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देवेंद्र मेवाड़ी के बारे में

विज्ञान को साहित्य की सरसता और सरलता में पिरो कर देवेंद्र मेवाड़ी समाज को नई रोशनी दे रहे हैं। बीते 50 वर्षों से भी अधिक समय से वह अपनी किताबों, कहानी, विज्ञान साहित्य के लेखों से बच्चों को विज्ञान की बारीकियां सिखा रहे हैं। अब तक आधा दर्जन से अधिक राष्ट्रीय पुरस्कार अर्जित कर चुके देवेंद्र के आत्मकथा संस्मरण मेरी यादों का पहाड़ के लिए उन्हें साहित्य अकादमी 2021 के युवा एवं बाल साहित्य पुरस्कार के लिए चुना गया। मूल रूप से नैनीताल जनपद के ओखलकांडा कालाआगर निवासी देवेंद्र मेवाड़ी का जन्म 1944 में हुआ। 12वीं तक पढ़ाई ओखलकांडा में पूरी करने डीएसबी परिसर से वनस्पति विज्ञान में एमएससी की पढ़ाई पूरी की। पढ़ाई पूरी कर भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान दिल्ली में तीन वर्षों तक अनुसंधान कार्य करने के बाद उन्होंने इस्तीफा दिया। इसके बाद जीबी पंत कृषि विवि पंतनगर में बतौर विज्ञान लेखक कार्य करना शुरू किया। जहां 13 वर्षों तक उन्होंने किसान भारती पत्रिका का संपादन किया। इसके बाद 22 वर्षों तक वह बैंकिंग क्षेत्र से जुड़े रहे। वर्तमान में वह दिल्ली में रहकर मुक्त रूप से विज्ञान साहित्य का लेखन कर पाठकों की जिज्ञासा शांत कर रहे हैं। देवेेंद्र 50 वर्ष से अधिक समय से विज्ञान साहित्य लेखन कर रहे हैं। 2013 में मुंबई में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्हें कथा वाचन के लिए आमंत्रित किया गया। बच्चों की रुचि को देखकर किस्सागोई की मौखिक कला से बच्चों को विज्ञान की बारीकियां सीखना शुरू किया। अब तक वह उत्तराखंड के साथ ही दर्जन भर प्रदेशों के स्कूलों में जाकर एक लाख से अधिक बच्चों को किस्सागोई से विज्ञान की बारीकियां सिखा चुके हैं। देवेंद्र मेवाड़ी द्वारा 2018 में लिखित आत्मकथात्मक संस्मरण मेरी यादों का पहाड़ के लिए उन्हें 2021 का साहित्य अकादमी का युवा एवं बाल साहित्य पुरस्कार दिए जाने की घोषणा हो चुकी है। उन

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देवेंद्र मेवाड़ी की पुस्तकें

मेरी यादों का पहाड़

मेरी यादों का पहाड़

पहाड़ कहीं के भी हों, बहुत आकर्षित करते हैं। प्रकृति का सानिध्य पाने के लिए लालायित पर्यटकों को सबसे ज्यादा सुहाने लगते हैं पहाड़। बर्फ मढ़ी चोटियां, बल खाती नदियां, इठलाते झरने और सनन सन चलती हवा, लेकिन इन पहाड़ों के जीवन की असलियत कितनों को पता होत

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मेरी यादों का पहाड़

मेरी यादों का पहाड़

पहाड़ कहीं के भी हों, बहुत आकर्षित करते हैं। प्रकृति का सानिध्य पाने के लिए लालायित पर्यटकों को सबसे ज्यादा सुहाने लगते हैं पहाड़। बर्फ मढ़ी चोटियां, बल खाती नदियां, इठलाते झरने और सनन सन चलती हवा, लेकिन इन पहाड़ों के जीवन की असलियत कितनों को पता होत

