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आचार्य अर्जुन तिवारी के बारे में

आचार्य अर्जुन तिवारी पुराण प्रवक्ता / यज्ञाचार्य ग्राम व पोस्ट - बड़ागाँव (रेलवे स्टेशन) तहसील - सोहावल थाना - रौनाही जनपद - श्री अयोध्या जी पिन - २२४१२६ बचपन से ही भगवत्पथ के पथिक बनने की चाह में कुछ लिखना प्रारम्भ किया ! शनै: शनै: कीर्तन - रामायण का आश्रय लेते हुए अपनी शिक्षा आचार्य तक पूरी की तथा पिताजी से ज्ञानार्जन करके पुराणों की कथाओं का अध्ययन करते हुए व्यासपीठ पर पुराणों का प्रवचन एवं ब्राह्मणोचित यज्ञादि कर्म सम्पन्न करवाते हुए लेखन के क्षेत्र में भी सूक्ष्म प्रयास करते रहे ! आज हमारी कई पुस्तकें शब्दनगरी के प्लेटफॉर्म प्रकाशित हैं !

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पुरस्कार और सम्मान

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दैनिक लेखन प्रतियोगिता2022-08-06
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साप्ताहिक लेखन प्रतियोगिता2022-01-16
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दैनिक लेखन प्रतियोगिता2022-06-19

आचार्य अर्जुन तिवारी की पुस्तकें

सनातन विचार

सनातन विचार

हमारा जीवन कैसा था , और अब कैसा होता जा रहा है ! हम अपने संस्कारों को कैसे भूलते चले जा रहे हैं इस पर विचार करने की आश्यकता है ! सत्य सनातन धर्म की मान्यतायें अलौकिक एवं दिव्य रही हैं परंतु आज का सनातनी अपनी मूल मान्यताओं से विमुख होते हुए आधुनिक कल्

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सनातन विचार

सनातन विचार

हमारा जीवन कैसा था , और अब कैसा होता जा रहा है ! हम अपने संस्कारों को कैसे भूलते चले जा रहे हैं इस पर विचार करने की आश्यकता है ! सत्य सनातन धर्म की मान्यतायें अलौकिक एवं दिव्य रही हैं परंतु आज का सनातनी अपनी मूल मान्यताओं से विमुख होते हुए आधुनिक कल्

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श्रीराम एवं नाम महिमा

श्रीराम एवं नाम महिमा

इस संसार में भगवान का नाम भगवान से बड़ा है ! नामी की पहचान नाम से ही होती है ! नाम की महिमा का गुणगान आदिकाल से होता चला चला आया है ! नाम की शक्ति , नाम का आकर्षण एवं नाम का प्रभाव सर्वविदित है ! किसी भी व्यक्ति की पहचान दो प्रकार से होती है ! प्रथम

19 पाठक
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₹ 60/-

प्रिंट बुक:

359/-

श्रीराम एवं नाम महिमा

श्रीराम एवं नाम महिमा

इस संसार में भगवान का नाम भगवान से बड़ा है ! नामी की पहचान नाम से ही होती है ! नाम की महिमा का गुणगान आदिकाल से होता चला चला आया है ! नाम की शक्ति , नाम का आकर्षण एवं नाम का प्रभाव सर्वविदित है ! किसी भी व्यक्ति की पहचान दो प्रकार से होती है ! प्रथम

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पितृपक्ष एवं श्राद्ध

पितृपक्ष एवं श्राद्ध

श्राद्ध हिन्दू एवं अन्य भारतीय धर्मों में किया जाने वाला एक कर्म है जो पितरों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता अभिव्यक्त करने तथा उन्हें याद करने के निमित्त किया जाता है। इसके पीछे मान्यता है कि जिन पूर्वजों के कारण हम आज अस्तित्व में हैं, जिनसे गुण व कौ

18 पाठक
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₹ 53/-

पितृपक्ष एवं श्राद्ध

पितृपक्ष एवं श्राद्ध

श्राद्ध हिन्दू एवं अन्य भारतीय धर्मों में किया जाने वाला एक कर्म है जो पितरों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता अभिव्यक्त करने तथा उन्हें याद करने के निमित्त किया जाता है। इसके पीछे मान्यता है कि जिन पूर्वजों के कारण हम आज अस्तित्व में हैं, जिनसे गुण व कौ

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नवदुर्गा रहस्य एवं नारी

नवदुर्गा रहस्य एवं नारी

नारी आद्याशक्ति , सृष्टि का मूल एवं नर की जन्मदात्री है ! नवरात्र जैसे पावन अवसर पर महादुर्गा के विभिन्न स्वरूपों मे नारी शक्ति का पूजन सम्पूर्ण समाज करता है परंतु वह यह भूल जाता है कि उनके घर में जो नारी है वह भी उसी जगदम्बा का अंश है ! नारी जगतजननी

17 पाठक
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नवदुर्गा रहस्य एवं नारी

