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विरह का सुलतान -- पुण्य स्मरण शिव कुमार बटालवी

24 जुलाई 2018

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पंजाब का शाब्दिक अर्थ पांच नदियों की धरती है | नदियों के किनारे अनेक सभ्यताएं पनपतीहैं और संस्कृतियाँ पोषित होती हैं | मानव सभ्यता अपने सबसे वैभवशाली रूप में इन तटों पर ही नजर आती है क्योकि ये जल धाराएँ अनेक तरह से मानव को उपकृत कर मानव जीवन को धन - धान्य से भरती हैं | |पंजाब को भी खुशहाल बनाने में इन नदियों का बहुत बड़ा हाथ है |इन नदियों से गीत भी जन्मते हैं कभी ख़ुशी के तो कभी विरह के


नदियाँ स्वतः गीत नहीं गाती | उनके गीत कवि रचते हैं जिनमे जीवन केअनेक रंग परिलक्षित होते हैं |

पंजाब की धरती को विशेष रूप से उल्लास की धरती माना जाता है | इसके लोग सदैव से ही गीत और संगीत के रसिया रहे है |काल कोई भी हो और हालात जैसे भी हों यहाँ गीत -संगीत का जादू हमेशा ही लोगों के सर चढ़कर बोला है | वारिस शाह , फरीद और बुल्लेशाह जैसे सूफी कवियों से लेकर सिख धर्म के दस गुरुओं की वाणी गीत और शब्द रूप में इस धरा पर गूंजी है | अपने अध्यात्मिकता के संदेश को उसी माध्यम से लोगों के बीच लोकप्रिय बनाया और नये नैतिक मूल्यों की स्थापना की |वारिस शाह से लेकर आज के आधुनिक कवियों ने पंजाबी सभ्याचार की परम्परा को चिरंतन रखते हुए जनमानस में अपना अहम स्थान बनाया है |इसी क्रम में आधुनिक पंजाबी साहित्य में जिस कवि को पंजाबी साहित्य में सर्वोच्च स्थान मिला है , उनका नाम है --शिवकुमार बटालवी | शिव को वारिस शाह के बाद ये स्थान दिया गया | वे पंजाब के अकेले ऐसे कवि रहे , जिनके गीत लोक गीतों की तरह लोकप्रिय और अमर हुए और जिनके गीत गाना हर गायक अपना सौभाग्य समझता था | उन्होंने अपने समय में अपार ख्याति तो पाई ही अपनी मौत के लगभग पैंतालिस सालों के बाद भी उनकी लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई , | उनके काव्य पर शोध करने वाले छात्रों की संख्या कभी कम नहीं रही और ना ही उनके काव्य में कभी काव्य रसिकों की रूचि कम हुई | उनकी दर्द भरी रूहानी शायरी ने उन्हें लोगों का महबूब शायर बना दिया |भारतवर्ष के सबसे ज्यादा विवादस्पद कवियों में भी उनका नाम शुमार किया जाता है | पर इन सबके बावजूद कवि -समाज द्वारा उन्हें उन्हें पंजाबी के 'कीट्स 'की उपाधि दी गयी क्योंकि कीट्स की तरह ही उन्होंने अपने काव्य में ' रोमांटिसिज्म'को उत्कर्ष तक पहुंचाया- तो उनकी तरह ही अल्पायु में मौत पायी | पर उनकी कविताओं में रोमांटिसिज्म का मूल स्वर वेदना का है . विरह का है | वे आजीवन प्रेम की तलाश भटकते एक ऐसे शायर थे जिन्होंने ना किसी छंद में में बंध लिखा ना किसी रस्मो -रिवायत को मान लिखा उन्होंने कविता के क्षेत्र में व्याप्त मिथकों को दरकिनार कर जिन नये बिम्बों और प्रतीकों का विधान किया उन्हें कोई कवि आज तक दुहरा नही पाया है |

