ठेले पर हिमालय डॉ० धर्मवीर भारती द्वारा लिखित यात्रावृत्तांत श्रेणी का संस्मरणात्मक निबंध है। इसमें लेखक ने नैनीताल से कौसानी तक की यात्रा का रोचक वर्णन किया है। इस निबंध के माध्यम से लेखक ने जीवन के उच्च शिखरों तक पहुँचने का जो संदेश दिया है, वह भी अभिनंदनीय है। लेखक एक दिन जब अपने गुरुजन उपन्यासकार मित्र के साथ पान की दुकान पर खड़े थे तब ठेले पर लदी बर्फ की सिल्लियों को देखकर उन्हें हिमालय पर्वत को ढके हिमराशि की याद आई क्योंकि उन्होंने उस राशि को पास से देखा था, जिसकी याद उनके मन पर एक खरोंच सी छोड़ देती है। इस बर्फ को पास से देखने के लिए ही लेखक अपनी पत्नी के साथ कौसानी गए थे। नैनीताल से रानीखेत व मझकाली के भयानक मोड़ों को पारकर वे कोसी पहुँंचे। कोसी में उन्हें उनके सहयात्री शुक्ल जी व चित्रकार सेन मिले जो हृदय से बहुत सरल थे। कोसी से कौसानी के लिए चलने पर उन्हें सोमेश्वर घाटी के अद्भुत सौंदर्य के दर्शन हुए। जो बहुत ही सुहाने थे, परंतु मार्ग में आगे बढ़ते जाने पर यह सुंदरता खोती जा रही थी, जिससे लेखक के मन में निराशा उत्पन्न हो रही थी क्योंकि लेखक के एक सहयोगी के अनुसार कौसानी स्विट्जरलैंड से भी अधिक सुंदर था तथा महात्मा गाँधी जी ने भी अपनी पुस्तक अनासक्तियोग की रचना यहीं की थी।
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