ग दर्शक के रूप में भी काम कर जाती हैं। हम कौआ-उल्लू के बीच का बैर, दोस्ती-दुश्मनी, दोस्तों के होने का लाभ, कर्म न करने से होने वाली हानि, हड़बड़ी में कदम उठाने से होने वाले नुकसान जैसी कई पंचतंत्र की कहानियां आप तक इस प्लेटफॉर्म के जरिए लेकर आ रहे हैं।
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मित्रभेद

18 जनवरी 2022
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महिलारोप्य नाम के नगर में वर्धमान नाम का एक वणिक्‌-पुत्र रहता था । उसने धर्मयुक्त रीति से व्यापार में पर्याप्त धन पैदा किया था; किन्तु उतने से सन्तोष नहीं होता था; और भी अधिक धन कमाने की इच्छा थी । छः

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बन्दर और लकड़ी का खूंटा

18 जनवरी 2022
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एक समय शहर से कुछ ही दूरी पर एक मंदिर का निर्माण किया जा रहा था। मंदिर में लकड़ी का काम बहुत था इसलिए लकड़ी चीरने वाले बहुत से मज़दूर काम पर लगे हुए थे। यहां-वहां लकड़ी के लठ्टे पडे हुए थे और लठ्टे व शहत

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सियार और ढोल

18 जनवरी 2022
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एक बार एक जंगल के निकट दो राजाओं के बीच घोर युद्ध हुआ। एक जीता दूसरा हारा। सेनाएं अपने नगरों को लौट गईं। बस, सेना का एक ढोल पीछे रह गया। उस ढोल को बजा-बजाकर सेना के साथ गए भाट व चारण रात को वीरता की क

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व्यापारी का पतन और उदय

18 जनवरी 2022
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वर्धमान नामक शहर में एक बहुत ही कुशल व्यापारी दंतिल रहता था। राजा को उसकी क्षमताओं के बारे में पता था जिसके चलते राजा ने उसे राज्य का प्रशासक बना दिया। अपने कुशल तरीकों से व्यापारी दंतिल ने राजा और आम

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दुष्ट सर्प और कौवे

18 जनवरी 2022
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एक जंगल में एक बहुत पुराना बरगद का पेड़ था। उस पेड़ पर घोंसला बनाकर एक कौआ-कव्वी का जोड़ा रहता था। उसी पेड़ के खोखले तने में कहीं से आकर एक दुष्ट सर्प रहने लगा। हर वर्ष मौसम आने पर कव्वी घोंसले में अं

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मूर्ख साधू और ठग

18 जनवरी 2022
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एक बार की बात है, किसी गाँव के मंदिर में देव शर्मा नाम का एक प्रतिष्ठित साधू रहता था। गांव में सभी लोग उनका सम्मान करते थे। उसे अपने भक्तों से दान में तरह- तरह के वस्त्र, उपहार, खाद्य सामग्री और पैसे

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लड़ते बकरे और सियार

18 जनवरी 2022
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एक दिन एक सियार किसी गाँव से गुजर रहा था। उसने गाँव के बाजार के पास लोगों की एक भीड़ देखी। कौतूहलवश वह सियार भीड़ के पास यह देखने गया कि क्या हो रहा है। सियार ने वहां देखा कि दो बकरे आपस में लड़ाई कर रहे

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बगुला भगत और केकड़ा

18 जनवरी 2022
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एक वन प्रदेश में एक बहुत बड़ा तालाब था। हर प्रकार के जीवों के लिए उसमें भोजन सामग्री होने के कारण वहां नाना प्रकार के जीव, पक्षी, मछलियां, कछुए और केकड़े निवास करते थे। पास में ही बगुला रहता था, जिसे

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चतुर खरगोश और शेर

18 जनवरी 2022
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किसी घने वन में एक बहुत बड़ा शेर रहता था। वह रोज शिकार पर निकलता और एक ही नहीं, दो नहीं कई-कई जानवरों का काम तमाम देता। जंगल के जानवर डरने लगे कि अगर शेर इसी तरह शिकार करता रहा तो एक दिन ऐसा आयेगा कि

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खटमल और बेचारी जूं

18 जनवरी 2022
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एक राजा के शयनकक्ष में मंदरीसर्पिणी नाम की जूं ने डेरा डाल रखा था। रोज रात को जब राजा जाता तो वह चुपके से बाहर निकलती और राजा का खून चूसकर फिर अपने स्थान पर जा छिपती। संयोग से एक दिन अग्निमुख नाम का

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रंगा सियार

18 जनवरी 2022
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एक बार की बात है कि एक सियार जंगल में एक पुराने पेड़ के नीचे खड़ा था। पूरा पेड़ हवा के तेज झोंके से गिर पड़ा। सियार उसकी चपेट में आ गया और बुरी तरह घायल हो गया। वह किसी तरह घिसटता-घिसटता अपनी मांद तक पहुं