उन्होंने' स्वछंद 'लिखा , स्वछंद ही गाया और स्वछ्न्द ही जीवन जिया ,जिसके लिए अनेक आलोचनाओं के प्रहार सहते हुए वे प्रसिद्धि के ऐसे चरम पर बैठ गये जहाँ से आज तक भी उन्हें कोई उतार नहीं पाया है |उनके लिखे काव्य की कोई पुनरावृति नहीं कर पाया और ये हो भी नहीं सकती क्योकि शिव ने जीवन में पग -- पग पर दर्द का गरल निगला और अमर काव्य रचा |उनके आरे में अनेक तरह की कहानियां कही और सुनी जाती है | सच तो ये है कि उनका जीवन एक किवदन्ती सरीखा हो गया है | क्योकि उनका जन्म अविभाजित हिदुस्तान में हुआ था सो वे सीमा पार पाकिस्तान में भी समान रूप से लोकप्रिय हुए | शायद वह ऐसा दौर था जब दोनों देशों के नये- ताजे बंटवारे के बावजूद , दोनों तरफ सांस्कृतिक सांझी विरासत की आत्मीयता बरकरार थी और राजनैतिक कलुषता ने इस आत्मीयता को आच्छादित नहीं किया था |तभी वहां के अत्यंत नामी -गिरामी गायकों जैसे नुसरत फतेह अली खान और इनायत अली इत्यादि ने उनकी रचनाओं को बहुत ही मधुरता से गाकर अमरत्व प्रदान किया |



-- शिवकुमार का जन्म 23 जुलाई 1936 को गाँव बड़ा पिंड लोहटिया शकरगढ़ तहसील में हुआ | अब ये जगह पकिस्तान में है |वहां उनके पिताजी तहसीलदार थे जबकि माता जी गृहिणी थी | बंटवारे के समय उनकी आयु मात्र ग्यारह साल की थी | इस छोटी सी उम्र वे मन में अनेक जिज्ञासाएं मन में लिए माता - पिता और परिवार के साथ पंजाब के गुरदासपुर के बटाला कस्बे में आगये और अपना जीवन का नया सफर शुरू किया |इसी कस्बे के नाम पर वे शिव कुमार बटालवी के नाम से प्रसिद्ध हुए |

पढाई के दौरान वे एक औसत विद्यार्थी रहे और कई बार पढाई बीच में छोड़ कर अपनी अस्थिर स्वभाव का परिचय दिया | वे अपने अन्तर्मुखी स्वभाव के कारण माता पिता के लिए चिंता का कारण रहे

वे कला विषय से बी ए करने लगे तो बाद में इंजिनियरिंग के डिप्लोमा के लिए हिमाचल के बैजनाथ चले गये तो उसके बाद पंजाब के नाभा से स्नातक की डिग्री लेने के लिए वहां के सरकारी कालेज में दाखिला ले लिया

| जहाँ मिलनसार स्वभाव और कविता के शौक ने उन्हें अपनी मित्र- मण्डली का चहेता बना दिया | 1960में उनका पहला कविता संग्रह '' पीडां दा परागा ''प्रकाशित हुआ उससे पहले ही कवि दरवारों और कवि सम्मेलनों की शान और जान बन चुके थे |कहते हैं दिग्गज कवि आयोजको से शिव कुमार की प्रस्तुती सबसे बाद में देने का आग्रह करते थे क्योकि शिव को सुनने के बाद मंच पर सन्नाटे प्याप्त हो जाते थे | उनकी जोरदार प्रस्तुतियों के बाद लोग अन्य कवियों को सुनना पसंद नहीं करते थे |


व्यक्तित्व ---शिव कुमार पर कविता के विषय में तो माँ सरस्वती की असीम अनुकम्पा थी ही उनके व्यक्तित्व में एक जादुई आकर्षण था | अत्यंत दर्शनीय और आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी शिव को सूरत और सीरत दोनों के अनूठे मेल ने काव्य रसिकों के सभी वर्गों में अत्यंत लोकप्रिय बना दिया था पर महिला वर्ग उनका खास तौर पर दीवाना था | यहाँ तक भी कहा जाता था कि भले ही सभी साहित्यकार उनकी प्रतिभा का लोहा मानते थे पर उन्हें अपने घर -परिवार से दूर ही रखने का प्रयास करते थे ताकि घर की महिलाएं उनके चुम्बकीय व्यक्तित्व से प्रभावित ना हो सके |पंजाब में ही नहीं पंजाब से बाहर रह रहे पंजाबियों ने उन्हें सदैव ही सर माथे पर बिठा कर रखा और उनके रचे गीतों और कविताओं को विदेश में भी लोकप्रिय बनाया | विदेश में आज भी पंजाबी लोग उनके जन्मदिन 23 जुलाई को ''बटालवी दिवस' के रूप में मनाते हैं इससे बढ़कर उनके प्रशंसकों का प्रेम क्या होगा ?


जीवन --- जीवन -पर्यंत शिव का जीवन अनेक उतार - चढ़ावों से गुजरा |उन्हें जीवन में कई बार प्रेम हुआ, पर वे उस प्यार को कभी अपने जीवन में अपना ना सके | उसके पीछे नियति तो कभी उनका अस्त - व्यस्त व्यक्तित्व रहा | कहते हैं सबसे पहले जिन दिनों वे माचल के बैजनाथ में पढ़ रहे थे उन्हें मीना नाम की अत्यंत सुंदर ,सुशील लडकी से प्रेम हो गया | पर बाद में जब वे उसे अपनाने के लिए उसके घर पहुंचे तब तक बुखार से उसकी मौत हो चुकी थी | उन्होंने मीना की याद में कई अमर गीत लिखे | कॉलेज में पढ़ते हुए उन्हें एक वरिष्ठ कवि की बेटी से प्रेम हो गया जो उनके जीवन में अंतहीन विरह का उपहार लेकर आया | पर उन दिनों वे एक आम कवि की हैसियत रखते थे सो वरिष्ठ कवि ने अपनी बेटी के भविष्य को सुरक्षित कर उसकी शादी विदेश में रह रहे एक सफल और अमीर लडके से कर दी | बाद में उन्होंने भी अपनी प्रेमिका की शक्ल से मिलती जुलती लडकी से शादी भी की और उनके दो बच्चे भी हुए पर उनके मन को किसी तरह भी रूहानी चैन कभी नहीं आ पाया | उनके पिता उन्हें कामयाब देखना चाहते थे अतः पिता की मर्जी के अनुसार उन्होंने कुछ समय तक पटवारी के रूप में भी काम किया पर बाद में वे स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया चंडीगढ़ में जन सम्पर्क अधिकारी के बने पर उनकी रूचि साहित्य में ही रही |और प्रेम की असफलता की कसक हमेशा उनके साथ रही |प्रेम की असफलता में टूट - बिखर कर शिव ने अनेक अमर प्रेम गीत रचे पर इसके साथ उन्होंने शराब को भी सदा के लिए गले लगा लिया | हितैषियों और परिवार के समझाने का उनपर कोई असर ना हुआ | बाद में हालत ये हो गई कि लोग उनसे अच्छे गीत -ग़ज़लें सुनने के लिय उन्हें अपनी तरफ से पिलाने का इंतजाम करने लगे |कहते हैं अत्यंत नशे की हालत में वे अपने आप से बेखबर आत्म- मुग्धता में सर्वोत्तम काव्य रचने लगे | कई बार वे बेखबर हो दीवार पर गीत - गजल लिख देते और बाद में उनका भाई उन रचनाओं को कागज पर लिख लेता |कविता उनके होठों से निर्झर की तरह बहती वे किसी भी विषय पर रचना रचने में माहिर थे | अनेक ऐसे विषयों पर उन्होंने कवितायेँ लिखी जिन पर कोई सोच भी नहीं सकता था | उनके गए गीत लोक गीत बन गये | लोग रचियता को नहीं जानते थे पर गली- गली उनके गीत मशहूर हो रहे थे | आज भी रेडियो पर उनके गीतों को सुनने के लिए श्रोताओं की फरमाइश में कोई कमी नहीं आई है और ये सदैव की तरह ही सुनने वालों के मनमे बसे हुए हैं |

रचना संसार और सम्मान --- शिव कुमार के रचना संसार में उनके मन की विभिन्न दशाएं तो मुखरित होती ही हैं साथ में उनके दृष्टिकोण का भी पता चलता है |उन्होंने यूँ तो हर विषय पर लिखा पर प्रेम उनकी कविताओं का प्रमुख विषय रहा उसमें भी प्रेम की असफलता और विरह प्रमुखता से मुखर हुई उनकी प्रमुख प्रकाशित रचना संग्रह के नाम इस तरह हैं --

पीडांदा परागा अर्थात दर्द का दुपट्टा , मुझे विदा करो , आरती , लाजवंती आटे की चिड़िया , लूणा, ममें और मैं , शोक , अलविदा और बाद में अमृता प्रीतम द्वारा चयनित उनकी प्रमुख रचनाओं का संग्रह '' विरह का सुलतान ' है | कहते हैं उनके रचना संसार में बहते दर्द के अविरल भावों से भावुक हो अमृता प्रीतम ने ही उन्हें विरह का सुलतान कहकर पुकारा था जिस से उनका तात्पर्य था कि वे दर्द को बहादुरी से जीने वाले बादशाहसरीखे थे | इन रचनाओं में उन्हें लोक कथा पूरण भगत के स्त्री - चरित्र ''लूणा'' पर--- जो कि एक काव्य नाटक था ---1967 का पंजाबी साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला

उस समय मात्र 27 साल की उम्र में , वे इसे पाने वाले सबसे कम उम्र के कवि थे | कहते हैं एक पुरुष होकर उन्होंने 'लूणा '' की अंतर्वेदना का बेजोड़ शब्दांकन किया था | इसमें हिमाचल के चम्बा शहर और रावी नदी खूबसूरती का बहुत ही अच्छा वर्णन है

उनकी अन्य रचनाओं में जीवन के विभिन्न रंगों के कुछ उदाहरण --


अपनी रचना - गमां दी रात अर्थात गमों की रात में वे लिखते हैं -

ये ग़मों की रात लम्बी है या मेरे गीत लम्बे हैं -

ना ये मनहूस रात खत्म होती ना मेरे गीत खत्म होते

ये जख्म हैं इश्क

के यारो -इनकी क्या दवा होवे -

ये हाथ लगाये भी दुखते हैं मलहम लगाये भी दुःख जाते !!!!!


एक दूसरी रचना पंछी हो जाऊं में उन्होंने लिखा -

जी चाहे पंछी हो जाऊं -

उड़ता जाऊं - गाता जाऊं

अनछुए शिखरों को छू पाऊँ

इस दुनिया की राह भूलकर -

फिर कभी वापस ना आऊँ

बे दर - बेघर होकर-

सारीउम्र पीऊँ रस गम का

इसी नशे में जीवन जीकर -

जी चाहे पंछी हो जाऊं !!!!!

उनकी अत्यंत प्रसिद्ध प्रतीकात्मक मार्मिक रचना शिकरा यार में उनका दर्द यूँ छलका -


माये नी माये मैं एक शिकरा [ उड़ने वाला पक्षी] यार बनाया

उसके सर पे कलगी

उसके पैरों में झांझर

वो तो चुग्गा चुगता आया

इक उसके रूप की धूप तीखी

दूजा उसकी महक ने लुभाया --

तीजा उसका रंग गुलाबी

वो किसी गोरी माँ का जाया |

इश्क का एक पंलग निवारी

हमने चांदनी में बिछाया

तन की चादर हो गयी मैली

उसने पैर ना पलंग पाया -

दुखते हैं मेरे नैनों के कोए

सैलाब आँसूओं का आया

सारी रात सोचों में गई

उसने ये क्या जुल्म कमाया ?

सुबह सवेरे ले उबटन -

हमने मल -मल उसे नहलाया -

देहि से निकले चिंगारें

हाथ गया हमारा कुम्हलाया

चूरी कुटुं तो वो खाता नहीं -

हमने दिल का मांस खिलाया |

एक उडारी ऐसी मारी

वो मुड वतन ना आया !!!!!!!!!!!!!!

अपने खोये प्यार की याद में उनका अमर गीत -


एक लडकी जिसका नाम मुहब्बत है -

गुम है , गुम है ,गुम है !!

