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विरह का सुलतान -- पुण्य स्मरण शिव कुमार बटालवी

24 जुलाई 2018

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पंजाब का शाब्दिक अर्थ पांच नदियों की धरती है | नदियों के किनारे अनेक सभ्यताएं पनपतीहैं और संस्कृतियाँ पोषित होती हैं | मानव सभ्यता अपने सबसे वैभवशाली रूप में इन तटों पर ही नजर आती है क्योकि ये जल धाराएँ अनेक तरह से मानव को उपकृत कर मानव जीवन को धन - धान्य से भरती हैं | |पंजाब को भी खुशहाल बनाने में इन नदियों का बहुत बड़ा हाथ है |इन नदियों से गीत भी जन्मते हैं कभी ख़ुशी के तो कभी विरह के


नदियाँ स्वतः गीत नहीं गाती | उनके गीत कवि रचते हैं जिनमे जीवन केअनेक रंग परिलक्षित होते हैं |

पंजाब की धरती को विशेष रूप से उल्लास की धरती माना जाता है | इसके लोग सदैव से ही गीत और संगीत के रसिया रहे है |काल कोई भी हो और हालात जैसे भी हों यहाँ गीत -संगीत का जादू हमेशा ही लोगों के सर चढ़कर बोला है | वारिस शाह , फरीद और बुल्लेशाह जैसे सूफी कवियों से लेकर सिख धर्म के दस गुरुओं की वाणी गीत और शब्द रूप में इस धरा पर गूंजी है | अपने अध्यात्मिकता के संदेश को उसी माध्यम से लोगों के बीच लोकप्रिय बनाया और नये नैतिक मूल्यों की स्थापना की |वारिस शाह से लेकर आज के आधुनिक कवियों ने पंजाबी सभ्याचार की परम्परा को चिरंतन रखते हुए जनमानस में अपना अहम स्थान बनाया है |इसी क्रम में आधुनिक पंजाबी साहित्य में जिस कवि को पंजाबी साहित्य में सर्वोच्च स्थान मिला है , उनका नाम है --शिवकुमार बटालवी | शिव को वारिस शाह के बाद ये स्थान दिया गया | वे पंजाब के अकेले ऐसे कवि रहे , जिनके गीत लोक गीतों की तरह लोकप्रिय और अमर हुए और जिनके गीत गाना हर गायक अपना सौभाग्य समझता था | उन्होंने अपने समय में अपार ख्याति तो पाई ही अपनी मौत के लगभग पैंतालिस सालों के बाद भी उनकी लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई , | उनके काव्य पर शोध करने वाले छात्रों की संख्या कभी कम नहीं रही और ना ही उनके काव्य में कभी काव्य रसिकों की रूचि कम हुई | उनकी दर्द भरी रूहानी शायरी ने उन्हें लोगों का महबूब शायर बना दिया |भारतवर्ष के सबसे ज्यादा विवादस्पद कवियों में भी उनका नाम शुमार किया जाता है | पर इन सबके बावजूद कवि -समाज द्वारा उन्हें उन्हें पंजाबी के 'कीट्स 'की उपाधि दी गयी क्योंकि कीट्स की तरह ही उन्होंने अपने काव्य में ' रोमांटिसिज्म'को उत्कर्ष तक पहुंचाया- तो उनकी तरह ही अल्पायु में मौत पायी | पर उनकी कविताओं में रोमांटिसिज्म का मूल स्वर वेदना का है . विरह का है | वे आजीवन प्रेम की तलाश भटकते एक ऐसे शायर थे जिन्होंने ना किसी छंद में में बंध लिखा ना किसी रस्मो -रिवायत को मान लिखा उन्होंने कविता के क्षेत्र में व्याप्त मिथकों को दरकिनार कर जिन नये बिम्बों और प्रतीकों का विधान किया उन्हें कोई कवि आज तक दुहरा नही पाया है |

उन्होंने' स्वछंद 'लिखा , स्वछंद ही गाया और स्वछ्न्द ही जीवन जिया ,जिसके लिए अनेक आलोचनाओं के प्रहार सहते हुए वे प्रसिद्धि के ऐसे चरम पर बैठ गये जहाँ से आज तक भी उन्हें कोई उतार नहीं पाया है |उनके लिखे काव्य की कोई पुनरावृति नहीं कर पाया और ये हो भी नहीं सकती क्योकि शिव ने जीवन में पग -- पग पर दर्द का गरल निगला और अमर काव्य रचा |उनके आरे में अनेक तरह की कहानियां कही और सुनी जाती है | सच तो ये है कि उनका जीवन एक किवदन्ती सरीखा हो गया है | क्योकि उनका जन्म अविभाजित हिदुस्तान में हुआ था सो वे सीमा पार पाकिस्तान में भी समान रूप से लोकप्रिय हुए | शायद वह ऐसा दौर था जब दोनों देशों के नये- ताजे बंटवारे के बावजूद , दोनों तरफ सांस्कृतिक सांझी विरासत की आत्मीयता बरकरार थी और राजनैतिक कलुषता ने इस आत्मीयता को आच्छादित नहीं किया था |तभी वहां के अत्यंत नामी -गिरामी गायकों जैसे नुसरत फतेह अली खान और इनायत अली इत्यादि ने उनकी रचनाओं को बहुत ही मधुरता से गाकर अमरत्व प्रदान किया |



-- शिवकुमार का जन्म 23 जुलाई 1936 को गाँव बड़ा पिंड लोहटिया शकरगढ़ तहसील में हुआ | अब ये जगह पकिस्तान में है |वहां उनके पिताजी तहसीलदार थे जबकि माता जी गृहिणी थी | बंटवारे के समय उनकी आयु मात्र ग्यारह साल की थी | इस छोटी सी उम्र वे मन में अनेक जिज्ञासाएं मन में लिए माता - पिता और परिवार के साथ पंजाब के गुरदासपुर के बटाला कस्बे में आगये और अपना जीवन का नया सफर शुरू किया |इसी कस्बे के नाम पर वे शिव कुमार बटालवी के नाम से प्रसिद्ध हुए |

पढाई के दौरान वे एक औसत विद्यार्थी रहे और कई बार पढाई बीच में छोड़ कर अपनी अस्थिर स्वभाव का परिचय दिया | वे अपने अन्तर्मुखी स्वभाव के कारण माता पिता के लिए चिंता का कारण रहे

वे कला विषय से बी ए करने लगे तो बाद में इंजिनियरिंग के डिप्लोमा के लिए हिमाचल के बैजनाथ चले गये तो उसके बाद पंजाब के नाभा से स्नातक की डिग्री लेने के लिए वहां के सरकारी कालेज में दाखिला ले लिया

| जहाँ मिलनसार स्वभाव और कविता के शौक ने उन्हें अपनी मित्र- मण्डली का चहेता बना दिया | 1960में उनका पहला कविता संग्रह '' पीडां दा परागा ''प्रकाशित हुआ उससे पहले ही कवि दरवारों और कवि सम्मेलनों की शान और जान बन चुके थे |कहते हैं दिग्गज कवि आयोजको से शिव कुमार की प्रस्तुती सबसे बाद में देने का आग्रह करते थे क्योकि शिव को सुनने के बाद मंच पर सन्नाटे प्याप्त हो जाते थे | उनकी जोरदार प्रस्तुतियों के बाद लोग अन्य कवियों को सुनना पसंद नहीं करते थे |


व्यक्तित्व ---शिव कुमार पर कविता के विषय में तो माँ सरस्वती की असीम अनुकम्पा थी ही उनके व्यक्तित्व में एक जादुई आकर्षण था | अत्यंत दर्शनीय और आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी शिव को सूरत और सीरत दोनों के अनूठे मेल ने काव्य रसिकों के सभी वर्गों में अत्यंत लोकप्रिय बना दिया था पर महिला वर्ग उनका खास तौर पर दीवाना था | यहाँ तक भी कहा जाता था कि भले ही सभी साहित्यकार उनकी प्रतिभा का लोहा मानते थे पर उन्हें अपने घर -परिवार से दूर ही रखने का प्रयास करते थे ताकि घर की महिलाएं उनके चुम्बकीय व्यक्तित्व से प्रभावित ना हो सके |पंजाब में ही नहीं पंजाब से बाहर रह रहे पंजाबियों ने उन्हें सदैव ही सर माथे पर बिठा कर रखा और उनके रचे गीतों और कविताओं को विदेश में भी लोकप्रिय बनाया | विदेश में आज भी पंजाबी लोग उनके जन्मदिन 23 जुलाई को ''बटालवी दिवस' के रूप में मनाते हैं इससे बढ़कर उनके प्रशंसकों का प्रेम क्या होगा ?


