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महुआ माजी के बारे में

बांग्लादेश की मुक्ति-गाथा पर केंद्रित अपने पहले उपन्यास 'मैं बोरिशाइल्ला’ से कथा जगत में धूम मचा देने वाली महुआ माझी का जन्म 10 दिसम्बर, 1964 को हुआ। आपने समाज शास्त्र में स्नातकोत्तर और पीएचडी की डिग्री हासिल की और यूजीसी की नेट परीक्षा पास हैं। आपने फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टिट्यूट पुणे से 'फिल्म ऐप्रिसिएशन कोर्स' तथा रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय से फाइन आर्ट्स में 'अंकन विभाकर’ की डिग्री भी हासिल की है। आपकी रचनाओं का प्रकाशन हंस, नया ज्ञानोदय, कथादेश, कथाक्रम, वागर्थ जैसी पत्र-पत्रिकाओं में हो चुका है। इसी तरह अंग्रेजी, बांग्ला, पंजाबी सहित कई भाषाओं में आपके अनुवाद हो चुके हैं। 'मैं बोरिशाइल्ला’ अंग्रेजी में 'मी बोरिशाइल्ला’ के नाम से छपा, जिसे 'सापिएन्जा युनिवर्सिटी ऑफ रोम’ में मॉडर्न लिटरेचर के स्नातक पाठ्यक्रम में भी शामिल किया गया है। आपका दूसरा उपन्यास 'मरंगगोड़ा नीलकंठ हुआ’ भी काफी चर्चित हुआ। आपके उपन्यासों पर देश के कई विश्वविद्यालयों में शोध कार्य हो रहे हैं। आपकी चर्चित कहानियों में ‘मोइनी की मौत’, ‘झारखंडी बाबा’, ‘उफ! ये नशा कालिदास!’, ‘मुक्तियोद्धा’, ‘ताश का घर’, ‘रोल मॉडेल’, ‘ड्राफ्ट’, ‘सपने कभी नहीं मरते’, ‘जंगल,जमीन और सितारे’, ‘चन्द्रबिन्दु’ आदि शामिल हैं। आपको 'अन्तर्राष्ट्रीय कथा यूके सम्मान’, मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी तथा संस्कृति परिषद के 'अखिल भारतीय वीर सिंह देव सम्मान’, उज्जैन की कालिदास अकादमी के 'विश्व हिंदी सेवा सम्मान’, लोक सेवा समिति के 'झारखंड रत्न सम्मान’, झारखंड सरकार के ‘राजभाषा सम्मान’ और ‘राजकमल प्रकाशन कृति सम्मान’ आदि से नवाजा जा चुका है। महुआ माजी एक भारतीय राजनीतिज्ञ और झारखंड मुक्ति मोर्चा के सदस्य के रूप में झारखंड से भारत की संसद के ऊपरी सदन, राज्यसभा के सदस्य भी हैं।

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महुआ माजी की पुस्तकें

मैं बोरिशाइल्ला

मैं बोरिशाइल्ला

बांग्लादेश में एक सांस्कृतिक जगह है बोरिशाल। बोरिशाल के रहनेवाले एक पात्र से शुरू हुई यह कथा पूर्वी पाकिस्तान के मुक्ति-संग्राम और बांग्लादेश के रूप में एक नए राष्ट्र के अभ्युदय तक ही सीमित नहीं रहती, बल्कि उन परिस्थितियों की भी पड़ताल करती है, जिनमे

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प्रिंट बुक:

350/-

मैं बोरिशाइल्ला

मैं बोरिशाइल्ला

बांग्लादेश में एक सांस्कृतिक जगह है बोरिशाल। बोरिशाल के रहनेवाले एक पात्र से शुरू हुई यह कथा पूर्वी पाकिस्तान के मुक्ति-संग्राम और बांग्लादेश के रूप में एक नए राष्ट्र के अभ्युदय तक ही सीमित नहीं रहती, बल्कि उन परिस्थितियों की भी पड़ताल करती है, जिनमे

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मरंग गोड़ा नीलकंठ हुआ

मरंग गोड़ा नीलकंठ हुआ

महुआ माजी का उपन्यास ‘मरंग गोड़ा नीलकंठ हुआ’ अपने नए विषय एवं लेखकीय सरोकारों के चलते इधर के उपन्यासों में एक उल्लेखनीय पहलक़दमी है। जब हिन्दी की मुख्यधारा के लेखक हाशिए के समाज को लेकर लगभग उदासीन हों, तब आदिवासियों की दशा, दुर्दशा और जीवन संघर्ष पर

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मरंग गोड़ा नीलकंठ हुआ

मरंग गोड़ा नीलकंठ हुआ

महुआ माजी का उपन्यास ‘मरंग गोड़ा नीलकंठ हुआ’ अपने नए विषय एवं लेखकीय सरोकारों के चलते इधर के उपन्यासों में एक उल्लेखनीय पहलक़दमी है। जब हिन्दी की मुख्यधारा के लेखक हाशिए के समाज को लेकर लगभग उदासीन हों, तब आदिवासियों की दशा, दुर्दशा और जीवन संघर्ष पर

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