-एक बेहद मकबूल गजल देखिये ---

मुझे तेरा शबाब ले बैठा -

रंग गोरा गुलाब ले बैठा

कितनी पी ली , कितनी बाकी है -

मुझे यही हिसाब ले बैठा ,

अच्छा होता सवाल ना करता -

मुझे तेरा जवाब ले बैठा ,

फुर्सत जब भी मिली है कामों से

तेरे मुख की किताब ले बैठा .

मुझे जब भी आप हो याद आये -

दिन दिहाड़े शराब ले बैठा !!!!!!!!


अपने एकअत्यंत लोक प्रिय गीत में वे लिखते हैं ---

माये ना माये मेरी प्रीत के नैनों में -विरह की रडक पड़ती है

सारी - सारी रात मोये मित्रों के लिए रोते हैं माँ हमें नींद नहीं आती है

सुगंध में भिगो भिगो कर बांधूंफाहे चांदनी के -

तो भी हमारी पीड नहीं जाती

गर्म गर्म सांसों करूं जो टकोर माँ

पर वो भी हमे खानें को पड़ती है !!!!!!

उन की बहुत ही लोकप्रिय रचना '' पीडां दा परागा '' का भावार्थ कुछ यूँ है ---

ओ भट्ठीवाली तू पीड का परागा भून दे

मैं तुझे दूंगा आसूंओं का भाडा !!!!!!


इसके अलावा उनके लिखे अनेक हल्के फुल्के लोक गीत भी हैं जिन्हें शादी ब्याह में गाया जाता है | उनके गीतों को जगजीत सिंह , महेंद्र कपूर , सुरेन्द्र कौर , प्रकाश कौर ,, आसा सिंह मस्ताना जैसे प्रसिद्ध गायकों ने अपनी सुरीली आवाज देकर उनकी मधुरता को बढाया और जन - जन तक पहुंचाया |


निधन -- उनकी कविताओं में कई बार जीवन के प्रति अनासक्ति का भाव मिलता है | '' वे अपनी रचनाओं में बार बार यौवन में मरने की इच्छा जाहिर करते हैं क्योकि उन्हें विश्वास था कि युवावस्था में मरने वाले को भगवान फूल या तारा बनाता है और वह लोगों की स्मृतियों में हमेशा युवा ही रहता है | शायद इसी लिए उन्होंने
अपने एक गीत में लिखा ''किहमने तो जोबन रुत में मर जाना है ''और उनकी यही इच्छा शायद ईश्वर को भी मंजूर हो गयी | नशे की भयंकर लत से उन्हें लीवर सिरोसिस नामक रोग हो गया जिससे उनकी हालत इतनी खराब हो गई कि वे मतिभ्रम का शिकार हो अपने अन्तरंग साथियों को भी पहचान नहीं पाते थे | इसी असाध्य रोग से जूझते उन्होंने अपने ससुर के घर में 6 मई 1973 को अंतिम साँस ली | इसके साथ ही बहुत छोटी उम्र में मरने का उनकी चाह फलीभूत हुई तो पंजाबी साहित्य का एक चमकता सूरज अस्त हो गया | पर अपनी मर्मस्पर्शी रचनाओं के माध्यम से वे हमेशा अपने चाहने वालों के मनों में बसते हैं |

उनकी पुण्य स्मृति को शत-शत नमन !!!!!!!

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पाठकों के लिए विशेष -- शिव कुमार बटालवी का अत्यंत प्रसिद्ध वीडियो जिसमे उनके सुदर्शन व्यक्तित्व के दर्शन तो होते ही हैं साथ में उनकी ओज से भरी वाणी में उनका प्रसिद्ध गीत --

''क्या पूछते हो हाल फकीरों का ? हम नदियों से बिछड़े नीरों का ?

हम आसूं की जून में आयों का हम दिलजले दिलगीरों का

हमें लाखों का तन मिल गया -पर एक भी मन ना मिला -

क्या लिखा किसी ने मुकद्दर था -- हाथों की चंद लकीरों का !!!!!!!''


