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तरक़्क़ी पसंद

8 अप्रैल 2022

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जोगिंदर सिंह के अफ़साने जब मक़बूल होना शुरू हुए तो उसके दिल में ख़्वाहिश पैदा हुई कि वो मशहूर अदीबों और शाइरों को अपने घर बुलाए और उन की दावत करे। उस का ख़याल था कि यूं उस की शौहरत और मक़बूलियत और भी ज़्यादा हो जाएगी।

जोगिंदर सिंह बड़ा ख़ुशफ़हम इंसान था। मशहूर अदीबों और शाइरों को अपने घर बुलाकर और उनकी ख़ातिर तवाज़ो करने के बाद जब वो अपनी बीवी अमृत कौर के पास बैठता तो कुछ देर के लिए बिलकुल भूल जाता कि उस का काम डाकखाना में चिट्ठियों की देख भाल करना है। अपनी तीन गज़ी पटियाला फ़ैशन की रंगी हुई पगड़ी उतार कर जब वो एक तरफ़ रख देता तो उसे ऐसा महसूस होता कि उस के लंबे लंबे काले गेसूओं के नीचे जो छोटा सा सर छुपा हुआ है इस में तरक़्क़ी पसंद अदब कूट कूट कर भरा है। इस एहसास से उसके दिमाग़ में एक अजीब क़िस्म की एहमीयत पैदा हो जाती है और वो ये समझता कि दुनिया में जिस क़दर अफ़्साना निगार और नॉवेल नवेस मौजूद हैं सब के सब उस के साथ एक निहायत ही लतीफ़ रिश्ते के ज़रीया से मुंसलिक हैं।

अमृत कौर की समझ में ये बात नहीं आती थी कि उस का ख़ाविंद लोगों को मदऊ करने पर उस से हर बार ये क्यों कहा करता है। “अमृत, ये जो आज चाय पर आरहे हैं हिंदूस्तान के बहुत बड़े शायर हैं समझें, बहुत बड़े शायर। देखो इन की ख़ातिर तवाज़ो में कोई कसर न रहे।”

आने वाला कभी हिंदूस्तान का बहुत बड़ा शायर होता था या बहुत बड़ा अफ़्साना निगार । इस से कम पाए का कोई आदमी वो कभी बुलाता ही नहीं था। और फिर दावत में ऊंचे ऊंचे सुरों में जो बातें होती थीं उन का मतलब वो आज तक न समझ सकी थी। इन गुफ़्तुगूओं में तरक़्क़ी पसंदी का ज़िक्र आम होता था। इस तरक़्क़ी पसंदी का मतलब भी अमृत कौर को मालूम नहीं होता था।

एक दफ़ा जब जोगिंदर सिंह एक बहुत बड़े अफ़्साना निगार को चाय पिलाकर फ़ारिग़ हुआ और अंदर रसोई में आकर बैठा तो अमृत कौर ने पूछा। “ये मोयी तरक़्क़ी पसंदी क्या है?”

जोगिंदर सिंह ने पगड़ी समेत अपने सरको एक ख़फ़ीफ़ सी जुंबिश दी और कहा। “तरक़्क़ी पसंदी.... इस का मतलब तुम फ़ौरन ही नहीं समझ सकोगी। तरक़्क़ी पसंद उस को कहते हैं जो तरक़्क़ी पसंद करिए। ये लफ़्ज़ फ़ारसी का है। अंग्रेज़ी में तरक़्क़ी पसंद को रीडीकल कहते हैं। वो अफ़्साना निगार, यानी कहानियां लिखने वाले, जो अफ़साना निगारी में तरक़्क़ी चाहते हों उन को तरक़्क़ी पसंद अफ़्साना निगार कहते हैं। इस वक़्त हिंदूस्तान में सिर्फ़ तीन चार तरक़्क़ी पसंद अफ़्साना निगार हैं जिन में मेरा नाम भी शामिल है।”

जोगिंदर सिंह आदतन अंग्रेज़ी लफ़्ज़ों और जुमलों के ज़रीया से अपने ख़यालात का इज़हार किया करता था। उस की ये आदत पक कर अब तबीयत बन गई थी। चुनांचे अब वो बिला-तकल्लुफ़ एक ऐसी अंग्रेज़ी ज़बान में सोचता था जो चंद मशहूर अंग्रेज़ी नॉवेल नवेसों के अच्छे अच्छे चुस्त फ़िक़्रों पर मुश्तमिल थी। आम गुफ़्तुगू में वो पच्चास फीसदी अंग्रेज़ी लफ़्ज़ और अंग्रेज़ी किताबों से चुने हुए फ़िक़रे इस्तिमाल करता था। अफ़लातून को वो हमेशा प्लेटो कहता था। इसी तरह अरस्तू को अरसटोटल। डाक्टर सैगमंड फ्राइड शो पिनहार और नित्शे का ज़िक्र वो अपनी हर मार्के की गुफ़्तुगू में किया करता था। आम बातचीत में वो इन फ़ल्सफ़ियों का नाम नहीं लेता था और बीवी से गुफ़्तुगू करते वक़्त वो इस बात का खासतौर पर ख़याल रखता था कि अंग्रेज़ी लफ़्ज़ और ये फ़लसफ़ी न आने पाइं।

जोगिंदर सिंह से जब उस की बीवी ने तरक़्क़ी पसंदी का मतलब समझा तो उसे बहुत मायूसी हुई क्योंकि उस का ख़याल था कि तरक़्क़ी पसंदी कोई बहुत बड़ी चीज़ होगी जिस पर बड़े बड़े शायर और अफ़्साना निगार उस के ख़ाविंद के साथ मिल कर बहस करते रहते हैं। लेकिन जब उस ने ये सोचा कि हिंदूस्तान में सिर्फ़ तीन चार तरक़्क़ी पसंद अफ़्साना निगार हैं तो उस की आँखों में चमक सी पैदा होगई। ये चमक देख कर जोगिंदर सिंह के मूंछों भरे होंट एक दबी दबी सी मुस्कुराहट के बाइस कपकपाए। “अमृत.... तुम्हें ये सुन कर ख़ुशी होगी कि हिंदूस्तान का एक बहुत बड़ा आदमी मुझ से मिलने की ख़्वाहिश रखता है। उस ने मेरे अफ़साने पढ़े हैं और बहुत पसंद किए हैं।”

अमृत कौर ने पूछा। “ये बड़ा आदमी कवी है या आप की तरह कहानियां लिखने वाला।”

जोगिंदर सिंह ने जेब से एक लिफ़ाफ़ा निकाला और उसे अपने दूसरे हाथ की पुशत पर थपथपाते हुए कहा। “ये आदमी कोई भी है अफ़्साना निगार भी है, लेकिन उस की सब से बड़ी ख़ूबी जो उस की न मिटने वाली शौहरत का बाइस है और ही है।”

“वो ख़ूबी क्या है?”

“वो एक आवारागर्द है।”

“आवारागर्द?”

“हाँ, वो एक आवारागर्द है जिस ने आवारागर्दी को अपनी ज़िंदगी का नस्ब-उल-ऐन बना लिया है.... वो हमेशा घूमता रहता है.... कभी कश्मीर की ठंडी वादियों में होता है और कभी मुल्तान के तपते हुए मैदानों में........ कभी लंका में कभी तिब्बत में........ ”

अमृत कौर की दिलचस्पी बढ़ गई। “मगर ये करता क्या है?”

“गीत इकट्ठे करता है.... हिंदूस्तान के हर हिस्से के गीत.... पंजाबी, गुजराती, मरहटी, पिशावरी, सरहदी, कश्मीरी, मारवाड़ी,.... हिंदूस्तान में जितनी ज़बानें बोली जाती हैं, उन के जितने गीत उसको मिलते हैं इकट्ठे कर लेता है।”

“इतने गीत इकट्ठे करके क्या करेगा।”

“किताबें छापता है, मज़मून लिखता है ताकि दूसरे भी ये गीत सुन सकें। अंग्रेज़ी ज़बान के कई रिसालों में उस के मज़मून छप चुके हैं। गीत इकट्ठे करना और फिर उन को सलीक़े के साथ पेश करना कोई मामूली काम नहीं। वो बहुत बड़ा आदमी है अमृत, बहुत बड़ा आदमी है और देखो उस ने मुझे ख़त कैसा लिखा है।”

ये कह कर जोगिंदर सिंह ने अपनी बीवी को वो ख़त पढ़ कर सुनाया जो हरिंदर नाथ त्रिपाठी ने उस को अपने गांव से डाकखाना के पत्ते से भेजा था। इस ख़त में हरिंदर नाथ त्रिपाठी ने बड़ी मीठी ज़बान में जोगिंदर सिंह के अफ़सानों की तारीफ़ की थी और लिखा था कि आप हिंदूस्तान के तरक़्क़ी पसंद अफ़्साना निगार हैं। जब ये फ़िक़रा जोगिंदर सिंह ने पढ़ा तो बोल उठा। “लो देखो त्रिपाठी साहिब भी लिखते हैं कि मैं तरक़्क़ी पसंद हूँ।”

जोगिंदर सिंह ने पूरा ख़त सुनाने के बाद एक दो सैकिण्ड अपनी बीवी की तरफ़ देखा और असर मालूम करने के लिए पूछा। “क्यों....?”

अमृत कौर अपने ख़ाविंद की तेज़ निगाही के बाइस कुछ झेंप सी गई और मुस्कुरा कर कहने लगी। “मुझे क्या मालूम........ बड़े आदमियों की बातें बड़े ही समझ सकते हैं।”

जोगिंदर सिंह ने अपनी बीवी की इस अदा पर ग़ौर न किया। वो दरअसल हरिंदर नाथ त्रिपाठी को अपने यहां बुलाने और उसे कुछ देर ठहराने की बाबत सोच रहा था। “अमृत, मैं कहता हूँ त्रिपाठी साहिब को दावत देदी जाये, क्या ख़याल है तुम्हारा.... लेकिन मैं ये सोचता हूँ क्या पता है वो इनकार करदे........ बहुत बड़ा आदमी है, मुम्किन है वो हमारी इस दावत को ख़ुशामद समझे।”

ऐसे मौक़ों पर वो बीवी को अपने साथ शामिल कर लिया करता था ताकि दावत का बोझ दो आदमियों में बट जाये। चुनांचे जब उस ने “हमारी” कहा तो अमृत कौर ने जो अपने ख़ाविंद जोगिंदर सिंह की तरह बेहद सादा लौह थी हरिंदर नाथ त्रिपाठी से दिलचस्पी लेना शुरू करदी। हालाँकि उस का नाम ही उस के लिए नाक़ाबिल-ए-फ़हम था और ये बात भी उस की समझ से बालातर थी कि एक आवारागर्द गीत जमा कर कर के कैसे बहुत बड़ा आदमी बन सकता है। जब उस से ये कहा गया था कि हरिंदर नाथ त्रिपाठी गीत जमा करता है तो उसे अपने ख़ाविंद की एक सुनाई हुई बात याद आगई थी कि विलायत में कई लोग तैतरीयाँ पकड़ने का काम करते हैं और यूं काफ़ी रुपया कमाते हैं। चुनांचे उस ने ख़याल किया था कि शायद त्रिपाठी साहिब ने गीत जमा करने का काम विलायत के किसी आदमी से सीखा होगा।

जोगिंदर सिंह ने फिर अपना अंदेशा ज़ाहिर किया। “मुम्किन है वो हमारी इस दावत को ख़ुशामद समझे।”

“इस में ख़ुशामद की क्या बात है। और भी तो कई बड़े आदमी आप के पास आते हैं। आप उन को ख़त लिख दीजीए, मेरा ख़याल है वो आप की दावत ज़रूर क़बूल करलेंगे और फिर उन को भी तो आप से मिलने का बहुत शौक़ है.... हाँ, ये तो बताईए क्या उन की बीवी बच्चे हैं?”

“बीवी बच्चे?” जोगिंदर सिंह ने ख़त का मज़मून अंग्रेज़ी ज़बान में सोचते हुए कहा। “होंगे.... ज़रूर होंगे.... हाँ हैं, मैंने उन के एक मज़मून में पढ़ा था, उन की बीवी भी है और एक बच्ची भी है।”

ये कह कर जोगिंदर सिंह उठा, ख़त का मज़मून इस के दिमाग़ में मुकम्मल हो चुका था। दूसरे कमरे में जा कर उस ने छोटे साइज़ का पेड निकाला जिस पर वो ख़ास ख़ास आदमियों को ख़त लिखा करता था और हरिंदर नाथ त्रिपाठी के नाम उर्दू में दावतनामा लिखा। ये इस मज़मून का तर्जुमा था जो उस ने अपनी बीवी से गुफ़्तुगू करते वक़्त सोच लिया था।

तीसरे रोज़ हरिंदर नाथ त्रिपाठी का जवाब आया। जोगिंदर सिंह ने धड़कते हुए दिल के साथ लिफ़ाफ़ा खोला। जब उस ने पढ़ा कि उसकी दावत क़बूल करली गई है तो उस का दिल और भी धड़कने लगा। उस की बीवी अमृत कौर धूप में अपने छोटे बच्चे के केसों में दही डाल कर मिल रही थी कि जोगिंदर सिंह लिफ़ाफ़ा हाथ में लेकर उस के पास पहुंचा। “उन्हों ने हमारी दावत क़बूल करली, कहते हैं कि वो लाहौर यूं भी एक ज़रूरी काम से आरहे थे.... अपनी ताज़ा किताब छपवाने का इरादा रखते हैं........ और हाँ, उन्हों ने तुम को परिणाम कहा है।”

अमृत कौर इस एहसास से बहुत ख़ुश हुई कि इतने बड़े आदमी ने जिस का काम गीत इकट्ठे करना है उस को परिणाम कहा है। चुनांचे उस ने दिल ही दिल में ख़ुदा का शुक्र अदा किया कि उस का ब्याह ऐसे आदमी से हुआ जिस को हिंदूस्तान का हर बड़ा आदमी जानता है।

सर्दियों का मौसम था। नवंबर के पहले दिन थे। जोगिंदर सिंह सुबह सात बजे बेदार होगया और देर तक बिस्तर में आँखें खोले पड़ा रहा। उस की बीवी अमृत कौर और इस का बच्चा दोनों लिहाफ़ में लेटे पास वाली चारपाई पर पड़े थे जोगिंदर सिंह ने सोचना शुरू किया। त्रिपाठी साहिब से मिल कर उसे कितनी ख़ुशी होगी और ख़ुद त्रिपाठी साहिब को भी यक़ीनन उस से मिल कर बड़ी मुसर्रत हासिल होगी। क्यों कि वो हिंदूस्तान का जवाँ अफ़्क़ार अफ़्साना नवेस और तरक़्क़ी पसंद अदीब है। त्रिपाठी साहिब से वो हर मौज़ू पर गुफ़्तुगू करेगा। गीतों पर देहाती बोलियों पर अफ़सानों पर और ताज़ा जंगी हालात पर.... वो उन को बताएगा कि दफ़्तर का एक मेहनती क्लर्क होने पर भी वो कैसे अच्छा अफ़्साना निगार बन गया। क्या ये अजीब सी बात नहीं कि डाकखाना में चिट्ठियों की देख भाल करने वाला इंसान तबअन आर्टिस्ट हो।