जीवन --- जीवन -पर्यंत शिव का जीवन अनेक उतार - चढ़ावों से गुजरा |उन्हें जीवन में कई बार प्रेम हुआ, पर वे उस प्यार को कभी अपने जीवन में अपना ना सके | उसके पीछे नियति तो कभी उनका अस्त - व्यस्त व्यक्तित्व रहा | कहते हैं सबसे पहले जिन दिनों वे माचल के बैजनाथ में पढ़ रहे थे उन्हें मीना नाम की अत्यंत सुंदर ,सुशील लडकी से प्रेम हो गया | पर बाद में जब वे उसे अपनाने के लिए उसके घर पहुंचे तब तक बुखार से उसकी मौत हो चुकी थी | उन्होंने मीना की याद में कई अमर गीत लिखे | कॉलेज में पढ़ते हुए उन्हें एक वरिष्ठ कवि की बेटी से प्रेम हो गया जो उनके जीवन में अंतहीन विरह का उपहार लेकर आया | पर उन दिनों वे एक आम कवि की हैसियत रखते थे सो वरिष्ठ कवि ने अपनी बेटी के भविष्य को सुरक्षित कर उसकी शादी विदेश में रह रहे एक सफल और अमीर लडके से कर दी | बाद में उन्होंने भी अपनी प्रेमिका की शक्ल से मिलती जुलती लडकी से शादी भी की और उनके दो बच्चे भी हुए पर उनके मन को किसी तरह भी रूहानी चैन कभी नहीं आ पाया | उनके पिता उन्हें कामयाब देखना चाहते थे अतः पिता की मर्जी के अनुसार उन्होंने कुछ समय तक पटवारी के रूप में भी काम किया पर बाद में वे स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया चंडीगढ़ में जन सम्पर्क अधिकारी के बने पर उनकी रूचि साहित्य में ही रही |और प्रेम की असफलता की कसक हमेशा उनके साथ रही |प्रेम की असफलता में टूट - बिखर कर शिव ने अनेक अमर प्रेम गीत रचे पर इसके साथ उन्होंने शराब को भी सदा के लिए गले लगा लिया | हितैषियों और परिवार के समझाने का उनपर कोई असर ना हुआ | बाद में हालत ये हो गई कि लोग उनसे अच्छे गीत -ग़ज़लें सुनने के लिय उन्हें अपनी तरफ से पिलाने का इंतजाम करने लगे |कहते हैं अत्यंत नशे की हालत में वे अपने आप से बेखबर आत्म- मुग्धता में सर्वोत्तम काव्य रचने लगे | कई बार वे बेखबर हो दीवार पर गीत - गजल लिख देते और बाद में उनका भाई उन रचनाओं को कागज पर लिख लेता |कविता उनके होठों से निर्झर की तरह बहती वे किसी भी विषय पर रचना रचने में माहिर थे | अनेक ऐसे विषयों पर उन्होंने कवितायेँ लिखी जिन पर कोई सोच भी नहीं सकता था | उनके गए गीत लोक गीत बन गये | लोग रचियता को नहीं जानते थे पर गली- गली उनके गीत मशहूर हो रहे थे | आज भी रेडियो पर उनके गीतों को सुनने के लिए श्रोताओं की फरमाइश में कोई कमी नहीं आई है और ये सदैव की तरह ही सुनने वालों के मनमे बसे हुए हैं |

रचना संसार और सम्मान --- शिव कुमार के रचना संसार में उनके मन की विभिन्न दशाएं तो मुखरित होती ही हैं साथ में उनके दृष्टिकोण का भी पता चलता है |उन्होंने यूँ तो हर विषय पर लिखा पर प्रेम उनकी कविताओं का प्रमुख विषय रहा उसमें भी प्रेम की असफलता और विरह प्रमुखता से मुखर हुई उनकी प्रमुख प्रकाशित रचना संग्रह के नाम इस तरह हैं --

पीडांदा परागा अर्थात दर्द का दुपट्टा , मुझे विदा करो , आरती , लाजवंती आटे की चिड़िया , लूणा, ममें और मैं , शोक , अलविदा और बाद में अमृता प्रीतम द्वारा चयनित उनकी प्रमुख रचनाओं का संग्रह '' विरह का सुलतान ' है | कहते हैं उनके रचना संसार में बहते दर्द के अविरल भावों से भावुक हो अमृता प्रीतम ने ही उन्हें विरह का सुलतान कहकर पुकारा था जिस से उनका तात्पर्य था कि वे दर्द को बहादुरी से जीने वाले बादशाहसरीखे थे | इन रचनाओं में उन्हें लोक कथा पूरण भगत के स्त्री - चरित्र ''लूणा'' पर--- जो कि एक काव्य नाटक था ---1967 का पंजाबी साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला

उस समय मात्र 27 साल की उम्र में , वे इसे पाने वाले सबसे कम उम्र के कवि थे | कहते हैं एक पुरुष होकर उन्होंने 'लूणा '' की अंतर्वेदना का बेजोड़ शब्दांकन किया था | इसमें हिमाचल के चम्बा शहर और रावी नदी खूबसूरती का बहुत ही अच्छा वर्णन है

उनकी अन्य रचनाओं में जीवन के विभिन्न रंगों के कुछ उदाहरण --


अपनी रचना - गमां दी रात अर्थात गमों की रात में वे लिखते हैं -

ये ग़मों की रात लम्बी है या मेरे गीत लम्बे हैं -

ना ये मनहूस रात खत्म होती ना मेरे गीत खत्म होते

ये जख्म हैं इश्क

के यारो -इनकी क्या दवा होवे -

ये हाथ लगाये भी दुखते हैं मलहम लगाये भी दुःख जाते !!!!!


एक दूसरी रचना पंछी हो जाऊं में उन्होंने लिखा -

जी चाहे पंछी हो जाऊं -

उड़ता जाऊं - गाता जाऊं

अनछुए शिखरों को छू पाऊँ

इस दुनिया की राह भूलकर -

फिर कभी वापस ना आऊँ

बे दर - बेघर होकर-

सारीउम्र पीऊँ रस गम का

इसी नशे में जीवन जीकर -

जी चाहे पंछी हो जाऊं !!!!!

उनकी अत्यंत प्रसिद्ध प्रतीकात्मक मार्मिक रचना शिकरा यार में उनका दर्द यूँ छलका -


माये नी माये मैं एक शिकरा [ उड़ने वाला पक्षी] यार बनाया

उसके सर पे कलगी

उसके पैरों में झांझर

वो तो चुग्गा चुगता आया

इक उसके रूप की धूप तीखी

दूजा उसकी महक ने लुभाया --

तीजा उसका रंग गुलाबी

वो किसी गोरी माँ का जाया |

इश्क का एक पंलग निवारी

हमने चांदनी में बिछाया

तन की चादर हो गयी मैली

उसने पैर ना पलंग पाया -

दुखते हैं मेरे नैनों के कोए

सैलाब आँसूओं का आया

सारी रात सोचों में गई

उसने ये क्या जुल्म कमाया ?

सुबह सवेरे ले उबटन -

हमने मल -मल उसे नहलाया -

देहि से निकले चिंगारें

हाथ गया हमारा कुम्हलाया

चूरी कुटुं तो वो खाता नहीं -

हमने दिल का मांस खिलाया |

एक उडारी ऐसी मारी

वो मुड वतन ना आया !!!!!!!!!!!!!!

अपने खोये प्यार की याद में उनका अमर गीत -


एक लडकी जिसका नाम मुहब्बत है -

गुम है , गुम है ,गुम है !!

-एक बेहद मकबूल गजल देखिये ---

मुझे तेरा शबाब ले बैठा -

रंग गोरा गुलाब ले बैठा

कितनी पी ली , कितनी बाकी है -

मुझे यही हिसाब ले बैठा ,

अच्छा होता सवाल ना करता -

मुझे तेरा जवाब ले बैठा ,

फुर्सत जब भी मिली है कामों से

तेरे मुख की किताब ले बैठा .

मुझे जब भी आप हो याद आये -

दिन दिहाड़े शराब ले बैठा !!!!!!!!


अपने एकअत्यंत लोक प्रिय गीत में वे लिखते हैं ---

माये ना माये मेरी प्रीत के नैनों में -विरह की रडक पड़ती है

सारी - सारी रात मोये मित्रों के लिए रोते हैं माँ हमें नींद नहीं आती है

सुगंध में भिगो भिगो कर बांधूंफाहे चांदनी के -

तो भी हमारी पीड नहीं जाती

गर्म गर्म सांसों करूं जो टकोर माँ

पर वो भी हमे खानें को पड़ती है !!!!!!

उन की बहुत ही लोकप्रिय रचना '' पीडां दा परागा '' का भावार्थ कुछ यूँ है ---

ओ भट्ठीवाली तू पीड का परागा भून दे

मैं तुझे दूंगा आसूंओं का भाडा !!!!!!


इसके अलावा उनके लिखे अनेक हल्के फुल्के लोक गीत भी हैं जिन्हें शादी ब्याह में गाया जाता है | उनके गीतों को जगजीत सिंह , महेंद्र कपूर , सुरेन्द्र कौर , प्रकाश कौर ,, आसा सिंह मस्ताना जैसे प्रसिद्ध गायकों ने अपनी सुरीली आवाज देकर उनकी मधुरता को बढाया और जन - जन तक पहुंचाया |


निधन -- उनकी कविताओं में कई बार जीवन के प्रति अनासक्ति का भाव मिलता है | '' वे अपनी रचनाओं में बार बार यौवन में मरने की इच्छा जाहिर करते हैं क्योकि उन्हें विश्वास था कि युवावस्था में मरने वाले को भगवान फूल या तारा बनाता है और वह लोगों की स्मृतियों में हमेशा युवा ही रहता है | शायद इसी लिए उन्होंने
अपने एक गीत में लिखा ''किहमने तो जोबन रुत में मर जाना है ''और उनकी यही इच्छा शायद ईश्वर को भी मंजूर हो गयी | नशे की भयंकर लत से उन्हें लीवर सिरोसिस नामक रोग हो गया जिससे उनकी हालत इतनी खराब हो गई कि वे मतिभ्रम का शिकार हो अपने अन्तरंग साथियों को भी पहचान नहीं पाते थे | इसी असाध्य रोग से जूझते उन्होंने अपने ससुर के घर में 6 मई 1973 को अंतिम साँस ली | इसके साथ ही बहुत छोटी उम्र में मरने का उनकी चाह फलीभूत हुई तो पंजाबी साहित्य का एक चमकता सूरज अस्त हो गया | पर अपनी मर्मस्पर्शी रचनाओं के माध्यम से वे हमेशा अपने चाहने वालों के मनों में बसते हैं |

उनकी पुण्य स्मृति को शत-शत नमन !!!!!!!

