'मोर को मार्जार-रव क्यों कहते हैं मां'
'वह बिल्ली की तरह बोलता है,
इसलिए ।'
'कुत्ते् की तरह बोलता
तो बात भी थी ।
कैसे भूंकता है कुत्ता,
मुहल्ला गूंज उठता है,
भौं-भौं ।'
'चुप रह !'
'क्यों मां ? बिल्ली बोलती है
जैसे भीख मांगती हो,
म्या उं.., म्या उं.
चापलूस कहीं का ।
वह कुत्तेी की तरह
पूंछ भी तो नहीं हिलाती '-
'पागल कहीं का ।'
'मोर मुझे फूटी आंख नहीं भाता,
कौए अच्छे लगते हैं ।'
'बेवकूफ ।'
'तुम नहीं जानती, मां,
कौए कितने मिलनसार,
कितने साधारण होते हैं ।.
घर-घर,
आंगन, मुंडेर पर बैठे
दिन रात रटते हैं
का, खा, गा
जैसे पाठशाला में पढ़ते हों ।'
'तब तू कौओं की ही
पांत में बैठा कर ।'
'क्यों नहीं, मां,
एक ही आंख को उलट पुलट
सबको समान दृष्टि से देखते हैं ।-
और फिर,
बहुमत भी तो उन्हीं का है, मां ।'
'बातूनी ।'