जोगिंदर सिंह को इस बात पर बहुत नाज़ था कि डाकखाना में मज़दूरों की तरह छः सात घंटे काम करने के बाद भी वो इतना वक़्त निकाल लेता है कि एक माहाना पर्चा मुरत्तब करता है और दो तीन पर्चों के लिए हर महीने एक अफ़साना भी लिखता है। दोस्तों को हर हफ़्ते जो लंबे चौड़े ख़त लिखे जाते थे, उन का ज़िक्र अलग रहा।

देर तक वो बिस्तर पर लेटा हरिंदर नाथ त्रिपाठी से अपनी पहली मुलाक़ात की ज़ेहनी तैय्यारीयां करता रहा। जोगिंदर सिंह ने उस के अफ़साने और मज़मून पढ़े थे और उस का फ़ोटो भी देखा था और किसी के अफ़साने पढ़ और फ़ोटो देख कर वो आम तौर पर यही महसूस किया करता था कि इस ने उस आदमी को अच्छी तरह जान लिया है लेकिन हरिंदर नाथ त्रिपाठी के मुआमले में उस को अपने ऊपर एतबार नहीं आता था। कभी उस का दिल कहता था कि त्रिपाठी उस के लिए बिलकुल अजनबी है उस के अफ़्साना निगार दिमाग़ में बाअज़ औक़ात त्रिपाठी एक ऐसे आदमी की सूरत में पेश होता था जिस ने कपड़ों के बजाय अपने जिस्म पर काग़ज़ लपेट रखे हों। और जब वो काग़ज़ों के मुतअल्लिक़ सोचता तो उसे अनारकली की वो दीवार याद आजाती थी जिस पर सिनेमा के इश्तिहार ऊपर तले इतनी तादाद में चिपके हुए थे कि एक और दीवार बन गई थी।

जोगिंदर सिंह बिस्तर पर लेटा देर तक सोचता रहा कि अगर वो ऐसा ही आदमी निकल आया तो उस को समझना बहुत दुशवार हो जाएगा। मगर बाद में जब उस को अपनी ज़ेहानत का ख़याल आया तो उस की मुश्किलें आसान होगईं और वो उठ कर हरिंदर नाथ त्रिपाठी के इस्तिक़बाल की तैयारीयों में मसरूफ़ होगया।

ख़त-ओ-किताबत के ज़रीये से ये तैय होगया था कि हरिंदर नाथ त्रिपाठी ख़ुद जोगिंदर सिंह के मकान पर चला आएगा। क्योंकि त्रिपाठी ये फ़ैसला नहीं कर सका था कि वो लारी से सफ़र करेगा या रेलवे ट्रेन से। बहरहाल ये बात तो क़तई तौर पर तय हो गई थी कि जोगिंदर सिंह सोमवार को डाकखाना से छुट्टी लेकर सारा दिन अपने मेहमान का इंतिज़ार करेगा।

नहा धो कर और कपड़े बदल कर जोगिंदर सिंह देर तक बावर्चीख़ाना में अपनी बीवी के साथ बैठा रहा। दोनों ने चाय देर से पी, इस ख़याल से कि शायद त्रिपाठी आजाए। लेकिन जब वो ना आया तो उन्हों ने केक वग़ैरा सँभाल कर अलमारी में रख दिए और ख़ुद ख़ाली चाय पी कर मेहमान के इंतिज़ार में बैठ गए।

जोगिंदर सिंह बावर्चीख़ाने से उठ कर अपने कमरे में चला आया। आईने के सामने खड़े होकर जब उस ने अपनी दाढ़ी के बालों में लोहे के छोटे छोटे कल्पि अटकाने शुरू किए कि वो नीचे की तरफ़ तअम्मुल हो जाएं तो बाहर दरवाज़ा पर दस्तक हुई। दाढ़ी को वैसे ही ना-मुकम्मल हालत में छोड़कर उस ने डेयुढ़ी का दरवाज़ा खोला। जैसा कि उस को मालूम था सब से पहले उस की नज़र हरिंदर नाथ त्रिपाठी की स्याह घनी दाढ़ी पर पड़ी जो उस की दाढ़ी से बीस गुना बड़ी थी बल्कि इस से भी कुछ ज़्यादा।

हरिंदर नाथ के होंटों पर जो बड़ी बड़ी मूंछों के अंदर छिपे हुए थे मुस्कुराहट पैदा हुई। उस की एक आँख जो क़दरे टेढ़ी थी ज़्यादा टेढ़ी होगई और उस ने अपनी लंबी लंबी ज़ुल्फ़ों को एक तरफ़ झटक कर अपना हाथ जो किसी किसान का हाथ मालूम होता था जोगिंदर सिंह की तरफ़ बढ़ा दिया।

जोगिंदर सिंह ने जब उसके हाथ की मज़बूत गिरिफ़्त महसूस की और उस को त्रिपाठी का वो चरमी थैला नज़र आया जो हामिला औरत के पेट की तरह फूला हुआ था तो वो बहुत मुतअस्सिर हुआ। वो सिर्फ़ इस क़दर कह सका। “त्रिपाठी साहिब आप से मिल कर मुझे बेहद होशी हुई है।”

हरिंदर नाथ त्रिपाठी को आए अब पंद्रह रोज़ हो चुके थे। उस की आमद के दूसरे रोज़ ही उस की बीवी और बच्ची भी आगई थीं। ये दोनों त्रिपाठी के साथ ही गांव से आई थीं मगर दो रोज़ के लिए मज़ंग में एक दूर के रिश्तेदार के हाँ ठहर गई थीं और चूँकि त्रिपाठी ने उस रिश्तेदार के पास उनका ज़्यादा देर तक ठहरना मुनासिब नहीं समझा था इस लिए उस ने उन को अपने पास बुलवा लिया था।

पहले चार दिन बड़ी दिलचस्प बातों में सर्फ़ हुए। हरिंदर नाथ त्रिपाठी से अपने अफ़सानों की तारीफ़ सुन कर जोगिंदर बहुत ख़ुश होता रहा। उस ने एक मुकम्मल अफ़साना जो कि ग़ैर मतबूआ था त्रिपाठी को सुनाया और दाद हासिल की। दो ना-मुकम्मल अफ़साने भी सुनाए जिन के मुतअल्लिक़ त्रिपाठी ने अच्छी राय का इज़हार किया। तरक़्क़ी पसंद अदब पर भी बहसें होती रहीं। मुख़्तलिफ़ अफ़साना निगारों की फ़न्नी कमज़ोरियां निकाली गईं। नई और पुरानी शायरी का मुक़ाबला किया गया। ग़र्ज़कि ये चार दिन बड़ी अच्छी तरह गुज़रे और जोगिंदर सिंह त्रिपाठी की शख़्सियत से बहुत मुतअस्सिर हुआ। उस की गुफ़्तुगू का अंदाज़ जिस में ब-यक-वक़्त बचपना और बुढ़ापा था जोगिंदर को बहुत पसंद आया। उस की लंबी दाढ़ी जो उस की अपनी दाढ़ी से बीस गुना बड़ी थी उस के ख़यालात पर छा गई और उस की काली काली ज़ुल्फ़ें जिन में देहाती गीतों की सी रवानी थी हरवक़्त उस की आँखों के सामने रहने लगीं। डाकखाने में चिट्ठियों की देख भाल करने के दौरान में भी त्रिपाठी की ये ज़ुल्फ़ें उसे न भूलतीं।

चार दिन में त्रिपाठी ने जोगिंदर सिंह को मोह लिया। वो इस का गरवीदा होगया। उस की टेढ़ी आँख में भी उस को ख़ूबसूरती नज़र आने लगी, बल्कि एक बार तो उस ने सोचा। अगर उन की आँख में टेढ़ापन न होता तो चेहरे पर ये बुजु़र्गी कभी पैदा न होती।