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पाठकों के लिए विशेष -- शिव कुमार बटालवी का अत्यंत प्रसिद्ध वीडियो जिसमे उनके सुदर्शन व्यक्तित्व के दर्शन तो होते ही हैं साथ में उनकी ओज से भरी वाणी में उनका प्रसिद्ध गीत --

''क्या पूछते हो हाल फकीरों का ? हम नदियों से बिछड़े नीरों का ?

हम आसूं की जून में आयों का हम दिलजले दिलगीरों का

हमें लाखों का तन मिल गया -पर एक भी मन ना मिला -

क्या लिखा किसी ने मुकद्दर था -- हाथों की चंद लकीरों का !!!!!!!''


भी सुन सकते हैं | उनकी मासूमियत से भरी बातों और उनमे व्याप्त सरलता के तो क्या कहने !!!!! उनकी मौत से कुछ ही समय पहले लिया गया ये इंटरव्यू हिंदी में हैऔर इसे बीबीसी द्वारा लिया गया था जो कि आंचलिक भाषा के एक कवि के लिए उन दिनों अत्यंत गौरव का विषय था | सादर --



मिलान मंडल

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1 जुलाई 2021

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21 अगस्त 2018

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8 अगस्त 2018

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दिन के प्रत्येक पहर का अपना सौन्दर्य होता है | जहाँ भोर प्रकृतिवादी कवियों के लिए सदैव ही नवजीवन की प्रेरणा का प्रतीक रही है वहीँ प्रेमातुर व्यक्तियों और प्रेमवादी विचारधारा के कवियों व साहित्यकारों के लिए रात्रि के प्रत्येक पल का अपना महत्व माना है | रचनाकारों ने अपनी रचनाओं -- चाहे वह कविता हो

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तुम्हारी चाहत --- कविता

12 फरवरी 2017
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अनमोल है तुम्हारी चाहत - जो नहीं चाहती मुझसे , कि मैं सजूँ सवरू और रिझाऊं तुम्हे ; जो नहीं पछताती मेरे - विवादास्पद अतीत पर ,और मिथ्या आशा नहीं रखती

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फागुन में उस साल

13 फरवरी 2017
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फागुन मास में उस साल -मेरे आँगन की क्यारी में ,हरे - भरे चमेली के पौधे पर - जब नज़र आई थी शंकुनुमा कलियाँ पहली बार !तो मैंने कहा था कलियों से चुपके से -"कि चटकना उसी दिन और खोल देना गंध के द्वार ,जब तुम आओ

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तुम्हारा मौन

16 फरवरी 2017
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असह्य हो चुका है तुम्हारा - ये विचित्र मौन ; विरक्त हो जाना तुम्हारा - रंग , गंध और स्पर्श के प्रति ; अनासक्त हो जाना - अप्रतिम सौन्दर्य के प्रति | भावहीन हो बैठ उपेक्षा करना - संगीत की मध

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अलमस्त बचपन -- कविता

25 फरवरी 2017
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भरपूर हरियाली खेतों की --- और बचपन की ये मस्त अदा ! तन धरा पे मन अम्बर में - हटी है जग की हर बाधा !! खुशियों का जब चला काफिला - झुक - सा गया गगन नीला . धरती की गोद में अनायास - कोई फूल

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तुम्हारी आँखों से --

26 फरवरी 2017
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तुम्हारी आँखों से छलक रही है किसी की चाहत अनायास -- जो भरी हैं पूनम जैसे उजास से और हर पल चमकती हैं --- अँधेरे में जलते दो दीपों की मानिंद ; जो

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कल सपने में ---- नव गीत

4 मार्च 2017
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कल सपने में हम जैसे - इक सागर तट पर निकल पड़े! लेकर हाथ में हाथ चले और निर्जन पथ पर निकल पड़े जहाँ फैली थी मधुर चांदनी - शीतल जल के धारों पे , कुंदन जैसी रात थमी थी -- मौन स्तब्ध आधारों पे फेर आँखे जग - भर से वहां- दो प्रेमी नटखट निकल पड़े फिर से हमने चुनी

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होली गीतों की भूली बिसरी परम्परा

9 मार्च 2017
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होली का पर्व अपने साथ ऐसा उल्लास और उमंग ले कर आता है जिसमे हर इन्सान आकंठ डूब जाता है | ये फाल्गुन मास में आता है | फाल्गुन मास में बसंत ऋतुअपने चरम पर होतीहै | कहना अतिशयोक्ति ना होगा कि फागुन मास में प्रकृति का उत्सव मनता है | धरती सरसों

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चाँद फागुन का -- नवगीत

12 मार्च 2017
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बादल संग आंखमिचौली खेले -- पूरा चाँद सखी फागुन का-- ! संग जगमग तारे - लगें बहुत ही प्यारे ; सजा है आँगन आज गगन का ! सखी ! दूध सा चन्दा -- दे मन आनंदा ; हरमन भाये ये समां पूनम का ! कोई फगुवा गाये -

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कहीं मत जाना तुम -- कविता

19 मार्च 2017
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बिनसुने - मन की व्यथा -- दूर कहीं मत जाना तुम ! किसने - कब- कितना सताया - सब कथा सुन जाना तुम ! ! जाने कब से जमा है भीतर -- दर्द की अनगिन तहें , जख्म बन चले नासूर - अब तो लाइलाज से हो गए ; मुस्कुरा दूँ मैं जरा सा -- वो वजह बन जाना तुम ! ! रो

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गंगा -- यमुना कब ना थी ज़िंदा इकाई ?

23 मार्च 2017
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20 मार्च को उत्तराखण्ड उच्च न्यायलय ने अपने ऐतहासिक निर्णय में गंगा - यमुना नदियों को भारत वर्ष की जीवित इकाई मानते हुए उन्हें लीगल स्टेटस प्रदान किया है और दोनों नदियों को किसी जीवित व्यक्ति की तरह अधिकार दिया है | केंद्र सरकार को भी नियत आठ सप्ताह की अवधि में गंगा प्रबंधन बोर्ड बनाने का आदेश दिया

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आई तुम्हारी याद -- कविता

28 मार्च 2017
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दूभर तो बहुत थी - ये उदासियाँ मगर , आई तुम्हारी याद - तो हम मुस्कुरा दिए ! आई पलट के खुशियां - महकी हैं मन की गलियां ; बहुत दिनों के बाद - हम मुस्कुरा दिए ! ! बड़े विकल कर रहे थे -- कुछ जो संशय मनचले थे ; धीरज ना कुछ बचा था - और नैन भर चले थे ; बस यूँ ही उड़

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हिमालय - वंदन ----------- - कविता

1 अप्रैल 2017
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सुना है हिमालय हो तुम ! सुदृढ़ , अटल और अविचल - जीवन का विद्यालय हो तुम ! ! शिव के तुम्ही कैलाश हो - माँ जगदम्बा का वास हो , निर्वाण हो महावीर का -- ऋषियों का चिर - प्रवास हो ; ज्ञान - भक्ति से भरा - बुद्ध का करुणालय हो तुम ! ! युगों से अजेय हो -- वीरों

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तुलसी के राम

6 अप्रैल 2017
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श्री राम कृष्ण भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग और परिचायक हैं |कहते हैं यदि भारतीय संस्कृतिऔर समाज में से राम और कृष्ण को निकाल दिया जाये तो वह शून्य नहीं तो शून्य प्राय अवश्य हो जायेगी | दोनों ही भारतीय समाजके जननायक नहीं बल्कि युग नायक हैं | जहाँ श्री कृष्ण के बालपन , किशोरावस्थ

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अमरुद चुराने आ गई बच्चों की टोली --- कविता --

11 अप्रैल 2017
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अमरुद चुराने आ गई बच्चों की टोली , पेड़ को रह रह ताक रही हैं उनकी नजरे भोली ! ! हरे भरे पेड़ पर लदे हैं -फल आधे कच्चे आधे पक्के बड़ी ललचाई नजरों से ताके जाते हैं बच्चे ; कई तिडकम भिड़ा रहे भीतर ही भीतर होगे सफल बड़े हैं धुन के पक्के ; देख -समझ ना कोई

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सांस्कृतिक चेतना का पर्व -- बैशाखी

14 अप्रैल 2017
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जीवन में इन्सान हर रोज़ अनेक प्रकार के संघर्ष , पीड़ा , कुंठा , बेबसी और अभाव आदि से रु - ब- रु होता है | भले ही वह बाहर से कितना भी प्रसन्न और सुखी क्यों ना दिखाई देता हो , एक उदासी क

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श्रमिक दिवस ------ श्रम का उपासना पर्व ---

30 अप्रैल 2017
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किसी भी देश की अर्थव्यवस्था का आधार श्रमिक है | प्रत्येक युग और काल में अपने श्रम के बूते पर श्रमिक ने दुनिया की प्रगति और उत्थान में अभूतपूर्व योगदान दिया है | सड़क हो या घर , सुई हो या हवाई जहाज सबके निर्माण में

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मैं श्रमिक --- कविता --

30 अप्रैल 2017
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इंसान हूँ मेहनतकश मैं - नहीं लाचार या बेबस मैं ! बड़े गर्व से खींचता अपने जीवन का ठेला -- संतोषी मन देख रहा अजब दुनिया का खेला ा ! गाँधी सा सरल चिंतन - मैले कपडे उजला मन , श्रम ही स्वाभिमान

