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विशेषज्ञ की ये राय पढ़कर आप भी कराएंगे बीमारियों का आयुर्वेदिक इलाज

19 जून 2019

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विशेषज्ञ का परिचय संक्षेप में :-

चिकित्सक, डॉ. सूनृता तनेजा, एम.डी. (ayurveda) , आरोग्य आयुर्वेद व पंचकर्म केंद्र - फ़रीदाबाद, में आयुर्वेद और पंचकर्म द्वारा रोगियों का इलाज कर रही हैं. बंध्यत्व, स्त्री रोग, पेट के रोग, त्वचा के रोग, मधुमेह, थायराइड, अस्थमा आदि कुछ ऐसे रोग हैं जिनका बहुत सफलता के साथ इलाज किया जा रहा है. डॉ. सूनृता पिछले 19 वर्षों से बहुत कुशलता के साथ अपनी टीम के द्वारा कमर दर्द, घुटने दर्द, गर्दन दर्द आदि से छुटकारा दिला रही हैं.


प्रश्न- लोगों के मन में आयुर्वेद से जुड़े कुछ भ्रम क्या हैं?

उत्तर- आयुर्वेद से जुड़े लोगों के मन में बहुत से भ्रम हैं, पहला ये की आयुर्वेद का इलाज बहुत लंबा चलता है, जबकि ऐसा नहीं है. सही उपचार और सही दवाईयां हैं तो उसके अनुसार सफल और जल्द इलाज आयुर्वेद में है. इसके अलावा इलाज बीमारी पर भी निर्भर करता है कि समस्या क्या है. जैसे कि- बवासीर का मरीज है तो उसे पहले चरण में ही आराम मिल जाता है. इस वजह से, ये उपचार पर भी निर्भर करता है कि वो कितनी अवधि के लिए चलेगा. इसके अलावा खान-पान में जो बदलाव बताए जाते हैं अगर उन्हें भी ठीक से पालन किया जाए तो कोई समस्या नहीं होती है. बल्कि इन सभी कारणों से आयुर्वेद का इलाज और भी तेजी से होता है, लेकिन फिर वही बात आ जाती है कि बीमारी का निदान और दवाईयां दोनों सही रूप से होनी चाहिए.

दूसरा सामान्य भ्रम ये है कि आयुर्वेदिक दवाईयां बहुत गर्म होती हैं. जबकि ऐसा नहीं है क्योंकि हमारे पास अल्सर के भी मरीज आते हैं जो बड़े-बड़े अस्पतालों से हारकर हमारे पास आयुर्वेदिक इलाज के लिए आते हैं और इनके इलाज के लिए हमारे पास सभी ठंडी दवाईयां हैं. जैसे कि, अगर गर्मियों में हमें मरीज को मसाज देना होता है तो हमारे पास उसके लिए भी सभी ठंडे तेल है, जैसे चंदन का तेल, पिंड तेल. फिर ये मरीज की बीमारी के ऊपर निर्भर करता है कि उसे क्या बीमारी है और हम कैसे इलाज करेंगे.

तीसरा एक भ्रम ये भी है कि कुछ मुख्य बीमारियां जैसे थाइराइड, पथरी, शुगर, जोड़ों का दर्द , जिनका इलाज आयुर्वेद में नहीं है. लोगों को ऐसा भी लगता है कि अगर कुछ दिन आयुर्वेदिक इलाज करा भी लिया तो फिर कुछ दिनों के बाद उन्हें एलोपैथिक इलाज लेना ही पड़ेगा. तो आपको बता दें, कि ऐसा कुछ नहीं है क्योंकि मेरे ऐसे कई मरीज हैं जिन्होंने सही तरीके से थाइराइड और शुगर की दवाईयां ली हैं उन्हें पूर्णतः आराम मिला है. हां ये भी है कि हम उनको ये जरूर बताते हैं कि अगर आपको थाइराइड हुआ है तो आपको हर 6 महीने में इसकी जांच कराते रहना चाहिए. क्योंकि कई बीमारियां हमारे खान-पान और जीवनशैली से संबंधित होती हैं. इसलिए जरा भी लापरवाही से इन बीमारियों के दोबारा होने की संभावना होती ही है. जैसे कि कुछ मरीज जिन्हें गंभीर बीमारी थी वे हमारे पास से ठीक होकर गए हैं तो अब वे छोटी समस्याओं (बुखार, खांसी आदि) के लिए भी हमारे पास ही आते हैं और वे पेरासिटामोल या किसी दूसरे पेन किलर के सेवन के बिना ही आयुर्वेदिक इलाज से ठीक होकर गए हैं. जैसे कि चिकनगुनिया या डेंगू का बुखार है इनमें मरीज एलोपैथिक लेता रहता है और उनकी हालत बहुत बुरी हो जाती है. अगर पहले ही दिन से मरीज आयुर्वेदिक दवाईयां (herbal medicine) लेने लगे तो दो-तीन दिनों में उनका दर्द भी काफी हद तक खत्म हो जाता है और बुखार भी उतर जाता है. मात्र हफ्ते भर में मरीज पूरी तरह से ठीक हो जाता है.

प्रश्न- किसी बीमारी के इलाज के लिए एलोपैथिक, होम्योपैथिक औऱ आयुर्वेद (ayurved) में से किसी एक को कैसे चुनें?

उत्तर- इस संबंध में मैं ये कहना चाहूंगी कि आयुर्वेद (only ayurveda) खुद में जीवनशैली का विज्ञान है और ऐसा ना तो होम्योपैथ में है और ना ही एलोपैथ में है. अपनी-अपनी सीमाएं इन तीनों में ही पाई जाती हैं, इसलिए आयुर्वेद में ये साफ बताया गया है कि आपकी दिनचर्या के साथ-साथ ऋतुचर्या कैसी चलती है. जैसे गर्मी में कहा गया है कि ठंडी चीजों का सेवन करना चाहिए तो मतलब ये नहीं कि फ्रिज से निकली ठंडी चीजों का सेवन करना चाहिए बल्कि ठंडी तासीर वाले पदार्थों का सेवन करना चाहिए. जैसे कि हमारे पास लू लगने वाला मरीज आते है तो हम उसे चंदन, मनजिष्ठा आदि ठंडी चीजों से बनी हुई दवाईयां देते हैं. इसलिए अगर हम दिनचर्या और ऋतुचर्या का ठीक से पालन करें कि समय हमें नाश्ता, लंच या डिनर लेना है और उसमें हमें क्या खाना है. फिर 95 प्रतिशत बीमारियां पूरी तरह से ठीक हो जाती हैं.इसके बाद आती हैं आपातकालीन सेवाएं जिसमें मरीज को तीव्र गति में खून बहता हो या दुर्घटनाग्रस्त मामला आए तो ऐसे में एलोपैथिक को ही चुनना चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि सर्जिकल मामलों में एलोपैथिक में शोध ज्यादा हुए हैं. इसके अलावा ऐसी बीमारी नहीं है जिसका उपचार आयुर्वेद में ना हो.


प्रश्न- क्या कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का इलाज भी आयुर्वेद में है ? यदि हां, तो क्या आयुर्वेदिक उपचार द्वारा इसे जड़ से समाप्त किया जा सकता है ?

उत्तर- कैंसर एक बड़ा विषय है जिसके इलाज में ये भी निर्भर करता है कि कैंसर शरीर के किस भाग में हुआ है, किस तरह का कैंसर है और किस पड़ाव पर मरीज हमारे पास आया है. अगर मरीज हमारे पास सही स्टेज पर हमारे पास आया है तो आयुर्वेद में इसके लिए भी अच्छे परिणाम उपलब्ध हैं. कई बार हम आयुर्वेद के इलाज के साथ एलोपैथिक इलाज भी चलाते हैं, जिससे मरीज बहुत जल्द स्वस्थ हो सके. इसलिए ये बड़ी बात है कि मरीज किसी स्टेज पर हमारे पास आ रहा है और बहुत से कैंसर में सिर्फ आयुर्वेद से ही हम अच्छे परिणाम दे चुके हैं. जितने भी प्रतिरक्षित विकार (ऑटोइम्यून डिसऑर्डर) हैं, जैसे कि डायबिटीज़ में टाइप-1 प्रकार है जिसमें मरीज पूरी तरह से सिर्फ इंसुलिन पर ही रहता है, इसमें और कोई सफल इलाज नहीं है लेकिन जैसे ही हम आयुर्वेदिक इलाज शुरु करते हैं तो मरीज का जीवन स्तर बेहतर हो जाता है. अगर मरीज बताए हुए नियमों का सही से पालन करता है तो बहुत जल्द ठीक भी हो जाता है और ये इस पर भी निर्भर करता है कि वो हमारे पास किस स्टेज पर आया है और बताए गये नियमों का किस तरह से पालन करता है. ये मेरा अनुभव है कि लोग हमारे द्वारा बताए गए नियमों (ayurvedic health tips in hindi) का सही से ही पालन करते हैं, क्योंकि वे पहले ही इंसुलिन और बीमारी से बहुत परेशान होने के बाद हमारे पास आए होते हैं.


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प्रश्न- गुप्त रोगी आयुर्वेदिक इलाज की अपेक्षा एलोपैथिक पर ज्यादा विश्वास क्यों करते हैं ?

उत्तर- जागरुकता नहीं है ! बहुत सी चीजों की जागरुकता नहीं है. जैसे मैं आपको बताती हूं कि हम किसी मरीज से कहते हैं कि आपके गुप्त रोग के इलाज में पंचकर्मा होगा तो वो सिर्फ इतना समझते हैं कि उन्हें सिर्फ शरीर की मालिश दी जाएगी. जबकि पंचकर्मा एक बड़ा विषय है इसी तरह से मरीज को जानकारी देनी पड़ती है और जब एक बार आयुर्वेदिक इलाज से अच्छे परिणाम पाते हैं तो वे दोबारा खुद ही आते हैं कि उन्हें ये समस्या आ रही है जिसपर उन्हें आयुर्वेदिक इलाज ही चाहिए होता है. इसलिए मैं कह सकती हूं कि सेक्स संबंधी रोगों के इलाज की लोगों में सिर्फ सही जानकारी की कमी है. इसके कारण यह भ्रम है कि आयुर्वेद में गुप्त रोगों का अच्छा इलाज मौजूद नहीं है. एक बड़ा कारण ये भी है गुप्त रोगों के एलोपैथिक डॉक्टर्स जल्दी मिल जाते हैं .


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प्रश्न- सच या मिथ्या : होम्योपैथ और ऐलोपैथिक इलाज आयुर्वेद की अपेक्षा ज्यादा उपयोगी और सस्ता है !

उत्तर- अगर ऐसा है भी कि होम्योपैथिक और एलोपैथिक इलाज सस्ते हैं तो आज के युग में कोई अच्छा इलाज सस्ता मिलता है क्या ! इसलिए मुझे नहीं लगता कि इनमें कोई खास अंतर होगा. समस्या ये है कि कई बार मरीज भी हमारे द्वारा बताए गए नियमों पर उतनी मेहनत नहीं करना चाहते हैं. जैसे कि हमने उन्हें कोई जड़ीबूटी दी और बोला कि इसे उबालकर ही सेवन करना है तो 90 प्रतिशत मरीज ये बोलेंगे कि ऐसा हमसे रोज नहीं हो पाएगा. तो फिर ऐसे में हमें अन्य महंगी जड़ी-बूटियों का प्रयोग करना पड़ता है जिससे कि इलाज का कुछ खर्च बढ़ जाता है. जैसा कि हम सभी जानते हैं कि केरल में ज्यादातर लोग बीमारियों के उपचार के लिए आयुर्वेद का ही इस्तेमाल करते हैं और जड़ी-बूटी (gharelu nuskhe) कितनी भी कड़वी क्यों ना हो, उसका सेवन प्राकृतिक रूप में ही करते हैं. इसलिए ये बीमारी पर भी निर्भर करता है और व्यक्ति के विश्वास और प्रयासों पर भी निर्भर करता है कि वो कौन सा इलाज लेते हैं. जैसे कि बांझपन का इलाज एलोपैथिक लाखों में होता है लेकिन आयुर्वेद में इसका निदान एलोपैथिक के मुकाबले बहुत सस्ता और जल्दी हो जाता है. इसलिए ये एक मिथक है कि आयुर्वेद का इलाज महंगा होता है.


प्रश्न- सच या मिथ्या: आयुर्वेदिक दवाओं के भी साइड इफैक्ट होते हैं क्योंकि उनका प्रभाव शरीर पर तीक्ष्ण होता है!

उत्तर- देखिए साइड इफेक्ट के लिए तो ऐसा है कि कोई भी गलत चीज गलत डोज़ में ली गई हो तो वो गलत ही हैं और उनका साइड इफेक्ट्स भी होता है. मगर जो आयुर्वेदिक दवाईयां है वो औषधियों एंव जड़ी-बूटियों से बनी हुई हैं. उन्हीं औषधियों को हम बचपन से खाते भी हैं, जैसे- हल्दी, जीरा, तुलसी आदि. इसलिए अगर कभी आयुर्वेदिक दवाईयों के साइड इफैक्ट्स आते भी हैं तो बहुत सामान्य होते हैं. इसी जगह एलोपैथिक दवाईयां के साइड इफेक्ट्स ज्यादा गंभीर होते हैं. इसलिए हम कहते हैं कि जब भी कोई दवाई लें तो डॉक्टर्स के परामर्श में ही लें. ऐसा इसलिए क्योंकि सही दवा सही मात्रा में सही मरीज को मिलती है तो उसके आयुर्वेद में अच्छे परिणाम ही मिलते हैं और इसमें साइड इफेक्ट्स की गुंजाइश बेहद कम होती है.

प्रश्न- सच या मिथ्या : आज भी बड़ी बीमारियों के लिए आयुर्वेद से ज्यादा एलोपैथिक कारगर है !

उत्तर- बड़ी बीमारियों में वो बीमारियां पहले आती हैं जो आज हर घर में पाई जाती हैं, जैसे कि डायबिटीज, थाइराइड, ब्लड प्रेशर , पैरालिसिस आदि. इन में और ऐसी हर बीमारी के लिए आयुर्वेद में सफल और शीघ्र इलाज उपलब्ध है. जिसका लोगों को शारीरिक और आर्थिक दोनों ही स्तर पर फायदा मिलता है. आयुर्वेद में हम ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियों के लिए आपातकालीन स्थिति में भी प्राथमिक चिकित्सा और सफल चिकित्सा देते हैं. इसके अलावा ये भी है कि हम किस रोग को बड़ी बीमारी बोलते हैं और बीमारी का क्या स्टेज है. इसमें भी बात सिर्फ इलाज की नहीं होती है बल्कि हम कितने प्रतिशत लोगों को सफल इलाज देकर ठीक कर पाते हैं. ऐसे में अगर आप एलोपैथिक या होम्योपैथिक इलाज को भी देखें तो ही आप निष्कर्ष निकाल पाएंगे कि इलाज किस हद तक सफल है. कैंसर जैसे गंभीर रोगों का इलाज भी कुछ ऐसा ही है कि वो हमारे पास किस स्टेज पर आता है. अगर वो हमारे पास सही स्टेज पर आता है तो कैंसर जैसी बड़ी बीमारियों का निश्चित सफल इलाज आयुर्वेद में है और अगर बीमारी दूसरे या तीसरे पड़ाव पर है तो हम दोनों इलाज साथ में चला सकते हैं जिससे मरीज को जल्द और पूरा उपचार मिल सके. इसलिए हम कह सकते हैं कि आज छोटी और बड़ी हर बीमारियों के लिए आयुर्वेद में सफल और किफायती इलाज उपलब्ध है.

प्रश्न- सच या मिथ्या : आयुर्वेदिक इलाज का असर धीरे होता है ?

उत्तर- ऐसा नहीं है..जैसे कि हमारे फ्रोजेन शोल्डर (कंधा जाम) के कई मरीज भी आए हैं जो कि बुजुर्गों में और डायबिटीज मरीजों में अक्सर पाया जाता है. तो ऐसे मरीजों को तो पहली और दूसरी सिटिंग में ही आराम मिलने लगता है. ओवुलेशन पीरियड की प्रक्रिया न होने पर, बांझपन का ही मामला ले लीजिए, बंद फेलोपियन ट्यूब्स के लिए एलोपैथिक में किसी भी प्रकार का सफल इलाज नहीं है लेकिन आयुर्वेदिक उपचार इस मामले में बहुत सफल पाया गया है. सबसे बड़ी समस्या ये है कि लोगों में आयुर्वेद के प्रति सही जानकारी का बेहद अभाव है, जबकि आयुर्वेद में लगभग हर बीमारी का सफल और किफायती इलाज मौजूद है. साइनसाइटिस (वायुविवरशोथ, जिसमें मरीज को सांस लेने में समस्या होती है) में सर्जरी संभव नहीं है क्योंकि उसका कारण ये भी है कि मरीज की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है. यदि इसमें सर्जरी कर भी जाए तो व्यक्ति को कुछ समय बाद व्यक्ति को ये समस्या फिर से होने के पूरे चांस होते हैं लेकिन अगर इसी का आयुर्वेदिक इलाज लिया जाए तो इस रोग को जड़ से खत्म किया जाता है भले उसमें महीने या दो महीने का समय लगे. जिसमें मरीज की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाई जाती है और इसके साथ ही आयुर्वेदिक दवाईयों से इस समस्या का भी पूरा निदान किया जाता है (only ayurveda hindi) शायद आज भी लोगों के पास जानकारी की ही कमी है जो वो आयुर्वेद का लाभ नहीं उठा पा रहें.


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Abhinav yadav

Abhinav yadav

Thank you.....! बेहतरीन जानकारी पढ़ कर अच्छा लगा।

20 जून 2019

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