त्रिपाठी के मोटे मोटे होंट जब त्रिपाठी की घनी मूंछों के पीछे हिलते तो जोगिंदर ऐसा महसूस करता कि झाड़ियों में परिंदे बोल रहे हैं। त्रिपाठी हौलेहौले बोलता था और बोलते बोलते जब वो अपनी लंबी दाढ़ी पर हाथ फेरता तो जोगिंदर के दिल को बहुत राहत पहुंचती। वो समझता था कि उसके दिल पर प्यार से हाथ फेरा जा रहा है।

चार रोज़ तक जोगिंदर ऐसी फ़िज़ा में रहा जिस को अगर वो अपने किसी अफ़साने में भी बयान करना चाहता तो न कर सकता। लेकिन पांचवीं रोज़ इका एकी त्रिपाठी ने अपना चरमी थैला खोला और उस को अपने अफ़साने सुनाने शुरू किए और दस रोज़ तक वो मुतवातिर उस को अपने अफ़साने सुनाता रहा। इस दौरान में त्रिपाठी ने जोगिंदर को कई किताबें सुना दीं।

जोगिंदर सिंह तंग आगया। अब उस को अफ़सानों से नफ़रत पैदा होगई। त्रिपाठी का चरमी थैला जिस का पेट बनियों की तोंद की तरह फूला हुआ था इस के लिए एक मुस्तक़िल अज़ाब बन गया। हर रोज़ शाम को दफ़्तर से लौटते हुए उसे इस बात का खटका रहने लगा कि कमरे में दाख़िल होते ही उस की त्रिपाठी से मुलाक़ात होगी। इधर उधर की चंद सरसरी बातें होंगी, वो चरमी थैला खोला जाएगा और उस को एक या दो तवील अफ़साने सुना दिए जाऐंगे।

जोगिंदर सिंह तरक़्क़ी पसंद था। ये तरक़्क़ी पसंदी अगर उस के अंदर न होती तो वो साफ़ लफ़्ज़ों में त्रिपाठी से कह देता। “बस........ बस........ त्रिपाठी साहब बस........ बस अब मुझ में आप के अफ़साने सुनने की ताक़त नहीं रही।” मगर वो सोचता “नहीं नहीं........ मैं तरक़्क़ी पसंद हूँ। मुझे ऐसा नहीं कहना चाहिए। दरअसल ये मेरी कमज़ोरी है कि अब उन के अफ़साने मुझे अच्छे नहीं लगते। इन में ज़रूर कोई न कोई ख़ूबी होगी........ इस लिए कि उन के पहले अफ़साने मुझे ख़ूबीयों से भरे नज़र आते थे.... मैं.... मैं.... मुतअस्सिब होगया हूँ।”

एक हफ़्ते से ज़्यादा अर्से तक जोगिंदर सिंह के तरक़्क़ी पसंद दिमाग़ में ये कश्मकश जारी रही और वो सोच सोच कर इस हद तक पहुंच गया जहां सोच बिचार हो ही नहीं सकता। तरह तरह के ख़याल उस के दिमाग़ में आते मगर वो उन की ठीक तौर पर जांच पड़ताल न कर सकता। उस की ज़ेहनी अफ़रातफ़री आहिस्ता आहिस्ता बढ़ती गई और वह ऐसा महसूस करने लगा कि एक बहुत बड़ा मकान है जिस में बेशुमार खिड़कियां हैं। इस मकान के अंदर वो अकेला है। आंधी आगई है कभी इस खिड़की के पट बजते हैं, कभी उस खिड़की के, और उस की समझ में नहीं आता कि वो इतनी खिड़कियों को एक दम बंद कैसे करे।

जब त्रिपाठी को उस के यहां आए बीस रोज़ होगए तो उसे बेचैनी महसूस होने लगी। त्रिपाठी अब शाम को नया अफ़साना लिख कर जब उसे सुनाता तो जोगिंदर को ऐसा महसूस होता कि बहुत सी मक्खियां उस के कानों के पास भिनभिना रही हैं। वो किसी और ही सोच में ग़र्क़ होता।

एक रोज़ त्रिपाठी ने जब उस को अपना ताज़ा अफ़साना सुनाया जिस में किसी औरत और मर्द के जिन्सी तअल्लुक़ात का ज़िक्र था तो ये सोच कर उस के दिल को धक्का सा लगा कि पूरे इक्कीस दिन अपनी बीवी के पास सोने के बजाय वो एक लिम डढ़ील के साथ एक ही लिहाफ़ में सोता रहा है। इस एहसास ने जोगिंदर के दिल-ओ-दिमाग़ में एक लम्हा के लिए इन्क़िलाब बरपा कर दिया। “ये कैसा मेहमान है कि जोंक की तरह चिमट कर ही रह गया है। यहां से हिलने का नाम ही नहीं लेता.... और.... और.... मैं उन की बीवी साहबा को तो भूल ही गया था और उनकी बच्ची.... सारा घर उठ कर यहां चला आया है। ज़रा भर ख़याल नहीं कि एक ग़रीब आदमी का कचूमर निकल जाएगा.... मैं डाकखाने में मुलाज़िम हूँ सिर्फ़ पच्चास रुपय माहवार कमाता हूँ, आख़िर कब तक उन की ख़ातिर तवाज़ो करता रहूँगा और फिर अफ़साने.... उस के अफ़साने जो कि ख़त्म होने ही में नहीं आते। मैं इंसान हूँ। लोहे का ट्रंक नहीं हूँ जो हर रोज़ उस के अफ़साने सुनता रहूं.... और किस क़दर ग़ज़ब है कि मैं अपनी बीवी के पास तक नहीं गया........ सर्दियों की ये रातें ज़ाए तो हो रही हैं।”

इक्कीस दिनों के बाद जोगिंदर त्रिपाठी को एक नई रोशनी में देखने लगा। अब उस को त्रिपाठी की हर चीज़ मायूब नज़र आने लगी। उसकी टेढ़ी आँख जिस में जोगिंदर पहले ख़ूबसूरती देखता था अब सिर्फ़ एक टेढ़ी आँख थी। उसकी काली ज़ुल्फ़ों में भी अब जोगिंदर को वो मुलाइमी दिखाई नहीं देती थी और उस की दाढ़ी देख कर अब वो सोचता था कि इतनी लंबी दाढ़ी रखना बहुत बड़ी हिमाक़त है।

जब त्रिपाठी को इस के यहां आए पच्चीस दिन होगए तो एक अजीब-ओ-ग़रीब कैफ़ीयत इस के ऊपर तारी होगई। वो अपने आप को अजनबी समझने लगा, उसे ऐसा महसूस होने लगा जैसे वो कभी जोगिंदर सिंह को जानता था मगर अब नहीं जानता। अपनी बीवी के मुतअल्लिक़ वो सोचता “जब त्रिपाठी चला जाएगा और सब ठीक हो जाएगा तो मेरी नए सिरे से शादी होगी.... मेरी वो पुरानी ज़िंदगी जिस को टाट के तौर पर ये लोग इस्तिमाल कर रहे हैं फिर ओद कर आएगी.... मैं फिर अपनी बीवी के साथ सौ सकूँगा.... और.... और.... ”

इस के आगे जब वो सोचता तो जोगिंदर सिंह की आँखों में आँसू आ जाते और उस के हलक़ में कोई तल्ख़ सी चीज़ फंस जाती। इस का जी चाहता कि दौड़ा दौड़ा अंदर जाये और अमृत कौर को जो कभी उस की बीवी हुआ करती थी अपने गले से लगाले और रोना शुरू करदे। मगर ऐसा करने की हिम्मत उस में नहीं थी क्योंकि वो तरक़्क़ी पसंद अफ़्साना निगार था।

कभी कभी जोगिंदर सिंह के दिल में ये ख़याल दूध के उबाल की तरह उठता कि तरक़्क़ी पसंदी का लिहाफ़ जो उस ने ओढ़ रखा है उतार फेंके और चिल्लाना शुरू कर दे। “त्रिपाठी, तरक़्क़ी पसंदी की ऐसी तैसी। तुम और तुम्हारे इकट्ठे किए हुए गीत सब बकवास हैं........ मुझे अपनी बीवी चाहिए........ तुम्हारी ख्वाहिशें तो सारी गीतों में जज़्ब हो चुकी हैं मगर मैं अभी जवान हूँ.... मेरी हालत पर रहम करो.... ज़रा ग़ौर तो करो मैं जो एक मिनट अपनी बीवी के बग़ैर नहीं रह सकता था पच्चीस दिनों से तुम्हारे साथ एक ही लिहाफ़ में सौ रहा हूँ.... क्या ये ज़ुल्म नहीं।”

जोगिंदर सिंह बस घोल के रह जाता। त्रिपाठी उस की हालत से बेख़बर हर रोज़ शाम को उसे अपना ताज़ा अफ़साना सुना देता और उसके साथ लिहाफ़ में सौ जाता। जब एक महीना गुज़र गया तो जोगिंदर सिंह का पैमाना-ए-सब्र लबरेज़ होगया। मौक़ा पा कर ग़ुसलख़ाने में वो अपनी बीवी से मिला। धड़कते हुए दिल के साथ इस डर के मारे कि त्रिपाठी की बीवी न आजाए उस ने जल्दी से उस का यूं बोसा लिया जैसे डाकखाना में लिफाफों पर महर लगाई जाती हो और कहा। “आज रात तुम जागती रहना। मैं त्रिपाठी से ये कह कर बाहर जा रहा हूँ कि रात के ढाई बजे वापस आऊँगा। लेकिन मैं जल्दी आजाऊँगा। बारह बजे.... पूरे बारह बजे, मैं हौलेहौले दस्तक दूंगा तुम चुपके से दरवाज़ा खोल देना और फिर हम.... डेयोढ़ी बिलकुल अलग थलग है। लेकिन तुम एहतियात के तौर पर वो दरवाज़ा जो गुसलखाना की तरफ़ खुलता है बंद कर देना।”

बीवी को अच्छी तरह समझा कर वो त्रिपाठी से मिला और उस से रुख़स्त लेकर चला गया। बारह बजने में चार सर्द घंटे बाक़ी थे जिन में से दो जोगिंदर सिंह ने अपनी साईकल पर इधर उधर घूमने में काटे। उस को सर्दी की शिद्दत का बिलकुल एहसास न हुआ इस लिए कि बीवी से मिलने का ख़याल काफ़ी गर्म था।

दो घंटे साईकल पर घूमने के बाद वो अपने मकान के पास मैदान में बैठ गया। और महसूस करने लगा कि वो रूमानी होगया है। जब उस ने सर्द रात की धुंदयाली ख़ामोशी का ख़याल किया तो उसे ये एक जानी पहचानी चीज़ मालूम हुई। ऊपर ठिठुरे हुए आसमान पर तारे चमक रहे थे जैसे पानी की मोटी मोटी बूंदें जम कर मोती बन गई हैं। कभी कभी रेलवे इंजन की चीख़ ख़ामोशी को छेड़ देती और जोगिंदर सिंह का अफ़साना निगार दिमाग़ ये सोचता कि ख़ामोशी बहुत बड़ा बर्फ़ का ढीला है और सीटी की आवाज़ मेख़ है जो उस के सीने में खुब गई है।

बहुत देर तक जोगिंदर एक नए क़िस्म के रोमान को अपने दिल-ओ-दिमाग़ में फैलाता रहा और रात की अंधयारी ख़ूबसूरतियों को गिनता रहा। इका एकी इन ख़यालात से चौंक कर उस ने घड़ी में वक़्त देखा तो बारह बजने में दो मिनट बाक़ी थे। उठ कर उस ने घर का रुख़ किया और दरवाज़े पर हौले से दस्तक दी। पाँच सैकिण्ड गुज़र गए, दरवाज़ा न खुला। एक बार उस ने फिर दस्तक दी।

दरवाज़ा खुला, जोगिंदर सिंह ने हौले से कहा। “अमृत.... ” और जब नज़रें उठा कर उस ने देखा तो अमृत कौर के बजाय त्रिपाठी खड़ा था। अंधेरे में जोगिंदर सिंह को ऐसा मालूम हुआ कि त्रिपाठी की दाढ़ी इतनी लंबी हो गई है कि ज़मीन को छू रही है। उस को फिर त्रिपाठी की आवाज़ सुनाई। “तुम जल्दी आगए.... चलो ये भी अच्छा हुआ मैं ने अभी अभी एक अफ़साना मुकम्मल किया है.... आओ सुनो।”

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रचनाएँ
सआदत हसन मंटो की लोकप्रिय कहानियाँ
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मंटो की लोकप्रिय कहानियाँ उतनी महत्वपूर्ण है कि मंटो ने इतने बरस पहले जो कुछ लिखा उसमें आज की हकीकत सिमटी नजर आती है मंटो की लोकप्रिय कहानियाँ उतनी महत्वपूर्ण है कि मंटो ने इतने बरस पहले जो कुछ लिखा उसमें आज की हकीकत सिमटी नजर आती है
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शो शो

8 अप्रैल 2022
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घर में बड़ी चहल पहल थी। तमाम कमरे लड़के लड़कियों, बच्चे बच्चियों और औरतों से भरे थे। और वो शोर बरपा हो रहा था। कि कान पड़ी आवाज़ सुनाई ना देती थी। अगर उस कमरे में दो तीन बच्चे अपनी माओं से लिपटे दूध पीने क

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सहाय

8 अप्रैल 2022
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“ये मत कहो कि एक लाख हिंदू और एक लाख मुस्लमान मरे हैं...... ये कहो कि दो लाख इंसान मरे हैं...... और ये इतनी बड़ी ट्रेजडी नहीं कि दो लाख इंसान मरे हैं, ट्रेजडी अस्ल में ये है कि मारने और मरने वाले किसी

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हरनाम कौर

8 अप्रैल 2022
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निहाल सिंह को बहुत ही उलझन हो रही थी। स्याह-व-सफ़ैद और पत्ली मूंछों का एक गुच्छा अपने मुँह में चूसते हुए वो बराबर दो ढाई घंटे से अपने जवान बेटे बहादुर की बाबत सोच रहा था। निहाल सिंह की अधेड़ मगर तेज़

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हामिद का बच्चा

8 अप्रैल 2022
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लाहौर से बाबू हरगोपाल आए तो हामिद घर का रहा ना घाट का। उन्हों ने आते ही हामिद से कहा। “लो भई फ़ौरन एक टैक्सी का बंद-ओ-बस्त करो।” हामिद ने कहा। “आप ज़रा तो आराम कर लीजिए। इतना लंबा सफ़र तय करके यहां आए ह

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सोने कि अंगूठी

8 अप्रैल 2022
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सोने कि अंगूठी सआदत हसन मंटो “छत्ते का छत्ता होगया आप के सर पर मेरी समझ में नहीं आता कि बाल न कटवाना कहाँ का फ़ैशन है ” “फ़ैशन वेशन कुछ नहीं तुम्हें अगर बाल कटवाने पड़ें तो क़दर-ए-आफ़ियत मालूम हो जाये