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सुनो गिलहरी ------------ कविता

7 मई 2017
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पेड़ की फुनगी के मचान से - क्या खूब झांकती हो शान से , देह इकहरी काँपती ना हांफती -- निर्भय हो घूमती बड़े स्वाभिमान से ! पूंछ उठाये - चौकन्नी निगाह

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प्रेम और करुणा के बुद्ध

9 मई 2017
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ढाई हजार साल पूर्व - ईशा पूर्व की छठी सदी धरा पर महात्मा बुद्ध का अवतरण मानव सभ्यता की सबसे कौतुहलपूर्ण घटना है | बुद्ध की जीवन गाथा कदम - कदम पर नए आयाम रचती है | बुद्ध के जीवन में कहाँ रहस्य नहीं है -- कहाँ कौत

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माँ अब समझी हूँ प्यार तुम्हारा ------ कविता

13 मई 2017
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माँ अब समझी हूँ प्यार तुम्हारा बिटिया की माँ बनकर मैंने तेरी ममता को पहचाना है ,माँ बेटी का दर्द का रिश्ता - क्या होता है ये जाना है ; बिटिया की माँ बनी हूँ जबसे - - पर्वत ये तन बना है मेरा ,उसका हंसना , रोना और खान

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सुनो -- मनमीत ---------नवगीत -

17 मई 2017
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पीड़ - पगे मन से आ मिल कर - इक अमर - गीत लिखें हम तुम ! हार के भी सदा जीती है - जग में प्रीत लिखें हम - तुम ! ! तन पर अनगिन जख्म सहे - तब जाकर साकार हुई - मंदिर में रखी मूर्त यूँ हुई

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आई आँगन के पेड़ पे चिड़िया ------- कविता

20 मई 2017
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आई आँगन के पेड़ पे चिड़िया ,फुर्र - फुर्र उड़ती - चले चाल लहरिया !शायद भूली राह - तब इधर आई - देख हरे नीम ने भी बाहें फैलाई ; फुदके पात पात - हर डाल

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पेड़ ने पूछा चिड़िया से --- कविता

23 मई 2017
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पेड़ ने पूछा चिड़िया से --------- तेरी ‘ चहक’ का फल कहाँ लगता है ? जिसको चख सृष्टि के कण - कण में – आनंद चंहु ओर विचरता है ! ! जो फूल में गंध बन कर बसता, करुणा से तार मन के कसता ; जो अनहद - नाद सा गुंजित

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गीतिका --

28 मई 2017
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जगी आँखों से सपने-- ए मन तू ना देख यहाँ , कहाँ लिखे थे उनके संग - तेरी किस्मत के लेख यहाँ ? चकोर को कब मिला चंदा - हर सीप को कब मिला मोती ? प

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ये रुदन है हिमालय का ------------- कविता --

16 जून 2017
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ये रुदन है हिमालय का जो हर बंध तोड़ बह रहा है मिट जाऊंगा तब मानोगे - आक्रांत हो कह रहा है ! ''कर दिया नंगा मुझे - नोच ली हरी चादर मेरी , जंगल सखा भी मिट चले - जिनसे थी ग़ुरबत मेरी , ''चीत्कारता पर्वतराज - खोल दर्द की गिरह रहा है

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स्मृति शेष -- पिता जी

17 जून 2017
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कल थे पिता - पर आज नहीं है - माँ का अब वो राज नहीं है ! दुनिया के लिए इंसान थे वो , पर माँ के भगवान् थे वो ; बिन कहे उसके दिल तक जाती थी खो गई अब वो आवाज नहीं है ! ! माँ के सोलह सिंगार थे वो ,माँ का

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सुनो बादल ! --- कविता - --

30 जून 2017
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नील गगन में उड़ने वाले - ओ ! नटखट आवारा बादल , मुक्त हवा संग मस्त हो तुम किसकी धुन में पड़े निकल ! उजले दिन काली रातों में - अनवरत घूमते रहते हो ,उमड़ - घुमड़ कहते क्या - और किसको ढूंढते रहते हो ? बरस पड़ते किसकी याद में जाने - तुम सहसा करके नयन तरल !! तुम्

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श्री गुरुवै नमः -------- गुरु पूर्णिमा पर विशेष-

9 जुलाई 2017
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भारत अनंत काल से ऋषियों और मनीषियों की पावन भूमि रहा है जिन्होंने समूचे विश्व और भटकी मानवता का सदैव मार्ग प्रशस्त कर उन्हें सदाचार और सच्चाई की राह दिखाई है | इसकी अध्यात्मिक पृष्ठभूमि ने हर काल में गुरुओं के सम्मान की परम्परा को अक्षुण रखा है | अनादिकाल से ही आमजन से लेकर अवतारों तक के जीवन में ग

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गाँव में कोई फिर लौटा है -- नवगीत --

13 जुलाई 2017
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मुद्दत बाद सजी गलियां रे -गाँव में कोई फिर लौटा है !जीवन बना है इक उत्सव रे - गाँव में कोई फिर लौटा है ! !रोती थी घर की दीवारें छत भी यूँ ही चुपचाप पड़ी थी

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बिटिया ---- कविता --

20 जुलाई 2017
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घर संभालती बिटिया -घर संवारती बिटिया , स्वर्ग को धरती पे उतारती बिटिया ! सुधड़ है सयानी है बिटिया तो घर की रानी है ;उम्र भले छोटी है -पर बातों में पूरी नानी है ;सफल दुआ जीवन की

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मेरे गाँव ------------ कविता --

24 जुलाई 2017
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तेरी मिटटी से बना जीवन मेरा -तेरे साथ अटूट है बंधन मेरा , तुझसे अलग कहाँ कोई परिचय मेरा ? तेरे संस्कारों में पगा तन मन मेरा !!नमन तेरी सुबह और शाम कोतेरी धरती, तेरे खेत - खलिहान कोतेरी गलियों ,मुंडेरों का कहाँ सानी कोई ? वंदन मेरा तेरे खुले आसमान को ;तेरे उदार परिवेश

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तुम्हारे दूर जाने से साथी --- कविता --

27 जुलाई 2017
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तुम्हारे दूर जाने से साथी - मन को ये एहसास हुआ दिन का हर पहर था खोया सा -मन का जैसे वनवास हुआ !! अनुबंध नहीं कोई तुमसे -जीवन भर साथ निभाने

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गा रे जोगी ! -------- कबिता |

31 जुलाई 2017
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गा रे! कोई ऐसा गीत जोगी –बढे हर मन में प्रीत जोगी ! ना रहा अब वैसा गाँव जोगी जहाँ थी प्यार ठांव जोगी . भूले पनघट के गीत प्यारे - खो गई पीपल की छांव जोगी ; बढ़ी दूरी मनों में ऐसी - कि बिछड़े मन के मीत जोगी !! बैठ बाहर फुर्सत में गाँव टीले - तू

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शुक्र है गाँव में ----- कविता --

3 अगस्त 2017
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शुक्र है गाँव में इक बरगद तो बचा है जिसके नीचे बैठते - रहीम चचा हैं !! हर आने -जाने वाले को सदायें देते हैं - चाचा सबकी बलाएँ लेते हैं , धन कुछ पास नहीं उनके - बस खूब दुआएं देते हैं ; नफरत से कोसों दूर है - चाचा का दिल सच्चा है !! सिख - हिन्दू य

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अपराजिता ---------------------- कहानी --

10 अगस्त 2017
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संघर्ष की धूप ने गौरवर्णी तारो को ताम्र वर्णी बना दिया था | लगता था नियति ने ऐसा कोई वार नहीं छोड़ा -जिससे तारो को घायल न किया हो - पर तारो थी कि नियति के हर वार को सहती - निडरता से जीवन की राह पर चलती ही जा रही थी | लोग कहते थे बड़ी अभागी है तारो –

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सूर के श्याम ------- जन्माष्टमी पर विशेष ---

14 अगस्त 2017
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भारतवर्ष के सांस्कृतिक सामाजिक और धार्मिक के साथ हर रोज के जीवन का एक अक्षुण अंग हैं राम और कृष्ण | राम जहाँ मर्यादा पुरुषोत्तम है तो वही कृष्ण के ना जाने कितने रूप है | श्री कृष्ण को सम्पूर्णता का दूसरा नाम कहा गया है| वे चौसठ क

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बीते दिन लौट रहे हैं --------- नवगीत --

27 अगस्त 2017
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ये सुनकर उमंग जागी है ,कि बीते दिन लौट रहे हैं ;उन राहों में फूल खिल गए - जिनमे कांटे बहुत रहे है ! चिर प्रतीक्षा सफल हुई - यत्नों के फल अब मीठे हैं , उतरे हैं रंग जो जी

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लम्पट बाबा ----- कविता --

30 अगस्त 2017
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कहाँ से आये ये लम्पट बाबा ? धर सर कथित ' ज्ञान ' का झाबा !!गुरु ज्ञान की डुगडुगी बजायी -विवेक हरण कर जनता लुभाई ,श्रद्धा , अन्धविश्वास में सारे डूबे - हुई गुम आडम्बर में सच्चाई ; बन बैठे भगवान समय के खुद बन गये काशी काबा !! धन बटोरें

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मेरी वे अंग्रेजी शिक्षिका-- संस्मरण -----

4 सितम्बर 2017
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छात्र जीवन में शिक्षकों का महत्व किसी से छुपा नहीं | इस जीवन में अनेक शिक्षक हमारे जीवन में ज्ञान का आलोक फैलाकर आगे बढ़ जाते है पर वे हमारे लिए प्रेरणा पुंज बने हमारी यादों से कभी ओझल नहीं होते | एक शिक्षक के जीवन में अनगिन छात्र - छात्राएं आते हैं तो विद्यार्थी भी

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राह तुम्हारी तकते - तकते ---------- कविता --

16 सितम्बर 2017
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राह तुम्हारी तकते - तकते-यूँ ही बीते अनगिन पल साथी,आस हुई धूमिल संग में -ये नैना हुए सजल साथी ! !दुनिया को बिसरा कर दिल ने-सिर्फ तुम्हे ही याद किया ,हो चली दूभर जब तन्हाईतुमसे मन ने संवाद किया - पल भर को भी मन की नम आँखों से- ना हो

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माँ ज्यों ही गाँव के करीब आने लगी है --------- कविता |

2 अक्टूबर 2017
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माँ ज्यों ही गाँव के करीब आने लगी है - माँ की आँख डबडबाने लगी है ! चिर परिचित खेत खलिहान यहाँ हैं ,माँ के बचपन के निशान यहाँ हैं ; कोई उपनाम -

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ओ शरद पूर्णिमा के शशि नवल-- कविता ------

5 अक्टूबर 2017
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तुम्हारी आभा का क्या कहना !ओ शरद पूर्णिमा के शशि नवल !!कौतुहल हो तुम सदियों से श्वेत ,, शीतल , नूतन धवल !!! रजत रश्मियाँ झर झर झरती अवनि अम्बर में अमृत भरतीकौन न भरले झोली इससे ? तप्त प्राण को शीतल करती थकते ना नैन निहार तुम्हे तुम निष्कलुष , ,पावन और निर्मल | ओ शरद पूर्णि

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एक दीप तुम्हारे नाम का ------- नवगीत --

17 अक्टूबर 2017
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अनगिन दीपों संग आज जलाऊँ - एक दीप तुम्हारे नाम का साथी ,तुम्हारी प्रीत से हुई है जगमग क्या कहना इस शाम का साथी !! जब से तुम्हे साजन पाया है -मन हर्षित हो बौराया है ,तुमसे कहाँ अब अलग रही मैं ?खुद को खो तुमको पाया है ; भीतर तुम हो -बाहर तुम हो - तू आराध्य मेरे मन धाम का साथी

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आँगन में खेल रहे बच्चे ---------- बाल कविता ---

8 नवम्बर 2017
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आँगन में खेल रहे बच्चे ,भोले भाले मन के सच्चे !एक दूजे के कानों में -गुप चुप से बतियाते हैं , तनिक जो हो अनबन आपस में -खुद मनके गले मिल जाते है ;भले -बुरे तर्क ना जानेबस हैं थोड़े अक्ल के कच्चे !आँगन में खेल रहे बच्चे !!निश्छल राहों के ये राही -भोली मुस्कान से जिया चुरालें ,नजर भर

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सुनो जोगी !------- कविता -

17 नवम्बर 2017
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ये तुमने कैसा गीत सुनाया जोगी - जिसे सुनकर जी भर आया जोगी , ये दर्द था कोई दुनिया का – या दुःख अपना गाया जोगी ! अनायास उमड़ा आखों में पानी - कह रहा कुछ अलग कहानी , तन की

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मेहंदीपुर बालाजी के बहाने से ---लेख --

27 नवम्बर 2017
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इस साल अक्टूबर की २३ तारीख को राजस्थान में मेहंदीपुर बाला जी जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ | दिल्ली से मेहंदीपुर के लिए बेहतरीन सडक मार्ग है -- बीच मार्ग में इस सड़क के - जिसके साथ - साथ खूबसूरत अरावली पर्वत श्रृखंला है | क्योकि इससे पूर्व कभी मैंने

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जीवा----- कहानी --

30 नवम्बर 2017
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नीम के पेड़ से छनकर आती धूप , जैसे ही जीवा के तन को जलाने लगी, हडबडा कर उसकी आँख खुल गई | ना जाने कब से लेटा था -वह नीम की छाँह तले | जब सोया था -तब सूरज घर के पिछवाड़े की तरफ था -अब ठीक नीम के ऊपर चमक रहा है | भादो की चिलचिलाती धूप और उस पर हवा

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फिर चोट खाई दिल ने --कविता

7 दिसम्बर 2017
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फिर चोट खाई दिल ने --और बरबस लिया पुकार तुम्हे , हो विकल यादों की गलियों में - मुड--मुड ढूंढा हर बार तुम्हे ! मुंह मोड़ के चल दिए साथी - तुम तो नयी मंजिल - नयी राहों पे ; ये तरल नैन रह गए तकते - तुम रहे अनजान जिगर की आहों से ; उस दिल को बिसरा कर बैठ

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समय साक्षी रहना तुम -- कविता --

27 दिसम्बर 2017
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अपने अनंत प्रवाह में बहना तुम , पर समय साक्षी रहना तुम !! उस पल के- जो हो सत्य सा अटल - ठहर गया है भीतर कहीं गहरे ,रूठे सपनों से मिलवा जो - भर गया पलकों में रंग सुनहरे ; यदा -कदा बैठ साथ मेरे -उन यादों के हार पिरोना तुम !! जिसमे आया जाने कहाँ से - जन्मों की ले पहचान कोई , विस्मय

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अलविदा -- 2017--

31 दिसम्बर 2017
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शब्द नगरी संगठन और सभी साहित्य मित्रों और पाठको को मेरी और से नूतन वर्ष की हार्दिक मंगलकामनाएं | जाते साल को हजारों सलाम जिसने शब्द नगरी के माध्यम से एक सार्थक मंच प्रदान कर अनेक दिव्य अनुभ

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शब्द नगरी पर एक साल -- लेख |

12 जनवरी 2018
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समय निरंतर प्रवाहमान होते अपने अनेक पड़ावों से गुजरता - जीवन में अनेक खट्टी - मीठी यादों का साक्षी बनता है | इनमे से कई पल यादगार बन जाते हैं | पिछले साल मेरे जीवन में भी शब्दनगरी से जुड़ना एक यादगार लम्हा बन कर रह गया | जनवरी --2017 में गूगल पर पढने क

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बसंत बहार से तुम------ कविता --

20 जनवरी 2018
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था पतझड़ सा नीरस जीवन -आये बसंत बहार से तुम ,सावन भले भर -भर बरसे - पहली सौंधी बौछार से तुम | ये मन कितना अकेला था एकाकीपन में खोया था , खुशियों का था इन्तजार कहाँ बुझा - बुझा हर रोयाँ था ;तपते मन पे सहसा बरस गए बन शीतल मस्त फुहार से तुम ! मधु सपना बन ठहर गए - इन थकी मांदी सी

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ऋतुराज आया है -- निबंध --

22 जनवरी 2018
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माघ की कडकडाती ठंड के बीच शरद ऋतु में सिकुड़े दिन विस्तार पाने लगते है तो धूप में हलकी गरमी ठण्ड से त्रस्त तन और मन को अपनी गर्माहट से सेककर अनुपम आनंद प्रदान करती है |धीरे धीरे गरमाती ऋतु में आहट देता है -- बसंत | जिसे ऋतुराज कह सृष्टि ने सिर- माथे पर धारण किया है और इसे मधुम

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जिन्होंने वारे लाल वतन पे - कविता

24 जनवरी 2018
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जिन्होंने वारे लाल वतन पे -नमन करो उन माँओं को ;जिनके मिटे सुहाग देश - हित--शीश झुकाओं उन ललनाओं को !!दे सर्वोच्च बलिदान जीवन का -मातृभूमि की लाज बचाई .जिनकी बदौलत आज आजादी -हो सत्तर की इतरायी ;यशो गान रचो उन वीरो

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चाँद साक्षी आज की रात

30 जनवरी 2018
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तेरे मेरे अनुपम प्रणय का- चाँद साक्षी आज की रात ; मेरे मन में तेरे विलय का - चाँद साक्षी आज की रात ! झांके गगन की खिड़की से -चंदा घिरा तारों के झुरमुट से, मुस्काए नटखट आनन्द भरा -छलकाए रस अम्बर घट से ; सजा है आँगन नील न

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इन्द्रधनुष कविता --

8 फरवरी 2018
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जाने ये कौन चितेरा है -जो सजा लाया नया सवेरा है , नभ की कोरी चादर पर जिसने - हर रंग भरपूर बिखेरा है ?ये कौन तूलिका है ऐसी -जो ज़रा नजर नहीं आई है ?पर पल भर में ही देखो -अम्बर को सतरंगी कर लाई है ?जो धरा को कर हरित वसना - पथ में बिछा गया रंग

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नदिया तुम नारी सी --- कविता -

10 फरवरी 2018
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नदिया तुम नारी सी -निर्मल, अविकारी सी , कहीं जन्मती कहीं मिल जाती -नियति की मारी सी !!निकली बेखबर अल्हड , शुभ्रा ,स्नेह्वत्सला ,धवल धार , पर्वत प्रांगण में इठलाती - प्रकृति का अनुपम उपहार ; सुकुमारी अल्हड बाला -तुम बाबुल की दुलारी सी -नदिया तुम नारी सी !! हुलसती,

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शिव -वंदना -----------

13 फरवरी 2018
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ओंकार तू ! निर्विकार तू !! सृष्टि का पालन हार तू !सदाशिव !स्वीकार करो नमन मेरा !आत्म वैरागी -हे नीलकंठ !तू आदि अनंत -- तू दिग्दिगंत !!अव्यक्त ,अनीश्वर ,शशिशेखर ! शिवा,सोमनाथ ,संतों का संत !विष्णुवल्लभ ,आत्मानुरागी-हे सदाशिव !स्वीकार करों अर्चन मेरा !!तू त्रिकालसृष्टा ! तू अनंत दृष्टा!यूँ ही

