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वर्षा-गान

19 फरवरी 2022

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दूर देश के अतिथि व्योम में 

छाए घन काले सजनी, 

अंग-अंग पुलकित वसुधा के 

शीतल, हरियाले सजनी! 

  

भींग रहीं अलकें संध्या की, 

रिमझिम बरस रही जलधर, 

फूट रहे बुलबुले याकि 

मेरे दिल के छाले सजनी! 

  

किसका मातम? कौन बिखेरे 

बाल आज नभ पर आई? 

रोई यों जी खोल, चले बह 

आँसू के नाले सजनी! 

  

आई याद आज अलका की, 

किंतु, पंथ का ज्ञान नहीं, 

विस्मृत पथ पर चले मेघ 

दामिनी-दीप बाले सजनी! 

  

चिर-नवीन कवि-स्वप्न, यक्ष के 

अब भी दीन, सजल लोचन, 

उत्कंठित विरहिणी खड़ी 

अब भी झूला डाले सजनी! 

  

बुझती नहीं जलन अंतर की, 

बरसें दृग, बरसें जलधर, 

मैंने भी क्या हाय, हृदय में 

अंगारे पाले सजनी! 

  

धुलकर हँसा विश्व का तृण-तृण, 

मेरी ही चिंता न धुली, 

पल-भर को भी हाय, व्यथाएँ 

टलीं नहीं टाले सजनी! 

  

किंतु, आज क्षिति का मंगल-क्षण, 

यह मेरा क्रंदन कैसा? 

गीत-मग्न घन-गगन, आज 

तू भी मल्हार गा ले सजनी!  

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रचनाएँ
दिनकर के गीत
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रामधारी सिंह दिनकर की कविता गीत अगीत कविता का सार – Geet Ageet कवि रामधारी सिंह दिनकर जी ने इस कविता में गीत-अगीत के माध्यम से प्रकृति का बड़ा ही मनोहर वर्णन किया है। इस कविता में मुखर भावना (दृश्य) और छुपी भावना (अदृश्य) की तुलना की गई है। यहाँ कवि प्रकृति को एक संगीतकार के रूप में देख रहा है और उसकी भावनाओं को बयां कर रहा है। कवि के अनुसार नदी, तोता और प्रेमी गीत गा रहे हैं।
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याचना

19 फरवरी 2022
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 प्रियतम! कहूँ मैं और क्या?  शतदल, मृदुल जीवन-कुसुम में प्रिय! सुरभि बनकर बसो।  घन-तुल्य हृदयाकाश पर मृदु मन्द गति विचरो सदा।  प्रियतम! कहूँ मैं और क्या?     दृग बन्द हों तब तुम सुनहले स्वप्न बन

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राम, तुम्हारा नाम

19 फरवरी 2022
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राम, तुम्हारा नाम कंठ में रहे,  हृदय, जो कुछ भेजो, वह सहे,  दुख से त्राण नहीं माँगूँ।    माँगू केवल शक्ति दुख सहने की,  दुर्दिन को भी मान तुम्हारी दया  अकातर ध्यानमग्न रहने की।    देख तुम्हारे

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ये गान बहुत रोये

19 फरवरी 2022
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तुम बसे नहीं इनमें आकर,  ये गान बहुत रोये ।     बिजली बन घन में रोज हँसा करते हो,  फूलों में बन कर गन्ध बसा करते हो,  नीलिमा नहीं सारा तन ढंक पाती है,  तारा-पथ में पग-ज्योति झलक जाती है ।  हर त

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अगेय की ओर

19 फरवरी 2022
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गायक, गान, गेय से आगे  मैं अगेय स्वन का श्रोता मन।     सुनना श्रवण चाहते अब तक  भेद हृदय जो जान चुका है;  बुद्धि खोजती उन्हें जिन्हें जीवन  निज को कर दान चुका है।  खो जाने को प्राण विकल है  चढ

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चंद्राह्वान

19 फरवरी 2022
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जागो हे अविनाशी !  जागो किरणपुरुष ! कुमुदासन ! विधु-मंडल के वासी !  जागो है अविनाशी !     रत्न-जड़ित-पथ-चारी, जागो,  उडू-वन-वीथि-विहारी, जागो,  जागो रसिक विराग-शोक के, मधुवन के संन्यासी !  जागो

