shabd-logo

प्रवीण श्रीवास्तव के बारे में

प्रस्तुत लघु उपन्यास ‘बहू की रिहाई ’ के लेखक श्री प्रवीण श्रीवास्तव हैं। इनका जन्म ग्राम तातियागंज, जिला कानपुर नगर में हुआ था। इनकी शिक्षा दीक्षा कानपुर में ही हुई। इन्होने परास्नातक की डिग्री वाणिज्य एवं हिंदी संकाय से प्राप्त की। ये वर्ष 1985 में बैंक ऑफ़ इंडिया में लिपिक वर्ग में नियुक्त होकर मुख्य प्रबंधक के पद तक सेवारत रहे। इन्होने कुछ समय के लिए केन्द्रीय अन्वेषण ब्योरो (सीबीआई) के एंटी करप्शन विभाग में बैंकिंग एडवाइजर के तौर पर प्रतिनियुक्ति पर कार्य किया और नवम्बर, 2021 में स्वैछिक सेवानिवृत लेकर बैंक को अलविदा कह दिया। यह इनका तीसरा उपन्यास है। इससे पहले ये दो लघु उपन्यास ‘बैंक अधिकारी:बिखरते ख़्वाब’ एवं ‘माही’ लिख चुके हैं। इनकी रूचि गीत, कविता, गज़ल एवं कहानी लेखन में है। वर्तमान में ये इन्दिरा नगर, कानपुर नगर में रहते हुए लेखन की विभिन्न विधाओं में व्यस्त हैं। मोबाइल नंबर :- 9140802807 ईमेल :- praveengolu1962@gmail.com

no-certificate
अभी तक कोई सर्टिफिकेट नहीं मिला है|

प्रवीण श्रीवास्तव की पुस्तकें

माही

माही

प्रिय पाठकों, लघु उपन्यास ‘माही’ मेरा दूसरा उपन्यास है. इससे पूर्व मेरा लघु उपन्यास ‘बैंक अधिकारी: बिखरते ख्य्वाब’ प्रकाशित हो चुका है, जिसको देश भर के पाठकों ने विशेष रूप से बैंकर्स ने बेहद पसंद किया. मुझे जो प्रतिक्रियाएं मिली, उनमें सबमें एक ही

7 पाठक
4 रचनाएँ
15 लोगों ने खरीदा

ईबुक:

₹ 27/-

प्रिंट बुक:

158/-

माही

माही

प्रिय पाठकों, लघु उपन्यास ‘माही’ मेरा दूसरा उपन्यास है. इससे पूर्व मेरा लघु उपन्यास ‘बैंक अधिकारी: बिखरते ख्य्वाब’ प्रकाशित हो चुका है, जिसको देश भर के पाठकों ने विशेष रूप से बैंकर्स ने बेहद पसंद किया. मुझे जो प्रतिक्रियाएं मिली, उनमें सबमें एक ही

7 पाठक
4 रचनाएँ
15 लोगों ने खरीदा

ईबुक:

₹ 27/-

प्रिंट बुक:

158/-

बहू की रिहाई

बहू की रिहाई

लघु उपन्यास ‘बहू की रिहाई’ मेरा तीसरा उपन्यास है. इससे पूर्व मेरा प्रथम लघु उपन्यास ‘बैंक अधिकारी: बिखरते ख्य्वाब’ प्रकाशित हुआ, जिसको देश भर के पाठकों ने विशेष रूप से बैंकर्स ने बेहद पसंद किया. मुझे जो प्रतिक्रियाएं मिली, उनमें सबमें एक ही कॉमन बात

5 पाठक
1 रचनाएँ
4 लोगों ने खरीदा

ईबुक:

₹ 33/-

प्रिंट बुक:

136/-

बहू की रिहाई

बहू की रिहाई

लघु उपन्यास ‘बहू की रिहाई’ मेरा तीसरा उपन्यास है. इससे पूर्व मेरा प्रथम लघु उपन्यास ‘बैंक अधिकारी: बिखरते ख्य्वाब’ प्रकाशित हुआ, जिसको देश भर के पाठकों ने विशेष रूप से बैंकर्स ने बेहद पसंद किया. मुझे जो प्रतिक्रियाएं मिली, उनमें सबमें एक ही कॉमन बात

5 पाठक
1 रचनाएँ
4 लोगों ने खरीदा

ईबुक:

₹ 33/-

प्रिंट बुक:

136/-

प्रवीण श्रीवास्तव के लेख

बहू की रिहाई

3 जनवरी 2023
0
0

अर्पिता ने स्टॉल से एक कॉफ़ी का मग उठाया और वहीँ पास में ही खड़े होकर धीरे-धीरे सिप लेने लगी. उसने गुलाबी रंग का सलवार सूट पहना हुआ था जिस पर सलीके से दुपट्टा डाला था. उसके लम्बे रेशमी भूरे बाल कमर तक

माही

16 सितम्बर 2022
0
2

राजन और रजनी के विवाह को आज दो बरस हो गए हैं. उन दोनों के विवाह की वर्षगांठ आज सोमवार एक अगस्त को बहुत धूमधाम से रजनी के पिताजी के फार्म हाउस में मनाई जा रही है. दोनों की एक प्यारी सी गुड़िया जैसी बेटी

भूमिका

16 सितम्बर 2022
0
0

प्रकृति तो मनुष्य के ह्रदय में केवल एक ही भाव का बीजारोपण करती है, वो है केवल प्रेम। कब उसी नैसर्गिक प्रेम के पौधे की परिधि में अन्य भावनाएँ जैसे इर्ष्या, घृणा, क्रोध, लोभ, वासना और प्रतिशोध अवांछित घ

पुस्तक के बारे में

16 सितम्बर 2022
0
0

प्रिय पाठकों, लघु उपन्यास ‘माही’ मेरा दूसरा उपन्यास है। इससे पूर्व मेरा लघु उपन्यास ‘बैंक अधिकारी बिखरते ख्य्वाब’ प्रकाशित हो चुका है, जिसको देश भर के पाठकों ने विशेष रूप से बैंकर्स ने बेहद पसंद किया

समर्पण एवं आभार

16 सितम्बर 2022
0
0

‘माही’ उपन्यास मेरे माता-पिता स्वर्गीय उर्वशी श्रीवास्तव एवं स्वर्गीय रामकृष्ण श्रीवास्तव को समर्पित है। जितनी भी थोड़ी बहुत मनुष्यता मुझमें है, वो सब उन्हीं के दिए संस्कारों के कारण ही है. मैं आभारी ह

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए