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कमलेश्वर के बारे में

हिन्दी लेखक कमलेश्वर बीसवीं शती के सबसे सशक्त लेखकों में से एक समझे जाते हैं। कहानी, उपन्यास, पत्रकारिता, स्तंभ लेखन, फिल्म पटकथा जैसी अनेक विधाओं में उन्होंने अपनी लेखन प्रतिभा का परिचय दिया। कमलेश्वर का लेखन केवल गंभीर साहित्य से ही जुड़ा नहीं रहा बल्कि उनके लेखन के कई तरह के रंग देखने को मिलते हैं। उनका उपन्यास 'कितने पाकिस्तान' हो या फिर भारतीय राजनीति का एक चेहरा दिखाती फ़िल्म 'आंधी' हो, कमलेश्वर का काम एक मानक के तौर पर देखा जाता रहा है। उन्होंने मुंबई में जो टीवी पत्रकारिता की, वो बेहद मायने रखती है। 'कामगार विश्व’ नाम के कार्यक्रम में उन्होंने ग़रीबों, मज़दूरों की पीड़ा-उनकी दुनिया को अपनी आवाज़ दी। कमलेश्वर की अनेक कहानियों का उर्दू में भी अनुवाद हुआ है। कमलेश्वर का जन्म ६ जनवरी १९३२ को उत्तरप्रदेश के मैनपुरी जिले में हुआ। उन्होंने १९५४ में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में एम.ए. किया। उन्होंने फिल्मों के लिए पटकथाएँ तो लिखी ही, उनके उपन्यासों पर फिल्में भी बनी। 'आंधी', 'मौसम (फिल्म)', 'सारा आकाश', 'रजनीगंधा', 'मिस्टर नटवरलाल', 'सौतन', 'लैला', 'रामबलराम' की पटकथाएँ उनकी कलम से ही लिखी गईं थीं। लोकप्रिय टीवी सीरियल 'चन्द्रकांता' के अलावा 'दर्पण' और 'एक कहानी' जैसे धारावाहिकों की पटकथा लिखने वाले भी कमलेश्वर ही थे। उन्होंने कई वृतचित्रों और कार्यक्रमों का निर्देशन भी किया। १९९५ में कमलेश्वर को 'पद्मभूषण' से नवाज़ा गया और २००३ में उन्हें 'कितने पाकिस्तान'(उपन्यास) के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वे 'सारिका' 'धर्मयुग', 'जागरण' और 'दैनिक भास्कर' जैसे प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं के संपादक भी रहे। उन्होंने दूरदर्शन के अतिरिक्त महानिदेशक जैसा महत्वपूर्ण दायित्व भी निभाया। कमलेश्वर ने अपने ७५ साल के जीवन में १२ उपन्यास, १७ कहानी संग्रह और क़रीब

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कमलेश्वर की पुस्तकें

लाल बहादुर शास्त्री

लाल बहादुर शास्त्री

पटकथा लेखन एक विशिष्ट विधा है, जिसमें शब्दों की भूमिका पढ़े जाने के बजाय देखने की होती है। मीडिया का क्षेत्र व्यापक होने और विजुअल मीडिया की गतिविधियाँ हमारे यहाँ तेज होने के बाद पटकथा-लेखन एक प्रमुख विधा के रूप में सामने आया और जिन लेखकों ने इस दिशा

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लाल बहादुर शास्त्री

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पटकथा लेखन एक विशिष्ट विधा है, जिसमें शब्दों की भूमिका पढ़े जाने के बजाय देखने की होती है। मीडिया का क्षेत्र व्यापक होने और विजुअल मीडिया की गतिविधियाँ हमारे यहाँ तेज होने के बाद पटकथा-लेखन एक प्रमुख विधा के रूप में सामने आया और जिन लेखकों ने इस दिशा

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कश्मीर : रात के बाद

कश्मीर : रात के बाद

हिंदी के सुप्रसिद्ध कथाकार कमलेश्वर का कश्मीर से पुराना और गहरा लगाव रहा है । ‘कश्मीर : रात के बाद’ में लेखक के इस पुराने और गहरे कश्मीरी लगाव को शिद्दत से महसूस किया जा सकता है । एक गल्पकार की नक्काशी, एक पत्रकार की निर्भीकता, एक चेतस इतिहास-द्रष्टा

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कश्मीर : रात के बाद

कश्मीर : रात के बाद

हिंदी के सुप्रसिद्ध कथाकार कमलेश्वर का कश्मीर से पुराना और गहरा लगाव रहा है । ‘कश्मीर : रात के बाद’ में लेखक के इस पुराने और गहरे कश्मीरी लगाव को शिद्दत से महसूस किया जा सकता है । एक गल्पकार की नक्काशी, एक पत्रकार की निर्भीकता, एक चेतस इतिहास-द्रष्टा

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एक सड़क सत्तावन गलियां

एक सड़क सत्तावन गलियां

‘यह मेरा पहला उपन्यास है। लिखा सन् 1956 में गया था, यह उसी समय पूरा का पूरा हंस में छपा था। फिर सन् 68-69 या शायद इसके बाद श्री प्रेम कपूर ने इस पर फ़िल्म बनाई ‘बदनाम बस्ती’। मेरे लिए यह उपन्यास उतना ही प्रिय है जितनी प्रिय मेरे लिए मेरी माँ और मेरी

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एक सड़क सत्तावन गलियां

एक सड़क सत्तावन गलियां

‘यह मेरा पहला उपन्यास है। लिखा सन् 1956 में गया था, यह उसी समय पूरा का पूरा हंस में छपा था। फिर सन् 68-69 या शायद इसके बाद श्री प्रेम कपूर ने इस पर फ़िल्म बनाई ‘बदनाम बस्ती’। मेरे लिए यह उपन्यास उतना ही प्रिय है जितनी प्रिय मेरे लिए मेरी माँ और मेरी

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हिन्दुस्तानी ग़ज़लें

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"ग़ज़ल के इतिहास में जाने की ज़रूरत मैं महसूस नहीं करता। साहित्य की हर विधा अपनी बात और उसे कहने के ढब से, संस्कारों से फ़ौरन पहचानी जाती है। ग़ज़ल की तो यह ख़ासियत है। आप उर्दू जानें या न जानें, पर ग़ज़ल को जान भी लेते हैं और समझ भी लेते हैं। जब 13व

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हिन्दुस्तानी ग़ज़लें

हिन्दुस्तानी ग़ज़लें

"ग़ज़ल के इतिहास में जाने की ज़रूरत मैं महसूस नहीं करता। साहित्य की हर विधा अपनी बात और उसे कहने के ढब से, संस्कारों से फ़ौरन पहचानी जाती है। ग़ज़ल की तो यह ख़ासियत है। आप उर्दू जानें या न जानें, पर ग़ज़ल को जान भी लेते हैं और समझ भी लेते हैं। जब 13व

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 जॉर्ज पंचम की नाक

जॉर्ज पंचम की नाक

ये कहानियां मेरे लिए अत्यंत महत्वरॉपूर्ण हैं, क्योंकि इनके सहारे ही मैंने पहली बार महानगर की उलझी हुई जिंदगी के छोर सुलझाए थे।

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 जॉर्ज पंचम की नाक

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चन्द्रकान्ता

चन्द्रकान्ता

पटकथा लेखन एक कला है जिसे बहुस्तरीय अनुभव के बाद ही अर्जित किया जा सकता है। धारावाहिक और फिल्म लेखन के बढ़ते उद्योग में कुछ प्रशिक्षण संस्थान महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इसके बावजूद पटकथा लेखन का बुनियादी उद्देश्य पूरा नहीं होता। इस दृष्टि से प्र

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चन्द्रकान्ता

चन्द्रकान्ता

पटकथा लेखन एक कला है जिसे बहुस्तरीय अनुभव के बाद ही अर्जित किया जा सकता है। धारावाहिक और फिल्म लेखन के बढ़ते उद्योग में कुछ प्रशिक्षण संस्थान महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इसके बावजूद पटकथा लेखन का बुनियादी उद्देश्य पूरा नहीं होता। इस दृष्टि से प्र

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कितने पाकिस्तान

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कमलेश्वर का यह उपन्यास मानवता के दरवाजे पर इतिहास और समय की एक दस्तक है...इस उम्मीद के साथ कि भारत ही नहीं, दुनिया भर में एक के बाद एक दूसरे पाकिस्तान बनाने की लहू से लथपथ यह परम्परा अब खत्म हो...।

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कमलेश्वर का यह उपन्यास मानवता के दरवाजे पर इतिहास और समय की एक दस्तक है...इस उम्मीद के साथ कि भारत ही नहीं, दुनिया भर में एक के बाद एक दूसरे पाकिस्तान बनाने की लहू से लथपथ यह परम्परा अब खत्म हो...।

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काली आंधी

काली आंधी

"कमलेश्वर के उपन्यासों में काली आँधी का अपना विशिष्ट स्थान है। इंदिरा गाँधी के प्रधानमंत्रित्व काल में इसकी रचना हुई और इसका मुख्य चरित्र उन्हीं का प्रतिनिधित्व करता है। उन्हीं के समान दबंग, उन्हीं के समान दुनिया को प्रभावित करने वाला और मानो आँधी की

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"कमलेश्वर के उपन्यासों में काली आँधी का अपना विशिष्ट स्थान है। इंदिरा गाँधी के प्रधानमंत्रित्व काल में इसकी रचना हुई और इसका मुख्य चरित्र उन्हीं का प्रतिनिधित्व करता है। उन्हीं के समान दबंग, उन्हीं के समान दुनिया को प्रभावित करने वाला और मानो आँधी की

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हिन्दोस्तां हमारा

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प्रख्यात लेखक कमलेश्वर का एक नया प्रयोग-‘जनमंच’ के रूप में ‘साइट एण्ड साउंड’ (जिसमें मंच एक न होकर विस्तृत भूमि में 10-12 मंच या ‘स्पाट्स’ होते हैं) के माध्यम से स्वाधीनता-संग्राम की रोमांचक कथा-1857 की क्रान्ति, नील विद्रोह, वासुदेव बलवन्त फड़के, बिर

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प्रख्यात लेखक कमलेश्वर का एक नया प्रयोग-‘जनमंच’ के रूप में ‘साइट एण्ड साउंड’ (जिसमें मंच एक न होकर विस्तृत भूमि में 10-12 मंच या ‘स्पाट्स’ होते हैं) के माध्यम से स्वाधीनता-संग्राम की रोमांचक कथा-1857 की क्रान्ति, नील विद्रोह, वासुदेव बलवन्त फड़के, बिर

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