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रामवृक्ष के बारे में

कवि का नाम-रामबृक्ष,। अम्बेडकरनगर पिता का नाम- पतिराम (कृषक) माता का नाम- अमृता देवी (गृहणी) स्थाई पता- ग्राम-बलुआ बहादुरपुर,पोस्ट-रुकुनुद्दीनपुर, तहसील-जलालपुर,जनपद-अम्बेडकरनगर,उत्तर प्रदेश, पिनकोड-224186. मो.न.-9721244478 8318557353 जन्म तिथि-20/07/1979. (बीस जुलाई उन्नीस सौ उन्यासी ) शिक्षा- एम.ए. , बी.एड , पी.जी.डी.सी.ए. (अवध विश्वविद्यालय अयोध्या) व्यवसाय- अध्यापक (प्राथमिक विद्यालय, गोण्डा, उत्तर प्रदेश) प्रकाशित कृतियां- 40 1.नन्हा पौधा 2.उड़ते बादल 3. पुराने नीम की छांव में 4. मैं प्रेम में पागल था 5.परछांइयां . 6. दु:ख की बदली 7. बढ़ते कदम 8. बन्धन 9. जीने का सहारा हूं मैं 10. मुस्कान 11. मैं समय हूं 12. मर्यादा 13.लज्जा 14 .वाह रे ईश्वर तेरे बंदे 15. भारत भाग्य विधाता 16. गुरु गरिमा 17.जब मानव करने पर आता है 18.गुलाब 19.कांटों में गुलाब 20.आओ मन का दीप जलाएं 21.काठ की नाव 22. मन की व्यथा 23. अजूबा ताजमहल 24. मन की चाह 25.ये मेरा हक है 26. हार की जीत 27 .कंचन काया 28.विद्यार्थियों की व्यथा 30.थकान का पसीना 31. कलमबोध 32-मेरी शान तिरंगा है 33जागो!अब जीवन लो तराश 34. चिंता की रेखाएं. 35 .मैं बदल रहा हूं 36.मेरी बचपन 37.नइहर कै न्योता (अवधी भाषा में) 38.होली में हो लें हम एक दूसरे के, 39.होलिका दहन क्यों, 40.बेरोज़गारी के हाथ| _______________________________________

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रामवृक्ष की पुस्तकें

मधुरिमा

मधुरिमा

यह पुस्तक इस आशा और विश्वास के साथ लिखी गयी है कि काव्य संग्रह में निहित समस्त कविताएं हृदय की उन गहराइयों को स्पर्श करेगी जो मानव जीवन में मानवता का एहसास कराती है और लौकिक जीवन को पारलौकिक जीवन से जोड़ती है| यह सच है कि आज बदलते परिवेश में कविता क

6 पाठक
35 रचनाएँ
0 लोगों ने खरीदा

ईबुक:

₹ 53/-

प्रिंट बुक:

198/-

मधुरिमा

मधुरिमा

यह पुस्तक इस आशा और विश्वास के साथ लिखी गयी है कि काव्य संग्रह में निहित समस्त कविताएं हृदय की उन गहराइयों को स्पर्श करेगी जो मानव जीवन में मानवता का एहसास कराती है और लौकिक जीवन को पारलौकिक जीवन से जोड़ती है| यह सच है कि आज बदलते परिवेश में कविता क

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रामवृक्ष के लेख

कविता-होली में हो लें हम एक-दूसरे के|

24 फरवरी 2022
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कविता-होली में हो लें हम एक-दूसरे के|होली के रंगों मेंमन के उमंगों मेंलोगों के संगों मेंझूम झूम जाएं हमघूम घूम गाएं हम होली में हो लें हम एक-दूसरे केऋतु के वसंतों मेंमदमस्त अंगों मेंफूलों के रंगो

बेरोज़गारी के हाथ -कविता

22 फरवरी 2022
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-बेरोज़गारी के हाथकविताआदि अंत हो या अनन्त होमिटी कहां है क्षुधा किसी कीसायद इसी लिए ही ईश्वरकर खाने के लिए हाथ दीइन हाथों से मेहनत करनासीखा मैंने इस आशा सेसपनो को साकार करुंगारोजगार

आभार

16 फरवरी 2022
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हर काम की तरह इस पुस्तक में निहित विचारों को लोगों तक पहुंचाने में कई लोगों का मेहनत शामिल है खास तौर पर मैं अपने भाइयों एवं बच्चों का शुक्रिया अदा करता हूं| इस काम को पूरा करने में इनके धैर्य और मदद

समर्पण

16 फरवरी 2022
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◆【समर्पण】◆ प्रकृति का वह शक्तिशाली अस्तित्व जो दूसरे जीव मात्र को अस्तित्व प्रदान कर साकार रूप देता है और न केवल साकार रूप प्रदान करता है बल्कि अविकसित कली को विकसित कर उसमें सुगन्ध भरने व वातावरण को

बेरोज़गारी के हाथ

15 फरवरी 2022
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आदि अंत हो या अनन्त हो मिटी कहां है क्षुधा किसी की सायद  इसी  लिए  ही ईश्वर कर खाने के लिए हाथ दी इन हाथों से मेहनत करना सीखा मैंने इस आशा से सपनो को साकार करुंगा रोजगार के अभिलाषा से रो

कंचनकाया

15 फरवरी 2022
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सुंदर कहूं कि मायावी काया  यह बात समझ मैं ना पाया , सुंदरता तो मन में होती है  माया होती कंचन काया | क्या समझ ना पायी थी सीता  कंचन काया की वह माया , या गुण ही कंचन की है ऐसा  जिससे कोई बच ना प

होली में हो लें हम एक-दूसरे के

15 फरवरी 2022
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होली के रंगों में मन के उमंगों में लोगों के संगों में झूम झूम जाएं हम घूम घूम गाएं हम  होली में हो लें हम एक-दूसरे के ऋतु के वसंतों में मदमस्त अंगों में फूलों के रंगों में रंग रंग जाएं हम खि

नैइहर का न्योता(अवधी भाषा में)

15 फरवरी 2022
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लुगाई कै खरचा, दवाई कै खरचा लड़िकन के पढ़ाई लिखाई कै खरचा ऊपर से मंहगाई गटई दबावै जुतावै  बुवावै कै चिंता सतावै मंहगाई कै मार,सहत जात हउवै खरचन पर खरचा जोड़त जात हउवैं खुद से ही बड़बड़ करत बात ह

मेरी शान तिरंगा है

15 फरवरी 2022
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 पिता कौन क्यों है लेटा ? ओढ़े कफ़न तिरंगा, कंधों पर ले चार खड़े हैं आंख से बहती गंगा, बेटा बुला रहा है उनको करुणा से रो- रो कर, गिरी धरा पर मां शिथिल सिंदूर अश्रु से धोकर, आसमान में देख र

नव वर्ष का सवेरा

15 फरवरी 2022
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नये साल का आया पावन सवेरा पावन पवित्र कर दे मन तेरा मेरा |        फूलों सा कलियों सा मन मुस्करायें        भौंरों  के  गीतों  सा हम  गुनगुनायें        धरती गगन गूंजें चिड़ियों का कलरव        आओ

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