नवदुर्गा रहस्य एवं नारी

नारी आद्याशक्ति , सृष्टि का मूल एवं नर की जन्मदात्री है ! नवरात्र जैसे पावन अवसर पर महादुर्गा के विभिन्न स्वरूपों मे नारी शक्ति का पूजन सम्पूर्ण समाज करता है परंतु वह यह भूल जाता है कि उनके घर में जो नारी है वह भी उसी जगदम्बा का अंश है ! नारी जगतजननी

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सोलह संस्कार (विधि सहित)

सोलह संस्कार (विधि सहित)

मानव जीवन में संस्कारों का बड़ा महत्व है ! बिना संस्कार के मनुष्य होकर भी मनुष्य पशु के ही समान है ! संस्कारों के महत्व को देखते हुए मानव जीवन में जन्म के पहले से लेकर मृत्युपर्यन्त १६ संस्कारों की व्यवस्था सनातन धर्म में बनाई गयी है ! इस पुस्तक क

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₹ 126/-

सोलह संस्कार (विधि सहित)

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मानव जीवन में संस्कारों का बड़ा महत्व है ! बिना संस्कार के मनुष्य होकर भी मनुष्य पशु के ही समान है ! संस्कारों के महत्व को देखते हुए मानव जीवन में जन्म के पहले से लेकर मृत्युपर्यन्त १६ संस्कारों की व्यवस्था सनातन धर्म में बनाई गयी है ! इस पुस्तक क

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हमारी संस्कृति एवं हम

हमारी संस्कृति एवं हम

हमारी संस्कृति विश्व की प्राचीन एवं ओजस्वी संस्कृति कही जाती है ! हमें विश्वगुरु कहा जाता था तो उसका आधार हमारी संस्कृति एवं संस्कार ही थे ! हमारे महापुरुषों ने समाज के लिए कुछ आदर्श स्थापित किये थे ! उन आदर्शों के बलबूते पर ही हम विश्वगुरू थे ! चिन्

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18 रचनाएँ

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हमारी संस्कृति एवं हम

हमारी संस्कृति एवं हम

हमारी संस्कृति विश्व की प्राचीन एवं ओजस्वी संस्कृति कही जाती है ! हमें विश्वगुरु कहा जाता था तो उसका आधार हमारी संस्कृति एवं संस्कार ही थे ! हमारे महापुरुषों ने समाज के लिए कुछ आदर्श स्थापित किये थे ! उन आदर्शों के बलबूते पर ही हम विश्वगुरू थे ! चिन्

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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !!

!! भगवत्कृपा हि केवलम् !!

इस संसार में जितने भी क्रियाकलाप हो रहे सब भगवान की कृपा से ही हो रहे हैं ! बिना भगवत्कृपा के कुछ भी हो पाना संभव नहीं है ! इसलिए चराचर जगत में भगवत्कृपा का दर्शन करते हुए इस जीवन एवं जीवन में घटने वाली समस्त घटनाओं को भगवत्कृपा का प्रसाद मानते हुए ह

12 पाठक
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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !!

!! भगवत्कृपा हि केवलम् !!

इस संसार में जितने भी क्रियाकलाप हो रहे सब भगवान की कृपा से ही हो रहे हैं ! बिना भगवत्कृपा के कुछ भी हो पाना संभव नहीं है ! इसलिए चराचर जगत में भगवत्कृपा का दर्शन करते हुए इस जीवन एवं जीवन में घटने वाली समस्त घटनाओं को भगवत्कृपा का प्रसाद मानते हुए ह

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AcharyaArjunTiwari

AcharyaArjunTiwari

सनातन धर्म से जुड़े विषय

7 पाठक
19 रचनाएँ

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सनातन धर्म से जुड़े विषय

7 पाठक
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ये कहाँ आ गये हम

ये कहाँ आ गये हम

आदिकाल से हमारे संस्कार बहुत ही दिव्य रहे हैं इन्हीं संस्कारों को आधार बना कर हमने विश्व पर शासन किया है ! जहां संस्कारों की बात होती थी सारा विश्व हमारी ओर आशा भरी दृष्टि से देखता था परिवार , समाज , राजनीति , कूटनीति आदि की शिक्षा सारे विश्व ने हमार

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ये कहाँ आ गये हम

ये कहाँ आ गये हम

आदिकाल से हमारे संस्कार बहुत ही दिव्य रहे हैं इन्हीं संस्कारों को आधार बना कर हमने विश्व पर शासन किया है ! जहां संस्कारों की बात होती थी सारा विश्व हमारी ओर आशा भरी दृष्टि से देखता था परिवार , समाज , राजनीति , कूटनीति आदि की शिक्षा सारे विश्व ने हमार

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श्री लक्ष्मण चरित्र

श्री लक्ष्मण चरित्र

त्रेतायुग में पृथ्वी का भार उतारने के लिए अयोध्या के चक्रवर्ती सम्राट महाराज दशरथ जी के यहाँ श्रीहरि नारायण ने चार रूपों में अवतार लिया ! शेषावतार श्री लक्ष्मण जी जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त श्री राम जी की छाया बनकर रहे ! लक्ष्मण जी का जीवन चरित्र बहु

4 पाठक
25 रचनाएँ

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श्री लक्ष्मण चरित्र

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त्रेतायुग में पृथ्वी का भार उतारने के लिए अयोध्या के चक्रवर्ती सम्राट महाराज दशरथ जी के यहाँ श्रीहरि नारायण ने चार रूपों में अवतार लिया ! शेषावतार श्री लक्ष्मण जी जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त श्री राम जी की छाया बनकर रहे ! लक्ष्मण जी का जीवन चरित्र बहु

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आचार्य अर्जुन तिवारी के लेख

मोक्ष के चार द्वारपाल :- आचार्य अर्जुन तिवारी

8 जनवरी 2024
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*सनातन धर्म में प्रत्येक मनुष्य के लिए चार पुरुषार्थ बताए गए हैं धर्म अर्थ काम और मोक्ष ! मोक्ष प्राप्त करना हमारे पूर्वजों का परम उद्देश्य रहता था ! बाकी के तीनों पुरुषार्थों का पालन करते हुए अंतिम प

आज का समाज एवं ब्राह्मण: - आचार्य अर्जुन तिवारी

28 दिसम्बर 2023
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*सनातन धर्म की दिव्यता एवं भव्यता आदिकाल से ही रही है ! यदि सनातन धर्म इतना दिव्य एवं भव्य रहा है तो उसका कारण है सनातन के संस्कार एवं संस्कृति ! सनातन के प्रत्येक अनुष्ठान , पूजा पद्धति एवं संस्कारों

विरोधी :- आचार्य अर्जुन तिवारी

21 दिसम्बर 2023
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*भारत का इतिहास बहुत ही दिव्य रहा है यहां पर अनेकों बड़े-बड़े राजाओं महाराजाओं ने शासन किया है ! किसी भी राज्य में , समाज में या फिर परिवार में यदि समर्थक होते हैं तो विरोधी भी वही रहते हैं ! किसी भी

अनिवार्य है संस्कार :- आचार्य अर्जुन तिवारी

21 दिसम्बर 2023
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*̊टयह जीवन जन्म से लेकर मृत्यु तक अनेक आयामों/परिस्थितियों से होकर अपनी यात्रा पूरी करता है ! अपनी जीवन यात्रा बचपन से प्रारंभ करके बुढ़ापे तक पूर्ण करने वाला मनुष्य जीवन में अनेकों कृत्य करता है ! बच

साधना में आवश्यक है समर्पण- आचार्य अर्जुन तिवारी

21 दिसम्बर 2023
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*इस संसार में जन्म लेने के बाद मनुष्य के लिए कुछ भी कर पाना असंभव नहीं है ! कोई भी ऐसा कार्य नहीं है जो मनुष्य न कर सके ! जो अजन्मा है जिसे निराकार ब्रह्म कहा जाता है मनुष्य की साधना के वशीभूत होकर के

रक्षाबन्धन एवं भद्राकाल :- आचार्य अर्जुन तिवारी

30 अगस्त 2023
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*हमारा देश भारत त्योहारों का देश है , जहां समय-समय पर अनेक प्रकार के त्यौहार मनाये जाते हैं जो कि हमारे देश को अनेकता में एकता के सूत्र में बांधते हैं ! सनातन धर्म में पर्व एवं त्योहारों का बहुत बड़ा

धर्म का महत्त्व: - आचार्य अर्जुन तिवारी

26 अगस्त 2023
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*मानव जीवन में धर्म का होना बहुत आवश्यक है ! बिना धर्म के मनुष्य अमर्यादित हो जाता है ! धर्म क्या है ? इस पर अनेकों विद्वानों के मत मिलते हैं और सब का निचोड़ जो मिलता है उसका यह अर्थ यही निकलता है कि

सुख का मूल :-/आचार्य अर्जुन तिवारी

12 जुलाई 2023
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*इस संसार में जन्म लेने के बाद प्रत्येक व्यक्ति सुखी रहना चाहता है ! पूर्व काल में हमारे पूर्वजों ने अनेक प्रकार के सुखों का उपभोग किया है क्योंकि उन्होंने जीवन में साधना की है ! साधना का अर्थ यह कदाप

मानव जीवन श्रेष्ठ है :- आचार्य अर्जुन तिवारी

10 जुलाई 2023
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*ईश्वर की असीम अनुकंपा से जीव मनुष्य योनि प्राप्त करता है और उसे मानव कहा जाता है ! मानव वही है जिसमें मानवता हो ! मानवता का अर्थ है कि संसार के साथ-साथ अपने जीवन का कल्याण कैसे हो इस पर विचार क

फिल्म जगत एवं सनातन :- आचार्य अर्जुन तिवारी

22 जून 2023
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*भारत का इतिहास बहुत ही समृद्धशाली रहा है

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