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हाफ़िज़ हुसैन दीन

8 अप्रैल 2022
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हाफ़िज़ हुसैन दीन जो दोनों आँखों से अंधा था, ज़फ़र शाह के घर में आया। पटियाले का एक दोस्त रमज़ान अली था, जिस ने ज़फ़र शाह से उस का तआरुफ़ कराया। वो हाफ़िज़ साहिब से मिल कर बहुत मुतअस्सिर हुआ। गो उन की

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हारता चला गया

8 अप्रैल 2022
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लोगों को सिर्फ़ जीतने में मज़ा आता है। लेकिन उसे जीत कर हार देने में लुत्फ़ आता है। जीतने में उसे कभी इतनी दिक़्क़त महसूस नहीं हुई। लेकिन हारने में अलबत्ता उसे कई दफ़ा काफ़ी तग-ओ-दो करना पड़ी। शुरू शुर

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अंजाम-ए-नजीर

8 अप्रैल 2022
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बटवारे के बाद जब फ़िर्का-वाराना फ़सादात शिद्दत इख़्तियार कर गए और जगह जगह हिंदूओं और मुस्लमानों के ख़ून से ज़मीन रंगी जाने लगी तो नसीम अख़तर जो दिल्ली की नौ-ख़ेज़ तवाइफ़ थी अपनी बूढ़ी माँ से कहा “चलो माँ यहां

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अब्जी डूडू

8 अप्रैल 2022
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“मुझे मत सताईए....... ख़ुदा की क़सम, मैं आप से कहती हूँ, मुझे मत सताईए” “तुम बहुत ज़ुल्म कर रही हो आजकल!” “जी हाँ बहुत ज़ुल्म कर रही हूँ” “ये तो कोई जवाब नहीं” “मेरी तरफ़ से साफ़ जवाब है और ये मैं आप

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इज़्ज़त के लिए

8 अप्रैल 2022
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चवन्नी लाल ने अपनी मोटर साईकल स्टाल के साथ रोकी और गद्दी पर बैठे बैठे सुबह के ताज़ा अख़्बारों की सुर्ख़ियों पर नज़र डाली। साईकल रुकते ही स्टाल पर बैठे हुए दोनों मुलाज़िमों ने उसे नमस्ते कही थी। जिस का जवा

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इफ़्शा-ए-राज़

8 अप्रैल 2022
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“मेरी लगदी किसे न वेखी वे ते टुटदी नूँ जग जाणदा” “ये आप ने गाना क्यों शुरू कर दिया है” “हर आदमी गाता और रोता है कौनसा गुनाह किया है?” “कल आप ग़ुसल-ख़ाने में भी यही गीत गा रहे थे” “ग़ुसल-ख़ाने में तो ह

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क़ब्ज़

8 अप्रैल 2022
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नए लिखे हुए मुकालमे का काग़ज़ मेरे हाथ में था। ऐक्टर और डायरेक्टर कैमरे के पास सामने खड़े थे। शूटिंग में अभी कुछ देर थी। इस लिए कि स्टूडीयो के साथ वाला साबुन का कारख़ाना चल रहा था। हर रोज़ इस कारख़ाने के

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कुत्ते की दुआ

8 अप्रैल 2022
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“आप यक़ीन नहीं करेंगे। मगर ये वाक़िया जो मैं आप को सुनाने वाला हूँ, बिलकुल सही है।” ये कह कर शेख़ साहब ने बीड़ी सुलगाई। दो तीन ज़ोर के कश लेकर उसे फेंक दिया और अपनी दास्तान सुनाना शुरू की। शेख़ साहब के म

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कोट पतलून

8 अप्रैल 2022
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नाज़िम जब बांद्रा में मुंतक़िल हुआ तो उसे ख़ुशक़िसमती से किराए वाली बिल्डिंग में तीन कमरे मिल गए। इस बिल्डिंग में जो बंबई की ज़बान में चाली कहलाती है, निचले दर्जे के लोग रहते थे। छोटी छोटी (बंबई की ज़बान

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ख़ालिद मियां

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मुमताज़ ने सुबह सवेरे उठ कर हसब-ए-मामूल तीनों कमरे में झाड़ू दी। कोने खद्दरों से सिगरटों के टुकड़े, माचिस की जली हुई तीलियां और इसी तरह की और चीज़ें ढूंढ ढूंढ कर निकालें। जब तीनों कमरे अच्छी तरह साफ़ होगए

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ख़ुदकुशी

8 अप्रैल 2022
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ज़ाहिद सिर्फ़ नाम ही का ज़ाहिद नहीं था, उस के ज़ुहद-ओ-तक़वा के सब क़ाइल थे, उस ने बीस पच्चीस बरस की उम्र में शादी की, उस ज़माने में उस के पास दस हज़ार के क़रीब रुपय थे, शादी पर पाँच हज़ार सर्फ़ हो गए, उतनी ह

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गिलगित ख़ान

8 अप्रैल 2022
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शहबाज़ ख़ान ने एक दिन अपने मुलाज़िम जहांगीर को जो उस के होटल में अंदर बाहर का काम करता था उस की सुस्त-रवी से तंग आकर बर-तरफ़ कर दिया। असल में वो सुस्त-रो नहीं था। इस क़दर तेज़ था कि उस की हर हरकत शहबाज़ ख़ान

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घोगा

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मैं जब हस्पताल में दाख़िल हुआ तो छट्ठे रोज़ मेरी हालत बहुत ग़ैर होगई। कई रोज़ तक बे-होश रहा। डाक्टर जवाब दे चुके थे लेकिन ख़ुदा ने अपना करम किया और मेरी तबीयत सँभलने लगी। इस दौरान की मुझे अक्सर बातें या

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चुग़द

8 अप्रैल 2022
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लड़कों और लड़कियों के मआशिक़ों का ज़िक्र हो रहा था। प्रकाश जो बहुत देर से ख़ामोश बैठा अंदर ही अंदर बहुत शिद्दत से सोच रहा था, एक दम फट पड़ा। सब बकवास है, सौ में से निन्नानवे मआशिक़े निहायत ही भोंडे और लचर

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जानकी

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पूना में रेसों का मौसम शुरू होने वाला था कि पिशावर से अज़ीज़ ने लिखा कि मैं अपनी एक जान पहचान की औरत जानकी को तुम्हारे पास भेज रहा हूँ, उस को या तो पूना में या बंबई में किसी फ़िल्म कंपनी में मुलाज़मत करा

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तरक़्क़ी पसंद

8 अप्रैल 2022
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जोगिंदर सिंह के अफ़साने जब मक़बूल होना शुरू हुए तो उसके दिल में ख़्वाहिश पैदा हुई कि वो मशहूर अदीबों और शाइरों को अपने घर बुलाए और उन की दावत करे। उस का ख़याल था कि यूं उस की शौहरत और मक़बूलियत और भी ज़्

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दीवाना शायर

8 अप्रैल 2022
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[अगर मुक़द्दस हक़ दुनिया की मुतजस्सिस निगाहों से ओझल कर दिया जाये। तो रहमत हो उस दीवाने पर जो इंसानी दिमाग़ पर सुनहरा ख़्वाब तारी कर दे।] मैं आहों का ब्योपारी हूँ, लहू की शायरी मेरा काम है, चमन की मा

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निक्की

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तलाक़ लेने के बाद वो बिलकुल नचनत होगई थी। अब वो हर रोज़ की वानिता कुल कुल और मार कटाई नहीं थे। निक्की बड़े आराम-ओ-इत्मिनान से अपना गुज़र औक़ात कर रही थी। ये तलाक़ पूरे दस बरस के बाद हुई थी। निक्की का श

