shabd-logo
Shabd Book - Shabd.in

सुप्रभात

Anju

0 अध्याय
0 व्यक्ति ने लाइब्रेरी में जोड़ा
0 पाठक
निःशुल्क

।। श्री गणेशाय नमः ।। ।।प्रातः स्मरणीय भगवद्स्वरूप श्री पशुपतिनाथ बाबा /परमपूज्य स्वामी ईशानानन्दजी महाराज का प्रसाद ।। प्राणी मात्र की चाह पूज्य श्री बाबा का प्रसाद। तपस्तेजोऽमयं दिव्यं सर्वत्र शुभदं परम् । प्रणमामि सदा भक्त्या गुरुम् पशुपतिं शिवम् ।। याद रखना है जबतक मेरा मन सांसारिक पदार्थों की ओर रागात्मिका वृत्ति को लेकर अग्रसर होता है तबतक मेरी साधना दुर्बल है। साधक को सचेत रहना चाहिए। मन का खींचाव भगवान की ओर हो, निरन्तर प्रभु का मनन होता रहे यह शुभ लक्षण है। विपरीत भावना से अधिक पतन निश्चित है। सुख शांति दुर्लभ हो जायेगी। निरन्तर अन्तःकरण में दोनों वृत्तियों का आविर्भाव हुआ करता है। साधक को साधन में प्रयत्न अवश्य करना है। सफलता अवश्यम्भावी है। कुछ दिन में आसुरी वृत्ति का दमन हो जाता है। नवधा भक्ति तथा संसार से विरक्ति कैसे हो, चिरस्थायी सुख कैसे प्राप्त हो? इसका समाधान लखन लाल के प्रश्न पर भगवान राम ने संक्षेप में स्पष्ट किया है जिसका भाव है--साधक विप्र-जन-प्रेमी बने, शास्त्रानुकूल कर्तव्य का परित्याग न करे। वचन इस प्रकार है:- प्रथमहि विप्र चरण अति प्रीती। निज-निज धर्म निरत श्रुति रीती।। इतना तो मानव कर्तव्य हुआ। इसमें मानव वर्णाश्रम धर्म, कुलाचार का वर्णन किया गया है। आगे फल बतलाते हैं। तेहि कर फल पुनि विषय विरागा। आप सभी का दिन मंगलमय हो जी। सुप्रभात जी। 

suprbhaat

0.0(0)

पुस्तक के भाग

no articles);
अभी कोई भी लेख उपलब्ध नहीं है
---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए