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यादें बचपन की कहानी 4 (पुताई/पेंट)

30 अक्टूबर 2022

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यादें बचपन की


आज के समय में पेंट करना बहुत आसान काम है, पेंट का डिब्बा खोलो, रोलर डुबाओ और घुमा दो, हो गया पेंट। एक समय था कि हमारे बचपन का कि एक छोटे से घर कि पुताई में पूरे 10,15 दिन लग जाते थे


पुताई (पेंट) का काम कभी भी शुरू करें पर करते करते दीपावली का दिन आ ही जाता था


उस जमाने में ज्यादातर अपने हाथों से ही रंगाई पुताई का काम किया जाता था


जो कि बहुत मेहनत व थकावट से भरा हुआ होता था


सबसे पहले चूने को किसी पुराने बर्तन या मटके में घोला जाता था चूने की उष्मा के कारण चूने और पानी का मिश्रण उबल जाता था।और चूने से एकदम पुताई नहीं कर सकते क्योंकि हाथों की चमड़ी जलने का डर रहता था


फिर पूरा 1 दिन उसे ठंडा होने में लग जाता था।


पुताई करने के लिए ब्रश की जगह कुंची का इस्तेमाल होता था।


जो कि पेड़ों की जड़ों की मुंज की होती थी, उसको किसी भारी चीज या पत्थर से कुट-कुट कर ब्रश जैसा रूप दिया जाता था


चूने की ब्राइटनेस को बढ़ाने के लिए कपड़ों में लगाने वाली नील को मिलाता जाता था


और फिर हमारी पुताई शुरू होती थी, बांस की सीढी पर चढ़ कर बाल्टी में चूने के घोल में कूची डुबाकर सीधे सीधे ऊपर नीचे वाले स्ट्रोक लगाए जाते थे। जोश जोश में एक दिन में सारी बाहरी दीवार पोत दी जाती थी।


अब रात में सारी बांहे दुख रही होती थी, इतनी अधिक कि सो नही पाते थे, क्यों कि कुंची ब्रश की तुलना में दीवारों पर बहुत भारी चलती थी।  अगले दिन पस्त होते थे। फिर उस दिन  ब्रेक ले लिया जाता था । तीसरे दिन फिर जुटते थे, बाहरी दीवार पोतना आसान था, कमरे मुश्किल। सामान या तो बाहर करो या ढंको, उसके बाद पोतों। दूसरा ढेर सारे व्याधान, कभी मम्मी को कोई चीज चाहिए, कभी पापा को कुछ चाहिए। पूरे दिन में एक कमरा ही हुआ। अगले दिन फिर से पस्त। एक दिन पुताई एक दिन छुट्टी मार कर पूरा घर आखिर कार पोत ही लिया जाता था।

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