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अन्तर्वासिनी

19 फरवरी 2022
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 अधखिले पद्म पर मौन खड़ी  तुम कौन प्राण के सर में री?  भीगने नहीं देती पद की  अरुणिमा सुनील लहर में री?  तुम कौन प्राण के सर में ?        शशिमुख पर दृष्टि लगाये  लहरें उठ घूम रही हैं,  भयवश न

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प्रीति

19 फरवरी 2022
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प्रीति न अरुण साँझ के घन सखि!  पल-भर चमक बिखर जाते जो  मना कनक-गोधूलि-लगन सखि!  प्रीति न अरुण साँझ के घन सखि!     प्रीति नील, गंभीर गगन सखि!  चूम रहा जो विनत धरणि को  निज सुख में नित मूक-मगन सख

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प्रभाती

19 फरवरी 2022
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 रे प्रवासी, जाग , तेरे  देश का संवाद आया।     भेदमय संदेश सुन पुलकित  खगों ने चंचु खोली;  प्रेम से झुक-झुक प्रणति में  पादपों की पंक्ति डोली;  दूर प्राची की तटी से  विश्व के तृण-तृण जगाता; 

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जागरण

19 फरवरी 2022
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(वसन्त के प्रति शिशिर की उक्ति)     मैं शिशिर-शीर्णा चली, अब जाग ओ मधुमासवाली !     खोल दृग, मधु नींद तज, तंद्रालसे, रूपसि विजन की !  साज नव शृंगार, मधु-घट संग ले, कर सुधि भुवन की ।  विश्व में त

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साथी

19 फरवरी 2022
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 उसे भी देख, जो भीतर भरा अंगार है साथी।     (1)  सियाही देखता है, देखता है तू अन्धेरे को,  किरण को घेर कर छाये हुए विकराल घेरे को।  उसे भी देख, जो इस बाहरी तम को बहा सकती,  दबी तेरे लहू में रौशन

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किसको नमन करूँ मैं ?

19 फरवरी 2022
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तुझको या तेरे नदीश, गिरि, वन को नमन करूँ, मैं ?  मेरे प्यारे देश ! देह या मन को नमन करूँ मैं ?  किसको नमन करूँ मैं भारत ? किसको नमन करूँ मैं ?     भू के मानचित्र पर अंकित त्रिभुज, यही क्या तू है ?

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नई आवाज

19 फरवरी 2022
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कभी की जा चुकीं नीचे यहाँ की वेदनाएँ,  नए स्वर के लिए तू क्या गगन को छानता है?     [1]  बताएँ भेद क्या तारे? उन्हें कुछ ज्ञात भी हो,  कहे क्या चाँद? उसके पास कोई बात भी हो।  निशानी तो घटा पर है,

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हारे को हरिनाम

19 फरवरी 2022
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सब शोकों का एक नाम है क्षमा  ह्रदय, आकुल मत होना।     [१]  दहक उठे जो अंगारे बन नए  कुसुम-कोमल सपने थे  अंतर में जो गाँस मार गए  अधिक सबसे अपने थे  अब चल, उसके द्वार सहज जिसकी करुणा है  और कह

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जवानी का झण्डा

19 फरवरी 2022
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घटा फाड़ कर जगमगाता हुआ   आ गया देख, ज्वाला का बान;   खड़ा हो, जवानी का झंडा उड़ा,   ओ मेरे देश के नौजवान!      (1)   सहम करके चुप हो गये थे समुंदर   अभी सुन के तेरी दहाड़,   जमीं हिल रही थी,

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सूखे विटप की सारिके !

19 फरवरी 2022
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 (1)  सूखे विटप की सारिके !     उजड़ी-कटीली डार से  मैं देखता किस प्यार से  पहना नवल पुष्पाभरण  तृण, तरु, लता, वनराजि को  हैं जो रहे विहसित वदन  ऋतुराज मेरे द्वार से।     मुझ में जलन है प्या

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आश्वासन

19 फरवरी 2022
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तृषित! धर धीर मरु में।  कि जलती भूमि के उर में  कहीं प्रच्छन्न जल हो।  न रो यदि आज तरु में  सुमन की गन्ध तीखी,  स्यात, कल मधुपूर्ण फल हो।     नए पल्लव सजीले,  खिले थे जो वनश्री को  मसृण परिधा

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गीत-अगीत

19 फरवरी 2022
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गीत, अगीत, कौन सुंदर है?     गाकर गीत विरह की तटिनी  वेगवती बहती जाती है,  दिल हलका कर लेने को  उपलों से कुछ कहती जाती है।     तट पर एक गुलाब सोचता,  "देते स्‍वर यदि मुझे विधाता,  अपने पतझर क

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सावन में

19 फरवरी 2022
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जेठ नहीं, यह जलन हृदय की,  उठकर जरा देख तो ले;  जगती में सावन आया है,  मायाविन! सपने धो ले।     जलना तो था बदा भाग्य में  कविते! बारह मास तुझे;  आज विश्व की हरियाली पी  कुछ तो प्रिये, हरी हो ल

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भ्रमरी

19 फरवरी 2022
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पी मेरी भ्रमरी, वसन्त में   अन्तर मधु जी-भर पी ले;  कुछ तो कवि की व्यथा सफल हो,  जलूँ निरन्तर, तू जी ले।    चूस-चूस मकरन्द हृदय का  संगिनि? तू मधु-चक्र सजा,  और किसे इतिहास कहेंगे  ये लोचन गील

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रहस्य

19 फरवरी 2022
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 तुम समझोगे बात हमारी?     उडु-पुंजों के कुंज सघन में,  भूल गया मैं पन्थ गगन में,  जगे-जगे, आकुल पलकों में बीत गई कल रात हमारी।     अस्तोदधि की अरुण लहर में,  पूरब-ओर कनक-प्रान्तर में,  रँग-सी

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संबल

19 फरवरी 2022
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सोच रहा, कुछ गा न रहा मैं।     निज सागर को थाह रहा हूँ,  खोज गीत में राह रहा हूँ,  पर, यह तो सब कुछ अपने हित, औरों को समझा न रहा मैं।     वातायन शत खोल हृदय के,  कुछ निर्वाक खड़ा विस्मय से,  उ

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प्रतीक्षा

19 फरवरी 2022
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अयि संगिनी सुनसान की!     मन में मिलन की आस है,  दृग में दरस की प्यास है,  पर, ढूँढ़ता फिरता जिसे  उसका पता मिलता नहीं,  झूठे बनी धरती बड़ी,  झूठे बृहत आकश है;  मिलती नहीं जग में कहीं  प्रतिम

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शेष गान

19 फरवरी 2022
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संगिनि, जी भर गा न सका मैं।  गायन एक व्याज़ इस मन का,  मूल ध्येय दर्शन जीवन का,  रँगता रहा गुलाब, पटी पर अपना चित्र उठा न सका मैं।     विम्बित इन में रश्मि अरुण है,  बाल ऊर्म्मि, दिनमान तरुण है,

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परदेशी

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 माया के मोहक वन की क्या कहूँ कहानी परदेशी?  भय है, सुन कर हँस दोगे मेरी नादानी परदेशी!  सृजन-बीच संहार छिपा, कैसे बतलाऊं परदेशी?  सरल कंठ से विषम राग मैं कैसे गाऊँ परदेशी?     एक बात है सत्य कि

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शब्द-वेध

19 फरवरी 2022
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खेल रहे हिलमिल घाटी में, कौन शिखर का ध्यान करे ?  ऐसा बीर कहाँ कि शैलरुह फूलों का मधुपान करे ?     लक्ष्यवेध है कठिन, अमा का सूचि-भेद्य तमतोम यहाँ?  ध्वनि पर छोडे तीर, कौन यह शब्द-वेध संधान करे ? 

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परिचय

19 फरवरी 2022
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सलिल कण हूँ, या पारावार हूँ मैं  स्वयं छाया, स्वयं आधार हूँ मैं  बँधा हूँ, स्वपन हूँ, लघु वृत हूँ मैं  नहीं तो व्योम का विस्तार हूँ मैं     समाना चाहता है, जो बीन उर में  विकल उस शुन्य की झनंकार

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पावस-गीत

19 फरवरी 2022
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अम्बर के गृह गान रे, घन-पाहुन आये।   इन्द्रधनुष मेचक-रुचि-हारी,  पीत वर्ण दामिनि-द्युति न्यारी,  प्रिय की छवि पहचान रे, नीलम घन छाये।     वृष्टि-विकल घन का गुरु गर्जन,  बूँद-बूँद में स्वप्न विसर

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परियों का गीत-1

19 फरवरी 2022
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 हम गीतों के प्राण सघन,  छूम छनन छन, छूम छनन ।  बजा व्योम वीणा के तार,  भरती हम नीली झंकार,  सिहर-सिहर उठता त्रिभुवन ।  छूम छनन छन, छूम छनन ।  सपनों की सुषमा रंगीन,  कलित कल्पना पर उड्डीन,  हम

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परियों का गीत-2

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फूलों की नाव बहाओ री,यह रात रुपहली आई ।  फूटी सुधा-सलिल की धारा  डूबा नभ का कूल किनारा  सजल चान्दनी की सुमन्द लहरों में तैर नहाओ री !  यह रात रुपहली आई ।  मही सुप्त, निश्चेत गगन है,  आलिंगन में

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वर्षा-गान

19 फरवरी 2022
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दूर देश के अतिथि व्योम में  छाए घन काले सजनी,  अंग-अंग पुलकित वसुधा के  शीतल, हरियाले सजनी!     भींग रहीं अलकें संध्या की,  रिमझिम बरस रही जलधर,  फूट रहे बुलबुले याकि  मेरे दिल के छाले सजनी! 

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धीरे-धीरे गा

19 फरवरी 2022
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बटोही, धीरे-धीरे गा।     बोल रही जो आग उबल तेरे दर्दीले सुर में,  कुछ वैसी ही शिखा एक सोई है मेरे उर में।  जलती बत्ती छुला, न यह निर्वाषित दीप जला।     बटोही, धीरे-धीरे गा।     फुँकी जा रही रा

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निमंत्रण

19 फरवरी 2022
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तिमिर में स्वर के बाले दीप, आज फिर आता है कोई।     हवा में कब तक ठहरी हुई  रहेगी जलती हुई मशाल?  थकी तेरी मुट्ठी यदि वीर,  सकेगा इसको कौन सँभाल?’     अनल-गिरि पर से मुझे पुकार, राग यह गाता है क

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आशा का दीपक

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वह प्रदीप जो दीख रहा है झिलमिल, दूर नहीं है; थककर बैठ गये क्या भाई! मंजिल दूर नहीं है। (1) चिनगारी बन गई लहू की बूँद गिरी जो पग से; चमक रहे, पीछे मुड़ देखो, चरण-चिह्न जगमग-से। शुरू हुई आराध्य

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प्रणति-1

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 कलम, आज उनकी जय बोल     जला अस्थियाँ बारी-बारी  छिटकाई जिनने चिंगारी,  जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर लिए बिना गर्दन का मोल ।  कलम, आज उनकी जय बोल ।     जो अगणित लघु दीप हमारे  तूफानों में एक किनारे

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प्रणति-2

19 फरवरी 2022
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नमन उन्हें मेरा शत बार । सूख रही है बोटी-बोटी, मिलती नहीं घास की रोटी, गढ़ते हैं इतिहास देश का सह कर कठिन क्षुधा की मार । नमन उन्हें मेरा शत बार । अर्ध-नग्न जिन की प्रिय माया, शिशु-विषण मुख,

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प्रणति-3

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 आनेवालो ! तुम्हें प्रणाम ।     'जय हो', नव होतागण ! आओ,  संग नई आहुतियाँ लाओ,  जो कुछ बने फेंकते जाओ, यज्ञ जानता नहीं विराम ।  आनेवालो ! तुम्हें प्रणाम ।     टूटी नहीं शिला की कारा,  लौट गयी

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