चढा़कर मुझे,
अपने क्रोध की आँच पर,
देखा भी नहीं,
तुमने पलटकर,
कि,सुलग रही हूँ मैं,
राख हो रहीं ,
मेरी भावनायें,
लगाव,विश्वास,
तुम्हारे क्रोध की,
इस आंच पर।
आने लगी है,
अब तो बू भी,
टकराव की,
तनाव की।
अब तो ,
उतार दो मुझे,
इस संबंध की गैस से ,
इससे पहले कि,
मेरा अस्तित्व ही न बचे।