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उमेश पंत के बारे में

उमेश पंत स्‍वतंत्र पत्रकार और लेखक हैं। फोटोग्राफी और फिल्‍म मेकिंग के क्षेत्र में भी सक्रिय हैं। हिंदी साहित्‍य की कविता, कहानी, संस्‍मरण, यात्रा संस्‍मरण और लालित्‍य लेखन जैसी कई विधाओं में उनकी कलम सृजन रचती रही है। वैसे यात्राएं और घुम्‍मकड़ी उनके स्‍वभाव में हैं। उमेश पंत मूलत: उत्तराखंड में पिथौरागढ़ ज़‍िले के गंगोलीहाट नाम के छोटे-से क़स्बे में पले-बढ़े हैं। फ़िलवक़्त दिल्ली में रहते हैं। इन्होंने दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के एमसीआरसी से मास कम्यूनिकेशन में मास्टर्स किया है। यात्रा-वृत्तान्त ‘इनरलाइन पास’ के लेखक हैं। करियर की शुरुआत मुम्बई जाकर बालाजी टेलीफ़िल्म्स में बतौर एसोशिएट राइटर की। फिर मुम्बई में गीतकार और पटकथा लेखक नीलेश मिसरा से जुडक़र उनके मशहूर क़‍िस्सागोई के कार्यक्रम के लिए कहानियाँ लिखीं। ग्रामीण अख़बार ‘गाँव कनेक्शन’ में पत्रकार भी रहे हैं। गूगल के लिए बतौर ऑनसाइट हिन्दी लिंग्विस्ट काम कर चुके हैं। रेडियो के लिए फ़िल्म और गाने भी लिख चुके हैं। हिन्दी के तमाम अख़बारों में यात्राओं और समसामयिक विषयों से जुड़े लेख लिखते रहे हैं। ‘यात्राकार’ नाम से ब्लॉग भी चलाते हैं। शौकिया घुमक्कड़ हैं और यात्राओं को तस्वीरों में सहेजने की रुचि रखते हैं। वेबसाइट : https://yatrakaar.com/

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उमेश पंत की पुस्तकें

इनरलाइन पास

इनरलाइन पास

एक दुनिया जो हमारे इर्द-गिर्द होती है, जहाँ हम रहते हैं, हमारे कम्फ़र्ट ज़ोन की दुनिया और एक दुनिया उससे कहीं दूर- हमारे सपनों की दुनिया। लेकिन उस दूसरी दुनिया तक पहुँचना इतना आसान नहीं होता।वहाँ पहुँचने के लिए कुछ सीमाएँ लाँघनी पड़ती हैं,पार करने होते

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प्रिंट बुक:

150/-

इनरलाइन पास

इनरलाइन पास

एक दुनिया जो हमारे इर्द-गिर्द होती है, जहाँ हम रहते हैं, हमारे कम्फ़र्ट ज़ोन की दुनिया और एक दुनिया उससे कहीं दूर- हमारे सपनों की दुनिया। लेकिन उस दूसरी दुनिया तक पहुँचना इतना आसान नहीं होता।वहाँ पहुँचने के लिए कुछ सीमाएँ लाँघनी पड़ती हैं,पार करने होते

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दूर दुर्गम दुरुस्त

दूर दुर्गम दुरुस्त

दूर दुर्गम दुरुस्त दरअसल पूर्वोत्तर से जुड़ी यात्राओं की एक दस्तावेज़ है। इसे आप एक घुमक्कड़ की मन-कही भी कह सकते हैं जो अक्सर अनकही रह जाती है। मुख्यधारा में पूर्वोत्तर की जितनी भी चर्चा होती है, उसमें उसके दुर्गम भूगोल की चीख-पुकार ही शामिल रहती है

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250/-

दूर दुर्गम दुरुस्त

दूर दुर्गम दुरुस्त

दूर दुर्गम दुरुस्त दरअसल पूर्वोत्तर से जुड़ी यात्राओं की एक दस्तावेज़ है। इसे आप एक घुमक्कड़ की मन-कही भी कह सकते हैं जो अक्सर अनकही रह जाती है। मुख्यधारा में पूर्वोत्तर की जितनी भी चर्चा होती है, उसमें उसके दुर्गम भूगोल की चीख-पुकार ही शामिल रहती है

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