भी सुन सकते हैं | उनकी मासूमियत से भरी बातों और उनमे व्याप्त सरलता के तो क्या कहने !!!!! उनकी मौत से कुछ ही समय पहले लिया गया ये इंटरव्यू हिंदी में हैऔर इसे बीबीसी द्वारा लिया गया था जो कि आंचलिक भाषा के एक कवि के लिए उन दिनों अत्यंत गौरव का विषय था | सादर --



मिलान मंडल

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1 जुलाई 2021

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समाज के अनसुने मर्मान्तक स्वर ----------------पुस्तक समीक्षा- चीख़ती आवाजें - कवि ध्रुव सिंह ' एकलव्य '---

29 नवम्बर 2018

1
1
19

कल सपने में ---- नव गीत

4 मार्च 2017

11
8
20

तुम मिले कोहिनूर से

5 मई 2019

6
7
21

माँ अब समझी हूँ प्यार तुम्हारा ------ कविता

13 मई 2017

12
12
22

फिर चोट खाई दिल ने --कविता

7 दिसम्बर 2017

7
12
23

चाँद फागुन का -- नवगीत

12 मार्च 2017

17
12
24

बसंत बहार से तुम------ कविता --

20 जनवरी 2018

6
3
25

गीतिका --

28 मई 2017

11
13
26

मन प्रश्न कर रहे ------- कविता

25 फरवरी 2018

3
2
27

इन्द्रधनुष कविता --

8 फरवरी 2018

2
2
28

श्री गुरुवै नमः -------- गुरु पूर्णिमा पर विशेष-

9 जुलाई 2017

12
9
29

दो परियां ये आसमान की ---- कविता --

22 मार्च 2018

8
4
30

हिमालय - वंदन ----------- - कविता

1 अप्रैल 2017

10
6
31

साहित्य के गुरुदेव -- रवीन्द्रनाथटैगोर --- लेख

7 मई 2018

2
2
32

तुम्हारे दूर जाने से साथी --- कविता --

27 जुलाई 2017

7
6
33

उतराखंड त्रासदी ---- हिमालय का आक्रांत स्वर -----लेख --

16 जून 2018

1
0
34

अलमस्त बचपन -- कविता

25 फरवरी 2017

19
16
35

विरह का सुलतान -- पुण्य स्मरण शिव कुमार बटालवी

24 जुलाई 2018

9
16
36

सूर के श्याम ------- जन्माष्टमी पर विशेष ---

14 अगस्त 2017

5
3
37

अन्तरिक्ष परी - कल्पना चावला

30 अगस्त 2018

6
5
38

श्रमिक दिवस ------ श्रम का उपासना पर्व ---

30 अप्रैल 2017

8
2
39

भूली बिसरी पाती स्नेह भरी --[ विश्व डाक दिवस ]

9 अक्टूबर 2018

6
5
40

राह तुम्हारी तकते - तकते ---------- कविता --

16 सितम्बर 2017

7
7
41

चाँद हंसिया रे !

2 फरवरी 2019

6
5
42

जी , टी . रोड पर अँधेरी रात का सफ़र ---

10 फरवरी 2017

6
2
43

फूल ! तुम खिलते रहना !