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शेर, ऊंट, सियार और कौवा

18 जनवरी 2022
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किसी वन में मदोत्कट नाम का सिंह निवास करता था। बाघ, कौआ और सियार, ये तीन उसके नौकर थे। एक दिन उन्होंने एक ऐसे उंट को देखा जो अपने गिरोह से भटककर उनकी ओर आ गया था। उसको देखकर सिंह कहने लगा, “अरे वाह! य

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टिटिहरी का जोड़ा और समुद्र का अभिमान

18 जनवरी 2022
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समुद्रतट के एक भाग में एक टिटिहरी का जोडा़ रहता था । अंडे देने से पहले टिटिहरी ने अपने पति को किसी सुरक्षित प्रदेश की खोज करने के लिये कहा । टिटिहरे ने कहा - "यहां सभी स्थान पर्याप्त सुरक्षित हैं, तू

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मूर्ख बातूनी कछुआ

18 जनवरी 2022
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किसी तालाब में कम्बुग्रीव नामक एक कछुआ रहता था। तालाब के किनारे रहने वाले संकट और विकट नामक हंस से उसकी गहरी दोस्ती थी। तालाब के किनारे तीनों हर रोज खूब बातें करते और शाम होने पर अपने-अपने घरों को च

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तीन मछलियां

18 जनवरी 2022
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एक नदी के किनारे उसी नदी से जुड़ा एक बड़ा जलाशय था। जलाशय में पानी गहरा होता हैं, इसलिए उसमें काई तथा मछलियों का प्रिय भोजन जलीय सूक्ष्म पौधे उगते हैं। ऐसे स्थान मछलियों को बहुत रास आते हैं। उस जलाशय मे

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हाथी और गौरैया

18 जनवरी 2022
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किसी पेड़ पर एक गौरैया अपने पति के साथ रहती थी। वह अपने घोंसले में अंडों से चूजों के निकलने का बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी। एक दिन की बात है गौरैया अपने अंडों को से रही थी और उसका पति भी रोज की तरह खा

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सिंह और सियार

18 जनवरी 2022
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वर्षों पहले हिमालय की किसी कन्दरा में एक बलिष्ठ शेर रहा करता था। एक दिन वह एक भैंसे का शिकार और भक्षण कर अपनी गुफा को लौट रहा था। तभी रास्ते में उसे एक मरियल-सा सियार मिला जिसने उसे लेटकर दण्डवत् प्रण

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चिड़िया और बन्दर

18 जनवरी 2022
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एक जंगल में एक पेड़ पर गौरैया का घोंसला था। एक दिन कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। ठंड से कांपते हुए तीन चार बंदरो ने उसी पेड़ के नीचे आश्रय लिया। एक बंदर बोला “कहीं से आग तापने को मिले तो ठंड दूर हो सकती हैं।”

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गौरैया और बन्दर

18 जनवरी 2022
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किसी जंगल के एक घने वृक्ष की शाखाओं पर चिड़ा-चिडी़ का एक जोड़ा रहता था । अपने घोंसले में दोनों बड़े सुख से रहते थे सर्दियों का मौसम था । एक दिन हेमन्त की ठंडी हवा चलने लगी और साथ में बूंदा-बांदी भी शुरु

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मित्र-द्रोह का फल

18 जनवरी 2022
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दो मित्र धर्मबुद्धि और पापबुद्धि हिम्मत नगर में रहते थे। एक बार पापबुद्धि के मन में एक विचार आया कि क्यों न मैं मित्र धर्मबुद्धि के साथ दूसरे देश जाकर धनोपार्जन कर्रूँ। बाद में किसी न किसी युक्ति से उ

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मूर्ख बगुला और नेवला

18 जनवरी 2022
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जंगल के एक बड़े वट-वृक्ष की खोल में बहुत से बगुले रहते थे । उसी वृक्ष की जड़ में एक साँप भी रहता था । वह बगलों के छोटे-छोटे बच्चों को खा जाता था । एक बगुला साँप द्वारा बार-बार बच्चों के खाये जाने पर बह

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जैसे को तैसा

18 जनवरी 2022
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एक स्थान पर जीर्णधन नाम का बनिये का लड़का रहता था । धन की खोज में उसने परदेश जाने का विचार किया । उसके घर में विशेष सम्पत्ति तो थी नहीं, केवल एक मन भर भारी लोहे की तराजू थी । उसे एक महाजन के पास धरोहर

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मूर्ख मित्र

18 जनवरी 2022
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किसी राजा के राजमहल में एक बन्दर सेवक के रुप में रहता था । वह राजा का बहुत विश्वास-पात्र और भक्त था । अन्तःपुर में भी वह बेरोक-टोक जा सकता था । एक दिन जब राजा सो रहा था और बन्दर पङखा झल रहा था तो बन्

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