तुम स्वर्ण हरित अंधकार में
लपेट कर
कई रेंगने वाली
इच्छाएँ ले आते हो,
जिन की रीढ़
उठ नहीं सकती ।
इनका क्या होगा
मैं नहीं जानता ।
पिटारी खोलते ही
टेढ़े मेढ़े सांपों सी
ये धरती भर में
फैल जाती हैं ।
कौन शक्ति इन्हें बाँधेगी ?
कौन कला समझाएगी,
कौन शोभा अलंकृत करेगी ?
ये मधु-तिक्त ज्वलित-शीत
वर्जनाएँ हैं ।
जो अब मुक्त हो रही हैं ।
तुम्हारी सुनहली अलकों की
ये फूल माल बनेंगी,
इनकी मादन गंध पीकर
मृत्यु जी उठेगी ।
तुम स्वर्ण हरित अंधकार में
लपेट कर अमृत के स्रोत
ले आये थे,
जो हृदय शिराएँ बन
समस्त अस्तित्व में
नवीन रक्त संचार कर रही हैं ।