26 मार्च 2019

3
2
44

आँगन में खेल रहे बच्चे ---------- बाल कविता ---

8 नवम्बर 2017

14
11
45

याद तुम्हारी -- नवगीत

1 जून 2019

7
4
46

होली गीतों की भूली बिसरी परम्परा

9 मार्च 2017

15
6
47

जीवा----- कहानी --

30 नवम्बर 2017

6
9
48

सुनो -- मनमीत ---------नवगीत -

17 मई 2017

11
6
49

समय साक्षी रहना तुम -- कविता --

27 दिसम्बर 2017

4
3
50

तुम्हारी चाहत --- कविता

12 फरवरी 2017

22
13
51

शब्द नगरी पर एक साल -- लेख |

12 जनवरी 2018

11
9
52

पेड़ ने पूछा चिड़िया से --- कविता

23 मई 2017

12
16
53

ऋतुराज आया है -- निबंध --

22 जनवरी 2018

4
1
54

कहीं मत जाना तुम -- कविता

19 मार्च 2017

17
21
55

चाँद साक्षी आज की रात

30 जनवरी 2018

16
10
56

ये रुदन है हिमालय का ------------- कविता --

16 जून 2017

6
6
57

खलल मत डालना इनमे------ कविता --

18 फरवरी 2018

5
7
58

नदिया तुम नारी सी --- कविता -

10 फरवरी 2018

10
7
59

सुनो बादल ! --- कविता - --

30 जून 2017

14
17
60

बसंत गान ------

27 फरवरी 2018

2
3
61

आई तुम्हारी याद -- कविता

28 मार्च 2017

18
7
62

पुस्तक समीक्षा --------- मन कितना वीतरागी --लेखक -- पंकज त्रिवेदी जी --

12 मार्च 2018

3
0
63

गाँव में कोई फिर लौटा है -- नवगीत --

13 जुलाई 2017

8
10
64

जिस पहर से----- कविता --

31 मार्च 2018

4
15
65

तुम्हारा मौन

16 फरवरी 2017

15
6
66

बुद्ध की यशोधरा -- कविता |

21 अप्रैल 2018

3
0
67

मेरे गाँव ------------ कविता --

24 जुलाई 2017

5
4
68

गंगा रे तू बहती रहना -लेख --

23 मई 2018

4
4
69

तुलसी के राम

6 अप्रैल 2017

14
5
70

रूहानी प्यार ----- कविता -------------

3 जून 2018

3
2
71

गा रे जोगी ! -------- कबिता |

31 जुलाई 2017

7
4
72

संत कबीर लेख ---------- कबीर जयंती पर विशेष

27 जून 2018

3
3
73

करनाल में पतंगबाजी का बसंत

30 जनवरी 2017

7
1
74

जो ये श्वेत,आवारा , बादल -कविता

5 जुलाई 2018

5
2
75

अपराजिता ---------------------- कहानी --

10 अगस्त 2017

9
9
76

सावन की सुहानी यादें -- लेख -

12 अगस्त 2018

2
1
77

सांस्कृतिक चेतना का पर्व -- बैशाखी

14 अप्रैल 2017

9
4
78

भैया तुम हो अनमोल !

25 अगस्त 2018

9
4
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बीते दिन लौट रहे हैं --------- नवगीत --

27 अगस्त 2017

7
7
80

तुम्हे समर्पित सब गीत मेरे -- कविता

9 सितम्बर 2018

5
5
81

तुम्हारी आँखों से --

26 फरवरी 2017

11
10
82

नेह तुलिका --

6 अक्टूबर 2018

3
1
83

मेरी वे अंग्रेजी शिक्षिका-- संस्मरण -----

4 सितम्बर 2017

7
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84

उलझन -- लघु कविता

14 अक्टूबर 2018

2
1
85

मैं श्रमिक --- कविता --

30 अप्रैल 2017

13
9
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सुन ! ओ वेदना-- कविता --

13 दिसम्बर 2018

5
8
87

माँ ज्यों ही गाँव के करीब आने लगी है --------- कविता |

2 अक्टूबर 2017

6
4
88

लौटा माटी का लाल

16 फरवरी 2019

4
1
89

सूर्य उपासना - का पर्व ---- मकर संक्राति

13 जनवरी 2017

7
3
90

उस फागुन की होली में

9 मार्च 2019

5
2
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एक दीप तुम्हारे नाम का ------- नवगीत --

17 अक्टूबर 2017

8
13
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कौन दिखे ये अल्हड किशोरी सी

6 अप्रैल 2019

5
5
93

प्रेम और करुणा के बुद्ध

9 मई 2017

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5
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सुनो जोगी !------- कविता -

17 नवम्बर 2017

4
7
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लोहड़ी --------- उल्लास का पर्व

12 जनवरी 2017

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बासंती लड़की

30 जनवरी 2017

7
2
97

फागुन में उस साल

13 फरवरी 2017

24
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98

गंगा -- यमुना कब ना थी ज़िंदा इकाई ?

23 मार्च 2017

4
5
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स्मृति शेष -- पिता जी

17 जून 2017

15
14
100

शिव -वंदना -----------

13 फरवरी 2018

3
1