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परी

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कश्मीरी गेट दिल्ली के एक फ़्लैट में अनवर की मुलाक़ात परवेज़ से हुई। वो क़तअन मुतअस्सिर न हुआ। परवेज़ निहायत ही बेजान चीज़ थी। अनवर ने जब उस की तरफ़ देखा और उस को आदाब अर्ज़ कहा तो उस ने सोचा “ये क्या है औरत

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पसीना

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“मेरे अल्लाह!............... आप तो पसीने में शराबोर हो रहे हैं।” “नहीं। कोई इतना ज़्यादा तो पसीना नहीं आया।” “ठहरिए में तौलिया ले कर आऊं।” “तौलिए तो सारे धोबी के हाँ गए हुए हैं।” “तो मैं अपने दोपट्

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पढ़े कलिमा

8 अप्रैल 2022
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ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह...... आप मुस्लमान हैं यक़ीन करें मैं जो कुछ कहूंगा, सच्च कहूंगा। पाकिस्तान का इस मुआमले से कोई तअल्लुक़ नहीं। क़ाइद-ए-आज़म जिन्नाह के लिए मैं जान देने के लिए तैय

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पीरन

8 अप्रैल 2022
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ये उस ज़माने की बात है जब मैं बेहद मुफ़लिस था। बंबई में नौ रुपये माहवार की एक खोली में रहता था जिस में पानी का नल था न बिजली। एक निहायत ही ग़लीज़ कोठड़ी थी जिस की छत पर से हज़ारहा खटमल मेरे ऊपर गिरा करते थ

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पढ़े कलिमा

8 अप्रैल 2022
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ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह...... आप मुस्लमान हैं यक़ीन करें मैं जो कुछ कहूंगा, सच्च कहूंगा। पाकिस्तान का इस मुआमले से कोई तअल्लुक़ नहीं। क़ाइद-ए-आज़म जिन्नाह के लिए मैं जान देने के लिए तैय

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फ़रिश्ता

8 अप्रैल 2022
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सुर्ख़ खुरदरे कम्बल में अताउल्लाह ने बड़ी मुश्किल से करवट बदली और अपनी मुंदी हुई आँखें आहिस्ता आहिस्ता खोलीं। कुहरे की दबीज़ चादर में कई चीज़ें लिपटी हुई थीं जिन के सही ख़द्द-ओ-ख़ाल नज़र नहीं आते थे। एक लं

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फाहा

8 अप्रैल 2022
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गोपाल की रान पर जब ये बड़ा फोड़ा निकला तो इस के औसान ख़ता हो गए। गरमियों का मौसम था। आम ख़ूब हुए थे। बाज़ारों में, गलियों में, दुकानदारों के पास, फेरी वालों के पास, जिधर देखो, आम ही आम नज़र आते। लाल, पीले

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फुंदने

8 अप्रैल 2022
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कोठी से मुल्हक़ा वसीअ-ओ-अरीज़ बाग़ में झाड़ियों के पीछे एक बिल्ली ने बच्चे दिए थे, जो बिल्ला खा गया था। फिर एक कुतिया ने बच्चे दिए थे जो बड़े बड़े हो गए थे और दिन रात कोठी के अंदर बाहर भौंकते और गंदगी बिखेर

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बलवंत सिंह मजीठिया

8 अप्रैल 2022
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शाह साहब से जब मेरी मुलाक़ात हुई तो हम फ़ौरन बे-तकल्लुफ़ हो गए। मुझे सिर्फ़ इतना मालूम था कि वो सय्यद हैं और मेरे दूर-दराज़ के रिश्तेदार भी हैं। वो मेरे दूर या क़रीब के रिश्तेदार कैसे हो सकते थे, इस के मु

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बाई बाई

8 अप्रैल 2022
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नाम उस का फ़ातिमा था पर सब उसे फातो कहते थे बानिहाल के दुर्रे के उस तरफ़ उस के बाप की पन-चक्की थी जो बड़ा सादा लौह मुअम्मर आदमी था। दिन भर वो इस पन चक्की के पास बैठी रहती। पहाड़ के दामन में छोटी सी जगह थ

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बादशाहत का ख़ात्मा

8 अप्रैल 2022
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टेलीफ़ोन की घंटी बिजी। मनमोहन पास ही बैठा था। उस ने रीसीवर उठाया और कहा “हेलो....... फ़ौर फ़ौर फ़ौर फाईव सेवन” दूसरी तरफ़ से पतली सी निस्वानी आवाज़ आई। “सोरी....... रोंग नंबर” मनमोहन ने रीसीवर रख दिया और

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बिलाउज़

8 अप्रैल 2022
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कुछ दिनों से मोमिन बहुत बेक़रार था। उस को ऐसा महसूस होता था कि इस का वजूद कच्चा फोड़ा सा बन गया था। काम करते वक़्त, बातें करते हुए हत्ता कि सोचने पर भी उसे एक अजीब क़िस्म का दर्द महसूस होता था। ऐसा दर्द

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सरकण्डों के पीछे

8 अप्रैल 2022
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कौन सा शहर था, इस के मुतअल्लिक़ जहां तक में समझता हूँ, आप को मालूम करने और मुझे बताने की कोई ज़रूरत नहीं ।बस इतना ही कह देना काफ़ी है कि वो जगह जो इस कहानी से मुतअल्लिक़ है, पेशावर के मुज़ाफ़ात में थी। सरहद

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मिसिज़ गुल

8 अप्रैल 2022
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मैंने जब उस औरत को पहली मर्तबा देखा तो मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मैंने लेमूँ निचोड़ ने वाला खटका देखा है। बहुत दुबली पतली, लेकिन बला की तेज़। उस का सारा जिस्म सिवाए आँखों के इंतिहाई ग़ैर निस्वानी था। ये आँख

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मलबे का ढेर

8 अप्रैल 2022
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कामिनी के ब्याह को अभी एक साल भी न हुआ था कि उस का पति दिल के आरिज़े की वजह से मर गया और अपनी सारी जायदाद उस के लिए छोड़ गया। कामिनी को बहुत सदमा पहुंचा, इस लिए कि वो जवानी ही में बेवा हो गई थी। उस की

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महमूदा

8 अप्रैल 2022
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मुस्तक़ीम ने महमूदा को पहली मर्तबा अपनी शादी पर देखा। आरसी मसहफ़ की रस्म अदा हो रही थी कि अचानक उस को दो बड़ी बड़ी.......ग़ैर-मामूली तौर पर बड़ी आँखें दिखाई दीं.......ये महमूदा की आँखें थीं जो अभी तक कुंवार

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मिसेज़ डी सिल्वा

8 अप्रैल 2022
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बिलकुल आमने सामने फ़्लैट थे। हमारे फ़्लैट का नंबर तेरह था। उस के फ़्लैट का चौदह। कभी कोई सामने का दरवाज़ा खटखटाता तो मुझे यही मालूम होता कि हमारे दरवाज़े पर दस्तक होरही है। इसी ग़लतफ़हमी में जब मैंने एक

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मेरा हमसफ़र

9 अप्रैल 2022
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प्लेटफार्म पर शहाब, सईद और अब्बास ने एक शोर मचा रखा था। ये सब दोस्त मुझे स्टेशन पर छोड़ने के लिए आए थे, गाड़ी प्लेटफार्म को छोड़ कर आहिस्ता आहिस्ता चल रही थी कि शहाब ने बढ़ कर पाएदान पर चढ़ते हुए मुझ से

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मेरा और उसका इंतिक़ाम

9 अप्रैल 2022
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घर में मेरे सिवा कोई मौजूद नहीं था। पिता जी कचहरी में थे और शाम से पहले कभी घर आने के आदी न थे। माता जी लाहौर में थीं और मेरी बहन बिमला अपनी किसी सहेली के हाँ गई थी! मैं तन्हा अपने कमरे में बैठा किताब