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खलल मत डालना इनमे------ कविता --

18 फरवरी 2018
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किसी हिन्दू की करना ना मुसलमान की करना ,बात जब भी करना- बस हिदुस्तान की करना !!न है वो किसी मस्जिद में -ना बसता पत्थर की मूरत में ,इसी जमीं पे रहता है वो -बस इंसानों की सूरत में ; अल्लाह , ईश्वर से जो मिलना -तो कद्र हर इन्सान की करना !!सरहद पे जो जवान -हर जाति- धर्म से दूर था ,सीने पे गोली

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मन प्रश्न कर रहे ------- कविता

25 फरवरी 2018
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हुआ शुरू दो प्राणों का -- मौन -संवाद- सत्र !मन प्रश्न कर रहे - स्वयम ही दे रहे उत्तर !!हैं दूर बहुत पर दूरी का एहसास कहाँ है ?कोई और एक दूजे के इतना पास कहाँ है ? न कोई पाया जान सृष्टि का राज ये गहरा-राग- प्रीत गूंज रहा हर दिशा में रह- रह कर !!समझ रहे एक दूजे के मन की भाषा - जग पड़

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बसंत गान ------

27 फरवरी 2018
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हंसो फूलो -- खिलो फूलो -डाल-डाल पर झूलो फूलो !उतरा फागुन मास धरा पर -हर रंग रंग झूमो फूलो !!गलियों में सुगंध फैलाओ,भवरों पर मकरंद लुटाओ ;भेजो आमन्त्रण तितली को -''कि बूंद - बूंद रस पी लो'' फूलो ! !हंसों के नीम -आम बौराएँ -खिलो के कोकिल तान चढ़ाए , महको - महके रात संग तुम्हारे - घुल पवन में अम्ब

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जीवन में तुम्हारा होना---- कविता --

9 मार्च 2018
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जब सबने रुला दिया -तब तुमने हंसा दिया ,ये कौन प्रीत का जादू भीतर -तुमने जगा दिया ? जीवन में तुम्हारा होना - शायद अरमान हमारा था ;इसी लिए अनजाने में दिल ने तुम्हे पुकारा था ; सहलाया ये घायल अंतर्मन --मरहम सा लगा दिया !!खुद को भूले बैठे थे -जीवन की तप्त दुपहरी थी - जो साथ तुम्हे लेकर

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पुस्तक समीक्षा --------- मन कितना वीतरागी --लेखक -- पंकज त्रिवेदी जी --

12 मार्च 2018
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शब्दनगरी पर पिछले साल जनवरी से लेख न के दौरान कलम के धनी अनेक विद्वानों से परिचय हुआ उन्ही मे से एक हैं आदरणीय 'पंकज त्रिवेदी 'ज

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दो परियां ये आसमान की ---- कविता --

22 मार्च 2018
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दो परियां ये आसमान की मेरी दुनिया में आई हैं ,सफल दुआ जीवन की कोई -स्नेह की शीतल पुरवाई है ;तुम दोनों संग लौट आया है -वो भुला सा बचपन मेरा ; तुम्हारी निश्छल हंसी से चहका -ये सूना सा आँगन मेरा ; एक शारदा - एक लक्ष्मी सी -पा तुम्हे

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जिस पहर से----- कविता --

31 मार्च 2018
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जिस पहर से पढने- शहर गये हो ; तन्हाईयों से ये - घर आँगन भर गये हैं |उदासियाँ हर गयी है - घर भर का ताना - बाना ,हर आहट पे तुम हो -अब ये भ्रम पुराना ; जाने कहाँ वो किताबे तुम्हारी - बन प्रश्न तुम्हारे-मेरे उत्तर गये है !!झांकती हूँ गली में-लौटे बच्चों की टोली,याद आ जाती तुम्हारी - सूरत सलोनी

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पुस्तक समीक्षा - प्रिज़्म से निकले रंग (ई-बुक) ---------कवि - रवीन्द्र सिंह यादव -

10 अप्रैल 2018
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पुस्तक- प्रिज़्म से निकले रंग (ई-बुक) विधा - काव्य संग्रह कवि - रवीन्द्र सिंह यादव ISBN : 978-93-86352-79-8प्रकाशक - ऑनलाइन गाथा, लखनऊ मूल्य - 50 रुपये तकनीकी युग में सोशल मीडिया अभिव्यक्ति का एक बेहतरीन माध्यम बन कर उभरा है | यहाँ अनेक मंच हैं जिन

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बुद्ध की यशोधरा -- कविता |

21 अप्रैल 2018
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बुद्ध की प्रथम और अंतिम नारी- जिसने उसके मन में झाँका,जागी थी जैसे तू कपलायिनी -- ऐसे कोई नहीं जागा !!पति प्रिया से बनी पति त्राज्या-- सहा अकल्पनीय दुःख पगली,नभ से आ गिरी धरा पे- नियति तेरी ऐसी बदली ; वैभव से बुद्ध ने किया पलायनत

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साहित्य के गुरुदेव -- रवीन्द्रनाथटैगोर --- लेख

7 मई 2018
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भारतीय साहित्य जगत में पूजनीय रविन्द्रनाथ टैगोर ऐसी शख्सियत रहे जिन्होंने अपनी असीम प्रतिभा से बहुत बड़े काल खंड को अपनी मौलिक विचारधारा और साहित्य कर्म से ,सांस्कृतिक चेतना के मध्यम पड़ रहे स्वर को प्रखर किया | उनका जन्म साहित्य और संस्कृति के उत्थान के शुभ संकेत लेकर आया | जैसा

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गंगा रे तू बहती रहना -लेख --

23 मई 2018
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भारत के परिचय में सबसे पहले शामिल होने वाले प्रतीकों में गंगा का नाम सर्वोपरि आता है | यूँ तो हर नदी की तरह गंगा भी एक विशाल जलधारा का नाम है पर भारत वासियों के लिए ये एक मात्र नदी बिलकुल नही है बल्कि प्रातः स्मरणीय प्रार्थना है | कौन

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जिद -- लधु कथा --

31 मई 2018
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फोन में व्हाट्स अप्प पर धडा - धड आते तुम्हारे अनगिन फोटो देख मैं स्तब्ध हूँ ! इन में तुम्हारी रक्तरंजित निर्जीव देह गोलियों से बिंधी हुई एक हरे मैदान के बीचो बीच लावारिस सी पडी है | छः फुट का सुंदर सुडौल शरीर मिटटी बन गया है अब |तुम्हारी पीली कमीज और जींस खून से भरी है | |जख्

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रूहानी प्यार ----- कविता -------------

3 जून 2018
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हुए रूहानी प्यार केकर्ज़दार हम - -- रखेगें इसे दिल मेंसजा संवार हम !! बदल जायेंगे जब - सुहाने ये मन के मौसम , तनहाइयों में साँझ की घुटने लगेगा दम - खुद को बहलायेंगें-इसको निहार हम !! इस प्यार की क्षितिज पे रहेंगी टंकी कहानियां , लेना ढूंढ तुम वहीँ

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उतराखंड त्रासदी ---- हिमालय का आक्रांत स्वर -----लेख --

16 जून 2018
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हिमालय पर्वत सदियों से भारत का रक्षक और पोषक रहा है |इसकी प्राकृतिक सम्पदा ,चाहे वह वन संपदा हो या खनिज संपदा - ने जनजीवन को धन - धान्य से भरपूर किया है , तो इसके हिमनद सदानीरा नदियों के एकमात्र जल स्त

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संत कबीर लेख ---------- कबीर जयंती पर विशेष

27 जून 2018
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हिंदी साहित्य में कबीर भक्ति काल के प्रतिनिधि कवि के रूप में जाने जाते हैं | इसके अलावा वे भारत वर्ष के सांस्कृतिक और अध्यात्मिक जीवन को ऊर्जा देने वाले प्रखर प्रणेता हैं | उनकी ओजमयी फक्कड वाणी आज भी प्रासंगिक है | कौन है ज

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पुण्यस्मरण बाबा नागार्जुन -- जन्म दिन विशेष --

30 जून 2018
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परिचय--- बाबा नागार्जुन हिंदी और मैथिलि साहित्य के वो विलक्षण व्यक्तित्व हैं जिनकी-- काव्यात्मक प्रतिभा के आगे पूरा साहित्य जगत नत है | इन का जन्म 30 जून 1911 को बिहार के दरभंगा जिले के ''तौरानी''नामक गाँव में मैथिलि ब्राह्मण परिवार में हुआ |संयोग ही रहा क

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जो ये श्वेत,आवारा , बादल -कविता

5 जुलाई 2018
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जो ये श्वेत,आवारा , बादल - रंग -श्याम रंग ना आता –कौन सृष्टि के पीत वसन को- रंग के हरा कर पाता ? ना सौंपती इसे जल संपदा – कहाँ सुख से नदिया सोती ? इसी जल को अमृत घट सा भर- नभ से कौन छलकाता ?किसके रंग- रंगते कृष्ण सलोने घनश्याम कहाने खातिर ?इस सुधा रस बिन क

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विरह का सुलतान -- पुण्य स्मरण शिव कुमार बटालवी

24 जुलाई 2018
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पंजाब का शाब्दिक अर्थ पांच नदियों की धरती है | नदियों के किनारे अनेक सभ्यताएं पनपतीहैं और संस्कृतियाँ पोषित होती हैं | मानव सभ्यता अपने सबसे वैभवशाली रूप में इन तटों पर ही नजर आती है क्योकि ये जल धाराएँ अनेक तरह से मानव को उपकृत कर मानव जीवन को धन - धान्

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सावन की सुहानी यादें -- लेख -

12 अगस्त 2018
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सावन के महीने का हम महिलाओं के लिए विशेष महत्व होता है | फागुन के बाद ये दूसरा महीना है जिसमे हर शादीशुदा नारी को मायका याद ना आये .ये हो नहीं सकता | मायके से बेटियों का जुड़ाव सनातन है | मायके के आंगन की यादें कभी मन से ओझल नहीं होती | भारत में प्रायः हर जगह

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अमर शहीद के नाम --

15 अगस्त 2018
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जब तक हैं सूरज चाँद --अटल नाम तुम्हारा है , ओ ! माँ भारत के लाल ! अमर बलिदान तुम्हारा है !!-आनी ही थी मौत तो इक दिन -- जाने किस मोड़ पे आ जाती.- कैसे पर गर्व से फूलती , - मातृभूमि की छाती ;-दिग -दिंगत में गूंज रहा आज--यशोगान तुम्हारा है !!ओ ! माँ भार

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भैया तुम हो अनमोल !

