प्रेमचंद आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह और उपन्यास सम्राट माने जाते हैं। यों तो उनके साहित्यिक जीवन का आरंभ १९०१ से हो चुका था पर बीस वर्षों की इस अवधि में उनकी कहानियों के अनेक रंग देखने को मिलते हैं। अमरकथा शिल्पी मुंशी प्रेमचंद ने इस नाटक अदन की वाटिका, तीसरे पहर का समय। एक बड़ा सांप अपना सिर फूलों की एक क्यारी में छिपाये हुए और अपने शरीर को एक वृक्ष की शाखाओं में लपेटे हुए पड़ा है। वृक्ष भलीभांति च़ चुका है, क्योंकि सृष्टि के दिन हमारे अनुमान से कहीं अधिक बड़े थे। सर्प उस व्यक्ति को नहीं दिखाई दे सकता जिसको उसकी विद्यमानता का ज्ञान नहीं है, क्योंकि उसके हरे और भूरे रंग के मेल से धोखा होता है। उसके निकट ही फूलों की क्यारी से एक ऊंची चट्टान दिखाई दे रही है। यह चट्टान और वृक्ष दोनों एक हरियाली के किनारे पर हैं, जिसमें एक हिरण का बच्चा मरा और सूखा हुआ पड़ा है और उसकी गर्दन टूट गई है। आदम अपने एक हाथ के सहारे चट्टान पर झुका हुआ
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