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वह लड़की

9 अप्रैल 2022
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सवा-चार बज चुके थे लेकिन धूप में वही तमाज़त थी जो दोपहर को बारह बजे के क़रीब थी। उस ने बालकनी में आ कर बाहर देखा तो उसे एक लड़की नज़र आई जो बज़ाहिर धूप से बचने के लिए एक साया-दार दरख़्त की छांव में आलती पाल

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वो ख़त जो पोस्ट न किये गए

9 अप्रैल 2022
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हव्वा की एक बेटी के चंद ख़ुतूत जो उस ने फ़ुर्सत के वक़्त मुहल्ले के चंद लोगों को लिखे। मगर इन वजूह की बिना पर पोस्ट न किए गए जो इन ख़ुतूत में नुमायां नज़र आती हैं। (नाम और मुक़ाम फ़र्ज़ी हैं) पहला ख़त म

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शादी

9 अप्रैल 2022
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जमील को अपना शैफर लाइफ-टाइम क़लम मरम्मत के लिए देना था। उस ने टेलीफ़ोन डायरेक्ट्री में शैफर कंपनी का नंबर तलाश किया। फ़ोन करने से मालूम हुआ कि उन के एजेंट मैसर्ज़ डी, जे, समतोइर हैं जिन का दफ़्तर ग्रीन

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सड़क के किनारे

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“यही दिन थे......... आसमान उस की आँखों की तरह ऐसा ही नीला था जैसा कि आज है। धुला हुआ, निथरा हुआ......... और धूप भी ऐसी ही कनकनी थी......... सुहाने ख़्वाबों की तरह। मिट्टी की बॉस भी ऐसी ही थी जैसी कि इ

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शारदा

9 अप्रैल 2022
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नज़ीर ब्लैक मार्कीट से विस्की की बोतल लाने गया। बड़क डाकख़ाने से कुछ आगे बंदरगाह के फाटक से कुछ इधर सिगरेट वाले की दुकान से उस को स्काच मुनासिब दामों पर मिल जाती थी। जब उस ने पैंतीस रुपये अदा करके काग़

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सिराज

9 अप्रैल 2022
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नागपाड़ा पुलिस चौकी के उस तरफ़ जो छोटा सा बाग़ है। उस के बिलकुल सामने ईरानी के होटल के बाहर, बिजली के खंबे के साथ लग कर ढूंढ़ो खड़ा था। दिन ढले, मुक़र्ररा वक़्त पर वो यहां आ जाता और सुबह चार बजे तक अपने धंद

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हज्ज-ए-अकबर

9 अप्रैल 2022
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इम्तियाज़ और सग़ीर की शादी हुई तो शहर भर में धूम मच गई। आतिश बाज़ियों का रिवाज बाक़ी नहीं रहा था मगर दूल्हे के बाप ने इस पुरानी अय्याशी पर बे-दरेग़ रुपया सर्फ़ किया। जब सग़ीर ज़ेवरों से लदे फंदे सफ़ैद बुर्र

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सजदा

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गिलास पर बोतल झुकी तो एक दम हमीद की तबीयत पर बोझ सा पड़ गया। मलिक जो उसके सामने तीसरा पैग पी रहा था फ़ौरन ताड़ गया कि हमीद के अंदर रुहानी कश्मकश पैदा होगई है। वो हमीद को सात बरस से जानता था, और इन सात बर

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लाइसेंस

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अब्बू कोचवान बड़ा छैल छबीला था। उस का ताँगा घोड़ा भी शहर में नंबर वन था। कभी मामूली सवारी नहीं बिठाता था। उस के लगे बंधे गाहक थे जिन से उस को रोज़ाना दस पंद्रह रुपय वसूल हो जाते थे जो अब्बू के लिए काफ़ी थ

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हाफ़िज़ हुसैन दीन

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हाफ़िज़ हुसैन दीन जो दोनों आँखों से अंधा था, ज़फ़र शाह के घर में आया। पटियाले का एक दोस्त रमज़ान अली था, जिस ने ज़फ़र शाह से उस का तआरुफ़ कराया। वो हाफ़िज़ साहिब से मिल कर बहुत मुतअस्सिर हुआ। गो उन की

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संतर पंच

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मैं लाहौर के एक स्टूडियो में मुलाज़िम हुआ जिस का मालिक मेरा बंबई का दोस्त था उस ने मेरा इस्तिक़बाल क्या मैं उस की गाड़ी में स्टूडियो पहुंचा था बग़लगीर होने के बाद उस ने अपनी शराफ़त भरी मोंछों को जो ग़ालिबन

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शैदा

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शैदे के मुतअल्लिक़ अमृतसर में ये मशहूर था कि वो चट्टान से भी टक्कर ले सकता है उस में बला की फुर्ती और ताक़त थी गो तन-ओ-तोश के लिहाज़ से वो एक कमज़ोर इंसान दिखाई देता था लेकिन अमृतसर के सारे गुंडे उस से ख़ौ

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राम खेलावन

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खटमल मारने के बाद में ट्रंक में पुराने काग़ज़ात देख रहा था कि सईद भाई जान की तस्वीर मिल गई। मेज़ पर एक ख़ाली फ़्रेम पड़ा था....... मैंने इस तस्वीर से उस को पुर कर दिया और कुर्सी पर बैठ कर धोबी का इंतिज़ार

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रहमत-ए-खुदा-वंदी के फूल

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ज़मींदार, अख़बार में जब डाक्टर राथर पर रहमत-ए-ख़ुदा-वंदी के फूल बरसते थे तो यार दोस्तों ने ग़ुलाम रसूल का नाम डाक्टर राथर रख दिया। मालूम नहीं क्यूँ, इस लिए कि ग़ुलाम रसूल को डाक्टर राथर से कोई निसबत नह

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मिस फ़र्या

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शादी के एक महीने बाद सुहेल परेशान होगया। उस की रातों की नींद और दिन का चैन हराम हो गया। उस का ख़याल था कि बच्चा कम अज़ कम तीन साल के बाद पैदा होगा मगर अब एक दम ये मालूम करके उस के पांव तले की ज़मीन निक

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मिस अडना जैक्सन

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कॉलिज की पुरानी प्रिंसिपल के तबादले का एलान हुआ, तालिबात ने बड़ा शोर मचाया। वो नहीं चाहती थीं कि उन की महबूब प्रिंसिपल उन के कॉलेज से कहीं और चली जाये। बड़ा एहतिजाज हुआ। यहाँ तक कि चंद लड़कियों ने भूक हड़

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बुड्ढ़ा खूसट

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ये जंग-ए-अज़ीम के ख़ातमे के बाद की बात है जब मेरा अज़ीज़ तरीन दोस्त लैफ़्टीनैंट कर्नल मोहम्मद सलीम शेख़ (अब) ईरान इराक़ और दूसरे महाज़ों से होता हुआ बमबई पहुंचा। उस को अच्छी तरह मालूम था, मेरा फ़्लैट कहाँ ह

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शह नशीं पर

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वो सफ़ैद सलमा लगी साड़ी में शह-नशीन पर आई और ऐसा मालूम हुआ कि किसी ने नक़रई तारों वाला अनार छोड़ दिया है। साड़ी के थिरकते हूए रेशमी कपड़े पर जब जगह जगह सलमा का काम टिमटिमाने लगता तो मुझे जिस्म पर वो तमाम

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चुग़द

9 अप्रैल 2022
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लड़कों और लड़कियों के मआशिक़ों का ज़िक्र हो रहा था। प्रकाश जो बहुत देर से ख़ामोश बैठा अंदर ही अंदर बहुत शिद्दत से सोच रहा था, एक दम फट पड़ा। सब बकवास है, सौ में से निन्नानवे मआशिक़े निहायत ही भोंडे और लचर

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