25 अगस्त 2018
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जग में हर वस्तु का मोल - पर भैया तुम हो अनमोल !दर-दर पर शीश झुका करके - मांगा था तुझे विधाता से -तुम सा कहाँ कोई स्नेही- सखा मेरा -मेरा गाँव तो है तेरे दम से ; सुख- दुःख साझा कर लूं अपना रख दूं तेरे आगे मन खोल !!बचपन में जब तुमने गिर -गिर - ये ऊँगली पकड चलना सीखा , नीलगगन का चंदा भी -था

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अन्तरिक्ष परी - कल्पना चावला

30 अगस्त 2018
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चित्र--- अपनी चिरपरिचित गर्वित मुस्कान के साथ कल्पना चावला --परिचय भारत की अत्यंत साहसी और कर्मठ बेटियों का जिक्र बिना कल्पना चावला के कभी पूरा नही होता | उन्हें भा

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तुम्हे समर्पित सब गीत मेरे -- कविता

9 सितम्बर 2018
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मीत कहूं ,मितवा कहूं ,क्या कहूं तुम्हे मनमीत मेरे ? नाम तुम्हारे हर शब्द मेरे तुम्हे समर्पित सब गीत मेरे !! हर बात कहूं तुमसे मन की - कह अनंत सुख पाऊँ मैं , निहारूं नित मन- दर्पण में - तुम्हे स्वसम्मुख पाऊँ मैं;सजाऊँ ख्वाब नये तुम संग - भूल, ये गीत -अतीत मेरे !!सृष्टि में जो ये प्रणय

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तृष्णा मन की -

23 सितम्बर 2018
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मिले जब तुम अनायास - मन मुग्ध हुआ तुम्हे पाकर ; जाने थी कौन तृष्णा मन की - जो छलक गयी अश्रु बनकर ? हरेक से मुंह मोड़ चला - मन तुम्हारी ही ओर चला अनगिन छवियों में उलझा - तकता हो भावविभोर चला- जगी भीतर अभिलाष नई- चली ले उमंगों की नयी डगर ! !प्राण

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नेह तुलिका --

6 अक्टूबर 2018
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रंग दो मन की कोरी चादर हरे ,गुलाबी , लाल , सुनहरी रंग इठलायें जिस पर खिलकर !! सजे सपने इन्द्रधनुष के - नीड- नयन से मैं निहारूं सतरंगी आभा पर इसकी -तन -मन मैं अपना वारूँबहें नैन -जल कोष सहेजे-- मुस्काऊँ नेह -अनंत पलक भर !! स्नेहिल सन्देश तुम्

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भूली बिसरी पाती स्नेह भरी --[ विश्व डाक दिवस ]

9 अक्टूबर 2018
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विश्व डाक दिवस -- आज विश्व डाक दिवस है | इस दिन के बहाने से चिट्ठियों के उस भूले बिसरे संसार में झाँकने का मन हो आया है ,जो अब गौरवशाली अतीत बन गया है | भारत में राजा रजवाड़ों के समय में संदेशों का आदान - प्रदान विश्वसनीय सन्देशवाहकों के माध्यम से होता था जो पैदल या घोड़ों आदि के माध्यम से

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उलझन -- लघु कविता

14 अक्टूबर 2018
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इक मधुर एहसास है तुम संग - ये अल्हड लडकपन जीना , कभी सुलझाना ना चाहूं - वो मासूम सी उलझन जीना ! बीत ना मन का मौसम जाए - चाहूं समय यहीं थम जाए ; हों अटल ये पल -प्रणय के साथी - भय है, टूट ना ये भ्रम जाए संबल बन गया जीवन का - तुम संग ये नाता पावन जीना ! बांधूं अमर प्रीत- बंध मन के तुम सं

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समाज के अनसुने मर्मान्तक स्वर ----------------पुस्तक समीक्षा- चीख़ती आवाजें - कवि ध्रुव सिंह ' एकलव्य '---

29 नवम्बर 2018
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साहित्य को समाज का दर्पण कहा गया है | वो इसलिए समय के निरंतर प्रवाह के दौरान साहित्य के माध्यम से हम तत्कालीन परिस्थितियों और उनके प्रभाव से आसानी से रूबरू हो पाते हैं | सब लोग हर दिन असंख्य लोगों की समस्याओं और उनके जीवन के सभी रंगों को देखते रहते हैं शायद वे उन

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सुन ! ओ वेदना-- कविता --

13 दिसम्बर 2018
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सुन ! ओ वेदना जीवन में -लौट कभी ना आना तुम !घनीभूत पीड़ा -घन बन -ना पलकों पर छा जाना तुम !!हूँ आलिंगनबद्ध - सुखद पलों से -कर ना देना दूर तुम , दिव्य आभा से घिरी मैं -ना हर लेना ये नूर तुम ,सोई हूँ ले सपने सुहाने - ना मीठी नी

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चाँद हंसिया रे !

2 फरवरी 2019
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चाँद हंसिया रे ! सुन जरा !ये कैसी लगन जगाई तूने ? कब के जिसे भूले बैठे थे -फिर उसकी याद दिलाई तूने !!गगन में अकेला बेबस सा - तारों से बतियाता तू नीरवता के सागर में - पल - पल गोते खाता तू ;कौन खोट करनी में आया ? \ये बात न

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लौटा माटी का लाल

16 फरवरी 2019
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गूंजी मातमी धुन लुटा यौवन तन सजा तिरंगा लौटा माटी का लाल माटी में मिल जाने को ! इतराया था एक दिन तन पहन के खाकी चला वतन की राह ना कोई चाह थी बाकी चुकाने दूध का कर्ज़ पिताका मान बढाने को ! लौटा माटी का लाल माटी में मिल जाने को !!रचा चक्रव्यूह शिखंडी शत्रु ने छुपके घात लगाई कु

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हार्दिक अभिनन्दन !

1 मार्च 2019
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वीर अभिनन्दन ! हार्दिक अभिनन्दन ! तुम्हारे शौर्य को कोटि वन्दन ! पुलकित , गर्वित माँ भारती - तुम्हारे निर्भीक पराक्रम से , मृत्यु - भय से हुए ना विचलित - ना चूके संयम से ;सिंह पुत्र तुम जननी के सहमा शत्रु नराधम !! श

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उस फागुन की होली में

9 मार्च 2019
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जीना चाहूं वो लम्हे बार बार जब तुमसे जुड़े थे मन के तारजाने उसमें क्या जादू था ? ना रहा जो खुद पे काबू था कभी गीत बन कर हुआ मुखर हंसी में घुल कभी गया बिखर प्राणों में मकरंद घोल गया बिन कहे ही सब कुछ बोल गया इस धूल को बना गय

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फूल ! तुम खिलते रहना !

26 मार्च 2019
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--- जीवन में बसंत चारों ओर बसंत का शोर है | हो भी क्यों ना !जीवन में बसंत का आना असीम खुशियों का परिचायक है | प्रश्न उठता है बसंत क्या है ? क्या है इसकी परिभाषा ?यूँ तो बसंत को हर किसी ने अपनी परिभाषा दी है पर सरल शब्दों में कहें तो फूलों की खिलना ही सृष्टि में बसंत का परिचायक है

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कौन दिखे ये अल्हड किशोरी सी

6 अप्रैल 2019
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चंचल नैना . फूल सी कोमल , कौन दिखे ये अल्हड किशोरी सी ? रूप - माधुरी का महकता उपवन - लगे निश्छल गाँव की छोरी सी ! मिटाती मलिनता अंतस की मन प्रान्तर में आ बस जाए रूप धरे अलग -अलग से - मुग्ध, अचम्भित कर जाए किसी पिया की है प्रतीक्षित -- लिए मन की चादर कोर

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तुम मिले कोहिनूर से

5 मई 2019
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भीगे एकांत में बरबस -पुकार लेती हूँ तुम्हे सौंप अपनी वेदना - सब भार दे देती हूँ तुम्हे ! जब -तब हो जाती हूँ विचलित कहीं खो ना दूँ तुम्हेक्या रहेगा जिन्दगी मेंजो हार देती हूँ तुम्हे ! सब से छुपा कर मन में बसाया है तुम्हे जब भी जी चाहे तब निहार लेती हूँ तुम्हे बिखर ना जाए कहीं रखना इस

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याद तुम्हारी -- नवगीत

1 जून 2019
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मन कंटक वन में-याद तुम्हारी -खिली फूल सीजब -जब महकीहर दुविधा -उड़ चली धूल सी!!रूह से लिपटी जाय-तनिक विलग ना होती,रखूं इसे संभाल -जैसे सीप में मोती ;सिमटी इसके बीच -दर्द हर चली भूल सी !!होऊँ जरा उदासमुझे हँस बहलाएहो जो इसका साथतो कोई साथ न भाये -जाए पल भर ये दूर -हिया में चुभे शूल सी !!तुम नहीं हो जो

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कभी अलविदा ना कहना तुम

22 जून 2019
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कभी अलविदा ना कहना तुम मेरे साथ यूँ ही रहना तुम !तुम बिन थम जाएगा साथी ,मधुर गीतों का ये सफर ;रुंध कंठ में दम तोड़ देगें -आत्मा के स्वर प्रखर ;बसना मेरी मुस्कान में नित ना संग आंसुओं के बहना तुमतुम ना होंगे हो जायेगी गहरीभीतर की तन्हाईयां-टीसती विकल करेंगीयादों की ये परछाईयां-गहरे भंवर में संताप के -

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सुनो चाँद !

