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उषा यादव के बारे में

मैं एक मनोवैज्ञानिक जिसका झुकाव दर्शन शास्त्र की ओर अधिक है पेशे से शिक्षिका प्रधानाचार्या और शौक के लिहाज़ से एक लेखिका ,कवियित्री, चित्रकार व गायिका .

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उषा यादव की पुस्तकें

उषा यादव के लेख

Life ?

28 अक्टूबर 2016
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Like a globe,Rotates life ;Features late or early,appear by and by.indelible prints of reminiscences;reveal no misteries but leave us. aghast.A,link ,a bond , a dotI know not,how it framed a knot ,unable to untie.thou hard I try.talking of myself not you;have tried to ridbut of no use.SoAccepted

श्री हनुमन निवास

17 जून 2016
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श्री हनुमन निवास, बस उतना ही बड़ा, जितना मूर्ति का व्यास | कुछ फूल चढ़े हैं, कुछ नीचे पड़े हैं | किसी ने ताज़ा सिन्दूर लगाया है,बेतरतीब से उसके कुछ छींटे,  इधर-उधर टपक गये हैं, छोटी सी cemented चौकी, धूप से तपी पर, एक असहाय सी कृशकायी महिला ,श्रद्ध्यवश आ चढ़ी,पैर जल उठे तो, नीचे उतर चप्पल पहन ली | और, पु

The Sun

17 जून 2016
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Wrapped in, linen,Soft and pink,Emerges the baby SUN,From the eastern wing.Trembles not, Nor does he stumble;Though yet a baby,Rises with a steady walk.In a pram, orangish yellow;Keeps pushing upright,Making the baby;Looks a little more bright.And adolescent, riding a chariot not pram;Changed to bri

क्या ये वही आसमान है ?

17 जून 2016
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क्या ये वही आसमान है? जिससे मेरी इतनी पुरानी पहचान है | एकदम निस्तब्ध, न कोई हरकत, न कोई शब्द; उत्तर के आसमान पर,कोहरे की झीनी परत का परिधान, रोज़-ब-रोज़वही डरा सा आसमान | उधर पूरब का सूरज है की,  बादलों की ढुलाई में दुबककर, जागने का नाम ही नहीं लेता, इधर दिशाएं हैं, कि हाथ पसारे खड़ी हैं |   

आया सावन मनभावन !

17 जून 2016
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मंद फुहारों का,तेज़ बौछारों का, आया सावन मनभावन ! काले घुंघराले बादल, गोर इतराते बादल, हवा के उड़न- खटोले पर,उड़ते चले आते बादल | कभी जुड़ जाते बादल, कभी फट जाते बादल, सूरज से लुका-छुपी खेलते बादल | ढुली-ढुली हरी पत्तियां कुछ,बीच में हल्की हरी बच्चियाँ कुछ, अहसास सा दिलाती हैं, मानो लगी हैं बत्तियाँ कुछ

क्या ये वही आसमान है ?

17 जून 2016
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क्या ये वही आसमान है? जिससे मेरी इतनी पुरानी पहचान है | एकदम निस्तब्ध, न कोई हरकत, न कोई शब्द; उत्तर के आसमान पर,कोहरे की झीनी परत का परिधान, रोज़-ब-रोज़वही डरा सा आसमान | उधर पूरब का सूरज है की,  बादलों की ढुलाई में दुबककर, जागने का नाम ही नहीं लेता, इधर दिशाएं हैं, कि हाथ पसारे खड़ी हैं | तुम्हारी एक

क़लम ही तो है, लिख चली...

29 फरवरी 2016
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हवा कितनी कुरकुरी हो गयी है,कि रोंगटे खड़े हो गए हैं;जानते हुए कि सिहरन में सिहर जाता है तन-मन,फिर भी... हम बार-बार वहीं खड़े होते है जहाँ चुभ रही है हवा छेद-छेद कर;पर ऐसा क्यों ?शायद मन का यही करथमा है कि... बार-बार घूम आने के बाद भी वहीं-वहीं फिर रमता और बसता है। अच्छा है शीत लहर का आभास सिर्फ वहां

एक संस्मरण

15 जून 2015
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मैं तुम्हारे घर गया था, तुम मिलीं न माँ मिली, चुपके से कहीं अपनत्व की आहट मिली, दो भागोनों में भरा पानी दिखा, एक तुमने भरा होगा, एक अम्मा ने भरा, बन गया साग़र... मैं खड़ा उन मोतियों से झोलियाँ भरता रहा। ... एक बिस्तर, दो बैठकें, एक टी0 वी0 यही हुलिया था तुम्हारे, नेह पूरित रूम का, मैं नहीं चू

कविता तुम जीवन हो

10 जून 2015
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कविता, तुम ही तो जीवन हो, हंसती हो तुम्ही, हंसाती हो, रोती हो तुम्ही, रुलाती हो। तुम ही तो हो आकाश, चमकते जिसमे चाँद सितारे तुममे इतना विस्तार, कि जिसमे सारे लोग समाते। तुम गौरव-गाथा पूर्व युगों की, हो सम्मान बड़ों का, जगने वालों की पथ-प्रदर्शिका, सोने वालों को झकझोरने, हो शांत भाव उद्व

क्यों चला गया ...

10 जून 2015
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सोचोगे क्यों चला गया मै, ठहर ही जाता तो, अच्छा होता न जाने क्यों अनसुनी कर गया, कुछ सुन ही लेता तो अच्छा होता सोचा था जो, गर कर ही लेता तो, पछतावे का तो फिर गम न होता पहले ही देर हो चुकी थी, ज्यादा नहीं तो कुछ हाथ होता जला चुके थे वो आशियाना, हमी बुझा देते तो अच्छा होता वो बरस कर निकल गए

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