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छूटा पीछे पहाड़

छूटा पीछे पहाड़

आत्मीयता के सघन राग से सृजित लेखक की जीवन यात्रा जिसके विभिन्न पड़ाव, शहर और अविस्मरणीय चरित्रा सहज ही पाठक को भी अपना सहयात्रा बना लेते हैं।—अशोक अग्रवाल आपका लिखा ‘देखा’ हुआ-सा लगता है। शब्द नहीं, जैसे हज़ारों हज़ार आँखें हों एक-एक लर्ज़िश को दुलार

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छूटा पीछे पहाड़

छूटा पीछे पहाड़

आत्मीयता के सघन राग से सृजित लेखक की जीवन यात्रा जिसके विभिन्न पड़ाव, शहर और अविस्मरणीय चरित्रा सहज ही पाठक को भी अपना सहयात्रा बना लेते हैं।—अशोक अग्रवाल आपका लिखा ‘देखा’ हुआ-सा लगता है। शब्द नहीं, जैसे हज़ारों हज़ार आँखें हों एक-एक लर्ज़िश को दुलार

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कथा कहो यायावर

कथा कहो यायावर

यायावर लेखक क़िस्सागोई के अंदाज़ में आपको अपनी यात्रा कथाएँ सुनाते-सुनाते पेड़ों, पहाड़ों, पंछियों, नदियों, तालाबों और लोगों से तो मिलाता ही है, मौका मिलते ही धरती और आसमान की कहानियाँ सुना कर आपको आपके समय की समस्याओं से भी रू-ब-रू कराता है। मतलब आपस मे

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कथा कहो यायावर

कथा कहो यायावर

यायावर लेखक क़िस्सागोई के अंदाज़ में आपको अपनी यात्रा कथाएँ सुनाते-सुनाते पेड़ों, पहाड़ों, पंछियों, नदियों, तालाबों और लोगों से तो मिलाता ही है, मौका मिलते ही धरती और आसमान की कहानियाँ सुना कर आपको आपके समय की समस्याओं से भी रू-ब-रू कराता है। मतलब आपस मे

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 सौरमंडल की सैर

सौरमंडल की सैर

मेवाड़ी विज्ञान को किस्सा गोई द्वारा अनूठे अंदाज से समझाने के लिए जाने जाते हैं। देवेंद्र मेवाड़ी ऐसे प्रयोगधर्मी लेखक माने जाते हैं जिन्हें जटिल साहित्य को सरल तरीके से प्रस्तुत करने की महारत हासिल है। वह जितना अच्छा लिखते हैं उससे अच्छा उसका मौखिक

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 सौरमंडल की सैर

सौरमंडल की सैर

मेवाड़ी विज्ञान को किस्सा गोई द्वारा अनूठे अंदाज से समझाने के लिए जाने जाते हैं। देवेंद्र मेवाड़ी ऐसे प्रयोगधर्मी लेखक माने जाते हैं जिन्हें जटिल साहित्य को सरल तरीके से प्रस्तुत करने की महारत हासिल है। वह जितना अच्छा लिखते हैं उससे अच्छा उसका मौखिक

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 विज्ञान वेला में

विज्ञान वेला में

विज्ञान के कदम लगातार बढ़ रहे हैं जिसके कारण हमारी यह दुनिया भी तेजी से बदल रही है। केवल विगत आधी सदी में ही हमारी दुनिया का चेहरा और हमारी जीवन शैली में भारी बदलाव आ गया है। कल कौन जानता था कि मानव के बनाए अंतरिक्ष यान न केवल सौरमंडल के ग्रहों-उपग्र

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 विज्ञान वेला में

विज्ञान वेला में

विज्ञान के कदम लगातार बढ़ रहे हैं जिसके कारण हमारी यह दुनिया भी तेजी से बदल रही है। केवल विगत आधी सदी में ही हमारी दुनिया का चेहरा और हमारी जीवन शैली में भारी बदलाव आ गया है। कल कौन जानता था कि मानव के बनाए अंतरिक्ष यान न केवल सौरमंडल के ग्रहों-उपग्र

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देवेंद्र मेवाड़ी के लेख

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