22 जुलाई 2019
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अब नहीं हो! दुनिया के लिए, तुम तनिक भी अंजाने, चाँद! सब जान गए राज तुम्हारा तुम इतने भी नहीं सुहाने, चाँद! बहुत भरमाया सदियों तुमने , गढ़ी एक झूठी कहानी थी; वो थी तस्वीर एक धुंधली ,नहीं सूत कातती नानी थी; युग - युग से बच्चों के मामा - क्या कभी आये लाड़ जताने?चाँद ! खोज - खबर लेने तु

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कारगिल युद्ध -- शौर्य की अमर गाथा

25 जुलाई 2019
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कोई भी राष्ट्र कितना भी शांति प्रिय क्यों ना हो , अपनी सीमाओं की हर तरह से सुरक्षा करना उसका परम कर्तव्य है | यदि कोई देश अपनी सुरक्षा में जरा सी भी लापरवाही करता है उसे पराधीन होते देर नहीं लगती | , क्योंकि राष्ट्र की सीमाओं के पार बसे दूसरे राष्ट्र भी

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लिख दो कुछ शब्द --

29 अगस्त 2019
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लिख दो ! कुछ शब्दनाम मेरे , अपने होकर ना यूँ - बन बेगाने रहो तुम ! हो दूर भले - पास मेरे .इनके ही बहाने रहो तुम ! कोरे कागज पर उतर कर . ये अमर हो जायेंगे ; जब भी छन्दो में ढलेंगे , गीत मधुर

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बूढ़े बाबा ---- वृद्ध दिवस पर

1 अक्टूबर 2019
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वरिष्ठजन दिवस पर मेरी एक रचना उन बुजुर्गो के नाम जो अपने घर आँगन में सघन छांह भरे बरगद के समान है | जो उनकी कद्र जानते हैं उन्ही के मन के भाव ----बाबा की आँखों से झांक

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नमन न्यायपालिका

11 नवम्बर 2019
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नमन न्यायपालिका के -सम्पूर्ण अधिकार की शक्ति को,न्याय मिला , भले देर हुई , वन्दन इस द्वार शक्ति को !समय बढ़ गया आगे,लिख सौहार्द की नई परिभाषा; प्यार जीता नफरत हारी , बो हर दिल में नयी आशा ;हर कोई अपलक देख रहा -इस प्यार की शक्ति को !समभाव भरी ये पुण्यधरा .गीता भी

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मेरे गाँव के गुमनाम शायर

28 दिसम्बर 2019
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अपने गाँव के कविनुमा व्यक्ति को जब मैंने पहली बार अपने घर की बैठक में देखा , तो मेरे आश्चर्य का कोई ठिकाना ना रहा | मैं उन्हें आज अपने घर की बैठक में पहली बार देख रही थी |इससे पहले मैंने उन्हें अपने गाँव की अलग -अलग गलियों में निरर्थक घूमते देखा था या फिर जहाँ - तहां मज़मा जोड़कर सुरीले स

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आभार शब्दनगरी

13 जनवरी 2020
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आज का दिन एक बार फिर बीती यादों की ओर लिए जा रहा है ।आज ही के तीन साल पहले शब्दनगरी पर टििप्पणी के लिए बनाये गए अकाउंट ने मेरी जिंदगी बदल दी थी। उन सभी पाठकों और सहयोगियों की ऋणी रहूँगी, जिन्होंने मेरी इस शानदार रचना यात्रा में मुझे अतुलनीय सहयोग दिया। आभार...आभार

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प्रेम ना बाडी उपजे

14 फरवरी 2020
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प्रेम सदियों से मानव जीवन का अभिन्न हिस्सा रहा है | हर इंसान अपने जीवन में प्रेम के अनुभव से गुजरता है | इसे प्रेम, प्यार , इश्क , स्नेह , नेह इत्यादि ना जाने कितने नामों से पुकारा गया और उतनी ही नई परिभाषाएं गढ़ी गयी |ये जब भगवान से हुआ - भक्ति कहलाया , प्रियतम से हुआ नेह कहलाया , अप्राप्य स

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ये ठहराव जरूरी था - कोरोना काल पर चिंतन

29 मई 2020
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कितने सालों से देख रहे थे , अलसुबह भारी - भरकम बस्ते लादे- टाई- बेल्ट से लैस , चमड़े के भारी जूतों के साथ आकर्षक नीट -क्लीन ड्रेस में सजा -- विद्यालयों की तरफ भागता रुआंसा बचपन --- तो नम्बरों की दौड़ और प्रतिष्ठित संस्थानों में दाखिले की धुन में- आधे सोये- आधे जागते किशोर

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गुरु वन्दना

5 जुलाई 2020
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मेरे समस्त स्नेही पाठकवृन्द को गुरु पूर्णिमा की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं --- तुम कृपासिन्धु विशाल , गुरुवर ! मैं अज्ञानी , मूढ़ , वाचाल गुरूवर ! पाकर आत्मज्ञान बिसराया .छल गयी मुझको जग की माया ;मिथ्यासक्ति में डूब -डूब हुआ अंतर्मन बेहाल , गुरुवर ! तुम्हारी कृपा का अवलंबन , पाया अ

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चलो नहायें बारिश में -- बाल कविता

2 सितम्बर 2020
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चलो नहायें बारिश में लौट कहाँ फिर आ पायेगा ?ये बालापन अनमोल बड़ा ,जी भर आ भीगें पानी में झुलसाती तन धूप बड़ा ; गली - गली उतरी नदिया कागज की नाव बहायें बारिश में !चलो नहायें बारिश में !झूमें डाल- डाल गलबहियाँ, गुपचुप करलें कानाबाती करेंगे मस्ती और मनमानी सीख आज हमें ना भाती , लोट - लोट लि

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लाडली नाज़ों पली

30 नवम्बर 2020
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🌹🌹आदरणीय भाई रवींद्र सिंह यादव जी को लाडली बिटिया   के शुभ विवाह की  हार्दिक बधाई और शुभकामनाएंनव युगल को भावी जीवन की हार्दिक मंगल कामनाएं। लाडली नाज़ों पली चली ससुराल गली! निभाना फेरों की रीतयही जग का चलनना रख पाए पिताकरे लाखों जतनथी अमानत पराईमेरे अँगना पलीलाडली नाज़ों पली चली ससुराल गली!  क्यू

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मन पाखी की उड़ान - प्रेम कविता

11 मार्च 2021
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मन पाखी की उड़ान तुम्हीं संग मन मीता जीवन का सम्बल तुम एक भरते प्रेम घट रीता !नित निहारें नैन चकोर ना नज़र में कोई दूजा हो तरल बह जाऊं आज सुन मीठे बैन प्रीता ! बाहर पतझड़ लाख चिर बसंत तुम मनके सदा गाऊँ तुम्हारे गीत भर - भर भाव पुनीता ! बिन देखे रूह बेचैन हर दिन राह निहारे लगे बरस पल एक

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आज कविता सोई रहने दो

30 अक्टूबर 2021
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<h1><em><strong>आज कविता सोई रहने दो,</strong></em></h1> <h1><em><strong>मन के मीत मेरे

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पुस्तक प्रकाशन -' समय साक्षी रहना तुम '

19 जनवरी 2022
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🙏🙏 पुटक मंगवाने के  लिए लिंक   माँ सरस्वती को नमन करते हुए  शब्दंनगरी  के ,मेरे सभी स्नेही पाठवृंद को मेरा सादर और सप्रेम अभिवादन। आप सभी के साथ, अपनी पहली पुस्तक ' समय साक्षी रहना त

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आओ देवता आओ!श्राद्ध कथा

24 सितम्बर 2022
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रसोई से आती विभिन्न स्वादिष्ट  व्यंजनों  की मनभावन गंध और माँ  की स्नेह भरी आवाज  ने घर से बाहर जाते  नीरज  के कदमों को सहसा रोक लिया |'' आज तुम्हारे दादा जी पहला श्राद्ध है बेटा ! इसलिए उन्हें  समर्प

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माँ हिन्दी तू ही परिचय मेरा!

10 जनवरी 2023
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मेरी रचनात्मकता की उर्वर भूमि शब्दनगरी को मेरा सादर नमन!11 जनवरी 2017 को अपनी रचना यात्रा जहाँ से शुरु की थी उसी जगह खड़े होकर पीछे  देखना  बहुत भावुक कर देता है।कितने लोग मिले इस मंच पर जिन्हें पाकर ज

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